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नागमणि -18

  चैप्टर -3 नागमणि कि खोज अपडेट -18


सुबह हो चली थी सुबह कि किरण कामवती के सुन्दर मुख पे गिर रही थी,

वो आंखे मसलती उठ बैठती है उसे अच्छी नींद आईथी मखमली बिस्तर पे.

उसकी नजर ठाकुर पे पड़ती है जो कि घोड़े बैच के किसी बोर कि तरह खर्राटे मार रहा था उसे देख कामवती कि हसीं फुट पड़ती है.

कितनी हसीन लगती है कामवती हसती हुई किसी स्वर्ग कि अप्सरा को भी ईर्ष्या हो जाये उसे हसता देख के.

चोर मंगूस अपनी तलाश मे सुबह सुबह ही लग गया था.वो हवेली मे कुछ ढूंढ़ रहा था भूरी काकी रात भर कि थकी चुदी हुई सोइ थी.

कामवती बिस्तर से उठ जाती है ऊसर तेज़ पेशाब आया था सहना मुश्किल था.

वो एक कमरे कि और चल पड़ती है जो गुसालखाने जैसा ही था परन्तु ऊपर से खुला ही था,

पहले के ज़माने मे घर के अंदर ही गुसालखाना हो ऐसा अच्छा नहीं मना जाता था.

कामवती जल्दी जल्दी चलती हुई वहाँ पहुंच जाती है, पैरो मे पड़ी पायल के छन छानहत मंगूस के कानो मे पड़ती है वो जल्दी से उसी गुसालखाने नुमा कमरे किऔर भागता है...

वही पायल का मधुर संगीत नागेंद्र के कानो मे भी पड़ता है वो तुरंत सरसरा जाता है आवाज़ कि दिशा मे.

वो अपनी प्रेमिका को निहारने का एक भी मौका नहीं खोना चाहता था.

कामवती इन सब से अनजान गुसालखाने मे पहुंचती है अच्छा बना हुआ था परदे लगे हुए थे, वो इधर उधर देख के अपना पेटीकोट ऊपर कर देती है और नीचे बैठ जाती है...

आअह्ह्ह.... सुकून मिला कामवती के मुख से फुट पड़ता है

वही दो जोड़ी आंखे ये दृश्य देख पथरा गई थी.

कामवती कि गांड कि तरफ मंगूस कही छुपा बैठा था उसके सामने कामवती कि बड़ी गोरी गांड थी.

मंगूस :- साला इस घर मे सब कि सब एक से बढकर एक गांड है.

कल रात वो भूरी आज ये जवान कामुक कामवती, इसकी गांड भी लुटनी पड़ेगी लगता है.

तभी मंगूस कि नजर कामवती से होती हुई सामने जाती है जहाँ एक सांप दुबका पड़ा था वो हिल दुल नहीं रहा था.

सांप कि नजर कामवती कि पेशाब करती चुत मे जमीं हुई थी ऐसा लगता था जैसे वो साँप चुत से निकलते मधुर संगीत मे कही खो गया है.


नागेंद्र को सामने से कामवती कि चिपकी हुई चुत से पानी कि तेज़ धार निकलती दिख रही थी उसका बस चलता तो वो इस झरने मे डूब डूब के नहाता.

कामवती का ध्यान बिल्कुल भी सामने नहीं था नहीं तो नागेंद्र उसे दिख जाता, उसे तेज पेशाब लगा था इसलिए वो पेशाब करने के आनद मे खोई हुई थी.

नागेंद्र :- फुसससस.... बस मुझे इसी प्यारी सी चुत मे घुस के काटना है, ताकि कामवती का  श्राप खत्म हो और मेरी शक्ति लौट आये, फिर उस घोड़े वीरा कि खेर नहीं ये सब सोचता नागेंद्र आगे को चुत चूमने के लिए बढ़ता है तभी पीछे से सरसरहत से कामवती चौक जाती है,

डर से वो खड़ी हो जाती है उसका मूत रूक जाता है, उसे लगता है जैसे परदे के पीछे से कोई उसे देख रहा है.

वो डरती हुई परदे तक जाती है और झट से पर्दा हटा देती है...

