मेरी माँ अंजलि -6

आखिरकार अंजलि बेटे का गाल चूमती है

और धीरे से मुस्कराते हुए उससे जुदा होती है. उस गर्माहट भरे अलिंगन से जुदा होने पर दोनों माँ बेटे को अच्चा महसूस नहीं होता.
"चल मुझे बहुत से काम करने है......सुबह का घर का सारा काम पडा है.......दोपहर का खाना भी बनाना है......बातों बातों में समय का पता ही नहीं चला.........तूझे आज कहीं जाना तोह नहीं है.........." अंजलि अपने कपडे ठीक करते हुए कहती है. विशाल अपनी नज़र तरुंत फेर लेता है. अंजलि के भरी मम्मे उसकी टी-शर्ट के अंदर हिचकोले खा रहे थे.
"अपने दोस्तों से ही मिलने जाना है माँ. कल सभी से मिल नहीं पाया था" विशाल अपनी नज़र बलपूर्वक टीवी की तरफ मोड़ कर कहता है.
"ठीक है बेटा.........में थोड़ा बहुत काम निपटा दुं, उसके बाद लंच की तय्यारी करती हु. तुम लंच के बाद अपने दोस्तों से मिलने चले जाना मगर कल की तरह रात को देर नहीं करना. तुम्हारे पीता रात में गुस्सा कर रहे थे."
"हु......ठीक है माँ, आज जल्दी आने की कोशिश करूँगा"
दोनो माँ बेटा अपने अपने काम में बिजी हो जाते है. विशल ऊपर अपने कमरे में जाकर अपने लैपटॉप पर कुछ इ-मेल्स भेजने में मशरूफ़ हो जाता है जबकि अंजलि घरेलु कामो में. बेटे के पास उठने को उसका दिल नहीं कर रहा था मगर घर का सारा काम पडा था. उसकी मजबूरी थी इस्लिये उसे उठना पढ़ा नहीं तोह बेटे का साथ, उससे बातें करना, उसका वो गर्माहट भरा अलिंगन, माँ के प्यार मे डूबे उसके चुम्बन, सभ कुछ कितना प्यारा कितना आनन्दमयी था. लेकिन वो दिल ही दिल में इस बात से भी डरती थी के कहीं वो अपने बेटे को बोर न करदे.
विशाल भी अपने कमरे में जाकर लैपटॉप के सामने बैठा अपनी माँ के साथ बिताये अपने समय के बारे में ही सोच रहा था. कितना सुकुन, कितना आनंद था माँ के अलिंगन में. कैसे वो उसकी और प्यार भरी नज़रों से देखति बार बार मुसकरा पड़ती थी. सभी कुछ कितना रोमांचक महसूस हो रहा था. विशाल आज खुद को अपनी माँ के इतने इतने करीब महसूस कर रहा था जितना उसने आज तक कभी नहीं किया था.
उनके बिच एक नया नाता जुड़ गया था और विशाल का दिल कर रहा था के वो अपना सारा समय अपनी अपनी माँ से यूँ ही लीपटे हुए उससे बातें करते हुए बिताए.लंच के बाद जल्द ही विशाल घर से निकल गया. अपने पुराने दोस्तों को मिलकर उनके साथ मस्ती करने में एक अलग ही आनंद था. मगर नाजाने क्यों उसे कुछ कमी महसूस हो रही थी. जैसे मज़ा उसे पिछले दिन अपने दोस्तों के साथ समय बिताने में आया था वैसा मज़ा आज नहीं था. आज उसका ध्यान बार बार घर की और जा रहा था.
सही अर्थों में उसका ध्यान घर की और नहीं बल्कि अपनी माँ की और जा रहा था. शाम होते होते वो कुछ बेचैन सा हो उठा और अपने दोस्तों से विदा लेकर घर की और चल पढ़ा. उसके दोस्त उसके इस तरह इतनी जल्दी चले जाने से खुश नहीं थे और उससे कुछ देर रुक्ने के लिए रिक्वेस्ट कर रहे थे मगर विशाल के लिए रुकना मुश्किल था. जब्ब वो घर पहुंचा तो अभी उसके पिताजी काम से लौटे ही थे और अंजलि किचन में खाना पका रही थी.
विशाल जैसे ही किचन में गया उसकी माँ उसे इतनी जल्दी लौटा देख थोड़ी हैरान हो गयी मगर उसका चेहरा ख़ुशी से खील था.
"क्या हुआ? आज इतनी जल्दी कैसे लौट आये? मुझे लगा था कल्ल की तरह लेट हो जाओगे" अंजलि मुस्कराती हुयी बेटे का अभिनंदन करती है. विशाल आगे बढ़कर अपनी माँ को अपने अलिंगन में भर लेता है.

