अपडेट -2
चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े अमूमन सभी चिकित्सको ने कभी आकस्मात तो कभी किसी विशेष परिस्थिति के तेहेत सरलतापूर्वक अपने मरीज़ को वस्त्र-विहीन देखा होगा मगर ड्र. ऋषभ का सेवा-क्षेत्र "यौन विज्ञान" होने के कारण अक्सर उसके क्लिनिक में औरतों की फुल वेराइटी मौजूद रहती थी या यूँ कहना ज़्यादा उचित होगा कि यदि औरतों को क्लासीफ़ाई किया जाता तो शुरू करने के लिए उसका क्लिनिक एक अच्छी जगह माना जा सकता था क्यूँ कि यहाँ हर उमर की, हर साइज़ की, हर धरम की औरत आसानी से देखने मिल जाया करती थी. अपने से-क्षेत्र में महारत हासिल करने के उद्देश्य से उसने जवान, अधेड़, बूढ़ी लगभग सभी क़िस्मो की चूतो का बारीकी से अध्ययन किया था. उनका मान्प, व्यास, कोण, लंबाई, चौड़ाई इत्यादि हर तबके की चूत का मानो अब वह प्रकांड विद्वान बन चुका था.
यह तथ्य कतयि झूठा नही की वर्तमान में जितनी भीड़ नॉर्मल एमबीबीएस डॉक्टर'स के क्लिनिक पर जमा होती है उससे कहीं ज़्यादा बड़े हुज़ूम को हम एक सेक्शोलजीस्ट के क्लिनिक के बाहर पंक्तिबद्ध तरीके से अपनी बारी का इंतज़ार करते हुवे देख सकते हैं. आज के वक़्त का शायद हर इंसान (नर हो या मादा) यौं रोग की गिरफ़्त में क़ैद है, वजह भ्रामक विग्यापन हों या झोला छाप चिकित्सकों की अनुभव-हीन चिकित्सा जिनके बल-बूते पर निरंतर लोग गुमराह होते रहते हैं और अंत-तह सारी शरम, संकोच भुला कर उन्हें किसी प्रोफेशनल सेक्शोलॉजिस्ट के पास जाना ही पड़ता है.
"अति शर्वत्र वर्जयेत " घनघोर अश्लीलता के इस युग में कोई हस्त्मैतुन की लत से परेशान है तो किसी के वीर्य में प्रजनन शुक्रानुओ का अभाव है, कोई औरत मा नही बंन सकती तो किसी की चूत 24 घंटे सिर्फ़ रिस्ति ही रहती है. सीधे व सरल लॅफ्ज़ो में कहा जाए तो काम-उत्तेजना के शिकार से ना तो भूतकाल में कोई बच सका था, ना वर्तमान में बच सका है और ना ही भविश्य में बच सकेगा. आगे आने वाली पीढ़ियों में यौन रोग से संबंधित कयि लाइलाज बीमारियाँ जन्म से ही मनुश्य के साथ जुड़ी पाई जाएँगी और जिससे जीवन-पर्यंत तक शायद म्रत्यु नामक अटल सत्य के उपरांत ही वह मुक्त हो सकेगा.
ड्र. ऋषभ ने अपने समक्ष बिस्तर पर पसरी रीमा के नंगे चूतड़ का भरपूर चक्षु चोदन करना आरंभ कर दिया. हलाकी चुतडो के पाट आपस में चिपके होने की वजह से वह रोग से संबंधित उसके गुदा-द्वार को तो नही देख पाता परंतु जिस कामुक अंदाज़ में रीमा ने अपने चूतड़ हवा में ऊपर की ओर तान रखे थे, ड्र. ऋषभ को उसकी कामरस उगलती चूत की सूजी फांकों का सम्पूर्न उभरा चीरा स्पस्ट रूप से नज़र आ रहा था.
