मैं अपने माँ के कारनामें सुन के गरम हो गया था, इस गर्मी को लंड के रास्ते निकाल वापस पंहुचा तो सभी लोग आंगन मे ही मौजूद थे.
आदिल, मोहित, प्रवीण और अब्दुल भी. सभी लोग नाश्ता कर रहे थे.
मेरी माँ, मौसी, मामी और दीदी सब सजे धजे बैठे थे.
मामा से कुछ बाते चल रही थी, मैंने देखा मामी रह रह के अब्दुल को देख ले रही थी, अब्दुल भी चाय सुढकते हुए कभी मेरी माँ को देखता तो कभी मामी को.
आज हल्दी का प्रोग्राम था सब इसी मे व्यस्त थे.
"अरे बच्चों सुनो हल्दी के लिए मार्किट चलना है, सजावट भी करनी है, फूल वगैरह लाने है " मामा ने हमारी तरफ देख बोला.
साले हम तो थे ही काम करने के लिए,
"मामा कल रात ठीक से सो नहीं पाया था मैं, थोड़ी नींद बाकि है आप मोहित और प्रवीण को भेज दो ना साले घोड़ा बेच के सोये है रात भर.
आदिल ने जमहाई लेते हुए कहा.
"इनके घोड़े बेचने लायक ही है, कुछ काम के नहीं ये अमित के दोस्त " मौसी ने एक टोंट कसा
"कक्क.... क्या मतलब मौसी " मैंने पूछा जबकि मैं जानता था मौसी क्या कह रही है.
मोहित और प्रवीण तो बेचारे शर्म से पानी पानी हो रहे थे, मुझे अंदर ही अंदर हसीं आ रही थी.
"मतलब सिर्फ सोने आये है," मौसी टेबल पर उन दोनों के सामने ही बैठी थी, और ना जाने क्यों मुझे ऐसा लगा की मौसी ने जानबूझ कर अपना पल्लू सरका दिया है.
मेरे दोस्तों के अरमान वापस से जगने लगे थे.
"वो... वो... मौसी सफर से थक गए थे ना, तो नींद आ गई थी " मोहित ने कहा
"अब पुरे मन और ताकत से काम करेंगे " प्रवीण ने मौसी के बड़े तरबूज के आकर के स्तन को घूरते हुए कहा.
"मैं भी चलती हूँ साथ,कहीं तुम कामचोरी ना करने लगो " मौसी के दिमाग़ मे कुछ तो चल रहा था.
सभी लोग मेरे दोस्तों की मासूमियत पर हस पड़े.
मामा जी ने उन दोनों को मार्किट का रास्ता और समान की लिस्ट दे दी.
सुबह के 9 बज चुके थे, शाम7 बजे से हल्दी का प्रोग्राम होना था.
मामी, और माँ सभी मेहमानों की खिदमत मे लग गई थी, खाने पीने की व्यवस्था,,
कुछ एक्का दुक्का मेहमानों का आना अभी भी जारी ही था,
मैं भी नहाने निकल पड़ा, मेरे दिमाग़ मे मौसी की हरकत ही चल रही थी, साले पक्का मौजी के मजे लेंगे. मुझे अफ़सोस था की मैं उन्हें देख नहीं पाउँगा.
मैं नहा के अपने रूम मे पंहुचा, जहाँ आदिल वापस से सो गया था, मेरी नजर उसके मोबाइल पर पड़ी,
मुझे याद आया आदिल ने कल रात की घटना को, कैमरे मे रिकॉर्ड किया था.
मैंने धीरे से आदिल का मोबाइल उठाया, मुझे पासवर्ड पता था, एक ही कमरे मे रहते थे हम लोग एक दूसरे के पासवर्ड जानते ही थे.
मैंने गैलरी मे जा कर वीडियो ओपन कर दी.
उउउउफ्फ्फ्फ़.... साला ये क्या था माँ के सामने जैसे कोई हैवान खड़ा था, बिल्कुल भद्दा काला मोटा लम्बा चौड़ा इंसान.
जिसका लंड मेरी माँ पूरी सिद्दत से चूस रही थी, टट्टे खा रही थी उस गंदे इंसान के, मैंने जितनक कल्पना की थी माँ ने उस से कहीं ज्यादा गंदे तरीके से उस पुलिस वाले का लंड चूसा था.
खेर मैंने उस वीडियो को अपने फ़ोन मे ट्रांसफर कर, मोबाइल वापस आदिल के पास रख दिया.
और नीचे चल पड़ा.
