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नागमणि -37

 अपडेट -37, निर्णायक युद्ध.

अंतिम अध्याय 


आज सुबह कि एक नयी किरण निकली थी.

रंगा बिल्ला का आतंक हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो चूका था, काम्या लड़खड़ाती बहादुर का सहारा लिए बढ़ी जा रही थी.

उसकी छाती गर्व से फूल के दुंगनी हो चली थी.

आखिर उसका इन्तेकाम पूरा हुआ " धन्यवाद बहादुर...... मुझे माफ़ करना मैंने तुम्हे गाली दि,हिजड़ा कहाँ "

काम्या का गला रुंध आया था,उसकी आंखे भीगी हुई थी

"ये....ये.....क्या कह रही है मैडम आप " आज पहली बार बहादुर ने काम्या का ये रूप देखा था.

"तुम ना आते तो उस गुफा मे मेरी नंगी लाश पड़ी होती " काम्या कि आँखों ने आँसू त्याग दिये

उसका बदन बहादुर के जिस्म मे भींचत चला गया.

"मममममममममममम.....मममममम....मैडम " बहादुर इस से आगे कुछ बोल ना सका पहली बार किसी स्त्री का स्पर्श उसे मिला था,उसकी सांसे थम गई, जिस्म ठंडा पड़ने लगा.

काम्या जब अलग हुई,उसकी आँखों मे बेसुमार प्यार था बहादुर के लिए "अब चलोगे भी या ऐसे भी मूर्ति बने रहागे हाहाहाःहाहा " काम्या खिलखिला उठी उसे पता था उसके आलिंगन का क्या असर होता है मर्दो पे.


गांव विष रूप

डॉ.असलम अस्तबल मे घोड़ा लगा के बाहर निकला ही था कि.

"असलम कहाँ थे तुम रात भर " असलम बुरी तरह से चौका वो आवाज़ सुन के.

"ठ...ठ....ठाकुर साहब आप यहाँ " असलम का चेहरा हैरानी और गुस्से से लाल हो चला.

"तो कहाँ होना चाहिए था ठाकुर साहेब को " पीछे से बिल्लू कि आवाज़ ने उसे चौका दिया

बिल्लू के चेहरे पे शक था.

"कल रात पुलिस ने छुड़ा लिया था,लेकिन अभी भी कामवती का कोई पता नहीं लगा है " ज़ालिम सिंह ने कहाँ

"पता लग जायेगा.....मै कल पूरी रात आपको और कामवती को ही खोजता रहा " असलम ने जैसे तैसे खुद को जज्ब कर रखा था..

"मै आता हूँ ठाकुर साहब अभी " असलम तुरंत ही हवेली के अंदर चला गया


"ठाकुर साहेब आपको नहीं लगता डॉ.असलम के हाव भाव पहले जैसे नहीं रहे " बिल्लू ने शक जाहिर किया.

" वो थक गया होगा, इसलिए वो हमारा परम मित्र है, जाओ खाने पानी का पूछ लो उन्हें " ठाकुर ज़ालिम सिंह भी अपने कमरे कि ओर बढ़ चला.

बिल्लू डॉ.असलम के पीछे चल दिया " ये.....ये क्या असलम ठाकुर जलन सिंह के बंद कमरे कि तरफ क्यों जा रहे है "

असलम बेहिचक दरवाजा खोल के अंदर दाखिल हो गया पीछे पीछे बिल्लू ने भी दरवाजे कि ओट ले ली.

"हाहाहाःहाहा.....क्या किस्मत है जलन सिंह तेरी, राह चलते ही नागमणि मिल गई वाह वाह....असलम ने अपने पाजामे से एक पोटली निकाली.

बिल्लू बड़े ही अचराज से असलम कि हरकत देखे जा रहा था, असलम के हाथ मे एक पोटली थी लगता था जैसे किसी सांप कि चमड़ी कि बनी हो.

" अब इस नागमणि के बदले सर्पटा मेरा गुलाम होगा हाहाहाःहाहा.....सारे दुश्मन एक साथ ख़त्म " असलम ठहाके लगा के हॅस पड़ा.

"तड़...तड़....तड़.....वाह डॉ.असलम वाह क्या खूब दोस्ती निभा रहे हो " पीछे से बिल्लू ताली पिटता हुआ आगे को बढ़ा.

असलम तनिक भी विचलित नहीं हुआ " अच्छा हुआ तू खुद आ गया,मुझे पता है तू मेरे पे शक करता है " डॉ.असलम कि आवाज़ मे एक भरिपन आ गया था,आवाज़ भर्रा रही थी.

"पीछे पलटो वरना खोपड़ी तोड़ दूंगा " बिल्लू ने हाथ मे थमा डंडा उठाया ही था कि.

बिल्लू के छक्के छूट गए,हाथ थर थर कंपने लगे, लाठी छूट के जमीन पे जा गिरी..

"ठ...ठ....ठा...ठाकुर ज्ज्ज्ज्बजज....जलन सिंह " बिल्लू लगभग मरी सी आवाज़  मे बोला.

असलम के चेहरा और मोहरा बदल गया था ,बढ़ी बढ़ी मुछे शान से लहरा रही थी.

अपनी अदामकाद तस्वीर के सामने ही खड़ा था असलम उर्फ़ जलन सिंह.

"आआआआप..." बिल्लू ने जैसे मौत देख ली हो.

"मै जानता हूँ तुम क्या सोच रहे हो,मै शुरू से इसी हवेली मे था, कायदे से तो मुझे अपने पोते का शरीर ग्रहण करना चाहिए था लेकिन वो कमजोर नपुंसक निकला उसके बस का नहीं मेरे काम को अंजाम देना"

बिल्लू मन्त्रमुग्ध सुनाता जा रहा था.

" तुम्हारी वफादारी इस हवेली के प्रति है, और अब इस हवेली का असली मालिक यानि कि मै आ चूका हूँ तो ठाकुर ज़ालिम सिंह का क्या काम?

समझ रहा है ना तू बिल्लू?