"माफी चाहूँगी ड्र. साहेब !! मुझ मोटी औरत को बिस्तर पर चढ़ाने के लिए आप को बेवजह तकलीफ़ उठानी पड़ी" रीमा ने मुस्कुराते हुवे कहा, इस पूरे घटना-क्रम के दौरान प्रथम बार उसका पीड़ासन्न् चेहरा वास्तव में खिल पाया था और उसके कथन को सुन कर प्रत्युत्तर में ड्र. ऋषभ के होंठ भी फैल जाते हैं, यक़ीनन यह कामुक मुस्कान उसके अविश्वसनीय बल प्रयोग की तुच्छ भेंट स्वरूप ही रीमा ने उसे प्रदान की थी.
"कैसी तकलीफ़ रीमा जी !! मैने तो बस अपना फ़र्ज़ निभाने का प्रयास किया है" ड्र. ऋषभ ने सामान्य स्वर में कहा.
"मिस्टर. सिंग !! आप इनके नितंब की दरार को खोलें ताकि मैं इनके गुदा-द्वार की माली हालत का बारीकी से निरीक्षण कर सकूँ" अनचाहे इन्फेक्षन से बचने हेतु उसने अपने दोनो हाथो में मेडिकल ग्लव्स पेहेन्ते हुवे कहा.
विजय की पलकें मूंद गयी, उसकी छोटी सी ग़लती का इतना भीषण परिणाम उसे झेलना होगा उसने ख्वाब में भी कभी नही सोचा था. किसी संस्कारी पति के नज़रिए से यह कितनी शर्मसार स्थिति बन चुकी थी जो उसे स्वयं ही अपनी पत्नी की शरमगाह को किसी तीसरे मर्द के समक्ष उजागर करना पड़ रहा था, हलाकी मेडिकल पॉइंट ऑफ व्यू से उसका ऐसा करना उचित था परंतु अत्यधिक लाज से उसके हाथ काँप रहे थे. धीरे-धीरे उसके उन्ही हाथो में कठोरता आती गयी और क्षणिक अंतराल के पश्चात ही उसकी पत्नी की गान्ड का अति-संवेदनशील भूरा छेद ड्र. ऋषभ की उत्तेजना में तीव्रता से वृद्धि करने लगता है.
"अहह सीईईई ड्र. साहेब" रीमा सिसकारी, उसके पुत्र सम्तुल्य पर-पुरुष ने उसकी सम्पूर्न चूत को अपनी दाईं मुट्ठी के भीतर भींच लिया था, दोनो की कामुक निगाँहें आपस में जुड़ कर उनके तंन की आग को पहले से कहीं ज़्यादा भड़का देने में सहायक थी. फिलहाल तो विजय की आँखें बंद थी परंतु कामुत्तेजित उस द्रश्य को देख सिर्फ़ यही अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि उसकी खुली आँखों का भी अब नाम मात्र का भय उन दोनो प्रेमियों पर कोई विशेष अंतर नही ला पाता.
"उम्म्म्म" अचानक से रीमा ने अपने खुश्क होंठो पर अपनी जीभ घुमाई, उसका इशारा सॉफ था कि अब वह ड्र. ऋषभ को अपनी चूत के गाढ़े कामरस का स्वाद चखाने को आतुर थी, मौका तो अवश्य था मगर उसके जवान प्रेमी की हिम्मत जवाब दे जाती है.
"विजय जी !! थोडा ज़ोर लगाइए वरना तो मुझे आप की मदद का कोई लाभ नही मिल पा रहा. वैसे आप की बीवी की गान्ड का छेद फटा ज़रूर है मगर फिर भी आप इनके चुतडो को ताक़त से चौड़ाइए ताकि मैं जान सकूँ कि छेद महज लोशन लगाने भर से ठीक हो जाएगा या मुझे उसके इर्द-गिर्द टाँके कसने पड़ेंगे" अपनी असल औक़ात पर आते हुवे ड्र. ऋषभ ने कहा.