मेरे पास करने को कुछ खास था नहीं, दीदी जीजा से बात करते हुए टाइम बीत गया था लगभग 12 बज गए होंगे,
एक टेम्पो मे हलवाई वाला अपना समान ले कर आ गया था.
का भैया कहाँ रख दे ई समान, कहाँ लगा दे भट्टी.
"आओ मेरे साथ" मामा ने अपने साथ आने का इशारा किया.
हमारे सामने ही एक नाट सा, तोंद वाला शख्श गुजरता हुआ चला गया, सफ़ेद धोती और बनियान पहने,
या यूँ कहे कभी उसके कपडे सफ़ेद रहे होंगे, उसकी hight कोई 5,2 इंच ही रही होगी,
साथ मे एक दुबला पतला सा लड़का था
उन दोनों को देख हमारी हसीं छूट पड़ी, जैसे बचपन मे हम मोटू पतलू देखते थे, वही साक्षात् सामने आ गए थे.
हेहेहेहेहे.....
"मामा भी क्या नमूने ढूंढ़ के लाये है " अनुश्री ने कहाँ.
"हाहाहाहा... हाँ दीदी मेरी तो हसीं ही नहीं रुक रही "
ऐसे मज़ाक नहीं उड़ाते किसी का " जीजा मंगेश ने हम दोनों को डांटते हुए कहा.
" मैं थोड़ा सो लेता हूँ " जीजा जी चले गए अपने कमरे मे.
हम दोनों भाई बहन उठ के मामा और हलवाई के पीछे पीछे चल दिए.
उन्हें देखने का मजा आ रहा था.
हम दोनों भी पीछे गार्डन मे पहुंच गए, जहाँ टॉयलेट था उस के सामने दिवार से सट कर कोने मे उन्होंने अपना आसान लगा लिया था,
दो तरफ दिवार थी और एक तरफ कपडे का टेंट लग गया था, सामने ही पानी के दो ड्रम थे, पतलू ने फटाफट भट्टी लगा दी थी.
"हाँ जी साब बताइये कितनो का खाना बनाना है?" हलवाई ने पूछा.
"छेदीमल घर मे कुल 20 मेहमान है फिलहाल तो उनके लिए लंच बनान है, नाश्ता तो कर चुके सब, और शाम का बाद मे बताता हूँ, राशन का समान आने ही वाला है "
"ठीक है साब सब्जी अभी बना देता हूँ, जब खाना हो तो बोल देना पूड़ी बना देंगे "
"1 घंटे मे खाना सिर्फ आप दोनों " अनुश्री ने कोतुहाल से पूछा
"अरे काहे नहीं, ई हमार भतीजा चौथमल बहुत तेज़ी से काम करता है "
छेदीमल ने पतलू की तरफ इशारा कर कहा.
"अरे बेटा बहुत पुराने और मझे हुए कारीगर है ये चाचा भतीजे" मामा ने कहा
नाम भी गजब के थे इन मोटू पतलू के, मैं मन ही मन हस रहा था. कार्टून से दीखते थे.
पता नहीं मामा कहाँ से पकड़ लाये थे इन्हे.
खेर थोड़ी ही देर मे राशन वाले भी आकर समान रख गए, दोनों ने काम स्टार्ट कर दिया था, आलू गोभी छिलने का,
"लाओ मैं भी कुछ हेल्प कर देती हूँ " मेरी दीदी सामने चेयर पर बैठ गई
"अरे बिटवा काहे तकलीफ लेती हो रहने दो ना " छेदीमल ने विरोध किया.
"बोर हो रही हूँ, थोड़ा हाथ बटा देती हूँ "
मेरी बहन बहुत नरम दिल की इंसान थी, हेल्प करना उसके स्वभाव मे था.
तभी मामा के फ़ोन की घंटी बैन उठी "हाँ... अच्छा.. अच्छा....ठीक है आता हूँ अभी "
"चल अमित थोड़ा काम है आते है अभी "
मामा और मैं वहाँ से निकल गए, अनुश्री दीदी चाकू ले कर प्याज़ छिलने बैठ गई.
"बहुत अच्छी हो तुम बिटवा " दीदी के कुर्सी पर बैठने से उसकी जांघो का हिस्सा कुर्सी पर फ़ैल के और चौड़ा हो गया था, जिसे छेदीमल ने घूर कर देखा.
दीदी ने अपना दुप्पटा भी टेंट पर टांग दिया था, कुर्सी पर बैठी सामने को प्याज़ उठाने को झुकी तो दीदी के बड़े स्तन बाहर को लुढ़क आये, जिसे छेदीमल ने साफ साफ देखा, उसकी आँखों मे चमक आ गई थी.
