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जंगल की रात

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जंगल की रात

ये कहानी मेरी है, मैं नीतू सिंह,
मेरी उम्र अभी मात्र 26 साल ही है. और जिस्म से मादकता टपकती है.

पिछले साल ही मेरी शादी हुई थी, शादी के बाद मेरा ट्रांसफर दूसरी जगह हो गया था।, पेशे से मैं डॉक्टर हूँ, नौकरी मेडिकल ऑफिसर की है.

अच्छे खासे संपन्न परिवार से ताल्लुख रखती हूँ, सुन्दर, सुडोल जिस्म की मालकिन हूँ, ऐसा मेरे पति कहते है,.

उन्हें तो मेरे बड़े स्तन और बाहर को निकली कसमसती गांड हि पसंद है.

कॉलेज के ज़माने से ही मेरे पति सूरज ने मुझे जम के पेला, खुब रगड़ के चोदा नतीजा मेरा जिस्म पूरी तरह से खील उठा.

मैं प्रेग्नेंट भी ही गई थी लेकिन हमें बच्चा नहीं चाहिए था अभी.

तो ट्रांसफर के साथ मैं और सूरज असम के एक रूलर इलाके मे आ गए, साथ  ही मेरी प्यारी सहेली रचना का भी ट्रांसफर उसी जगह हो गया था जो हमारे लिए बहुत खुशी की बात थी। सूरज ने नई जगह पर एक नर्सरी खोल ली। जो उसकी महनत से अच्छी चल पड़ी.च

रचना यही असम की रहने वाली थी, उसके लिए तो एक तरह से घर लौटने जैसा थी था, सोने पे सुहागा ये की उसकी शादी वहीं पास के एक फॉरेस्ट ऑफिसर अरुण से हो गई।

अरुण बहुत ही हंसमुख और रंगीन मिजाज आदमी थे। उसकी पोस्टिंग हमारे अस्पताल से 80 किलोमीटर दूर एक जंगल में थी। शुरू शुरू में तो हर दूसरे दिन भाग आता था। कुछ दिनों बाद हफ्ते में दो दिन के लिए आने लगा। हम चारों आपस में काफ़ी खुले हुए थे।

सूरज और अरुण की खूब दोस्ती हो गई थी, साथ मे दारू भी पीते थे, हम लोग भी ओपन माइंडेड थे, 

अक्सर आपस में रंगीले चुटकुले और द्विअर्थी संवाद करते रहते थे। जिसे सिर्फ मज़ाक मे ही लिया जाता था.

उसकी नज़र शुरू से ही मुझ पर थी। मगर ना तो मैंने उसे कभी लिफ्ट दिया ना ही उसे ज्यादा आगे बढ़ने का मौका मिला। होली के समय जरूर मौका देख कर रंग लगाने के बहाने मुझसे लिपट गया था, और मेरे कुर्ते में हाथ डाल कर मेरी छतियों को कस कर मसल दिया था। उसकी इस हरकत पर किसी की नजर नहीं पड़ी थी इसलिए मैंने भी चुप रहना बेहतर समझा।

 वरना बेवज़ह हम सहेलियों में दरार पैदा हो जाती, उस हादसे के बाद से मैं उस से कतराने लगी थी। मगर वो मेरे पास आने के लिए मौका खोजता रहता था। रचना को शादी के साल भर बाद ही मायके जाना पड़ गया क्योंकि वो प्रेग्नेंट थी।

अब अरुण कम ही आता था. आता भी तो उसी दिन वापस लौट जाता। अचानक एक दिन दोपहर को पहुंच गया। साथ में एक और उसका साथी था जिसका नाम उसने मुकुल बताया। उनका कोई आदमी पेड़ से गिर गया था। रीढ़ की हड्डी में चोट थी. रास्ता ख़राब था इसलिए उसे लेकर नहीं आये।


मुझे साथ ले जाने के लिए ये दोनों आये थे। मैंने झटपट अस्पताल में सूचित किया और सूरज को फ़ोन कर बता दिया , ज्यादा सोचने का वक़्त नहीं था मेडिकल के जरुरी सामान बेग मे डाल लिए और तुरंत निकल लिए फिर भी निकलते निकलते दो बज गये थे.

80 किलोमीटर का सफर कवर करते-करते हमें ढाई घंटे लग गए। हम तीनो ही सूमो में आगे की सीट पर बैठे थे.

मैं दोनों के बीच में मैं फंसी हुई थी। रस्ता बहुत उबर खाबर था । हिचकोले लग रहे थे. हम एक दूसरे से भिड़ रहे थे. मौका देख कर अरुण बीच बीच में मेरे एक स्तन को कोहनी से दबा देता।

झटके लगने से मेरे स्तन ब्लाउज के ऊपर से उछल उछल कर बाहर आने को मरे जा रहे थे,Gifs-for-Tumblr-1833 मेरे 38 साइज के स्तन अक्सर ब्लाउज मे समाते ही नहीं थे.

 अरुण मौके का फायदा उठा कभी जंघों पर हाथ रख देता था, तो कभी कोहनी बिल्कुल मेरे स्तनो मे सटा देता.मुझे अब अहसास हो गया था कि मैंने सामने बैठ कर गलती की थी।

हम शाम तक वहां पहुंच गए। मेरीज को चेकअप करने में शाम को छह बज गए। यहां शाम कुछ जल्दी हो जाती थी,  नवंबर का महीना था मौसम बहुत ठंडा था, ठंडी ठंडी हवा जिस्म को लुभा रही थी,

अब धीरे-धीरे बादल भी घिरने लगे थे, मुझे थोड़ा डर सा लग रहा था, मैं जल्दी अपना काम निपटा कर रात तक घर लौट जाना चाहती थी।

चलो अरुण लगता है बारिश होने वाली है, जल्दी मुझे घर छोड़ दो.


