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नागमणि -19

 चैप्टर -3 नागमणि कि खोज अपडेट -19

रंगा कि रिहाई


दरोगा उस स्त्री को सँभालने कि कोशिश करता है जो कि लड़खड़ा रही थी, दरोगा उसके एक हाथ को उठा के अपने कंधे पे रखता है ऐसा करने से स्त्री के बड़े स्तन दरोगा के बगल मे धंस जाते है उसकी सांसे बेकाबू होने लगती है वो  जैसे ही जोर से सांस खिंचता है वैसे ही एक तेज़ मादक गंध उसके बदन मे समा जाती है.

स्त्री के हाथ ऊपर करने से कांख से निकली मादक पसीने से भीगी गंध थी जो कि अच्छे अच्छे मर्दो का लंड निचोड़ दे.

दरोगा तो सुबह से ही लंड खड़ा कर के बैठा था ऊपर से शराब का नशा उसे कुछ समझने ही नहीं दे रहा था.

वो कंधे से सहारा दिए अपने केबिन कि तरफ चल पड़ता है, बीच गालियारे से गुजरते वक़्त रंगा कि नजर स्त्री पे पड़ती है तो उसकी बांन्छे खिल उठती है.

स्त्री कि नजर भी रंगा से मिलती है दोनों के बीच आँखों ही आँखों मे बात हो गई थी होंठो पे मुस्कराते तैर गई थी.

रंगा :- आ गई मेरी जान रुखसाना

रुखसाना :- हाँ मालिक आज रात आप आज़ाद है.

इशारो मे हुई बात पे दरोगा का कतई ध्यान नहीं था.

वो रुखसाना को लिए अपने कमरे मे पहुंच जाता है और उसे अपने सामने कुर्सी पे बैठा देता है

रुखसाना :- दरोगा साहेब मेरा क्या होगा अब? मेरे गांव मे मालूम पड़ेगा तो क्या इज़्ज़त रह जाएगी.

नहीं नहीं.... मै ऐसा नहीं होने दूंगी मै आत्महत्या ही कर लेती हूँ.

रुखसाना खुद से बड़बड़ा रही थी.

दरोगा :- कैसी बात कर रही है आप? आपके साथ बलात्कार थोड़ी ना हुआ है आप बच गई है डरिये मत मै हूँ ना.

ऐसा बोल के दरोगा रुखसाना के पास आ के खड़ा हो जाता है उसका खड़ा लंड रुखसाना के कंधे पे छू रहा था जिसका भरपूर अहसास रुखसाना को भी था परन्तु वो अनजान बनी हुई थी.

दरोगा :- तुम यही रुक जाओ आज रात, सुबह मै खुद तुम्हे तुम्हारे गांव छोड़ आऊंगा.

अभी रात हो चुकी है मौसम भी बिगड़ता जा रहा है.

रुखसाना डरी सहमी सी हाँ बोल देती है.

रुखसाना आँखों मे नमी लिए खुद के फटे कपड़ो को देखती, जिसमे सेसपाट पेट मे धसी नाभी और गोरे गोरे बड़े स्तन झाँक रहे थे फिर उसकी नजर कभी दरोगा कि तरफ देखती जैसे कहना चाह रही हो कि फटे कपडे मे रात कैसे गुजारू?

दरोगा उसकी नजरों को समझ जाता है.

दरोगा :- ऐसा करो ये फटे कपड़े चेंज कर लो यहाँ थाने मे कपड़े तो नहीं है परन्तु ये मेरी लुंगी है शयाद तुम्हारा काम बन जाये.

रुखसाना निरीह आँखों से दरोगा कि और देखती है और कुर्सी से उठ खड़ी होती है, दरोगा लुंगी हाथ मे लिए खड़ा था अपना हाथ आगे बड़ा देता है.

रुखसाना लुंगी लिए एक परदे के पीछे चली जाती है.

परदे के पीछे जा के एक नजर दरोगा पे डालती है जो अपने खड़े लंड को मसला जा रहा था

रुखसाना :- तीर सही जगह लगा है हेहेहे... एक कातिल हसीं चेहरे पे दौड़ जाती है.

रुखसाना धीरे से अपनी कमीज़ और सलवार निकाल देती है और पदर्दे से बाहर सरका देती है सरसरहत से दरोगा कि नजर परदे पे चली जाती है रुखसाना के फटे मेले कुचले कपड़े वही जमीन चाट रहे थे.

