ये एक छोटी कहानी है, जो सिर्फ एक रात की घटना पर आधारित है.
जो की मेरे द्वारा लिखी सीरीज का अगला भाग है "वो कौन था?"
ऐसी कहानियाँ जो सवाल पर ख़त्म होती है.
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चलिए शुरू करते है.
वो काली रात (वो कौन था सीरीज )
जयपुर शहर के मानसरोवर एक्सटेंशन इलाके मे मौजूद 4मंजिला ईमारत मे सिर्फ नीचे का फ्लोर जगमगा रहा था,
देखने से कोई फाइनस कम्पनी का ऑफिस जान पड़ता था.
रात करीबन 10 बज चुके थे, काम बहुत था.
काम पूरा करना ही है, इसी उद्देश्य से अरवा शर्मा कंप्यूटर मे मुँह घुसाए खट पिट किये जा रही थी, आज ही ऊपर से मेल आया था की परफॉरमेंस ठीक नहीं चल रही है. काम पेंडिंग है.
अरवा ने सर उठा देखा, 10.30 बज गए थे, बाहर से रह रह के बिजली कड़कने की आवाज़ आ जा रही थी.
"अब चलना चाहिए" अरवा ने कंप्यूटर बंद कर बैग उठा लिया,.
बाहर बैठा चपरासी भी इसी आस मे था कब मैडम उठे और वो ताला लगा कर निकले यहाँ से.
आखिर उसकी मुराद पूरी हुई.
काफी देर हो चुकी थी उस रात को ऑफिस से रवाना होते हुए। मैंने जल्दी-जल्दी अपनी साड़ी ठीक की और ऑफिस का दरवाज़ा बंद कर के चली।
जैसे ही आगे बड़ी की जोरदार झमाझम शुरू हो गई, मेरी कार पार्किंग में दूर अँधेरे कोने में अकेली खड़ी हुई थी। बहुत ज़ोरों से बारिश हो रही थी और बादल भी जम कर गरज रहे थे।
अभी दौड़ के कार तक पहुंची ही थी की मैं पूरी तरह भीग चुकी थी और ठंडे पानी से मेरे ब्लाऊज़ के अंदर मेरे निप्पल एकदम टाईट हो गयी थी।
मेरा ब्लाऊज़ मेरे रसीले मम्मों को ढाँकने की नाकामयाब कोशिश कर रहा था। मेरे एक-तिहाई मम्मे ब्लाऊज़ के लो-कट होने की वजह से और साड़ी के भीग जाने से एकदम साफ़ नज़र आ रहे रहे थे। मैंने साढ़े चार इन्च ऊँची हील के सैण्डल पहने हुए थे और पानी मे फिसलने के डर से धीरे-धीरे चलने की कोशिश कर रही थी। हवा भी काफ़ी तेज़ थी और इस वजह से मेरा पल्लू इधर-उधर हो रहा था जिसकी वजह से मेरी नाभी साफ़ देखी जा सकती थी। मैं आमतौर पे साड़ी नाभी के तीन-चार ऊँगली नीचे पहनती हूँ। पूरी तरह भीग जाने की वजह से, मैं हक़ीकत में नंगी नज़र आ रही थी क्योंकि मेरी साड़ी मेरे पूरे जिस्म से चिपक चुकी थी। ऊपर से मेरी साड़ी और पेटीकोट कुछ हद तक झलकदार थे।
मैं जितनी जल्दी-जल्दी हो सका, अपनी कार के करीब पहुँची। मुझे मेरे आसपास क्या हो रहा था उसका बिल्कुल एहसास ही नहीं था। मैंने देखा कि मेरी वो अकेली ही कार पार्किंग लॉट के इस हिस्से में थी और वहाँ घना अँधेरा छाया हुआ था। बारिश एकदम ज़ोरों से बरस रही थी। मैं कॉर्नर पे मुड़ी और अपनी कार के करीब आ के अपनी पर्स में से चाबी निकालने लगी। अचानक किसी ने मुझे एक जोर का धक्का लगाया और मैं अपनी कार के सामने जा टकराई।
“हिलना मत कुत्तिया!”
मुझे महसूस हुआ कि किसी ताकतवर मर्द का जिस्म मुझे मेरी कार की तरफ़ पुश कर रहा था। उसका पुश करने का ज़ोर इतना ताकतवर था कि उसने मेरे फेफड़ों से सारी हवा निकाल दी थी जिसकी वजह से मैं चिल्ला भी ना सकी। मैं एक दम घबरा गयी। बारिश इतनी तेज़ हो रही थी कि आसपास का ज़रा भी नज़र नहीं आ रहा था और जहाँ मेरी कार खड़ी हुई थी वहाँ मुझे कोई देख नहीं सकता था। वो आदमी मुझे हर जगह छूने लगा। उसके हाथ बेहद मजबूत थे... जैसे लोहे के बने हों। उसने मेरा पल्लू खींच के निकाल दिया और मेरे मम्मों को जोर-जोर से दबाने लगा और मेरे पहले से टाईट हो चुके निप्पलों को मसलने लगा।
वो गुर्राया। उसकी इस आवाज़ ने जैसे मुझे बेहोशी में से उठाया हो और मैंने भागने की नाकाम कोशिश की। फिर उसने मेरे एक मम्मे को छोड़ के मेरे गीले हो चुके बालों से मुझे खींचा।
“आआहहहहह...।” मैं जोर से चिल्लाई और मैंने उसके सामने लड़ना बंद कर दिया.
“अगर तू ज़िंदा रहना चाहती है तो... ठीक तरह से पेश आ! समझी कुत्तिया... अभी मैं तुझे अपनी तरफ़ धीरे से मोड़ रहा हूँ... अगर ज़रा भी होशियारी दिखायी तो....!!”
उसने मुझे धीरे से अपनी तरफ़ मोड़ा। इस दौरान उसने अपना जिस्म मेरे जिस्म से सटाय रखा। उसका लंड मेरे गीले जिस्म को घिस रहा था, और मेरी चूत में थोड़ी सरसराहट हुई। “ऑय कैन नॉट बी टर्नड ऑन बॉय दिस” मेरे जहन में ये सवाल उठा। मैंने ऊपर देखा। मैंने इस बार उसे पहली बार देखा। वो एक लंबा-चौड़ा और काला आदमी था। उसने अपने जिस्म पर एक पैंट और सर पर टोपी के अलावा कुछ नहीं पहना था। उसका कसरती जिस्म मुझे किसी बॉडी-बिल्डर की याद दिला गया। वो एकदम काला और डरावना था और ऐसी अँधेरी रात में मुझे सिर्फ़ उसकी आँखें और उसके काले जिस्म पे दौड़ती हुई बारिश की बूँदें ही नज़र आती थी। मैं डर से थर-थर काँपने लगी। मेरे इतनी ऊँची हील के सैण्डल पहने होने के बावजूद वो करीबन मुझसे एक फुट लंबा था। मैं उससे रहम की भीख माँगने लगी।
“प्लीज़... प्लीज़ मुझे मत मारो।”
तभी एक जोरदार थप्पड़ मेरे गाल पे आ गिरा। मुझे तो ऐसा लगा कि मुझे तारे दिख गये। उसने मुझे मेरे बालों से पकड़ कर अपने मुँह तक ऊपर खींचा।
“प्लीज़ मुझे जाने दो...। मैं तुम्हें जो चाहो वो दे दूँगी... देखो मेरे पर्स में पैसे हैं... तुम वो सारे के सारे ले लो...” मैं गिड़गिड़ायी।
वो मेरे सामने जोर-जोर से हँसने लगा और बोला “देख... हरामजादी मुझे तेरे पैसे नहीं चाहिये...मुझे मेरे अपमान का बदला चाहिए, मुझे तो तेरी यह कसी हुई टाईट चूत चाहिये... मैं तेरी इस चूत को ऐसे चोदूँगा कि तू ज़िन्दगी भर किसी दूसरे मर्द का लंड नहीं माँगेगी”
उसकी बातों से मुझे तो जैसे किसी साँप ने सूँघ लिया हो ऐसी हालत हो गयी। तभी मुझे खयाल आया कि मेरा रेप होने वाला है। मैं बहुत घबरा गयी थी और समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। बारिश अभी भी पूरे जोरों से बरस रही थी और बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की चमक ने पूरे आसमन को भर लिया था। मेरे जहन मे बार बार "बदला"शब्द दौड़ रहा था, मेरी किसी से कि दुश्मनी थी?, मैंने तो कभी किसी का बुरा नहीं किया.