ओह्ह्ह विजय आराम से !! तुम तो चाहते ही नही कि मैं ठीक हो जाउ" अपने पति के बलप्रयोग पर रीमा बिलबिला उठी.
"अगर मेरी गांद के छेद में टाँके लगने की नौबत आई ना तो याद रखना मैं तुमसे तलाक़ ले लूँगी, फिर हिलाते रहना अपना लंड मेरी याद में" अत्यधिक क्रोध से तिलमिला कर उसने चेतावनी दी. बड़ी अजीब विडंबना थी, ड्र. ऋषभ का कहा मानो तो पत्नी चिल्लाए और पत्नी की मानो तो उसका इलाज कैसे संभव हो परंतु लग रहा था जैसे विजय ने काफ़ी हद्द तक इस घटना-क्रम की महत्वता को स्वीकार कर लिया था और तभी उसके उदासीन चेहरे पर अब बेहद गंभीरता के भाव आने लगे थे.
ड्र. ऋषभ अपनी अनुभवी आँखों का जुड़ाव रीमा के गुदा-द्वार से कर देता है, छेद के आस-पास मामूली सी खराश उसे अवश्य नज़र आई मगर प्रथम गुदा-मैथुन के उपरांत तो लघ्भग हर महिला को इतनी पीड़ा झेलना अनिवार्य ही होती है. उसने इस विषय पर भी गौर किया कि कहीं विजय को रीमा की उत्तेजित अवस्था का भान ना हो जाए क्यों कि उसकी पत्नी की चूत तेज़ी से निरंतर बहती जा रही थी. स्वयं उसकी खुद की हालत खराब थी, पॅंट की ऊपरी सतह पर बड़ा सा तंबू उभर आया था.
"आईईई ड्र. साहेब !! अब आप मुझसे किस बात का बदला ले रहे हो ? उफफफ्फ़ .. उंगली .. अंदर उंगली क्यों घुसेड दी. आह्ह्ह्ह मर गयी रे" रीमा की चीख कॅबिन में तो क्या पूरे क्लिनिक में गूँज उठी, ड्र. ऋषभ ने अपने अंगूठे को बेदर्दी से उसकी गान्ड के चोटिल छेद के भीतर ठूंस दिया था.
"होश में आओ रीमा !! आख़िर यह तुम्हारा इलाज कर रहे हैं, इनकी भला तुमसे कैसी दुश्मनी" अपनी पत्नी को साहस देते हुवे विजय बोला और साथ ही वह उसके चुतडो को हौले-हौले सहलाने भी लगता है ताकि उसके दर्द को बाँटा जा सके.
"हे हे हे हे !! सब कुच्छ ठीक है रीमा जी. आप बे-फ़िज़ूल परेशान मत होइए, बाहर से आप की गान्ड का छेद बिल्कुल सुरक्षित है मगर अन्द्रूनि ज़ख़्म भी तो जाँचना ज़रूरी है" हंसते हुवे ड्र. ऋषभ अपने अंगूठे को कभी गोल तो कभी तीव्रता से छेद के अंदर-बाहर करना शुरू कर देता है. रीमा की दबी सिसकारियों का मादक संगीत उसे बेहद पसंद आ रहा था और अब विजय से भी उसे डरने की कोई आवश्यकता नही थी.
"फटाक !! आप ठीक हैं" अंत-तह अपना मनपसंद कार्य जिसे बधाई-स्वरूप वह सदैव औरतों के मांसल चुतडो पर थप्पड़ लगा कर पूरा करता आया था, रीमा की गान्ड के छेद से अपना अंगूठा बाहर खींचने के उपरांत उसने वही प्रक्रिया उस पर भी दोहराई.
बीवी की कुशलता की खुशी में विजय ने भी ड्र. ऋषभ के निर्लज्जता-पूर्न थप्पड़ पर कोई आपत्ति ज़ाहिर नही की बल्कि उससे गले मिल कर उसका शुक्रिया अदा करता है.