तभी कही से हवा का ठंडा झोंका आता है और पर्दा उड़ता चला जाता है रुखसाना परदे कि और पीठ किये सम्पूर्ण नंगी खड़ी थी.

जो दृश्य दरोगा के सामने प्रस्तुत था वो दृश्य किसी मामूली इंसान कि जान ले सकती थी, काले लम्बे बाल पीठ पे बिखरे थे नीचे पतली सी कमर नीची जाती नजर बड़े से गांड रुपी पहाड़ पे टिक गई थी.

एक दम गोरी चिकनी गांड, बिल्कुल गोल मदमस्त गांडदरोगा वही जमा रह गया था.

तभी रुखसाना को अपनी खुली गांड पे हवा का ठंडा झोंका महसूस होता है वो चौक के पीछे देखती है पर्दा उड़ा हुआ था पीछे दरोगा कुर्सी पे किसी मुर्दे कि तरह पड़ा था

रुखसाना शर्म से औतप्रोत पर्दा वापस खींच देती है, दरोगा जैसे होश मे आता है उसके लिए तो ऐसा था जैसे किसी ने उसके प्राण वापस उसके शरीर मे डाल दिए हो उसकी जान रुखसाना ने बचा ली थी.


वीरप्रताप के थाने से बहुत दूर शहर मे दरोगा कि पत्नी आज खूब सज धज के तैयार हुई थी, उसे अपने पति के वापस लौटने कि खुशी थी आज सुलेमान को  विशेष तोहफा देना था क्युकी इतने सालो मे सुलेमान ने दरोगा कि कमी नहीं खलने दी थी कभी कलावती को....खूब मन लगा के सेवा कि थी सुलेमान ने.

आज वक़्त आ गया था कि इस सेवा को वापस चुकाया जाये.

सुलेमान रसोई घर मे रोटी बेल रहा था, उसके मजबूत हाथ पसीने से चमक रहे थे.

सुलेमान दिखने मे लम्बा चौड़ा काला पुरुष था. मजबूत और बड़े लंड का मालिक हमेशा सफ़ेद मुसलमानी टोपी ही पहने रखता. उम्र मात्र 23 साल बांका नौजवान था सुलेमान.

अभी भी एक गन्दी बनियान, लुंगी और सफ़ेद टोपी पहने रोटी बेल रहा था.

कलावती दरवाजे के पास आ के खाँखारती है...

उम्मम्मम..... रोटी बेल रहे हो सुलेमान?

सुलेमान तो कलावती कि काया ही देखता रह जाता है तरासा हुआ जिस्म सिर्फ साड़ी मे लिपटा हुआ था माथे पे लाल बिंदी, मांग मे सिदूर, हाथो मे चुडी, कानो मे बाली, गले मे दरोगा वीरप्रताप के नाम का मंगलसूत्र, बिल्कुल संस्कारी औरत लग रही थी कलावती.

सुलेमान जो कि इसे हज़ारो बार देख चूका था फिर भी उसके जिस्म ने कलावती कि काया देख काम करने से मना कर दिया था उसके हाथ रोटी बेलते बेलते वही रुक गये थे.

कलावती अपनी सारी का पल्लू गिरा देती है, शर्म से सर झुका लेती है उसके मोटे चिकने गोरे दूध छलक पड़ते है.

वो मादक चाल से चलती हुई सुलेमान के पास पहुंच जाती है इतनी पास कि उसकी मादक गंध सीधा सुलेमान कि नाक मे घुस रही थी,

कलावती :- ऐसे क्या देख रहा है सुलेमान मेरे लाल, पहली बार देखे है क्या?

सुलेमान :- ज़ी ज़ी ज़ी.... नहीं मालकिन

आप खूबसूरत लग रही है.

कलावती हस देती है "हट पागल झूठ बोलता है अभी देखती हूँ "

ऐसा बोल वो लुंगी के अंदर हाथ डाल देती है उसके हाथ मे एक गरम लोहे का सख्त 9" का रॉड हाथ लगता है.

कलावती :-तू तो सही बोल रहा है रे.... मेरी खूबसूरती कि गवाही तेरा ये कला लंड दे रहा है.