मेरे बाल बारिश की वजह से काफी भीग चुके थे और वो मेरे चेहरे को ढक रहे थे। तभी उस काले लंबे चौड़े आदमी ने मुझे कार के हुड पे खींचा। उसके मुझे इस तरह ऊपर खींचने से मेरी भीगी हुई साड़ी मेरी गोरी-गोरी जाँघों तक ऊपर खिंच गयी।
“पीछे झुक... पीछे झुक ... हरामजादी!” वो गुर्राया।
मैं ज़रा भी नहीं हिली। वो तिलमिला गया और मेरे नज़दीक मेरे चेहरे के पास आके एकदम धीरे से लेकिन डरावनी आवाज़ में बोला “मैं तेरी हालत इस से भी बदतर बना सकता हूँ... साली राँड!” और मुझे एक धक्का देकर कार के बोनेट पर लिटा दिया। इस के साथ ही उसने अपना हाथ मेरी साड़ी के अंदर मेरी फ़ैली हुई जाँघों के बीच डाल दिया और झट से मेरी पैंटी फाड़ के खींच निकाली।
मेरी पैंटी के चीरने की आवाज़ बारिश और बिजली की गड़गड़ाहट के बीच अँधेरी रात में दब गयी। अब वो मेरी दोनों टाँगों को अपने मजबूत हाथों से पूरे जोर और ताकत से फ़ैला रहा था। कुछ पल के लिए मुझे लगा कि मैं कोई बुरा ख्वाब देख रही हूँ और यह सब मेरे साथ नहीं हो रहा है। लेकिन जब वो फिर से गुर्राया तो मैं जल्दी ही हकीकत में वापस आ गई
उसने अब अपना एक हाथ मेरे पीछे रखा और मेरी कसी हुई गीली चूत में अपनी दो मोटी उँगलियाँ घुसेड़ दी। मैं फिर चिल्ला उठी लेकिन इस बार भी मेरी चीख बारिश और बिजली की गड़गड़ाहट के बीच दबकर रह गयी। वो जरा भी वक्त गंवाये बिना मेरी चूत में ज़ोर-ज़ोर से ऊँगलियाँ अंदर-बाहर करने लगा। मेरी चूत में उसके हर एक धक्के से मेरे निप्पल और ज्यादा कड़क होने लगे। मेरी चूत में अपनी उँगलियों के हर एक धक्के के साथ वो गुर्राता था। मेरा डर मेरी चूत तक नहीं पहुँचा था और मेरी चूत में से रस झड़ने लगा, जैसे कि चूत भी मेरी इज़्ज़त लूटने वाले की मदद कर रही थी।
“उफ्फ्फ्फ़.... हाय … बेहद दर्द हो रहा है,” मैंने अपने आप को कहा और अचानक जैसे मैं सातवें आसमान पे थी। “ओहह अउफ्फ्फ्फ़.... नहींईंईंईंईं.... प्लीज़” और मेरी चूत उसकी उँगलियों के आसपास एकदम टाईट हो गयी। मैंने अपनी आँखें बँद कर लीं और मेरी आँखों से आँसू मेरे चेहरे पे आ गये। बारिश की ठँडी बूँदों में मिल कर वो बह गये।
वो ज़ोर-ज़ोर से मेरी गीली चूत में उँगलियाँ अंदर-बाहर कर रहा था। हर दफ़ा जब वो अपनी उँगलियाँ मेरी चूत के अंदर डालता था तो मैं इंतेहाई के करीब पहुँच जाती थी। उसकी ताकत लाजवाब थी। हर दफ़ा वो मुझे मेरी गाँड पकड़ के ऊपर करता था और अपनी उँगलियाँ मेरी गीली चूत में जोर से घुसेड़ता था जो अब चौड़ी हो चुकी थी। मेरा सर अब चक्कर खा रहा था और मैं थोड़ी बेहोशी महसूस कर रही थी। मुझे पता नहीं था कि वाकय यह उसकी ताकत थी या फिर मेरी मदहोश चूत थी जो बार-बार मेरी गाँड को ऊपर नीचे कर रही थी। मैंने काफी चाहा कि ऐसा ना हो।
तभी उसने अपना अँगूठा मेरी क्लिट पे रख कर दबाया। एक झनझनाहट सी हो गयी मेरे जिस्म में… मेरी चूत की दीवारें सिकुड़ गयीं और मैं एकदम से झड़ गयी। मस्ती भरा तूफान मेरे जिस्म में समा गया। मैं बहुत शरमिंदगी महसूस करने लगी। कैसे मैं अपने आप को ऐसी मस्ती महसूस करवा सकती थी जब वो आदमी मेरे साथ जबरदस्ती कर रहा था? मैं खुद को एक बहुत गंदी और रंडी जैसा महसूस करने लगी। मैंने उसका हाथ पकड़ के उसे रोकना चाहा तो वो मेरे सामने देख कर हँसने लगा। वो जानता था कि मैं झड़ गयी हूँ।
“तू एकदम चालू किस्म की औरत है... क्यों? तू तो राँड से भी बदतर है... है ना? तुझे तो अपने आप पे शरम आनी चाहिए” वो खुद से वासिक़ होते हुए और हँसते हुए बोला। वो हकीकत ही बयान कर रहा था।
"साली लोगो के सामने ऐसे बनती है जैसे सती सावित्री हो, और यहाँ देखो तेरी तो चुत टपक रही है, ऊँगली अंदर खिंच रही है.
इतनी गर्मी है तो क्यों थप्पड मरती है, जबकि गलती से छू लिया था तुझे उसने "
वो शख्स बड़बड़ाए जा रहा था, किसकी और क्यों बात कर रहा था अरवा के समझ के परे था.