और मेरे दिमाग़ मे कुछ कीड़ा सा दौड़ने लगा, मेरे साथ जो हो रहा था उसकी वजह से मैं कुछ सीधा सोच ही नहीं पा रहा था.
क्या दीदी ने ये जानबूझ के किया, नहीं.. नहीं... दीदी ऐसा क्यों करेगी साला मेरी सोच ही घटिया होती जा रही है.
छी कितना गन्दा सोचने लगा था मैं.
मैं मामा के पीछे पीछे चल दिया, मामा ने मोटरसाइकिल निकली और हम लोग चल दिए.
मामा को किसी से पैसे लेने थे, वो ले कर हम लोग कोई 15 मिनट मे आ गए थे, मामा पैसे ले कर अपने कमरे मे चले गए और मैं भागता हुआ घर के पीछे गार्डन मे पंहुचा.
गेट पर से ही दिख रहा था, भट्टी चढ़ गई थी, चौथमल कड़ाई मे पलटा चला रहा था.
लेकिन मेरी दीदी अनुश्री और छेदीमल नहीं दिख रहे थे, मेरे मन मे कुलबुलाहट सी होने लगी, ना जाने क्यों मैं कुछ गन्दा सा सोच रहा था, बहुत गन्दा.
ना जाने क्यों मैं चौथमल की नजर बचा कर टॉयलेट के पीछे से होता हुआ, टेंट के पीछे की दिवार के पास जा पंहुचा, यहाँ मेंहदी की झाड़िया लगी हुई थी,
मैं जैसे ही पास पंहुचा एक अजीब सी आवाज़ आई.. पुच.. पुच.. पच.. पच....
मेरे कान खड़े हो गए, मैं पिछले कई समय से इन अवज़ो को सुन रहा था, कौन था अंदर क्या मेरी दीदी अनुश्री?
क्या कर रही थी वो? नहीं.. नहीं... ऐसा कैसे हो सकता है, असंभव है, मेरी दीदी नहीं...
मैंने टेंट की दरार मे आंख डाल अंदर देखने की कोशिश की.
"ओह.. God नहीं... ऐसा नहीं हो सकता, मेरे पैरो के नीचे से जमीन सरक गई, मैंने सपने भी ऐसे दृश्य की कामना नहीं की थी,
उड़... ये क्या हो रहा है मेरे साथ, मेरा जिस्म तो जैसे सफ़ेद पड़ गया था,
अंदर मेरी दीदी अनुश्री उस मोटे हलवाई का लंड मुँह मे डाले चूस रही थी,
साला ये क्या ही रहा है मेरे घर मे सब के सब रंडी ही है क्या?
क्यों नहीं जब मेरी माँ कर सकती है तो बहन क्यों नहीं, मेरा तो दिमाग़ ही चकरा रहा था,
"आअह्ह्ह.... कितना बड़ा है, उउउफ्फ्फ..... छेदीमल, दिखने मे छोटे हो लेकिन ये.... उउउफ्फ्फ्फ़... कितना बड़ा है "
दीदी ने उसके लंड को बाहर निकाल हलवाई की तारीफ करने लगी, साले की धोती जमीन पर पड़ी थी, और लंड मेरी दीदी के हाथ मे था, दीदी के थूक से साना हुआ, जिसे दीदी जोर जोर से चूस रही थी.
मोटा, काला नसो से भरा लंड दीदी के मुँह मे खेल रहा था, जिसे दीदी खुद से मजे ले ले कर चूस रही थी.
"उउउउफ्फ्फ्फ़..... छेदीमल क्या लंड है, जब तुम पेशाब करने गए, तब मेरी नजर इस पर पड़ गई, उउउफ्फ्फ... खुद को रोक ना सकी मैं,
ऐसा क्या हो गया 15मिनट मे ही की मेरी दीदी एक अनजाने मर्द का लंड चूस रही थी, वो भी तब जबकि उसका भतीजा वही पास मे सब्जी बना रहा था..
इतनी कितनी आग थी दीदी के जिस्म मे, की डर भी ना लगा उसे.
मेरी तो सोचने समझने की शक्ति ही जवाब दे गई थी.
