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ये कहानी का अंतिम भाग है.
माँ का इलाज -10
कमरे में हवा अब ठंडी नहीं लग रही थी। संध्या की साँसों की गर्मी और राहुल की उत्तेजित नज़रों ने उस छोटे से कमरे को एक अजीब-सी तपिश से भर दिया था। चाँदनी खिड़की से छनकर बिस्तर पर पड़ रही थी, और उस रोशनी में संध्या का अधनंगा जिस्म किसी मूर्ति की तरह चमक रहा था। उसकी साड़ी अब उसके घुटनों तक सरक चुकी थी, और उसकी गोरी, भरी जाँघें हल्के से काँप रही थीं। उसकी चूत की नमी उसकी जाँघों के बीच चमक रही थी—वो गुलाबी, गर्म, और बरसों से अनछुई थी। उसकी गाँड की गोलाई बिस्तर पर साफ उभर रही थी, जैसे वो अपने बेटे को बुला रही हो। संध्या की आँखें अधमुँदी थीं, और उसकी साँसें तेज़ थीं, लेकिन उसका मन अब भी उसकी देह से लड़ रहा था।
राहुल बिस्तर के पास घुटनों पर बैठा था। उसकी नज़रें अपनी माँ के जिस्म पर टिकी थीं—उसकी छाती जो अभी भी ब्लाउज़ में क़ैद थी, उसकी कमर की वो नरम गहराई, और उसकी चूत और गाँड की वो मादक बनावट। उसने धीरे से अपना हाथ संध्या की जाँघ पर रखा, और उसकी उंगलियाँ उसकी नरम, गुदाज़ त्वचा पर हल्के-हल्के सरकने लगीं। संध्या का शरीर सिहर उठा। "राहुल... बेटा... ये क्या कर रहा है तू?" उसकी आवाज़ काँप रही थी, और उसमें शर्म का एक गहरा रंग था। उसकी आँखें अपने बेटे से मिलीं, लेकिन तुरंत ही नीचे झुक गईं। उसकी चूत में एक तेज़ जलन उठ रही थी, और उसकी गाँड अनायास ही हल्के से सिकुड़ रही थी, जैसे वो उस स्पर्श को छुपाने की कोशिश कर रही हो।
"माँ, तुम कितने सालों से इस आग में जल रही हो," राहुल ने नरम लेकिन गहरे स्वर में कहा। "मैं तुम्हारा बेटा हूँ। तुम्हारी हर तकलीफ़ को दूर करना मेरा हक़ है।" उसने अपना हाथ और ऊपर सरकाया, और उसकी उंगलियाँ अब संध्या की गाँड की दरार के पास पहुँच गई थीं। संध्या की साँसें रुक गईं। "राहुल... वहाँ नहीं... प्लीज़," उसने काँपते स्वर में कहा, लेकिन उसकी देह उसकी बातों को नकार रही थी। उसकी गाँड हल्के से ऊपर उठी, और उसकी चूत से एक हल्की-सी नमी टपक कर बिस्तर पर फैल गई।
राहुल ने उसकी झिझक को समझा, लेकिन उसने रुकने का नाम नहीं लिया। उसने धीरे से संध्या को पेट के बल लिटाया। अब उसकी माँ की गाँड उसके सामने थी—गोरी, गोल, और इतनी नरम कि राहुल की साँसें तेज़ हो गईं। उसने अपनी हथेलियाँ उसकी गाँड पर रखीं और हल्के से दबाया। संध्या के मुँह से एक सिसकी निकली। "बेटा... ये ठीक नहीं है," उसने फिर से कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में अब वो दृढ़ता नहीं थी। उसकी गाँड अब अपने बेटे के हाथों की गर्मी को महसूस कर रही थी, और उसकी चूत की जलन और तेज़ हो गई थी।
