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मेरी बेटी निशा -21

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रात के 2:30 बजे , जगदीश राय , नंगा होकर, थक कर सो गया था। कमरे में लाइट चालु थी । और कमरे के लाइट में जगदीश राय का लंड निशा के चूत-रस से चमक रहा था।
तभी उसे महसूस हुआ की कोई कमरे में आ चूका है। और देखा तो वहां आशा खड़ी थी।
आशा: क्यों पापा…सो गए क्या…
जगदीश राय: अरे बेटी …तुम यहाँ क्या कर रही हो…इस वक़्त।
आशा: आपकी प्रॉमिस भूल गए…
जगदीश राय: नहीं बेटी…आज तो नहीं होगा…प्लीज…जाओ सो जाओ…
आशा: यह अच्छी बात नहीं है…पापा…आप ने हमे सिखाया था की "प्रोमिस शुड बी केपट"। और आप ही मुकर रहे हो…
जगदीश राय: अरे बेटी…सॉरी…पर आज नहीं होगा कुछ…
आशा (ग़ुस्से में): मैं इतना रात तक उल्लु की तरह जागी…और आप…ह्म्मम।। मैं निशा दीदी को कल सब बता दूँगी…।
जगदीश राय: क्या? नहीं…?
आशा: हाँ… और सशा को भी…?
जगदीश राय: बिलकुल नहीं…चूप।।।…
आशा:नहीं…तो ठीक है…फिर यह लो…चाटो
यह कहकर आशा खड़े खड़े अपनी स्कर्ट ऊपर कर दी। और गांड जगदीश राय के तरफ कर दी।
गाँड , गोलदार सावली और उसमें से चिरती हुई सफ़ेद पूँछ। न चाहते हुए भी लंड पर ज़ोर आ गया। लंड दर्द करने लगा।
जगदीश राय, थका हुआ शरीर लेकर आशा की गांड की पूँछ को धीरे से उठाया। और पूँछ से छिपी सांवली मुलायम चूत नज़र आ गयी।
जगदीश राय यह उम्मीद में था की कहीं उसने आशा की चूत को चाटकर उसका पानी निकाल दिया, तो वह शायद उसे आज रात के लिए छोड दे।
वह आशा की चूत पर टूट पडा। आशा अपना गांड पीछे कर , पीछे से चूत चटवा रही थी।
आशा:मम…हाहह… पापा…जीभ अंदर तक डालो न…।।लो…मैं पैर ऊपर कर देती हूँ…।।अब लो…।।चाटो खुलकर चाटो…।।हाँ…।ऐसे ही…।और चाटो……।और ।।और…।आह…
करीब १५ मिनट तक आशा खुद को रोककर खड़ी रही और फिर खड़े खड़े ही ज़ोर से झड़ने लगी। उसका सारा शरीर ज़ोर से हिलने लगा।
जगदीश राय को लगा मानो वह ज़मीन पर गिर जाएगी। पर आशा बेड पर गिर पडी।
जगदीश राय ने राहत की सास ली…
जगदीश राय: बहुत ज़ोरो से झडी तुम बेटी…थक गयी हो सो जाओ अब…
आशा: क्या…नही…यह तो मैं दीदी की चुदाई देखकर हॉट हो गयी थी…इसलिए…अपना लंड खड़ा कीजिये…मेरे गांड में बहुत ज़ोरो की खुजली मची है…
आशा बेशरमी से अपने पापा को उनपर होने वाले ज़ुल्म का घोषणा दी।
जगदीश राय , चौकते हुए… अरे नहीं बेटी…मैं न कहा न…आज तो…
आशा ने तुरंत ज़ोरो से जगदीश राय का लंड मुठी में थाम लिया और उसे बेदरदी से पकड़कर कहने लगी
आशा: आज तो मैं इससे इत्तनी चुदवाऊंगी…सारी प्यास बुझा दूँगी…निचोड लूँगी इसे…
जगदीश राय: ओके