और धीरे से मुस्कराते हुए उससे जुदा होती है. उस गर्माहट भरे अलिंगन से जुदा होने पर दोनों माँ बेटे को अच्चा महसूस नहीं होता.
"चल मुझे बहुत से काम करने है......सुबह का घर का सारा काम पडा है.......दोपहर का खाना भी बनाना है......बातों बातों में समय का पता ही नहीं चला.........तूझे आज कहीं जाना तोह नहीं है.........." अंजलि अपने कपडे ठीक करते हुए कहती है. विशाल अपनी नज़र तरुंत फेर लेता है. अंजलि के भरी मम्मे उसकी टी-शर्ट के अंदर हिचकोले खा रहे थे.
"अपने दोस्तों से ही मिलने जाना है माँ. कल सभी से मिल नहीं पाया था" विशाल अपनी नज़र बलपूर्वक टीवी की तरफ मोड़ कर कहता है.
"ठीक है बेटा.........में थोड़ा बहुत काम निपटा दुं, उसके बाद लंच की तय्यारी करती हु. तुम लंच के बाद अपने दोस्तों से मिलने चले जाना मगर कल की तरह रात को देर नहीं करना. तुम्हारे पीता रात में गुस्सा कर रहे थे."
"हु......ठीक है माँ, आज जल्दी आने की कोशिश करूँगा"
दोनो माँ बेटा अपने अपने काम में बिजी हो जाते है. विशल ऊपर अपने कमरे में जाकर अपने लैपटॉप पर कुछ इ-मेल्स भेजने में मशरूफ़ हो जाता है जबकि अंजलि घरेलु कामो में. बेटे के पास उठने को उसका दिल नहीं कर रहा था मगर घर का सारा काम पडा था. उसकी मजबूरी थी इस्लिये उसे उठना पढ़ा नहीं तोह बेटे का साथ, उससे बातें करना, उसका वो गर्माहट भरा अलिंगन, माँ के प्यार मे डूबे उसके चुम्बन, सभ कुछ कितना प्यारा कितना आनन्दमयी था. लेकिन वो दिल ही दिल में इस बात से भी डरती थी के कहीं वो अपने बेटे को बोर न करदे.
विशाल भी अपने कमरे में जाकर लैपटॉप के सामने बैठा अपनी माँ के साथ बिताये अपने समय के बारे में ही सोच रहा था. कितना सुकुन, कितना आनंद था माँ के अलिंगन में. कैसे वो उसकी और प्यार भरी नज़रों से देखति बार बार मुसकरा पड़ती थी. सभी कुछ कितना रोमांचक महसूस हो रहा था. विशाल आज खुद को अपनी माँ के इतने इतने करीब महसूस कर रहा था जितना उसने आज तक कभी नहीं किया था.
उनके बिच एक नया नाता जुड़ गया था और विशाल का दिल कर रहा था के वो अपना सारा समय अपनी अपनी माँ से यूँ ही लीपटे हुए उससे बातें करते हुए बिताए.लंच के बाद जल्द ही विशाल घर से निकल गया. अपने पुराने दोस्तों को मिलकर उनके साथ मस्ती करने में एक अलग ही आनंद था. मगर नाजाने क्यों उसे कुछ कमी महसूस हो रही थी. जैसे मज़ा उसे पिछले दिन अपने दोस्तों के साथ समय बिताने में आया था वैसा मज़ा आज नहीं था. आज उसका ध्यान बार बार घर की और जा रहा था.
सही अर्थों में उसका ध्यान घर की और नहीं बल्कि अपनी माँ की और जा रहा था. शाम होते होते वो कुछ बेचैन सा हो उठा और अपने दोस्तों से विदा लेकर घर की और चल पढ़ा. उसके दोस्त उसके इस तरह इतनी जल्दी चले जाने से खुश नहीं थे और उससे कुछ देर रुक्ने के लिए रिक्वेस्ट कर रहे थे मगर विशाल के लिए रुकना मुश्किल था. जब्ब वो घर पहुंचा तो अभी उसके पिताजी काम से लौटे ही थे और अंजलि किचन में खाना पका रही थी.
विशाल जैसे ही किचन में गया उसकी माँ उसे इतनी जल्दी लौटा देख थोड़ी हैरान हो गयी मगर उसका चेहरा ख़ुशी से खील था.
"क्या हुआ? आज इतनी जल्दी कैसे लौट आये? मुझे लगा था कल्ल की तरह लेट हो जाओगे" अंजलि मुस्कराती हुयी बेटे का अभिनंदन करती है. विशाल आगे बढ़कर अपनी माँ को अपने अलिंगन में भर लेता है.
क्या करूँ माँ तुमारे बिना दिल ही नहीं लग रहा था.........
इसीलिये चला आया." विशाल मुस्कराता अपनी माँ से कहता है.
अंजलि बेटे के चेहरे को प्यार भरी नज़रों से देखति है. वो अपने जिस्म को अपने बेटे की बाँहों में ढीला छोड़ देती है.
विशल अपनी बहें अपनी माँ की कमर पर थोड़ी सी कस्स कर उसे अपनी तरफ खेंचता है

तोह अंजलि के मम्मे उसके सीने पर दस्तक देणे लगते है.
अंजलि कुछ कहने के लिए मुंह खोलती है के तभी ड्राइंग रूम में कदमो की आहट सुनायी देती है.
विशाल घबरा कर तूरुंत अपनी माँ को अपने अलिंगन से आज़ाद कर देता है
और किचन में एक कार्नर में रखी कुरसी पर बैठ जाता है.
अंजलि उसके इस तरह घबरा उठने पर हंस पड़ती है.
विशाल शर्मिंदा हो जाता है. तभी कमरे में विशाल के पिता का आगमन होता है.
वो अंजलि से इस तेरह हंसने की वजह पूछता है
तोह अंजलि कहती है के विशाल उसे एक बहुत ही मज़ेदार जोक सुना रहा था.
विशाल और शर्मिंदा हो जाता है.
इसीलिये चला आया." विशाल मुस्कराता अपनी माँ से कहता है.
अंजलि बेटे के चेहरे को प्यार भरी नज़रों से देखति है. वो अपने जिस्म को अपने बेटे की बाँहों में ढीला छोड़ देती है.
विशल अपनी बहें अपनी माँ की कमर पर थोड़ी सी कस्स कर उसे अपनी तरफ खेंचता है