“इतनी जल्दी क्या है? आज रात यहीं रुक जाओ मेरे झोपड़े में।” अरुण ने कहा मगर मेरे तेवर देख चुप हो गया.

“चलो मुझे घर छोड़ आओ।”मैंने थोड़ी कड़क आवाज़ मे कहा.


“चल रे मुकुल, मैडम को घर छोड़ आये।” अरुण ने मारे मुए मन से कहा.


हम वापस सूमो में वैसे ही बैठ गए और रिटर्न जर्नी शुरू हो गई ठंडी हवा से जिस्म के रोये खड़े हो रहे थे, वातावरण मे एक अजीब सी मादकता थी, अंधेरा पूरी तरह घिर आया था.

हालांकि मैंने पीछे बैठने की कोशिश की थी, परन्तु अरुण ने रोक दिया।

“कहां पीछे बैठ रही हो. आगे साथ मे बैठो, बातें करते हुए रास्ता गुजर जाएगा।”

“लेकिन तुम अपनी हरकतों पर काबू रखो वरना मैं रचना से बोल दूंगी।” मेरा खीज के अरुण को चेतावनी दे दी.

“क्या उस हिटलर को मत बताना नहीं तो वो मेरी अच्छी खासी रैगिंग ले लेगी।”


 उसकी बात सुन मुझे हसीं आ गई, जैसे खूब डरता हो अपनी पत्नी से, बिल्ली जैसे मिम्याके बोला,

माहौल थोड़ा सहज हो गया था, मैं उसकी चिकनी चुपड़ी बातों से फंस गई।

अभी गाड़ी थोड़ा आगे चली ही थी की अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो गई।car-driving-in-rain-55b35annc27ob3nl

जंगल के अँधेरे रास्तो में ऐसी बरसात में गाड़ी चलाना भी एक मुश्किल काम था। अचानक गाड़ी जंगल के बीच में झटके खाकर रुक गई।dedrick-koh-ezgif-com-gif-maker

 अरुण टॉर्च लेकर नीचे उतरा। गाड़ी चेक किया मगर कोई ख़राबी पकड़ में नहीं आई। कुछ देर बाद वापस आ गया। वो पूरी तरह भीग चुका था।

“कुछ नहीं हो सकता" अरुण ने हताश मन से कहा

"चलो नीचे उतर कर मेरे साथ धक्का लगाओ, हो सकता है कि चल जाये।”

“मगर….बरसात…”मैं बहार देख कर कुछ हिचकिचाई।

"नहीं तो जब तक बरसात ना रुके तब तक इंतज़ार करो"उसने कहा"

मैंने पहले ही कहाँ था यहाँ की बरसात का कोई भरोसा नहीं, कई कई दिन तक लगातार चलती रहती है ? इसलिए तुमहे रात को वहीं रुकने को कहा था।”

मैं अरुण की बात सुन घबरा गई,मन शांकओ से घिरने लगा, इस बरसाती रात मे यही फसा रहना बेवकूफी ही थी.

मरती क्या ना करती मैं नीचे उतर गई. अब बरसात की परवाह करने का समय नहीं था, मैं और मुकुल दोनों नीचे उतर गए, और अरुण ने ड्राइविंग सीट संभाल ली, हम दोनों काफी देर तक धक्के मारते रहे मगर गाड़ी नहीं चली। रात के आठ बज रहे थे.

मैं पूरी तरह गीली हो गई थी. साड़ी और ब्लाउज पूरी तरह जिस्म से चिपक गए थे, थक हार कर मैं पीछे की सीट पर बैठ गई। अरुण ने अंदर की लाइट ऑन कर दी .

 मैंने रूआंसी नज़रों से अरुण की तरफ देखा। अरुण बैक मिरर से मेरे जिस्म को ही घूर रहा था।

अरुण की नजरों का पीछा करते ही मैंने पाया की सफेद ब्लाउज और ब्रा बरसात में भीग कर पारदर्शी हो गई थी। निपल साफ साफ नजर आ रहे थे. मैंने जल्दी से अपनी साड़ी को भीगे हुए स्तन पर डाल दिया, निप्पल ठण्ड और घबराहट से कड़क हो चुके थे किसी कील की तरह साड़ी और ब्लाउज मे भी नहीं छुप पा रहे थे,

मैं सकपका गई थी, लेकिन शायद अरुण मेरी मनोस्थिति भाम्प गया था, इसलिए उसने जीप की लाइट बंद कर दी।

 रात अँधेरे में दो गैर मर्दों का साथ मेरे दिल को डुबाने के लिए काफ़ी था, मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, कुछ देर बाद बरसात बंद हो गई मगर ठंडी हवा चलने लगी।

बहार कभी कभी जानवरो की आवाज सुनायी दे रही थी, मैं ठण्ड और डर से कांप रही थी.

