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ग्राम चिकित्सालाय

ग्राम चिकित्सालय 


"क्या यार कहाँ फस गई मै भी नौकरी के चक्कर मे " 
डॉक्टर रिया, शाम के वक़्त आपने काम से फुर्सत पा कर माथे पर हाथ मारते हुए बोली.
"मैंने तो पहले ही कहाँ था मैडम इन गांव वालो के चक्कर मे ज्यादा नहीं पड़ना चाहिए, लेकिन आप जैसी नयी डॉक्टर को लगता है डॉक्टरी फर्ज़ है "
रिया के सामने बैठा कम्पउंडर सुखिराम जिसकी ऐज कोई 50बरस रही होंगी, चाय सुढकते हुए बोला.
"क्या बोल रहे है आप " रिया ने हैरानी से सर उठा सुखिराम को घुरा, 

"Sorry मैडम, आपकी इज़्ज़त करते है, लेकिन आप अभी नयी है 6महीने ही हुए है, ये पहली पोस्टिंग है आपकी, 
मै यहाँ बरसो से काम कर रहा हूँ, इन गांव वालो की बीमारी अलग ही होती है, इनकी बीमारी ठीक करते करते आप खुद बीमार पड़ जाएगी सुदूककककककक......
चाय पीजिये "
सुखी राम रामपुर गांव मे स्थित प्राथमिक चिकित्सालाय का बरसो पुराना कम्पाउण्डर था. कितने ही डॉक्टर इसकी आँखों के सामने आये और गए कोई 6 महीने रुकता तो खोज साल भर, साल भर से ऊपर खोज नहीं रुक सका.
उसके सामने बैठी डॉक्टर रिया, आपने काम से थकी हारी परेशान बैठी थी.
थकान उसके चेहरे पे साफ दिख रही थी.
कहाँ उसने सोचा था, अपना फर्ज़ निभाएगी, अच्छी डॉक्टर बनेगी.
लेकिन ये पहली नौकरी ही उसे सुख चैन नहीं लेने दे रही थी.
अजीब अजीब औरते आती थी, पति मारता है, शराब पीता है उसकी शराब छुड़वा दो, कोई ऐसी दवा दो की लड़का पैदा हो जाये.
उउउफ्फ्फ्फ़...... सुखी राम जी आप कैसे सँभालते है इन सब को? " रिया ने चाय सुढकते हुए पूछा.
"किसे और क्यों संभालना है, बरसो से विटामिन D, गैस, डायजिन की गोलिया दे कर भेज देता हूँ"
हाहाहाहाहा... हाहाहाहाह....
दोनों ठहाके लगा के हस पड़े.
रिया का दिमाग़ भी थोड़ा हल्का हो गया था, सुखिराम के मज़ाक से.
"अच्छा मैडम चलता हूँ, घर लार बीवी बच्चे इंतज़ार कर रहे होंगे "
सुखिराम ने अपना टिफ़िन उठाया और बिना परवाह के बहार को चल दिया.
सुखिराम पास के ही कस्बे मे रहता था, गांव से कोई 10km दूर.
उसका कहना था जाहिलों के बीच रहने का कोई फायदा नहीं, रात बिरात कभी भी टपक पड़ते है.
उसने रिया को भी ऑफर दिया था, सरकारी क्वाटर छोड़ वही आ कर रहे.
लेकिन रिया नयी ज़माने की लड़की, काम का जोश, लोगो की सेवा करने का जूनून सवार था.
"नहीं मै यही रहूंगी, डॉक्टर का काम 24 घंटे का होता है, सुखिराम जी " 
उस समय बड़े ही आदर्शवाद के साथ उसने ऑफर अस्वीकार कर दिया था.
लेकिन आज 6महीने बीत चुके थे उसे यहाँ आये, अब उसे सुखिराम की बाते समझ आती थी.
*******
शाम के 6 बज चुके थे.
सुखिराम जा चूका था, रिया शर्मा वही कुर्सी पर निढाल बैठी आपने जीवन के उस दौर मे चली गई थी जा वो मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी.

 30 साल की रिया, शहर की नाजुक कली, जिसे गाँव की धूल और पसीने से सख्त नफरत थी। उसका 5'6" का कद, दूधिया गोरा रंग और भरा-पूरा 38-28-38 का जिस्म—जैसे किसी ने फुर्सत में तराशा हो। उसकी साड़ी का पल्लू अक्सर ढलका रहता था, जिसमें से उसकी 38 इंच की कसी हुई छातियाँ ब्लाउज के हुक तोड़ने को बेताब रहती थीं, कुर्ता पहने तो उसके स्तन समाते ही नहीं थे उसमे.
शादी को तीन साल हो चुके थे, लेकिन पति बैंक की नौकरी और टूर्स में ऐसे उलझे थे कि रिया की रातें अक्सर करवटें बदलते ही गुजरती थीं। महीने में एकाध बार की 'रस्मी' मुलाकात से रिया के जिस्म की आग बुझती नहीं, बल्कि और भड़क जाती थी। 

हँलांकि कॉलेज टाइम मे उसके एक दो लड़को से जिस्मानी सम्बन्ध भी रहे थे, जो की शहरी परिवेश मे आम बात है, 
कुल मिलाये रिया का ये जिस्म उसकी काम वासना का ही नतीजा था, उसका जिस्म गद्दाराया हुआ, किसी भी पुरुष को अपनी ओर आकर्षित कर सकता था.
लेकिन शादी के बाद परिस्थितीया बदलने लगी थी, जॉब, जिम्मेदारी, डॉक्टर का फर्ज़ उसे हमेशा सम्भोग सुख से वंचित ही रखता.
कभी रिया ने भी पति की मज़बूरी के चलते, अपनी शादीशुदा जिंदगी की दहलीज नहीं लाँघी थी.

गाँव की इस पोस्टिंग ने उसे और ज्यादा अकेला कर दिया था। यहाँ न बिजली ढंग से थी, न बात करने वाला कोई साथी।
"तुम वहाँ रह तो लोगी ना रिया?" उसके पति ने आखिरी बार पूछा था उस से.
"हाँ क्यों नहीं मै आज की औरत हूँ, डॉक्टरी मेरा पेशा नहीं मेरा फर्ज़ है " रिया बड़े आत्मविश्वास के साथ यहाँ आई थी.
लेकिन यहाँ आ कर उसने जाना फिल्मो मे दिखाई देने वाली चीज़े हक़ीक़त नहीं होती.
आज 6 महीने बीतने को आये थे, उसका पति एक्का दुक्का बार जरूर उस से मिलने आया था, लेकिन ये मिलन उसे कभी जिस्मानी सुख नहीं दे पाया.
हर वक़्त कोई ना कोई गांव का मरीज़ या औरत टपक ही पडती, और जब समय मिला भी तो उसका पति 2मिनिट मे निढाल को कर साइड हो जाता.

रिया आज भी कुर्सी पर बैठी शून्य को निहार रही थी, एक अजीब सी सिरहन उसके जिस्म मे दौड़ रही थी.
उसे प्यास लगी थी, वो इन सब बोझ से मुक्त होना चाहती थी, 

 वो 'प्यास', जो उसकी जाँघों के बीच एक मीठा-मीठा दर्द बनकर उसे दिन-रात सताती रहती थी।
"जैसा जैसा नसीब " बहार बदलो की गड़गड़हाट से रिया का ध्यान टुटा, सामने घड़ी मे 7बज गए थे.
"लगता है बारिश आने वाली है " रिया हताश अपनी कुर्सी से उठ खड़ी हुई, हॉस्पिटल के पीछे ही उसका रिहायशी क्वाटर था, सरकारी बेजान सा. उसकी जिंदगी की तरह निरश.
धीरे थके कदमो से अपना टिफ़िन और बैग संभालती रिया हॉस्पिटल को ताला लगा चल पड़ी क्वाटर की ओर, हलकी हलकी बुँदे उसके चेहरे को भिगोने लगी थी अब तक.
हॉस्पिटल को ताला लगाना भी इसे के जिम्मे आ गया था, यहाँ का चपरासी रामलाल शादी मे गया हुआ था पास के गांव.
**************

रात के 9 बज रहे थे। रामपुर गाँव में चारों तरफ सन्नाटा पसरा था। बाहर हल्की-हल्की बारिश हो रही थी, हवा ठंडी और खुशनुमा थी, मानो कोई पुराना गीत गुनगुना रहा हो। आम के पेड़ों की पत्तियाँ सरसरा रही थीं, और कभी-कभी दूर से कुत्तों की भौंक सुनाई देती।
डॉक्टर रिया शर्मा अपने क्वार्टर के बेडरूम में अकेली थी।
उसने मेग्गी उबाल ली और एक रम का मोटा पेग बना लिया, रिया कभी कभी एक दो पेग ले लिया करती थी तन्हाई मिटाने को.
धीमी अवाज़ मे कोई रोमांटिक पुराना गाना चल रहा था, 
गटक... गटक.... कर एक पेग पी चुकी थी रिया, उसे अपने तन और मन से यादो और जिम्मेदारी का बोझ हल्का होता महसूस हो रहा था,
रम मे एक जादू तो होता ही है.

आज उसने सिर्फ एक पतली, गुलाबी रंग की नाइटी पहनी थी – बिना ब्रा के। निप्पल साफ दिख रहे थे। नीचे पैंटी भी नहीं पहनी थी, 
"आखिर किसे आना है इस तूफानी रात मे " रिया पूरी तरह बेफिक्र हो गाने और इस रूहानी मौसम का आनंद उठा रही थी, 
उसके दूध इतने भरे हुए थे कि ब्रा के बिना भी ऊपर खड़े रहते थे, निप्पल हमेशा तने हुए अपनी मौजूदगी का अहसास कराते ही थे.
गांड गोल, भारी, चलते वक्त लहराती थी, कई गांव वाले तो इसी थिरकन को देखने बेवजह किसी बीमारी का बहाना बना कर चले आते थे हॉस्पिटल.