बिल्लू :- अअअअअ....हाँ....हाँ.....मालिक.

"वैसे भी एक म्यान मे दो तलवार कैसे रह सकती है, अब कामवती तो किसी एक कि ही हुई ना हहहहहहह..हाहाहाहा....एक भयानक सर्द आठठहस गूंज उठा


बिल्लू कि रूह फना होते होते बची.

"चल जा अब आज रात ही ठाकुर कि बली लेंगे हम " बिल्लू वहाँ से निकल गया

लेकिन एक शख्स और था जिसने इनकी बाते सुन ली थी.

"मेरा शक सही निकला,असलम के पास ही है नागमणि, अब नागमणि मुझसे दूर नहीं हो सकती " मंगूस चुपचाप वहाँ से खिसक लिया सभी को रात का इंतज़ार था.

उसके दिमाग़ मे युक्ति गूंज रही थी उसे शयाद रास्ता साफ नजर आने लगा था.



वही दूसरी और एक औरत सांप लपेटी चली जा रही थी. शाम हो चली थी.

"कब तक पहुंचेंगे नागेंद्र हम लोग "

"बस आ ही गया घुड़पुर कामवती "


अंदर रानी रूपवती क महल मे "क्या हुआ वीरा....क्या हुआ? तुम इतने बैचैन क्यों हो रहे हो? क्या बात है.

"हिननननननन......हीनननन......ठा..ठा....ठकुराइन वो आ रही है मुझे अभास हो रहा है उसका.

कौन....कौन....आ रही है वीरा.

रूपवती ने वीरा क बदन को सहला रही थी जो कि अभी अपने घुड़रूप मे ही था,नियति यही थी कि वीरा सिर्फ रात मे ही मानव शरीर धारण कर सकता था.

"वो....भी....रहा है साथ मे मेरा सबसे बड़ा दुश्मन " वीरा क चेहरे क भाव बदलने लगे थे.

गुस्सा आँखों मे उतर आया था.

"ककककक.....कौन...आ रहा है वीरा कुछ तो बताओ " रूपवती वीरा का रोन्द्र रूप देख कांप उठी थी.

कि तभी वीरा....हिनहिनाता....हवेली से बाहर कि और भागा...

"वही...रुक जा....रुक जा वही नागेंद्र तेरी हिम्मत कैसे हुई यहाँ तक आने कि "

नागेंद्र जो कि कामवती क साथ हवेली कि दहलीज पे पहुंच ही गया था.

"आज तेरी मौत मेरे हाथ लिखी है वीरा समझ इसलिए आया......फुसससस.....फुसससस.....

नागेंद्र ने भी भयानक रूप अख्तयार कर लिया, और कामवती क शरीर को छोड़ वीरा पे झापट पड़ा.


"नहीं........चुप......दोनों...चुप.....रुक.जाओ...." कामवती जोर से चिल्लाई.

रूपवती भी तब तक बाहर आ चुकी थी,सामने का नजारा उसके लिए बिल्कुल नया था क्या ही रहा है कुछ समझ नहीं आ रहा था.

साँप को लड़ता देख इतना तो समझ आ गया था कि ये नागेंद्र ही है.

"तूने ही मारा था ना कामवती को? मेरा प्यार छिना मुझसे " वीरा ने अपनी टांगो का भयानक प्रहार नागेंद्र क फन पे कर दिया


वही नागेंद्र कि कुंडली वीरा के शरीर पे कसती चली गई," मारा तूने और इलज़ाम मुझपे, कामवती को मार तूने मुझे इतने बरसो तक दर दर कि ठोंकर खाने क लिए छोड़ दिया,मेरा सब कुछ छीन लिया "

"रुक जाओ.....रुक जाओ.....

लेकीन रुकने को कोई तैयार ही नहीं था.

"रुक जाओ.....मुझे तुम दोनों मे से किसी ने नहीं मारा था,मै तुम दोनों से ही प्यार करती हूँ "

कामवती एकाएक चिल्ला उठी.....उसकी आंखे नम हो गई,गला रूँघ आया.

जमीन पे बैठी फफ़क़ फफ़क़ क रोने लगी.

एक दम से माहौल मे सन्नाटा छा गया, साय....साय.....करती हवा वहाँ खड़े हर जिस्म को हिला रही थी


नागेंद्र और वीरा मुँह बाये खड़े थे,दोनों कि पकड़ ढीली हो गई थी.

रूपवती अभी भी सब समँझने कि कोशिश कर रही थी.

"कककम्म.....कककक.....क्या?" वीरा और नागेंद्र क मुँह से एक साथ ये शब्द निकल पड़े.

"हाँ....हाँ.....ये सच है वीरा और नागेंद्र मै एक ही समय मे तुम दोनों से समानरूप से प्यार करती हूँ, शनिफ्फफ्फ्फ़....शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....." कामवती आज हज़ारो साल बाद अपने दोनों प्यार को सामने पा क खुद को संभाल नहीं पा रही थी,सांस खिंच खिंच के उसका सुबकना चालू ही था.

"उठो बहन.....अंदर चलो कभी कभी कुछ गलत फहमीया हो जाती है " एक जोड़ी मजबूत हाथो मे कामवती को कंधे से पकड़ के उठा दिया.

कामवती के बदन मे एक तारावट सी दौड़ गई जैसे किसी अपने ने छुवा हो,कितनी ममता थी इस छुवन मे जो वो काफ़ी सालो बाद महसूस कर रही थी.

"सुबुक.....सुबुक......आ...अअअअअ....आप तो ठकुराइन है ना रूपवती ठकुराइन " कामवती खड़ी हो चली

"हाँ मै ही वो अभागी हूँ जो अपने रूप और बदन को ले कर हमेशा तिरस्कार का पात्र बनी रही,आओ छोटी बहन अंदर चलो "

दोनों हवेली कि दहलीज पार कर चुके थे,पीछे किसी उल्लू कि तरह नागेंद्र और वीरा उन दो नयी नयी बहनो को देखते रह गए..औरत को समझना उनके बस कि बात नहीं थी.