तोह अंजलि के मम्मे उसके सीने पर दस्तक देणे लगते है.
अंजलि कुछ कहने के लिए मुंह खोलती है के तभी ड्राइंग रूम में कदमो की आहट सुनायी देती है.
विशाल घबरा कर तूरुंत अपनी माँ को अपने अलिंगन से आज़ाद कर देता है
और किचन में एक कार्नर में रखी कुरसी पर बैठ जाता है.
अंजलि उसके इस तरह घबरा उठने पर हंस पड़ती है.
विशाल शर्मिंदा हो जाता है. तभी कमरे में विशाल के पिता का आगमन होता है.
वो अंजलि से इस तेरह हंसने की वजह पूछता है
तोह अंजलि कहती है के विशाल उसे एक बहुत ही मज़ेदार जोक सुना रहा था.
विशाल और शर्मिंदा हो जाता है.
विशाल का पिताजी उसे बताते है के उसने १३ जुलाई के दिन घर पर पूजा करवाने का फैसला किया है.
विशाल के सफलता पूर्वक पढ़ाई पूरी करने और ऊँची नौकरी पर लाग्ने के लिये.
१३ जुलाई को संडे का दिन था और उस दिन उसे ऑफिस से छुट्टी थी और
कल जनि १२ जुलाई को वो ऑफिस से वैसे छुट्टी ले लेंगे.
अब बिच में सिर्फ एक कल का दिन बाकि था. उन्हें पूरी तैयारी करनी थी.
विशाल का बाप उससे तैयारी में मदद करने को कहता है
तोह विशाल उन्हें अस्वाशन देता है के वो सारा काम करेंगा.
अंजलि खाना बनाते हूए अपने पति से पूजा और उसके लिए क्या क्या तयारी करनी थी,
पुछने लग्ग जाती है. विशाल को वहां कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था
वो उठ कर अपने कमरे में चला जाता है.
सहसा उसका मूड बहुत खऱाब हो जाता है.
अभी परसो को पूजा थी, कल्ल का सारा दिन तैयारी में जाने वाला था
और परसो का भी. मतलब वो अपनी माँ के साथ कुछ भी समय नहीं बिता पायेगा.
विशाल के उखाडे मूड की और उसकी माँ का ध्यान जाता है
जब्ब वो खाने की मज़े पर सर झुकाए चुपचाप खाना खा रहा था.
अंजलि के पुछने पर उसने सर दर्द का बहाना बना दिया.
खाने के बाद भी उसके माँ बाप पूजा को लेकर बातों में लगे रहे.
विशाल अपने कमरे में आ जाता है. वो टीवी लगाकर अपनी माँ का वेट करने लगता है .

मगर अंजलि आ ही नहीं रही थी.
पहले वो खाने के आधे घंटे बाद तक्क आ जाती थी.
अब तोह एक घंटे से ऊपर हो चुका था.
विशाल से इंतज़ार नहीं हो रहा था. होते होते ग्यारह वजने को हो गये.
विशाल को लगा के शायद अब वो नहीं आएगी.
वो इतनी देर से जागने के कारन ऊँघने लगा था
के तभी दरवाजे पर दस्तक हुयी.
विशाल की आँखों से नींद एक पल में ही उड़ गयी
विशाल के सफलता पूर्वक पढ़ाई पूरी करने और ऊँची नौकरी पर लाग्ने के लिये.
१३ जुलाई को संडे का दिन था और उस दिन उसे ऑफिस से छुट्टी थी और
कल जनि १२ जुलाई को वो ऑफिस से वैसे छुट्टी ले लेंगे.
अब बिच में सिर्फ एक कल का दिन बाकि था. उन्हें पूरी तैयारी करनी थी.
विशाल का बाप उससे तैयारी में मदद करने को कहता है
तोह विशाल उन्हें अस्वाशन देता है के वो सारा काम करेंगा.
अंजलि खाना बनाते हूए अपने पति से पूजा और उसके लिए क्या क्या तयारी करनी थी,
पुछने लग्ग जाती है. विशाल को वहां कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था
वो उठ कर अपने कमरे में चला जाता है.
सहसा उसका मूड बहुत खऱाब हो जाता है.
अभी परसो को पूजा थी, कल्ल का सारा दिन तैयारी में जाने वाला था
और परसो का भी. मतलब वो अपनी माँ के साथ कुछ भी समय नहीं बिता पायेगा.
विशाल के उखाडे मूड की और उसकी माँ का ध्यान जाता है
जब्ब वो खाने की मज़े पर सर झुकाए चुपचाप खाना खा रहा था.
अंजलि के पुछने पर उसने सर दर्द का बहाना बना दिया.
खाने के बाद भी उसके माँ बाप पूजा को लेकर बातों में लगे रहे.
विशाल अपने कमरे में आ जाता है. वो टीवी लगाकर अपनी माँ का वेट करने लगता है .

