पिछला भाग पढ़े मेरी संस्कारी माँ -9
अभी 5 मिनट ही हुए थे फोन रखे... तभी माँ ने असलम को फिर से फोन किया.
असलम:- हैल्लो....
माँ :- आ रही हूँ मै, तुम दरवाजा खुला रखना.
असलम की बांन्छे खुल गई, वो अपने प्लान मे कामयाब हो गया था, एक घरेलु, संस्कारी अमीर घर की औरत उसकी झोपडी मे पधार रही थी.
माँ :- बस 5 मिनट के लिए आउंगी मुझे बहुत डर लग रहा है.
असलम:- ठीक है आ जाओ मै वेट कर रहा हूं
माँ :- अभी आई... माँ के चेहरे पे एक शिकन सी थी साथ ही कामुक मुस्कान, माँ ने अपने लाल होंठो को दांतो तले दबा दिया,
जैसे कोई नवयुवती पहली बार अपने प्रेमी से मिलने जा रही हो.
चोरी मे भी क्या मजा है, आज मेरी माँ उसे महसूस कर रही थी.
माँ ने तुरंत ही अपनी हील वाली सैंडल पहन ली, चलने को हुई ही थी की, रुक गई...
.और माँ ने जल्दी से अपनी साड़ी को ऊपर उठाया और अपनी कच्छी उतार दी, माँ पर कामवासना सवार थी.
मतलब मेरी संस्कारी माँ बिना कच्छी के असलम के पास जा रही थी, माँ की जाँघे चुत से निकले पानी से पसिज गई थी, कच्छी पूरी गीली थी, जिसे देख माँ के दिल मे एक हुक सी उठ गई और आआहहहह..... मुँह से एक सिस्कारी फुट पड़ी.
माँ ने अपनी कच्छी वही सोफे फार फेंक दी.
उधर असलम ने जल्दी से जल्दी अपना बिस्तर ठीक किया, थोड़ा साफ कीया, कितना करता बिस्तर तो वसे ही मैला कुचला सा था.
असलम ने तुरंत ही अपने पुरे कपडे उतर दिए, और झोपडी के एक कोने मे पेशाब करने लगा,
पेशाब कर लंड को सिर्फ झटका दे दो चार बून्द पेशाब की नीचे गिरा दी, हरामी ने लंड भी साफ नहीं किया था अपना.
छी कितना गन्दा था असलम कसाई.
इधर मेरी माँ ने घर को ताला मार कर बाहर को आ गई,
माँ ने चारो तरफ नजर दौड़ा के देखा, आस पास कोई नहीं था, सब घरो मे थे मतलब रास्ता साफ था, हालांकि दिल अभी भी जोर जोर से धड़क रहा था.
माँ की मंजिल सामने ही थी, भाग के 5सेकंड मे चली जाती, लेकिन आज यही नाजुक सा फसता किसी दरिया के सामान नजर आ रहा था, ना जाने कितनी मुश्किल थी इस राह मे.
मेरी माँ ने एक लम्बी सांस खींची.... और चल दी असलम की झोपडी की और.
ऊँची हील पहनने के कारण माँ की गांड आपस मे रगड़ खा कर एक आवाज़ उत्पन्न कर रही थी, गांड की दरार पसीने और चुत रस से भीगी हुई थी.
माँ थोड़ी आगे को गई, सडक सामने थी उसके पार असलम की झोपडी, माँ ने एक नार पीछे पलट कर देखा, कोई देख तो नहीं रहा, चारो तरफ सन्नाटा था.
माँ ने तेज़ कदमो से सडक पार कर ली, लेकिन जैसे ही झोपडी के दरवाजे तक पहुंची, मीट की स्मेल आने लगी, माँ ने साड़ी के पल्लू से नाक बंद मर ली,
आज माँ को इस बदबू से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, मेरी संस्कारी शुद्ध शकहरी माँ जिसने मांस मीट देखा भी नहीं था.
वो माँ उस काम को करने वाले इंसान की झोपडी मे धड धड़ाती घुस गई.
जैसे ही माँ झोपडी के अंदर पहुंची, माँ के परफ्यूम और बॉडी की स्मेल से झोपडी महक उठी, आना इस झोपडी के भाग्य खुल गए रहे,
एक घरेलु संस्कारी औरत एक कसाई खाने मे अपनी खूबसूरत कामुक जिस्म के साथ मौजूद थी.