कल तक रूपवती कामवती से नफरत करती थी लेकीन आज उसके सामने आते ही मन का सारा मेल धूल गया.


रात हो चली थी....बाहर साय साय करती ठंडी हवा अपने प्रचंड रूप मे हवेली कि दीवारों को हिला रही थी.

वीरा सूरज ढलते ही अपने इंसानी रूप मे आ चूका था, जब तक दोनों अंदर पहुंचते उनके सामने दो लड़किया किसी बिछड़ी हुई बहनो कि तरह गले लग रही थी.

"मुझे माफ़ करना कामवती नागेंद्र कि नागमणि मैंने ही अपने स्वार्थ के लिए अपने भाई कुंवर विचित्रसिंह को भेजा था,मुझे नहीं पता था इसका अंजाम क्या होगा?" रूपवती हाथ जोड़े खड़ी थी.

"ऐसा ना कहे दीदी आप मन से सुन्दर है आप कि जगह मै भी होती तो यहीं करती " कामवती एक बार फिर रूपवती से गले जा लगी.

"लेकीन नागमणि कहाँ है चोर मांगूस आया क्यों नहीं अभी तक?" नागेंद्र कि आवाज़ से दोनों दरवाजे कि और पलटे

"यहीं तो चिंता का विषय है मेरा भाई कभी नाकामयाब नहीं होता " रूपवती कि चिंता जायज थी

मांगूस कभी नाकामयाब नहीं हुआ.

परन्तु आज मौका अलग था दस्तूर अलग था....


गांव विषरूप मे ठाकुर कि हवेली मे

असलम उर्फ़ ठाकुर जलन सिंह अपने भयानक रूप मे विधमान था.

हवन कुंड के सामने ठाकुर ज़ालिम सिंह रस्सीयो से लिपटा हुआ जान कि भीख मांग रहा था " असलम...असलम....होश मे आओ क्या हो गया है तुम्हे? तुम मेरर बचपन के दोस्त हो जिगरी हो "

"चुप हरामी तेरे जैसे कमजोर लोग ना तो दोस्त होने लायक है ना पोता होने के,मुझे शर्म आती है कि मेरा खून इस तरह ख़राब हो गया नपुंसक निकला तू " असलम एक बार फिर दहाड़ा.

"तेरी बाली ही मुझे मेरा सम्पूर्ण रूप प्रदान करेगी बेटे, वैसे भू कामवती के जिस्म पे सिर्फ मेरा हक़ है सिर्फ मेरा हाहाहाहाहाबा......एक भयानक अट्ठाहास हवेली मे गूंज उठा.

ये हसीं इस कदर सर्द और भयानक थी कि अँधेरे मे निकलती एक परछाई के पैर तक लड़खड़ा गए.

एक आवाज़ ने वहाँ मौजूद सभी का ध्यान भंग किया

असलम :- कौन है वहाँ.....? पकड़ो उसे बिल्लू कालू रामु

तीनो ही अपने मालिक का आदेश पा कर उस भागती परछाई पर टूट पड़े.

"मालिक लगता है कोई चोर है.....?" बिल्लू ने उस आदमी को सामने प्रस्तुत किया.

असलम :- कौन हो तुम.....और ये....ये.....ये हाथ मे क्या है

असलन को उस शख्स के हाथ मे कुछ चमकता सा दिखाई दिया.

असलम :- इधर दें इसे, शायद तू इसके बारे मे जनता है तभी तू सिर्फ इसे ही लेने आया,वरना तो अंदर काफ़ी सोना चांदी था तूने सिर्फ ये चमकती चीज ही क्यों उठाई?

"ये नागमणि है और ये तेरा और सर्पटा कि मौत का सामान है, ये इसके मालिक के पास ही जाएगी, चोर मांगूस कभी असफल नहीं होता " मंगूस के हौसले अभी भी बरकरार थे.

असलम :- ओह तो तू ही है वो कुख्यात चोर मांगूस...तुझे तो बहुत जानकारी लगती है इस नागमणि के बारे मे, छीन तो इस से ये मणि

नागमणि एक बार फिर से असलम के हाथो मे थी.

एक डर....और खौफ साफ साफ मंगूस के चेहरे पे दिख रहा था,आज पहली बार वो असफल महसूस करने लगा था.

"हाहाहाहाहा.....आया बड़ा महान चोर जो कभी विफल नहीं हुआ.

"मालिक क्या करे इसका " बिल्लू ने बीच मे टोकते हुए कहाँ

असलम :- करना क्या है ये खतरा है हमारे लिए इसकी मौत तो निश्चित है लेकीन थोड़े समय बाद.

असलम उर्फ़ ठाकुर जलनसिंह अपने हवन को पूर्ण करने मे लग गया,ठाकुर ज़ालिम और चोर मांगूस अपनी हार पे पछता रहे थे.

कि तभी.....खड़क.....खट.....से ठाकुर ज़ालिम सिंह कि गर्दन पे एक जबरजस्त वार हुआ उसका सर हवन कुंड मे जा गिरा....

ऐसा भयानक अकस्मात नजारा देख मुर्दो के कलेजे काँप जाते यहा तो फिर भी जिन्दा इंसान थे.

मांगूस का दिल पसिज गया,मौत उसकी आँखों के सामने नाचने लगी,उसका भी यहीं अंजाम निश्चित था...

कि तभी एक जलती हुई सी चिंगारी निकाल असलम के शरीर मे समाने लगी.

"आआहहहहहह.....हुर्रर्रर्रर्रर्रर्र......हहहरररर......आअह्ह्ह.....इतने सालो बाद सम्पूर्ण जिस्म प्राप्त हुआ सम्पूर्ण शक्ति महसूस हुई.

अब

 वहाँ असलन का कोई नामोनिशान नहीं था,एक लम्बा चौड़ाबड़ी बड़ी मुछ वाला ठाकुर जलन सिंह खड़ा था.