जाँघें इतनी मोटी और मुलायम कि एक-दूसरे से रगड़ खातीं तो चूत अपने आप गीली हो जाती।

ट्रिन... ट्रिन... रिया ने अपने पति को फोन लगा दिया, लगाती भी क्यों ना, आज उसकी जरुरत थी.
"हाँ hello रिया... कैसी हो " सामने से वही फॉर्मेलिटी वाली आवाज़.
"ठीक हूँ.... अच्छा मै कह रही थी.... "
"खाना खाया?" रिया की बात अधूरी ही रह गई 
"नहीं अभी नहीं.... सुनो ना मै कह रही थी.. की.... " रिया ने कुछ कहना चाहा.
"कल कॉल करता हूँ, क्लाइंट का फोन आ रह है " रिया के पति ने फोन कट कर दिया.
उफ्फ्फ्फ़... रिया की जिंदगी का सबसे बड़ा दुख ही यही था, उसका पति हर वक़्त जल्दी मे ही होता था.
रिया का जिस्म सुलग रहा रहा, उसने फ़ोन बिस्तर पर फेंक दिया, बहार से आती ठंडी हवा उसके रोये रोये को टटोल रही थी, उसके कामुक जिस्म मे एक गर्म लावा घोल रही थी.
ये वासना भी कमाल की चीज है जितनी ठंडी हवा उतना ही जिस्म को गरम कर देती है.
रिया का हाल भी कुछ ऐसा ही था आज, वो बिस्तर पर लेट गई, आँखों मे खुमारी थी, जिस्म मे बेचैनी.
सिर्फ एक पतली गुलाबी नाइटी, बिना ब्रा-पैंटी के, उसके जिस्म से चिपक गई थी, दोनों निप्पल साफ दिख रहे थे।
खिड़की खुली थी, ठंडी हवा उसके गोरे जिस्म को छू रही थी।
उसकी साँसें तेज थीं। थोड़ा रम का नशा उसके जिस्म को सुलगा रहा था, उसे हिम्मत दे रहा था, 
रिया ने धीरे से अपनी नाइटी को जाँघों तक ऊपर खींच लिया, उसकी चिकनी गोरी मोटी सुडोल जाँघे पिली रौशनी मे चमक उठी.
रिया ने अपनी जांघो को विपरीत दिशा मे खोल दिया.
ईईस्स्स्स..... एक ठन्डे हवा का झोंका उसकी जांघो के बीच आ कर टकरा गया, रिया की सिस्कारी फुट पड़ी.
उसने सर उठा के अपनी जांघो के बीच देखा, 
एक पतली लकीर पूरी खुली हुई थी, जिसमे चासनी जैसी कोई तरल चीज तैर रही थी.
रिया के हाथ उस लकीर पर चल पड़े... आअह्ह्ह.... उउउफ्फ्फ... इसससस... उत्तजेना की अधिकता से रिया का सर तकिये पर जा लगा, एक मीठी उत्तेजना की लहर से उसका जिस्म नहा गया. 19660405
आअह्ह्ह.... रिया ने वापस हिम्मत कर सर उठाया, वो हर रोज़ इसी आग मे तो जल रही थी, यही छुवन, यही सुख तो उसे चाहिए था.
एक बार फिर रिया ने अपनी एक ऊँगली को अपनी चुत रुपी लकीर मे चला दिया....
इस्स्स... उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... आउच...
चूत पहले से ही गीली थी, पानी जाँघों तक बह रहा था।
उस से रहा नहीं गया वो इस सुख को और अंदर महसूस करना चाहती थी, रिया ने एक टाँग पूरी तरह मोड़ ली और अपनी दो उँगलियाँ चूत की दरार में सरका दीं. 29732062
आअह्ह्ह..... एक कर्रेंट सा पुरे जिस्म को हिला गया, "इस से बड़ा सुख दुनिया मे कुछ नहीं" रिया बड़बड़ा उठी.
चूत पहले से ही गीली थी, दो ऊँगली अंदर जाने से पच.. पच... कर पानी चुत से बहार को छलक आया, जैसे कोई नदी ओवर फ्लो हो गई ही, 
“उफ़... ये क्या हो रहा है मुझे...” उसने मन में पुकारा।
उसने अपनी एक टाँग मोड़ी, और दो उँगलियाँ चूत की दरार में सरका दीं।
“आअह्ह्ह... इस्स्स... उउफ्फ्फ...”
रिया की सिसकारी कमरे में गूँज गई।
उसकी 38 इंच की छातियाँ हर साँस के साथ ऊपर-नीचे हो रही थीं।
वो आँखें बंद करके खुद को सहला रही थी, कल्पना कर रही थी किसी मर्द के खुरदरे हाथों की।
उसकी चूत से पानी रिस रहा था, बिस्तर की चादर गीली हो गई थी।
रिया अपने इरादों अपनी वासना को साकार रूप दे रही थी.

आअह्ह्ह.... पच... पच... फच.... फचम... उउउफ्फ्फ्फ़.... उसकी दो उंगलियां चुत की गहराई नाप रही थी, रिया वासना और रम के नशे मे अपनी चुत को रोंदे जा रही थी, चुत से निकलता पानी बिस्तर को भीगा रहा था,
बहार से आती ठंडी हवा और मधुर गाने उसके हाथो की स्पीड और हौंसला दोनों बढ़ा रहे थे.
लेकिन ये मौसम हर किसी के लिए रोमांटिक नहीं होता, रिया जैसी शहरी लड़की के लिए होता होगा, बारिश की रूहानी रात.
लेकिन गांव वालो के लिए नहीं.
***********
यही से कुछ दूर कोई 100 मीटर दूर.
"जल्दी चल यार, पानी भर गया होगा अब तक तो"
हाँ भाई रहीम चल रहा हूँ, बारिश मे रास्ता समझ तो आये.
"अरे यार सामने ही तो है " रहीम फवाड़ा उठाये रामलाल के पीछे पीछे चला जा रहा था.
ये है रामलाल और रहीम बचपन के दोस्त, इसी गांव रामपुर के रहने वाले.
इनके लिए ये बारिश मुसीबत बन के टूटी थी.
कल ही फसल काट कर खेतो मे रखी थी की, सुख जाये तो उठा के शहर बेच आएंगे.
लेकिन आज की ये बेमौसम बारिश ने सारा खेल बिगड़ दिया.
दोनों के खेत आस पास ही थे, फसल बिछि हुई थी, पानी भरता ही जा रहा था, 
ठन्डे पानी की भी परवाह ना करते हुए दोनों अपने खेतो की तरफ बढ़ते जा रहे थे.
"जल्दी चल राम वरना हम बर्बाद हो जायेंगे " रहीम के चेहरे पे चिंता थी.
जैसे तैसे दोनों खेत तक पहुचे तो सही लेकिन...
"हे भगवान..." पानी पानी हो गया था खेत.
"चल जल्दी कर, हमारा खेत ढलान पर है, यहाँ से खोदना शुरू कर सारा पानी निकल जायेगा.
राम ने रहीम को हिदायत दि.
दोनों दोस्त मेड खोदने मे लग गए. 
करीब करीब नतीजा भी सामने आया.... पानी भलभलाबके खेत से बहार को जाने लगा...
"उउउफ्फ्फ... भाई हम वक़्त पर आ गए वरना तो बर्बाद हो जाते " राम थक के वही खेत के किनारे मेड पर बैठ गया, उसकी सांसे फूली हुई थी.
"हाँ यार.... पूरी साल की मेहनत थी. रहीम भी थका हरा वही फवाड़ा रख बैठ गया, उसकी सांसे भी चढ़ी हुई थी.
चढ़ती भी क्यों ना वो दोनों किसी मशीन की तरह आधे घंटे से जमीन खोद कर पानी निकालने के लिए ढलान बना रहे थे.

रामलाल और रहीम दोनों की दोस्ती इस गांव मे मशहूर थी, खाना पीना, हगना सब एक साथ ही होता था इनका, इनके घर, खेत सब आस पास ही थे.
जो करते साथ करते, मेहनत से कतराते नहीं थे, 25, 26 साल के लड़के थे, जिस्म किसी चट्टान जैसा मजबूत और कसा हुआ था, पुरे गांव मे इनसे कोई लोहा लेने की औकात नहीं रखता था.
जल्द ही दोनों की मेहनत रंग लाई, खेत का पानी बहार निकलने लगा.

दोनों ने अभी चैन की सांस ली ही थी की "आआआह्हःब्बब....... मर गया....
राम भयानक दर्द से चिल्ला उठा,.
"कक्क... कक.. क्या हुआ भाई?" रहीम दौड़ता हुआ पास गया.
"वो... वो.. आककम...दर्द... काटा" राम की सांसे अटक रही थी, उसके दोनों हाथ जांघो के बीच बुरी तरह से भींचे हुए थे.
"सांप वांप ने तो नहीं काट लिया बे "रहीम चिल्लाया 
"होस.... हॉस्पिटल.... " राम बेसुध सा होने लगा.
दोस्त की ये हालात देख रहीम के भी हाथ पाँव फूल गए, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करे.
बारिश मे सांप का बहार निकलना आम बात थी, उसका शक गहरा गया, राम डर के मारे हिल तक नहीं पा रहा था 
रहीम ने तुरंत उसे कंधे का सहारा दिया और जैसे तैसे बारिश मे भीगते लड़खड़ाते, गांव के प्राथमिक चिकित्सालय की तरफ चल पड़े.
दोनों बुरी तरह खीचड़ मे सने थे

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बाहर बादलों की गड़गड़ाहट थी, और कमरे के अंदर रिया की भारी साँसें गूँज रही थीं। उसकी दो उंगलियाँ उसकी चूत की उस गीली, गर्म दरार में किसी प्यासे सांप की तरह रेंग रही थीं। रम का नशा उसकी नसों में दौड़ रहा था, जिससे उसकी शर्म की दीवारें पूरी तरह ढह चुकी थीं।
"आअह्ह्ह... उफ्फ्फ... कोई तो हो... जो इस आग को बुझा दे..." रिया ने अपनी आँखें बंद कर लीं और अपनी कमर को हवा में थोड़ा ऊपर उठा दिया।
उसकी उंगलियाँ अब तेजी से अंदर-बाहर हो रही थीं। पच... पच... की एक बेशर्म आवाज़ कमरे के सन्नाटे को चीर रही थी। उसकी चूत से निकलता पानी उसकी जाँघों से होता हुआ बेडशीट को गीला कर रहा था। उसने अपना दूसरा हाथ अपनी नाइटी के ऊपर से ही अपने बाएं स्तन पर रखा और उसे कसकर भींच लिया। नाइटी का पतला कपड़ा उसके तने हुए निप्पल की रगड़ से और भी उत्तेजक लग रहा था।
रिया कल्पनाओं में खोई थी। उसे अपने पति का ख्याल नहीं आ रहा था, बल्कि एक धुंधली-सी तस्वीर थी—कोई ऐसा मर्द जो उसे बिस्तर पर पटके, उसके कपड़े फाड़े और उसे जानवरों की तरह प्यार करे। उसकी सुडौल, भरी हुई गांड गद्दे पर मचल रही थी।
"हाँ... ऐसे ही... और जोर से..." वह खुद से बातें कर रही थी। वह अपने चरम के करीब थी। उसकी साँसें उखड़ रही थीं, पैर की उंगलियाँ मुड़ गई थीं।

रिया की दो उँगलियाँ उसकी चूत की गहराई में थीं।
पच... पच... पच... पानी की आवाज कमरे में गूँज रही थी।
उसकी चूत इतनी गीली थी कि उँगलियाँ आसानी से अंदर-बाहर हो रही थीं।
रिया को अपनी चुत अभी भी कुछ खाली खाली सी लग रही थी, एक अजीब सी चाहत मे उसकी तीसरी उँगली भी धीरे से चुत मे सरक गई....
इक्सस्स्स.......
“आअह्ह्ह... इस्स्स... उउफ्फ्फ..." तीसरी ऊँगली का अंदर घुसना था की उसकी कमर उत्तेजना मे ऊपर उठ गई। जैसे उसका जिस्म खुद से पुरे हाथ को ही अंदर निगल लेना चाहता हो.