…बेटी…। तुम क्या निचोड़ेगी…पहले से तेरे दीदी ने निचोड लिया है इसे…।
आशा: पापा…बहुत रस बचा है इसमे…अभी दिखाती हु…
और आशा तेज़ी से लंड चूसने लगी। पूरे गले तक लेने लगी। जगदीश राय आँखे बंद किये अपने लंड के दर्द को बर्दाष्त कर रहा था। और देखेते ही देखते जगदीश राय का लंड , १० मिनट के भयंकर चूसाई के बाद ,बिलकुल रॉड की तरह खड़ा हो गया।
टट्टो में बहोत दर्द हो रहा था, पर न जाने क्यू, इस दर्द से लंड पर और प्रभाव पड़ रहा था और लंड और कड़क हो चला था। इसके बीच आशा ने गांड में से पूँछ को "फोक" की आवाज से बाहर खीच लिया।
आशा बिना चेतावनी दिए, घूम गयी और सीधे अपनी गांड के छेद में लंड घुसेड दिया। बिना तेल लगाये हुआ गाँड का छेद,में जगदीश राय का दर्दनाक लंड चीरता हुआ घूस गया।
जगदीश राय के आखों से आसूँ निकल गया, पर उसने अपनी चीख़ को रोका।
आशा को भी दर्द हुआ, पर आशा को दर्द से मजा आ रहा था।
आशा : अब दिखाती हु आपके इस लंड को…बहुत चोद रहा था दीदी की चूत को…अब इसका सामना मेरे गांड से है…
जगदीश राय: आह…धीरे बेटी धीरे…
यह कहना मुश्किल हो गया था की कौन मरद और कौन औरत।
आशा एक हाथ से अपने चूत को सहला रही थी और अपनी सूखी गांड लंड पर पटक रही थी। क़रीब चुदाई डेढ़ घन्टे तक चली। आशा 3 बार झड चुकी थी,
जगदीश राय का लंड पूरा लाल हो चूका था। और जो जगदीश राय को डर था वह होने वाला था। उसका लंड झडने के कगार पर था। और झडते वक़्त टट्टो का दर्द वह सह नहीं सकता था। 
जगदीश राय: बेटी…रुक…जा…में झडने वाला हु…।मुझे…।दरद…होगा…रुक रुक…।आह…नहीं…आह…ओह।
झगीश राय , इतना ज़ोरो से चीख़ पड़ा के टट्टो-से दर्द का जैसा बम फटा हो। वह पागलो की तरह कापने लगा।। और लंड आशा की गांड के अंदर पिचकारी मारता गया। हर पिचकरी का दर्द एक चीख़ ले आता।
आशा, अपने पापा के ऊपर हंसती जा रही थी। उसे अपने पापा के इस दुर्दशा पर मजा आ रहा था।
जगदीश राय , अभी झड़ना , ख़तम कर ही रहा था की अचानक से दरवाज़ा खूल गया।


दोनो चौक पडे। झडते हुए पापा के ऑंखों के सामने रूम के उजाले में , पतली मैक्सी पहने निशा खड़ी थी। 

निशा गुस्से से जगदीश राय और आशा को घूरे जा रही थी।
निशा बिना कुछ कहें १० सेकेंड तक दोनों को घूरकर, बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गयी।
जगदीश राय तुरंत लंड बाहर खीच लिया, लंड अभी भी वीर्य उगल रहा था। 
जगदीश राय: हे भगवन…निशा सब देख चुकी है…अब खुश हो गयी…मैंने कहाँ था…निकल जा यहाँ से…
आशा , पहले डरी हुई थी पर अब वह मुस्कुरा दी।
आशा: अच्छा हुआ…दीदी ने…सब देख लिया…अब तो मैं यहाँ पूरी रात गुज़ार सकती हुँ।।क्यूं…?