अपने सम्पूर्ण स्वरुप और ताकत के साथ "हाहाहाहाहा......अब कामवती को कोई नहीं छीन सकता मुझसे "

बिल्लू रामु कालू...ज़ालिम सिंह कि लाश को ले जा के नदी किनारे दफना दो साथ ही इस चोर उचक्के को भी ले जाओ साले को जिन्दा दफना देना.

हाहाहाहाहाबा.......

एक भयानक हसीं के बाद सन्नाटा छा गया था.

साय...साय...करती हवा चोर मांगूस के रोम रोम को भेद रही थी,नदी जैसे जैसे पास आती मांगूस को मौत साक्षात् खड़ी नजर आती.

बिल्लू :- क्यों बे महान चोर मंगूस डर लग रहा है मरने से.

मंगूस क्या बोलता उसकी तो घिघी बँधी हुई थी.

कुछ ही देर मे दो क़ब्र खोद दि गई.....और कुछ ही देर मे भर भी दि गई....

"चलो भाइयो अपना काम भी हो गया और ठाकुर जलन सिंह का भी अब चल के हवेली पे शारब पी जाय"


बिल्लू कालू रामु तीनो आगे बढ़ गए थे,पीछे बची थी दो ताज़ा भारी गई क़ब्र.


वही रूपवती कि हवेली मे.

"आप चिंता ना करे ठकुराइन रूपवती मंगूस वाकई ने महान चोर है खाली हाथ नहीं लोटेगा" नागेंद्र फुसफुसाया

"मुझे पता है नागेंद्र लेकीन अचानक ही कुछ अनहोनी कि आशंका ने मुझे घेर लिया है " रूपवती व्यथित थी

वीरा :- चिंता ना करे ठकुराइन कल सुबह मै खुद जाऊंगा कुंवर विचित्र सिंह को लेने,लेकीन अभी जो सबसे बड़ा रहस्य है वो जान लेने दो.मै मरा जा रहा हूँ कामवती को नागेंद्र ने भी नहीं मारा तो किसने ये आग लगाई मेरे भाई जैसे दोस्त को खून का प्यासा बना दिया.

वीरा कि आंख मे अँगारे साफ झलक रहे थे, पास ही रुखसाना भी उस बातचीत मे शामिल हो चुकी थी.

कामवती :- वीरा नागेंद्र जैसा कि तुम जानते हो मै तुम दोनों से ही एक साथ प्यार करती थी,मै चाह कर भी किसी एक के लिए अपनी चाहत को कम नहीं कर पा रही थी.

मेरा सामना पहली बार किसी अद्भुत पशु मानवो से हुआ था, मै अचंभित थी जब तुम दोनों कि सच्चाई जानी,उस वक़्त तक तुम दोनों ही एक दूसरे के लाराम शत्रु बन चुके थे इसलिए कभी बता ही नहीं पाई कि तुम दोनों ही मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा हो.


मुझे नागेंद्र का कोमल तरीके से मेरे जिस्म को छूना और वीरा का रुखा कठोरपन दोनों ही पसंद आने लगा था.

नागेंद्र अपने कोमल जीभ से मेरे जिस्म को छूता तो एक बिजली सी दौड़ उठती थी,लेकीन वही बिजली कड़क के गिरने लगती जब वीरा मेरे बदन को निचोड़ के रख देता.

मै दोनों के प्यार कि आदि हो चली थी.

मकान दुविधा मे थी कि किसको हाँ बोलू,तुम दोनों ही मुझे अपनी दुल्हन बनाने पे अड़े थे.

मेरा  तन और मान किसी एक को भी छोड़ने को तैयार नहीं था.

मै कोई निर्णय ले पति कि मेरे माँ बाप ने मेरी शादी ठाकुर जलनसिंह के साथ तय कर दि, ये बात सुन के मेरा कलेजा कांप उठा, लेकीन क्या करती मेरे पिता जी ठाकुर जलन सिंह के कर्जो तले दबे थे.

मुझे तुम दोनों को छोड़ ठाकुर जलनसिंह से शादी करनी पड़ी.

लेकीन शादी के बाद भी मैंने कभी मन से ठाकुर के साथ सम्बन्ध नहीं बनाये,इच्छा ही नहीं थी मुझे कभी वो सुख का अहसास हुआ ही नहीं.

ठाकुर जलन सिंह माँ शक मुझपे गहराता चला गया,उसने कुछ आदमी मेरे पीछे लगा दिये.

ये वही दिन था जब मै कामवासना मे लिप्त नागेंद्र और उसके बाद वीरा के साथ सम्भोग लिप्त थी.

ये बात ठाकुर तक जा पहुंची.....उसी रात

ठाकुर :- साली छिनाल बहुत खुजली है तेरी गांड और चुत मे.

मुझे छोड़ के सब से मरवाती फिरती है.

मै पूर्णतया नंगी बेबस ठाकुर और उसके आदमियों के सामने पड़ी हुई थी.

उसके बाद ठाकुर के आदमियों ने जी भर के मेरा बलात्कार किया,उसके बाद मेरे गुप्तागो को नष्ट कर दिया,मै खूब चिल्लाई दया कि भीख मांगी लेकीन उस कमीने का दिल ना पसीजा.

कामवती :- ठाकुर मैंने तुमसे कभी प्यार नहीं किया तुम सिर्फ मेरा जिस्म भोग सकते हो मेरा मन नहीं.

उसके बाद मेरे गुप्तागो मे लकड़ी सरिया डाल के मेरे जिस्म को छलनी कर दिया ठाकुर ने,मै अभी भी तुम दोनों कि प्रतीक्षा मे अंतिम सांस गिन रही थी, मेरी आंखे बंद थी लेकीन धड़कन तुम दोनों का नाम ले रही थी.

लेकीन ठकुर यहाँ भी चालाकी कर क्या मेरे सीने पे घोड़े के खुर के निशान छाप दिये और मेरी जांघो पे सांप के काटने के निशान बना दिये.

उसके बाद जब नागेंद्र वहाँ पंहुचा तो खुर के निशान देख वीरा को कातिल समझ बैठा और वीरा सांप के निशान देख नागेंद्र को.