"जानू !! आज तो मैं पूरे मोहल्ले में मिठाई बाटुंगा" अत्यधिक प्रसन्नता से अभिभूत वह अपनी पत्नी के चुतडो के दोनो पाट बारी-बारी से चूम कर बोला.
"शरम करो जी शरम करो !! ड्र. साहेब हमारे बड़े बेटे की उमर के हैं और उनके सामने ही तुम मेरे चूतड़ चूमने लगे. हा !! विजय तुम कितने बेशरम इंसान हो" उल्टी चोरनी कोतवाल को डान्टे मुहावरे का बखूबी प्रयोग करते हुवे रीमा उसे लताड़ देती है, कल तक वह मर्द उसका पति था, उसके सुख-दुख का साथी मगर आज तो जैसे वह उसे फूटी आँख भी नही सुहा रहा था.
रीमा: "ड्र. साहेब !! क्या आप मुझे बिस्तर से नीचे नही उतारेंगे ?" स्त्री त्रियाचरित्र की तो यह पराकाष्ठा थी.
"हां हां रीमा जी !! क्यों नही" ड्र. ऋषभ इस बार भी मौके को भुनाने का फ़ैसला करता है और फॉरन वह रीमा के नंगे चुतडो से चिपक गया, बिस्तर की उँचाई ज़्यादा ना होने की वजह से पॅंट के भीतर तने उसके विशाल लंड की प्रचंड ठोकर सीधे रीमा की कामरस से सराबोर चूत पर जा पड़ी. तत-पश्चात उसकी बलखाई पतली कमर पर अपने दोनो हाथ फेरते हुवे ड्र. ऋषभ शीघ्रा ही उन्हें उसकी पीठ पर घुमाना शुरू कर देता है.
"अब धीरे-धीरे ऊपर उठने की कोशिश कीजिए, मैं पिछे से सपोर्ट देता हूँ" कहने के उपरांत ही उसने रीमा के दोनो मम्मो को अपने पंजो के बीच मजबूती से जाकड़ लिया और उसके पति के समक्ष मदद का नाटक करते हुवे उसे बिस्तर से नीचे खींच लेता है. कुल मिला कर रीमा रूपी टंच माल अब ड्र. ऋषभ पर पूरी तरह से मोहित हो चली थी.
"विजय जी !! भारतीय क़ानून की धारा *** के तहत पति होने के बावजूद आप अपनी पत्नी के ऊपर सेक्स के लिए दबाव नही डाल सकते, फिर आप ने तो इनके साथ बलपूर्वक अप्राक्रातिक गुदा-मैथुन किया था. आप की वाइफ का दिल बहुत सॉफ है वरना इनकी एक लिखित शिक़ायत आप को सलाखों के पिछे पहुँचा सकती थी" अपने पूर्व स्थान पर बैठने के उपरांत ड्र. ऋषभ ने कहा.
"मैं आगे से ध्यान रखूँगा ड्र." विजय ने वादा किया, वह हक़ीक़त में शर्मिंदा था.
"मैने लोशन लिख दिया है रीमा जी !! दिन में 3-4 बार हल्की उंगली से अपनी गान्ड के छेद की मालिश ज़रूर कीजिएगा, अगर फिर भी कोई दिक्कत पेश आए तो यह मेरा कार्ड है"
"विजय जी !! आप भी इनकी गान्ड मारने से पहले अपना लंड चिकना ....." ड्र. ऋषभ के बाकी अल्फ़ाज़ मानो उसके मूँह के अंदर ही दफ़न हो कर रह गये क्यों कि बंद कंप्यूटर की एलसीडी स्क्रीन पर उसे विज़िटर'स रूम की खुली खिड़की से उसके कॅबिन के भीतर झाँकति एक मादा आकृति नज़र आ रही थी और उसकी मा के अलावा इस वक़्त उस कमरे में कोई अन्य मौजूद ना था.
0 Comments