मेरा सर शरम के मारे झुक गया और मैंने अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया और रोने लगी। झड़ने की वजह से मेरे जिस्म में अजब सी चुभन पैदा हो गयी थी और बारिश की ठंडी बूँदें मेरे जिस्म को छेड़ रही थी। ठंडी हवा की वजह से मेरा पूरा जिस्म काँप रहा था। मैं सचमुच उस वक्त एक बाजारू रंडी के मानिन्द लग रही होऊँगी। अचानक उसने मुझे धक्का दिया और मेरा हाथ पकड़ के मुझे घुटनों के बल बिठा दिया।
“अब मेरी बारी है रंडी और तू जानती है मुझे क्या चाहिए... है ना? तू जानती है ना?”
मैं जानती थी वो क्या चाहता था जब उसने मेरे कंधे पकड़ के मुझे घुटनों के बल बिठा दिया था। मेरा नीचे का होंठ काँपने लगा था। मैंने अपने गीले बाल अपने चेहरे से हटाये और शरम से अपना सर हिलाया। मेरा दिमाग ना कह रहा था लेकिन मेरा दिल उसे देखने को बेताब था। जब मैं अपने घुटनों पे थी तब मैंने अपनी नज़रें उठा कर उसके चेहरे की तरफ देखा और खामोशी से मुझे जाने देने की फरियाद की। पर जब मैंने उसकी आँखों में देखा तब मुझे एहसास हो गया कि उसे जो चाहिए वो मिलने से पहले वो मुझे नहीं जाने देगा।
जब मैंने उसकी पैंट की ज़िप को खोलना शुरू किया तो मेरे हाथ काँपने लगे। उसका लंड इतना टाईट था कि उसकी पैंट की ज़िप तो पहले से ही आधी नीचे आ गयी थी। मैंने उसकी बाकी की ज़िप नीचे उतार दी और फटाक से उसका तन्नाया हुआ काला लंड मेरे सामने साँप की तरह फुफ्कारने लगा। उसका लंड वाकय में काफ़ी बड़ा था... तकरीबन नौ-साड़े नौ इन्च का होगा। उसका लंड काफ़ी मोटा भी था... शायद तीन इन्च होगा, और एकदम काला जैसे कि ग्रैफाइट से बना हुआ हो। किसी आम मर्द का तो शायद ऐसा नहीं होगा, कम से कम मैंने तो हकीकत में तब तक इतना लंबा और मोटा लंड नहीं देखा था ।
“तुम अब इस लंड से प्यार करना सीखोगी मेरी राँड... सीखोगी ना?” उसने मुझसे पूछा।
मैं घबरा गयी थी उसके लंड की लंबाई और मोटाई देख कर लेकिन फिर भी उसके लंड की कशीश मुझे अपनी ओर खींच रही थी। ज़ोरों की बारिश की वजह से मेरे कपड़े मेरे जिस्म से चिपक गये थे और मेरे मम्मों का शेप एकदम साफ़ नज़र आ रहा थ। ब्रा भी मेरी टाईट हुए निप्पलों को नहीं ढक पा रही थी। मैं बारिश की बूँदों को उसके लंड के ऊपर गिरते हुए देख रही थी। इतना ठंडा पानी गिरने पर भी उसका लंड एक मजबूत खंबे की तरह तना हुआ था। मुझे एसा लगा कि वक्त मानो ठहर गया हो और मेरे आजू-बाजू सब कुछ स्लो-मोशन में हो रहा हो। उसके लंड का मोटा सुपाड़ा मेरे चेहरे से सिर्फ़ तीन इन्च की दूरी पर था।
उसके लंड को अपने आप झटके खाते देखने की वजह से मैं तो जैसे बेखुद सी हो गयी थी। मेरी जीभ अचानक ही मेरे मुँह से बाहर आ गयी और मेरे नीचे वाले होंठ पे फिरने लगी। मैं काफी घबराई हुई और कनफ़्यूज़्ड थी। मेरा दिल कह रहा था कि मैं उसके मोटे लंड को चूस लूँ पर दिमाग कह रहा था कि मैं अपने इस हाल पे रोना शुरू करूँ।
अपने लंड को हाथ में हिलाते हुए वो बोला “ए राँड चल जल्दी मेरा लंड चूस... देख अगर तूने अच्छी तरह चूस के मुझे खुश कर दिया तो मैं तुझे तेरी कसी हुई चूत में अपना लंड डाले बिना ही छोड़ दूँगा। अगर तू यह चाहती है कि मेरा यह लंड तेरी कसी हुई चूत को फाड़ के भोंसड़ा ना बनाये तो अच्छी तरह से मेरा लंड चूस... वरना भगवान कसम मैं तेरी चूत को चोद-चोद के उसका ऐसा भोंसड़ा बना दूँगा कि तू एक महीने तक ठीक तरह से चल भी नहीं पायेगी”
मैं तो उसके एक-एक अल्फाज़ को सुन कर सन्न रह गयी। उसका लंड बेहद बड़ा और खतरनाक नज़र आ रहा था। मुझे तो यह भी पता नहीं था कि मैं उसके लंड का सुपाड़ा भी अपने मुँह में ले पाऊँगी भी कि नहीं। उसके लंड को देखते हुए मैं सोचने लगी कि मैं क्या करूँ या ना करूँ। एक दो पल के लिए उसने जो कहा मैं उसके बारे में सोचने के लिए ठहरी कि अचानक उसने थाड़ से मेरे गाल पे अपने पथरीले हाथ से फटकारा। मुझे तो जैसे दिन में तारे दिख गये हों, ऐसी हालत हो गयी।
“चूसना शुरू कर.... रंडी.. साली मादरचोद मेरे पास पूरी रात नहीं है!”
उसका लंड मेरी कसी हुई चूत को फाड़ रहा है... वही सीन सोच के मैं डर गयी और साथ-साथ उत्तेजित भी हो गयी। पर आखिर में जीत डर की ही हुई। मैंने फ़ैसला कर लिया कि कुछ भी हो, मैं अपने जिस्म को और मुश्किल में नहीं डालुँगी और उसका लंड चूस दूँगी। मैंने जल्दी से उसके लंड को निचले सीरे से पकड़ा। वो बारिश की वजह से एकदम गीला हो चुका था लेकिन जैसा मैंने पहले बताया कि बारिश के ठंडे पानी का उसके लंड पर कोई असर नहीं था। वो चट्टान की तरह तना हुआ और फौलाद की तरह गरम था। मैंने धीरे-धीरे अपनी जीभ बाहर निकाल के उसके लंड के सुपाड़े के ऊपर फ़िराना शुरू किया।
“मम्म्म्म्म... वाह वाह मेरी राँड वाह... डाल ले इसे अपने मुँह में... डाल साली राँड डाल”, "जैसे असलम का लंड चूसा था "
उस आदमी की बात सुन मेरा दिमाग़ साय साय बजने लगा,
ये किस असलम की बात कर रहा है.
कहीं... कहीं.... वो... नहीं... ये कैसे जनता है उसे.
मेरे दिमाग़ मे हज़ारो सवाल एक साथ कोंध गए.
लेकिन ये समय सवाल जवाब का नहीं था.
