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पेशाब -2

 अपडेट -2


पीछे से कार की हेड लाइट साबी की गोरी गांड को भीगो रही थी, लेकिन सब बातो से बेखबर साबी मूतने का परम आनंद के रही थी.

"उफ्फ्फ्फ़...... ससससस.... स्सीईई...."

जिस्म ने एक झुरझुरी सी ली, रोंगटे खड़े हो गए थे.

तभी साबी के कानो मे एक सरसराहत की आवाज़ पड़ी, आवाज़ का आना था की साबी की आंखे खुल गई.

सामने जो नजारा था उसे देख साबी का पेशाब वही रुक गया, आंखे फटती चली गई, बदन सफ़ेद हो चला.

सामने झाडी से दो काले कलूटे आदमी झाँक रहे थे, उनकी भी आंखे पथरा गई थी.

वो किसी बूत की तरह एकटक चुत रूपी महीन दरार से झरने को बेहता देख रहे थे,

 अपितु कुछ कुछ बुँदे उड़ती हुई उनके चेहरे पे किसी अनमोल मोती की तरफ जमा हो गई थी.


साबी को काटो तो खून नहीं, उसे उठना चाहिए था, भागना चाहिए था लेकिन वो भी जड़ थी जैसे दिल ने काम काटना बंद कर दिया हो, चुत से निकलती पेशाब की धार रुक गई थी बीच मे ही.


लेकिन लेकिन..... ये ख्यान आते ही ना जाने कैसे वो उठ खड़ी हुई, और कार की तरफ बेतहाशा दौड़ लगा दी, काली चड्डी अभी भी घुटनो के बीच ही फ़सी हुई थी.

फिर भी जैसे तैसे वो कार तक जा पहुंची....

हमफ़्फ़्फ़..... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... रवि चलो जल्दी.

अंदर घुसते ही उसके हलक से शब्द फुट पड़े.


"गट... गट.... गट....गुलुप " पानी तो पीने दो बेग़म, इतना क्यों हांफ रही हो कोई भूत देख लिया क्या?


रवि ने पानी की बोत्तल खाली करते हुए कहा.

"वो... वो.... कुछ नहीं जल्दी चलो " साबी बस यही रट लगाए हुई थी,

उसे ये तजुर्बा पहली बार महसूस हुआ था, शर्म ग्लानि से वो मरी जा रही थी, ना जाने कब से वो दो अनजान मर्दो के सामने अपनी चुत उघाड़े, आंख बंद किये मुते जा रही थी.

जैसे ही पेशाब का ख्याल आया तो पेट के निचले हिस्से मे कुलबुलाहत सी मच गई, तेज़ पेशाब को जैसे तैसे रोका था उसने, रोकते सम्भलते भी कुछ बुँदे चुत से रिसती हुई जांघो से होती घुटनो तक जा पहुंची थी.


"खररर...... कहरररर.... खरररर....."

"खच्चर्र्टटर..... खररररर..... खच.... कचम... अरे ये क्या कार स्टार्ट क्यों नहीं हो रही " रवि ने चाभी को मरोड़ते हुए कहा.


साबी अपने मे कही खोई हुई थी.

रवि ने एक कौशिश और की "खररर.... कहरररर.... खच....." अभी तो बढ़िया चल रही थी, अब रवि के माथे पर भी चिंता की लकीरें दौड़ आई थी.


"क्या हुआ चलो ना "

"कहाँ से चालू अब गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही"

"ककककक... कक्क... क्या? क्यों नहीं हो रही?"

साबी के दिल की धड़कन बढ़ती ही जा रही थी,


"तुम थोड़ा कंट्रोल नहीं कर सकती थी?" रवि साबी पर भड़क रहा था.

अब इसमें साबी की भी क्या गलती थी ये तो वो प्रेशर है जो रोके नहीं रुकता.


"क्या हुआ साहब कोई समस्या " एक खार्खरती रोबदार आवाज़ रवि की तरफ से कार मे गूंज गई.

