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मेरी संस्कारी माँ -7

कहानी का पिछला भाग यहाँ पढ़े मेरी संस्कारी माँ


मेरी संस्कारी माँ -7

Picsart-24-05-23-13-59-08-230 मुझमे ये सब देखने की हिम्मत नहीं थी, मेरा दिल जार जार कर रो रहा रहा,

मैंने अपनी नजरें वहाँ से हटा ली, आखिर एक बेटा अपनी संस्कारी घरेलु माँ को गैर मर्द का गन्दा लंड चूसते कैसे देख सकता था.

मै झोपडी के बाहर माथा पकड़ कर बैठ गया.

थोड़ी ही देर मे... आआहहहह..... उउउफ्फ्फ्फ़..... असलम....

एक तेज़ आवाज़ मेरे कानो मे गूंज उठी.

मै आवाज़ को जानता था ये आवाज़ मेरी माँ की ही थी, इस आवाज़ मे कुछ दर्द था.

मै डर गया.... मैंने तुरंत अंदर झाँक कर देखा. 

अंदर असलम ने मां के बाल खोल दिए और दोनों हाथों से मां के बाल पकड़ कर किसी कुत्ते की तरह मेरी माँ की चुत मे लंड घुसा के रुका हुआ था.

माँ की गर्दन किसी सियार की तरह हवा मे उठी हुई थी.images-4

असलम ने घोड़ी की लगाम की तरह माँ के बालो को अपने हाथो मे जकड़ा हुआ था.

मेरी मां की चूत मे असलम का काला मोटा लंड पूरा जड़ तक धसा हुआ था..black-and-white-erotic-doggystyle पीछे से मुझे ये नजारा साफ दिख रहा था.

मेरी माँ की मोटी गोरी गांड पर असलम हाथ घुमाये कुछ बड़बड़ा रहा था.

असलम का लंड तेज़ी से पीछे को आया और दुगनी स्पीड से वापस माँ की चुत मे जड़ तक चला गया... थप.... की आवाज़ के साथ माँ के दोनों चूतड हिल कर रह गए.

उउउफ्फ्फ.... आंटी क्या कसी हुई चुत है तेरी, जैसे कोई कुंवारी लड़की हो.

"आआआहहहहह...... धीरे असलम दर्द हो रहा है "

मेरी माँ ऐसे चीख रही थी जैसे पहली बार सम्भोग कर रही हो.

शायद माँ को पहली बार वाला ही अहसास हो रहा था, इतना मोटा लंड खुद मेरी कल्पना के बाहर था, 

असलम पूरी तरह से माँ की गांड के ऊपर चढ़ा गया था और पच... पच.... पुक... फच... की आवाज़ के साथ लंड माँ की चूत फाड़ रहा था

और उसका सागा बेटा अपनी माँ को चोदते हुए देख रहा था....

फाआट अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह आराम से हाय इससे...असलम आअह्ह्... नहीं आउच... अह्ह्ह्ह.... ओह्ह्ह....मर गयी मै अह्ह्ह्हह्ह....

अह्ह्ह्ह नहीं ना ना प्लीज ना अघ्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह अह्ह्ह्ह धीरे असलम... अह्ह्ह्ह.... आअह्ह्ह्ह.....प्लीज ना दर्द होरहा है

अह्ह्ह्ह ओह्ह्ह फुर्रर्रर्र फुर्र…

असलम ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा था माँ भी शायद यही चाहती थी लेकिन दिखावे के लिए  उसे  रोक रही थी...

 लेकिन सच तो ये था कि माँ भी जन्नत की सेर कर रही थी....External-Link-gifs-by-moaningtillmorning

करीब 10 मिनट हो गए थे, माँ को कुतिया बने, मेरी माँ के जिस्म से पसीने की धरा बहने लगी थी, माँ अपने मुँह को बिस्तर मे घुसेड़ देती तो असलम तुरंत बाल पकड़ कर माँ की गर्दन को ऊपर कर देता, असलम के झटको मे कोई कमी नहीं आई थी, वो बदस्तूर वैसे ही लंड को मेरी माँ की चुत मे ठेले जा रहा था.


आआअहह अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह पुच पुच पुच पुच पुच… मेरी माँ असलम के आगेहवस मे कुतिया बनी लगातार चीखे जा रही थी, अपने मोटे स्तनों को गंदे बिस्तर पर रगड़ रही थी.

