अपडेट -8
Day-4
आज सुबह से ही काया कुछ बैचेन थी, शरीर मे ऐठन सी महसूस हो रही थी, रात कुछ अच्छी नहीं बीती, करवट बदतली काया की आँखों मे एक उदासी सी छाई हुई थी.रोहित बैंक जा चूका था.
काया एक ढीली टीशर्ट और पजामा पहने घर के काम को अंजाम दे रही थी,
स्तन की खूबसूरती उसके निप्पल टीशर्ट मे अपना वजूद बयां कर रहे थे.
पजामा जांघो के बीच इस कदर धस गया था की त्रिभुज की आकृति साफ देखिब्ज़ा सकती थी.
काम करती काया की नजर बार बात दिवार पर टंगी घड़ी पर चली जा रही थी, जैसे किसी का इंतेज़ार हो उसे.
11बजने को आये थे.
काया कुछ परेशान सी मालूम होती दिख रही थी.
"आया क्यों नहीं " काया मन ही मन बुदबूदा बैठी की तभी
टिंग टोंग.... फ्लैट की घंटी बज उठी.
काया के चेहरे से उदासी तुरंत हवा हो गई, आँखों मे एक चमक आ गई, काया लगभग भागती हुई सी गेट खोलने गई, तेज़ चलने से काया के स्तन उछल उछल के गिर जा रहे थे.
काया घर मे ब्रा पहनना पसंद करती ही नहीं थी, उसके स्तनों को वैसे भी किसी सपोर्ट की जरुरत जान नहीं पडती थी.
पल भर मे ही गेट खुल गया "बबबब.... बाबू तुम?" काया ने जबरजस्त हैरानी का अभिनय किया, लेकिन चेहरे की स्माइल बता रही थी ये इंतज़ार, ये उतावलापन बाबू के लिए ही था.
"ननन... नमस्ते मैडम जी " बाबू काया की मौजूदा हालत देख हकला गया, शायद काया दिखाना भी यही चाहती हो.
उसने अपने बदन की उभरी खूबसूरती को छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया.
"नमस्ते आओ अंदर " काया ने दरवाजा लगा दिया.
"बोलो कोई काम है?"
"मममम.... मैडम... वो... वो... आपकी कच्छी " बाबू ने हथेली आगे कर दी, वो सीधा मुद्दे पर आ खड़ा हुआ.
उसके हाथ मे काया की ब्लैक महँगी पैंटी कैद थी.
"उफ्फ्फ्फ़.... ये पैंटी बार बार तुम्हारे पास कैसे पहुंच जाती है," काया जैसे बहुत हैरान थी.
"ये वाली कल से भी ज्यादा अच्छी थी मैडम जी "
काया ने झट से बाबू से अपनी पैंटी ले ली " हट पागल.... पैंटी तो पैंटी होती है इसमें क्या अंतर "
"वो नहीं.... मैडम जी इस पैंटी मे ज्यादा खुसबू थी " बाबू मासूमियत से बोल गया
काया हैरान थी बाबू कैसे इतनी आसानी से बोल देता है सबकुछ " तुमने फिर मेरी पैंटी सुंघी? " काया ने दिखावटी गुस्सा जताया.
"वो.... वो.... सॉरी मैडम जी लेकिन रहा नहीं गया "
"अच्छा ऐसा क्या है इसमें?" काया ने आज पैंटी वही टेबल पर रख दी और खुद सोफे पर जा बैठी, बाबू सामने ही खड़ा था
"मुझे क्या पता, बस एक खुसबू आती है तो सूंघने का मन करता है " बाबू की नजरें शर्म से नीचे हो गई लेकिन नीचे का नजारा और भी कातिलाना था, काया के भारी स्तन टीशर्ट मे उजागर थे, एक महीन गोरी लकीर खिंच गई थी.