मगर अंजलि आ ही नहीं रही थी.
पहले वो खाने के आधे घंटे बाद तक्क आ जाती थी.
अब तोह एक घंटे से ऊपर हो चुका था.
विशाल से इंतज़ार नहीं हो रहा था. होते होते ग्यारह वजने को हो गये.
विशाल को लगा के शायद अब वो नहीं आएगी.
वो इतनी देर से जागने के कारन ऊँघने लगा था
के तभी दरवाजे पर दस्तक हुयी.
विशाल की आँखों से नींद एक पल में ही उड़ गयी
अंजलि दूध का गिलास पकडे कमरे में दाखिल होती है.

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विशाल बेड पर उठ कर बैठ जाता है. अंजलि उसे दूध का ग्लास देकर बेड के किनारे पर बैठती है
तोह विशाल दूध का गिलास साथ में पड़े टेबल पर रखता है
और अपनी माँ की और बढ़ता है.
वो एक हाथ उसकी पीठ और दूसरा उसकी जांघो के निचे रखकर उसे बेड के ऊपर अपने पास खींच लेता है.

अंजलि हंसने लगती है.
"उऊंणठ.....छोड़ न क्या कर रहा है. ........" अंजलि की खिलखिलाती हँसी से पूरे कमरे का माहोल एकदम से बदल जाता है.
"अब आना था माँ.........कब से वेट कर रहा हुण......." विशाल रुष्ट स्वर में कहता है.
वो और अंजलि दोनों एक दूसरे की तरफ मुंह किये बेड की पुष्ट से टेक लागए बैठे थे.
"क्या करति, में और तुम्हारे पापा ने मिलकर सभी रिश्तेदारों की लिस्ट बनायीं और उन्हें फ़ोन किया
. फिर उनके दोस्तों को और ऑफिस में उनके साथ काम करने वालो को भी इनवाइट किया.
और फिर क्या क्या सामान चाहिए उसकी लिस्ट बनायी.
इसिलिये इतना समय लग गया" अंजलि बेटे का गाल सहलाती उसे कहती है.
"मा क्या इतनी जल्दी थी पापा को पूजा करवाने की.......अभी कुछ दिन वेट कर लेते......"
विशाल अपनी माँ के पास सरकाता उसके और करीब होता है.
"मैं जानती हुन तुम्हे अच्छा नहीं लग रहा.......
.मगर बेटा हमारी दिली खवाहिश थी.......देखो भगवान ने हमारी सुनि है......
तुमारी पढ़ाई भी पूरी हो गयी और तुम्हे कितनी अच्छी नौकरी भी मिल गई.......
इसीलिये तेरे पापा ने पण्डितजी से सलाह की थी तोह उन्होनो परसो का दिन शुभ बताय था.......
और फिर कल का ही तोह दिन है बेटा. परसो सुबह सुबह पूजा हो जायेगी और
दोपहर तक सभी मेहमान खाना खा कर चले जाएंगे.....
.बस दो दिन की बात है........"
अंजलि भी बेटे के पास सरक जाती है. अब दोनों माँ बेटे के जिसम ऊपर से जुड़े हुए थे.
"उम्म्म माँ अभी तीन दिन ही तोह हुए थे मुझे आये हुये......
कूछ दिन वेट कर लेते..." विशाल अपनी बाहें अपनी माँ के गिर्द कस्ते हुआ बोलता है.

"जरूर कर लेते.....बल्की तुजसे पूछ कर करते.......
मगर पंडित जी ने दिन ही परसो का बताया......इसीलिये मजबूरी है बेटा....."
अंजलि भी अपनी बाहें बेटे की कमर पर लपेट कर आगे को हो जाती है.
अब विशाल को अपने सीने पर वही प्यारा सा,
कोमल सा, मुलायम सा दवाब महसूस होने लगा था जिसके लिए वो तरसा हुआ था.
"जैसे आप और पापा ठीक समजो....... मैं आप लोगों की पूरी हेल्प करूँगा माँ........."
विशाल अपनी माँ के गाल से अपना गाल सटाता हुआ कहता है.
"मुझे पूजा से कोई एतराज नहीं बस में अभी आपके साथ कुछ दिन यूँ ही घर के एकांत में बिताना चाहता था"
विशाल अपनी नाक से अपनी माँ का गाल सहलता कहता है.

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विशाल बेड पर उठ कर बैठ जाता है. अंजलि उसे दूध का ग्लास देकर बेड के किनारे पर बैठती है
तोह विशाल दूध का गिलास साथ में पड़े टेबल पर रखता है
और अपनी माँ की और बढ़ता है.
वो एक हाथ उसकी पीठ और दूसरा उसकी जांघो के निचे रखकर उसे बेड के ऊपर अपने पास खींच लेता है.