परन्तु वहाँ कोई नहीं था, मंगूस छलवा था गायब हो गया.

कामवती चैन को सांस लेती है...

कामवती.... अरी ठकुराइन बाहर से ठाकुर ज़ालिम कि आवाज़ अति.

कामवती :- ज़ी आई ठाकुर साहेब.

कामवती बाहर कि ओर निकल जाती है.

नागेंद्र फिर से नाकाम रहता है.....

वही मंगूस के दिमाग़ मे बहुत से विचार दौड़ रहे थे.

वो सांप कौन था? भला कोई सांप किसी लड़की कि चुत क्यों देखेगा?

सांप है तो नागमणि भी होंगी?

इसी सांप पे काबू पाना होगा सच जानना होगा मुझे.

चल बेटा मंगूस.... मंगूस हवेली के बाहर निकल जाता है.



सूरज सर पे चढ़ आया था रुखसाना हाफ़ती थकी मांदी अपने घर पहुंच चुकी थी जहाँ बिल्ला मरणासान अवस्था मे पड़ा था,

रुखसाना :- ये लीजिये बाबा दवाई ले आई मै जल्दी से बिल्ला के जख्मो पे लगा दीजिये

ओर साथ ही असलम का वीर्य भी लाइ हूँ. वो आवेश मे अपनी सलवार खोल देती है और वही जमीन पे पैरो के बल बैठ के पास पडे कटोरे मे अपनी चुत को ढीला छोड़ देती है भल भला के डॉ. असलम का वीर्य चुने लगता है उसकी गोरी चिकनी चुत से, बचा खुचा वीर्य रुखसाना ऊँगली डाल के कटोरे मे निकाल लेती है

... पूरा वीर्य निकलने के बाद वो उठ खड़ी होती है "ये लीजिये बाबा असलम का वीर्य "

अब मेरा काम कर दीजिये


मौलाना :- बेटा अभी तक सिर्फ 6 लोगो का ही वीर्य मिला है 7वा वीर्य किसी जमींदार ठाकुर  पुरुष का चाहिए.

तभी मै अपनी शक्ति से वो कमाल कर पाउँगा.

रुखसाना निराशा से अपना सर झुका लेती है मन मे बदबूदाते "कब मिलोगे तुम? रुखसाना कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रही है, तुम्हे जिन्दा होना ही होगा " उसकी आँखों मे आँसू थे, नहाने चल पड़ती है.

मौलाना बिल्ला के जख्मो मे दवाई लगा देता है. बिल्ला अभी भी बेहोश ही पड़ा था.

उधर रंगा भी बेसुध अधमरी हालत मे था, दरोगा वीर प्रताप ने अपने जीवन का सारा गुस्सा उस पे ही निकाल दिया था मार मार के अधमरा कर दिया था रंगा को, फिर भी उसके होंठ शरारती अंदाज़ मे मुस्कुरा रहे थे ना जाने क्या विश्वास था उसे.

और रंगा कि मुश्कुराहट ही वीर प्रताप कि चिढ़ बन गई थी.


गांव विष रूप मे

ठाकुर ज़ालिम सिंह अपने तीनो सेवक कालू बिल्लू रामु के साथ नगर भर्मण पे निकला था

वो अपनी जमीन जायदाद का जायजा ले रहा था.

पीछे बिल्लू फुसफुसाते हुए "यार ये ठाकुर कब से हमें घुमाये जा रहा है, नई जवान बीवी आई है उसे जम के चोदना चाहिए उल्टा बुढ़ऊ हम तीनो को अपने पीछे घुमा रहा है ना खुद चोद रहा ना हम भूरी को चोद पा रहे.

तीनो हलकी हसीं हस देते है.

ठाकुर :- क्यों बे हरामखोरो बड़ी हसीं आ रही है हरामियोंकोई काम होता नहीं तुमसे यहाँ तुम्हे हसवा लो.

आज से रात को खेतो कि चौकीदारी करना और कालू तू हवेली मे रहना.

रामु :- मरवा दिया ना साले

बात भले आई गई हो गई परन्तु ठाकुर ने थोड़ी सी फुसफुसाहट सुनी थी " वैसे लड़के सही ही कह रहे है मेरी नई बीवी है  मुझे अभी वंश  बढ़ाने पे ध्यान देना चाहिए.