उसकी 38 इंच की छातियाँ नाइटी से बाहर आने को बेताब थीं।
निप्पल पत्थर जैसे तने हुए।
उसने बायें हाथ से अपना एक स्तन कसकर दबाया।
निप्पल को मसला।
“आउच... हाँ... निचोड़ो इन्हें...”
वो खुद से बड़बड़ा रही थी।
रम का नशा, बारिश का जादू, पुराना गाना – सब मिलकर उसे पागल बना रहे थे।

आअह्ह्ह... आअह्ह्ह.... फच... उफ्फ्फ... फच... फच... पच.... रिया कमर उठा उठा के पटक रही थी.
उसका चरम बिंदु नजदीक ही था.. नाभि ने उठता गर्म ज्वालामुखी नीचे की ओर रिसने लगा था, लगता था चुत फटने ही वाली है.... आअह्ह्ह... फच... फच....

की तभी...
ठक-ठक-ठक! धाड़... धाड़... धाड़.... 
दरवाजे पर जोर दार दस्तक हुई, दस्तक लगातार और तेज़ थी.
रिया की साँस रुक गई। साथ उसकी उंगलियां भी जो चुत की कामुक गहराई को नाप रही थी.
"हद है यार.... कौन मर गया इस बारिश मे अब " रिया का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा, कामुकता विलुप्त होने लगी.
रिया अपने चरम पर थी, बस एक दो झटके और मिल जाते तो वो काम सुख की प्राप्ति कर लेती, लेकिन ये बेसमय दरवाजे पर दस्तक.

ठक! ठक! ठक!
दरवाजे पर हुई जोरदार और बेसुरी दस्तक ने रिया को किसी झटके की तरह हिला दिया।
रिया की साँसें गले में अटक गईं। उसका हाथ वहीं उसकी चूत के अंदर रुक गया। दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। "इतनी रात को? इस तूफान में कौन हो सकता है?" नशा थोड़ा कम हुआ, और डर ने जगह ले ली।
"डॉक्टर साहिबा! ओ डॉक्टर साहिबा! दरवाजा खोलो!" बाहर से एक भारी, मर्दाना और घबराई हुई आवाज़ आई।
रिया हड़बड़ा कर उठी। उसने जल्दी से अपनी नाइटी नीचे खींची और अपने बिखरे बालों को ठीक करने की कोशिश की। लेकिन उसकी चूत अभी भी गीली थी, और निप्पल अभी भी नाइटी को भेदकर बाहर झाँक रहे थे। उसने घड़ी देखी—साढ़े 11 बज रहे थे।
"कौन... कौन है?" रिया ने काँपती आवाज़ में पूछा। उसने खुद को संयत करने की कोशिश की, लेकिन उसकी आवाज़ में वो 'डॉक्टर वाली सख्ती' नहीं, बल्कि एक 'अकेली औरत' की घबराहट थी।
"डॉक्टर साहिबा, बहुत एमरजेंसी है! मेरा दोस्त मर जाएगा... जल्दी खोलो!" आवाज़ में दर्द और जिद दोनों थी।
रिया ने एक पल सोचा। क्या उसे खोलना चाहिए? लेकिन अगर सच में कोई मर गया तो? डॉक्टर का फर्ज आड़े आ गया। उसने एक लंबी साँस ली, अपने जिस्म की कपकपाहट को दबाया
 उसने जल्दी से उँगलियाँ अपनी चुत से बाहर निकालीं।
चूत से पानी की एक मोटी बूँद बिस्तर पर गिर गई।
पास पड़ा पजामा जैसे तैसे अपनी गांड पर चढ़ा लिया, और गुस्से, तेज़ मे दरवाजे की ओर चल दि.

ठीक थकककक..... सस्सियस्स्स्स.....
जैसे ही उसने चिटकनी खोली और दरवाजा हल्का-सा खोला, बाहर का तूफानी हवा का एक झोंका सीधे अंदर आया। उस झोंके के साथ रिया की पतली गुलाबी नाइटी उसके गीले जिस्म से पूरी तरह चिपक गई। उसके 38 इंच के उभार, उसकी नाभि का गड्ढा, और उसकी जाँघों का वो त्रिकोण—सब कुछ उस पतले कपड़े में छप गया।
सामने दो साये खड़े थे। बिजली कड़की और रिया ने उन्हें देखा।
दो जवान लड़के—रामलाल और रहीम। बारिश में पूरी तरह भीगे हुए, मिट्टी से सने हुए उनके कपड़े बदन से चिपके हुए थे। 
लुंगी और बनियान में उनके गठीले, काले जिस्म चमक रहे थे। बारिश की बूंदें उनके बाइसेप्स और चौड़ी छातियों से रेंगती हुई नीचे जा रही थीं।
रिया की नज़र उन पर पड़ी और वह एक पल के लिए सुन्न रह गई। शहर के जिम जाने वाले लड़कों की तरह उनका शरीर नहीं था, बल्कि यह 'देसी मजदूरी' वाला पत्थर जैसा सख्त शरीर था।

"क्या हो गया? क्या है इतनी रात को " रिया एकदम से चिल्ला उठी उन गांव के जाहिलों को सामने देख.

​"डॉक्टर साहिबा! गजब हो गया... राम को खेत में किसी जहरीले  सांप... ममम.... मेरा मतलब कीड़े ने..  ममम.... मेरा मतलब किसी ने काट लिया!" रहीम हाँफते हुए चिल्लाया।

 उसकी नजरें राम के दर्द पर थीं, लेकिन जैसे ही उसने रिया को देखा, उसकी आवाज़ एक पल के लिए अटक गई।
​सामने खड़ी डॉक्टरनी के बाल बिखरे थे, आँखों में रम का नशा और नींद की खुमारी थी, और जिस्म से एक अजीब सी महक आ रही थी—महँगे परफ्यूम और उसकी अपनी कामुक गंध का मिश्रण। और सबसे बड़ी बात... वह बिना ब्रा के थी। बारिश की बौछारों ने उसकी नाइटी को और पारदर्शी बना दिया था।
रिया भी सामने का दृश्य देख सकपका गई, सामने दो जवान गठिले जिस्म के मलिक मिट्टी और पानी मे सने उसके दरवाजे पर खड़े थे.
रहीम हाथ जोड़े कुछ कहने की कोशिश कर रहा था.
लेकिन रिया ने अपनी बाहें सिकोड़ लीं, उसे अचानक अपनी नग्नता का अहसास हुआ।

"अस्प... अस्पताल ले जाओ इसे..." रिया की आवाज़ में एक सख्ती थी,  होती भी क्यों ना, आखिर उसके अंतरंग पल मे खलन डाल दिया था इन लोगो ने.
रिया लगभग चिल्लाई ही थी.

​"साहिबा, इतनी रात को कहाँ जाएँगे? आप ही तो डॉक्टर हो यहाँ की" रहीम गिड़गिड़ाते हुए बोला.
रहीम के कथन से रिया की सारी खुमारी उतर गई, पूरा जिस्म ठंडा पड़ गया, कामवासना शांत हो गई.
"कौनसा हॉस्पिटल, कैसा हॉस्पिटल वही खुद हॉस्पिटल है, वही तो यहाँ की डॉक्टर है, खाली बिल्डिंग कोई हॉस्पिटल होती है क्या? बिना डॉक्टर कैसा हॉस्पिटल?" एक ही पल मे रिया के जहन मे हज़ारो विचार आ कर चले गए, खुद के इंसान होने से पहले डॉक्टर होने का अहसास हो आया.
"वो यहाँ क्यों आई है? डॉक्टर की ड्यूटी 24 घंटे होती है " रिया बेपरवाह, ठंडी हवा का झोंका खाती दरवाजे पर खड़ी थी.


"डॉक्टर मैडम ये चल भी नहीं पा रहा। यहीं देख लो ना... वरना ये मर जाएगा!" रहीम ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, और बिना इज़ाज़त का इंतज़ार किए, राम को लेकर जबरदस्ती अंदर कदम बढ़ा दिया।
​रिया ना जाने कैसे खुद ही पीछे हट गई,

बाहर की गीली मिट्टी और उन दो मर्दों के पसीने की तीखी गंध रिया के नथुनों से टकराई। यह वही गंध थी जिसकी वह कल्पना कर रही थी, लेकिन अब यह हकीकत बनकर उसके सामने खड़ी थी।
​राम कराह रहा था, "आह्ह्ह... डॉक्टर साहिबा... बचा लो... यहाँ... यहाँ बहुत जलन हो रही है..." उसने अपनी लुंगी को और कसकर पकड़ लिया, ठीक वहाँ जहाँ रिया की नजरें अनायास ही चली गईं।
राम अपनी जांघो के बीच लुंगी को दबाये कराह रहा था, इस दबाव से लुंगी मे एक लम्बी मोटी सी आकृति स्पष्ट दिखाई दे रही थी.

