दोस्तों आपके सामने एक छोटी सी कहानी ले कर आया हूँ.
जो की एक रात की घटना पर आधारित है.
कैसे एक छोटी सी पेशाब की घटना, कितना बढ़ा बदलाव ला सकती है.
चलिए एक सफर पर चलते है.
पेशाब
"क्या आरिफ क्या जरुरत थी इतना पीने की?"
साबी ने अपने लड़खड़ाते पति आरिफ का हाथ पकड़ते हुए बोला
"अरे जान कुछ नहीं हुआ है ये तो मेरा रोज़ का है "
आरिफ ने अपने हाथ को छुड़ाते हुए दिलासा दिया.
साबी और आरिफ पति पत्नी आज अपने दोस्त की किसी पार्टी मे शामिल थे.
ऊंचे घराने के थे तो लाजमी है पार्टी भी अलीशान थी, शाबाब कबाब सब कुछ शामिल था.
इसी माहौल मे आरिफ ने कुछ ज्यादा ही ड्रिंक कर ली थी, हालांकि उसके कहे अनुसार ये समान्य बात थ ी
लेकिन साबी कुछ परेशान थी, उसे जल्दी घर पहुंचना था उसके दो बच्चे घर पे उनकी राह देख रहे होंगे.
हालांकि बच्चे बड़े थे, साबी खुद 40 के पड़ाव मे थी लेकिन कोई माई का लाल ये बात कह नहीं सकता था.
आज पार्टी मे भी साबी सभी के आकर्षन का केंद्र बनी हुई थी.
सिल्क one पीस गाउन मे क्या कहर ढा रही थी ये तो वही जाने जिनके अरमानो पे सांप मंडरा रहे हो.
साबी आज उम्र के 40वे दशक मे थी, लेकिन काया अभी भी कोई 30 साल की युवती की थी.
कसा हुआ बदन, कड़क माध्यम आकर के स्तन जिसकी मादक लकीरें चमकिले गाउन मे साफ देखि जा सकती थी. बाहर को निकली गांड किसी घमंडी पहाड़ की तरह बाहर को निकली शोभा बिखेर रही थी.
आज पार्टी मे सभी मर्दो की नजर इसी खजाने पर थी.
"क्या बात है साबी आज सारे मर्द तुम्हे ही देख रहे है "
कई महिलाओ ने साबी को जैसे तने मारे हो.
औरते खूबसूरत औरतों से जलती ही है.
साबी क्या करती हस के रह जाती.
"ऐसा कुछ नहीं है आप लोग भी ना " हालांकि साबी जानती थी मर्दो की नजर को.
उसका बदन था ही ऐसा, जो देखता जी भर के देखता.
आज पार्टी मे भी ऐसा ही था.
34 के कैसे हुए स्तन अपने पराक्रम पे थे ही ऊपर से क़यामत ये की साबी ने गाउन पहना हुआ था जिसमे उसके नितम्भ साफ झलक पड़ रहे थे.
चलती तो आपस मे रागड खा कर एक कामुक आवाज़ उत्पन कर दे रहे थे.
ना जाने कितने मर्द आज पार्टी मे पानी फैला चुके होंगे.
कितने तो अपनी किस्मत को कोष रहे होंगे " हमें क्यों नहीं मिली ऐसी औरत "
मर्द तो मर्द जलने मे औरते भी कम ना थी.
उनके टोंट साबी भली भांति समझती थी.
कई मर्दो ने आज पार्टी मे इस मौके को भूनना भी चाहा लेकिन कामयाब नहीं हो सके, साबी किसी को भाव देने मे भलाई नहीं समझती थी या फिर उसकी ये पसंद थी ही नहीं.
बिगड़े अमीर शराबी लोग जिन्हे हुश्न की कोई परवाह नहीं.
समय रात 11:30
चलो रवि बहुत समय हो गया बच्चे इंतज़ार कर रहे होंगे, सर्दी का समय है "
साबी लगभग आरिफ को पकडे बाहर लेती चली गई.