तुम दोनों ही एक दूसरे के खून के प्यासे हो उठे....

इस गलतफहमी मे तुम दोनों ने ही अपना सब कुछ उजाड़ लिया


परन्तु इस पाप कि सजा जलनसिंह को तांत्रिक उलजुलूल ने दि. और तुम दोनों को वहशीपन के लिए श्राप भुगतना पड़ा और मुझे एक दर्दनाक मौत मिली.

कमरे मे एक भयानक सन्नाटा छा गया,जहाँ वीरा और नागेंद्र अचंभित किसी मूर्ति कि तरह खड़े थे वही रूपवती,कामवती,रुखसाना कि आँखों मे आँसू थे.

किस भयानक मौत से गुजरी थी कामवती,इस भयानकता दर्दभारी मौत का अंदाजा लगा पाना ही मुश्किल था.

कि तभी.....चीव....चीव.......कि आवाज़ ने सभी का ध्यान भंग किया.

एक चील हवेली के आंगन से उड़ती चली गई उसके पंजे में कुछ कागज़नुमा चीज फसी थी जो कि सीधा रूपवती के कदमो मे जा गिरी.

रूपवती ने तुरंत ही वो चिठ्ठी उठा ली.

"सावधान ठकुराइन रूपवती, ठाकुर जलन सिंह वापस आ चुके है और नागमणि उनके ही अधिकार मे है, सर्पटा और जलन सिंह कल अमावस्या कि रात एकजुट हो कर आप लोगो पे हमला करने वाले है, सभी को ले कर किसी सुरक्षित जगह कि ओर पलायन कर जाइये,इसमें ही सभी का भला है.

ठाकुर ज़ालिम सिंह और कुंवर विचित्र सिंह उर्फ़ चोर मांगूस अब इस दुनिया मे नहीं रहे,मृत्यु को प्राप्त हो गए है बेहतर होगा,बाकियो कि जान बचाइये ".

सच का हितेषी.

तांत्रिक उलजुलूल.


चिठ्ठी पढ़ते ही रूपवती के पैर कांप गए वो अपना बोझ ना संभाल सकी,उसके हाथ से चिठ्ठी निकलती हुई कामवती के कदमो तक जा गिरी.

रूपवती किसी मूर्ति कि तरह जड़ हो गई थी,उसका नाकारा पति और जान से प्यारा भाई मौत को प्राप्त हो गए थे.

"अब क्या करेंगे वीरा और नागेंद्र,जिस नागमणि का सहारा था उसको लाने वाला चोर मांगूस तो मारा गया?"कामवती कि जुबान पे बेशकीमती सवाल था.

एक अजीब मरघाट सा सन्नाटा पसर गया था,एक मनहूसियत सी छा गई थी वातावरण मे.

तो क्या वाकuई चोर मंगूस मारा गया?

या फिर से एक बार मौत को मात दें देगा चोर मंगूस?


****************


रूपवती कि हवेली (घुड़पुर ) मे एक मरघाट सा सन्नाटा छाया हुआ था,सब कि निगाहों मे भय साफ दिख रहा था,होंठो पे एक ही सवाल था

"अब क्या होगा?"


इस चुप्पी को तोड़ा रूपवती ने " वीरा तैयारी करो हमें यहाँ से कहीं दूर निकल जाना चाहिए "

"कैसी बात कर रही है ठकुराइन क्या हम कायर है?" वीरा ने आवाज़ मे जरा हिम्मत दिखाई.

"तो क्या हो तुम बहादुर हो....क्या कर लोगे उनका? कैसे म

लड़ोगे,मेरा लालच मेरे भाई को ले डूबा,नहीं चाहिए मुझे सुन्दर काया,कामुक जिस्म मेरा प्यारा भाई मैंने ही उसे नागमणि लाने को कहाँ था.

रूपवती फफ़क़ फफ़क़ के रो बड़ी,उसका मान पछतावे से सुलझ रहा था, एक सुन्दर काया पाने को उसने क्या नहीं किया? अपनी खोई हुई इज़्ज़त पाने कि लालसा मे उसका जान से प्यारा भाई भी मारा गया


"बस बहुत हुआ अब किसी कि जान नहीं जाएगी " रूपवती उठ खड़ी हुई

"ठकुराइन आप चिंता ना करे हमारे पास कल तक का समय है कुछ हाल जरूर निकलेगा " पास खड़ी रुखसाना ने रूपवती को हिम्मत बंधाई.

"क्या हाल निकलेगा सबसे पहले तो तुम्हारी इज़्ज़त को ही तार तार किया जायेगा,क्यूंकि वीरा और सर्पटा के मुताबिक तुम ही घुड़वती हो,तुम्हे ही तो लेने आ रहा है वो सपोला " रूपवती मानने को तैयार नहीं थी.

"हाँ मै जानती हूँ हालांकि मुझे याद नहीं है,लेकीन इतना सब देख सुन के यकीन हो चला है कि मै ही वीरा कि बहन घुड़वती थी,लेकीन आप सझने कि कोशिश करे मुझे अपने गांव कामगंज जाने दीजिये यदि कल दोपहर तक मै वापस ना लौटी तो आप सब यहाँ से कहीं दूर कूच कर जाना " रुखसाना कि आवाज़ मे एक जादू था मजबूत इरादा था.

वीरा :- तुम्हारे गांव मे आखिर रखा क्या है?

रुखसाना :- मेरे अब्बा मतलब ससुर जो कि एक मौलवी है,कूच समय से मै उनके कहने पे कूच चुनिंदा लोगो के वीर्य एकत्रित कर रही थी, ये वाला अंतिम है जो कि ठाकुर ज़ालिम सिंह का है.

रुखसाना ने सारी कहानी कह सुनाई कैसे उसका पति मरा, रंगा बिल्ला के साथ उसके क्या सम्बन्ध रहे सब कुछ.

सभी हैरान थे लेकीन इस एक अंतराल मे सभी के मान मे विश्वास जग उठा था.