ऐसा बोल वो सुलेमान के लंड को पकड़ के ऐंठ देती है.

'आअह्ह्हह्म... मालकिन क्या कर रही हो दर्द होता है"

कलावती :- अच्छा बड़ा दर्द होता है भूल गया जब तूने ये मुसल मेरी चुत मे डाला था पूरी चुत फाड़ के रख दी थी बिल्कुल भी दया नहीं दिखाई थी तूने.


सुलेमान झेप जाता है.

कलावती :- शर्माता क्या है मेरी इज़्ज़त लूट के आज शर्माता है बोल क्यों चोदा था तूने मुझे? बोल

लंड को और जोर से नोच लेती है.

वो सुलेमान  के अंदर का जानवर जगा रही थी.

सुलेमान  :- मेरी रण्डी मालकिन... साली मुझसे सुन ना चाहती है तो सुन...

ऐसा बोल के वो अपनी लुंगी खोल देता हैऔर कलावती को घुटने के बल बैठा के उसके मुँह पे बैठ जाता है.

कलवाती जीभ बाहर निकले कभी सुलेमान कि काली गांड चाट रही थी तो कभी काले बड़े टट्टे.

साली रण्डी  तेरा दरोगा पति नामर्द है वो तेरी जैसी चुद्दाकड़ औरत कि प्यास नहीं बुझा पाता.

जब वो चला गया अपना फर्ज़ निभाने तब तू साली बदन कि गर्मी से सुलगने लगी.... ऐसा बोलते हुए सुलेमान अपने टट्टो को बुरी तरह कलावती के होंठो पे  रगड़ रहा था, तूने एक दिन मुझे मूतते हुए मेरा बड़ा लंड देख लिया जब से ही तू  चुदने को तैयार थी मुझसे, फिर तूने एक दिन बाथरूम मे गिरने के बहाने मुझे अंदर बुला लिया मै भी तेरा नंगा कामुक बदन देख के बहक गया साली.... चूस मेरे टट्टे.

पहली बार तू मुझसे बाथरूम मे ही चुदी थी... उसके बाद ये लंड हमेशा तेरी सेवा मे ही है छिनाल मालकिन.

अपनी कामुक गाथा सुलेमान के मुँह से सुन के कलावती गरमा गई उसने मुँह खोल पूरा का पूरा लंड मुँह मे भर लिया...

और सर आगे पीछे करने लगी.

बहादुर दरोगा कि बीवी यहाँ लंड चाट रही थी..


और यहाँ खुद दरोगा  कामवासना मे झुलस रहा था.

अभी अभी जो उसने देखा था उस पे यकीन करना मुश्किल था, दरोगा बरसो से प्यासा था आज तो खुद कुआँ चल के उसके पास आया था.

रुखसाना लुंगी लपेटे बहार आ जाती है उसकी चाल और नजर मे शर्माहाट  थी, लुंगी ज्यादा बड़ी नहीं थी स्तन से जाँघ तक के हिस्से को ढकी हुई थी, रुखसाना का ऊपरी हिस्सा और जाँघ से निचला हिस्सा सम्पूर्ण नग्न था.

कमरा मादक पसीने कि गंध से महक उठा था इस महक मे सिर्फ कामवासना थी.

दरोगा उठ खड़ा होता है "तुम यही बैठो मै आया "

दरोगा लगभग भागता हुआ बाहर को आता है वहाँ शराब की आधी भरी बोत्तल पड़ी थी "मुझे जल्दी ही कुछ करना होगा" दरोगा कामवासना मे एकदम चूर था, एक हाथ से लंड पकड़े दूसरे हाथ से बोत्तल थामे दरोगा कमरे कि और चल पड़ता है.

दरोगा :- आप यहाँ सुरक्षित है मोहतरमा, वैसे आपका नाम क्या है?

"ज़ी रुखसाना "

दरोगा :- आप बुरा ना माने तो एक पैग ले लू मौसम थोड़ा ठंडक लिए हुए है और मुझे रात भर ड्यूटी करनी है जागना भी जरुरी है ऐसा कह रुखसाना कि तरफ मुस्कुरा देता है.

रुखसाना अभी भी खुद को ढकने कि नाकाम कोशिश कर रही थी जिस वजह से कभी उसके हाथ स्तन पे जाते तो कभी पेट से होते हुए जाँघ को मसलते, ऐसा लगता था जैसे वो खुद अपने शरीर से खेल रही हो.