"माँ, ये तुम्हारा इलाज है," राहुल ने कहा, और उसने अपनी दो उंगलियाँ संध्या की गाँड के छेद पर रखीं। उसने हल्का सा दबाव डाला, और संध्या की गाँड थोड़ी और खुल गई। "राहुल... आह... बेटा... मत कर," उसने काँपते स्वर में कहा, लेकिन उसकी गाँड अब अपने बेटे की उंगलियों को अंदर लेने के लिए तैयार थी। राहुल ने धीरे-धीरे अपनी उंगलियाँ अंदर सरकाईं। संध्या की गाँड तंग थी, लेकिन उसकी चूत की नमी ने उसकी उंगलियों को चिकना कर दिया था। उसकी एक लंबी कराह निकली, और उसकी जाँघें आपस में सट गईं, जैसे वो उस सनसनी को रोकना चाहती हो।
"माँ, तुम्हें इससे सुख मिलेगा," राहुल ने कहा, और उसने अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे अंदर-बाहर करना शुरू किया। संध्या की गाँड हर धक्के के साथ थोड़ी और ढीली हो रही थी, और उसकी कराहें अब कमरे में गूँजने लगी थीं। "राहुल... बेटा... ये... ये पाप है," उसने फिर से कहा, लेकिन उसकी देह उसकी बातों को झुठला रही थी। उसकी चूत से नमी की बूँदें टपक रही थीं, और उसकी गाँड अब अपने बेटे की उंगलियों के साथ ताल मिला रही थी। राहुल ने अपनी रफ़्तार बढ़ाई, और उसकी उंगलियाँ अब संध्या की गाँड की गहराइयों को छू रही थीं।
संध्या की साँसें तेज़ हो गईं। उसकी चूत में एक तेज़ सनसनी दौड़ रही थी, और उसकी गाँड हर धक्के के साथ और खुल रही थी। "राहुल... आह... बेटा... बस कर," उसने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में अब एक अजीब-सी प्रार्थना थी। राहुल ने उसकी कराह को सुना और अपनी उंगलियों को और तेज़ी से चलाया। संध्या की गाँड अब पूरी तरह से ढीली हो चुकी थी, और उसकी कराहें चीखों में बदल गई थीं। "रेशु . बेटा... मैं... मैं नहीं सह सकती," उसने चीखते हुए कहा, और उसकी देह अचानक काँप उठी।
राहुल ने अपनी उंगलियों को और गहराई तक धकेला, और संध्या की गाँड से एक हल्की धारा निकली। उसकी चूत से नमी का एक तेज़ बहाव बिस्तर पर फैल गया,
और उसकी साँसें रुक-रुक कर चल रही थीं। वो झड़ चुकी थी—सिर्फ़ अपने बेटे की उंगलियों से। उसकी आँखें बंद थीं, और उसका चेहरा शर्म और सुख के बीच झूल रहा था। "रेशु .. ये... ये क्या हो गया?" उसने काँपते स्वर में पूछा, अपनी साँसों को संभालते हुए। राहुल ने उसकी ओर देखा और हल्के से मुस्कुराया। "माँ, ये तुम्हारी बरसों की तड़प का पहला जवाब है। अभी तो बहुत कुछ बाकी है।"
संध्या चुप रही। उसकी गाँड अब भी संवेदनशील थी, और उसकी चूत की गर्मी कम होने का नाम नहीं ले रही थी। उसका मन चीख रहा था कि ये गलत है, लेकिन उसकी देह अब अपने बेटे के सामने पूरी तरह से नतमस्तक थी। राहुल ने अपनी उंगलियाँ संध्या की गाँड से निकालीं और उन्हें अपने मुँह के पास लाया। उसकी उंगलियों पर उसकी माँ का रस था—एक कच्ची, मादक गंध जो उसे और उत्तेजित कर रही थी। उसने धीरे से अपनी उंगलियाँ चाटीं, और संध्या की आँखें फिर से खुल गईं। "रेशु ... बेटा... ये क्या कर रहा है?" उसने शर्म से भरे स्वर में पूछा।
"माँ, तुम्हारा हर हिस्सा मेरे लिए कीमती है," राहुल ने कहा, और उसने अपनी माँ की ओर झुकना शुरू किया। संध्या की साँसें फिर से तेज़ हो गईं। उसकी गाँड और चूत की आग अभी शुरू ही हुई थी, और वो जानती थी कि उसका बेटा उसे अब और गहराई में ले जाएगा।