दोनों की नजरें विंडो की तरफ चली गई, साबी की सिटीं पिट्टी तो पहले ही गुम थी, सामने वही चेहरे पा कर रहा सहा जोर भी जाता चला गया, लगता था जैसे जो पेशाब बचा है वो अभी ही निकाल जायेगा.

"तत..... त्तत... तुम " एक घुटी सी आवाज़ साबी के गले से निकली जिसने मुँह तक पहुंचते ही दम तौड़ दिया.

बस आंखे उस के दिल का हाल बयान कर रही थी, जैसे अँधेरी रात मे कोई भूत देख लिया हो.

वही रवि इस सुनसान जगह पर मदद के नाम पर ये आवाज सुन ख़ुश था.

झट से रवि ने अपने तरफ का दरवाजा खोल दिया, बाहर निकल तो हलके पैर लड़खड़ा गए,.

"वो... वो.... कार स्टार्ट नहीं हो रही हिचहह...." रवि ने बाहर निकल देखा वहा एक नहीं दो आदमी थे.

"कोई बात नहीं साब यहाँ अक्सर ऐसा हो जाता है, हम लोग है ना, ये हरिया मै कालिया " हरिया ने दोनों का परिचय तुरंत दे मारा.

जबकि दोनों की नजरें रवि के लड़खड़ाते पैरो पे पडती हुई सीधा कार के अंदर दौड़ गई जहा साबी सहमी सी खुद को समेटे बैठी हुई थी. ना जाने उसे क्या डर था... या फिर शर्म थी उसकी चुत देख ली जाने की शर्म.

"आप अंदर बैठ जाइये साब हम देखते है, कार का बोनट खोलिये " हरिया कार के आगे जा पंहुचा जहा उसका जिस्म कार की हेड लाइट से नहा गया.

एकदम काला, मैली सी बनियान पहना एक देहाती आदमी, जिसकी चौड़ी छाती पर बालो का गुच्छा सा था जो लिस्लिसे पसीने से सरोबर हो रखा था.


"खोलिये साब "

"साबी बटन तुम्हारी तरफ है उसे खींचो " रवि ने साबी को बोल दिया.

साबी जैसे कुछ सुन नहीं रही थी, उसके सामने झाडी वाला सीन अभी भी जस का तस था, झाडी से निकला काला शैतान उसके सामने खड़ा था अब.


"साबी.... साबी..."

"जजननन.... जी... जी..."

"वो बोनट का लिवर खींचो " रवि ने फिर से बात दोहराई

साबी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.


की तभी "रहने दो साब मैडम को क्यों परेशान करते है" साबी की तरफ की विंडो से एक काला मैला हाथ निचे की तरफ सरक गया.

कालिया यहाँ तक पहुंच गया था.

उसका काला हाथ सभी की गोरी जाँघ से रागड़ खाता हुआ लिवर तक जा पंहुचा.

"सससस..... इसस...." एक ठंडी सी लहर ने साबी के जिस्म को और ठंडा कर दिया.

पसीने से भीगा काला गन्दा हाथ साबी की जांघो को गन्दा करता चला गया.


"आप डरिये नहीं मैडम, हम यही पास गांव के लोग है, अभी ठीक कर देंगे "

कालिया ने दिलाशा देते हुए लिवर को झटके से खिंच लिया, एक कैसेली सी गंध पूरी कार मे फ़ैल गई.

इस गंध से रवि अनजान था लेकिन साबी परिचित थी ये उसी के पेशाब की गंध थी जिसमे हरिया कालिया भीगे थे.

अब कालिया भी कार के आगे था बोनट ऊपर हो चूका था.


"अच्छा हुआ ये दो आदमी आ गए, कितने भले होते है गांव के लोग " रवि ने अपना कथन रख दिया.


"मममम... मै डर क्यों रही हूँ, किसी ने कुछ भी तो नहीं किया, गांव के भोले लोग है, मदद करना चाहते है." साबी भी मन ही मन उन दोनों से प्रभावित हुई.