"अच्छा तुम्हारी इस हरकत के बारे मे किसी को बता दू तो " काया ने आंख बड़ी करते हुए कहाँ.
"ससससस... सॉरी मैडम वो मै... वो मै.." बाबू डर के मारे कांप गया,
"हाहाहाहाहा..... बुद्धू " काया जोरदार हस पड़ी, काया को बाबू की हालत देख मजा आ रहा था.
इंसान अपने से कमजोर छोटे इंसान के मजे ले ही लेता है, काया ने भी वही किया,
"अच्छा तुम्हे कैसा लगता है?" काया के मन मे सवाल थे जिसे वो जानना चाहती थी,
"मममम... मतलब "
"तुम मेरी पैंटी क्यों सूंघते हो?, देखो बाबू सच बोलोगे तो किसी को नहीं कहूँगी "
"वो... वो.... मैडम आपकी पैंटी से एक अजीब सी गंध आती है जो मुझे बहुत पसंद है" बाबू ने सच्चे मन से जवाब दिया.
"बस सूंघते हो?" काया के जहन मे कल रात का दृश्य दौड़ गया, जब बाबू ने पैंटी को अपने लंड पे कस के बांध लिया था.
"जज्ज..... जी... जी. मैडम जी "
"झूठ....?"
"सच्ची.... मैडम जी " बाबू बात पे अड़ा रहा.
"कैसा लगता है ऐसा कर के?" काया ने गजब की हिम्मत दिखाते हुए बाबू से ये सवाल पूछा, इस एक सवाल ने ही काया के गले को सूखा दिया.
वो क्या कर रही थी? ऐसी तो नहीं थी काया? शायद उसके जिस्म की गर्मी उस से ऐसा करवा रही थी.
"ममममम...... मैडम... जी " बाबू हैरानी से काया को देखने लगा.
"बोलो "
जवाब मे बाबू ने तुरंत टेबल पर रखी पैंटी उठा ली और कस के सूंघ लिया ससससनणणनईईफ्फ्फ्फफ्फ्फ़........
बाबू मे भी हिम्मत की कोई कमी नहीं थी.
"आअह्ह्ह....." बाबू ने पैंटी सुंघी थी, लेकिन काया को ऐसा लगा जैसे बाबू ने उसकी जांघो के बीच सर दे दिया हो.
"ये ये... क.. क.... क्या कर रहे हो बाबू?" काया के हलक से शब्द नहीं निकल रहे थे.
बाबू की हरकत ने उसके जिस्म मे कर्रेंट फैला दिया था.
ससससन्नन्नफ्फफ्फ्फ़...... आअह्ह्ह.... मैडम जी.
काया ने आज तक ये नजारा दूर से, अँधेरे मे देखा था, उसका मज़ाक ये असर करेगा उसे पता नहीं था.
"नीचे रखो उसे बाबू " काया अपनी पैंटी लेने के लिए सोफे से उठने ही वाली थी की बाबू की जांघो की ओर नजर चली गई, जहाँ एक लम्बा सा उभार पनप आया था.
काया वापस से सोफे पे जा धसी.
आज ये उभार काया नजदीक से साफ देख रही थी, बाबू की जीन्स टाइट थी, वो बेलनाकार आकृति उसमे फसी हुई सी थी.
"बबबब..... बाबू" काया सिर्फ इतना ही बोल सकी, मुँह खुला रह गया था उसका.
बाबू की हरकत ही ऐसी थी, " बाबू ने जबान निकाल पैंटी को चाट लिया, एक हाथ अपनी जांघो पर बने उभार पर जा लगा.
"आअह्ह्ह.... मैडम जी "
"छी... बाबू, कहाँ से सीखा ये गन्दा है छोडो " काया ने खुद को सँभालते हुए बाबू के हाथ से अपनी पैंटी छीन ली.