15मिनिट पहले
(मैं और मामा जी घर से बाहर निकल गए थे। मामा ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की, और हम दोनों किसी से पैसे लेने के लिए चल पड़े। घर के पीछे गार्डन में अनुश्री दीदी, छेदीमल और चौथमल रह गए थे। दीदी कुर्सी पर बैठी प्याज छील रही थी, उसका ध्यान सब्जियों पर था। छेदीमल और चौथमल ने अपना काम शुरू कर दिया था—भट्टी चढ़ा दी थी, और चौथमल कड़ाही में कुछ हिलाने में व्यस्त था। छेदीमल पास में बैठा आलू छील रहा था, लेकिन उसकी नजर बार-बार दीदी की तरफ जा रही थी। दीदी ने अपना दुपट्टा टेंट पर टांग दिया था और कुर्सी पर आराम से बैठी थी, जिससे उसकी जांघें थोड़ी फैली हुई थीं। उसकी सलवार का कपड़ा जांघों पर चिपक गया था, और उसकी गोरी त्वचा हल्की-हल्की झलक रही थी।
अनुश्री के बार बार झुकने से उसके उन्नत सुडोल स्तन कुर्ते से बाहर झाँक रहे थे, वैसे भी अनुश्री ने दीपनैक कुर्ता ही पहन रखा था, सामने छेदीलाल का हाल बुरा था, धोती ने ही उसका लंड खड़ा होने लगा था, होता भी क्यों ना शहरी सुडोल कामुक जिस्म की मालिकन उसके सामने अपने आधे से ज्यादा स्तन खोले बैठी थी,
तभी छेदीमल को पेशाब की तलब लगी। उसने आलू छीलना बंद किया और अपनी धोती को थोड़ा ऊपर उठाते हुए बोला, "अरे बिटिया, हम जरा बाहर होकर आते हैं।" उसकी आवाज में एक अजीब सी लापरवाही थी। वो उठा और टेंट के बाहर की तरफ चला दिया , दिवार के कोने लार जहाँ पेड़ की जड़ थी,और पास ही मेंहदी की झाड़ियां थीं, और वो उसी के पास खड़ा हो गया। उसने अपनी धोती को थोड़ा ऊपर किया और पेशाब करने लगा। उसकी पीठ दीदी की तरफ थी, लेकिन उसका मोटा, काला लंड साफ नजर आ रहा था, जो पेशाब की धार के साथ हल्का-हल्का हिल रहा था।
टेंट के छेद से छेदीलाल साफ दिख रहा था,
अनुश्री का ध्यान उस वक्त प्याज छीलने में था, लेकिन उसकी नजर अचानक छेदीमल की तरफ उठ गई। पहले तो उसने उसे अनदेखा करने की कोशिश की, लेकिन जब उसकी आंखें छेदीमल के लंड पर पड़ीं, वो ठिठक गई। उसका हाथ अपने आप रुक गया, चाकू प्याज पर अटक गया। वो उस गंदे, मोटे, नसों से भरे लंड को देखती रही—काला, लंबा, और एक अजीब सी ताकत से भरा हुआ। पेशाब की धार जमीन पर पड़ रही थी, और उसकी गंध हवा में फैल रही थी। अनुश्री की सांसें तेज होने लगीं, उसकी छाती ऊपर-नीचे होने लगी। उसने अपने होंठों को दांतों से दबाया,
जैसे खुद को रोकने की कोशिश कर रही हो, लेकिन उसकी आंखों में एक चमक आ गई थी—वासना की चमक।
पहले तो उसने खुद को समझाने की कोशिश की। "ये क्या देख रही हूं मैं? छी, कितना गंदा है ये सब," उसका मन चिल्लाया। वो एक शादीशुदा औरत थी, जिसे अपनी मर्यादा का ख्याल था। लेकिन पिछले कुछ समय से उसकी जिंदगी में एक खालीपन सा था। शारीरिक सुख और आत्मा में एक प्यास सी थी—कुछ ऐसा जो उसे उत्तेजित करे, उसे जगा दे। और अब, छेदीमल का वो लंड उसके सामने था,
बस यही वो पल था जो उसे उत्तेजित करने के लिए काफ़ी था,
एक हिस्सा उसे रोक रहा था, कह रहा था कि ये गलत है, ये पाप है। लेकिन दूसरा हिस्सा, जो शायद लंबे समय से दबा हुआ था, उसे उकसा रहा था, "देख, कितना अलग है ये... कितना बड़ा, कितना मजबूत लंड है, असली मर्द का लंड ऐसा ही होता है,
छेदीमल ने पेशाब खत्म किया और अपने लंड को झटका देकर धोती नीचे कर ली।
वो वापस टेंट की तरफ मुड़ा, लेकिन अनुश्री का चेहरा देखकर उसे कुछ अंदाजा हो गया। वो धीरे-धीरे चलता हुआ वापस आया
"क्या हुआ बिटिया, कुछ चाहिए का?" उसकी आवाज में एक चालाकी थी।