अंजलि हंसने लगती है.
"उऊंणठ.....छोड़ न क्या कर रहा है. ........" अंजलि की खिलखिलाती हँसी से पूरे कमरे का माहोल एकदम से बदल जाता है.
"अब आना था माँ.........कब से वेट कर रहा हुण......." विशाल रुष्ट स्वर में कहता है.
वो और अंजलि दोनों एक दूसरे की तरफ मुंह किये बेड की पुष्ट से टेक लागए बैठे थे.
"क्या करति, में और तुम्हारे पापा ने मिलकर सभी रिश्तेदारों की लिस्ट बनायीं और उन्हें फ़ोन किया
. फिर उनके दोस्तों को और ऑफिस में उनके साथ काम करने वालो को भी इनवाइट किया.
और फिर क्या क्या सामान चाहिए उसकी लिस्ट बनायी.
इसिलिये इतना समय लग गया" अंजलि बेटे का गाल सहलाती उसे कहती है.
"मा क्या इतनी जल्दी थी पापा को पूजा करवाने की.......अभी कुछ दिन वेट कर लेते......"
विशाल अपनी माँ के पास सरकाता उसके और करीब होता है.
"मैं जानती हुन तुम्हे अच्छा नहीं लग रहा.......
.मगर बेटा हमारी दिली खवाहिश थी.......देखो भगवान ने हमारी सुनि है......
तुमारी पढ़ाई भी पूरी हो गयी और तुम्हे कितनी अच्छी नौकरी भी मिल गई.......
इसीलिये तेरे पापा ने पण्डितजी से सलाह की थी तोह उन्होनो परसो का दिन शुभ बताय था.......
और फिर कल का ही तोह दिन है बेटा. परसो सुबह सुबह पूजा हो जायेगी और
दोपहर तक सभी मेहमान खाना खा कर चले जाएंगे.....
.बस दो दिन की बात है........"
अंजलि भी बेटे के पास सरक जाती है. अब दोनों माँ बेटे के जिसम ऊपर से जुड़े हुए थे.
"उम्म्म माँ अभी तीन दिन ही तोह हुए थे मुझे आये हुये......
कूछ दिन वेट कर लेते..." विशाल अपनी बाहें अपनी माँ के गिर्द कस्ते हुआ बोलता है.

"जरूर कर लेते.....बल्की तुजसे पूछ कर करते.......
मगर पंडित जी ने दिन ही परसो का बताया......इसीलिये मजबूरी है बेटा....."
अंजलि भी अपनी बाहें बेटे की कमर पर लपेट कर आगे को हो जाती है.
अब विशाल को अपने सीने पर वही प्यारा सा,
कोमल सा, मुलायम सा दवाब महसूस होने लगा था जिसके लिए वो तरसा हुआ था.
"जैसे आप और पापा ठीक समजो....... मैं आप लोगों की पूरी हेल्प करूँगा माँ........."
विशाल अपनी माँ के गाल से अपना गाल सटाता हुआ कहता है.
"मुझे पूजा से कोई एतराज नहीं बस में अभी आपके साथ कुछ दिन यूँ ही घर के एकांत में बिताना चाहता था"
विशाल अपनी नाक से अपनी माँ का गाल सहलता कहता है.
हूँह्......अभी इतने सालों बाद माँ से मिला है न......इसीलिये इतना प्यार आ रहा है......देखना दस् दिन बीतेंगे तोह माँ को छोड़ अपनी गर्लफ्रेंड के पास भागेगा" अंजलि बेटे के अलिंगन में सुखद आनंद महसूस करती कहती है.
"जो कभी नहीं होगा माँ.....कभी नही......." विशाल अपनी माँ का गाल चूम लेता है.

"वैसे भी मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है"
"झुठ....सफेद झुठ.........में नहीं मानति.......ऐसे भला हो सकता है के आदमी अमेरिका जैसे मुल्क में रहे और उसकी कोई गर्ल फ्रेंड न हो." अंजलि मुस्कराती कहती है.
"भला में क्यों झूठ बोलूंगा....सूबह बोला था क्या............" विशाल अब अंजलि के गाल पर जगह जगह छोटे छोटे चुम्बन अंकित करता जा रहा था.
"यकीन नहीं होता...........तोः तुमने चार साल में गर्लफ्रेंड भी नहीं बनायी......."
"नही बनायीं माँ....." विशाल भूखो की तरह अपनी माँ के गाल चूमता जा रहा था.
"अच्छा तोह फिर तेरा दिल कैसे लगता था.........." अंजलि की आवाज़ बिलकुल कम् हो जाती है और बेटे के कान में वो लगभग फुसफुसाते हुए पूछती है. "मेरा मतलब बिना मौज मस्ती के कैसे तुमने चार साल काट दिये" विशाल अपनी माँ के सवाल का मतलब अच्छी तेरह से समझता था. इसिलिय उसके गालो पर शर्म की लाली आ गायी.
"अब माँ मौज मस्ती करने के लिए गर्ल फ्रेंड का होना जरूरी थोड़े ही है......." विशाल भी अपनी माँ के कान में फुसफुसाता है.
"हुमंमंम...........यह तोह मतलब तुमने खूब मौज मस्ती की है चाहे गर्ल फ्रेंड नहीं बनायी........" अंजलि ज़ोरों से हंस पड़ती है. विशाल और भी शर्मा जाता है.
"लेकिन वो जो तेरी यहाँ गर्ल फ्रेंड थी.......वो जिसके गाल पर तिल था...... उसका क्या हुआ......उससे मिला?" कुछ लम्हो की चुप्पी के बाद अंजलि फिरसे पूछती है. मगर उसका सवाल सुनते ही विशाल चोंक जाता है.
"तुम्हेँ कैसे मालूम माँ? कहीं तुम मेरी जासूसी तोह नहीं करती थी?" अंजलि विशाल की पीठ पर मुक्का मारती है.
"मैं तुम्हारी जासूसी क्यों करती भला.........तुमहारे कपड़ों में उसके खत होते थे जब में उनको धोने के लिए लेने आती थी. एक दो बार फोटो भी देखा था मैन........तुझे खुद नहीं मालूम था अपनी गर्लफ्रेंड के खत और फोटो छुपा कर रखने चहिये.................."
"सच में मुझे कभी मालूम ही नहीं चला के तुम जानती हो"
"लेकिन अब तोह मालूम चल गया ना..........अब बता उससे मिला....." अंजलि जानने को उत्सुक थी.
"नही माँ.....उसकी शादी हो गई....वो अब मुंबई में रहती है" विशाल कुछ गम्भीर होते बोला.
"तुने उससे कांटेक्ट करने की कोशिश की?" विशाल अपनी माँ की उत्सुक्ता पर मुस्करा उठता है.
"जो कभी नहीं होगा माँ.....कभी नही......." विशाल अपनी माँ का गाल चूम लेता है.