"ये क्या बदतमीज़ी है बाबू? ये क्या कर रहे थे तुम?" काया इस बार सही मे गुस्सा थी, हालंकि ये खेल उसी ने शुरू किया था उसका भड़कना साबित करता था वो इस खेल मे हार रही है.
"अपने ही तो पूछा था और क्या किया मेरी पैंटी के साथ, तो बता दिया "
बाबू के जवाब मे इतनी मासूमियत थी की काया का गुस्सा फुर्र हो गया, चेहरे पे मुस्कान ने जगह ले ली.
"हमारे गांव मे सब ऐसा ही करते है मैडम जी, मैंने भी किया अच्छा लगा तो चाट के देखा "
"छी... लेकिन गन्दा होता है ये सब "काया ने कभी किया नहीं था तो उसके लिए तो गन्दा ही था.
"जो हमें अच्छा लगता है वो कभी गन्दा नहीं होता मैडम जी " बाबू छोटा सा था लेकिन काया जैसे मादक शादीशुदा स्त्री को ज्ञान दे रहा था.
"हम्म्म्म.... काया सोच मे पड़ गई, बाबू सही ही तो कह रहा रहा.
"सबकी अपनी अपनी पसंद होती है मैडम जी, आपकी भी होंगी?"
"कककक.... क्या... ननन... नहीं... नहीं..." बाबू के सवाल से काया सकपका सी गई उसके पास कोई जवाब ही नहीं था होता भी कैसे इतनी बड़ी हो गई लेकिन कामकला का कोई ज्ञान ही नहीं है.
ये कल का लड़का बाबू गुरु बना बैठा था.
"कभी try कीजियेगा, हमेशा कुछ ना कुछ नया सीखना चाहिए.
"ह्म्म्मम्म.... काया अभी बहुत ना जाने कहाँ खोई हुई थी.
"मैडम वो... टॉयलेट " काया ने उंगली से इशारा कर दिया.
बाबू उस ओर चल दिया, काया आज पाताल मे समा गई थी, उसे अहसास हो रहा था सम्भोग के मामले मे उसने आजतक किया क्या है? कुछ नहीं.
वो जानती क्या है? कुछ नहीं
रोहित की जो इच्छा वो उसकी इच्छा, क्या उसका कोई वजूद नहीं? क्या उसकी कोई पसंद नहीं?
भड़ड़ड़ड़आकककक..... धाड की आवाज़ से काया जैसे धरातल पे लौट आई हो.
उसे ध्यान आया बाबू बाथरूम गया है,.
ना जाने क्यों, किस मनोदशा मे काया बाथरूम की ओर चल दी देखा दरवाजा ठीक से लगा नहीं था, बाबू ने बस अंदर घुस दरवाजा पीछे धकेल दिया.
काया को वहा से चले जाना चाहिए था लेकिन नहीं आज उसे उसका जिस्म ऐसा करने से रोक रहा था,
उसके कदम पास आ गए, आंखे उस दरार मे घुस गई, नजरें कुछ तलाशने लगी.
अंदर जो नजारा था उसने काया की सांस को थाम लिया, बस दिल धड़क रहा था, बाकि वो किसी मूर्ति की तरह जाम थी, गला सुख चूका था.
अंदर बाबू ने तुरंत ही जीन्स नीचे कर दी, एक गोरा चिकना सा बड़ा लंड हवा मे झूल गया, बाबू आंख बंद किये मुँह ऊपर उठाये मूतने लगा..... ससससस.....पप्पीस्स्स.... एक तेज़ सफ़ेद पिली धार कामोड से टकराने लगी, पेशाब के छींटे उड़ने लगे.
काया हैरान थी एक 18साल के बच्चे का लंड ऐसा भी हो सकता है.
जैसे जैसे पेशाब निकलता जा रहा था वैसे वैसे बाबू का लंड छोटा होता जा रहा था.