​उस उभार को देखकर रिया का गला सूख गया। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्या करना है क्या नहीं, वो अभी अभी तो अपनी काम अवस्था से बहार निकली थी.
अचानक से दो हट्टे कट्टे जवान मर्द उसके सामने खड़े थे, जिसमे से एक अपना लंड पकडे कराह रहा था,

रहीम ने राम को लगभग घसीटते हुए कमरे मे उसी बिस्तर पर लेता दिया, जहाँ थोड़ी देर पहले रिया अपनी चुत रगड़ रही थी, उसकी चुत से निकला पानी अभी भी धब्बे के रूप मे वहाँ मौजूद था, एक अजीब सी कामुक गंध हवा मे घुली हुई थी, 
राम धम्म से बिस्तर पर जा लेटा, उसका हाथ अभी भी अपनी जाँघों को कसकर पकड़े हुए था, उसका चेहरा पसीने और बारिश के पानी से तर था, और वह दाँत भींच रहा था।

"डॉक्टर साहिबा, जल्दी देखो... जहर न फैल जाए कहीं," रहीम ने हाँफते हुए कहा। उसकी साँसें तेज थीं और उसकी नजरें बार-बार रिया की गीली नाइटी से चिपकी हुई थीं, जिसके आर-पार सब कुछ झलक रहा था।
रिया ने काँपते हाथों से पास ही पड़ी ट्रे से रुई और डेटॉल की शीशी उठाई। उसका दिल गले में धड़क रहा था। एक तरफ डॉक्टर का फर्ज और दूसरी तरफ अपनी ही नग्नता का अहसास। उसने एक एप्रन ढूँढने की कोशिश की, लेकिन हड़बड़ी में कुछ नहीं मिला। मजबूरन, उसने अपनी नाइटी को ही कसकर लपेटा, लेकिन गीला कपड़ा उसके जिस्म को और ज्यादा उभार रहा था।
एक मन कह रहा था सुखिराम को बुला के, वो औरत है वो मर्दाने अंग को कैसे चेक करेगी.
"क्यों नहीं करेगी तु डॉक्टर है, डॉक्टर स्त्री या पुरुष नहीं होता वो सिर्फ डॉक्टर होता है, उसके लिए इंसान सिर्फ बॉडी है "
रिया का अंतर्मन चीख उठा, उसे डॉक्टर होने का अहसास हो गया, ट्रेनिंग जे दिन याद आ गए ऐसे कितने ही अंग देखे थे उसने क्या पुरुष क्या स्त्री.
रिया ने अपने मन को मजबूत किया, अपने स्त्री के भाव को परे धकेल दिया.


रिया राम के पास आ बैठी,  उस छोटे से कमरे में उन दो मर्दों की मौजूदगी ने हवा को भारी कर दिया था। मिट्टी, पसीने और मर्दानगी की वो तीखी गंध अब रिया के दिमाग पर चढ़ रही थी।

"हटाओ हाथ... देखने दो कहाँ काटा है," रिया ने अपनी आवाज़ सख्त करने की कोशिश की, पर वो किसी फुसफुसाहट से ज्यादा कुछ नहीं थी।
राम ने धीरे-धीरे अपने हाथ हटाए, लेकिन उसकी लुंगी अभी भी जाँघों पर कसी हुई थी।
"तुम ... लुंगी हटाओ, क्या नाम है तुम्हारा?" रिया ने पीछे खड़े रहीम को आदेश दिया, तमाम कौशिशो के बावजूद उसकी अपनी साँसें अटक रही थीं।
"जी... जी... मेरा नाम रहीम है और ये राम " रहीम आगे बढ़ा। उसने राम की गीली लुंगी की गाँठ खोली। 
गांठ का खुलना था की पेट के नीचे घने बालो का गुच्छा नजर आने लगा, रिया की नजरें राम के पेट के नीचे, उन काली, घनी झाड़ियों पर अनायास ही टिक गई, जैसे वो उसी की प्रतीक्षा कर रही हो, कल्पना कर रही हो.
उसका प्यासी औरत होना उसके डॉक्टर होने पर हावी होने की कोशिश कर रहा था.
जैसे ही रहीम ने लुंगी को पकड़कर नीचे खींचा, रिया के मुँह से एक हल्की सी सिसकारी निकल गई— "हीईई...इस्स्स...."
सामने का नजारा रिया की सोच से भी परे था, रिया ला मुँह एक दम से खुला रह गया, आंखे चौड़ी हो गई.

राम की जाँघों के बीच, काले घने बालों के जंगल में, एक विशाल, काला, सुप्त अजगर जैसा लंड पड़ा था। वह अभी पूरी तरह खड़ा भी नहीं था, फिर भी उसका आकार और मोटाई देखकर रिया की आँखें फटी की फटी रह गईं।
वह लंड काला, खुरदरा और भयानक था। उसका मोटा, मशरूम जैसा सिरा एक तरफ लुढ़का हुआ था, जो हल्का गुलाबी और बैंगनी रंग का था। उसके नीचे दो विशाल, भारी टट्टे (testicles) लटक रहे थे, जो पसीने और खून से सने  हुए थे।

"बाप रे... ये इंसान का है या घोड़े का?" रिया के मन में पहला ख्याल यही आया। उसने अपने पति का या फिर कॉलेज के दिनों मे अपने रात के साथियो का 'छोटा-सा औजार' देखा था, लेकिन राम के पैरों के बीच जो पड़ा था, वह किसी हथियार से कम नहीं था।
"डॉक्टर साहिबा... यहाँ... नीचे की तरफ," रहीम ने उंगली से इशारा किया।
रिया ने देखा कि राम के टट्टों के ठीक बगल में, जाँघ की जड़ पर एक छोटा लाल निशान था, जहाँ से हल्का खून रिस रहा था। शायद किसी कीड़े ने खरोंच मारी थी। लेकिन उस छोटे से घाव तक पहुँचने के लिए, रिया को उस 'विशाल बाधा' को हटाना ज़रूरी था।
रिया के हाथ काँप रहे थे। उसे उस लंड को छूना होगा।
उसका दिल जोर जोर से धड़क रहा था, 
अभी कुछ देर पहले वो जिस चीज की कल्पना कर रही थी वो साक्षात् उसकी नजरों के सामने था, 
अपितु उसकी कल्पना से कहीं बढ़ा और विशाल.
रिया ने अपने काँपते हाथो से रुई के फांक को उठा लिया। 
वो लाख समझा रही थी खुद को ये सामान्य बात है, लेकिन उसका जिस्म कांप रहा था, परन्तु फर्ज़ भी निभाना ही था, 
आखिरकार उसने अपने हाथ आगे बढ़ा ही दिए,  उसकी कोमल, गोरी उंगलियाँ राम की काली, सख्त जाँघ के करीब पहुँचीं।
जैसे ही रिया की ठंडी उंगलियों ने राम की जाँघ को छुआ, राम का पूरा बदन एक झटके के साथ अकड़ गया।
"आअह्ह्ह..." राम के गले से एक ऐसी आवाज़ निकली जो दर्द की कम और मज़े की ज्यादा थी।
रिया ने अपनी एक उंगली से राम के उस भारी-भरकम, सुस्त पड़े लंड को साइड में करने की कोशिश की।
जैसे ही उसकी मखमली उंगली ने उस गर्म, पसीने से लथपथ मांस के लोथड़े को छुआ, रिया को लगा जैसे उसने नंगे बिजली के तार को छू लिया हो।
वह लंड बेहद गर्म था। उसमें एक अजीब सी धड़कन थी। लंड की नशो मे गर्म खून दौड़ रहा था, 
रिया उसे हटाने की कोशिश कर रही थी,  उसने अपनी दो ऊँगली से राम के भारी लंड को पकड़ साइड करना चाहा, लेकिन जैसे ही उसका हाथ मे लंड आया उसे लगा जैसे वो धड़का हो उसमे कुछ हरकत हुई हो, 
लंड की नार्महट मे कुछ गिरावट आ गई थी.
हल्का सा फड़फड़ा कर साइड हो गया.
रिया ने रुई से डेटॉल ले कर घाव पर लगाना शुरू कर दिया, उसका हलक सुख गया था, आंखे राम के लंड को निहार रही थी.
"मन कह रहा था पकड़ ले हाथो मे, सहला ले, ऐसा लंड जीवन मे देखा है कभी "
लेकिन अंदर का डॉक्टर उसे रोक रहा था.
रिया के स्पर्श पाते ही, वह सोता हुआ 'अजगर' जागने लगा।
राम की साँसें तेज हो गईं। उसकी जाँघों की नसें तन गईं।
देखते ही देखते, वह काला, मोटा लंड रिया की उंगली के नीचे फड़कने लगा। उसमें खून का दौरा इतनी तेजी से बढ़ा कि उसकी मोटी-मोटी नसें केंचुए की तरह उभर आईं।
"डॉक्टर साहिबा... बहुत दर्द हो रहा है... थोड़ा सहला दो," राम ने अपनी आँखें बंद करके, दाँत भींचते हुए कहा।
रिया चाह कर भी अपना हाथ नहीं हटा पाई। वह सम्मोहित सी उस लंड को बड़ा होते हुए देख रही थी। वह अब उसकी उंगली को धकेल कर ऊपर उठ रहा था—6 इंच... 7 इंच... 8 इंच... और मोटा होता जा रहा था।
रहीम, जो बगल में खड़ा था, उसकी नजरें अब घाव पर नहीं, बल्कि रिया के झुकने से साफ दिख रही उसकी गहरी घाटी (cleavage) और उसके अंदर लटकते स्तनों पर थीं।