करती भी क्या आरिफ दोस्तों के बीच से हट ही नहीं रहा था.
हालांकि साबी ने भी एक दो पैग वोडका के ले लिए थे, बाकि महिलाओ के दबाव मे.
लेकिन नशा कुछ खास नहीं था जबकि वोडका से जिस्म मे कुछ गर्मी थी.
जो की इस सर्दी मे स्लीवलेस पहने साबी के लिए राहत का सबाब था.
दोनों कार तक पहुंच चुके थे.
"आरिफ आप चला लोगे ना कार?" साबी ने अशांका जहिर की.
"अरे बेग़म तुम बैठो, सब चला लूंगा मै "
कुछ ही पलों मे कार हाईवे पर थी.
साबी के चेहरे पे एक अलग ही भाव था ना जाने उसका धयान कहाँ था, उसे बार बार पार्टी के दृश्य ही याद आ रहे थे.
कैसे सब लोग उसे ही घुर रहे थे, कोई बूब्स देखता तो कोई पलट पलट के उसकी हिलती मादक गांड को निहारता
जो की उम्र के साथ और भी मादक और बड़ी हो चली थी.
साबी का जिस्म गरम था, कुछ कुछ वोडका का असर था तो कुछ उन निगाहो का जो उसके जिस्म को भेद रही थी, कपडे फाड़ कर अंदर घुस जाना चाहती थी.
अभी कार कुछ दूर चली थी थी की "उफ्फफ्फ्फ़...... ये रोड " कार के झटको से साबी के नाभि के निचे कुछ हलचल हो रही थी.
जब से पार्टी से निकली थी एक दबाव तो महसूस हो रहा था जो की अब पेशाब का रूप ले चूका था.
हर झटके के साथ लगता जैसे पेशाब की कुछ बुँदे निकल ही जाएगी.
साबी ने आरिफ की तरफ देखा जो की कार चलाने और सामने सड़क पर आंखे जमाए बैठा था.
थोड़ी दूर जाने पे अहसास हुआ की अब सहन कारना मुश्किल है.
"आरिफ ..... आरिफ ..... आरिफ .... कार रोको ना "
साबी ने जैसे याचना की हो.
"क्या हुआ जान अभी पुणे शहर आने मे 25km का फासला है.
"वो बात नहीं है मुझे टॉयलेट आया है "
"रुको थोड़ी देर सुनसान रास्ता है आगे कही ढाबे पे रोकता हु"
आरिफ कार चलाने पर ध्यान दे रहा था.
वो होता है ना दारू पीने के बाद आदमी गाड़ी चलाने मे एक्स्ट्रा ध्यान फूँक देता है रवि की भी यही हालत थी.
"तभी तो कह रही हूँ रोड सुनसान है, जल्दी से कर लुंगी, अब रोकना मुश्किल है "
साबी के सब्र का पेमाना छलक रहा था.
"क्या यार तुम भी..... चरररररर......." करती कार रुक गई."
कार का रुकना था साबी तुरंत गेट खोल दौड़ पड़ी, सड़क सुनसान थी.
क्या देखना था क्या समझना था,
तुरंत सड़क किनारे पहुंची, एक झटके मे गाउन ऊपर किया, चड्डी निचे की और बैठ गई वही सड़क किनारे....
ससससससररररर......... ररररर...... सससससस......
एक तेज़ धार चुत से निकल सड़क किनारे मिट्टी को गीली करती चली गई.
साबी को मानो स्वर्ग मिल गया हो, ऐसी राहत ऐसा सुकून क्या बयान किया जाये इस सुख को.
साबी की आंखे बंद होती चली गई, जिस्म के रोंगटे खड़े होते चले गए.