संध्या की साँसें अभी भी अनियंत्रित थीं। बिस्तर पर उसकी नंगी देह रौशनी में चमक रही थी, और उसकी गोरी जाँघें हल्के से काँप रही थीं। उसकी गाँड अभी-अभी अपने बेटे की उंगलियों से झड़ी थी, और उसकी चूत से निकली नमी अब बिस्तर पर एक गीला धब्बा बना चुकी थी। उसकी साड़ी पूरी तरह से उतर चुकी थी, और उसकी भरी हुई छतियापूरीतरह आज़ाद थी, जो उसकी तेज़ साँसों के साथ ऊपर-नीचे हो रही थी। उसकी आँखें अधमुँदी थीं, और उसका चेहरा शर्म और सुख के बीच झूल रहा था। उसकी गाँड की गहराई अभी भी उस सनसनी को महसूस कर रही थी, और उसकी चूत की जलन कम होने का नाम नहीं ले रही थी।
राहुल बिस्तर पर अपने घुटनों के बल चढ़ा। उसकी नज़रें अपनी माँ के जिस्म पर टिकी थीं—उसकी गाँड की वो गोलाई जो अभी-अभी उसकी उंगलियों से ढीली हुई थी, और उसकी चूत की वो गुलाबी गहराई जो नमी से चमक रही थी। उसने अपनी उंगलियाँ, जो अभी संध्या की गाँड से निकली थीं, अपने मुँह में डालीं और धीरे से चाटा। उसकी माँ का रस उसकी जीभ पर फैल गया—एक कच्ची, नमकीन, और मादक मिठास जो उसे और उत्तेजित कर रही थी। संध्या ने अपनी आँखें खोलीं और अपने बेटे को ऐसा करते देखा। "राहुल... बेटा... ये क्या कर रहा है?" उसकी आवाज़ में शर्म थी, और उसका चेहरा लाल हो गया।
"माँ, तुम्हारा हर हिस्सा मेरे लिए अनमोल है," राहुल ने नरम लेकिन गहरे स्वर में कहा। उसने धीरे से संध्या को पेट के बल लिटाया और उसकी जाँघों को हल्के से चौड़ा किया।
संध्या की गाँड अब फिर से उसके सामने थी—गोरी, नरम, और अभी भी उसकी उंगलियों के स्पर्श से गीली। उसने अपने हाथ उसकी गाँड की गोलाइयों पर रखे और हल्के से दबाया। संध्या की एक सिसकी निकली। "राहुल... बेटा... फिर से वहाँ?" उसने काँपते स्वर में पूछा, लेकिन उसकी गाँड अनायास ही हल्के से ऊपर उठ गई, जैसे वो अपने बेटे को और करीब बुला रही हो।
राहुल ने जवाब नहीं दिया। उसने अपने चेहरे को संध्या की गाँड के पास लाया, और उसकी गर्म साँसें उसकी त्वचा पर टकराने लगीं। संध्या का शरीर सिहर उठा। "बेटा... ये गंदा है... मत कर," उसने फिर से कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में अब वो ताक़त नहीं थी। राहुल ने अपनी जीभ को संध्या की गाँड की दरार पर फेरा—धीरे, हल्के से, जैसे वो उसकी हर रेखा को चखना चाहता हो।
संध्या की एक तेज़ सिसकी निकली, और उसकी जाँघें आपस में सट गईं। "राहुल... आह... बेटा... प्लीज़," उसने कहा, लेकिन उसकी गाँड अब अपने बेटे की जीभ को महसूस करने के लिए थोड़ी और खुल गई।
राहुल ने अपनी जीभ को संध्या की गाँड के छेद पर रखा और हल्के से दबाया। उसकी गाँड अभी भी नम थी, और उसका रस उसकी जीभ पर फैल गया। उसने धीरे-धीरे अपनी जीभ को अंदर सरकाया, और संध्या की कराहें फिर से शुरू हो गईं। "राहुल... बेटा... ये... ये बहुत गलत है," उसने काँपते स्वर में कहा, लेकिन उसकी गाँड अब अपने बेटे की जीभ के साथ ताल मिला रही थी। राहुल ने अपनी जीभ को और गहराई तक डाला, और उसकी माँ की गाँड की गहराइयों को चाटने लगा।