"मैडम," रहीम ने अपनी भारी, कशदार आवाज़ में कहा, "लगता है ज़हर की वजह से... सूजन आ रही है। देखो, कैसे तन गया है।"
रिया का चेहरा शर्म और उत्तेजना से लाल हो गया। उसे पता था कि यह 'सूजन' नहीं, बल्कि हवस है। लेकिन उसकी अपनी चूत, जो कुछ देर पहले उंगलियों से खेलने के बाद भी शांत नहीं हुई थी, उस चुत मे फिर से पानी रिसने लगा था, नाभि के नीचे गर्म ज्वालामुखी उमड़ने लगा था,
राम का लंड पूरी तरह तन गया था, गुलाबी सूपड़ा पूरी तरह नंगा हो कर चमक रहा था, चमड़ी के खुलने से एक तीखी कामुक मर्दाना गंध रिया के नाथूनो से टकरा रही थी, रिया का जिस्म फिर से गर्म होने लगा.
तीखी मर्दाना गंध और अपनी आँखों के सामने तनते हुए उस विशाल लंड ने रिया के डॉक्टर वाले दिमाग को पूरी तरह सुन्न कर दिया था।
उसने अनजाने में ही रुई वाला हाथ उस लंड की जड़ पर रख दिया। उसकी मुट्ठी उस मोटे तने हुए लंड को पूरा घेर भी नहीं पा रही थी। 20210803-152222
"उफ़्फ़... कितना कड़क है," रिया की सांसें उखड़ने लगीं।
कमरे में अब सन्नाटा नहीं था, बल्कि तीन लोगों की भारी साँसें गूँज रही थीं। और बाहर बिजली कड़क रही थी, मानो इशारा कर रही हो कि आज रात इस कमरे में कोई 'मर्यादा' नहीं बचेगी।
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रिया का डॉक्टर वाला नकाब अब पूरी तरह उतर चुका है।
कमरे की पीली ट्यूबलाइट की तीखी रोशनी में वह मंजर किसी कामुक पेंटिंग जैसा लग रहा था। रिया की दूधिया गोरी कलाइयाँ और राम का वह कोयले जैसा काला, लोहे सा सख्त लंड—दोनों का मिलन एक अद्भुत विरोधाभास पैदा कर रहा था।
रिया अब 'इलाज' नहीं कर रही थी। वह भूल चुकी थी कि वह एक डॉक्टर है और सामने वाला उसका मरीज। उसके दिमाग में सिर्फ एक ही धुन सवार थी—इस विशाल, धड़कते हुए मांस के टुकड़े को महसूस करना।
"उफ़्फ़... यह तो मेरे हाथ में भी नहीं आ रहा," रिया बड़बड़ाई, लेकिन उसके चेहरे पर अब घबराहट नहीं, बल्कि एक गहरी हवस थी।
उसने अपनी मुट्ठी को राम के लंड की जड़ पर कसा और धीरे-धीरे ऊपर की ओर सरकाया। राम की काली चमड़ी उसके गोरे हाथों की पकड़ में तन गई। जैसे ही रिया का हाथ उस मोटे, गुलाबी सुपाड़े तक पहुँचा, राम की कमर हवा में उछल गई।
"आअह्ह्ह... मैडम... जान निकालोगी क्या... उफ़्फ़..." राम ने अपना सर पीछे पटक दिया। उसकी आँखें मुंद गई थीं और होंठ खुले हुए थे।
रिया को राम की इस तड़प में एक अजीब सा नशा आने लगा। 
उसे लगा कि उसके हाथ में कोई जादुई छड़ी है जो इस मजबूत मर्द को नचा रही है। उसने अपनी गति बढ़ा दी। अब वह उसे सिर्फ छू नहीं रही थी, बल्कि बाकायदा ऊपर-नीचे कर रही थी।
रिया का शरीर भी इस क्रिया में शामिल हो गया था। जैसे-जैसे उसका हाथ राम के लंड पर चलता, उसके अपने जिस्म में भी लहरें उठतीं। 
आगे झुकने की वजह से उसकी गीली गुलाबी नाइटी उसके वक्षस्थल से थोड़ी ढीली होकर लटक गई थी। रोशनी में साफ दिख रहा था कि कैसे उसके भारी-भरकम 38 इंच के स्तन, बिल्कुल बेफिक्र आज़ाद होकर, उसके हर स्ट्रोक के साथ पेंडुलम की तरह झूल रहे थे। उसके तने हुए निप्पल नाइटी के गीले कपड़े को भेदकर बाहर झांक रहे थे।
रहीम, जो रिया के ठीक कंधे के पीछे खड़ा था, उसकी नजरें अब राम के लंड पर नहीं, बल्कि रिया के उस खुले हुए गले में गड़ी थीं जहाँ से उसके स्तनों की गहराई साफ दिख रही थी।
"मैडम..." रहीम ने रिया के कान के बिल्कुल पास आकर फुसफुसाया, उसकी गर्म सांसें रिया की गर्दन पर लगीं, "देखिए, कैसे फन उठा रहा है यह नाग। लगता है अब जहर बाहर फेंकने ही वाला है। इसे छोड़ना मत, कस के रखना..."
रहीम के शब्दों ने रिया की उत्तेजना में घी का काम किया।
"जहर... हाँ... इसे निकलना ही होगा," रिया की आवाज़ कांप रही थी।
उसने देखा कि राम के उस विशाल मोटे गुलाबी सुपाड़े के छेद से एक पारदर्शी, गाढ़ा तरल (pre-cum) रिसने लगा है। एक डॉक्टर होने के नाते वह जानती थी कि यह क्या है, लेकिन एक हवस में डूबी औरत के लिए यह किसी अमृत से कम नहीं था।
रिया ने बिना हिचकिचाए अपने अंगूठे से उस चिपचिपे तरल को पूरे सुपाड़े पर फैला दिया। लंड अब और भी फिसलन भरा और चमकदार हो गया था।
रिया अब पूरी तरह अपनी कामवासना की गुलाम हो चुकी थी। उसने अपनी कुर्सी थोड़ी और आगे खिसकाई और अपनी टांगें चौड़ी कर लीं। रौशनी में उसकी गीली नाइटी उसकी जांघों के बीच ऐसे चिपकी थी कि उसकी चूत की फटी हुई दरार  साफ उभर आई थी।
वह राम के लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर किसी आइसक्रीम की तरह निहार रही थी। उसके मन में एक पागलपन भरा ख्याल आया—'क्या यह मेरे मुँह में समा पाएगा?'
उसका चेहरा राम के लंड के और करीब झुक गया। उसकी गरम साँसें राम के संवेदनशील सुपाड़े से टकराने लगीं।
राम अब बर्दाश्त की सीमा पर था। उसने अपना एक हाथ बढ़ाया और रिया की नंगी, गोरी जांघ पर रख दिया।
"मैडम..." राम ने हकलाते हुए कहा, "हाथ से नहीं... अब यह हाथ से शांत नहीं होगा।"
रिया ने अपनी मदहोश आंखें उठाकर राम को देखा। उसकी आँखों में सवाल नहीं था, बल्कि एक मूक सहमति थी। वह जानना चाहती थी कि यह देहाती मर्द अब क्या चाहता है। उसके हाथ की गति रुकी नहीं, बल्कि और तेज हो गई। पच... पच... पच... की गीली आवाज़ कमरे में गूंजने लगी, जो बाहर बरसते पानी से भी ज्यादा मादक थी।


राम का वह खुरदरा, मेहनतकश हाथ रिया की मलाई जैसी गोरी जांघ पर रेंगने लगा था। उसकी हथेली की सख्त चमड़ी रिया की रेशमी त्वचा को छीलती सी महसूस हो रही थी, लेकिन यही दर्द रिया को और पागल कर रहा था।
रिया ने अपनी जांघ को पीछे नहीं खींचा, बल्कि अनजाने में अपनी टांगें और चौड़ी कर दीं। अब राम का हाथ उसकी नाइटी के अंदर सरकने की कोशिश कर रहा था।
"हाथ से शांत नहीं होगा..." राम के यह शब्द रिया के दिमाग में गूंज रहे थे।
रिया ने झुककर उस विशाल लंड को देखा जो उसकी मुट्ठी में अभी भी फड़फड़ा रहा था। उसके गुलाबी सुपाड़े से निकलता वह लेसदार पदार्थ उसकी उंगलियों पर चमक रहा था।
तभी पीछे से रहीम, जो अब रिया के ऊपर लगभग झुक चुका था, उसने रिया के कान में अपनी भारी आवाज़ में कहा,
"डॉक्टर साहिबा, गाँव का इलाज है... देसी नुस्खा ही काम करेगा। जब जहर इतना चढ़ गया हो, तो उसे 'चूस' कर बाहर निकालना पड़ता है।"
यह सुनकर रिया के बदन में एक बिजली सी दौड़ गई। 'चूस कर...'
उसने अपनी मदहोश आँखों से रहीम को देखा, फिर वापस राम के उस मोटे लंड को। एक डॉक्टर होने के नाते उसे पता था कि यह सब बकवास है, कोई जहर नहीं है, बस हवस है। लेकिन एक प्यासी औरत के नाते, उसे रहीम का सुझाव किसी आदेश जैसा लगा।
रिया का चेहरा धीरे-धीरे राम के लंड के करीब जाने लगा। उस अंग से आती मर्दों वाली तीखी गंध—पसीने, कामुकता और बारिश की गंध—सीधे रिया के नथुनों में भर गई। यह गंध किसी महंगे परफ्यूम से ज्यादा नशीली थी।
राम ने अपनी कमर उठाकर अपना लंड रिया के चेहरे के और पास कर दिया। वह विशाल सुपाड़ा अब रिया के रसीले होठों से बस एक इंच दूर था। उसकी गर्मी रिया के गालों को झुलसा रही थी।
रिया ने अपनी जुबान बाहर निकाली और अपने सूखे होंठों को गीला किया। उसकी सांसें राम के लंड पर टकराईं।
"क्या... क्या इसे मुँह में लेने से... इसका दर्द कम होगा?" रिया ने एक मासूमियत भरे, लेकिन कामुक स्वर में पूछा, जैसे वह अभी भी कोई मेडिकल सलाह ले रही हो।
राम ने जवाब नहीं दिया, बस अपने लंड को हल्का सा आगे धक्का दिया, जिससे वह रिया के निचले होंठ से रगड़ खा गया।
"उफ़्फ़..." रिया के मुँह से एक आह निकल गई। वह स्वाद... वह नमकीन, मर्दाना स्वाद उसकी जुबान पर लग चुका था।
रिया ने अपनी आँखें बंद कर लीं, और अपना मुँह, जो किसी छोटे गुफा जैसा लग रहा था, उस विशाल अजगर के सामने खोल दिया।

ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी में रिया का चेहरा राम के जाँघों के बीच किसी भक्त की तरह झुका हुआ था। उसकी आँखों में नशा था और होठों पर एक प्यासी मुस्कान।
"हाँ... जहर तो निकालना ही पड़ेगा..." रिया बड़बड़ाई।
उसने अपना छोटा-सा, गुलाबी मुँह खोला और राम के उस विशाल, काले सुपाड़े को अपने होंठों के घेरे में ले लिया।
जैसे ही वह गर्म, मांसल हिस्सा उसके गीले मुँह के अंदर दाखिल हुआ, रिया की आँखें चढ़ गईं।
"उम्म्मम्म्म्म..."
राम का लंड इतना मोटा था कि रिया के जबड़े को फैलने के लिए संघर्ष करना पड़ा। अभी सिर्फ़ सुपारी (Top) ही अंदर गई थी कि उसका मुँह पूरी तरह भर गया।
रिया की जीभ उस नमकीन, कशैले स्वाद को चखने लगी। वह स्वाद, जो पसीने और मर्दानगी का मिश्रण था, रिया के दिमाग पर चढ़ गया।
पीछे खड़ा रहीम, रिया की गांड को घूरते हुए, अपनी भारी आवाज़ में बोला,
"शाबाश डॉक्टर साहिबा... बिलकुल ऐसे ही। जड़ से खींचो जहर को। छोड़ना मत... वरना राम बचेगा नहीं।"
रहीम के शब्दों ने रिया के अंदर एक अजीब सी ऊर्जा भर दी। उसे लगा जैसे वह कोई बहुत बड़ा पुण्य का काम कर रही है, जबकि असल में वह अपनी हवस बुझा रही थी।
उसने अपने गाल पिचकाए और एक ज़ोरदार खिंचाव (suction) पैदा किया।
स्लुर्प...
एक गीली, रसीली आवाज़ कमरे में गूंज गई।
"आअह्ह्ह... मा... मैडम..." राम ने रिया के सिर पर अपना हाथ रख दिया, उसकी उंगलियां रिया के रेशमी बालों में उलझ गईं। राम की कमर हवा में उठने लगी।
रिया ने अब हिम्मत करके अपना सिर आगे बढ़ाया। वह उस काले अजगर को अपने गले तक उतारना चाहती थी।
उसने मुँह और खोला, "आआ... गक..."
राम का मोटा तना हुआ लंड उसके दांतों को रगड़ते हुए अंदर सरकने लगा।
रिया का मुँह छोटा था और राम का औजार किसी जानवर जैसा विशाल। उसके गाल गुब्बारे की तरह फूल गए। उसकी आँखों से पानी बहने लगा, लेकिन वह रुकी नहीं।
उसकी लार  अनियंत्रित होकर राम के काले लंड और उसकी अपनी ठुड्डी पर बहने लगी। रोशनी में वह लार और प्री-कम ऐसे चमक रहे थे, जैसे तेल लगा हो।