मेरी मां की बड़ी गांड लगतर असलम के धक्के से हिल रही थी थिरक रही थी आह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह.... माँ खुद से गांड को पीछे ले जा कर उसकी जांघो से टकरा दे रही थी.

माँ की हल्की हल्की हल्की सिस्कारियो की आवाज झोपडी मे  गूंज रही थी, चुडिया खनक रही थी...

तभी असलम ने धक्को की स्पीड तेज कर दी, ऐसा लग रहा था असलम अब झड़ने वाला है...... आआअहह अह्ह्ह्ह...

आह्ह आंटी आह्ह्ह्ह मेरी जान आह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह मेरा माल निकलने वाला है आह्ह्ह्ह क्या मस्त टाइट चूत है तुम्हारी इस उमर में भी आंटी...

स्स्स्स अह्ह्ह्ह ईससस.... अह्ह्ह्ह.... सीइइइइ.... अह्ह्ह्ह नहीं असलम नहीं....अह्ह्ह्ह....धीरे... धीरे अन्दर मत निकलना प्लीज...अह्ह्ह्ह

अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह सिइइ आउच पुच्च्ह्ह पुक्घ्घ फुर्रर्रर्र अह्ह्ह्ह...

मेरी जान अन्दर निकल जायेगा तो क्या हो जायेगा? मैं तो तेरी चूत में ही झाड़ूंगा... अह्ह्ह्ह... अह्ह्ह्हअह्ह्ह्ह फत्तत्त फुर्रर्र अह्ह्ह्ह

आह्ह....

नहीं असलम अंदर मत करो आअहह समस्या हो जाएगी....

नहीं प्लीज बाहर निकाल लो बेटा अह्ह्ह्ह आउच धीरे करो ना असलम बेटा आह्ह्ह्ह.....Gianna-Michaels-oiled-and-doggystyle-fucked .

माँ असलम को बेटा बेटा कहा के समझा रही थी, लेकिन असलम अब सुनने समझने की स्थति मे नहीं दिखाई पड़ रहा था.

उसके झटके और भी तेज़ हो गए, लउरा पलग चरमराने लगा था, जैसे कभी भी टूट जायेगा.

तभी असलम ने मेरी माँ की नंगी गांड पर एक जोरदार चाँटा रसीद दिया.

आअह्ह्ह.... उउउफ्फ्फ....मेरी माँ की चींख झोपडी मे गूंज उठी.

आवाज बाहर तक गूंज उठी, अगर कोई झोपडी के आस पास होता तो आराम से उसके कानो मे आवाज पहुंच जाती.

असलम ने माँ की गांड के दोनों हिस्सों को लाल कर दिया था एक झापड़ मे ही....

माँ का चेहरा देखने लायक था, इस मार मे जाने क्या मजा आया था माँ को?

अअअअह्ह्हह्म्म्मम्म...... असलम मुझे अभी भी पीरियड आती है, कहीं मै प्रग्नेंट हो गई तो कहीं ममुँह दिखाने लायक नहीं रहूंगी... प्लीज  बाहर निकाल लो ना बेटा.

मै माँ मे मुँह से ये बात सुन कर हैरान रह गया, मेरी माँ को गैर मर्द जो की उसके बेटे की उम्र का है उस से चुदना पसंद था, वो माँ की चुत फाड़ रहा था इसमें एतराज़ नहीं था, बस डर प्रग्नेंट होने का था.

"क्या बात कर रही हो अभी भी तुम्हे महीना मेरा आता है" असलम ऐसे चौंका जैसे बहुत हैरानी की बात हो.

मेरी मां असलम की बात सुन कर थोड़ी सरमा गई उसके चेहरे पर थोड़ी मुस्कान आ गई....  "हाँ बेटा वो मैंने ऑपरेशन नहीं करवाया था. पता नहीं मै अभी भी बच्चा पैदा कर सकती हूँ या नहीं? लेकिन तुम बाहर ही निकालो इसको...

"हाहाहा क्या कह रही हो तुम इस उम्र मे मां बन सकती हो हाहा फिर तो मैं अंदर ही माल निकालूंगा..तुझे अपने बच्चे की माँ बनाऊंगा हाहा"

"नहीं, प्लीज असलम मान जाओ बेटा ऐसा मत करो.."

मेरी माँ गिड़गिड़ाती रही और असलम की स्पीड और तेज़ होने लगी....