ऐसा सोच वो घर कि और चल पड़ता है साँझ हो चली थी.

हवेली मे कामवती बोर हो गई थी, भूरी से थोड़ी बात चीत हुई अब भला एक जवान कुंवारी कन्या भूरी से क्या बात करती.

तभी ठाकुर हवेली पे प्रवेश करते है...

ठाकुर :- हाँ तो ठकुराइन कैसा रहा आज का दिन?

कामवती :- क्या कैसा दिन मै तो अकेली उदास हो गई

कामवती कि मासूमियत देख ठाकुर को हसीं आ जाती है.

आओ हमारे पूर्वजों कि तस्वीरें दिखाता हूँ. कामवती ठाकुर के पीछे चल देती है,

ठाकुर किसी तस्वीर को ओर इशारा करता है "ये देखिये ये मेरे परदादा है ठाकुर जलन सिंह, कहते है इन्होने ही विष रूप से साँपो का खात्मा किया और यहाँ इंसान रहने लगे "

कामवती कि नजर जैसे ही तस्वीर पे पड़ती है उसके मस्तिष्क मे कुछ दृश्य चलने लगते है वो तस्वीर वाला आदमी उसे जाना पहचाना लग रहा था.

कोई स्त्री बिल्कुल नंगन अवस्था मे जोर जोर से चिल्ला रही थी, ठाकुर जलन सिंह हस रहा था हा... हाहाहा.... बहुत शौक है ना चुदाई का तुझे?

कामवती.... ओ कामवती.. कहाँ खो गई, ठाकुर उसका कन्धा पकड़ के हिलाता है.

सारे दृश्य एकाएक गायब हो जाते है.

ठाकुर अपने खानदान कि तस्वीर दिखाता चला जाता है परन्तु कामवती के दिमाग़ मे वही ज़ालिम सिंह कि भयानक हसीं ही दौड़ रही थी.

ऐसा विचार क्यों आया मुझे?

ठाकुर कमरे से बाहर निकलते हुये, अभी तो खाना खिलाओ भूख लगी है ठकुराइन

कामवती अपने विचारों से बाहर आ जाती है.

रात घिर आई थी, आज ठाकुर ने आसलम के द्वारा दी गई दवाई खा ली थी क्युकी वो कामवती को अच्छे से चोदना चाहता था.

भूरी अपने कमरे मे तड़प रही थी उसके पास और कोई चारा भी नहीं था क्युकी बिल्लू रामु को ठाकुर ने खेतो कि रखवाली के लिए छोड़ दिया था.आज उसे ऊँगली से ही काम चलाना पड़ेगा.

बेचारी भूरी....

कामवती दूध का गिलास लिए कमरे मे अति है.

ठाकुर :-कहाँ रह गई थी कामवती ठकुराइन.

यहाँ पास आओ बैठो, कामवती लाजती शर्माती बिस्तर पे बैठ जातीहै

ठाकुर थोड़ा करीब खिसक आता है उसका लंड तो शाम से ही तनतना रहा था.

ठाकुर :- कामवती हमें जल्दी से पुत्र रत्न दे दो,

कामवती सुन के शर्मा जाती है और अपना चेहरा दूसरी और घुमा लेती है.

ठाकुर उसका चेहरा अपनी ओर घूमाता है "कल रात कैसा लगा था कामवती "

कामवती :- कल कब ठाकुर साहेब?

कल रात

कामवती :- अच्छा था

"सिर्फ अच्छा?"

कामवती क्या जानती थी कामकला के बारे मे उसके लिए तो ठाकुर के द्वारा दी गई छुवन ही सम्भोग था.

"बहुत मजा हुआ था ठाकुर साहेब "

इतना सुन ना था कि ठाकुर उसकी चुनरी निकाल देता है उसके स्तन अर्ध नग्न हो जाते है गोरे दूधिया सुडोल स्तन

"तुम कितनी सुन्दर हो कामवती " ठाकुर स्तनो को ही निहारे जा रहा था.