"देखो राम... क्या नसीब पाया है तूने," रहीम ने उकसाते हुए कहा, "शहर की इतनी बड़ी डॉक्टर तेरे लंड की सेवा कर रही है। मैडम, जीभ का इस्तेमाल करो... इसके नीचे जो नस फड़क रही है ना, वहाँ जहर ज्यादा है।"
रिया ने रहीम का आदेश मानते हुए अपनी जीभ को लंड के निचले हिस्से पर फिराना शुरू कर दिया। उसने लंड को मुँह से बाहर निकाला और किसी लॉलीपॉप की तरह चाटने लगी।
लप... लप... लप...
उसकी जीभ राम के लंड की उभरी हुई नसों को कुरेद रही थी।
रिया ने अपनी नज़रें ऊपर उठाईं और राम को देखा। राम का चेहरा आनंद और दर्द से विकृत हो रहा था। यह देखकर रिया को अपनी 'शक्ति' का अहसास हुआ। वह एक मर्द को इतना सुख दे पा रही थी।
"कैसा लग रहा है राम ?" रिया ने लंड को मुँह से हटाकर, भारी सांस लेते हुए पूछा। उसके होंठों पर राम का चिपचिपा पानी लगा हुआ था, जो रोशनी में चमक रहा था।
"जन्नत... मैडम... जन्नत," राम हाँफ रहा था, "लेकिन अभी भी आग बुझी नहीं है... और अंदर लो... गले तक उतारो इसे।"
रिया ने एक बार फिर अपना मुँह खोला। इस बार उसने राम के टट्टो को अपने एक हाथ से सहलाना शुरू किया और दूसरे हाथ से लंड को पकड़कर सीधा अपने हलक की तरफ निशाना लगाया। brunette-sucks-big-black-cock-deepthroat
उसने एक गहरा सांस लिया और...
ग्लक... ग्लक...
वह कोशिश कर रही थी कि पूरा लंड उसके हलक में उतर जाए। उसकी नाक राम के घने बालों से रगड़ खा रही थी। वह 'इलाज' अब पूरी तरह से एक जंगली मुख मैथुन में बदल चुका था। रिया, जो कल तक इस गाँव को गंदा समझती थी, आज उसी गाँव की सबसे 'गंदी' और 'मोटी' चीज को अपने अंदर समाने के लिए तड़प रही थी।

राम का सब्र अब जवाब दे चुका था। रिया की रसीली जीभ और उसके मुँह की गर्मी ने उस देहाती मर्द के अंदर के जानवर को जगा दिया था। अब वह 'इलाज' करवाने वाला मरीज नहीं था, बल्कि अपनी हवस को शांत करने वाला एक भूखा भेड़िया था।
"बस मैडम... बहुत चाट लिया... अब इसे जड़ तक लो!" राम गुर्राया।
उसने अपने दोनों सख्त हाथ रिया के सिर के पीछे कस लिए। रिया कुछ समझ पाती, उससे पहले ही राम ने अपनी कमर को एक जोरदार झटका दिया।
धप्प...
उसका विशाल, काला लंड रिया के गले की गहराई में उतर गया।
"ग्लक... घुक... उउउ..."
रिया की आँखें फटी की फटी रह गईं। उसकी साँस नली पूरी तरह ब्लॉक हो गई थी। राम का सुपाड़ा उसके कंठ से टकरा रहा था। वह पीछे हटना चाहती थी, लेकिन राम के मजबूत हाथों ने उसके सिर को किसी शिकंजे की तरह जकड़ लिया. deep-throat-gif-10
राम ने एक लय पकड़ ली। वह अपनी कमर को आगे-पीछे करने लगा।
ग्लक... ग्लक... ग्लक...
हर झटके के साथ रिया का सिर पीछे की ओर झटकता, उसके बाल बिखर गए थे। उसकी आँखों से पानी की धार बह निकली, मस्कारा फैल गया, लेकिन राम रुकने का नाम नहीं ले रहा था। रिया का मुँह अब सिर्फ एक 'छेद' बनकर रह गया था जिसका इस्तेमाल राम अपनी मर्जी से कर रहा था। gifcandy-face-fucking-28
ठीक इसी वक्त, जब रिया राम के साथ जिंदगी और मौत (सांस) की जंग लड़ रही थी, उसे अपनी पीठ पर एक और स्पर्श महसूस हुआ।
रहीम, जो अब तक सिर्फ तमाशा देख रहा था, अब एक्शन में आ गया था।
"राम भाई, तू अपना काम कर... डॉक्टरनी का पिछला दरवाजा तो खुला ही रह गया," रहीम ने हँसते हुए कहा।
उसने रिया की उस पतली, भीगी हुई गुलाबी नाइटी को पकड़ा और एक ही झटके में ऊपर कमर तक खींच दिया।
ट्यूबलाइट की सीधी रोशनी में रिया का निचला हिस्सा पूरी तरह बेपर्दा हो गया।
दृश्य इतना कामुक था कि रहीम की साँसें अटक गईं।
सामने रिया झुकी हुई थी। उसकी कमर से नीचे वह बिल्कुल नंगी थी।
उसकी भारी-भरकम, दूध जैसी गोरी गांड के दो विशाल गोले किसी पके हुए फल की तरह बाहर निकल आए थे। रिया के झुकने की वजह से उसकी गांड और भी ज्यादा बाहर को निकली हुई और चौड़ी लग रही थी।
और उन दो गोरे गोलों के बीच... उसकी चूत।
वह रसीली, गुलाबी गुफा, जो उत्तेजना और कामवासना के मारे पूरी तरह गीली थी। चूत की दरार से पानी रिसकर रिया की गोरी जांघों पर बह रहा था, जो रोशनी में किसी चांदी की लकीर जैसा चमक रहा था।
20211007-214234 "उफ़्फ़... क्या माल है बे..." रहीम अपनी हवस को रोक नहीं पाया।
उसने अपना हाथ बढ़ाया और रिया की उस गीली चूत पर रख दिया।
रिया, जो आगे राम के लंड से जूझ रही थी, उसे अचानक अपनी टांगों के बीच एक खुरदरा, अनजान हाथ महसूस हुआ।
"म्म्म्मम्म्म्म!!!" रिया ने मुँह बंद होने के बावजूद चीखने की कोशिश की, उसका शरीर एक करंट से झनझना उठा। एक तरफ उसके मुँह में राम का लंड, और दूसरी तरफ उसकी चूत पर रहीम का हाथ। वह पूरी तरह 'सैंडविच' बन चुकी थी।
रहीम ने अपनी उंगलियों को रिया की चूत की दरार में फंसाया और उन्हें फैला दिया। अंदर का गुलाबी मांस फड़फड़ा रहा था।
"राम, देख तो सही... यहाँ तो बाढ़ आई हुई है," रहीम ने कहा।
उसने अपना दूसरा हाथ अपनी लुंगी के अंदर डाला। वहां उसका अपना लंड, राम के लंड को देखकर और रिया की नंगी गांड को निहारकर लोहे की रॉड बन चुका था।
रहीम ने अपनी लुंगी गिरा दी।
उसका लंड भी राम जैसा ही काला और लंबा था, लेकिन मोटाई में शायद उससे भी ज्यादा। वह रिया के ठीक पीछे आकर खड़ा हो गया।
रिया को अपनी नंगी गांड की दरार में एक गरम, सख्त चीज की रगड़ महसूस हुई। रहीम अपना लंड उसकी गांड की गहरी लकीर में रगड़ रहा था।

रिया अब पूरी तरह बेबस थी। आगे मुँह में लंड ठुंसा हुआ था, और पीछे गांड पर दूसरा लंड दस्तक दे रहा था। उसकी डॉक्टर वाली हैसियत अब इस कमरे की फर्श पर पड़ी उस गीली नाइटी की तरह थी—पैरों तले रौंदी हुई।
रहीम ने रिया की कमर को दोनों हाथों से कसकर पकड़ा और अपना लंड उसकी गांड से सटा दिया।
"मैडम... आगे वाला तो बुक है... पिछला वाला मेरे हवाले कर दो..." रहीम ने उसके कान के पास फुसफुसाते हुए, अपनी जीभ रिया की गर्दन पर फिरा दी।
***************
रिया घुटनों के बल बैठी थी, उसका शरीर हवस की आग में तप रहा था। उसकी चूत से निकलता पानी उसकी जांघों पर बह रहा था, वह बस यही इंतज़ार कर रही थी कि कब कोई सख्त चीज उसकी उस गीली गुफा में उतरकर उसे राहत देगी। उसका पूरा ध्यान अपनी योनि पर केंद्रित था, जो धड़क रही थी और किसी भी क्षण फटने को तैयार थी।
"आह्ह्ह... अब डाल भी दो... रहम करो..." रिया सिसकी, उम्मीद करते हुए कि रहीम का मोटा औजार उसकी प्यासी चूत में समाएगा।
लेकिन रहीम के इरादे कुछ और थे।
उसने रिया की गीली चूत को अपनी उंगली से छुआ, फिर जानबूझकर उसे छोड़ दिया। उसने अपना मोटा, काला और थूक से लथपथ लंड रिया की चूत के बजाय, उसके ठीक ऊपर, उस तंग और सूखे हुए पिछले दरवाजे (गांड के छेद) पर टिका दिया।
"डॉक्टर साहिबा, अगला दरवाजा तो बहुत गीला है... असली मजा तो इस तंग गली में आएगा," रहीम ने एक क्रूर मुस्कान के साथ कहा।
इससे पहले कि रिया कुछ समझ पाती या विरोध कर पाती, रहीम ने रिया की कमर को कसकर पकड़ा और एक जोरदार धक्का मारा। 19978792
धाड़...
"आईईईईईईईईई.... माँआआआ.....!!!!"
रिया की एक गगनभेदी चीख कमरे में गूँज गई। उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया।
उसे लगा जैसे किसी ने लाल गर्म लोहे की रॉड उसके शरीर में उतार दी हो। उसकी गांड, जो कभी खुली नहीं थी, रहीम के उस विशाल लंड को झेलने के लिए तैयार नहीं थी। उसकी मांसपेशियाँ सिकुड़ गईं, लेकिन रहीम की ताकत के आगे वे बेबस थीं। उसका मोटा सुपाडा उस तंग रिंग को जबरदस्ती चीरता हुआ अंदर घुस गया.