मैंने जितना हो सके अपना मुँह उतना फ़ैला के उसके लंड के सुपाड़े को अपने मुँह में डाल दिया और धीरे-धीरे स्ट्रोक करना शुरू कर दिया। उसके लंड के सुपाड़े ने मेरा पूरा मुँह भर दिया था। उसने अपना सर थोड़ा पीछे की तरफ़ झुकाया और मेरे गीले बालों में अपनी उँगलियाँ फिराने लगा।
“वाह...वाह मेरी रंडी.... बहुत खूब... चूस इसे... चूस मेरा लंड आहहहह... तू तो बहुत चुदासी लगती है... आहहह... बहुतों के लंड लिए लगते हैं तूने... उम्म्म्म” वो गुर्राया।
"असलम का भी ऐसे ही चूसा था ना तूने?"
वो शख्स मुझे बार बार असलम की याद दिला रहा था, अब मुझे भी कुछ कुछ याद आने लगा था.
लेकिन उसके लंड ने मुझे यादो से फिर बाहर निकाल लिया.
उसकी हवस अब मेरे जिस्म में उतर कर दौड़ने लगी थी। उसका लंड चूसने की चाहत ने मेरी हवस को छेड़ दिया था। मेरे जिस्म में उसकी ताक़त सैलाब बन के दौड़ने लगी। इस मोड़ पे मुझे उसका लंड चूसने की बेहद आरज़ू होने लगी थी और मैं उसका लंड बहुत बेसब्री से चूसना चाहती थी। पता नहीं कि मैं जल्दी निपटा के उससे छुटकारा पाना चाहती थी या यह मेरी हवस थी जो मुझे ऐसा करने पर मजबूर कर रही थी। मैं फिर से कनफ़्यूज़ हो गयी और खुद की नज़रों में फिर से गिर गयी।
धीरे से मैंने उसके लंड को अपने मुँह में और अंदर घुसेड़ लिया और उसके कुल्हों को अपनी तरफ़ खींचा। अभी भी एक मुठ्ठी जितना लंड मेरे हाथों में था और तब मुझे महसूस हुआ कि उसके लंड का सुपाड़ा मेरे गले तक आ गया है। थोड़ा सहारा लेने के लिए मैं कार तक पीछे हटी। उसने अब मेरे सर को दोनों हाथों से पकड़ लिया। अब वो अपना बड़ा सा लंड मेरे मुँह के अंदर-बाहर करके मेरे मुँह को चोदने लगा। अब वो अपने हर एक धक्के के साथ अपना पूरा लंड मेरे हलक के नीचे तक पहुँचाने की कोशिश कर रहा था। उसके दोनों हाथों ने मेरे चेहरे को कस के पकड़ रखा था।
“आहहह... आहहहह रंडी... ले और ले... और ले... पूरा ले ले मेरा लंड मुँह में... खोल थोड़ा और खोल अपना मुँह साली राँड!”
"साली खुद आगे से लंड चूसती है, फिर बोलती है की जबरजस्ती की तेरे साथ "
वो अब जोर-जोर से मेरे मुँह को चोद रहा था। उसके झटकों में तूफ़ानी तेजी थी। हर एक दफा वो अपना लंड मेरे हलक तक ले जाता था और रूक जाता था और मैं बौखला जाती थी। कईं बार साँस लेना भी मुश्किल हो जाता था। फिर वो धीरे से अपना लंड वापस खींचता और घुसेड़ देता। मैंने उसके लंड को जो कि मानो ऑक्सीज़न कि नली हो, उस तरह से पकड़ के रखा था ताकि उससे मुझे ज्यादा घुटन ना हो। मैंने उसके लंड को अपनी ज़ुबान और होठों से उक्सा दिया था और अपने होठों और ज़ुबान को एक लंड चूसने में माहिर औरत की तरह से इस्तमाल किया । अचानक उसने मेरे दोनों हाथ कस के पकड़ के उन्हें हवा में उठा लिया और एक जोर का झटका अपने लंड को दिया। मेरा सर कार के दरवाज़े से टकराया और उसका लंड सड़ाक से मेरे हलक में जा टकराया।
“आआआघघहहहह. आआहहह रंडीडीडीडी आज तुझे पता चलेगा कि काले लंड क्या होते हैं!”
मेरा पूरा जिस्म एकदम टाईट हो गया। मेरी नाक उसकी झाँटों में घुस चुकी थी जिसकी खुशबू से मैं मदहोश होती चली जा रही थी और उसके टट्टे मेरी चिन के साथ टकरा रहे थे। उसका पूरा लंड मानो मेरे मुँह के अंदर था और उसका दो-तिहाई लंड मेरे हलक में आ अटका था। मैं ख्वाब में भी नहीं सोच सकती थी कि कोई इन्सान इतनी बड़ी चीज़ अपने हलक में उतार सकता है। अब वो एक भूखे शेर की तरह अपना लंड मेरे मुँह के अंदर-बाहर कर रहा था और जितना हो सके उतना ज्यादा अपना लंड मेरे हलक तक डालने की कोशिश कर रहा था। जब-जब वो अपना लंड मेरे गले में घुसेड़ता था तब-तब मेरा सर मेरी कार के दरवाजे से टकराता था।
मैं जानती थी आगे क्या आनेवाला था और इसके लिए मैं खुद ही जिम्मेवार थी। उसके लंड को मेरे गले तक जाने से कोई नहीं रोक सकता था। तेज़ बारिश में मुझे सिर्फ़ दो ही आवाज़ें सुनाई दे रही थीं - एक तो मेरे सर के कार के दरवाज़े से टकराने की और दूसरी मेरे हलक से आने वाली आवाज़ की... जब उसका लंड मेरे हलक तक पूरा चला जाता था तब की। फिर उसने मेरे हाथ छोड़ दिये और मैंने मौका गँवाय बगैर उसके लंड को पकड़ लिय। उसने अब अपना लंड मेरे हलक तक डालने के बजाय मेरे मुँह में ही रखा और मुझे तेज़ी से अपना लंड चूसने को कहा। बारिश अभी भी तेज़ हो रही थी लेकिन मैं अब ठंडी नहीं थी। मैं भी गरम हो चुकी थी। मेरी दो उँगलियाँ अपने आप मेरी चौड़ी हुई चूत से अंदर बाहर हो रही थीं।
मेरा बर्ताव बिल्कुल एक राँड के जैसा था। मुझे मालूम नहीं था मैं ऐसा क्यों कर रही थी। मैं कैसे किसी अजनबी का लंड चूसते हुए अपनी चूत को सहला सकती हूँ? लेकिन मैं अपनी चूत को सहलाये बगैर और अपनी उँगलियाँ उसके अंदर बाहर करने से नहीं रोक पा रही थी। मेरे जहन में यह भी सवाल उठा कि मैं क्यों अपनी चूत को सहला रही हूँ जब यह आदमी मेरा रेप कर रहा है... और जब वो अपना लंड मेरे हलक में डाल चुका है। उसने अब अपने कुल्हों को झटके देना बँद कर दिया था लेकिन उसका पूरा चार्ज मैंने ले लिया और उसका लंड तेज़ी से चूसने लगी और जितना हो सके उतना लंड अपने मुँह में लेने लगी। मैंने उसकी गीली पैंट को जाँघों से पकड़ा और जितना हो सके उतना उसके लंड को अपने हलक तक लेने लगी... उतना नहीं जितना वो डालता था लेकिन जितना मैं ले सकती थी उतना... मानो मैंने किसी का लंड पहले लिया ही ना हो... उस तरह जैसे कि एक रंडी करती है, उस तरह।
फिर उसने कहा, “आहहघघ आहहहघघहह रंडी मैं झड़ने वाला हूँ।”
मैंने पहले भी कईं लंड चूसे हैं लेकिन मुझे अपने मुँह में किसी का झड़ना खास पसंद नहीं था और मैं नहीं चाहती थी कि यह आदमी मेरे मुँह में झड़े। वो मेरे मुँह में झड़नेवाला है, उस खयाल से मैं बेहद घबरा गयी। मैंने अपने मुँह से उसके काले लंड को निकालने की बेहद कोशिश की लेकिन ऐसा हुआ नहीं बल्कि वो और जोश में आ गया। उसने फिर अपने कुल्हों को झटका और मुझे मेरी कार के दरवाज़े से सटा दिया और पूरे जोर से अपना काला मोटा और लंबा लंड मेरे हलक में सटा दिया और झड़ गया।
“आघघहह आघघहह... आआहहह... लेले मेरा रस ले राँड ले मेरा रस ..।” और उसका पहला माल सीधा मेरी हलक से नीचे उतर गया।
मैंने काफी कोशिश की कि उसका लंड मेरे मुँह से बाहर निकल जाये लेकिन उसकी बे-इंतहा ताकत के सामने मैं नाकामयाब रही और वो झटके देता गया और उसका रस मेरे हलक से नीचे उतर गया। उसने अपना पूरा रस झड़ने तक अपना लंड मेरे हलक में घुसेड़े रखा ताकि उसका जरा भी रस बाहर ना गिरे। खुद मुतमाइन होके उसने थोड़ा ढील छोड़ा और अपना लंड मेरे हलक से बाहर निकाला। उसके बाद जाके मैं कुछ साँस ले पायी।
उसके लंड निकालते ही मेरे मुँह और नाक से भरभरा कर उसका गन्दा गाड़ा वीर्य बाहर को आ गया.