उसका लंड दवाई के असर से फटने पे आतुर था वो तुरंत कामवती को लेता के उसका लहंगा ऊपर कर देता है ओर अपना पजामा सरका के चढ़ पड़ता है कामवती पे.

ना जाने लंड कहाँ गया था, अंदर गया भी था कि नहीं 5-6 धक्को मे तो ठाकुर ऐसे हांफने लगा जैसे उसके प्राण ही निकल जायेंगे.

हुआ भी यही... आअह्ह्ह..... उम्म्म्म..... कामवती मे गया मुझे पुत्र ही चाहिए.

ठाकुर का पतला सा वीर्य बहता हुआ बिस्तर मे कही गायब हो गया था.

ठाकुर के भारी वजन से कामवती कि सांसे चल रही थी जिस वजह से उसके स्तन उठ गिर रहे थे.

कामवती को गहरी सांस लेते देख ठाकुर गर्व से बोलता है " ऐसे सम्भोग कि आदत डाल लो ठकुराइन, तुम्हारा पाला असली मर्द से पड़ा है "

अपनी लुल्ली पे घमंड करता ठाकुर सो जाता है,

कामवती भी लहंगा नीचे किये करवट ले आंखे बंद कर लेती है उसके मन मे कोई विचार नहीं थे.

परन्तु विचार किसी ओर के मन मे जरूर थे जो ये सब खिड़की से छुप के देख रहा था.

"साला ये ठाकुर अपनी लुल्ली पे घमंड कर रहा है, हरामी ऐसी खबसूरत कामुक स्त्री का अपमान है ये तो "

खेर अभी अपनी तलाश मे निकलता हूँ, ठाकुर कि ईट से ईट बजा देनी है.

ऐसा सोच मंगूस पूरी हवेली मे घूमता है आज ही मौका था उसके पास हवेली खाली थी.


दूर कही किसी अँधेरी गुफा से किसी के फुसफुसाने कि आवाज़ आ रही थी, जैसे कोई भयानक सांप फूंकार रहा हो.

नहीं कामरूपा नहीं... नागेंद्र को जल्दी ही ढूंढो वो वही कही हवेली मे है,

उसकी नागमणि मुझे किसी भी कीमत पे चाहिए क्युकी वो इस पृथ्वी पे आखरी बचा इच्छाधारी नाग है.

उस नागमणि कि सहायता से मुझे वापस सर्प राज स्थापित करना है.


तुमने मुझे बचा तो लिया था परन्तु मेरी शक्ति चली गई मै मरे के सामान ही हूँ.

कामरूपा :- मै प्रयास कर रही हो नाग सम्राट सर्पटा


सर्पटा :- अब प्रयास नहीं कामरूपा प्रयास नहीं परिणाम चाहिए.

हरामी वीरा कि बहन घुड़वती कि गंध महसूस कि है मैंने.

इस बार उसके भाई के सामने ही उसकी गांड मे लंड डाल के अताड़िया बाहर निकल लूंगा मै. उसके बाद वीरा भी खतम सिर्फ और सिर्फ नाग प्रजाति बचेगी इस पपृथ्वी पे. हाहाहाहाहा......

एक भयानक हसीं गूंज उठती है... एक बार को तो कामरूपा भी काँप जाती है ऐसी जहरीली हसीं से.

कामरूपा वहां से चल देती है....

सुबह कि लाल रौशनी वातावरण मे फ़ैल गई थी एक स्त्री नुमा साया हवेली मे प्रवेश कर गायब हो गया था.

नागेंद्र अपनी नागमणि बचा पायेगा?

*************

रंगा कि रिहाई


आज सुबह सुबह ही दरोगा वीरप्रताप के थाने मे ख़ुशी का माहौल था, होता भी क्यों ना आज सुबह ही हेड ऑफिस से चिठ्ठी आई थी, दरोगा कि वीरता को देखते हुए उसकी तरक्की कर दी गई थी वापस शहर बुलवा लिया गया था.

रंगा बिल्ला का आतंक खत्म कर दिया था वीरप्रताप ने.