वो सिर्फ शर्मा गई थी, डर गई थी कही लड़ने ना चले आये ये लोग, क्युकी पेशाब करते वक़्त बुँदे उन पर जा छटकी थी.


"उउफ्फ्फ..... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... साबी ने एक गहरी सांस ली क्युकी उसे विश्वास हो चला था की ये दोनों लड़ने नहीं बल्कि मदद के लिए आये है.


लेकिन इस गहमा गहमी मे साबी अभी भी पेशाब के दबाव मे थी वो आधे रास्ते ही उठ भागी थी ऊपर से कालिया के हाथो की रागड़ ने उसके जिस्म मे एक ठंडी परन्तु एक अजीब सी सीहरन पैदा कर दी थी.

वो अपनी जांघो को कस के भींचे हुए बैठी थी.


थोड़ी ही देर बाद

"साब पानी है क्या " कालिया रवि की साइड विंडो पर था

"पप्प... पानी पानी तो था मै पी गया " रवि ने खुद का माथा धुन लिया, जब साबी पेशाब कर वापस आई थी उसी वक़्त वो पानी की लास्ट बून्द डकार रहा था.


"गरम हो गई है साब " कालिया ने ये बात साबी तो देखते हुए कही

"क्या...?"

" साब गाड़ी.... गाड़ी गरम हो गई है, ठंडी करनी पड़ेगी "

कालिया की नजर बराबर साबी पर थी, साबी भी कालिया की बात सुन चिंता मै थी लेकिन उसे कालिया की नजरों मे कुछ खटक रहा था,

कालिया बार बार उसके जिस्म को घूर ले रहा रहा, ऊपर से कालिया के आते ही पेशाब की गंध वापस से कार मे फ़ैल गई.


"आए.... अ... आबब्ब... अब....क्या करेंगे?" रवि गहरी चिंता मे था, बार बार आंखे बंद हो जा रही थी कारण था सर पे चढ़ता नशा,

उसे उम्मीद थी वो जल्द घर जा के लुढ़क जायेगा लेकिन अब उसकी जबान लड़खड़ा रही थी, उसके दिमाग़ मे नशा हावी हो रहा था,

ऊपर से बाहर से आती ठंडी हवा उसके दिमाग़ को नींद की खाई मे धकेल रही थी.

"हम कुछ करते है आप आइये बाहर " कालिया ने रवि के साइड का दरवाजा खोल दिया

रवि बाहर उतरने को ही हुआ की धड़द्दाम्म्म्म.... से लड़खड़ा के गिर पड़ा.

"रावववववईई......"

"साब सससब..... साब सम्भालिये " हरिया भी आवाज़ सुन भागता हुआ आगे से साइड मे आ गया.

"लगता है साब ने ज्यादा पी रखी है"

"नहीं.... नहीं...मै ठीक हूँ " रवि ने खुद को संभालने की पूरी कौशिश की.

लेकिन फिर वही उसके पैर जवाब दे रहे थे नशा हावी होता जा रहा था.

अक्सर दारू पिए इंसान के साथ ऐसा ही होता है, जब तक बाइक कार पर होता है ठीक चला लेता है लेकिन जैसे ही रुकी की उसका जिस्म धोखा दे देता है, रवि के साथ भी ऐसा ही था.

यहाँ साबी की चिंताये बढ़ती जा रही थी. एक के बाद एक मुसीबत आती जा रही थी.

"आ.. अआप.... ठीक तो है ना " साबी कार के अंदर ही आगे को झुक गई जैसे गिरते रवि को पकड़ने पहुंची हो.

इस चाहत मे उसका जिस्म रवि की सीट पर लेट सा गया, गेट खुलने से अंदर की लाइट जल उठी थी.

एक दूधिया रौशनी ने साबी का गोरा सफ़ेद चिकना जिस्म नहा उठा.