“ले साली पी.बाहर निकलती है .. पी साली मेरा रस... पी राँड मुझे पता है तुम साली सभी औरतों को बहुत माज़ा आता है लंड चूसने में... ले मेरा लंड चूस के उसका रस पी... पी साली मादरचोद!” उसका रस अभी भी उसके लंड से बाहर निकल रहा था। धीरे से उसने अपना ढीला हुआ लंड मेरे मुँह मे घुसा के फिर बाहर निकाल लिया. मैंने नोटिस किया , उसका ढीला हुआ लंड भी मेरे पति के तने हुए लंड से बड़ा था।
मेरे दिमाग़ मे ना जाने क्यों एक तुलानतमक इमेज उत्पन्न हो गई,.
जब उसने अपना लंड निकाला तब मैंने चैन की साँस ली। उसके रस ने मेरे सारे चेहरे को ढक दिया था और ठंडा पानी मेरे चेहरे से उस रस को धो रहा था। मैं थक के सिकुड़ कर जमीन पे बैठ गयी।
“क्या बात है तुझे मेरा लंड चूसना अच्छा नहीं लगा?”
मैं उसे गुस्सा नहीं करना चाहती थी। इसलिए मैंने सिर्फ़ उसकी और देख के अपना सर हिलाया। मैंने क्यों उसे “हाँ” कहा? मुझे नहीं पता कि यह सच था कि नहीं? मेरे हलक में बहुत दर्द हो रहा था और उसके रस का ज़ायका अब भी मेरी ज़ुबान पे था।
"असलम का लंड भी चूस के ऐसा ही मजा आया था क्या तुझे "
मै उसकी बातो से सन्न रह गई, बार बार असलम के नाम ने मेरे जहन मे कुछ यादें भर दी.
असलम मेरे ऑफिस का चपरासी था, ऐसी ही एकशाम को बाथरूम मे मैंने उसका लंड चूसा था.
तो.... तो... क्या ये उसी असलम की बात कर रहा है.
लल्ल... लेकिन... लेकिन... वो तो वो.... तो..
बारिश अभी भी उसी तेज़ी से बरस रही थी। बारिश की बूँदें अब काफी बड़ी हो गयी थी। मैंने उसकी और देखा तो वो मुस्कुरा रहा था। मुझे उसके सफ़ेद दाँतों के सिवा कुछ नज़र नहीं आ रहा था। मैं तो जैसे कोई हॉरर-मूवी देख रही हूँ ऐसा हाल था।
“प्लीज़... क्या मैं अब जा सकती हूँ...मैंने सारे विचार तुरंत झटक दिए ” मैंने काँपते हुए कहा, “प्लीज़ मुझे जाने दो। तुमने जो कहा मैंने वो कर दिया है... प्लीज़ अब मुझे जाने दो...!”
वो मेरे सामने देख कर हँस पड़ा। मैं खुद को काफी बे-इज्जत महसूस करने लगी। मुझे ज्यादा शरमिंदगी तो इस बात से हुई कि मेरे जिस्म ने उसके हर एक मूव को रिसपॉन्ड किया था। ऐसा क्यों हुआ? मेरी चूत अभी भी सातवें आसमान के समँदर में झोले खा रही थी और मेरे मम्मे अभी तक टाईट थे और निप्पल तो जैसे नोकिले काँटों की जैसे थे।
“क्या नाम है तेरा...?” उसने पूछा।
मैंने सहमी हुई आवाज़ में कहा “अरवा!”
फिर वो बोला “अरवा ... बड़ा प्यारा नाम है..और तू तो उससे भी ज्यादा प्यारी है, लेकिन तू है बड़ी मतलबी, तुझे लगता है मैं तुझे यूँ ही छोड़ दूँगा?”
“लेकिन तुमने कहा था अगर मैं तुम्हारा लंड चूस दूँगी तो तुम मुझे जाने दोगे!” मैं जल्दी-जल्दी बोल गयी।
मैंने उसके चेहरे के सामने फिर देखा और मेरी नज़र उसके लंड की तरफ दौड़ गयी। मैं तो एकदम भौंचक्की रह गयी... उसका लंड तो गुब्बारे की तरह तन कर फूल रहा था और एक दो सेकंड के अंदर तो लोहे के बड़े डँडे की तरह टाईट हो गया।
“हाय उफ्फ्फ्फ़... हे भगवान! यह अभी खतम नहीं हुआ… भाग अरवा भाग ” मैंने अपने दिल में कहा। अपनी सारी ताकत और हिम्मत समेटे हुए मैं खड़ी हुई और मैंने भागने के लिये कदम बढ़ाया। अचानक उसने मेरे सर के बालों को पकड़ के मुझे अपनी ओर खींचा।
“कहाँ जा रही है कुत्तिया अरवा … अब तो तू मेरी राँड है... मेरे कहने से पहले तू यहाँ से नहीं जा सकती! बहुत गर्मी है ना तेरी चुत मे आज निकाल देता हूँ ” वो गुस्से से दहाड़ा।
अब उसने मेरी एकदम टाईट चूंचियों को मसलना शुरू कर दिया और देखते-देखते मेरा ब्लाऊज़ फाड़ दिया और मेरे जिस्म से खींच निकला। अब मैं सिर्फ़ ब्रा में थी जो मुश्किल से मेरी चूंचियों को अपने अंदर समाये हुई थी। मेरी चूचियों को महसूस करते ही वो तो पागल-सा हो गया और ऐसे मसलने लगा कि जैसे ज़िंदगी में ऐसी चूचियाँ देखी ही ना हों। वो पागलों की तरह मेरी चूचियों को मसल रहा था और बीच-बीच में वो मेरी निप्पलों को ज़ोर-ज़ोर से पिंच करता था और मेरे गले के इर्द-गिर्द दाँतों से काटता था। मेरे जिस्म पे अब सिर्फ़ एक साड़ी और पेटीकोट था वो भी कमर के नीचे। ऊपर तो सिर्फ़ ब्रा थी और साड़ी भी कैसी... पैंटी तो पहले ही उस कमीने ने फाड़ के निकाल फेंक दी थी। बारिश के ठंडे पानी में इतनी देर रहने के कारण मेरे सैंडलों के स्ट्रैप मेरे पैरों में काट रहे थे।
“कहाँ जा रही थी रंडी... तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था...अरवा मैडम यही बोलता था ना असलम तुझे... मैं तुझसे कितनी अच्छी तरह से पेश आ रहा था... इस तरह से किसी का शुक्रिया अदा किया जाता है... अब तेरी इस हरकत ने देख मुझे पागल बना दिया है!”