पच..फच... फच.... करती माँ की चुत बहने लगी, सफ़ेद गाड़ा सा पानी माँ की चुत से निकल जांघो पर बहने लगा.24560316

असलम का शरीर अकड़ने लगा और फच.... फाचक... एक जोरदार धक्के के साथ असलम का लंड जड़ तक माँ की चुत मे जा धसा....

आआहब्बब.... असलम..  माँ के हाथ बिस्तर की गंदी चादर को मुट्ठी मे भींचते चले गए, एक जोरदार गरम अहसास से माँ आगे को गिर पड़ी, साथ ही असलम भी माँ की पीठ पर ढेर हो गया.फाचक... गचक... फच.... करती वीर्य का सैलाब माँ की चुत मे सामने लगा.13512005

लंड की लम्बाई मोटाई देख मे मैंने अंदाजा लगा लिया था की असलम मा लंड माँ की बच्चेदानी को भर रहा है,

अपना गन्दा बीच माँ के गमले रूपी बच्चेदानी मे बो रहा है.

मां की पूरी चूत उसके चिपचिपे गंदे घड़े वीर्य से लबालब भर गई थी.

गरम गरम वीर्य से माँ की चूत एक दम ऊपर तक भर चुकी थी.

उस कामने ने माँ की चूत में अपना लंड झाड़ दिया.... जिस चूत से मै निकला था उसी चूत को उस हरामी कसाई ने गंदा कर दिया था.

कुछ देर वो ऐसे ही माँ के ऊपर चुत मे लंड डाले लेता रहा, जब तक की लंड से एक एक बून्द माँ की चुत मे समा ना गई हो.

असलम धीरे धीरे माँ के ऊपर से उठने लगा, माँ कसमसाने लगी, मैंने दोनों के कामुक अंगों के जोड़ को देखा, जैसे जैसे आलसम का लंड बाहर आ रहा था माँ की चुत उसके साथ चिपकी बाहर को खींची चली जा रही थी, इस कद्र माँ की चुत मे असलम के लंड को चूसा था.

आउच.... असलम... माँ सांसे भरती खुद को आगे खींचने लगी.

पुककक..... करता आखिर असलम मा लंड माँ की चुत से बाहर आ ही गया, मैंने देखा असलम के लंड से वीर्य किसी चासनी की तरह माँ की चुत और असलम के लंड को जोड़े हुए था.

मेरी नजर उस लकीर का पीछा करती माँ की चुत तक पहुंची, जो मैंने देखा धक्क.... से कलेजा जाम हो गया.

माँ की चुत फट के चौड़ी हो गई थी, चुत की जगह एक बड़ा सा छेद नजर आ रहा था, उस छेद से रह रह के असलम का सफ़ेद गाड़ा वीर्य निकल नीचे मैली चद्दर को गिला कर रहा था.


कुछ देर बाद माँ के जिस्म मे फिर से ऊर्जा आ गई, मा जल्दी से सीधी हो गई और पास पड़ी हुई असलम की लुंगी से अपनी चूत को साफ किया.

 अब माँ के चेहरे पर सरम थी....

मेरी संस्कारी माँ चुदने के बाद बहुत ज्यादा सरमा रही थी वो अपने नजरें असलम से भी नहीं मिला पा रही थी.

दोस्तो उसके बाद माँ असलम से कुछ ना बोली और जल्दी से जमीन पर पड़ी हुई अपनी कच्छी पहन ली, ब्लाउज साड़ी ठीक की और बाहर को भाग ली,.

असलम मुस्कुराता अपने लंड को हाथ मे मसलते माँ की मटकती गांड को देखता रह गया.

मेरे लिए भी वहाँ अब कुछ बचा नहीं था, मेरा लंड और दिल दोनों ठन्डे पढ़ चुके थे.

मै अपने घर के रास्ते पर चल पड़ा,

जो अभी हुआ उस पर यकीन करना बहुत मुश्किल था, लेकिन जो हुआ वो सच है, मेरी माँ पूरी बेशर्मी से एक गैर मर्द से चुदवा रही थी.

लेकिन ये सब हुआ कैसे?

ये शुरू कब और कैसे हुआ?

क्या माँ आज ही मिली है असलम से, नहीं नहीं माँ को देख के तो लगता है की चक्कर बहुत पहले से चल रहा है.

मुझे जानना होगा ये कब, क्यों और कैसे शुरू हुआ?