अनुश्री ने जल्दी से नजरें हटाने की कोशिश की, लेकिन उसकी आवाज कांप रही थी।
"न... नहीं, बस ऐसे ही..." उसने चाकू फिर से प्याज पर चलाने की कोशिश की, अनुश्री के हाथ वासना से कांप रहे थे।
उसका दिमाग उसी दृश्य को बार-बार दोहरा रहा था—छेदीमल का वो मोटा, गंदा लंड। उसके जिस्म में एक अजीब सी गर्मी दौड़ने लगी, उसकी जांघें आपस में रगड़ खाने लगीं। वो खुद को रोकना चाहती थी, लेकिन उसकी वासना अब हद पार कर चुकी थी।
चौथमल अभी भी भट्टी के पास व्यस्त था, उसे कुछ पता नहीं था। अनुश्री ने एक गहरी सांस ली और कुर्सी से उठ खड़ी हुई। उसने छेदीमल की तरफ देखा, उसकी आंखों में एक सवाल था, लेकिन शब्द नहीं निकले। छेदीमल ने उसकी हालत भांप ली। वो धीरे से मुस्कुराया और टेंट के अंदर की तरफ इशारा करते हुए बोला, "अरे बिटिया, इधर आओ ना, जरा हमारी मदद कर दो।"
अनुश्री का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वो जानती थी कि ये गलत है, लेकिन उसके कदम अपने आप टेंट की तरफ बढ़ गए। चौथमल बाहर भट्टी संभाल रहा था, और टेंट के अंदर अब सिर्फ अनुश्री और छेदीमल थे। जैसे ही वो अंदर पहुंची, छेदीमल ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी हथेली खुरदुरी थी, और उसकी पकड़ में एक अजीब सी ताकत थी। अनुश्री ने विरोध नहीं किया। "आअह्ह्हम... इस्स्स......उसकी सांसें और तेज हो गईं। मुँह से सिस्कारी फुट पड़ी,
"क्या देख लिया बिटिया?" छेदीमल ने धीमी आवाज में पूछा, उसकी आंखों में शरारत थी।
अनुश्री ने नजरें झुका लीं, लेकिन उसका चेहरा लाल हो गया। "वो... वो... मैं..." वो कुछ कह नहीं पाई। उसकी आवाज में हवस और शर्म दोनों घुल गए थे।
छेदीमल ने उसका हाथ छोड़ दिया और अपनी धोती को एक झटका दिया, धोती की गांठ खुल गई, सरसरसती धोती जमीन चाटने लगी,
छेदीलाल का लंड पूरी तरह से मुँह बाये खड़ा था—मोटा, काला, और नसों से भरा हुआ। अनुश्री की आंखें उस पर टिक गईं। उसकी सांसे ऊपर ही अटक गई मालूम पडती थी, वो खुद को रोक नहीं पाई। उसकी सारी शर्म, सारी मर्यादा उस एक पल में खत्म हो गई। वो धीरे-धीरे घुटनों के बल बैठ गई, उसका चेहरा छेदीमल के लंड के ठीक सामने था। उसने एक गहरी सांस ली और बोली, "उउउफ्फ्फ... ये... इतना बड़ा... मैंने पहले कभी ऐसा नहीं देखा।"
फिर उसने अपने होंठों को उसके लंड के सिरे पर रख दिया और धीरे-धीरे अपने लाल सुर्ख होंठो को खोल दिया, उसके होंठ छेदीलाल के सुपडे पर टिक गए, उसकी जीभ लंड की नसों पर फिसल रही थी, और वो उसे अपने मुंह में गहराई तक ले रही थी। छेदीमल ने एक सिसकारी भरी और अनुश्री के सिर पर हाथ रख दिया। टेंट के अंदर का माहौल अब पूरी तरह से वासना से भर गया था।)
वापस वर्तमान मे
मैं वहीं झाड़ियों के पीछे छिपा हुआ था, मेरे मन में उथल-पुथल मची थी। जो कुछ मेरी आंखों के सामने हो रहा था, उसे देखकर मेरा दिमाग सुन्न पड़ गया था। मेरी दीदी अनुश्री, जो हमेशा से मेरे लिए एक ममतामयी और सभ्य बहन की छवि थी, आज एक ऐसी औरत बन गई थी, जिसकी वासना की आग मेरे समझ से परे थी। मैंने टेंट की दरार से और करीब से देखने की कोशिश की, मेरे हाथ कांप रहे थे, लेकिन आंखें हटाने का मन नहीं कर रहा था।
अंदर का दृश्य और भी भयावह और उत्तेजक हो गया था। अनुश्री घुटनों के बल जमीन पर बैठी हुई थी, उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे कोई प्यासी औरत पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रही हो। छेदीमल, वो मोटा, नाटा, गंदा सा हलवाई, जिसकी सूरत देखकर कोई भी औरत शायद मुंह फेर ले, उसके सामने खड़ा था। उसकी धोती जमीन पर पड़ी थी, और उसका काला, मोटा, नसों से भरा लंड अनुश्री के मुंह के सामने हवा में लहरा रहा था। अनुश्री ने अपने हाथों से उसे पकड़ा, उसकी उंगलियां उसकी मोटाई को पूरी तरह से ढक भी नहीं पा रही थीं।