जगदीश राय (धीमे आवाज में, समझाते हुए) : चुप कर…अपने कमरे में चली जा।।
आशा: अच्छा बाबा जाती हूँ…
और वह , फर्श पर से स्कर्ट उठाकर…गांड मटका के चल दी।
जगदीश राय , मन में, निशा को कल किस मुँह से देखे। इस विचार में टेंशन के साथ सोने की कोशिश करने लगा।
अगले दिन सुबह जगदीश राय, बिना किसी से कुछ कहें , जल्द ऑफिस चला गया। वह निशा को फेस नहीं करना चाहता था। 
हालांकी वह जानता था की रात को उसे निशा से मुलाकात करनी पडेगी।
अगले तीन दिन तक घर पर सन्नाटा बना रहा। जो भी बात होती वह बस सशा ही करती। निशा अपने पापा से मुह तक नहीं मिला रही थी।
आशा का बरताव ऐसा था जैसे कुछ हुआ ही न हो। पर निशा और आशा भी नहीं बोल रहे थे।
चौथे दिन, जगदीश राय ने फैसला किया की जो भी हो उसे इस उलझन हो सुलझाना पडेगा, नहीं तो उसका परिवार बिखर भी सकता है। 
वह सुबह जाने से पहले आशा से कहा।
जगदीश राय: आशा आज स्कूल से सीधे घर आना…एक्स्ट्रा क्लास में मत बैठना।
आशा: क्यों…।आज क्या है…
जगदीश राय (ग़ुस्से से): जो बोला है वह करो…।और ज़बान को लगाम दो…गॉट इट।
आशा, पापा के इस रूप से थोड़ी डर गयी और हामी में सर हिला दी।
शाम को जगदीश राय 3 बजे घर पहुँच गया। दरवाज़ा निशा ने खोल दिया। निशा बिना कुछ कहे अंदर को जाने लगी।
जगदीश राय: आशा आ गयी…?
निशा : हाँ आ गई।
जगदीश राय: उसे भी बुलाओ और तुम भी आओ। मुझे कुछ बात करनी है…
निशा: पापा…।इसकी…कोई…
जगदीश राय (भारी आवाज़ में) : जो बोलै है …वह करो…
थोड़ी देर बाद आशा और निशा दोनों ड्राइंग रूम में पापा के सामने खड़े थे।
जगदीश राय: बैठो…पिछले कई दिनों…इस घर में…जो कुछ भी चल रहा था … वह क्यों हुआ …कैसे हुआ…मैं नहीं जानता…
जगदीश राय: और जो भी हुआ है…इसमें सब गलती मेरी है…तुम्हारी कुछ नहीं…
जगदीश राय: इस लिए…आज के बाद…सब कुछ बंद…।तुम दोनों बहने हो…और तुम्हे ज़िन्दगी भर हर वक़्त प्यार से रहना है…
निशा: पर पापा…
जगदीश राय: बीच में मत टोको…।।आज से…जैसे हम थे…।।तुम्हारी मम्मी के वक़्त वैसे ही रहेंगे…समझी…।अब तुम दोनों गले मिलो और यह सब भूल जाओ।
आशा और निशा दोनों अपने पापा के तरफ घूरते रहे और फिर दोनों मुस्कुरा दी।
निशा: पापा…हमने तो कब की सूलह कर दी…और गले भी मिल लिए…और क्या आप के कहने से क्या सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा…
जगदीश राय: कोशिश तो कर सकती है।
निशा: नहीं पापा…जो भी हुआ है…सही या गलत मैं नहीं जानती…लेकिन…हालात के अनुसार हुआ है…आप और मैं या आप और आशा दोनों हालात के चँगुल मैं फस गये। अब इससे पीछे जाना मुमकिन नही।
जगदीश राय: तुम बोलना क्या चाहती हो।
निशा: यहि की गलती मेरी है…मुझे आप दोनों के प्यार और खेल को देखकर ग़ुस्सा नहीं करना चाहिए था। आशा का भी आप पर उतना ही हक़ है जितना मेरा। और वैसे भी मैं तो सिर्फ आपको खुश देखना चाहती थी। और वही ख़ुशी आपको आशा दे उसमे कोई बुराई नही।
जगदीश राय का मुह खुला ही रह गया। 
जगदीश राय:क्या…तुम…
निशा: हाँ पापा…आजसे आप की मर्ज़ी…माँ की कमी पूरी करने के लिए आपकी दोनों बेटियां तैयार है।।क्योंकि आप हमारे प्यारे पापा है…
जगदीश राय को यकीन नहीं हो रहा था की क्या सुन रहा है।
निशा: तो ठीक है…क्या अब मैं आपके लिए चाय बना लाऊँ…की किसी को और कुछ बातें करनी है।
आशा जो अब तक चुप थी, बोल पडी।
आशा (शरारती ढंग से): क्या चाय से पहले…मैं और पापा एक राउंड खेल खेलकर आये…?