वीरा :- ऐसी बात है बहना तो मै भी तुम्हारे साथ चलता हूँ,मै तूफान कि गति से अभी भी दौड़ सकता हूँ.

जल्दी ही वापस आ जायेंगे.

सभी इस बात से संतुष्ट थे क्यूंकि वीरा ही एकलौता ऐसा प्राणी था जिसके पास उसकी शारीरिक ताकत तो थी ही.

वरना तो नागेंद्र बिन नागमणि के विषहीन सांप के अलावा कुछ नहीं था,ना ही रुखसाना घुड़वती बन सकती थी वो सिर्फ आमनारी ही थी.


ठकुराइन रूपवती कि आज्ञा ले रुखसाना और वीरा गांव कामगंज कि ओर दौड़ चले.



थाना विषरूप

मध्य रात्रि 

"काफ़ी रात हो चुकी है मैडम घर नहीं जाना " बहदुर कि आवाज़ ने इंस्पेक्टर काम्या को लगभग चौंका दिया.

"वो....वो...वो.....जाना है ना,काम्या हड़बड़ाई सी कुर्सी पे सीधी हुई जैसे किसी गहरी नींद से जागी हो.

काम्या ने एक मदमस्त सी अंगाड़ाई ली दोनों हाथ सर के पीछे जाने से मदमस्त बड़े भारी स्तन उभर के बाहर को निकल आये, जिसका बाहरी भाग ऊपर के खुले बटन से बाहर झाँक रहा था.


बहादुर ये दृश्य देख के सकपका गया,उसके लिए आज का दिन कुछ ऐसा ही था सुबह से जब से उसने काम्या के कोमल बदन का स्पर्श पाया था उसका जिस्म उसके काबू मे नहीं था,पैंट के आगे का हिस्सा उठा उठा सा ही लग रहा था.

काम्या ने अंगाड़ाई लेते हुए बहादुर किनर देखा जी उसे ही एकटक देखे जा रहा था.

काम्या कि नजर बहादुर पे ही टिकी हुई थी,उसका नजरिया बहादुर के लिए बदल गया था,काम्या को पैंट मे बना उभर साफ नजर आया.

अब काम्या जैसे कामुक और हसीन औरत ऐसे मौके भुनाने से कहाँ चुकती है,उसे ना जाने क्या मस्ती सूझी....उसका एक हाथ अपने गले के आगे कि हिस्से पे जा लगा....चट....चटतट.....कितने मच्छर हो गए है चौकी मे.

काम्या कि इस हरकत ने उसकी वर्दी का एक बटन और खोल दिया, दो गोरे गुलाबी बड़े से मोटी हल्की रोशनी मे चमक उठे, लगभग 50% हिस्सा वर्दी से बाहर झाँक रहा था


"गड़ब....गुलुप.....बहादुर ने एक बार थूक निगल लिया, दूसरी बार निगलना चाहा कि मालूम हुआ गला तो सुख गया है, आंखे बाहर को आ गई.

"क्या हुआ बहादुर क्या देख रहा है ऐसे औरत नहीं देखी कभी " काम्या ने जानबूझ के चुटकी लेते हुए कहा.


काम्या कि रौबदार आवाज़ ने बहादुर को झकझोड़ दिया "ककककक.....कुछ...नहीं.....नहीं...मैडम....वो...वो...मै...तो..बस....मै तो "

"हाँ हाँ चल ठीक हबसाब समझती हूँ...आखिर तू भी तो मर्द है ना, चल इधर आ थोड़ा कंधे दबा दें सुबह से दर्द कर रहे है "

बहादुर झेम्प गया उसके पास सफाई देने को कुछ नहीं था,चुपचाप काम्या कि कुर्सी के पीछे चला गया, परन्तु पीछे से नजारा और भी ज्यादा कामुक और हसीन था.

"क्या हुआ दबा ना " काम्या मंद मंद मुस्कुरा रही थी उसे पता था बहादुर कि क्या हालत है.

"ज्ज्ज्ज्बजज....जी मैडम " बहादुर के काँपते हाथ काम्या के कंधे पे जा लगे जो कि अर्धनग्न थे,काम्या ने वर्दी और ढीली कर ली थी.

"इसससस.......काम्या के मुँह से एक हल्की सी आह सी निकली बहादुर के हाथ बिल्कुल किसी लड़की कि तरह नाजुक कोमल और गद्देदार थे.

काम्या ने आजतक जितने भी मर्दो को भोगा था सब हैवान और कठोर ही थे लेकीन ये कोमल स्पर्श उसके वजूद को हिला गया.

काम्या कि आंखे बंद होती चली गई,सर पीछे को कुर्सी के तख़्त पे जा टिका.

पीछे बहादुर ती जैसे जड़ ही हो गया था,काटो तो खून नहीं, पीछे से गर्दन से लगाई 70% स्तन साफ दिख रहे थे, निप्पल के आस पास कि लालिमा साफ देखी जा सकती थी, दोनों स्तन से होती महीन दरार पेट तक का रास्ता दिखा रही थी.

बहादुर कि नजर सिर्फ काम्या के गोरे मखमली स्तन पे टिकी हुई थी, उसके हाथ खुद बा खुद काम्या के कंधे को सहला रहे थे.

ना जाने बहादुर आज इतनी हिम्मत कहाँ से ले आया था,या फिर ये काम्या के बदले हुए स्वभाव का नतीजा था क्यूंकि उसने आज तक बिना गाली दिये बहादुर से बात तक नहीं कि थी.


बहादुर का हाथ धीरे धीरे किसी मशीन कि तरह काम्या के जिस्म ले रेंग रहा था, बहादुर आज अपने जीवन का सबसे बेहतरीन नजारा देख रहा था,वो इस नज़ारे मे खोया हुआ था उसका हाथ कब धीरे धीरे नीचे सरकता जा रहा था उसे पता नहीं था.

काम्या जो कि जीवन मे पहली बार इस कदर कोमल स्पर्श का आनंद ले रही थी उसके जिस्म.मे जैसे हज़ारो चीटिया एक साथ चल रही थी,उसका मज़ाक उसपे ही भारी प्रतीत लगने लगा.