झोपडी मे चारो तरफिर अंधेरा पसरा हुआ था, झोपडी की दीवारों से बाहर की रौशनी दिख जा रही थी.
माँ :- असलम.... असलम बेटा कहा हो? इतना अंधेरा क्यों रखा है?
असलम:- सीधा अंदर आ जाओ आंटी यही हूँ मै.
माँ :-मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा असलम? लाइट तो जला देते,
असलम:- ठीक जला देता हूँ...
भक्क्कम्म्म.. से एक तेज़ रौशनी का बल्ब जल गया, तेज़ रौशनी पूरी झोपडी मे फ़ैल, जैसे ही रौशनी हुई मेरी माँ का गला सुख गया, गाल शर्म से लाल हो गए
सामने असलम पूरा नंगा, हरामी एक दम नंगा खड़ा था,
काला बदन लाइट की रौशनी मे चमक रहा था, असलम की जांघो के बीच उसका 9इंच का मोटा काला लंड पूरी तरह अकड़ा हुआ खड़ा था और मेरी संस्कारी माँ बिल्कुल उसके सामने खड़ी थी.
मेरी माँ की नजर तो मानो असलम के लंड पर ही अटक के रह गई थी, माँ मुँह खुला का खुला रह गया, माँ कभी असलम के लंड को देखती तो कभी असलम की आँखों को जिसमे हवस भरी पड़ी थी.
मेरी माँ काली साड़ी मे माल लग रही थी ऊंची हील्स पहने, मांग मे लाल सिन्दूर, स्लीवलेस ब्लाउज और सर पर पल्लू ओढ़ रखा था.
माँ को हलकी हलकी पेशाब की गंध आ रही थी, असलम अपनी झोपडी मे ही एक कोने पर मूतता था, जिसकी गंध वहाँ फैली हुई थी,
माँ ने ना चाहते हुए भी एक लम्बी सांस खिंच ली, महक गाँधी थी लेकिन एक अजीब सा नशा था, माँ ना चाहते हुए भी उस स्मेल को और ज्यादा महसूस कर रही थी, जितना सूंघटी इतना उसके बदन मे चीटिया रेंगने लगती.
माँ ने आज अपने खूबसूरत जिस्म से इस झोपडी को ताजमहल बना दिया था.
माँ :- छी तुम बिना कपडे के क्यों खड़े हो? हे भगवान असलम मुझे शर्म आ रही है.
असलम:- अब बड़ी शर्म आ रही है, उस दिन तो खुद मुझे अपनी कच्छी मे लंड मसलती देख रही थी.
माँ :- ऐसा कुछ नहीं है पहले तुम कुछ पहन लो,
मेरी माँ असलम को कपडे पहनने केिये बोल रही थी, लेकिन माँ की नजरें असलम के झटका खाते लंड पर ही टिकी हुई थी.
मेरी माँ की हालत असलम को नंगा देख कर ख़रब हो रही थी, मम्मी का मुँह सुख रहा था, जिस्म पर चीटिया सी रेंग रही थी.
माँ पहली बार असलम का लंड इतना नजदीक से देख रही थी, जितना माँ ने सोचा था उस से कहि ज्यादा मोटा और लम्बा लंड था असलम का, नसो के उभार साफ दिख रहे थे.
माँ :- गड़ब... माँ ने थूक निगल लिया, बेटा दरवाजा भी नहीं लगा है कोई आ गया तो?
माँ को बस पकडे जाने का डर था बाकि कोई समस्या नहीं थी.
असलम:- तो लगा दो ना दरवाजा, मै तो अपनी झोपडी मे नंगा ही रहता हूँ.
माँ :- .सच मे तुम ऐसे ही रहते हो क्या या झूठ बोल रहे हो?
असलम:- ये मेरा घर है और अपने घर मे कैसे भी रह सकता हूँ. तुम नहीं रहती अपने घर मे नंगी?
माँ :- हे भगवान तुम कैसी बात कर रहे हो? मै एक औरत हूं
मै कैसे ऐसे रह सकती हूं और वे भी मेरे घर मे, मेरे घर पर बेटा और पति भी है, मै तुम्हारी तरह अकेली नहीं रहती.