निशा: चुपकर…बेशरम…
आशा: नही दीदी।…।तीन दिन हो चुके अब…।अब सहा नहीं जाता।।।
निशा: मारूंगी अभी मैं तुझे…जा ऊपर होमवर्क कम्पलीट कर…।पापा इससे तो आप पूरा हफ्ता अपने कमरे से बाहर रखना…
आशा: पापा…आप दीदी की बात मत सुनना।
जगदीश राय को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वह क्या बोले।
जगदीश राय: तुम दोनों मेरी प्यारी बेटी हो।
आशा ने निशा को ठेंगा दिखाकर , ऊपर कमरे की तरफ भाग गयी। निशा भी हँस दी।
और 3 दिनों के बाद आज जगदीश राय बेहद खुश था। वह सोफ़े पर बैठा और पेपर उठा कर पढने लगा।
पर दिमाग पर यह सवाल था की आज किसकी बारी होनी चाहिये।
शाम को जब आशा और सशा पढाई कर रहे थे और निशा किचन में खाना बना रही थी तो जगदीश राय किचन में चला गया और निशा को बाँहों में भरकर चूमने लगा।आज 3 दिनों में जगदीश राय की प्यास बहुत बढ़ गई थी।उसने निशा की गांड को सहलाते हुए कहा।
जगदीश राय:बेटी तुमने अपना वादा पूरा नहीं किया।
निशा:कौन सा वादा पापा।
जगदीश राय:टूर पर जाते समय तुमने वादा किया था की तुम मुझे स्पेशल गिफ्ट दोगी।कब दोगी तुम और आज रात मेरे पास आओगी ना।प्लीज
निशा: ओके पापा।मैं रात के 12 बजे आऊँगी।और गिफ्ट भी दूँगी।पहले अभी तो छोड़िए।
जगदीश राय:निशा के होठों को चूसकर ओके बेटी मैं इंतज़ार करुँगा।
जब सभी खाना खाकर सो जाते है।लेकिन जगदीश राय की आँखों में नींद नहीं थी।उसका लंड अकड़ा हुवा था।वह 12 बजे तक जाग रहा था अपना लंड सहलाते हुए।वह पहले ही आशा को बता चूका था की आज रात वो निशा के साथ बिताएगा।तुम कल दिन में स्कुल बंक करके आ जाना।मैं भी ऑफिस से छुट्टी ले के 12 बजे तक आ जाउँगा।
रात के ठीक बारह बजे निशा जगदीश राय के रूम में आती है।वो भी सिर्फ ब्रा और पेंटी में। ठीक किसी मॉडल की तरह चलते हुए आकर जगदीश राय के बेड पर बैठ जाती है।
जगदीश राय अब निशा को पीछे अपनी बाँहों में भर लेता हैं और अपने जलते हुए होंठो को निशा की गर्देन पर रखकर धीरे धीरे चाटने लगता हैं और बहुत धीरे धीरे उसकी पीठ तक नीचे सरकता हुआ नीचे आता हैं. निशा की बेकरारी सॉफ उसकी सिसकारियों से सुनाई दे रही थी.जगदीश राय आज उसे पूरा पागल करने के मूड में था. वो चाहता था कि निशा पूरी तरह से बेकरार होकर उसकी बाहों में अपने आप को पूरा समर्पण कर दे. वैसे तो निशा ने ये बात बोल दी थी मगर करने और कहने में बहुत फ़र्क होता हैं.
जगदीश राय बहुत देर तक निशा के ऐसे ही पूरे बदन को जीभ से चाटता हैं और उधर निशा का सब्र जवाब देने लगता हैं.
निशा- पापा अब बस भी करो. क्या आप मुझे पागल करना चाहते हैं. अब मुझसे बर्दास्त नही होता.
जगदीश राय- इतनी जल्दी भी क्या हैं बेटी अभी तो पूरी रात पड़ी हैं. अभी तो मैने सिर्फ़ चिंगारी भड़काई हैं.अभी तो आग लगाना बाकी हैं.अब देखना ये हैं ये आग कितनी जल्दी शोले में बदल जाती हैं.
निशा- ये तो वक़्त ही बताएगा पापा कि आप के अंदर कितनी आग हैं. आज मैं भी देखूँगी कि आप में कितना दम हैं और इतना कहकर निशा मुस्कुरा देती हैं.........