तभी अरुण और मुकुल गाड़ी से निकल गये. उन्होंने अपने कपड़े उतार लिए और निचोड़ कर सूखने रख दिए। उन्हें कपडे उतरता देख मैं शर्म से लाल हुए जा रही थी, लेकिन मुझमे हिम्मत नहीं थी की अपने गीले कपड़ो से पीछा छुड़ा लू, "मर्दो के लिए कहीं भी कपडे खोल देना कितना आसान होता है ना "

मैं अपनी ही सोच मे मग्न थी की अरुण मेरे पास आया “देखो नीतू घुप अँधेरा है।” तुम अपने गीले वस्त्र उतार दो, वरना ठंड लग जाएगी।'' अरुण ने बड़ी ही सहजता से कहाँ.

!कुछ है पहन ने को?” मैने पूछा “मैं शर्म से मरी जा रही थी, 

“नहीं! हमारे पास भी कोई ठीक ठाक कपडे नहीं है, लुंगी वगैरह ही पड़ी है उसे ही लपेट के काम चलाएंगे, पहले से थोड़ा मालूम था कि हमें रात जंगल में गुजारनी पड़ेगी” अरुण ने कहा


"वैसे देखना कहीं भालू ना आ जाये, सुना है बहुत ठरकी जानवर होते हैं।सुंदर सेक्सी महिलाओं को देख कर उनपर टूट पड़ते हैं, हाहाहाहाहा...

“मेरी तो यहाँ जान जा रही है और तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है। कोई कम्बल होगा?”मैंने पूछा।

 “पिकनिक पे आये है क्या?।” अरुण मजाक कर रहा था.

 “सर, एक पुरानी फटी हुई चादर है। अगर हमसे काम चल जाए..” मुकुल ने पीछे ज़े आवाज़ दी .

 “दिखा नीतू को।” अरुण ने कहा.


मुकुल ने पीछे से एक फटी पुरानी चादर निकाली और मुझे दी। गाड़ी का दरवाजा बंद करते ही लाइट बंद हो गई।

दो मर्दों के सामने वस्त्र उतारने के ख्याल से ही मैं शर्म के मारे मरी जा रही थी, ऊपर से ये ठंडी हवा मेरे जिस्म के रोये खड़े कर देने के लिए काफ़ी थे, ठंड के मारे दांत बज रहे थे। ऐसा लग रहा था कि मैं बर्फ की सिल्लीयो से घिरी हुई हूं।

दोनों जीप के बहत ही खड़े हो गए, और मैं अंदर बंद जीप मे भीगे कपडे निकालने का उपक्रम करने लगी.

ये सब कुछ बहुत अजीब था, लेकिन अब कोई दूसरा तरीका भी नहीं था.

मैने झिझकते हुए अपनी साड़ी उतार दी।, मेरे जसम पर भीगा हुआ ब्लाउज और पेटीकोट ही बचे थे, मैंने नजरें इधर उधर आगे की और दौडाई घुप अंधेरा था, हिम्मत कर मैंने एक-एक कर ब्लाउज के सारे बटन खोल दिये, सकूँचाते हुए गीले ब्लाउज को जिस्म से उतार दिया। अँधेरे का फायदा उठाते हुए मैं यर सब कुछ जल्दी से जल्दी कर लेना चाहती थी, 

 मैंने अपना पेटीकोट भी तुरंत उतार दिया।गीले कपडे जिस्म से अलग होने से बहुत राहत मिली, सिर्फ ब्रा और पैंटी ही मेरे जिस्म की रक्षा कर रहे थे,

मैंने तुरंत ही ब्रा को भी मैंने बदन से अलग कर दिया।Gifs-for-Tumblr-1447 और उस चद्दर से तुरंत अपने जिस्म को लपेट लिया।

 गाड़ी का दरवाजा खोल कर मैंने उन्हें निचोड़ कर सुखने का सोचा मगर दरवाजा खुलते ही बत्ती जल गई। मेरे बदन पर केवल एक चिथड़े हुई चादर बेतरतीब तरीके से लिपटी हुई थी। अधा बदन साफ़ नज़र आ रहा था। अँधेरे मे मैं खुद को अच्छे से नहीं ढँक पाई थी, सुडोल स्तन पिली रौशनी मे जगमगा रहे थे.images-2


मैंने देखा अरुण भोचक्का सा एकटक मेरी छती को घूर रहा है। मैंने झट चादर को ठीक किया। चादर कई जगह से फटी हुई थी इसलिए एक स्तन ढकती तो दूसरा बाहर निकल आता, मुझे जल्द ही अहसास हो गया की ये चद्दर कुछ ज्यादा ही छोटी है या फिर सिर्फ चद्दर का टुकड़ा ही गई,

दोनों मेरे निवस्त्र योवन को निहार रहे थे। images-1 मैंने दरवाजा बंद कर दिया. बत्ती बंद हो गई. एक झुरझुरी सी पुरे जिस्म मे दौड़ गई, जिसका केंद्र मेरे गीले पेट पर स्थित नाभि थी.

“अरुण प्लीज़ मेरे कपड़ो को सुखने केलिए डाल दो ।” मैने मरी हुई आवाज़ मे कहाँ, मुझमे उस फटी पुरानी चद्दर को पहन आगे जाने की हिम्मत नहीं थी.

अरुण ने मेरे हाथों से कपड़े ले लिए। मेरे बदन पर अब केवल गीली पैंटी थी, जिसे मैं अलग नहीं करना चाहती थी। क्यूंकि इस वक़्त जैसी थी मेरी इज़्ज़त का सहारा मेरी पैंटी ही थी,

ठण्ड अब भी लग रही थी मगर क्या किया जा सकता था। कुछ देर बाद दोनों भी ठंड से बचने के लिए गाड़ी में आ गए। दोनो के बदन पर भी बस एक एक पैंटी थी। उनके नंगे जिस्मो पर ना चाहते हुए भी मेरी नजर जा टिकी.