दरोगा :- आअह्ह्ह.... अब अपनी बीवी कलावती के साथ इत्मीनान से रहूँगा, उसे अपनी बीवी का गोरा मखमली बदन याद आने लगता है, क्या उभार लिए गांड और स्तन है, बिल्कुल सपाट पेट, गहरी नाभी, कोई देखे तो यकीन ही ना कर पाए कि 40 साल कि शादी सुदा महिला है, एक जवान लड़की कि माँ है, चुत अभी भी चिपकी हुई, उस पर नशीली आंखे लगता है जैसे अभी अभी चुद के आई हो.

बड़ी सिद्दत से आज दरोगा अपनी बीवी कि काया को याद कर रहा था. उसका लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था.

मै कभी उसपे ध्यान ही नहीं दे पाया काम और जिम्मेदारी के बोझ मे, जब से मेरी बेटी हुई है तभी से मैंने बस एक्का दुक्का बार ही सम्भोग किया है कलावती से, मै भी कैसा नादान हूँ इतनी खूबसूरत औरत का अपमान किया मैंने.

लेकिन अब नहीं अब इन जिम्मेदारी से मुक्त हो के खूब प्यार करूंगा, खूब रगडूंगा उसे.

दरोगा आज बहुत ख़ुश था उसके मन मे हसीन जीवन जीने के ख्याब उत्पन्न होने लगे थे.

उसका लंड आज बार बार खड़ा हो जा रहा था, इतने सालो से वो बेवजह ही फर्ज़ के नीचे दबा रहा परन्तु आज उसके फर्ज़ का इनाम उसे मिल चूका था इसलिए आज उसका ध्यान सम्भोग कि तरफ झुक गया था. वो जल्दी से शहर जा के कलावती को भोग लेना चाहता था. वो अपनी बीवी को तार भिजवा देता है कि कुछ दिनों मे घर आ जायेगा.

दरोगा :- शराब मँगाओ आज जश्न होगा आखिर रंगा को आज मौत देनी है.

हाहाहाबा.... रंगा कि तरफ देख वीरप्रताप हस देता है.


वही शहर मे दरोगा के घर...शाम हो चली थी

मालकिन... मालकिन... मालकिन कहाँ है आप....

आवाज़ के साथ ही वो शख्स कमरे का दरवाजा खोल देता है, अंदर कामवती नहा के आई थी साड़ी बदल रही थी..

वो चौक के दरवाज़े कि तरफ देखती है अभी ब्लाउज के पुरे बटन लगे नहीं थे, पल्लू नीचे गिरा हुआ था, सुन्दर गोरी काया काली साड़ी से झाँक रही थी.

कलावती :- ये क्या बदतमीज़ी है सुलेमान, मैंने कितनी बार कहाँ है कि दरवाजा बजा के आया करो.

बोल तो रही थी परन्तु उसने ना अपना पल्लू उठाने कि जहामत कि ना ही ब्लाउज के बटन बंद करने कि. उसने बड़ी अदा के साथ अपने हाथ उठा के सर पे रख दिए. आधे से ज्यादा गोरे स्तन ब्लाउज के बाहर टपक पडे.

ये नजारा देख सुलेमान को घिघी बंध गई,

सुलेमान :- मालकिन दरवाजा बजा के ही आऊंगा तो ऐसी अप्सरा कैसे देखने को मिलेगी. जितनी बार देखता हु कुछ नया ही दीखता है मालकिन

ऐसा बोल के मुस्कुरा देता है.

कलावती वापस कांच के तरफ मुड़ के साड़ी का पल्लू बनाने लगती है "वैसे आये क्यों थे तुम "

सुलेमान :- वो मालिकन साहेब का तार आया है वो कुछ दिनों मे आ जायेंगे उनकी तरक्की हो गई है ऐसा बोल सुलेमान उदास हो जाता है.

कलावती :-अरे वाह ये तो खुशी कि बात है, आखिर मेरे पतिदेव वापस लौट रहे है.

सुलेमान :- मुँह लटकाये ज़ी मालकिन

कलावती :- तो तू क्यों मुँह लटकाये हुए है?

सुलेमान :- साहेब आ जायेंगे तो मुझे तो अपनी सेवा से हटा देंगी ना आप.

अब तो साहेब ही सेवा करेंगे.