"वैसे भी मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है"
"झुठ....सफेद झुठ.........में नहीं मानति.......ऐसे भला हो सकता है के आदमी अमेरिका जैसे मुल्क में रहे और उसकी कोई गर्ल फ्रेंड न हो." अंजलि मुस्कराती कहती है.
"भला में क्यों झूठ बोलूंगा....सूबह बोला था क्या............" विशाल अब अंजलि के गाल पर जगह जगह छोटे छोटे चुम्बन अंकित करता जा रहा था.
"यकीन नहीं होता...........तोः तुमने चार साल में गर्लफ्रेंड भी नहीं बनायी......."
"नही बनायीं माँ....." विशाल भूखो की तरह अपनी माँ के गाल चूमता जा रहा था.
"अच्छा तोह फिर तेरा दिल कैसे लगता था.........." अंजलि की आवाज़ बिलकुल कम् हो जाती है और बेटे के कान में वो लगभग फुसफुसाते हुए पूछती है. "मेरा मतलब बिना मौज मस्ती के कैसे तुमने चार साल काट दिये" विशाल अपनी माँ के सवाल का मतलब अच्छी तेरह से समझता था. इसिलिय उसके गालो पर शर्म की लाली आ गायी.
"अब माँ मौज मस्ती करने के लिए गर्ल फ्रेंड का होना जरूरी थोड़े ही है......." विशाल भी अपनी माँ के कान में फुसफुसाता है.
"हुमंमंम...........यह तोह मतलब तुमने खूब मौज मस्ती की है चाहे गर्ल फ्रेंड नहीं बनायी........" अंजलि ज़ोरों से हंस पड़ती है. विशाल और भी शर्मा जाता है.
"लेकिन वो जो तेरी यहाँ गर्ल फ्रेंड थी.......वो जिसके गाल पर तिल था...... उसका क्या हुआ......उससे मिला?" कुछ लम्हो की चुप्पी के बाद अंजलि फिरसे पूछती है. मगर उसका सवाल सुनते ही विशाल चोंक जाता है.
"तुम्हेँ कैसे मालूम माँ? कहीं तुम मेरी जासूसी तोह नहीं करती थी?" अंजलि विशाल की पीठ पर मुक्का मारती है.
"मैं तुम्हारी जासूसी क्यों करती भला.........तुमहारे कपड़ों में उसके खत होते थे जब में उनको धोने के लिए लेने आती थी. एक दो बार फोटो भी देखा था मैन........तुझे खुद नहीं मालूम था अपनी गर्लफ्रेंड के खत और फोटो छुपा कर रखने चहिये.................."
"सच में मुझे कभी मालूम ही नहीं चला के तुम जानती हो"
"लेकिन अब तोह मालूम चल गया ना..........अब बता उससे मिला....." अंजलि जानने को उत्सुक थी.
"नही माँ.....उसकी शादी हो गई....वो अब मुंबई में रहती है" विशाल कुछ गम्भीर होते बोला.
"तुने उससे कांटेक्ट करने की कोशिश की?" विशाल अपनी माँ की उत्सुक्ता पर मुस्करा उठता है.
नही माँ.......क्या फायदा होता.....जब वो शादीशुदा है और उपरसे अमेरिका जाने के बाद मैंने उसे कभी कॉल तक्क नहीं किया था......मुझे नहीं लगता था के वो मुझसे बात करेगि......."
"ओहहह....मगर तुझे शायद एक बार बात कर लेनि चाहिए थी........खेर तुझे ज्यादा दुःख तोह नहीं है?" अंजलि बेटे की आँखों में देखते बोली.