"अब तक मुझे समझ आ गया था ये जिस असलम की बात कर रहा है वो मेरे ऑफिस के चपरासी असलम की ही बात थी "
अभी आगे कुछ और सोच पाती की, उसने मेरे चेहरे को पकड़ के कार के हूड से पटका।
“आआआआआहहहहह” मैं दर्द से मर गयी और मेरी सारी ताकत हवा हो गयी। फिर उसने मुझे दबोचे हुए ही मेरी टाँगों के बीच में एक लात मार के मेरी टाँगों को फैला दिया और मेरी साड़ी खींच कर निकाल दी और पेटीकोट कि नाड़ा पकड़ के खींचा और पेटीकोट नीचे गिर गया। अब तो मैं सिर्फ़ ब्रा और हाई हील सैंडल पहने हुए बिल्कुल नंगी उस बरसात में वहाँ खड़ी थी। अभी भी वो मेरी चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से मसलता जा रहा था और ब्रा के कप नीचे खिसका कर उसने चूचियों को आज़ाद कर दिया था। मेरी चूचियाँ एकदम लाल हो के टाईट हो गयी थी... जैसे की वो भी अपने मसले जाने का लुत्फ उठा रही हों। सारी ज़िंदगी में मेरी चूचियाँ किसी ने ऐसे जोर से नहीं मसली थथी । बारिश का ठंडा पानी अब मेरी खुली हुई गाँड पे गिर रहा था और मेरी गाँड का छेद शायद उसे साफ़ नज़र आ रहा था।
“एकदम टाईट गाँड है तेरी... अरवा राँड! लगता है किसी ने आज तक तेरी गाँड ली नहीं… तुझे पता है ना अरवा ... इसी लिये तू साली ऐसी टाईट साड़ी और यह उँची एड़ी के सैंडल पहनती है?”
"इसी गांड मा दीवाना था बेचारा असलम, सब तेरी वजह से हुआ साली रांड "
एकाएक उस शख्स के चेहरे पे गुस्से ने जगह ले ली.
“नहीं नहीं!!! यह सब गलत है... मुझे प्लीज़ जाने दो!” मैं काफी छटपटाई उसकी पकड़ से बाहर निकलने को लेकिन वो बहुत ताकतवर था। उसने मेरे मम्मों को दबाते हुए मुझे फिर अपनी और खींचा। इस बार मुझे महसूस हुआ कि उसका लंड अब मेरी कमर पे रेंग रहा था और उसके आँड मेरी गाँड को छू रहे थे।
“तेरे मर्द के पास ऐसा लंड ही नहीं है कि तेरी चूत को शाँत कर सके.. .है ना अरवा?” उसकी गरम साँसों ने जो कि मेरे गले को छू रही थीं, मुझे भी अंदर से काफ़ी गरम कर दिया था... जो कि एक सीधा पैगाम मेरी चूत को दे रहा था कि “ले ले अरवा ले ले!”
लेकिन मेरा दिमाग उसके लंबे और मोटे लंड को देख कर सहम गया था। एक बार फिर से मैंने उसकी गिरफ़्त से भागने की नाकाम कोशिश की और साथ ही मैंने अपनी टाँग चला कर अपने हाई हील सैंडल से उसके लंड पे वार करने की कोशिश की पर वो पहले ही संभल गया और मेरे सैंडल के हील की चोट सिर्फ़ उसकी जाँघ पे पड़ी। अपनी जाँघ पे मेरी हील से पड़ी खरोंच को देख कर वो बहुत गुस्से में आ गया और उसने मेरे सर को फिर से कार के हुड पे पटका और बोला, “साली अरवा ... अगर तूने हिलना बँद नहीं किया तो ऊपर वाले की कसम अबकी बार मैं अपना लंड तेरी इस कच्ची कुँवारी टाईट गाँड में घुसेड़ के उसका कचुम्बर बना दूँगा। अगर तू यह समझती है कि मैं झूठ बोलता हूँ तो अपने आप ही तस्सली कर ले!”
मैं बर्फ़ की तरह उस जगह पे ही जम गयी। “कहाँ चाहिये तुझे... चूत में या गाँड में?” उसका लंड मेरी गाँड की दरार मे चलने लगा, चुत और गांड दोनों छेदो को एक साथ सहला रहा था उसका मजबूत लंड.
“नहीं नहीं। प्लीज़ मेरी गाँड में मत डालो...!” मैं चिल्लाई।
“कहाँ चाहिए बोल ना रंडी चूत में य गाँड में?”
"बेचारा असलम भी तो ऐसे ही रो रहा था, रहम की भीख मांग रहा था तुझसे, तू उसे बचा सकती थी,
उस शख्स के लंड का दबाव मेरी गांड पर बढ़ता जा रहा था.
“नही…!” मैं रो पड़ी। मेरे आँसू मेरे गालों पे बहने लगे।
“मेरी चूत में... चूत में प्लीज़... मेरी चूत में… मेरी चूत में डालके उसे चोदो” मैं गिड़गिड़ाई। मेरे होंठ काँप गये उसे यह कहते हुए कि तुम मेरी चूत में अपना लंड डाल दो। वो अपना लंड मेरी गाँड से चूत के छेद तक नीचे-ऊपर ऊपर-नीचे कर रहा था। मैं घबरा गयी थी। उसने फिर से मेरा सर कस के पकड़ के कार के हुड से दबाके रखा था। एक बार फिर उसने अपने लंड के सुपाड़े को मेरी गाँड के छेद से दबाया।
मैं फिर चिल्लाई, “प्लीज़... मेरी गाँड नहीं… मेरी चूत में डालो!!!”