“यार, मुकुल ठंड से तो रात भर में बर्फ़ की तरह जम जायेंगे.। कैबिनेट में रम की एक बोतल रखी है उसको निकालो।” अरुण ने कहा.

मुकुल ने कैबिनेट से एक बोतल निकाली। लाइट जला कर डैश बोर्ड के अंदर कुछ ढूंढने लगा। “सर, ग्लास नहीं है।” उसने कहा.

“अबे ऐसी भयानक ठण्ड मे गिलास का क्या काम मुँह से लगा और सीधा ही घूंट भर।” अरुण ने बोतल लेकर मुंह से लगाया और दो घूंट लेकर मुकुल की तरफ बढ़ाया।


मुकुल ने भी एक घूंट लिया। “नीतू तू भी दो घूंट लेले सारी सर्दी निकल जायेगी।” अरुण ने कहा.

 “नहीं.. ना... ना... मैं दारू नहीं पीती ” मैंने मना कर दिया। मगर कुछ ही देर में मुझे अपने फैसले पर गुस्सा आने लगा। वैसे भी दो आदमखोरों के बीच में मैं इस तरह का कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी कि मेरा अपने ऊपर से कंट्रोल हट जाए। मगर ठंड ने मेरी मति मार दी। मैं उन दोनों को पीते हुए देख रही थी। उन्हें फिर मुझसे पूछा.

इस बार मेरे ना में दम नहीं था. मैं हाँ और ना के बीच कहीं फंस गई थी.

अरुण ने बोतल मुझे पकड़ा दी। “अरे ले यार कोई पाप नहीं लगेगा। एक डॉक्टर के मुंह से इस तरह की दकियानूसी बातें सही नहीं लगतीं।” अरुण ने कहा.

 मैने काँपते हाथों से बोतल ले लिया। और मुंह से लगाकर एक घूंट लिया। ऐसा लगा मानों तेजाब मेरे मुंह और गले को जलाता हुआ पेट मे जा रहा है।

वेक.... वेक....खो... खो....ई, मुझे तुरंत ही उबकाई आ गई, मैंने बड़ी मुश्किल से मुंह पर हाथ रख कर अपने आप को रोका।

“लो एक और घूंट लो।” अरुण ने कहा.

“नहीं, कितनी गंदी चीज़ है तुम लोग पीते कैसे हो।” मैने कहा.

मगर कुछ देर बाद मैंने हाथ बढ़ा कर बोतल ले ली और एक और घूंट लिया। इस बार उतनी बुरी नहीं लगी.

 “बस और नहीं।” मैंने बोतल वापस कर दिया। मेरी इन हरकतों के करण चादर मेरे एक स्तन से हट चूका था, मुझे इसका कोई अहसास नहीं था, मेरा सर घूम रहा था. अपने आप को बहुत हल्का फुल्का महसूस कर रही थी। अपने ऊपर से नियंत्रण ख़त्म होने लगा। जिस्म भी गरम हो चला था, अब ठण्ड नहीं लग रही थी.

अरुण सामने का दरवाजा खोल कर बाहर निकला और पीछे की सीट पर आ गया। मैं अनजाने भय से सिमटते हुए सरक गई मगर वो मेरे पास ही सरक गया और लगभग मेरे जिस्म से आ चिपका.

“इसससस....देखो अरुण ये सब सही नहीं है।” मैं मना जरूर कर रही थी लेकिन अरुण के जिस्म मे एक अजीब सी गर्माहट थी जो मुझे साफ महसूस हो रही थी.

“मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे काँपते हुए बदन को गर्मी देने की कोशिश कर रहा हूँ।”

“नहीं मुझे नहीं चाहिए।”मैंने अरुण को धक्का देती रह गई मगर उसने मुझे अपनी बाहों में समा लिया।

उसके गरम होंठ मेरे होंठो से  चिपक गए।kool-imagesgallery-kissgif5 धीरे-धीरे मैं कामजोर पड़ती जा रही थी। मैंने उसे धकेल के दूर करने की कोशिश की मगर अरुण मेरे बदन से और जोर से चिपक जा रहा था.

तभी उसने एक झटके में मेरे बदन से चादर को अलग कर दिया।

“मुकुल ये चादर संभाल” अरुण ने चादर आगे की सीट पर फेक दी जिसे मुकुल ने संभाल लिया। मेरे बदन पर अब सिर्फ एक पैंटी के अलावा कुछ भी नहीं था। मैंने अपने हाथो को क्रॉस कर अपने बड़े सुडोल स्तनों को ढकने की नाकामयाब कौशिश की.

कोशिश सफल ना होने पर मैंने मुकुल को ढकेलते हुए कहा”छोड़ो मुझे वरना मैं शोर मचाउंगी”

 “मचाओ शोर।” जितना चाहे गला फाड़ के चिल्लाओ यहां दूर दूर तक सिर्फ पेड़ और जानवरों के अलावा तुम्हारी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं है।”

तभी आगे बैठे मुकुल ने जीप की लाइट जला दी और हमारी रासलीला देखने लगा, अरुण के हाथ मेरे बदन को टटोल रहे थे, इसससससस..... उफ्फ्फ... अरुण के गर्म हाथ मेरे जिस्म को राहत पंहुचा रहे थे, उसका नंगा जिस्म मेरे नंगे जिस्म से रगड़ खाने लगा था,

मैंने काफी बचने की कोशिश की, अपनी सहेली की दुहाई भी दी, मगर दोनों पूरे राक्षस बन चुके थे। मेरा विरोध भी धीरे-धीरे मंद पड़ता जा रहा था। अरुण ने मेरे दोनों स्तनों को अपनी हथेलीयों मे भींच लिया, उन्हें रगड़ने लगा,

उसकी रगड़ से जैसे कोई चिंगारी मेरे जिस्म मे कोंध रही थी, ये चिंगारी मेरे पेट से होती जांघो के बीच कहीं समा जा रही थी, अभी ये काफ़ी नहीं था की अरुण मे मेरे उभरे तीर के समान कड़क निपल्स अपने मुँह में ले कर चूसने लगा.