दरोगा ये दृश्य देख के आनंदित हुए जा रहा था उसे शराब का नशा हो चूका था आँखों मे लाल डोरे  तैर रहे थे फिर भी कामवासना मे भरा दरोगा एक पैग बना पूरा एक घूंट मे पी जाता है.

आअह्ह्ह...... अब आई ना गर्मी

रुखसाना :- ज़ी वो मै क्या.... मै... मुझे ठण्ड लग रही है

दरोगा :- मेरे पास तो कपडे नहीं है ओर कोई भी..?

रुखसाना :- ऐसे तो मै ठण्ड से मर ही जाउंगी दरोगा साहेब.

दरोगा :- तो थोड़ी तुम भी पी लो

रुखसाना :- ये कैसी बात कर रहे है दरोगा ज़ी आप? थोड़ी नाराज होती है.

दरोगा :- अरे मोहतरमा मै जबरजस्ती नहीं कर रहा इस से ठण्ड दूर होती है. लीजिये पी लीजिये.शराब से भरा ग्लास रुखसाना कि ओर बड़ा देता है.

रुखसाना हाथ बड़ा देती है ओर ग्लास थाम लेती है.

दरोगा ओर रुखसाना आमने सामने कुर्सी पे बैठे थे, बीच मे टेबल थी.

रुखसाना ग्लास को नाक के पास लाती है परन्तु सूंघते ही दूर हटा लेती है.

छी दरोगा साहेब कैसी अजीब बदबू आ रही है मै नहीं पी पाऊँगी मै ठण्ड मे ही ठीक हूँ.

परन्तु दरोगा मन मे सोच चूका था कि इसे पिलानी ही है, यही सही मौका है इस सुन्दर स्त्री को भोगने का.

शराब ओर शबाब के नशे मे दरोगा अपनी प्रतिज्ञा, फर्ज़ भूल गया था,

वो अपने सामने बैठी मजबूर मगर खूबसूरत औरत को भोगना चाहता था,आज कामवासना फर्ज़ ओर सेवा से आगे निकाल आई थी.

दरोगा :- नाक बंद कर के पी लीजिये एक बार मे कुछ नहीं होगा.

रुखसाना हिम्मत करती है ओर ग्लास मुँह मे लगा पूरी शराब मुँह मे डाल लेती है. अजीब सा मुँह बना के सर नीचे को झुका देती है.

रुखसाना वापस  मुँह ऊपर किये, मुँह पोछती है  "छी कितनी गन्दी थी ये शराब  "

मर ही जाती मै तो.

दरोगा को यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो अपनी योजना. मे कामयाब हो गया है "एक ओर लो रुखसाना देखना फिर कैसे गर्मी अति है "

रुखसाना का दिमाग़ चकरा रहा था फिर भी उसे गर्मी क अहसास से अच्छा लग रहा था वो अगले पैग के लिए मना नहीं कर पाती, ओर झट से मुँह लगाए एक बार मे गटक के मुँह नीचे झुका लेती है,दारू का कड़वा घुट निगलने मे उसे समस्या हो रही थी.


दो पैग पीने के बाद रुखसाना कि आवाज़ भरराने लगी थी उसका सर घूम रहा था उसके बदन मे पसीने कि बुँदे दौड़ गई थी.

आअह्ह्ह....  दरोगा साहेब क्या हो रहा है मुझे?

दरोगा :- कुटिल मुस्कान के साथ कुछ नहीं रुखसाना गर्मी आ रही है बदन मे देखो कैसे पसीना आ गया है तुम्हे

ऐसा बोल रुखसाना के नंगे कंधे पे हाथ रख देता है.

नशे मे घिरती रुखसाना को ये स्पर्श बड़ा ही मादक लगता है वैसे भी रुखसाना कामवासना से भरी स्त्री थी उसे उत्तेजित होने मे वक़्त नहीं लगता था, हो भी ऐसा ही रहा था.

कहाँ वो दरोगा को फ़साने आई थी.... कहाँ खुद दरोगा कि चाल मे घिरती चली जा रही है...



तो क्या रंगा आज़ाद नहीं हो पायेगा?

रुखसाना तो खुद नशे मे डूबती जा रही है?