कलावती :- हट पागल.... कैसी बात करता है दरोगा ज़ी के जाने के बाद तूने ही तो मेरी सेवा कि है इतने बरसो से.

वो तोबेटी दे के चले गये अपने फर्ज़ मे व्यस्त रहे, बेटी भी बाहर पढ़ने को चली गई.

एक तेरा ही तो सहारा है सुलेमान

ये कलावती हमेशा इसकी  ही रहेगी...ऐसा बोल कलावती पल्लू गिराए ब्लाउज से झाँकते स्तन को लिए ही आगे बढ़ जाती है और पाजामे के ऊपर से ही सुलेमान का लंड दबा देती है.

"अपनी सुलेमानी तलवार को संभाल के रख आज युद्ध करना है तुझे ज़ी भर के "

ऐसा सुन सुलेमान खिल खिला जाता है.

"चल अब खाना बना ले, मुझे तैयार होना है "


सूरज पूरी तरह डूब चूका था, थाने मे दरोगा और 3 सिपाही जम के शराब पी चूके थे.

दरोगा कुछ कुछ होश मे था उसे तरक्की का नशा चढ़ा था, बीवी से सम्भोग कि चाहत का नशा चढ़ा था उसपर दारू क्या असर करती, हालांकि शराब के शुरूर मे वो और भी गरम हो गया था,लंड पेंट से आज़ाद होना चाहता था टाइट पेंट मे लंड दर्द करने लगा था.

बाक़ी तीनो सिपाही पी के लुढ़के पडे थे.

"कलावती तो दूर है तब तक मुठ ही मार लेता हूँ " दरोगा मुठ मारने के इरादे से उठता है कि...

तभी अचानक.... गिरती पड़ती एक महिला थाने मे प्रवेश करती है


महिला :- मुझे बचा लीजिये दरोगा साहेब मुझे बचा लीजिये

वो लोग मुझे मार देंगे, मेरा बलात्कार कर देंगे, मुझे बचाइये

बोल के दरवाजे पे ही गिर पड़ती है वो लगातार रोये जा रही थी.

दरोगा भागता हुआ महिला के पास पहुँचता है तो पाता है कि उसके कपडे जगह जगह से फटे हुए थे कही कही खरोच आई हुई थी.

महिला :- दरोगा साहेब मै पास के ही गांव कामगंज जा रही थी कि रास्ते मे मुझे अकेला पा के 5 बदमाश मुझे उठा ले गये हुए मेरा बलात्कार करने कि कोशिश कि....

बूअअअअअअअ..... ऐसा बोल महिला दरोगा से लिपट जाती है.

दरोगा को एक कोमल सा अहसास होता है, महिला का गरम बदन उसे कुछ अजीब सा अहसास करा रहा था.

वैसे भी आज सुबह से वह कामअग्नि मे जल रहा था, ऊपर से शराब का शुरूर उसे बहका रहा था...

लेकिन नहीं नहीं.... मेरा फर्ज़...

दरोगा खुद को संभालता है. वो महिला को उठता है "चलो मेरे साथ बताओ कहाँ है वो लोग अभी अकल ठिकाने लगाता हूँ सबकी "

महिला जो कि डरी हुई थी वो फिर से दरोगा के सीने से लग जाती है इस बार जबरदस्त तरीके से चिपकी थी उसके बड़े स्तन दरोगा कि कठोर छाती से दब के ऊपर गले कि तरफ से निकलने को आतुर थे, उसके एक स्तन कि तरफ से कपड़ा फटा था, दरोगा उसे सांत्वना देने के लिए जैसे ही गर्दन नीचे करता है उसकी नजर महिला के स्तन पे पड़ती है पुरे बदन मे झुरझुरहत दौड़ जाती है.... बिल्कुल दूध कि तरह सफेद स्तन, बड़े बड़े उसके सीने से चिपके थे डर के मारे पसीने से भीगे जिस्म से एक मादक गंध दरोगा को हिला रही थी.

उसका फर्ज़ कामवासना मे जलने को तैयार था.



कौन है ये लड़की?

क्या करेगा दरोगा?

क्या ये रात रंगा कि आखिरी रात है?

बने रहिये कथा जारी है...

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