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मेरी माँ अंजलि -3

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विशाल नाहा धोकर फ्रेश होता है। पिछली पूरी दोपहर और फिर रात भर सोने के बाद अब उसके बदन से थकन पूरी तेरह उतार चुकी थी और वो खुद को एकदम फ्रेश महसुस कर रहा था। उसने एक पायजामा और शर्ट पेहन ली। निचे किचन से उसकी माँ उसे नाश्ते के लिए बुला रही थी। विशाल अपने बाल संवार कर कमरे से बहार निकलता है और सीढियाँ उतरता निचे किचन की और जाता है।

विशाल बहुत धीरे धीरे कदम उठा रहा था। सुबह सुबह जो कुछ हुआ था उसके बाद से अपनी माँ के सामने जाते बहुत शर्म महसूस हो रही थी। उसकी माँ ने उसे पूरी तरह नंगा देख लिया था और ऊपर से उस समय उसका लौडा भी पूरा तना हुआ था जैसे अक्सर उसके साथ सुबह के समय होता था। हालाँकि उसकी माँ ने कोई बुरा नहीं माना था, कोई गुस्सा भी नहीं किया था लेकिन उसे शर्म तोह फिर भी महसूस हो रही थी। लेकिन अब माँ का सामना तोह करना ही था, इस्लिये वो धीरे धीरे कदम उठता किचन की और जाता है।
अंजलि बेटे की पदचाप सुनकर दो ग्लासेज में चाय डालती है। विशाल जब्ब किचन में दाखिल होता है तोह अंजलि झुकि चाय दाल रही थी। विशाल डाइनिंग टेबल की कुरसी पर बैठ जाता है। उसकी माँ उसके सामने चाय और एक प्लेट में खाने का सामन रखती है। वो विशाल के बिलकुल सामने टेबल के दूसरी और बैठ जाती है।

अंजलि के होंठो पर गहरी मुस्कराहट थी।


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विशाल सर झुककर चाय पि रहा था। भले ही उसने सर झुकाये हुआ था मगर वो अपनी माँ की मुस्कराहट को महसूस कर सकता था। उसके गालों पर हलकी सी शर्म की लाली थी। दोनों चुप्प थे। विशाल को वो चुप्पी बहुत चुभ रही थी जबके अंजलि बेटे की हालत पर मुसकरा रही थी। विशाल कुछ कहना चाहता था ताकि उसका और उसकी माँ का धयान जो अभी थोड़ी देर पहले उसके बैडरूम में हुआ था, उससे हट सक। मगर वो कोनसी बात करे, क्या कहे उस समज नहीं आ रहा था।

"मा पिताजी चले गए क्या?" विशाल को जब्ब कुछ ओर नहीं सूझता तोह वो यहीं पूछ लेता है। उसकी नज़र झुकि हुयी थी।

"हूँह् हा वो चले गये" उसकी माँ हिचकियों के बिच बोल रही थी। विशाल चेहरा ऊपर उठता है तोह अपनी माँ को हँसते हुए देखता है। वो खींघ उठता है।

"म अब बस भी करो तुम भी ना" विशाल रुष्टसा सा बोलता है।
सररी........ सोर्री............." अंजलि अपने मुंह से हाथ हटा लेती है
और अपनी बाहें टेबल पर रख गम्भीर मुद्रा बना लेती है।

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विशाल उसकी और देखकर नाक भौंह सिकोड़ता है
क्यों आए उसे मालूम था के वो जानबुझ कर नाटक कर रही थी। अं
जलि बेटे के चेहरे की और देखति है और अचानक वो फिर से खिलखिला कर हंस पड़ती है।
वो टेबल पर अपनी कुहनियों पर सर रख लेती है और ज़ोर ज़ोर से हंसने लगती ही।
उसका पूरा बदन हिल रहा था। वो अपना चेहरा ऊपर उठती है।
हँसि से उसका बुरा हाल था। उसकी ऑंखे भर आई थी। पेट् में दरद होने लगा था।
विशाल की खींज और बढ़ जाती है।
मगर जब्ब अंजलि अपने हाथ इंकार में हिलाती खुद को रोक्ति है और फिर ज़ोरों से हंस पड़ती है
तोह विशाल अपना चेहरा अपने हाथों से ढँक लेता है।
ओर फिर वो भी हंसने लगता है। अंजलि की हँसी और भी ज़ोरदार हो जाती है।


मा बेटे को शांत होने में कुछ वक़त लगता है। दोनों चाय ख़तम करते है।
अंजलि किचन में बर्तन ढ़ोने लगती है जबके विशाल अपने कमरे में आ जाता है।
वो अपने पुराने दोस्तों को फ़ोन करने लगता है। उसके सभी दोस्त उससे मिलने के लिए बेताब थे
मगर जिस दोस्त की उसे तलाश थी वो उसे नहीं मीली।
उसकी शादी हो चुकी थी और वो दूसरे शहर जा चुकी थी।
विशाल से उसके बहुत गेहरे सम्बन्ध थे।
एक वही लड़की थी जिसके साथ विशाल का लम्बा अफेयर चला था।
विशाल ने उसके लिए अमेरिका से एक खास और बहुत महंगा उपहार लिया था
जो उसे उम्मीद थी बहुत पसंद आने वाला था मगर अब वो तोह जा चुकी थी।