 अरुण ने एक हाथ नीचे लेजाते हुए अपनी पैंटी भी उतार दी और मेरे हाथ को पकड़ कर अपने तपते लिंग पर रख दिया।

मुझे अरुण का गर्म और मजबूत लंड पकड़ते ही तेज़ झटका सा लगा, पुरे जिस्म मे एक लावा सा बहने लगा,

मैने तुरंत ही हाथ हटाने की कोशिश की परन्तु अरुण ने मेरे हाथ को अपने लंड मजबूती से पकड़ रखा था। शराब अपना असर दिखाने लगी. मेरा बदन भी गरम होने लगा। कुछ देर बाद मैंने अपने को ढीला छोड़ दिया।

अरुण के हाथ मेरे सुडोल स्तनों को मसलने लगे। उसके होंठ मेरे होंठो से चिपके हुए थे और जीभ मेरे मुंह के अंदर घूम रही थी।

मुकुल जब से अरुण और मेरी हरकते देख रहा था, उसे अब सब्र नहीं रखा गया और दूसरी तरफ का दरवाजा खोल कर मेरे दूसरी तरफ आ गया। उसने पहली सीट के लीवर को खोल कर चौड़ा कर दिया।

पीछे की सीट खुल कर एक आरामदेह बिस्तर के रूप मे बदल गई, हालांकि जगह कम थी मगर इस काम के लिए काफी थी।

 दोनों एक साथ मेरे बदन पर टूट पड़े। मैं उनके बीच किसी मछली को तरह फसी कसमसा रही थी। दोनों ने मेरे एक-एक स्तन को थाम लिया,इस्स्स्स..... मुझे ये छुवन अच्छी लगने लगी थी, दोनों मेरे स्तनों को मसल रहे थे, चूस रहे थे, निप्पल को दांतो से काट रहे थे ,

उत्तेजना से मेरा भी बुरा हाल था, दूसरा हाथ बड़ा कर मैंने मुकुल का लंड भी पकड़ के मुट्ठी मे भींच लिया 20240511-213750

दोनों के लंड मे सहला रही थी, अपनी हथेली से घिस रही थी,  मेरी पैंटी पहले से ही गीली थी ऊपर से चुत से निकलते पानी ने और भी गिला कर दिया जैसे कोई रस टपक रहा हो, 

तभी दोनों ने मेरी पैंटी को मेरे बदन से नोच कर अलग कर दिया। दो जोड़ी उंगलियां मेरी चुत मे जा धसी.... उउउफ्फ्फ्फ़.... आअह्ह्ह.....आउच.... मेरे मुँह से वासना भरी आवाजें निकल रही थी।20160127194236uid

 अरुण ने मुझे गुड़िया की तरह उठा कर मेरी जाँघे फौलाद कर अपने ऊपर बैठा लिया, मेरा नंगा भीगा जिस्म अरुण के गर्म जिस्म से जा चिपका,।मेरे बड़े-बड़े सुडोल नुकिले स्तन उसके सीने से लग के पिसे जा रहे थे। अरुण लगातार मेरे होठों को चूम रहा था।

मुकुल के होंठ मेरी पीठ पर फ़िसल रहे। अपनी जीभ निकाल कर मेरी गर्दन से लेकर मेरे नितंबों तक ऐसा फिर रहा था मानो बदन पर कोई हल्के से पंख फेर रहा हो। मेरे पुरे जिस्म को किसी पागल कुत्ते की तरह चाट चाट के सूखा रहा था.

बदन में झुरझुरी सी दौर रही थी, मैं डोनो की हरकतों से पागल हुई जा रही थी..रही सही झिझक भी ख़तम हो गई थी

ना चाहते हुए भी मैं अपनी चुत को अरुण के लंड पर मसलने लगी। अरुण का लंड मेरी चुत के पानी से पूरी तरह भीग गया था, मैं किसी रंडी की तरह अरुण के लंड को अपनी चुत से घिस रही थी, gifcandy-black-and-white-89 676-1000 ऐसी स्थिति में मुझे कोई देख लेता तो पक्का सस्ती रंडी ही समझता, मेरी गरिमा, मेरी प्रतिष्ठा, मेरी शिक्षा सब इस वासना के सामने छोटी पड़ गई थी।


मेरी आँखों में मेरे प्यार, मेरा हमदम, मेरे पति के चेहरे पर दोनों के चेहरे नज़र आ रहे थे। शराब ने मुझे अपने वश में ले लिया था। सब कुछ घूम रहा था. महसूस हो रहा था कि जो हो रहा है वो अच्छा नहीं है लेकिन मैं किसी को मना करने की स्थिति में नहीं थी,  दोनों के हाथ मेरी छतियों को जोर-जोर से मसलने लगे। अरुण ने मेरे होठों को चूस चूस कर सुजा दिया था। फ़िर उन्हें छोड़ कर मेरे निपल्स पर टूट पड़े।