मै थकान और दुख से बिस्तर पर गिरते ही सो गया,

अब मेरे जीवन का लक्ष्य इस राज को जानना ही था.

*******************+


रात भर मुझे ठीक से नींद नहीं आई थी, रह रह के माँ के सपने आ रहे थे.


बार बार मुझे असलम का मोटा काला नापाक लंड मेरी माँ की चुत को रोंदता नजर आ रहा था.


खेर जैसे तैसे सुबह मेरी आंख खुल गई, 8बज चुके थे,


कमरे से बाहर आया तो माँ नहा धो कर पूजा पाठ मर चुकी थी.


माँ किचन मे मेरे लिए खाना बना रही थी. माँ आज कुछ ज्यादा ही खिली खिली लग रही थी.


मै हैरान था की मेरी ये माँ वही है जो कल रात असलम के लंड को निचोड़ रही थी, किसी कुतिया की तरह उस से चुदवा रही थी, किसी बाज़ारू औरत की तरह उसके गंदे लंड को चाट रही थी.


"नाश्ता कर लो बेटा "


माँ की आवाज़ से मै हक़ीक़त मे वापस आया,


माँ मेरी तरफ ही आ रही थी, हाथ मे नाश्ते की प्लेट लिए हुए, मै एकटक माँ को देखता ही रह गया माँ वाकई बहुत खूबसूरत थी संस्कारी थी, कितना ख्याल रखती है मेरा.e54e31c42f08ecf5a477a5239e4e62a6


साड़ी मे लिपटी मेरी माँ को देख मै कल्पना भी नहीं कर पा रहा था काल रात जिसे मैंने देखा वो यही माँ थी, कल बेशर्म थी अभी संस्कारी है.


मेरे मुँह से हताशा की एक आह फुट पड़ी.


मेरे जहन मे वही सवाल घूमने लगा, आखिर ऐसी क्या मज़बूरी थी माँ की?


उस से पूछ भी नहीं सकता, इतनी हिम्मत नहीं है मुझमे.


"क्या हुआ बेटा कहा खोया हुआ है, खाना खा ना "


माँ की आवाज़ ने मुझे झकझोड़ दिया, माँ सामने ही बैठी नाश्ता कर रही थी.


कितनी सुन्दर सुशील थी मेरी माँ.


मैंने निश्चय कर लिया था ये राज पता कर के रहूँगा.


"माँ पापा कब आ रहे है?'


"कल आएंगे... आज तो काम मे व्यस्त है " माँ ने बिना किसी हिचक के जवाब दिया.


"मतलब आज भी मौका है माँ के पास " मैंने मन मे सोचा.


"माँ मुझे कॉलेज जाना है?" मेरा घर मे मन नहीं लग रहा था दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया था.


"क्यों तेरी तो छुट्टी थी ना "


"वो... वो.... कुछ प्रोजेक्ट का काम है "


"ठीक है जल्दी आ जाना "


हम नाश्ता कर चुके थे, मैंने अपना बेग उठाया और बाइक ले के चल पड़ा.


मुझे जाना कहीं नहीं था, बस घर मे एक बोझ सा लग रहा था.


तरह तरह मे ख्याल आ रहे थे


"क्या मै पापा को सब बता दू जो भी मैंने देखा?"


"नहीं... नहीं.... बसा बसाया परिवार ख़त्म हो जायेगा, मै ऐसा नहीं कर सकता"


मै रास्ते मे बुके रोक खुद से बात कर रहा था, सवाल जवाब मर रहा था,


कभी मम्मी को कोषता तो कभी खुद को.


सूरज सर पे चढ़ आया था.


मज़ाक टेंशन मे था, अब टेंशन का इलाज दारू ही है.


मैंने तेज़ स्पीड से बाइक दौड़ा दी,.


पास ही के ठेके से पूरी बोत्तल दारू की ले ली, और सिगरेट का पैकेट पकड़ उसी खंडर पर जा पंहुचा जहाँ लास्ट टाइम लिया था.


यहाँ कोई आता जाता नहीं था.


मैंने अपनी बाइक झाडी मे खड़ी की और अंदर एक पेड के नीचे जा बैठा, मेरे पीछे दिवार थी जिस पर मैंने सर टिका दिया.


दारू का कड़वा घुट जैसे ही मेरे हलक से नीचे उतरा, रात के जख्म फिर हरे हो गए.