दरोगा कि कामवासना उसे बचा पायेगी या ले डूबेगी?

********




रात गहरा गई थी सभी लोग अपनी अपनी कौशिश में लगे हुए थे

रुखसाना रंगा को छुड़ाने की फिराक में थी वहीं विष रूप ठाकुर की हवेली में नागमणी की खोज जारी थी

उसने पूरी हवेली छान मारी थी परन्तु नागमणी का कोई नामोनिशान नहीं था ,

भूरी काकी के कमरे के पास में ही चोर मंगूस खोज में लगा था कि उसकी नजर एक काले साए पे पड़ती है मंगुस सांस रोके खड़ा हो जाता है ,

वो साया इधर उधर देखता है और हवेली के पिछ्ले हिस्से की और चल पड़ता है

चोर मंगूस- ये इतनी रात को हवेली से बाहर कौन जा रहा है ?

मुझे पता लगाना होगा ये सोच मंगूस भी उस साए के पीछे लगा जाता।

जरूर ये साया किसी औरत का है ,साए के हिलते स्तन और मतकती गांड इस बात के सबूत थे कि साया किसी मादक भारी हुई स्त्री का ही है।

साया हवेली से बाहर निकाल के चलता ही जा रहा था दूर बहुत दूर ,

मंगूस- कौन है ?जब से चली ही जा रही है ,ये तो काली पहाड़ी का सुनसान इलाका आ गया चक्कर क्या है ?

वो साया एक गुफा नुमा कमरे में प्रवेश करता चला जाता है ,मंगूस भी दीवार के सहारे चिपक के अंदर झांकने की कौशिश करता है साफ कुछ दिख नहीं रहा था शायद सुनाई से सके।

अंदर गुफा में एक पूर्ण नग्न व्यक्ति तपस्या की अवस्था में बैठा हुआ था उसका बड़ा सा काला भयानक लंड चट्टान से नीचे की तरफ झुल रहा था।

साया :- हम्ममम।।  प्रणाम स्वामी महान तांत्रिक उलजुलूल

इस नाचीज़ का प्रणाम स्वीकार करे ।

तांत्रिक उलजुलुल इस आवाज से भलीभांति परिचित था वो तुरंत बेचैनी से आंखे खोल देता है।

तांत्रिक :- तू....तू....तुम....इतने सालो बाद ? तांत्रिक की आंखे उस साए को देख पूरी बाहर को आ गई थी।

वो हद से ज्यादा हैरान था।

साया :- हां मेरे स्वामी मै..आपकी धर्म पत्नी कामरूपा

तांत्रिक उठ खड़ा होता है "चुप कर रंडी मत कह मुझे अपना स्वामी अपनी गंदी जबान से वरना जबान खींच लूंगा तेरी "

कामरूपा:- क्यों नाराज होते है प्राणनाथ ? वो बला की खूबसूरत औरत एक कामुक मुस्कान बिखेर देती h

और अपनी मादक चाल चलती हुई तांत्रिक उल्जुलुल के पास पहुंच जाती है।

तांत्रिक उस अपने इतने पास पाकर पिघले लगता h।

बहार मंगु्स ये सब देख सुन के हैरान था "मादरचोद ये चल क्या रहा है यहां में नागमणी ढूंढ रहा हूं और यह अलग ही चोद चल रही है "

तांत्रिक :- दूर रह मुझसे नापाक पापी औरत जरूर तुझे कोई काम होगा मुझसे तभी मेरे पास आई है ?

कामरूपा:- आप तो सब जानते h स्वामी फिर भी पूछते है ?

तांत्रिक:- तू तो हजार साल पहले मुझे छोड़ के उस नीच पापी सर्पटा के पास चली गई थी, तू मेरे सच्चे प्यार से खुश नहीं थी

तेरे जाने के बियोग में मैंने अपना पूरा जीवन इस तांत्रिक जीवन में ही लगा दिया।

कामरूपा:- मै क्या करती मुझे सदा जवान रहना था और ऐसा सिर्फ सर्पटा ही कर सकता था.

तुम मे वो बात नहीं जो सर्पटा मे है उसका वीर्य मुझे जवान रखता है, तुम्हारे वीर्य मे ऐसी ताकत कहा? सर्पटा के वीर्य के बिना देखो मै कैसे बूढ़ी होती जा रही हु.