"उम्मम्मम्म......हम्म्म्म.....काम्या कि सांसे भारी हो चली, इस का अंजाम ये था कि उसके बड़े भारी स्तन दम लगा के फूलते फिर पिचकते,

पीछे खड़े बहादुर को ऐसा लगता जैसे ये स्तन अभी पूरी वर्दी फाड़ बाहर को आ गिरेंगे कि तभी वापस से हलके से उसी वर्दी मे समा जाते.

इस मनमोहक दृश्य से भला कोई मर्द कैसे ना उत्तेजित होता,बहादुर भी हुआ और ऐसा हुआ कि उसके हाथ उसके नियंत्रण मे नहीं रहे..ना जाने कैसे उसकी उंगलियां इतनी नीचे जा पहुंची कि उस पहाड़ को छू ही लिया जो कि सिर्फ सपना ही था बहादुर जैसो के लिए.

काम्या को स्तन के ऊपरी हिस्से पे बहादुर कि कोमल उंगलियों का अहसास साफ महसूस हो रहा था."इससससस.....उम्म्म......आअह्ह्ह....." काम्या के रोंगटे खड़े हो गए उसकी नाभि मे गुदगुदी सी चल पड़ी,ये गुदगुदी यहीं नहीं रुकी नाभि से होती हुई सीधा दोनों जांघो के बीच जा लगी....

काम्या आंखे बंद किये,जाँघ को बुरी तरह से आपस मे भींच लिया जैसे वहाँ से कुछ निकल ना जाये ना जाने क्या रोक रही थी काम्या.

बहादुर किसी मन्त्रमुग्ध इंसान कि तरह अपने हाथ बढ़ाये जा रहा था,कंधे से होते हुए उसके हाथ काम्या के स्तन को छू के निकल जाते,जैसे उन उभार को टटोल रहा हो,

जैसे ही हाथ लगाता वैसे ही हाथ पीछे खिंच लेता,चौकी का माहौल गरमा गया था.

काम्या का जिस्म जल रहा था,उसका तो मान था कि पकड़ के भींच दें बहादुर उसके स्तन को लेकीन कैसे कहती, ये कोमल नाजुक प्यार भरा स्पर्श उसके जिस्म कि परीक्षा ले रहा था,इतने सब्र इतने कोमलपन कि आदत ही नहीं थी उसे.

"उम्मम्मम.....शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़......शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.....काम्या कि सांसे जोर जोर से चलने लगी, जाँघे आपस मे घिसने लगे.

लेकीन बहादुर म हाथ बदस्तूर वही कर रहे थे जैसा करने को कहा गया था.

जैसे ही काम्या कि सांस चढ़ती उसके स्तन कि दरार चौड़ी हो जाती,फिर जैसे ही सांस छोड़ती वो दरार सिकुड़ के पुराने रूप ने आ जाती.

बहादुर का लंड पीछे कुर्सी के तख़्त पे ठोंकर मार रहा था, उसका लावा कभी भी फुर सकता था आखिर कब तक संभालता,काम्या का भी यहीं हाल था उसकी गर्दन इधर उधर चलने लगी थी, जाँघे आपस मे लड़ाई कर रही थी.

कि तभी...."आआआहहहहहहहहह.......बहादुर.......उफ्फ्फ.....एक चीख ने चौकी को हिला दिया"

"हुम्म्मफ्फ्फ्फफ्फ्फ़म....आआहहहह.......मैडम.....ऊफ्फफ्फ्फ़....आअह्ह्ह...." साथ मे बहादुर कि चीख भी शामिल हो चली.

"हम्म.फ़फ़फ़फ़......हम...फ़फ़फ़फ़......." बहादुर पीछे दिवार से जा लगा और काम्या कुर्सी ने निढाल सी पड़ी थी काम्या कि जाँघ के बीच चिपचिपा सा पानी छलछाला आया था,उसकी पैंट बुरी तरह गीली हो चली वही हाल बहादुर का भी था जिस लावे को सुबह से रोकने कि कोशिश मे था वो भरभरा के निकल चला साथ ही जैसे बहादुर के प्राण भी निकाल ले गया हो.

काम्या अभी कुछ कहती समझती सम्भलती कि बाहर से आवाज़ आने लगी.

"मैडम....मैडम....मैडम....गजब हो गया.....गजब हो...गया " बाहर से आती आवाज से काम्या और बहादुर जो कि अपना चरमसुःख अनुभव कर रहे थे तुरंत संभल उठे.

काम्या कि वर्दी के बटन लग गए थे, बहादुर पास ही कुर्सी पे बैठा था.

तभी एक हवलदार पास आया " मैडम गजब हो गया "

"क्या हुआ मदरचोद क्यों मरे जा रहा इतनी रात को " काम्या का चेहरा गुस्से से लाल था होता भी क्यों ना वो आज पहली बार इतनी जल्दी और इस कद्र झड़ी थी कैसे उसकी आत्मा उसकी चुत के रास्ते निकली हो वो अपने इस चरमसुख के आनंद ले ही रही थी कि ये हवलदार आ धमका.

"मैडम..वो...वो....नदी किनारे किसी आदमी कि सर कटी लाश मिली है,जिसे जंगली कुत्ते नोच रहे थे, पास से गुजरते रहागीर ने सुचना दि है " हवलदार एक ही सांस मे सब कह गया.

काम्या का मूड ख़राब हो चूका था "चल साले बता कहाँ है लाश,लोगो को भी बेवक़्त मरना होता है " काम्या कुर्सी से खड़ी हो चली,साथ ही बहादुर भी पीछे पीछे हो लिया.

दोनों कि पैंट गीली ही थी.

काम्या को नदी पहुंचने मे अभी वक़्त था लेकीन वीरा और रुखसाना कामगंज पहुंच चुके थे.