"उम्म नहीं माँ........तुम्हे बताया तो मैंने उसे कभी कॉल नहीं किया था....
हालाँकि उसने शुरुरात में मुझे इ-मेल भेजे थे लेकिन जब्ब मैंने कोई जवाब नहीं दिया
तोह उसने भी लिखना बंद कर दिया......" विशाल बीते समय को याद करता कहता है.
बहुत गहरी दोस्ती थी उससे?" अंजलि की उत्सुक्ता अभी भी मिटी नहीं थी.
"हान माँ........सोचा था यहाँ आकर उससे मिलूँगा और अगर उसे मंजूर होगा तोह पुराणी दोस्ती को फिरसे जिन्दा करने की कोशिश करुन्गा.......
इसीलिये उसके लिए गिफ्ट भी लाया था मगर अब तोह बात ही ख़तम हो गयी"
"गिफ्ट....सच में...क्या लाये थे?......" अंजलि मुस्कराती पूछती है.
"अब छोडो भी माँ......जाने दो न......" विशाल शर्मा जाता है और बात टालने की कोशिश करता है.
"या तू बताना नहीं चाहता.......और शर्मा भी रहा है....
जरूर गिफ्ट कुछ खास होगा......दुसरी किसम का........हुँह?"
अंजलि हँसति हुए कहती है तोह विशाल और शर्मा जाता है.
"क्या है, बता ना?.........कहिं अंदर पहनाने के लिये......." अंजलि की बात सुन विशाल अपना चेहरा उसके कंधे पर रख देता है.
"अब छोडो भी माँ........तुम भी ना......" अंजलि खूब हँसति है. फिर अपने होंठ धीरे से विशाल के कान के पास लेजाकर कहती है.
"मुझे नहीं दिखायेंगा......." विशल एक पल के लिए नज़र उठकर अपनी माँ के चेहरे को देखता है जो मुसकरा रहा था
और फिर वो कार्नर से अपना सूटकेस उठाता है जो वो अमेरिका से लाया था.
उसमे से एक गिफ्ट पैक निकल कर अपनी माँ को देता है. अंजलि उसे पकड़ खोलने लगती है.
अन्दर से लइकी की एक ब्लैक कलर की ब्रा और पेंटी निकलती है.
अंजलि उन्हें हाथों में थाम देखति है.


विशाल बेड के किनारे खड़ा उसे देखता शर्मा रहा था. देखने और चुने से मालूम चलता था के वो कितने महंगी होगी.
"ओहहह....मगर तुझे शायद एक बार बात कर लेनि चाहिए थी........खेर तुझे ज्यादा दुःख तोह नहीं है?" अंजलि बेटे की आँखों में देखते बोली.

"उम्म नहीं माँ........तुम्हे बताया तो मैंने उसे कभी कॉल नहीं किया था....
हालाँकि उसने शुरुरात में मुझे इ-मेल भेजे थे लेकिन जब्ब मैंने कोई जवाब नहीं दिया
तोह उसने भी लिखना बंद कर दिया......" विशाल बीते समय को याद करता कहता है.
बहुत गहरी दोस्ती थी उससे?" अंजलि की उत्सुक्ता अभी भी मिटी नहीं थी.
"हान माँ........सोचा था यहाँ आकर उससे मिलूँगा और अगर उसे मंजूर होगा तोह पुराणी दोस्ती को फिरसे जिन्दा करने की कोशिश करुन्गा.......
इसीलिये उसके लिए गिफ्ट भी लाया था मगर अब तोह बात ही ख़तम हो गयी"
"गिफ्ट....सच में...क्या लाये थे?......" अंजलि मुस्कराती पूछती है.
"अब छोडो भी माँ......जाने दो न......" विशाल शर्मा जाता है और बात टालने की कोशिश करता है.
"या तू बताना नहीं चाहता.......और शर्मा भी रहा है....
जरूर गिफ्ट कुछ खास होगा......दुसरी किसम का........हुँह?"
अंजलि हँसति हुए कहती है तोह विशाल और शर्मा जाता है.
"क्या है, बता ना?.........कहिं अंदर पहनाने के लिये......." अंजलि की बात सुन विशाल अपना चेहरा उसके कंधे पर रख देता है.
"अब छोडो भी माँ........तुम भी ना......" अंजलि खूब हँसति है. फिर अपने होंठ धीरे से विशाल के कान के पास लेजाकर कहती है.
"मुझे नहीं दिखायेंगा......." विशल एक पल के लिए नज़र उठकर अपनी माँ के चेहरे को देखता है जो मुसकरा रहा था
और फिर वो कार्नर से अपना सूटकेस उठाता है जो वो अमेरिका से लाया था.
उसमे से एक गिफ्ट पैक निकल कर अपनी माँ को देता है. अंजलि उसे पकड़ खोलने लगती है.
अन्दर से लइकी की एक ब्लैक कलर की ब्रा और पेंटी निकलती है.
अंजलि उन्हें हाथों में थाम देखति है.
विशाल बेड के किनारे खड़ा उसे देखता शर्मा रहा था. देखने और चुने से मालूम चलता था के वो कितने महंगी होगी.
गॉड.......सच में बहुत बढ़िया पेअर है.......बहुत मेहंगा होगा............मुझे नहीं लगता हमारे शहर में ऐसे ब्रांड का मिलता भी होगा" अंजलि उस ब्रा और पेंटी को देखते हुए कहती है. विशाल अपनी माँ को गौर से देखता उसकी बात सुनता है. अपनी माँ को यूँ अपने सामने ब्रा और पेंटी को मसल मसल कर देखने हद्द से ज्यादा कामोत्तेजित करने वाला था अचानक विशाल के दिमाग में एक ख्याल आता है.
"मा अगर तुम्हे पसंद हैं तोह तुम रख लो" विशाल धीरे से सकुचाता सा कहता है. उसकी माँ को वो गिफ्ट कितना पसंद था वो तो उसके चेहरे से देखने से पता चल जाता था.
"मैं....... नहीं नही.......तुम्हरी गर्ल फ्रेंड का गिफ्ट भला में कैसे रख लु....."
"गर्लफ्रैंड को गोली मारो माँ........तुम बस इसे रख लो........" विशाल आगे बढ़कर ब्रा पेंटी को वापस गिफ्ट पैक में डालता है. "अब यह गिफ्ट तुम्हारा है" अंजलि मुस्करा पड़ती है और विशाल के हाथों से वो गिफ्ट ले लेती है.
"यह बेटा....थैंकयू .......मैने इतना महंगा सेट आज तक्क कभी ख़रीदा नही" अंजलि शरमाती सी कहती है.
"मा में तोह शर्म के मारे तुम्हे ऐसा गिफ्ट देणे की सोच नहीं सकता था के तुम मेरे बारे में क्या सोचोगी वर्ना यह तोह कुछ भी नहि.......तुम मेरे साथ अमेरिका चलोगी तोह तुम्हे खुद शॉपिंग करवाने लेकर जाऊंगा." अंजलि आगे बढ़कर बेटे के गले लग्ग जाती है.