उलजूलुल बुरी तरह शर्मिंदा था शर्म से उसका चेहरा नीचे झुक गया था


तांत्रिक:-नीच स्वार्थी औरत क्या चाहती हो तुम ? क्या सिर्फ मेरी मर्दानगी का मजाक उड़ाने ही आई हो इतने सालो बाद ?

कामरूपा:- नहीं स्वामी.....मुझे नागमणी चाहिए ।मुझे उसका पता बताओ कहा है नागेन्द्र और उसकी नागमणी ?

तांत्रिक हैरान था " क्या??? क्यों चाहिए तुम्हें नागमणी ?

और तुम तो मुझसे भी बड़ी तांत्रिक हुआ करती थी खुद क्यों नहीं ढूंढ लेती मेरे पास आने का क्या तात्पर्य है ?

कामरूपा:- सर्पटा के लिए

तांत्रिक :- क्या?? डर और आतंक से उलजुलूलू की आंखे कटोरे से बाहर आ गई थी.

ये ये ये...क्या कह रही हो तुम? सर्पटा तो मर चूका है वीरा ने खुद अपनी बहन का बदला दिया था उस से,उस का सर धड से अलग कर दिया था.

कामरूपा:-हाहाहाहाहा...... मेरे होते ऐसा कैसे हो सकता था,मत भूलो की सर्पटा साँपो का राजा है महाशक्ति धारक है,वीरा के जाते ही मै झरने के किनारे पहुंच गई थी,जहा सर्पटा का धड तड़प रहा था उसमे अभी प्राण बाकि थे,मेरी सारी शक्ति सर्पटा को जिंदा करने में चली गई ,सर्पटा जी तो उठा परन्तु उसमे रत्तीभर शक्ति भी नहीं बची थी.

मुझे उसका वीर्य चाहिए था परन्तु वो इस हालत मे ही नहीं है की सम्भोग कर सके.

मुझे जवान होना है उलजुलूल मुझे जवान होना है मुझे उस नागमणि का पता बताओ.


तांत्रिक:- मुर्ख औरत तुझे पता है तू क्या बोल रही है,तेरी हवस और इच्छा क्या कहर ढाएगी पता है तुझे?

कामरूपा :- मुझे कुछ नहीं पता मुझे बस अपनी जवानी चाहिए.

तांत्रिक :- ऐसा नहीं हो सकता,सर्पटा की शक्ति वापस आ गई तो वो दुनिया मे कोहराम मचा देगा,मानव जाती का सम्पूर्ण विनाश कर देगा सिर्फ सर्प प्रजाति है रह पायेगी धरती पे.

कामरूपा भी जिद पेअड़ी थी और यदि कोई औरत जिद पे आ जाये तो कोई कुछ नहीं कर सकता...

कामरूपा :- मुझे लता है मेरे पतिदेव तुम आसानी से नहीं मानोगे.

मै भी जानती हु तुम्हारी कमजोरी..

ऐसा बोल कामरूपा अपनी ब्लाउज एक ही झटके मे खोल फेंकती है उसके मदमस्त सुडोल बड़े स्तन बाहर को छलक जाते है.

पीछे मंगूस नंगी पीठ देख के हैरान था गोरी एक दम चिकनी कैसी हुई पीठ और कमर उसके निचे लहंगे मे कैद बड़े से हिलती गांड.

आगे उलजुलूल की भी हालत ठीक नहीं थी वो सालो बाद अपनी पत्नी को इस रूप मे देख रहा था,भले कामरूपा उसे छोड़ के चली गई थी परन्तु उलजुलूल के मन मे कामरूपा ही बस्ती थी.

उसका जवान जिस्म मदमस्त अंग चोड़े चूतड.

बड़े स्तन चिकना पेट,गहरी नाभि आज भी कामरूपा किसो अप्सरा से काम नहीं है.

"नहीं नहीं...ये मै क्या सोच रहा हु मै सन्यास ले चूका हु,ये पाप है "

तांत्रिक आज खुद से लड रहा था..


उधर थाने मे रुखसाना नशे और मदहोशी से लड़ रही थी,वो खुद को सँभालने की भरसक कोशिश कर रही थी परन्तु दरोगा की छुवन उसे वापस मदहोशी की खाई मे धकेल देती...


बने रहिये कथा जारी है....



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