अपने दोनों हाथों से मेरे एक-एक स्तन को निचोड़ रहा था और निपल्स को मुंह में डाल कर चूस रहा था। ऐसा लग रहा था मानो बरसों के भूखे के सामने कोई दूध की बोतल आ गई हो। दांतों के निशान पूरे स्तन पर नजर आ रहे थे।tumblr-m7u0cn3p1b1rugs9ro1-500

 मुकुल इस वक्त मेरी गर्दन पर और मेरी गांड पर दाँत गड़ा रहा था। मैं मस्त हुई जा रही थी, दो तरफ़ा हमला मेरे जीवन का पहला अनुभव था, इतना मजा आता है मुझे अहसास नहीं था, फिर मुकुल ने भी अपना अंडरवियर उतार कर मेरे सर को पकड़ा और मेरे पास बैठ कर अपने लिंग पर झुकाने लगा। मैं  उसका इरादा समझ कर कुछ देर तक मुंह को इधर उधर घुमाती रही।

मगर उसके आगे मेरी ना चली. वो मेरे खुबसूरत होठों पर अपना काला लंड फेरने लगा। मुकुल के लंड के टोपे की मोटाई देख कर मैं सिहर उठी, उसके लंड से चिपचिपा पदार्थ निकल कर मेरे होठों पर लग रहा था। तभी अरुण ने मुझे जांघो से उतर कोहनी और घुटनों के बाल पर चौपाया बना दिया और मेरी चुत को छेड़ने लगा। चुत की फांकें अलग-अलग उंगलियां अंदर बाहर करने लगीं। मैं बस एक खिलौना बन कर रह गई थी, जैसा वो कर रहे थे उनका साथ दे रही थी, असीम सुख के सागर मे गोते लगा रही थी.

 मुकुल मेरे सर को अपने लंड पर दबा रहा था। मुझे मुंह नहीं खोलता देख कर मेरे निपल्स को बुरी तरह मसल दिया। मैं जैसे ही चीखने के लिए मुंह खोली उसका मोटा लंड जीभ को रास्ते से हटाते हुए गले तक जाकर फंस गया.

मेरा दम घुट रहा था. मैंने सर को बाहर खींचने के लिए जोर लगाया तो उसने अपने हाथ को कुछ ढीला कर दिया। लंड आधा ही बाहर निकला होगा उसने दोबारा मेरे सर को दबा दिया। खो.... खो....वेक .. वेक... मुकुल मेरे मुँह को चुत की तरह चोद रहा था।gifcandy-face-fucking-28

 उधर अरुण मेरी योनि में अपनी जीभ अंदर बाहर कर रहा था। मैं कामोंउत्तेजना से चीखना चाहती थी मगर गले में मुकुल का लंड पच पच कर अंदर बाहर हो रहा था, मुँह से थूक निकल कर जीप के फर्श पर गिर रहा था, वेक... वेक.... गु... गु.... आअह्ह्ह.... इसससस....

मैं दो तरफ़ा हमले और बर्दाश्त ना कर सकी और अरुण के मुँह मे ही मेरी चुत ने पानी छोड़ दिया, अरुण पूरी लगन से मेरी चुत को चाटे जा रहा था, काफी देर तक चूसने के बाद अरुण उठा। उसके मुँह में, नाक पर मेरा कामरस लगा हुआ था।

मैं उसकी हालात देख तड़प उठी, अब किसी भी कीमत पट मुझे लंड चाहिए था, मैंने अरुण की और देखा शायद वो इशारा समझ गया 

उसने अपने लंड को मेरी चुत की दोनों फांको कर बीच सटा दिया। फिर बहुत धीरे धीरे उसे अंदर धकेलने लगा।

किसी लोहे की रोड जैसे अपने मोटे ताजे लंड को पूरी तरह मेरी चुत मे घुसा दिया। मेरी चुत पहले से ही गीली थी और लंड लेने के लिए तैयार थू, शायद इसलिए मैं इतने मोटे लंड को आसानी से झेल गई.31037  

अरुण ने लंड पीछे खिंच वापस अंदर ठूस दिया, मेरा पूरा जिस्म सिहर उठा.

अब आलम ये था की दो मर्द मेरे छेदो को अपने लंड से भरे हुए थे, 

 दोनों के लिंग दोनों तरफ से अंदर बाहर हो रहे थे, आअह्ह्ह..... वेक... वेक्क.... पच.. पच.... की अवज़ो के साथ पूरी जीप ह रही थी,। मेरे स्तन पके आम की तरह झूल रहे थे,

 मैंने सर नीचे झुका कर ददेखा मेरे स्तनों पर जगह जगह लाल निशान पड़ गए थे, । कुछ देर बाद मुझे लगने लगा कि अब मुकुल डिस्चार्ज होने वाला है। ये देख कर मैंने लंड को अपने मुँह से निकल ने का सोचा। मगर मुकुल ने शायद मेरे मन की बात पढ़ ली। उसने मेरे सर को पूरी ताकत से अपने लंड पर दबा दिया। मूसल जैसा लंड मेरे गले के अंदर तक घुस गया।

 मुकुल का लंड तेज़ झटके खाने लगा और  ढेर सारा गरम गरम वीर्य उसके लंड से निकल कर मेरे गले से होता हुआ मेरे पेट में समाने लगा। मेरी आंखें दर्द से उबली पड़ी थी। दम घुट रहा था.cum-deep-in-her-throat-001 काफ़ी सारा वीर्य पिलाने के बाद मुकुल ने अपने लंड को मेरे मुँह से निकला।