जगदीश राय- तू मुझे चॅलेंज कर रही हैं देख लेना मैं दावे से कहता हूँ कि तू मेरे सामने टिक नहीं पाएगी. मैं अच्छे से जानता हूँ कि किसी भी लड़की को कैसे वश में किया जाता हैं.
निशा मुस्कुराते हुए- ये तो वक़्त ही बतायेगा कि आपका पलड़ा भारी हैं या मेरा.
जगदीश राय- फिर ठीक हैं लग गयी बाज़ी. अगर तू मेरे सामने अपनी घुटने ना टेक दे तो मैं आज के बाद हमेशा के लिए तेरी गुलामी करूँगा ये तेरे पापा की ज़ुबान हैं.
निशा- सोच लो पापा कहीं ये सौदा आपको महँगा ना पड़ जाए.
जगदीश राय- मर्द हूँ एक बार जो कसम ले ली तो फिर पीछे नहीं हटूँगा. मगर तू मुझे किसी भी बात के लिए मना नहीं करेगी. बोल मंजूर हैं.
निशा मुस्कुराते हुए- फिर ठीक हैं मुझे आपकी शर्त मंज़ूर हैं.
जगदीश राय कुछ देर ऐसे ही खामोश रहता हैं फिर गहरे विचार के बाद वो निशा के बिल्कुल करीब आता हैं. वैसे जगदीश राय मंझा हुआ खिलाड़ी था. इसकी दो वजह थी एक तो उसका हथियार काफ़ी दमदार था और दूसरा वो बहुत सैयम से काम लेता था. किसी भी परिस्थिति में वो विचलित नही होता था. 
और पिछलों कुछ दिनों में आशा की कुँवारी गांड मारकर उसका मनोबल और भी बढ़ चूका था।
इस लिए उसे पूरा विश्वास था कि वो हर हाल में बाज़ी ज़रूर जीत जाएगा. हालाकी निशा की रगों में भी उसका ही खून था मगर निशा इन सब मामलों में एक्सपर्ट नहीं थी. उसने तो अपनी ज़िंदगी में बस अपने पापा के साथ सेक्स किया था. इस वजह से उसे सेक्स के बारे में ज़्यादा पता नहीं था.
जगदीश राय एक दम धीरे से निशा के पीछे आता हैं और और उसके कंधे पर अपने लब रखकर एक प्यारा सा किस करता हैं और अपने दोनो हाथों को धीरे से बढ़ाकर निशा के दोनो बूब्स को धीरे धीरे मसलना शुरू कर देता हैं. निशा मदहोशी में अपनी आँखें बंद कर लेती हैं और उसके मूह से सिसकारी निकल जाती हैं.
जगदीश राय फिर अपना होंठ निशा के पीठ पर रखकर फिर से उसी अंदाज़ में हौले हौले चाटना शुरू करता हैं. निशा की पैंटी पूरी भीग चुकी थी. वो तो बड़े मुश्किल से अपने आप को संभालने की नाकाम कोशिश कर रही थी.
निशा- पापा बस भी करो मुझे कुछ हो रहा हैं.
जगदीश राय-क्या हो रहा हैं बता ना. क्या तेरी चूत गीली हो गयी हैं. हां शायद यही वजह हैं और इतना कहकर जगदीश राय एक पल में अपना हाथ नीचे लेजा कर निशा की चूत को अपनी मुट्ठी में थाम लेता हैं.निशा के मूह से एक तेज़ सिसकारी निकल पड़ती है. फिर धीरे धीरे वो अपना हाथ निशा की पैंटी के अंदर सरका देता हैं और उसके क्लिट को अपनी उंगली से मसल्ने लगता हैं. निशा एक दम से बेचैन हो जाती हैं और जवाब में वो अपना लिप्स को अपने पापा के लिप्स पर रखकर उसे चूसने लगती हैं.
एक हाथ से जगदीश राय निशा के बूब्स को मसल रहा था और दूसरे हाथों से वो निशा की चूत को सहला रहा था. और निशा उसके लिप्स को चूस रही थी. माहौल पूरा आग लगा देने वाला था. थोड़ी देर में जगदीश राय का हाथ पूरा गीला हो जाता हैं.
निशा- पापा.............. अब बस भी करो मुझसे अब बर्दास्त नही हो रहा. आप शर्त जीत गये.
Contd....

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