अगर विशाल कोशिश भी करता तोह इतने सालों बाद हो सकता है उसके दिल में विशाल के लिए कोई जगह न बची हो।
आखिर विशाल ने उसे कभी फ़ोन तक्क तो नही किया था और ऊपर से वो अब शादिशुदा थी।
विशाल को लगा था के वो कोशिश करके पुराने रिश्ते को फिर से जिन्दा कर लेगा
मगर अब तोह उसे कोशिह करना भी बेकार लग रहा था।
विशाल का मन थोड़ा उदास हो विशाल का मन थोड़ा उदास हो जाता है।
उसका दिल कुछ करने को नहीं हो रहा था तोह वो अपना लैपटॉप खोलकर म्यूजिक सुन्ने लगता है।

कोई दो घंटे बाद घर का सारा काम निपटा कर नाहा धोकर अंजलि बेते के कमरे में दाखिल होती है।
उसके हाथ में एक जूस का गिलास था। वो टेबल पर गिलास रख देती है।
विशाल क्योंके हेडफोन्स लागए ऊँची आवाज़ में म्यूजिक सुन रहा था
तोह उसे अपना माँ के आने का पता नहीं लगता है।
वो गिलास के टेबल पर रखने के समय आवाज़ से अपनी ऑंखे खोलता है
और अपनी माँ को देखकर मुसकरा पढता है।
उसे अब सुबह की तेरह श्रम नहीं आ रही थी।
वो म्यूजिक बंद कर देता है और दूसरी कुरसी खीँच कर अपनी माँ को अपने पास बैठने के लिए केहता है।

अंजलि ने एक पतली सी साड़ी पहनी हुयी थी।
उसका ब्लाउज स्लीवलेस था

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बल्कि ब्लाउज की गहरी लाल पट्टियाँ उसकी गर्दन से चिपकी हुयी थी।
साड़ी के ऊपर लाल रंग के फूल बने हुए थे।
हालाँकि अंजलि ने साड़ी से अपने सामने का पूरा बदन ढका हुआ था
मगर विशाल एक कोने से देख सकता था के उसकी माँ का वो ब्लाउज कितना छोटा था।
वो उसके सीने से हल्का सा निचे तक्क आता था और
उसपर से उसने अपनी साड़ी काफी निचे बांधी हुयी थी।
उसका पेट् काफी हद्द तक्क नंगा था
और विशल उसको साड़ी के पतले पल्लू से झाँकता देख सकता था।
उसकी माँ ने बड़े ही आधुनिक तरीके से बाल कटवाये हुए थे
जो उसकी पीठ पर उसकी बग़लों तक्क ही आते थे।

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उसने कानो और अपने हाथ में एक ही डिज़ाइन के गेहने पहने हुए थे
जब के दूसरे बाजु पर लाल रंग का धागा बंधा हुआ था। विशाल अपनी माँ को देखता ही रह गया।
वो कितनी सुन्दर है शायद उसने जिंदगी में पहली बार महसूस किया था।

तोह कैसा महसूस हो रहा है इतने सालों बाद वापस घर लौटकर?" अंजलि अपने बालों को झटकती पूछती है।

"हम्म्म्मम् बहुत अच्चा लग्ग रहा है माँ बहुत अच्चा लग्ग रहा है। वहाँ तोह खुदही सारे काम करने पढते हैं खुद ही खाना बनाओ खुद ही कपडे धोओ खुड इस्त्री करो सभी कुच" विशाल अपनी अमेरिका की जिन्दगी के संगर्ष को याद करता ठण्डी आह भर्ता है। "मगर यहाँ कितना मज़ा है.......कपडे धुले हुये.....गरमा गरम ताज़ा खाना तय्यार सभी कुच......" विशाल मुस्कराता है।

"यह तोह तुझे घर आने कि, हमसे मिलने की ख़ुशी नहीं है...बलके तुझे राहत महसूस हो रही है के तेरा काम करने के लिए घर पर नौकरानी है....हुँह?" अंजलि मुस्कराती बेते से सिकायत करती है।

"हूँ माँ तुम बिलकुल ठीक कह रही हो" विशाल हँसता हुआ कहता है तोह अंजलि उसकी जांघ पर ज़ोर से मुक्का मारती है। विशाल और भी ज़ोर से हंस पढता है।

"ख़ाने का तोह में मान लेती हुण वैसे मुझे समज में नहीं आता तू खाना बनाता कैसे था मगर कपड़ों का तोह तू झूठ बोलता लगता है.....जब कपडे पहनोगे नहीं तोह धोयोगे कहाँ से?" अंजलि मुस्कराती चोट करती है।

"माssss" विशाल नाराज़गी भरे लेहजे में अपनी माँ को टोकता है। अब हंसने की बरी अंजलि की थी।