 उसका लंड अब भी झटके खा रहा था। और बूंद बूंद वीर्य अब भी टपक रहा था, पूरा लंड वीर्य और मेरे थूक से साना हुआ था,। मेरे होठों से उसके लिंग तक वीर्य एक रेशम की डोर की तरह चिपका हुआ था। खो... खो.... खो.... मैं जोर जोर से सांसें ले रही थी

अरुण पीछे से जोर जोर से धक्के दे रहा था। और मैं हर धक्के के साथ मुकुल के ढीले पड़े लिंग से भिड़ रही थी।

 “ऊउइइइइ मां ऊऊहह हम्म्म्प्प, आअह्ह्हम.... उफ्फ्फ्फ़... जैसी उत्तेजित आवाजें निकालने लगी। मेरी चुत ने एक बार फिर ढेर सारा रस छोड़ दिया। मगर उसके रफ़्तार में कोई कमी नहीं आयी थी। External-Link-gifs-by-moaningtillmorning मेरा जिस्म जवाब दे रहा था, मेरी बांहे मुझे और थामे ना रख सकी। और मैंने अपना सर मुकुल की गोद में रख दिया। काफी देर तक धक्के मारने के बाद अरुण के लंड ने अपनी धार से मेर चुत को लबालब भर दिया।24560316


हम तीनो गहरी गहरी सांसें ले रहे थे. खेल तो अभी शुरू ही हुआ था। दोनों ने कुछ देर आराम करने के बाद अपनी जगह बदल ली। अरुण ने अपना लंड मेरे मुँह मे डाल दिया तो मुकुल ने मेरी चुत मे लंड डाल धक्के मारने लगा,

मेरी धुआँधार चुदाई फिर से शुरू हो गई थी, और मैं भी उनका भरपूर साथ दे रही थी, दोनों ने करीब आधे घंटे तक मेरी इसी तरह से जगह बदल कर चुदाई की। मैं तो दोनो का स्टैमिना देख कर हैरान थी। कुछ ही देर मे दोनों ने दोबारा मेरे बदन पर वीर्य की वर्षा की।


हैंफ़्फ़्फ़... हमफ़्फ़्फ़.... मैं उनके सीने से चिपकी सांसे ले रही थी। “अब तो छोड़ दो... अब तो तुम दोनों ने अपने मन की मुराद पूरी कर ली। मुझे अब आराम करने दो।” मैने कहा.

मगर दोनों में से कोई भी मेरी मिन्नतें सुनने के मूड में नहीं लग रहा था, कुछ देर तक मेरे बदन से खेलने के बाद दोनों के लिंग में फिर दम आने लगा।

अरुण सीट पर लेट गया और मुझे ऊपर आने का इशारा किया। मैं कुछ कहती है इससे पहले मुकुल ने मुझे उठाकर उसके लिंग पर बैठा दिया। मैंने भी अपनी चुत को अरुण के खड़े लंड पर टिका दिया, हवस के खेल मे मैं भी कहाँ पीछे थी,  अरुण ने अपने लंड को पकड़ मेरी चुत के मुहने पर सेट कर दिया, 

मैं धीरे धीरे उसके लंड पर बैठ गई। पूरा लंड अंदर लेने के बाद मैं उसके लंड पर उठने बैठने लगी। तभी दोनों के बीच आँखों ही आँखों में कोई इशारा हुआ। अरुण ने मुझे खींच कर अपने नंगे बदन से चिपका लिया। अरुण मेरे मेरी गांड को फेला कर मेरे पिछले छेद पर उंगली से सहलाने लगा। फिर उंगली को कुछ अंदर तक घुसा दिया।

आउच.... नहीं.... उउफ्फ्फ... नहीं अरुण मैं चिहंक उठी. मैं उसका इरादा समझ कर सर को इंकार में हिलाने लगी तो अरुण ने मेरे होंठो को अपने होंठो में दबा लिया।

मुकुल ने अपनी उंगली निकाल कर मेरे चुत से निकलर हुए रस को अपने लंड और मेरी गांड के छेद पर लगा दिया। मैं इन दोनों बालिश्त आदमियों के बीच बिल्कुल असहाय महसूस कर रही थी।


दोनों मेरे जिस्म को जैसी मर्जी वैसे मसल रहे थे। मुकुल ने अपना लंड मेरे गुदा द्वार पर टिका दिया।

 “नहीं प्लीज़ वहाँ नहीं” मैंने लगभाग रोते हुए कहा “मैं तुम दोनो को सारी रात मेरे बदन से खेलने दूंगी मगर मुझे इस तरह मत चोदो मैं मर जाऊँगी” मगर मुकुल अपने काम में जुट रहा। मैंने अपने हाथ को अरुण की छाती पर मार उठने की कोशिश की लेकिन अरुण ने अपने बालिश्त बांहों मे मुझे जकड़े रखा,

 मुकुल ने अपने लंड मेरे नितंबों को फेला कर एक जोरदार धक्का मारा। “उउउउउइइइइ माआआ मर गई” मेरी चीख़ पूरे जंगल में गूंज गई। मगर दोनों हंस रहे थे.