उसका स्वाद तीखा और मादक था, और राहुल की साँसें तेज़ हो गईं।
संध्या की कराहें अब कमरे में गूँज रही थीं। उसकी गाँड हर चाट के साथ और संवेदनशील हो रही थी, और उसकी चूत से नमी फिर से बहने लगी थी। "राहुल... आह... बेटा... बस कर," उसने कहा, लेकिन उसकी देह उसकी बातों को नकार रही थी। राहुल ने अपनी जीभ को बाहर निकाला और संध्या की गाँड की दरार को फिर से चाटना शुरू किया। उसने अपनी उंगलियाँ उसकी जाँघों के बीच ले जाकर उसकी चूत को छुआ। संध्या की चूत गीली और गर्म थी, और उसकी एक तेज़ कराह निकली। "बेटा... वहाँ भी?" उसने शर्म से भरे स्वर में पूछा।
"माँ, तुम्हारा हर हिस्सा मेरा है," राहुल ने कहा, और उसने संध्या को पीठ के बल लिटाया।
उसकी चूत अब उसके सामने थी—गुलाबी, नम, और अपने बेटे के स्पर्श के लिए तड़प रही थी। राहुल ने अपने चेहरे को उसकी जाँघों के बीच लाया, और उसकी गर्म साँसें संध्या की चूत पर टकराने लगीं। संध्या का शरीर फिर से काँप उठा। "राहुल... बेटा... मत... ये बहुत शर्मनाक है," उसने कहा, लेकिन उसकी चूत अब अपने बेटे की जीभ को महसूस करने के लिए तैयार थी।
राहुल ने अपनी जीभ को संध्या की चूत की गहराइयों पर फेरा—धीरे, हल्के से, जैसे वो उसकी हर परत को चखना चाहता हो। संध्या की एक लंबी कराह निकली, और उसकी जाँघें अनायास ही चौड़ी हो गईं।
"राहुल... आह... बेटा... ये क्या कर रहा है?" उसने पूछा, लेकिन उसकी आवाज़ में अब शर्म के साथ-साथ एक अजीब-सी चाहत भी थी। राहुल ने अपनी जीभ को उसकी चूत के होंठों पर चलाया, और उसका रस उसकी जीभ पर फैल गया। उसका स्वाद नमकीन और मीठा था, और राहुल ने उसे धीरे-धीरे चाटना शुरू किया।
संध्या की चूत से नमी की एक धारा निकलने लगी। उसकी कराहें अब चीखों में बदल रही थीं। "राहुल... बेटा... बस... मैं फिर से... आह," उसकी बात अधूरी रह गई, और उसकी चूत ने फिर से रस छोड़ दिया। राहुल ने अपनी जीभ को और गहराई तक डाला, और उसकी माँ की चूत की हर बूँद को चाट-चाट कर साफ़ कर दिया। संध्या की साँसें तेज़ थीं, और उसकी देह अब अपने बेटे के सामने पूरी तरह से नतमस्तक थी। "रेशु . ये... ये बहुत ज्यादा हो गया," उसने काँपते स्वर में कहा, अपनी साँसों को संभालते हुए।
राहुल ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी। "माँ, अभी तो शुरुआत है। तुम्हें वो सुख देना बाकी है जो तुमने कभी सोचा भी नहीं," उसने कहा, और उसने अपनी पैंट की ओर हाथ बढ़ाया। संध्या की आँखें फिर से खुल गईं, और उसकी साँसें रुक गईं। उसकी गाँड और चूत की आग अभी शांत नहीं हुई थी—बल्कि वो और भड़कने वाली थी।
संध्या की साँसें अभी भी तेज़ थीं, और उसकी नंगी देह बिस्तर पर पसीने से तर चमक रही थी। रौशनी कमरे के हर कोने में फैल चुकी थी, और उसकी गोरी जाँघें हल्के से काँप रही थीं। उसकी चूत अभी-अभी अपने बेटे की जीभ से झंझनारही थी, और उसकी गाँड की गहराई अभी भी उसकी उंगलियों और जीभ के स्पर्श को महसूस कर रही थी। उसका ब्लाउज अब भी उसकी भरी हुई छाती को क़ैद किए हुए था, लेकिन उसकी साड़ी कब की फर्श पर गिर चुकी थी। उसकी आँखों में शर्म और सुख का एक अजीब-सा मिश्रण था, और उसकी चूत की जलन अब एक अनियंत्रित आग बन चुकी थी।