"उउउउफ्फ्फ्फ़...... अब कुछ आराम मिला "
बाहर काया पहली बार इतना साफ और पास से किसी गैर मर्द का लंड देख रही थी, अजी गैर छोड़िये उसने तो कभी रोहित के लंड को भी ठीक से नहीं देखा था, एरेक्ट अवस्था मे तो कभी नहीं.
क्युकी रोहित तुरंत काया पे चढ़ पड़ता था, ऐसा मौका कभी मिला ही नहीं, ना काया ने कभी सोचा.
जल्दी ही बाबू की पेशाब की धार मे बूंदो का रूप ले लिया, टप... टप... टप.... कर लास्ट बून्द टपक पड़ी.
इधर बाबू जीन्स उठाने को झुका, उधर काया के जिस्म ने एक झटका लिया, पैर पुरे जिस्म का भार उठाये किचन की ओर भाग खड़े हुए, हाथो ने फ्रिज खोल पानी की बोत्तल निकाल ली.
गट... गट.... गट... गट..... करती काया ने पूरी बोत्तल खाली कर दी.
हंफ.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... उफ्फ्फ.... काया का जिस्म पसीने से नहा गया था, पानी ने थोड़ी राहत जरूर पहुंचाई थी, लेकिन दिमाग़ मे अभी भी बाबू का लंड घूम रहा था.
"ममम... मैडम जी पानी..."
कोई जवाब नहीं..
"मैडम जी पानी..."
"आआ.... आय.... हाँ.. हाँ... हाँ... ये लो तुम कब आये " काया हैरान थी.
बाबू उसके सामने ही खड़ा था.
"खाली है "
"क्या?"
"बोतल मैडम बोतल खाली है "
काया ने हाथ मे थमी बोत्तल को देखा, खाली थी, काया का जिस्म और दिमाग़ आपस मे समझौता नहीं कर पा रहे थे.
"मैडम आप ठीक तो है ना?" बाबू ने पसीने से तरबतर काया को पूछ लिया
"अ अ.... हाँ... हाँ... ठीक हूँ " काया ने खुद को संभाल लिया
फ्रिज से दूसरी बोत्तल निकाल बाबू को थमा दी.
"गटक... गटक.... बहुत गर्मी है मैडम जी " बाबू ने बोत्तल वही रख दी.
काया अब तक पूरी तरह संभल गई थी.
"अच्छा चलता हूँ मैडम जी, कचरा हो तो दे दो फेंक दूंगा "
"ननन.... नहीं... आज नहीं है "
"ठीक है चलता हूँ, और अपनी कच्छी संभाल के रखिये मैडम बार बार मेरे पास अ जाती है " बाबू ने फिर से काया को छेड़ दिया
दोनों मे अच्छी पटने लगी थी.
"धत.... बदमाश"
बाबू चला गया, काया सोफे पर धस गई, विचार शून्य.
उधर दूसरी तरफ रोहित आज लोन डिफाल्टरस के चक्कर लगा रहा था.
"सर ये लिस्ट मे तीसरा नाम है, शबाना बेग़म 10लाख है इसके ऊपर " रोहित और सुमित कार मे पीछे बैठे आपस मे बात कर रहे थे.
"कककक.. क्या शबाना बेग़म " कार चलता मकसूद अचानक चौक बैठा.
"तुम जानते हो इसे?" रोहित ने पूछा.
"साब इसे कौन नहीं जनता, आस पास के 10 गांव मे भी इसका नाम पूछ लोगे तो घर तक पंहुचा आएगा.
"क्यों ऐसा क्या है? कौन है "
"नचनिया है हुजूर, नाच गाना करती है, खास लोगो की ही मेहमान होती है, बड़े बड़े जमींदार अपनी जमीन जायदाद इसपे गवा बैठे है" मकसूद ने बड़े चटकारे लेते हुए सूरत ऐ हाल बयान किया.
"लगया है मकसूद मियां भी लुटे हुए है हाहाहाहा...."सुमित ने चुटकी ली.