"उउउफ्फ्फ... छेदीमल, जब तुम पेशाब करने गए थे ना... मैं बस सब्जी छील रही थी... तभी मेरी नजर तुम पर पड़ी," अनुश्री की आवाज में एक कंपन था, जैसे वो अपने मन की गहराई से कुछ उगल रही हो। "तुम्हारा वो... इतना बड़ा, इतना गंदा, इतना मोटा... मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ देखूंगी। मेरे अंदर कुछ टूट गया था... मेरे जिस्म में आग लग गई थी। मैं खुद को रोक नहीं पाई... मैंने बहुत समय बाद ऐसा लंड देखा है,
छेदीमल ने एक गंदी सी हंसी हंसी, उसके पीले दांत बाहर झांक रहे थे। "अरे बिटिया, हम तो बस पेशाब करने गए थे... सोचा नहीं था कि हमारा माल किसी रानी को इतना पसंद आ जाएगा।" उसने अपने हाथ से अनुश्री के सिर को सहलाया और फिर धीरे से अपने लंड को उसके होंठों की तरफ धकेला।
अनुश्री ने बिना किसी हिचक के अपना मुंह खोला और उसका लंड अपने मुंह में ले लिया।
उसकी जीभ उसकी नसों पर फिसल रही थी, वो उसे चूस रही थी जैसे कोई भूखी शेरनी अपने शिकार को निगल रही हो। उसकी आंखें बंद थीं, और चेहरा लाल हो गया था। वो अपने घुटनों पर बैठी हुई आगे-पीछे हो रही थी, छेदीमल का लंड उसके मुंह में गहराई तक जा रहा था। उसकी सांसें तेज थीं, और हर बार जब वो लंड को बाहर निकालती, उसके थूक की एक पतली सी लकीर हवा में लटक जाती।
"आआह्ह... कितना बड़ा है... उउउफ्फ्फ... इसका स्वाद... इसका गंध... मुझे पागल कर रहा है," अनुश्री ने लंड को बाहर निकालकर कहा, उसकी आवाज में एक अजीब सी मादकता थी। वो फिर से उसे चूसने लगी, इस बार और जोर से, और गहराई तक। छेदीमल के हाथ उसके सिर पर थे, वो उसे अपने लंड की तरफ दबा रहा था।
साला मैं तो दीदी के मुँह से निकले शब्दों को सुन सुन कर हैरानी से मरा जा रहा था, कैसे वो किसी अनजान आदमी के लंड की तारीफ कर सकती है.
"चूसो बिटिया, पूरा लो... हमारा पूरा माल तुम्हारे लिए है," छेदीमल ने कहा और अपने कूल्हों को आगे-पीछे करने लगा। अनुश्री का मुंह अब पूरी तरह से उसके लंड से भर गया था,
उसकी नाक छेदीमल की झांटों में दब रही थी। वो गों-गों की आवाजें निकाल रही थी, लेकिन रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
"आअह्ह्ह.... गो... गो....गोच... गोचम.. पच... पच...
फिर छेदीमल ने उसे खींचकर पास के एक पुराने पलंग पर लिटा दिया, जो शायद टेंट में पहले से रखा हुआ था। उसने अनुश्री को पीठ के बल लेटाया और खुद उसके उसके मुँह के पास आकर खड़ा हो गया, और पच.... फच... से अपने पुरे लंड को एक बार मे अनुश्री के मुँह मे घुसेड़ दिया.
वेक.... वेक.... दीदी के गले तक उभार बन गया था, हलवाई के धक्को से साफ साफ गले मे नजर आ रहा था,
मेरी दीदी भी किसी रंडी की तरह उस लंड को अंदर लिए जा रही थी,
सामने ही बैठा उसका भतीजा कड़ाई मे पलटा चलाये उस दृश्य को देख रहा था, उसकी तरफ दीदी की टांगे थी जिसे उसने हवा मे फैला रखा था, सलवार अभी भी उसके जिस्म पर थी.।
अनुश्री के मुंह से गीली-गीली आवाजें निकल रही थीं—ग्लक... ग्लक... ग्लक।
उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे, लेकिन वो किसी रंडी की तरह चूस रही थी, जैसे उसकी जिंदगी इसी में बसती हो। थूक और लार से पूरा चेहरा साना हुआ था,थूक रिस रिस के गालो से होता हुआ जमीन पर गिर रहा था.