"ठक ठक ठक.......एक दरवाजा जो से पीटा जा रहा था "

"चररर.........अरे भाई कौन है इतनी रात को, अरे रुखसाना बेटा तुम? कहाँ थी इतने दिन? मुझे तो अनिष्ट कि आशंका ने घेर लिया था " मौलवी साहब ने दसरवाजा खोलते ही सामने रुखसाना को पाया आए सवालों कि झड़ी लगा दि

"अब्बू अभी वक़्त नहीं है इतना बताने का बस यूँ समझिये अब जिंदगी मौत का सवाल है, और...ये.....रुखसाना ने वीरा कि तरफ इशारा करते ही कहना ही चाहा कि

"ये तुम्हारा भाई वीरा है, घुड़वाती "

रुखसाना कि आंख फटी कि फटी रह गई ये बात सुनते ही.

"अंदर आओ बेटी ऐसे चौको मत,हमें सब पता है, खुदा ने सभी कि जिंदगी मे कुछ ना कुछ लिखा है,वो कोई काम अधूरा नहीं छोड़ता, भले उसके बन्दे वो काम अधूरा छोड़ दें लेकीन वो उन्हें फिर भेज देता है "

मौलवी साहब के पीछे वीरा और रुखसाना अंदर आ गए लाखो सवाल और हैरानी लिए.

"इसका मतलब आप सब जानते थे फिर....फिर....."

"पहले बता देता बेटी तो तुम इस काम को कैंसर अंजाम देती....लाइ हो वो जो मैंने कहाँ था "

मौलवी साहब ने अपनी हथेली आगे फैला दि

रुखसाना अभी भी अचरज से भरी थी,उसने अपनी पोटली से ज़ालिम सिंह के वीर्य कि बोत्तल उन्हें थमा दि " ये लीजिये"

"खुदा के खेल निराले,किस्मत देखो तुम्हारे भाई ने पहले ही ढूंढ़ निकाला तुम्हे" मौलवी ने उस वीर्य को एक कटोरे मे डाला और कुछ मन्त्र पढ़ कर फुकने लगा

"लो बेटा ये अंतिम है इसे पी लो तुम्हारी सारी जिज्ञासा शांत हो जाएगी " वहाँ क्या ही रहा था समझ के परे था.

लेकीन फिर भी रुखसाना ने वो कटोरा लिया और एक ही सांस मे उस वीर्य को ली गई, वो वीर्य हलक से नीचे उतरा नहीं कि रुखसाना के हाथ से वो कटोरा छूट के जमीन पे जा गिरा

वीरा आश्चर्य से मरा जा रहा था और मौलवी साहब के लब पे मुस्कान तैर रही थी.

एक दूधिया रौशनी से कमरा जगमगा उठा,दोनों कि आंखे चोघिया गई...धीरे धीरे वो प्रकाश छटा तो सामने घुड़वाती खड़ी थी


अपने सम्पूर्ण रंग रूप पूर्ण घुड़रूप मे,वही सुनहरे बाल,सफ़ेद लिबास कोमल हसीन त्वचा.

वीरा हैरान खड़ा देखता रहा,उसकी आंखे उसे धोखा तो नहीं दें रही,लेकीन नहीं उसकी आँखों से आँसू  झर झर गिरने लगे, कितने बरसो वो तरसा था इस रखा दृश्य के लिए, अपनी बहन को खोने के बाद वो नरक का जीवन जिया था.

"भाई ऐसे क्या देख रहे हो मै ही हूँ आपकी घुड़वती "

वीरा के कानो मे एक बार फिर वही कोमल खिलखिलाती आवाज़ गूंज उठी.

"मेरी बहना......सुबुक सुबुक....." वीरा दौड़ के घुड़वती के गले जा लगा.

आज सच मायनो मे उसने अपनी बहन को पा लिया था.

"बस मेरे बच्चों ये प्यार बनाये रखना....मेरे इस जीवन का उद्देश्य पूरा हुआ" मौलवी कि आवाज़ ने दोनों भाई बहन का ध्यान भंग किया.

"मौलवी साहेब आप ने मुझे इस जन्म मे एक पिता का प्यार दिया,मेरा जीवन मुझे वापस लौटा दिया,मै कैसे ये अहसान चूका पाऊँगी " घुड़वती मौलवी साहब के पैरो मे जा गिरी.

"अरे मेरी बच्ची पिता का तो जीवन ही अपने बच्चों के कल्याण के लिए होता है और खुदा कि मर्ज़ी भी यहीं थी " मौलवी साहब ने घुड़वती को गले लगा लिया.

एक भावुक माहौल बन गया था, मौलवी पिता ना हो के भी आज पिता से बढ़कर हो गया था.

"अब जाओ मेरे बच्चों दुश्मनो पे विजय पाओ,तुम्हारी ही जीत होंगी "

घुड़वती ':- लेकीन कैसे, नागेंद्र कमजोर है हम अकेले कैसे लड़ेंगे? मंगूस ही उम्मीद था वो ही मारा गया अब यहाँ से भाग जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है.

मौलवी :- बहादुर लोग कभी भागा नहीं करते बेटा या तो वो लड़ते है या मरते है.खुदा तुम्हारे साथ है.

जनता हूँ बिना नागेंद्र कि चमत्कारी शक्ति के ये संभव नहीं होगा,लेकीन उस नियति पे विश्वास रखो जो तुम्हे वापस ले आई.

ध्यान रहे जब कोई पाप के खिलाफ लड़ता है तो कुदरत भी उसका साथ देती है,मंगूस जीवट आत्मा है पक्का चोर है मौत को भी चुरा लाएगा. अब तुम लोग चलो सुबह होने वाली है.

मौलवी ने वीरा और घुड़वती को आशीर्वाद दें विदा किया.

वीरा और घुड़वती घोर आश्चर्य ले वहाँ से विदा हो चले.


तो क्या मतलब है मौलवी साहेब के बातो का?

क्या वाकई मंगूस ने मौत भी चुरा ली है?

काम्या को सिर्फ एक ही लाश कि खबर क्यों मिली,कहाँ गई मंगूस कि लाश?


बने रहिये कथा जारी है अपने अंतिम पड़ाव मे.

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