"न... नहीं... प्लीज़... उफ़्फ़... यह नहीं... वहाँ नहीं..." रिया तड़प उठी। वह आगे खिसकने की कोशिश करने लगी, लेकिन आगे राम मौजूद था।
राम ने रिया को भागने का मौका नहीं दिया। उसने रिया के दोनों कंधों को पकड़ा और उसे सीधा खड़ा रखा।
"कहाँ भाग रही हो मैडम... इलाज तो पूरा कराओ," राम ने कहा।
उसने रिया की नाइटी को गले तक समेट दिया था। रिया के विशाल, 38 इंच के दूधिया स्तन अब पूरी तरह आज़ाद थे। वे पसीने में भीगे हुए और उत्तेजना से लाल हो रहे थे।
राम ने अपने दोनों खुरदरे हाथों से रिया के मुलायम स्तनों को कसकर दबोच लिया। उसने उन्हें आपस में सटाया, जिससे उनके बीच एक गहरी घाटी बन गई।
"ले, यहाँ मजा ले," राम ने अपना गीला लंड उन दोनों स्तनों के बीच में फंसा दिया।
रिया अब एक अजीब सी दोहरी स्थिति में फँस गई थी।
पीछे से रहीम उसकी गांड को भेद रहा था—एक तीखा, फाड़ देने वाला दर्द जो धीरे-धीरे एक अजीब से भारीपन और दबाव में बदल रहा था।
और आगे, राम उसके स्तनों को बुरी तरह मसल रहा था। उसका लंड रिया की कोमल त्वचा पर रगड़ खा रहा था, उसके निप्पल राम की बांहों से दब रहे थे।
"आअह्ह्ह... उईई... राम... रहीम... मार डालोगे क्या..." रिया का सिर दायें-बायें डोल रहा था। उसकी चूत अभी भी खाली थी और पानी छोड़ रही थी, जबकि उसकी गांड भरी जा चुकी थी। यह अधूरापन उसे और पागल कर रहा था।
रहीम ने अब दया दिखाना छोड़ दिया था। एक बार रास्ता बन जाने के बाद, उसने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी। oily-anal-001
धप... धप... धप...
उसका पेट रिया के नितंबों से टकरा रहा था। हर धक्के के साथ रिया का पूरा शरीर आगे राम की तरफ झूल जाता।
"उफ़्फ़... कितनी टाइट है साली... इसे कहते हैं सील-पैक माल," रहीम ने हाँफते हुए कहा।
आगे राम भी अपनी मस्ती में था। उसने रिया के स्तनों के बीच अपने लंड को रगड़ते हुए, रिया के चेहरे को देखा जो दर्द और हवस में विकृत हो रहा था।
"देख रहीम, डॉक्टरनी की शक्ल देख... कैसे तड़प रही है। क्यों मैडम, चूत मांग रही थी, गांड मिल गई... कैसा लग रहा है देसी इलाज?"
रिया जवाब देने की हालत में नहीं थी। उसका दिमाग सुन्न पड़ चुका था। गांड में हो रही उस बेरहम खुदाई ने उसके शरीर के हर तार को झनझना दिया था। दर्द के साथ-साथ अब एक अजीब सी, वर्जित सुख की लहर भी उठने लगी थी। उसका शरीर उस विदेशी वस्तु को स्वीकार करने लगा था। वह मदहोशी में अपनी जुबान बाहर निकालकर हाँफने लगी, जैसे कोई प्यासी कुतिया हो।
**********
रहीम ने रिया की तड़प को भांप लिया था। उसने देखा कि कैसे रिया की चूत से पानी बहकर फर्श पर गिर रहा है, जबकि उसकी गांड में खुदाई चल रही है।
"रुक जा राम... डॉक्टरनी का पूरा चेकअप एक साथ ही होगा आज," रहीम ने अचानक अपनी कमर रोकी और एक झटके के साथ अपना लंड रिया की गांड से बाहर खींच लिया।
पॉप... की आवाज़ के साथ गांड का छेद खुला रह गया, लाल और सूजा हुआ।
रहीम ने रिया को बांहों में भरकर हवा में उठा लिया, जैसे वह कोई फूल हो।
"ले राम... अपने बिस्तर पर सीधा हो जा," रहीम ने आदेश दिया।
राम बिस्तर के किनारे पर बैठ गया, अपने दोनों पैर फैलाकर, उसका विशाल काला लंड किसी खूंटे की तरह तनकर खड़ा था।
रहीम ने रिया को हवा में ही घुमाया और धीरे-धीरे राम की गोद में उतारना शुरू किया।
रिया की नज़रें नीचे राम के उस खड़े लंड पर थीं। उसकी चूत, जो अब तक खाली थी, उस काले मूसल को अपने करीब आते देख फड़कने लगी।
"हाँ... हाँ... इसे अंदर डालो... पूरा भर दो..." रिया किसी पागल की तरह बड़बड़ाई।
जैसे ही रिया की गीली चूत राम के सुपाड़े पर टिकी, उसने अपनी कमर को ढीला छोड़ दिया। गुरुत्वाकर्षण और हवस ने अपना काम किया।
फच... स्ल्लललप्प...
राम का पूरा मोटा, लंबा लंड रिया की रसीली मलाईदार चूत में एक ही बार में जड़ तक समा गया।
"आआआआआह्ह्ह्ह्ह....!!!!" रिया ने अपना सिर पीछे पटक दिया। एक गहरा सुकून, एक ठंडक उसकी नसों में दौड़ गई। जिस खालीपन को वह महीनों से महसूस कर रही थी, वह एक पल में भर गया था।
लेकिन यह तो बस शुरुआत थी।
रिया अभी राम की गोद में बैठकर उसकी सवारी का आनंद लेने ही वाली थी कि उसे अपनी पीठ पर रहीम की गर्म सांसें महसूस हुईं।
रहीम बिस्तर के पीछे घुटनों पर खड़ा हो चुका था।
"डॉक्टरनी, पीछे का दरवाजा क्यों बंद कर रही है?" रहीम ने हंसते हुए कहा।
उसने रिया की कमर को कसकर पकड़ा, उसकी नंगी, भरी हुई गांड को दोनों हाथों से फैलाया, और अपना लंड उसके उसी सूजे हुए पिछले छेद पर सेट कर दिया।
रिया की सांसें गले में अटक गईं। उसे पता था क्या होने वाला है।
"ओह गॉड... नहीं... दोनों... आह्ह..."
इससे पहले कि वह पूरी सांस ले पाती, रहीम ने एक जोरदार धक्का मारा।
चूंकि रास्ता पहले से बना हुआ था और लंड पर रिया का ही पानी लगा था, रहीम का औजार सीधा अंदर फिसल गया।

रिया का जिस्म अकड़ गया।
आगे की तरफ राम का लंड उसकी बच्चेदानी को दस्तक दे रहा था, और पीछे रहीम का लंड उसकी आंतों को मथ रहा था।
उसके शरीर में अब एक इंच भी जगह खाली नहीं थी। वह पूरी तरह से 'सील-पैक' हो चुकी थी।
"उफ़्फ़... मर गई... आह्ह्ह... कितना भरा-भरा लग रहा है..." रिया की आँखों की पुतलियां पलट गईं। F985C0D
अब जो शुरू हुआ, वह किसी जंगली नृत्य से कम नहीं था।
नीचे से राम ठुकाई कर रहा था, और पीछे से रहीम धक्के मार रहा था।
रिया बीच में किसी सैंडविच की तरह पिस रही थी, लेकिन यही पिसना उसे जन्नत की सैर करा रहा था।
उसके दोनों छेद एक साथ भरे हुए थे। जब राम धक्का मारता, तो रहीम का लंड थोड़ा बाहर आता, और जब रहीम अंदर डालता, तो राम का लंड रगड़ खाता। अंदर दोनों लंड एक-दूसरे से टकरा रहे थे, सिर्फ एक पतली झिल्ली का फासला था।
रिया कामुकता के ऐसे चरम पर थी जहाँ दर्द और मजा एक हो जाते हैं। उसकी सुध-बुध खो चुकी थी।
उसने अपने दोनों हाथ अपने ही नंगे, 38 इंच के भारी स्तनों पर रख दिए।
हवस के मारे उसने अपनी उंगलियां अपने ही मांस में गड़ा दीं। वह अपने निप्पलों को खुद ही नोचने और मसलने लगी।
"आह्ह्ह... हाँ... और जोर से... फाड़ दो मुझे... डॉक्टरनी को रंडी बना दो..." रिया चिल्ला रही थी। वह अब इलाज करने वाली सौम्य डॉक्टर नहीं थी, बल्कि हवस की आग में जलती एक मादा थी।
"देख राम, कैसी घोड़ी बनी है," रहीम ने पीछे से धक्का मारते हुए, रिया की गर्दन पर काट लिया।
"हाँ भाई... आज तक ये लोगो का इलाज करती थी, आज हम इसका इलाज कर रहे हैं," राम ने नीचे से रिया की चूत में जोर-जोर से झटके मारते हुए कहा।
रिया खुद भी उन्हें उकसा रही थी। वह अपनी कमर को गोल-गोल घुमा रही थी ताकि दोनों लंडों का मजा एक साथ ले सके।
"हाँ... यही... यही चाहिए था मुझे... मुझे भर दो... अपनी गंदी मलाई से मेरी दोनों गुफाएं भर दो..." रिया अपनी छातियों को जोर-जोर से भींच रही थी, उसके लाल नाखून उसके गोरे स्तनों पर निशान छोड़ रहे थे।
कमरे में सिर्फ फच-फच... थाप-थाप... और रिया की आह्ह-उईई की आवाजें गूंज रही थीं। वह तूफानी रात बाहर थी, लेकिन असली तूफान रिया के जिस्म के अंदर मचा हुआ था।
***********