विशाल उसे अपनी बाँहों में कस्स लेता है. अंजलि को अपनी जांघो पर कुछ चुभ रहा था,
जब विशाल ने उसे अपनी बाँहों में कस्स लिया तोह तोह
वो जो कुछ चुभ रहा था ज़ोर ज़ोर से ठोकर मारने लगा.
मगर अंजलि ने उसे पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया.
उधऱ विशाल को आज अपने सीने पर अपनी माँ के तीखे नुकिले निप्पलों की चुभन कुछ ज्यादा ही महसूस हो रही थी.
वो अंजलि को और भी कस कर अपनी बाँहों में भींच लेता है.

अंजलि को अपनी चुत में गिलेपन का एहसास होने लगा था.
"मैं चलति हु........तेरे पापा इंतज़ार करते होगे........
रात बहुत हो गयी है अब तू भी सो जा....
.कल सुबह जल्दी उठना पढेंगा"
अंजलि बेटे के गाल चूमती उससे अलग होती है.
विशाल का पायजामा आगे से फुला होता है.

विशाल झुक कर अपनी माँ के गाल पर लम्बा सा चुम्बन अंकित करता है.
"गुड नाईट मोम" विशाल अपनी माँ के हाथ थाम उसे कहता है.
"गुड नाईट बेटा" कहकर अंजलि धीमे से मुड़ती है और कमरे से बाहर आ जाती है. अपने कमरे की और जाते हुए उसके होंठो पर मुस्कुराहट थी और उसके पूरे जिस्म में सनसनाहट फ़ैली हुयी थी . वो बेटे के गिफ्ट को कस्स कर अपने सीने से लगा लेती है.
"मा अगर तुम्हे पसंद हैं तोह तुम रख लो" विशाल धीरे से सकुचाता सा कहता है. उसकी माँ को वो गिफ्ट कितना पसंद था वो तो उसके चेहरे से देखने से पता चल जाता था.
"मैं....... नहीं नही.......तुम्हरी गर्ल फ्रेंड का गिफ्ट भला में कैसे रख लु....."
"गर्लफ्रैंड को गोली मारो माँ........तुम बस इसे रख लो........" विशाल आगे बढ़कर ब्रा पेंटी को वापस गिफ्ट पैक में डालता है. "अब यह गिफ्ट तुम्हारा है" अंजलि मुस्करा पड़ती है और विशाल के हाथों से वो गिफ्ट ले लेती है.
"यह बेटा....थैंकयू .......मैने इतना महंगा सेट आज तक्क कभी ख़रीदा नही" अंजलि शरमाती सी कहती है.
"मा में तोह शर्म के मारे तुम्हे ऐसा गिफ्ट देणे की सोच नहीं सकता था के तुम मेरे बारे में क्या सोचोगी वर्ना यह तोह कुछ भी नहि.......तुम मेरे साथ अमेरिका चलोगी तोह तुम्हे खुद शॉपिंग करवाने लेकर जाऊंगा." अंजलि आगे बढ़कर बेटे के गले लग्ग जाती है.
विशाल उसे अपनी बाँहों में कस्स लेता है. अंजलि को अपनी जांघो पर कुछ चुभ रहा था,
जब विशाल ने उसे अपनी बाँहों में कस्स लिया तोह तोह
वो जो कुछ चुभ रहा था ज़ोर ज़ोर से ठोकर मारने लगा.
मगर अंजलि ने उसे पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया.
उधऱ विशाल को आज अपने सीने पर अपनी माँ के तीखे नुकिले निप्पलों की चुभन कुछ ज्यादा ही महसूस हो रही थी.
वो अंजलि को और भी कस कर अपनी बाँहों में भींच लेता है.

अंजलि को अपनी चुत में गिलेपन का एहसास होने लगा था.
"मैं चलति हु........तेरे पापा इंतज़ार करते होगे........
रात बहुत हो गयी है अब तू भी सो जा....
.कल सुबह जल्दी उठना पढेंगा"
अंजलि बेटे के गाल चूमती उससे अलग होती है.
विशाल का पायजामा आगे से फुला होता है.
विशाल झुक कर अपनी माँ के गाल पर लम्बा सा चुम्बन अंकित करता है.
"गुड नाईट मोम" विशाल अपनी माँ के हाथ थाम उसे कहता है.
"गुड नाईट बेटा" कहकर अंजलि धीमे से मुड़ती है और कमरे से बाहर आ जाती है. अपने कमरे की और जाते हुए उसके होंठो पर मुस्कुराहट थी और उसके पूरे जिस्म में सनसनाहट फ़ैली हुयी थी . वो बेटे के गिफ्ट को कस्स कर अपने सीने से लगा लेती है.
Contd....
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