राहुल बिस्तर पर अपने घुटनों के बल खड़ा था। उसकी आँखें अपनी माँ के जिस्म पर टिकी थीं—उसकी चूत की वो गुलाबी गहराई जो नमी से चमक रही थी, और उसकी गाँड की वो गोलाई जो अभी भी उसके स्पर्श से ढीली थी। उसने धीरे से अपनी पैंट उतारी, और उसका सख्त, लंबा लंड अपनी माँ के सामने था। संध्या की नज़रें उस पर पड़ीं, और उसकी साँसें रुक गईं।
"रेशु ... बेटा... ये क्या है?" उसने काँपते स्वर में पूछा, अपनी आँखें नीचे झुकाते हुए। "माँ, ये तुम्हारी बरसों की तड़प का जवाब है," राहुल ने गहरे स्वर में कहा, और उसने अपने लंड को संध्या की गाँड के छेद पर रखा।
संध्या का शरीर अकड़ गया। "रेशु ... वहाँ फिर से नहीं प्लीज़... मैं नहीं सह पाऊँगी," उसने शर्म से भरे स्वर में कहा, लेकिन उसकी गाँड अनायास ही हल्के से ऊपर उठ गई। राहुल ने उसकी बात को अनसुना किया और धीरे से दबाव डाला। उसका लंड संध्या की गाँड में सरकने लगा—धीरे, सावधानी से, लेकिन उसकी तंग गहराई को चीरता हुआ। संध्या की एक तेज़ चीख निकली।
"रेशु ... आह... बेटा... धीरे... मैं मर जाऊँगी," उसने कहा, लेकिन उसकी गाँड अब अपने बेटे के लंड को पूरी तरह से अंदर ले रही थी।
राहुल ने अपनी रफ़्तार को स्लो रखा। उसका लंड संध्या की गाँड की हर परत को महसूस कर रहा था—वो तंग, गर्म, और नम गहराई जो बरसों से अनछुई थी। "माँ, तुम्हारी गाँड कितनी सख्त है," उसने कहा, और उसने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। संध्या की कराहें कमरे में गूँजने लगीं। "रेशु .. बेटा... आह... ये गलत है... लेकिन... मत रुक," उसकी बात अधूरी रह गई, और उसकी गाँड अब अपने बेटे के लंड के साथ ताल मिला रही थी। राहुल ने अपने धक्कों को गहरा किया, और संध्या की गाँड हर धक्के के साथ और ढीली हो रही थी।
उसकी गाँड का छेद अब पूरी तरह से खुल चुका था। राहुल का लंड उसकी गहराइयों को चीर रहा था, और संध्या की चीखें अब अनियंत्रित हो गई थीं।
"रआअह्ह्ह.... आह्ह... उफ्फ्फ्फ़... रेशु ... बेटा... और तेज़... आह... मुझे मार डाल," उसने चीखते हुए कहा। राहुल ने अपनी रफ़्तार बढ़ाई, और उसकी गाँड से फच-फच की आवाज़ें आने लगीं। उसकी गाँड का भोसड़ा बन चुका था—वो तंग छेद अब अपने बेटे के लंड से पूरी तरह से ढीला और गीला हो गया था। संध्या की चूत से नमी टपक रही थी, और उसकी कराहें चीखों में बदल गई थीं।
कुछ देर बाद, राहुल ने अपने लंड को बाहर निकाला माँकी चूत सामने ही थी—गुलाबी, गीली, और अपने बेटे के लंड के लिए तड़प रही थी। "माँ, अब तुम्हारी चूत की बारी है," राहुल ने कहा, और उसने अपने लंड को संध्या की चूत पर रखा। संध्या की आँखें खुल गईं। "राहुल... बेटा... वहाँ भी? मैं टूट जाऊँगी," उसने काँपते स्वर में कहा, लेकिन उसकी चूत अब अपने बेटे के लंड को महसूस करने के लिए तैयार थी।