कमरे में गूंजती "पच-पच" की आवाज़ अब किसी मशीन गन की तरह तेज हो गई थी। राम और रहीम, दोनों अब अपनी बर्दाश्त की अंतिम सीमा पर थे। रिया का कसा हुआ, गर्म और गीला जिस्म उनकी मर्दानगी को निचोड़ लेने पर आमादा था।
"आअह्ह्ह... मैडम... अब नहीं रुक  जा रहा... मैं छोड़ने वाला हूँ..." नीचे से राम गुर्राया। उसकी कमर की रफ़्तार पागलों जैसी हो गई थी, वह रिया की बच्चेदानी पर लगातार चोट कर रहा था।
पीछे से रहीम भी हाँफ रहा था, "मैं भी... राम... आज तो डॉक्टरनी को पूरा भर के ही दम लेंगे।"
रिया, जो दो लंडों के बीच फंसी थी, यह सुनकर और भी उत्तेजित हो गई। उसके दिमाग पर वीर्य का नशा चढ़ गया।
"हाँ... हाँ... छोड़ो... मेरे अंदर छोड़ो... मुझे भर दो... मेरी चूत और गांड दोनों भर दो..." वह चिल्लाई, और अपने स्तनों को इतनी जोर से भींचा कि नाखूनों के निशान पड़ गए।
अचानक, राम ने एक जोरदार झटका मारा और अपने लंड को रिया की चूत की गहराई में, बिल्कुल अंत तक धंसा दिया और वहीं रोक लिया।
"ले रंडी... ले मेरी मलाई..."
राम का जिस्म अकड़ गया। उसके लंड के सुपाड़े का मुँह खुला और गर्म, गाढ़े वीर्य की एक शक्तिशाली पिचकारी रिया के गर्भाशय के मुँह पर जा टकराई।
धप... धप... पिच... पिच...
रिया की आँखें पलट गईं। उसे महसूस हुआ जैसे उसके पेट के अंदर गर्म लावा उंडेला जा रहा हो। राम का वीर्य किसी बाढ़ की तरह उसकी चूत की दीवारों को भिगोता हुआ भर रहा था।
ठीक उसी पल, रहीम ने भी रिया की कमर को जकड़ लिया और उसे राम के ऊपर कसकर दबा दिया। उसने अपना लंड रिया की गांड की गहराई में उतार दिया।
"आअह्ह्ह... ले डॉक्टरनी... मेरा भी ले.."
रहीम का लंड भी फड़फड़ाया और उसने रिया की आंतों के अंदर अपना गाढ़ा, लसलसा वीर्य छोड़ना शुरू कर दिया।
रिया का शरीर दोहरी आग में जल उठा।
आगे चूत में राम का वीर्य, और पीछे गांड में रहीम का वीर्य।
वह दोनों तरफ से भरी जा रही थी। उसे अपने पेट के अंदर एक भारीपन महसूस हो रहा था, जैसे वह गुब्बारा हो जिसे पानी से भरा जा रहा हो।
"आआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह..... उईईईईई..... माँआआआ....." रिया की एक लंबी, दर्द और सुख से भरी चीख निकली और वह राम के कंधे पर निढाल होकर गिर पड़ी।
उसका पूरा शरीर झटके खा रहा था (orgasm), जबकि दोनों मर्द अभी भी उसके अंदर अपना-अपना पानी खाली कर रहे थे।
कुछ पलों तक कमरे में सिर्फ उनकी भारी सांसों की आवाज़ रही। तीनों के जिस्म पसीने से लथपथ एक-दूसरे से चिपके हुए थे।
राम और रहीम ने अपनी आखिरी बूंद तक रिया के अंदर निचोड़ दी थी।
धीरे-धीरे, रहीम ने अपना ढीला पड़ता लंड रिया की गांड से बाहर खींचा। 18574907
प्लॉप...
जैसे ही लंड बाहर निकला, रिया की गांड के खुले हुए, लाल और सूजे हुए छेद से सफेद, गाढ़ा वीर्य बाहर छलक आया और उसकी जांघों पर बहने लगा।
राम ने भी रिया को अपनी गोद से धीरे से बिस्तर पर लुढ़का दिया और अपना लंड बाहर निकाला।
रिया की चूत का भी वही हाल था। वह इतनी भर चुकी थी कि राम का औजार बाहर निकलते ही, अंदर जमा वीर्य 'भलभला' कर बाहर निकल आया, Gozando-na-buceta-gif-76 जैसे कोई भरा हुआ गिलास छलक गया हो।
रिया बिस्तर पर चित पड़ी थी। टांगें चौड़ी थीं, बाहें फैली हुई थीं। उसकी आँखें आधी खुली थीं, और होंठों पर एक संतुष्ट मुस्कान थी।
उसके दोनों छेद—चूत और गांड—सफेद मलाई से लबालब भरे थे और बाहर बह रहे थे। उसकी जांघें, पेट और चादर सब कुछ वीर्य, पसीने और कामरस में सने थे। 20220515-001415
"अब हुआ ना सही इलाज..." रहीम ने अपनी लुंगी ठीक करते हुए, रिया के पसीने से भीगे माथे को देखा।
"डॉक्टरनी साहिबा," राम ने रिया के गाल को थपथपाया, "आराम करो अब। दवा दे दी है, सुबह तक सारी गर्मी उतर जाएगी।"
रिया कुछ बोल नहीं पाई, बस अपनी भारी पलकें झपका दीं। बाहर बारिश थम चुकी थी, और अंदर रिया के जिस्म की आग भी शांत हो गई थी—उस सफेद, गाढ़े द्रव की ठंडक के नीचे।
रिया की आंखे धीरे धीरे बंद होती चली गई.
************

अगली सुबह की धूप खिड़की से छनकर सीधे रिया के चेहरे पर पड़ी।
रिया की आँखें भारी थीं, शरीर का पोर-पोर दुख रहा था, लेकिन यह दर्द तकलीफदेह नहीं, बल्कि एक मीठे नशे जैसा था। उसने करवट ली तो महसूस हुआ कि चादर अभी भी गीली और कड़क है। उसकी जांघों के बीच चिपचिपाहट थी—राम और रहीम की मर्दानगी के सबूत, जो अभी भी उसके भीतर और बाहर सूखे हुए थे।
वह उठकर बैठी। अपनी बिखरी हुई नाइटी और बिस्तर की हालत देखकर उसके चेहरे पर शर्म की जगह एक अजीब सी संतुष्टि भरी मुस्कान आ गई।
"तो यह है असली मजा..." उसने खुद से कहा।
शहर की बंद कमरों वाली वो नीरस सेक्स लाइफ, और यहाँ गाँव की यह जंगली रात—कोई तुलना ही नहीं थी। रिया को आज महसूस हुआ कि वह सिर्फ एक डॉक्टर नहीं, एक औरत भी है, जिसे जानवरों जैसे प्यार की ज़रूरत थी।
उसने सोचा था कि वह यहाँ से ट्रांसफर ले लेगी, लेकिन अब? अब तो उसे इस गाँव में रुकने का, यहाँ जीने का एक 'ठोस' कारण मिल गया था।

उधर बाहर, अस्पताल के पीछे वाले बरगद के पेड़ के नीचे, राम और रहीम बीड़ी सुलगाए बैठे थे। उनके चेहरों पर एक विजयी मुस्कान थी।
"क्यों बे राम, तेरा 'कीड़ा' अब कैसा है?" रहीम ने आँख मारते हुए, धुंआ हवा में उड़ाया।
राम जोर से हँस पड़ा। उसने अपनी लुंगी उठाकर जांघ के उस छोटे से निशान को देखा।
"अरे कैसा कीड़ा और कैसा सांप? वो तो मैंने खुद खेत में काम करते वक़्त ब्लेड से हल्का सा चीरा लगा लिया था। थोड़ा खून निकालना ज़रूरी था, वरना मैडम 'इलाज' कैसे करतीं?"
दोनों जोर-जोर से हँस पड़े।

हकीकत यह थी कि यह सब एक सोचा-समझा प्लान था।
राम और रहीम की नजरें रिया पर पहले दिन से ही थीं। जब वह साड़ी पहनकर निकलती, तो उसकी भारी गांड और कसती हुई चोली को देखकर वे आहें भरते थे। लेकिन कल शाम... कल शाम ने सब बदल दिया था।
"साला, कल जब मैं बारिश में तेरे घर आ रहा था..." राम ने बीड़ी का कश लेते हुए कहा, "...तो मैंने खिड़की से देख लिया था। मैडम अपनी ही चूत में उंगलियां पेल रही थीं। तड़प रही थीं बेचारी।"

"हाँ," रहीम ने जोड़ा, "तभी समझ गया था कि मैडम को 'दवा' की सख्त ज़रूरत है। उंगली से इनका क्या भला होता? ऐसा गद्दाराया बदन भला ऊँगली से शांत होता है क्या? ऐसे जिस्म को तो मूसल चाहिए होता है!
बस, फिर क्या था... बना लिया प्लान।"
वे जानते थे कि डॉक्टरनी सीधे-सीधे तो मानेगी नहीं, इसलिए 'मजबूरी' और 'डॉक्टरी फर्ज़' का नाटक रचना पड़ा। और उनका तीर निशाने पर लगा था। शिकार खुद चलकर शिकारी के जाल में फंसा और मजे की बात यह थी कि शिकार को इस जाल में मजा भी आया.
*********

वही रिया नहा-धोकर, एक ताज़ा साड़ी पहनकर डिस्पेंसरी में आकर बैठी।
तभी कम्पाउण्डर सुखिराम चाय लेकर अंदर आया।
"गुड मॉर्निंग मैडम," सुखिराम ने चाय मेज पर रखी, "सुना रात को बहुत बारिश थी, कोई परेशानी तो नहीं हुई?

रिया ने चाय का कप उठाया। उसके होंठों पर एक रहस्यमयी मुस्कान तैर गई। उसे रात का वह मंजर याद आ गया—राम का मुँह में लेना, और रहीम का पीछे से भरना।
उसने सुखिराम को देखा और मन ही मन सोचा—
'आप सही कहते थे सुखिराम जी। इनकी बीमारी वाकई अजीब है, और संक्रामक भी। इतनी संक्रामक कि अब डॉक्टर खुद उस बीमारी की चपेट में आ चुकी है। इनका इलाज करते-करते, मैं खुद मरीज बन गई हूँ... कामवासना की मरीज। और खुशकिस्मती से, इस बीमारी का इलाज और किसी के पास नहीं, इन्हीं गाँव वालों के पास है।’


"नहीं सुखिराम जी," 
रिया ने चाय की चुस्की लेते हुए, अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया जिससे उसकी गर्दन पर पड़ा 'लव-बाइट' (रहीम के दांतों का निशान) छुप जाए,
 "कोई परेशानी नहीं हुई। बल्कि... अब तो मुझे यहाँ का माहौल रास आने लगा है। मुझे लगता है मैं यहाँ अभी लंबा रुकूँगी।"

रिया की आँखों में अब वह शहरी डॉक्टर वाला डर नहीं, बल्कि एक प्यासी औरत की चमक थी, उसे अपने मर्ज़ की दावा मिल गई थी.

सुखिराम अपनी धुन में बड़बड़ाता हुआ बाहर चला गया, और रिया अपनी कुर्सी पर पीछे झुक गई, अपनी अगली 'डोज' का इंतज़ार करते हुए।


समाप्त




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