"क्या मा.....आप फिर से...." विशाल के गाल फिर से शर्म से लाल हो जाते है। उसकी नज़रें झुक जाती है। "वो अब अमेरिका में अकेला रहता था इसीलिए वहां यह आदत पढ़ गइ कल मुझे याद ही नहीं रहा के में घर पर हुण "

"अर्रे तोह इसमें शरमाने की कोनसी बात है" अंजलि विशाल की शर्मिंदगी का मज़ा लेते चटख़ारे से बोलती है। उसे बेटे को सताने में बेहद्द मज़ा आ रहा था। "मैने कोनसा तुझे पहली बार नंगा देखा है तूझे खुद अपने हाथों से नेहलाती रही हुन, धोती रही हुन, स्कूल के लिए तैयार करती रही हुण भूल गया क्या"

"मा......अब में तुम्हारा वो छोटा सा बेटा नहीं रहा बड़ा हो गया हुण" इस बार विशाल अपनी नज़र उठकर अपनी माँ से केहता है।

हनणण यह तोह मैंने देखा था सुबह तू सच में बड़ा हो गया है बलके बहुत, बहुत बड़ा हो गेय है और" अंजलि अपने नीचला होंठ काटती विशाल को आंख मारती है "मोटा भी बहुत हो गया है।"

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विशाल एक पल के लिए अवाक सा रह जाता है। वो विश्वास नहीं कर पा रहा था।
जिस अंदाज़ से अंजलि ने उसे कहा था, और वो लफ़ज़ कहने के समय जो उसके चेहरे पर भाव था
खास कर जब्ब उसने बेटे को अंख मारी थी, उससे विशाल को लगा था के उसकी माँ का इशारा उसके लंड की और था
मगर यह कैसे हो सकता था वो भला ऐसे कैसे कह सकती थी वो तोह उसकी माँ थी।......


"वैसे मुझ लगता है ग़लती मेरी है। मुझे सच में कभी ख्याल ही नहीं आया के मेरा बीटा अब जवान हो गया है
के मुझे अब दरवाजे पर दस्तक देनि चहिये" अंजलि बेटे को सोच में डुबता देख बोलती है।
फिर अचानक से वो अपनी कुरसी से उठती है और विशाल के ऊपर झुकति है।
विशाल आरामदेह कुरसी पर पीछे को अधलेटा सा बैटा था।
इसलिए अंजलि ने उसके कन्धो पर हाथ रखे और फिर अपने होंठ उसके माथे पर रखकर एक ममतामयी प्यार भरा चुम्बन लिया।

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"सच में मालूम ही नहीं चला तू कब्ब जवान हो गया" फिर वो वापस अपनी कुरसी पर बैठ जाती है। विशाल अपने मन को भटकने से रोकना चाहता था मगर अपने सीने पर अपनी माँ के उभारों का दबाव अब भी उसे महसूस हो रहा था। सायद वो उस दबाव को कभी मेहुस नहीं करता अगर उसकी माँ ने कुछ समय पहले शरारत से वो अलफ़ाज़ न कहे होते।

"मा तुमहे दस्तक वासतक देणे की कोई जरूरत नहीं है। तुम जब्ब चाहो बेहिचक मेरे कमरे में आ सकती हो" विशल अपनी माँ के हाथ अपने हाथों में लेता बोल।

"हान में सीधी कमरे में घुश जायूँ और तू सामने नंगा खडा हो" अंजलि मुस्कराती है।

"वुफफुआ मा अब छोडो भी। तुम्हे कहा न वहा अकेला रहता था, इस्लिये कुछ ऐसी आदतें हो गायी अब ध्यान रखुंगा अपनी आदतें बदल लुँगा बस्स" अंजलि बेटे की बात पर मुसकरा पड़ती है। विशाल उसके हाथों को अपने हाथ में लिए बहुत ही कोमलता से सहला रहा था।

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अंजलि अपना एक हाथ उसके हाथोंसे छुडा कर उसके गाल को सहलती है। उसका चेहरा पुत्रमोह से चमक रहा था।

विशाल को अब समज में आता है के वो क्यों इतना मुसकरा रही थी, क्यों वो कमरे में उसे नंगा देखने पर हंसने लगी थी। वो खुश थी। वो बहुत खुश थी। बेटे के आने से उसे इतनी ख़ुशी थी के उसे जब्ब भी छोटा सा मौका भी मिलता वो मुसकरा उठती थी, हंस पड़ती थी। शायद उसने बहुत समय से अपनी हँसी अपनी ख़ुशी बेटे के भविष्य के लीय दबाये रखी थी।

"मै समजती हुन बेटा मुझे दुःख होता है के तुम्हे इतनी सारी तकलीफे झेलनी पडी। तुम्हे दिन रात कितनी मेहनत करनी पड़ी मुझे एहसास है बेटा। तुम नहीं जानते जब्ब में तुम्हारे बारे में सोचती थी और मुझे एहसास होता था के तुम वहां अकेले हो इतने बड़े देश में, उन अंजान, पराए लोगों के बिच और तुम्हारा ख्याल रखने वाला कोई नहीं है तो मुझे कितना दुःख होता था।" अंजलि अचानक गम्भीर हो उठती है।
Contd....

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