गाउन मे से बूब्स बगावत पर उतर आये थे, आधे से ज्यादा बाहर छलक आये, ऊपर से गाउन पहले ही जाँघ तक ऊपर था जो इस कदर चढ़ गया की दोनों जांघो के बीच कुछ दुरी ही बची थी वरना चिकनी चुत फिर से उजागर हो जाती.

बाहर रवि को संभाले हरिया कालिया के होश उड़े हुए थे,

रवि उनके जिस्म पर टिका हुआ था लेकिन दोनों की आंखे अंदर साबी के जिस्म पर थी.

कभी गोरे स्तन पर जाती तो कभी जांघो से होती हुई घुटनो पर टिक जाती जहा अभी भी साबी की काली कच्ची अटकी हुई थी,

 इन सब घटनाओ मे उसका ध्यान ही नहीं रहा की उसने उठते वक़्त पैंटी ऊपर नहीं की थी बस भाग ली थी.

साबी को जैसे ही इस बात का अहसास हुआ वो सकपका गई, निचे नजरें गई तो उसकी पैंटी अभी भी घुटनो पर थी.

"उफ्फ्फ.... ये..... ये..... साबी झट से सीधी हो गई, उसके पास समय नहीं था पैंटी ऊपर चढ़ाने का, उसने झट से पैंटी को निचे कर दिया, पैंटी उसके तलवे चाट रही थी.

बाहर रवि को साहरा देते हुए दोनों मुस्टडो ने कार की पिछली सीट पर लेटा दिया था, अब तक साबी भी बाहर आ चुकी थी.

उसके चेहरे पर चिंता और परेशानी साफ देखी जा सकती थी.

"आप चिंता ना करे मैडम हम कुछ करते है " हरिया कालिया वापस कार के आगे बोनट मे मुँह घुसेड़े खड़े थे.

"क्या हुआ है "

अचानक से साबी की आवाज ने उनका ध्यान भंग कर दिया, साबी कोतुहल वंश वहा चली आई थी.

"मैडम कार गरम हो गई है " हरिया ने रौशनी मे चमकती साबी के जिस्म पर आंखे गुमा ली.

क्या दिख रही थी, सुनसान अँधेरी सड़क पर कार की रौशनी उसके जिस्म को चमका रही थी.

सिल्क गाउन मे कसा हुआ ताराशा हुआ जिस्म, एक एक उठाव चढ़ाव साफ महसूस किये जा सकते थे.

लगभग हर अंग अपनी मादकता बिखेर रहा था.

"तो फिर अब?" साबी की चिंता जायज थी.

"पानी डालना पड़ेगा, पानी से अच्छी अच्छी गरम चीज ठंडी हो जाती है " कालिया ने साबी के कमर के नीचे बने टाइट उभार को देखते हुए कहा.

"पानी कहाँ से आएगा "

"यही तो चिंता है, आस पास कोई तालाब हैंडपम्प भी नहीं है " हरिया ने ऐसे मुँह बनाया जैसे उसका बाप मरा हो अभी.


"वैसे एक तरीका है हरिया "

"क्या "

"क्यों ना हम लोग इसके रेडिएटर मे पेशाब कर दे, इस से इंजन ठंडा हो जायेगा, कम से कम मैडम घर तो पहुंच जाएगी " कालिया का हाथ पाजामे के अगले हिस्से को ऐसे टटोल रहा था जैसे चेक कर रहा हो पानी है या नहीं.

साबी को तो इतना सुनना था की उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई.

"पेशाब नाम सुन जैसे उसके बदन मे एक झुरझुरी सी दौड़ गई, ऐसे शब्दों का इस्तेमाल वो नहीं किया करती थी.

"क्यों मैडम क्या कहती हो?" हरिया कालिया ने साबी की तरफ देख दाँत निपोर दिए.


आईडिया अतरंगी था.

तो क्या साबी इस आईडिया को मानेगी?

आपको क्या लगता है?

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