इस दौरान उसने मेरी चूचियों को कभी नहीं छोड़ा था और वो लगातर उन्हें दबाये जा रहा था। एक सेकँड रुकने के बाद उसने अपने लंड को मेरी चूत के मुँह पे सटा दिया और एक झटके के साथ उसके अंदर डाल दिया। उसके कुल्हों के झटके ने मेरे नीचे वाले हिस्से को कार के ऊपर उठा लिया था।
मैं जोर से चिल्ला उठी। उसने धीरे से फिर अपना लंड मेरी चूत से निकाला और फिर झटके से डाल दिया। उसने अब मेरे बाल छोड़ दिये थे और अपना हाथ मेरे कुल्हों पे रख दिया था। अब वो एक पागल हैवान की तरह मेरी चूत के अंदर बाहर अपना लंड पेल रहा था और मैं उसके हाथों में एक खिलौने की तरह खेली जा रही थी। उसकी आवाज़ें मुझे सुनाई दे रही थी। वो एक जंगली जानवर की तरह कराहा रहा था। वो ऐसे मेरी चूत का पूरा लुत्फ़ उठाये जा रहा था जैसे कि ज़िंदगी में पहले चूत चोदी ही ना हो।
“आआघहह आहहहघहह कुत्तिया देख मेरा लंड कैसे जा रहा है तेरी चूत में… देख वो कैसे फाड़ रहा है तेरी इस चूत को... देख रंडी देख।”
"असलम से भी ऐसे ही चुद रही थी ना तू, अपनी मर्ज़ी से "
उस शख्स के बार बार असलम नाम लेने से ये तो समझ आ गया था, ये जरूर असलम से ताल्लुख रखता है.
लेकिन इसे कैसे पता जो असलम और मेरे बीच हुआ था.
धच..... पच... पच.... उसके ताकतवर झटको ने मुझे असलम की सोच से बाहर ला फेंका.
मैंने बहुत कोशिश की कि उसको अपनी चुदाई में साथ ना दूँ पर मैंने ज़िंदगी में कभी खुद को इस कदर मुकम्मल महसूस नहीं किया था। मेरी चूत ने उसका तमाम लंड खा लिया था और फिर मुझे महसूस हुआ कि मेरी चूत ने मुझे धोखा देना शुरू कर दिया है और उसके लंड के आसपास एक दम सिकुड़ गयी है जैसे कि वो उसे पूरा चूस लेना चाहती हो। चुदाई की मस्ती का पूरा समँदर मेरे अंदर उमड़ पड़ा था। पता नहीं मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा था। अब उसने मुझे कार के बोनेट पे झुका के पूरी लिटा दिया और मेरी रसभरी चौड़ी चूत को तेजी से चोदने लगा। जब भी वो मेरे अंदर घुसता था तब मेरी चूत उसके लंड को गिरफ़्त में लेने की कोशिश करती थी और उसके आसपास टाईट हो जाती थी। हमारे भीगे जिस्मों के आपस में से टकराने ने मुझे बेहद चुदासी कर दिया था। उसकी आवाज़ अब एक घायल हुए भेड़िये जैसी हो गयी थी, जैसे उसे दर्द हो रहा हो।
“मममम..... आआआहहह..... बहुत मज़ा आ रहा है तुझे चोदने में...आहहह अरवा मैडम कितनी ही पढ़ी-लिखी आधुनिक दिखने वाली औरतों को चोदा है... आहहह पर तेरे जैसी कोई नहींईंईंईं !!!”
वो बड़ी तेज़ रफ़्तार से अपना मोटा काला लंड मेरी चूत की गहराईयों में पेल रहा था। जब-जब वो अंदर पेलता था मेरा जिस्म कार के हुड पे ऊपर खिसक जाता था। उसके लंड का भार मेरी क्लिट को मसल रहा था। मेरी सूजी हुई क्लिट में अजीब सी चुभन और सेनसेशन थी।
“ओहहह नहींईंईंईं आहहहहह... ओहह... ओहहहह अल्लाहहहह...!” मैं झड़ने लगी थी और मेरी चूत थरथराने लगी थी। “आह हा हाह हाह हाहाह...!”
उसे पता चल गया था कि मैं झड़ चुकी हूँ और वो हँसने लगा।
“मुझे मालूम है तुझ जैसी चुदासी औरतों को बड़े और मोटे लंड बहुत पसँद होते हैं...! हर शहरी आधुनिक औरत को लंड अपनी चूत में लेके अपनी चूत का भोंसड़ा बनाना पसँद होता है.. तू उनसे कोई अलग नहीं है। तू भी सब मॉडर्न औरतों की तरह चुदासी है। साली अगर तुम औरतों को मेरे जैसे देहातियों के तँदुरुस्त लंड मिल जावें तो तुम हमारी राँडें बन के रहो। तुझे तो अपने आप पे शर्म आनी चाहिये रंडी कि मेरे इस लंड के सैलाब में तेरी चूत जो झड़ गयी”
मुझे खुद से घिन्न आने लगी और दिल ही दिल उसपे बहुत गुस्सा आया कि उसने मेरी चूत चोद के उसे झड़ने पे मजबूर कर दिया। उसने अपना लंड मेरी चूत में से निकाल के मेरी गाँड पे रख दिया। मैं तो जैसे नींद से जाग उठी और फिर काँप गयी जब मेरी गाँड के छेद पे धक्क लगा।
“यही तो सवाल था मेरी राँड... तुझे मेरा लंड अपनी चूत में पसँद है या फिर मैं उसका नमूना तेरी इस कसी हुई गाँड को भी दिखाऊँ... बोल कुत्तिया बोल!”
“नहींईंईंईंईंईं... प्लीईईईईज़ नहीं मेरी गाँड नहीं...!” चिल्लायी।
“क्यों साली। टाईट साड़ी और ऊँची हील की सैंडल पहन के बहुत गाँड मटका-मटका के चलती है... ले ना एक बार मेरा मूसल अपनी गाँड में... तेरी गाँड को भी पता चले कि ऐसा मस्त लंड क्या होता है!” उसने गुर्रा के कहा।
मैं उसके सामने काफी गिड़गिड़ायी। वो बेशर्मी से हँसते हुए मेरे मम्मों को मसलता रहा। मेरी चूंचियाँ जैसे हिमालय की चोटियों की तरह तन गयी थी। उसने चूचियाँ गरम कर के ऐसी कठोर बना दी थीं कि अगर ब्लाऊज़ पहना होता तो शायद उसके सारे हुक टूट गये होते।
“प्लीईईई...ज़ज़ मेरी चूत में डालो अपना काला मोटा लंड… प्लीज़ उसे फाड़ दो… बना दो उसे भोंसड़ा प्लीज़... लेकिन मेरी गाँड मत मारो। मैं तुम्हारी राँड बनके रहुँगी। तुम कहोगे तो तुम्हारे दोस्तों से भी चुदवाऊँगी लेकिन मेरी गाँड को बख़्श दो... प्लीज़ मेरी चूत को चोदो। मुझे बहुत पसँद है की तुम्हारा लंड मेरी चूत में जाके उसका भोंसड़ा बना दे... प्लीज़ मुझे अपने लंड से चोदो... मेरी चूत को चोदो...!” मुझे पता नहीं एक औरत कैसे यह सब कह सकती है किसी अजनबी मर्द को कि वो अपने लंड से उसकी चूत का भोंसड़ा बन दे। पता नहीं मेरे मुँह से ये अल्फाज़ कैसे निकल आये... क्या यह मेरा डर था या फिर मेरी चूत ही थी जो अपील कर रही थी।
“बढ़िया मेरी राँड। मैं यही सुनना चाहता था! वैसे भी तू मेरे दोस्त से तो चुदवा ही चुकी है साली वो भी अपनी मर्ज़ी से ”
और उसने एक ही झटके में अपने काले मोटे लंड को मेरी फुदकती हुई चूत में घुसा दिया। उसके ज़ोरदार झटके ने मेरी सारी हवा निकाल दी थी। ऐसा लगा कि उसका लंड सीधा मेरे गर्भाशय को छू रहा हो। वो अब ज़ोर-ज़ोर से मेरी चूत के अंदर-बाहर हो रहा था। उसके लंड ने मेरी चूत को एकदम चौड़ा कर दिया था और मेरी चूत उसके इर्द-गिर्द मियान के जैसे चिपक गयी। उसकी जोरदार चुदाई ने मेरी चूत को फलक पे पहुँचा दिया था। “पुच्च.. पुच.. पुच्च...” जैसी आवाज़ें आ रही थीं जब उसका लंड मेरी चूत से अंदर-बाहर हो रहा था।
“आहहहह आहहहह आहहह अरवा मैं अब तेरी चूत को अपने लंड के गाढ़े रस से भरने वाला हूँ! आज असलम का बदला पूरा होगा हाहाहाहा....” वो गुर्राया।
“प्लीईईईईईईज़ ऐसा मत करनाआआआआ मैं तुम्हारा सारा रस पी लूँगी प्लीज़ मेरी चूत में अपना रस मत डालना… मैं प्रेगनेंट होना नहीं चाहती हूँ!”