"कहा छोटे बाबू हम जैसे गरीबो की किस्मत मे कहाँ ऐसी जन्नत की हूर " मकसूद ने बड़े ही हताशा से बोला जैसे उसका सपना हो और वो कभी पूरा ना हो सका.
"हमें क्या भाई, हमें तो पैसे से मतलब है "
मकसूद ने कार दौड़ा दी.
गांव से बाहर होती हुई एक पतली सडक नीचे उतरती हुई जंगल के रास्ते चल पड़ी.
"ये कहाँ जा रहे है हम?" रोहित ने पूछा
"साब शबाना की कोठी इधर ही है"
"क्या कोठी?
"हाँ साब सुनते है की पास के गांव रामगढ के बूढ़े जमींदार ने शबाना से खुश हो कर कोठी दे दी थी, वो खुद तो निकल लिए, उनके बच्चे झोपडी मे अ गए और शबाना कोठी मे"
"हाहाहाहाहा.... ये औरते भी ना क्या ना करवा दे " रोहित हस पड़ा.
तभी चाहारररर..... करती कार कोठी के गेट पर जा रुकी,
तुरंत एक चौकीदार प्रकट हुआ
"किस से मिलना है "
"शबाना जी से" जवाब रोहित ने दिया
"बोलना बड़े साब आये है बैंक से " मकसूद ने लाइन जोड़ दी
चौकीदार तुरंत अंदर गया.
"मकसूद तुम तो कहते थे नचनिया है, ऐसी शानो शौकत?" रोहित सुमित दोनों ही हैरान थे, सरकारी नौकर होते हुए भी उन्हें सपने मे ऐसी शानदार कोठी नसीब नहीं हो सकती थी.
"साब बड़ी नचनिया है, महँगी नचनिया है, बड़े जमींदार दीवाने है इनके, मुँह माँगा पैसा मिलता है "
रोहित के मन मे जिज्ञासा सी जगती जा रही थी, बड़े अजीब लोग है यहाँ के, इतने अमीर लेकिन साले बैंक का पैसा नहीं देते.
"आपको अंदर बुलाया है" चौकीदार तुरंत ही वापस आया.
थोड़ी ही देर मे रोहित और सुमित एक बड़े से बरामदे मे बैठे थे, नौकर चाय पानी की ट्रे आगे रख गया था.
"सलाम हजुर " एक मीठी शहद घुली आवाज़ गूंज गई.
रोहित सुमित ने सर उठाया, देख सामने से सीढ़ी उतरती बलखाती, सुनहरे बालो की रंगत लिए एक स्त्री चली आ रही है.
नाचीज़ को शबाना कहते है हुजूर,
रोहित, सुमित दोनों के मुँह खुले थे
जैसा सुना उस से कहीं ज्यादा पाया, सामने एक लड़की खड़ी थी दिखने से मालूम पड़ता था कोई 35 की उम्र के आस पास होंगी..
सुनहरे बाल, लाल लहंगा चोली, लाल दुप्पटा, चोली से झाँकते बड़े बड़े आकर के स्तन, उसके नीचे बिलकुल सपाट पेट.
हाथो मे लाल चूड़ी.बालो मे गजरा, चांदी की कमबंद गहरी नाभि की शोभा बड़ा रही थी.
रंगत ऐसी जैसे गुलाब ने अपना गुलाबी रंग शबाना को ही दे दिया है, मोतियों से दाँत.
रोहित समझ चूका था लोग क्यों दिल दौलत इस पर हार बैठते है.
शबाना सामने कुर्सी पर आ बैठी.
रोहित का दिल भी धाड़ धाड़ कर बज उठा.
क्या शबाना रोहित की लाइफ बदलने वाली है?
काया और रोहित दोनों की दुनिया बदलने वाली है, नियति ऐसे ही कुछ ना कुछ सीखाती है.
बने रहिये.... कथा जारी है...
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