"थोड़ा सब्र करो सब ठीक हो जाएगा। सारा दर्द ख़त्म हो जाएगा।” मुकुल ने मुझे समझाने की कोशिश की। मेरी आँखों से पानी बह निकला. मैं दर्द से से रोने लगी. मुकुल ने फिर भी लंड बाहर ना निकाला जबकि धीरे धीरे मुझे सहलाने लगा, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरी गांड मे लोहे की गरम रोड डाल दी हो, दर्द से शरीर फटा जा रहा था,

नीचे से अरुण मेरे स्तनो को मसल रहा था, निप्पल को सहला रहा था, अजीब सी दर्दभारी उत्तेजना का अनुभव ही रहा था मुझे, अरुण ने अपने लंड को मेरी चुत मे धीरे धीरे सहलाना शुरू किया, कुछ  ही देर बाद मैं शांत हो गई, हालांकि दर्द अभी भी था लेकिन वो कुछ मीठा मीठा सा था,

अब मुकुल ने धीरे-धीरे अपने पुरे लंड को अंदर कर दिया। मैंने और सूरज ने शादी के बाद से ही खूब चोदा था मगर उसकी नियत कभी मेरे गांड पर ख़राब नहीं हुई।


मगर इन दोनों ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा। पूरा लंड अंदर कर के मुकुल मेरे ऊपर लेट गया। मैं दोनो के बीच सैंडविच की टिक्की की तरह फसी हुई थी।

एक तगड़ा लंड आगे से और एक लंड पीछे से मेरे जिस्म में धसा हुआ था। दोनों लंड अंदर कुछ ही दूरी पर हलचल मचा रहे थे। दोनों ने अपने-अपने बदन को हरकत दे दी। मैं दोनों के बीच पिस रही थी। मैं भी अब आनंद की चरमसिमा पर थी, दोनों के धक्के ना जाने कितनी देर टक चलते रहे, दोनों के मुसल मोटे लंड मेरी चुत और गांड की खाल उधेड़ते रहेbbc-001-1   और एक साथ दोनो डिस्चार्ज हों गए.


मैं भी खुद को संभल ना सकी दोनों के गर्म वीर्य का अहसास पाते ही मेरी चुत से भी पानी छलक उठा। मेरा पूरा बदन गीला हो गया। मेरे मुँह, चुत, गांड तीनो छेदों से वीर्य टपक रहा था। तीनो के “आआआआअह्हह्हहूऊओह्हह्ह.. ” से जंगल गूँज रहा था।

तीनो कर जिस्म पसीने से भीगे चमक रहे थे,

ताबड़तोड़ दरद भरी चुदाई के बाद अब भूक भी लगने लगी थी,। मुकुल ने जीप के पीछे से एक डिब्बे से कुछ सैंडविच निकाले जो शायद अपने लिए रखे थे।

हम तीनो ने उसी हालत में आपस में मिल बांट कर खाया।

 भूक शांत हुई तो जिस्म की भूख हिलोरे मारने लगी, फ़िर से सम्भोग चालू हुआ तो घण्टों चलता रहा दोनों ने मुझे रात भर बुरी तरह झंझोर दिया। कभी चुत मे, कभी गांड मे तो कभी मुंह में हर जगह जी भर कर मालिश की। मेरे पूरे बदन पर वीर्य का मानो लेप चढ़ा हुआ था। images-11 सम्भोग करते-करते हम निधाल हो कर वहीं पड़ गए। कभी किसी की आंख खुलती तो मुझे कुछ देर तक चोद के ही वापस सोता.

पता ही नहीं चला कब भोर हो गई। अचानक मेरी आंख खुली तो देखा बाहर लालिमा फेल हो रही है। मैं दोनों की गोद मे बिल्कुल नंगी सूखे वीर्य की पापड़ी से ढकी पड़ी थी,

 मुझे अपनी हालत पर शर्म आने लगी। मैंने शीशे पर नजर डाली तो अपनी हालत देख कर रो पड़ी। होंठ सूज गए थे, चेहरे पर वीर्य सुख के सफ़ेद पापड़ी की शक्ल ले चूका था,images-5

मैं खुद को ऐसे और ना देख सकी, एक झटके से उठी और बाहर निकल कर अपने कपडे पहने। मुझे अपने आप से घिन आ रही थी। सड़क के पास ही थोड़ा पानी जमा हुआ था। जिस से अपना चेहरा धो कर अपने आप को व्यवस्थित किया।


वो दोनों भी उठ चुके थे, अरुण मेरे बदन से लिपट कर मेरे होठों को चूम लिया। मैंने उसे ढकेल कर अपने से अलग किया। “मुझे मेरे घर वापस छोड़ दो।” मैने गुस्से से कहा.

अरुण सामने की सीट पर बैठ कर जीप को स्टार्ट किया। जीप एक ही झटके में स्टार्ट हो गई। मैं समझ गई कि ये सब इन दोनों की मिली भगत थी।  मुझे चोदने के लिए ही सुनसान मे गाडी ख़राब कर दी थी, घंटे भर बाद हम घर पहुंचें। रास्ते में भी दोनों मेरे स्तनों से खेलते रहे, जैसे मैं उनकी मिल्कीयत हूँ,

हम जब तक घर पहुंचे सूरज अपने काम पर निकल चुका था जो मेरे लिए बहुत ही अच्छा रहा वरना उसको मेरी हालत देख कर साफ पता चल जाता कि रात भर मैंने क्या क्या गुल खिलाये हैं।

अरुण मुकुल अपने रास्ते चले गए थे, मैं बाथरूम मे सावर के नीचे खड़ी खुद को कोष रही थी, आखिर गलती मेरी भी थी.

मैं बहक गई थी.

समाप्त 

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