"आआह्ह... ले बिटिया... पूरा ले... हमारा पानी निकलने वाला है," छेदीमल ने जोर से कहा और अपने कूल्हों को और तेजी से हिलाने लगा। अनुश्री के हाथ उसके कूल्हों पर थे, वो उसे और अंदर धकेल रही थी। अचानक छेदीमल का शरीर अकड़ गया,, छेदीलाल ने टट्टो तक अपने लंड को दीदी के मुँह मे धसा दिया रहा, आआहहहहह..... मैं गया छेदीलाल ने एक जोरदार सिसकारी भरी, और उसके लंड से गर्म, गाढ़ा वीर्य अनुश्री के मुंह में उड़ेल दिया।
"आआआहहहहम्म... बिटवा हम तो गए आआहह.... उउउफ्फ्फ.... फच... फच.. फचका...
हमफ.... हमदफ़्फ़्फ़... उउउफ्फ्फ्फ़.... खी... खो... खो.. खाऊ.... करतई दीदी ने गर्दन ऊपर की, उसका पूरा मुँह और चेहरा वीर्य से भर गया था, काफ़ी सारा वीर्य अनुश्री के हलक से नीचे उतर गया था, उसके होंठों के किनारे से थोड़ा सा वीर्य बाहर बह रहा था। हमफ़्फ़्फ़.... हमफ़्फ़्फ़...वो हांफ रही थी, उसका चेहरा पसीने और थूक से चिपचिपा हो गया था।
दीदी किसी रंडी की तरह दिखाई पड़ रही थी, जिसका पूरा चेहरा गैर मर्द के वीर्य थूक पसीने से साना हुआ था, काजल पूरा चेहरे पे फ़ैल गया था.
उउउफ्फ्फ्फ़.... ये दृश्य मेरे लिए बहुत भयानक था, ऐसी मुँह चुदाई की मैंने कभी कल्पनाओ भी नहीं की थी.
बाहर मेरा लंड फटने को आ गया था, लेकिन मेरी दीदी अनुश्री अभी भी शांत नहीं हुई थी, उसके हाथ अपनी जांघो के बीच चल रहे थे, जैसे कुछ कुरेद रहे हो, मैंने ध्यान दिया उसके सलवार का बीच का हिस्सा पूरा गिला हो गया था, जैसे पेशाब कर दिया हो.
किस कद्र प्यासी हूर हवस मे डूबी हुई थी मेरी बहन.
छेदीमल पलंग से हटकर एक तरफ बैठ गया, उसकी सांसें अभी भी तेज थीं। लेकिन तभी चौथमल, वो दुबला-पतला लड़का जो बाहर भट्टी चला रहा था, टेंट के अंदर आ गया। शायद उसे अपनी ही बारी का इंतज़ार था। उसकी आंखों में भी वही भूख थी जो छेदीमल में थी। अनुश्री अभी भी पलंग पर निढाल पड़ी थी, उसकी सलवार का नाड़ा ढीला हो गया था। चौथमल ने बिना कुछ कहे उसकी सलवार को नीचे खींच दिया। अनुश्री की गोरी, मांसल जांघें नजर आने लगीं, और उसकी काली पैंटी पूरी गीली दिख रही थी।
चौथमल ने बिना किसी देरी किये उसकी पैंटी को भी खिंच लिया और अनुश्री की चूत को देखकर एक गहरी सांस ली। उसकी चूत गुलाबी थी, गीली थी, और उसकी वासना की गर्मी से फूली हुई थी।
ऐसी चुत शायद ही इन लोगो ने सपने मे देखी हो, बिल्कुल साफ सुथरी, गोरी, रस से भीगी हुई
अब भला ऐसी चुत देख के कोई खुद को कैसे रोक सकता था.
चौथमल भी नहीं रुका उसने अपने होंठ उसकी चूत पर रख दिए और जोर-जोर से चाटने लगा। उसकी जीभ अनुश्री की चूत के हर कोने को छू रही थी, वो उसकी भगनासा को चूस रहा था, और अपनी जीभ को अंदर तक डाल रहा था। अनुश्री की सिसकारियां फिर से शुरू हो गईं—"आआह्ह... उउउफ्फ्फ... चौथमल... और चाटो... मेरी आग बुझाओ...चाटो इसे खा जाओ.. उउउफ्फ्फ.... माँ... मर गई मैं... उउउफ्फ्फ...