राहुल ने धीरे से दबाव डाला, और उसका लंड संध्या की चूत में सरकने लगा। संध्या की एक लंबी कराह निकली।
"रेशु आह... बेटा... धीरे... ये बहुत बड़ा है," उसने कहा, लेकिन उसकी चूत अब अपने बेटे के लंड को गहराई से निगल रही थी। राहुल ने अपनी रफ़्तार को स्लो रखा। उसका लंड संध्या की चूत की हर दीवार को छू रहा था—वो गर्म, तंग, और नम गहराई जो बरसों से सूखी थी। "माँ, तुम्हारी चूत मुझे पागल कर रही है," उसने कहा, और उसने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए।
संध्या की कराहें अब एक मादक संगीत बन गई थीं। उसकी चूत हर धक्के के साथ और खुल रही थी, और उसकी जाँघें अपने बेटे के कमर के चारों ओर लिपट गई थीं। "राहुल... बेटा... आह... ये क्या कर रहा है तू? मैं तेरी माँ हूँ," उसने फिर से कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में अब शर्म कम और चाहत ज़्यादा थी। राहुल ने अपने धक्कों को गहरा किया, और संध्या की चूत अब उसके लंड को पूरी तरह से अंदर ले रही थी। उसकी चूत से छप-छप की आवाज़ें आने लगीं, और उसकी गाँड हर धक्के के साथ हिल रही थी।
राहुल ने अपनी रफ़्तार बढ़ाई। उसका लंड अब संध्या की चूत को चीरता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था। संध्या की चूत का भोसड़ा बन चुका था—वो तंग गहराई अब अपने बेटे के लंड से ढीली और गीली हो गई थी। "रेशु ... बेटा... और तेज़... आह... मुझे खत्म कर दे," संध्या ने चीखते हुए कहा।
राहुल ने अपने धक्कों को जबरदस्त बना दिया, और उसकी चूत से रस की धारा निकलने लगी। उसकी गाँड और चूत दोनों अपने बेटे के लंड से तृप्त हो चुकी थीं, और उसकी चीखें अब कमरे की दीवारों से टकरा रही थीं।
"माँ, तुम्हें सुख मिल रहा है ना?" राहुल ने पूछा, उसकी साँसें भी तेज़ थीं। संध्या की आँखें बंद थीं, और उसकी देह अब अपने बेटे के सामने पूरी तरह से समर्पण कर चुकी थी। "रेशु ... बेटा... हाँ... आह... मुझे माफ़ कर दे," उसने कहा, और उसकी चूत ने फिर से रस छोड़ दिया। राहुल ने अपने धक्के जारी रखे, और कुछ देर बाद वो भी अपनी माँ की चूत में झड़ गया। उसका गर्म रस संध्या की चूत की गहराइयों में फैल गया, और उसकी देह काँप उठी।
संध्या बिस्तर पर पड़ी थी, उसकी साँसें अब धीरे-धीरे सामान्य हो रही थीं। उसकी चूत और गाँड दोनों अपने बेटे के लंड से तृप्त थीं—उनका भोसड़ा बन चुका था, जैसा वो बरसों से चाहती थी। उसकी आँखों में शर्म थी, लेकिन उसकी देह में एक ऐसा सुख था जो उसने कभी नहीं महसूस किया था। राहुल ने अपनी माँ को गले लगाया, और दोनों चुपचाप एक-दूसरे के पास लेट गए। संध्या की बरसों की तड़प अब पूरी हो चुकी थी—उसकी चूत और गाँड की आग अपने बेटे के हाथों शांत हो गई थी। माँ-बेटे का रिश्ता अब एक ऐसी राह पर था, जहाँ प्यार और वासना की सीमाएँ हमेशा के लिए मिट चुकी थीं।
||समाप्त ||
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