जैसे जैसे पेशाब बाहर आता गया वैसे ही जिस्म हल्का होता चला गया,
लेकिन जिस्म की गरमहट अभी भी बारकरार थी, ऊपर से ठंडी हवा के झोंके उसकी चुत से होते गांड की दरार को छेड़ते आगे भाग जा रहे थे.
गजब का सुकून था.
साबी ऐसा कुछ जीवन मे पहली बार कर रही थी.
ये पहला मौका था जब वो ऐसे खुले मे मूत रही थी.
समय समय की बात है.
कभी उसकी चुत से निकले अमृत की गवाह उसकी अलीशान महंगी टॉयलेट सीट थी आज ये गिरती मरती सड़क है.
उसी स्थान पर कुछ समय पहले.
"अबे मादरचोद हरिया साले दारू तो ले आया ये, पानी तेरा बाप लाएगा "
"चुप भोसडीके मुझे लगा पानी तू ला रहा है"
हरिया और कालिया पास ही गांव के हरामी अधेड उम्र के आदमी सड़क किनारे बैठे दारू पर बहस कर रहे थे.
दोनों ही बचपन के यार, एक नम्बर के पियक्कड़, बदनाम, मनचंले आदमी.
उम्र के हिसाब से 50वा दशक चल रहा था, लेकिन आज भी वही जवानी बारकरार थी.
ना कभी शादी की ना कोई जिम्मेदारी
बस दारू और लोंड़ियाबाजी से ही इनकी पहचान थी, गांव की औरते इन दोनों से बच के ही चलती थी.
हालांकि गांव और आस पास के इलाके मे इनका दबदबा भरपूर था, कुछ तो दोनों की एकता और कुछ इनके लंड की ताकत.
जी हाँ.... ये दोनों ही किसी राक्षस से कम नहीं थे दीखते मे काले कलूटे लेकिन बदन ऐसा की कोई चट्टान हो.
जिसको चोदते साथ ही चोदते, और जो औरत चुद जाती वो इनकी दीवानी ही हो जाती.
महिलाओ मे लोकप्रिय थे लेकिन गांव के आदमी इन्हे दुश्मन ही मानते थे.
आज भी साले दारू के लिए लड़ रहे थे.
की तभी....
चाररर....... करती एक सफ़ेद कार सड़क पर आ रुकी.
अभी दोनों कुछ समझते ही की...
एक अप्सरा जैसी शहरी औरत जल्दी से कार का गेट खोल भागती हुई सड़क किनारे ही जा बैठी.
ऊपर सड़क उसके जस्ट निचे हरिया कालिया.....
साबी का गाउन ऊपर होता गया, इन दोनों की सांसे हलक मे चढ़ती चली गई.
दोनों के सामने एक शहरी साफ चिकिनी चुत चमक रही थी, अभी दोनों कुछ सोच समझ पाते की ससससरररर....... ररररर..... सससस...... उस अमृत कलश से एक तेज़ धार फुट पड़ी.
"आआआहहहह..... उफ्फ्फफ्फ्फ़....." साबी के मुँह से एक राहत की सांस निकल पड़ी.
सामने ही झड़ी के पीछे हरिया कालिया को जैसे सांप सूंघ गया था, कभी एक दूसरे को देखते तो कभी सामने के दृश्य को.
साबी इन सब से अनजान आंख बंद किये, राहत की सांसे भर रही थी.
साबी को राहत थी लेकिन उन दोनों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.
साबी की चुत से निकले पेशाब की एक एक बून्द सड़क को नहीं उनके जिस्म को गिला कर रही थी.
क्युकी साबी जहा बैठी थी, उसके सामने ही झाड़ी के पार निचे हरिया कालिया दारू पीने बैठे थे.
पेशाब की धार छटक के उन दोनों के जिस्म को भिगो रही थी,
और ये दोनों काम पीपाशु रक्षासो को तो जैसे स्वर्ग का नजारा दिख गया था इसके लिए वो इस अमृत मे भीग जाना चाहते थे.
Contd.....
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