"साली तुम चुदासी शहरी औरतों का यही है, चुदना भी है लेकिन खुद पे कोई शिकन नहीं आनी चाहिए, खुद को हमेशा पवित्र ही दिखाना है "
उसका लंड अब बिजली कि तरह मेरे अंदर-बाहर हो रहा था और जोर-जोर से अवाज़े निकालता था। मेरी चूत अपने चूत-रस से एक दम गीली हो गयी थी और क्लिट तो मानो सूज के लाल-लाल हो गयी थी।
मेरा चूत-रस चू कर मेरी जाँघों पे बह रहा था और बारिश के पानी में मिल रहा था। अब उसने मुझे मेरे बालों से खींच के कार के हुड से नीचे उतारा और अपने सामने खड़ा कर दिया। मैं अपने आप ही उसके कुल्हों को अपनी और खींच रही थी और उसे झटके दे रही थी।
“आहहहह... आहहह और तेज... और तेज अरवा ... और तेज चोद मुझे... और तेज!”
मैं जैसा वो कह रहा था वैसा करने लगी और एक राँड की तरह झटके देने लगी। मुझे खुद पे बेहद शर्म आने लगी थी। मैं एक राँड बन गयी थी... उसकी राँड… मैं क्यों नहीं रूकी… मैं रुकना नहीं चाहती थी।
“मैं अब झड़ने वाला हूँउँउँ छिनाल मैं तेरी चूत में झड़ने वाला हूँ मेरे साथ तू भी झड़ जाआआआ...!”
उसने कस के अपना एक हाथ मेरी कमर में डाल के एक जोर का झटका दिया और उसका लंड जैसे कि मेरे गर्भाशय तक पहुँच गया।
“आआआहह... आआआहहह...!” वो चिल्लाया और मुझे थोड़ा सा पीछे ठेल के मेरी गाँड कार के बोनेट पे टिका दी।
जब उसने अपने रस की पहली धार मेरी चूत की गहराई में छोड़ दी तो उसकी पहली धार के साथ ही मैं भी झड़ गयी। “आआआहहहह.... आआआघहह..ओहहह... नहींईंईंईं...!” मेरी चूत उसके लंड के आसपास एकदम सिकुड़ गयी। उसके लंड-रस की दूसरी धार भी मुझे मेरे चूत के अंदर महसूस हुई।
जब उसका लंड अपने रस से मेरी भूखी चूत को भर रहा था, तब वो जोर-जोर से दहाड़ रहा था और चिल्ला रहा था। वो लगातार अपना रस मेरी चूत में डाल रहा था। मेरी टाँगों में ज़रा भी ताकत नहीं बची थी और मैं अब बोनेट पे टीकी हुई थी। मेरी टाँगें और बाहें हवा में झूला खा रही थीं और उसका मोटा काला लंड मेरी चूत में अपना रस भर रहा था। वो आखिरी बार दहाड़ा और मेरे ऊपर हाँफते हुए गिर गया। वो वहाँ बोनेट पे मेरे ऊपर उसी हालत में कुछ पल पड़ा रहा और उसका लंड धीरे-धीरे मेरी चूत में से अपने आप बाहर आने लगा। उसका गरम-गरम लंड-रस मेरी चूत में से बह कर बाहर टपक रहा था।
“मममम.... सच मुच साली तू सबसे चुदास निकली... तेरे जैसी कई औरतों को चोदा है लेकिन तेरे जितना मज़ा मुझे किसी ने नहीं दिया...!” वो हँसते हुए कहता गया और अपनी पैंट पहन के मुझे नंगी हालत में छोड़ के चल दिया।
मैंने तब अपने कपड़ों की खोज की। ब्लाऊज़ और पैंटी के तो उसने पहनने लायक ही नहीं छोड़ा था, फट कर चिथड़े ही हो गये थे। मैं अपना बरसात में भीग हुआ पेटीकोट पहना और फिर किसी तरह गीली साड़ी लपेटी। चूत तो अंदर नंगी ही रह गयी थी पैंटी के बिना। फिर अपना पल्ला सीने पे ले आयी। नीचे तो सिर्फ़ ब्रा थी। फिर कार मे बैठ के चल पड़ी। मेरी नजरों के सामने असलम का चेहरा था.
असलम के साथ उस शाम ऑफिस के बाथरूम मे बिताये वो पल दौड़ रहे थे जब असलम का तगड़ा मोटा लंड मेरी चुत को रोंद रहा था.
मै झड़ने की कगार पर थी, की तभी किसी ने बाथरूम का दरवाजा खोल दिया,.
मैंने मौके की नजाकत देखते हुए जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया.
और क्या करती मै, इज़्ज़तदार घर की औरत थी, पति था, बच्चा था.
आनन फानन मे पुलिस बुला ली गई, मेरे बयांन दर्ज हुए, असलम मेरे बलात्कार के इल्जाम मे गिरफ्तार हो चूका था.
मुझे अफ़सोस था लेकिन समाज मे इज़्ज़त बनाये रखने के लिए ये भी जायज था.
अगले सप्ताह सुनने मे आया की असलम ने आत्मगीलानी मे आत्महत्या कर ली थी.
मेरी कार बारिश मे दौड़ी जा रही थी, मेरी चुत की आसानीय पीड़ा मुझे आज कम महसूस हो रही थी.
आँखों से आंसू बहे जा रहे थे.
लेकिन बस एक बात समझ से परे थी "आखिर वो कौन था?"
फिर मिलेंगे अरवा के किसी नये किस्से के साथ.
!!! समाप्त !!!
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