"आखिर क्यों...? आखिर क्यों माँ ऐसी क्या मज़बूरी थी आपकी? आप से ऐसी उम्मीदवार नहीं थी माँ "


मै खुद से बड़बड़ा रहा था.


की तभी.... धाक.... धाक.... दहक.... की आवाज़ खंडर के पास आने लगी.


मै घबरा गया, किसी ने मुझे यहाँ ऐसे दारू के साथ देख लिया  बड़ी बदनामी होंगी मेरी.


बुलेट बाइक की आवाज़ और पास आ गई थी, मैंने तुरंत दारू की बोत्तल साइड को और पेड़ के पीछे हो लिया.


बुलेट कहीं पास मे ही रुकी थी.


कदमो की आहत पास आने लगी, घास की सरसरहट के साथ मेरे कलेजे मे भी सरसरहाट होने लगी.


"यार असलम आज किस बात की पार्टी ले रहा, बड़ा ख़ुश लग रहा आज क्या बात है "


दिवार के पीछे से मुझे एक आवाज़ आई, कोतुहाल का विषय असलम नाम का होना था मेरे कान खड़े हो गए.


"ये कौन असलम है? " मैंने दिवार पर कान लगा दिए, शुक्र था की वो लोग मेरी दूसरी तरफ थे.


"तू दारू पी मौज करना फारुख तेरे को क्या है " मै ये आवाज़ पहचानता था.


ये वही असलम है मेरे घर के सामने वाला कसाई, साला यहाँ क्या कर रहा है.


मेरा खून खोल गया, मन किया साले को अभी यही मार के फेंक दू.


"बता ना यार असलम क्या बात है?"


"वो... वो सामने वाली आंटी है ना?"


"वो जो अभी कुछ दिन पहले ही आई है?"


"हाँ वही... ".


"उसका क्या?" फारुख के चेहरे पे जिज्ञासा थी.


"उसे कल रात जम मे पेला मैंने, साली की चुत फाड़ के रख दी हैःहेहेहे..."


असलम हरामी मेरी माँ के बारे मे ही बात कर रहा था, बात क्या कर रहा था दही ढिंढोरा पिट रहा था की उसने मेरी माँ को चोदा है.


मै शर्म और गुस्से से मरा जा रहा था, पूरा गांव जान जायेगा तो हम किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं बचेंगे..


छी... माँ अपने कितनी घटिया हरकत की.


मैंने एक पेग नीट मार लिया, आँखों मे खून उतार आया था मेरे.


पीछे दिवार के उस पार.


"खा अब्बा कसम तूने उसे चोदा है " फारुख को यकीन नहीं था असलम की बात पर, लेकिन मै जीता जगता सबूत था की असलम सच कहा रहा है.


"अरे सच मे यार साली पूरी रंडी है, मेरे लंड की दीवानी है, खुद से चुदाने आई थी मुझसे "


"चल साले फेंकता है उसने तो तुम्हे कुत्ते की तरह चाटे मार के जेल भेज दिया था, फिर कैसे खुद से चुदवाने आ गई " फारुख ने दो पेग बना दिए.


"वो सब दिखावा था, घरेलु संस्कारी औरतों को दिखावा करना पड़ता है रे, साली प्यासी थी तो मैंने प्यास बुझा दी, उसका मर्द छोटी लुल्ली ले के घूमता है तो क्या मरे बेचारी "


मेरे परिवार की इज़्ज़त नीलाम हो रही थी, और मे दिवार के इस पार बैठा किसी हिजड़े की तरह ये सब होने दे रहा था.


न्याय संगत तो ये था की मै अभी दोनों को जान से मार डालता, लेकिन मुझमे हिम्मत नहीं थी.


मैंने दारू की बोत्तल को मुँह से लगा एक कड़वा घुट फिर पी लिया, और काम दिवार से जा चिपके.


"बता ना भाई असलम ये सब हुआ कैसे?"


"बताता हूँ बताता हूँ.... पहले एक दो पेग पी तो लेने दे.


मुझे भी तो यही जानना था, की ये सब हुआ कैसे? क्यों? कब?


मेरे सवालों का जवाब असलम देने जा रहा था.


नियति देखो जिसके लिए मै परेशान था वो खुद मेरे पास चल के आ गया था.

राज खुलने ही वाला है अब... मै सांस रोक के वही बैठ गया 

Contd....


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