मम्मी की नजर असलम के लटकते हुए लंड पर ही थी बात असलम से कर रही थी.
असलम:- चलो दरवाजा लगा कर आ जाओ.
माँ :- असलम बेटा मुझे बहुत शर्म आ रही है प्लीज कुछ पहन लो ना.
असलम :- शर्म कैसी आंटी, तुमने तो पहले भी मेरा लंड देखा है.
माँ झेप के रह गई, लेकिन नजरें चाह कर भी असलम के लंड से नहीं हटा पा रही थी, " मै सिर्फ उस दिन के लिए सॉरी बोलने आई थी, सॉरी अब मै जाऊ?
असलम:- आंटी अगर सच में उस दिन के लिए आप शर्मिंदा है तो मुझसे यहाँ पास आ कर माफ़ी मांगी?
माँ :- क्यों बेटा? अच्छा लो कान पकड़ के बोलती हूँ सोरी,
असलम:- यही बात मेरे पास आ कर बोलो..
माँ का दिल जोर जोर से धड़क रहा था, माँ जानती थी असलम पास क्यों बुला रहा है, माँ खुद ऐसा चाहती थी लेकिन संस्कार उसे ऐसा करने से रोक रहे थे, भारतीय घरेलु शादीशुदा औरत खुद कैसे पहल कर सकती है.
"नहीं तुम नंगे हो, मै पास नहीं आउंगी, मै शादीशुदा औरत हूं और तुमसे बहुत बड़ी हूं.
असलम:- अब तुम नाटक कर रही हो आंटी, मुझे सब पता है, तुम मुझे और मेरे लंड को देख रही थी उस दिन ट्रक मे जब मै तुम्हरी गुलाबी कच्छी को अपने लंड पर लपेट कर हिला रहा रहा,
फिर रात को मैंने वही कच्छी मुठ मार कर तुम्हारी छत पर फेंक दी थी, जिसे तुमने बिना धोये ही पहनी थी, फिर उसे ही पहन कर मंदिर भी गई थी.
आंटी आप खुद चाहती हो मेरे लंड को, आप प्यासी हो, आपकी चुत मचल रही है मेरे लंड के लिए.
ये फालतू के संस्कार, मर्यादा, शर्म अब रहने दो, जी जिंदगी खुल कर जिनि चाहिए, कितनी मस्त हो आप, क्या बदन है आपका.
अपने जिस्म को तड़पता मत छोडो, उस पर जुल्म मत करो.
असलम ने जो भी दिल मे था सब बयां कर दिया था, सब कुछ सच था जो भी उसने कहा.
माँ असलम की बात सुन हक़ीक़त मे आ गई थी, वो भी तो यही चाहती थी, बस डर की वजह से उसने असलम को चाटा मारा था.की
ऐसा नहीं है तो वो क्यों इतना सज सवार के यहाँ आई है, एक कसाई एक गैर मर्द, जाहिल गँवार लड़के से मिलने.
उसे क्या लेना देना इन सब से.
माँ की अंतरात्मा उसे झकझोर रही थी, उसे हक़ीक़त का ज्ञान करा रही थी.
माँ चुपचाप खड़ी थी, कुछ समझ नहीं आ रहा था, जिस्म तो पहले से ही गरम था, सामने असलम के नंगे झटके खाते लंड को देख चुत रिसने लगी थी, असलम अपने लंड को पकडे माँ को निमंत्रण दे रहा था.
लेकिन माँ के संस्कार उसके पैरो को पकडे हुए थे,
माँ ने निर्णय ले लिया था, माँ वापस दरवाजे की तरफ मुड़ गई....
मेरी माँ ने शायद अपनी और परिवार को इज़्ज़त का ख्याल रख लिया था.
माँ मे कदम दरवाजे की तरफ बढ़ गए, हाथ ने दरवाजे की कुण्डी आ गई थी....
पीछे असलम हक्का बक्का खड़ा माँ को देखे जा रहा था, ये क्या हुआ अचानक,... असलम का खड़ा लंड मुरझाने लगा...
मेरी माँ मै अभी भी संस्कार बचे थे शायद?
तो क्या मेरी संस्कारी माँ कामिनी झोपडी से चली जाएगी?
देखते है आगे.
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