अनुश्री आंखे बंद किये बड़बड़ा रही थी, अपने स्तनों को मसल रही थी, जाँघे और ज्यादा फ़ैल गई थी.
चौथमल ने अपनी जीभ को और तेजी से चलाया, उसकी चूत से निकलने वाला रस उसके मुंह पर लग रहा था। वो उसे चाट रहा था जैसे कोई भूखा कुत्ता हड्डी चाटता हो।
चौथमल यही नहीं रुका जी भर के चुत चाटने के बाद उसने अनुश्री को पलट दिया, अब वो अपने घुटनों और हाथों के बल थी। चौथमल ने उसकी गांड को फैलाया और अपनी जीभ उसकी गांड के छेद पर फेरने लगा। अनुश्री का पूरा शरीर कांप रहा था,
अनुश्री ने ऐसी उम्मीद भी नहीं की थी, वो किसी कुतिया की तरह उस पुराने टूटे फूटे पलंग पर थी, उसकी गांड हवा मे लहरा रही थी,
चौथमल की गंदी गीली जबान अनुश्री के गांड के छेद को कुरेदने लगी, आआहहहह..... उउउफ्फ्फ.... आउच.... मर गौ मैं... आअह्ह्ह....
वो जोर-जोर से चिल्ला रही थी—"उउउफ्फ्फ... हाय... मेरी गांड... चाटो इसे... और चाटो...
"
चौथमल ने अपनी जीभ को उसकी गांड के अंदर तक डाला, उसका एक हाथ अनुश्री की चूत को सहला रहा था। उसकी उंगलियां अनुश्री की चूत में अंदर-बाहर हो रही थीं, और दूसरी तरफ उसकी जीभ उसकी गांड को चाट रही थी।
अनुश्री का शरीर अकड़ने लगा, उसकी सांसें रुकने लगीं, और अचानक वो जोर से चिल्लाई—"आआह्ह्ह्ह... मैं झड़ रही हूं..."
आअह्ह्ह..... नहीं.... उफ्फ्फ्फ़..... आअह्ह्ह... इस्स्स..... उसकी चूत से गर्म रस की धार निकल पड़ी, चुत से निकला काम रस चौथमल के मुंह पर जा गिरा । जिसे उसने किसी अमृत के समान चाटता रहा, तब तक चाटता रहा जब तक अनुश्री पूरी तरह से निढाल होकर पलंग पर गिर नहीं गई।
अब कब आओगी बेटा हेल्प करने " पास बैठे छेदीमल ने पूछा.
"उउउउफ्फ्फ.... आअह्ह्ह... आज शाम को, लेकिन इस बार पूरी हेल्प लेनी होंगी मेरी " अनुश्री ने सलवार ऊपर चढ़ा ली और नाड़ा कसने लगी.
मैं बाहर खड़ा ये सब देख रहा था। मेरा दिमाग, मेरा शरीर, सब कुछ ठंडा पड़ गया था। मेरे घर में क्या हो रहा था? मेरी मां, मेरी बहन... सब कुछ एक सपने की तरह लग रहा था, लेकिन ये हकीकत थी। मैं चुपचाप वहां से हट गया, मेरे कदम लड़खड़ा रहे थे। आगे क्या होगा, ये सोचने की हिम्मत भी मुझमें नहीं बची थी।
मैं निढाल सा आंगन की तरफ आ गया, मेरा लंड वैसे ही खड़ा था, लेकिन दिल बैठ गया था.
मैं वही डाइनिंग टेबल पर बैठा, कोई 5 मिनट मे ही मेरी दीदी अनुश्री आ गई थी,.
"अरे अमित कब आया तू?" दीदी पास बैठ गई
"अभी आया दीदी " मैंने मरे हुए मन से कहाँ
"बड़ा थका थका सा लग रहा है क्या हुआ, रुक चाय बना लाती हूँ "
सही कहाँ मैं ही देख के थक गया था जबकि दीदी तो चुत चूसवाने के बाद और भी तारोंताज़ा लग रही थी.
और भी दमक रही थी, साला मैं ही चुतिया हूँ मुझे समझ आने लगा था.
खेर दीदी चाय बनाने चली गई थी, मैंने घड़ी देखी 2बज गए थे.
पो... पोम... पो....
तभी मोहित, प्रवीण और मौसी भी मार्किट से आ गए थे, उनकी कार की आवाज़ दरवाजे पे आ रही थी.
साला अब इन लोगो ने क्या काण्ड किया होगा इस बात की चूल मचने लगी थी.
Contd....
2 Comments
next part kab tak aayega
ReplyDeleteWe are waiting for the next update...plz add
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