अपडेट -4
अदिति बेटा तू बहुत अच्छी है!’ मैंने कहा और उसका गाल चूम लिया।
‘अच्छा? वो कैसे पापा जी?’ वो मेरी आँखों में आँखें डाल के बोली और उसकी बाहें मेरे इर्द गिर्द और कस गईं।‘बताऊंगा, पहले यह बता कि जो रिश्ता कल अनजाने में बन गया उसमें तुझे कुछ आनन्द आया था या नहीं?’‘कैसे बताऊँ पापाजी, वैसा स्वर्गिक सुख मुझे कभी नहीं मिला! मेरा तन मुझे इतना आनन्द भी दे सकता है मैंने कभी कल्पना ही नहीं की थी इसकी!’ वो आँखें झुका कर धीमे से बोली।
‘तो फिर वही रिश्ता हमारे बीच फिर से बन सकता है न?’‘मैं क्या बोलूं पापा जी? कल तो गलती से गलती हो गई मेरे से लेकिन बहुत रिस्क है इसमें! कभी बात खुल गई तो मैं मर ही जाऊँगी।’
‘सिर्फ एक बार और मिल ले बेटा, दो तीन दिन बाद तो अभिनव की छुट्टियाँ ख़त्म हो जायेंगी फिर तू उसके साथ चली ही जायेगी न!’
‘पापा जी अब मैं आपको मना भी कैसे कर सकती हूँ आपको उस काम के लिए, जैसे आप चाहो!’ वो सर झुका कर धीमे स्वर में बोली।‘थैंक यू बेटा!’ मैंने कहा और फिर से बहूरानी को चूम लिया।
‘पापा जी, अब बताओ मैं कैसे अच्छी लगी थी आपको?’ अब वो थोड़ा इठला कर बोली।‘मेरे कहने का मतलब था तेरा वो नया रूप जो कल मैंने देखा, कितनी सजीली रसीली, मस्त मदमस्त है तू!’ मैंने कहा और उसकी पीठ सहलाते हुए उसकी ब्रा का हुक छेड़ने लगा।
‘हुंम्म, ऐसा क्या नया लगा मुझमें जो मम्मी जी में नहीं है?’ वो मेरे सीने में अपना मुंह छिपाकर बोली।‘तेरा ये जवान जिस्म ये भरे भरे बूब्स और…’ मैंने कहा और एक हाथ उसके ब्लाउज में घुसा कर दूध को मुट्ठी में भर लिया।‘ और क्या पापा जी?’‘और तेरी ये…’ मैंने वाक्य को अधूरा छोड़ कर साड़ी के ऊपर से ही उसकी चूत को सहलाया। ‘ये क्या?’‘तुम्हारी प्यारी रसीली कसी हुई टाइट चूत!’ मैं उसके कान में फुसफुसाया।
‘धत्त…. कैसे गन्दे शब्द बोलते हो आप? मुझे जाने दो अब!’ वो बोली और मुझसे छूटने का उपक्रम करने लगी।लेकिन मैंने उसे जोर से चिपटा लिया और उसके होठों पर होंठ रख दिए।
उसने कुछ देर अपने होंठ मुझे चूसने दिए फिर छिटक कर अलग हो गई- कोई आ जाएगा पापा जी, मैं जाती हूँ, आप आज रात को भी वहीं छत पर कोठरी में ही सोना!’ वो कहती हुई भाग गई।
मेरा मन अब प्रफुल्लित हो गया था और सारी चिन्ताएं मिट गईं थी।दोपहर के तीन बजने वाले थे, पिछली रात सो न पाने की वजह से एक नींद लेने का मन कर रहा था।
सो कर उठा तो टाइम पांच से ऊपर ही हो गया था, अब मन में अजीब सी उमंग और युवाओं जैसा उत्साह और जोश रगों में ठाठें मार रहा था।वाशरूम में जाकर अपनी झांटें कैंची से कुतर दीं, झांटों के ठूंठ चूत के दाने से रगड़ कर संगिनी को एक अलग ही आनन्द देते हैं और मैं वही मज़ा अपनी बहूरानी की चूत को देना चाहता था।
और फिर अच्छे से नहा धोकर तैयार हो गया।
शाम घिरने लगी थी तो मैं मेहमानों के चाय पानी, डिनर का इंतजाम करने में व्यस्त हो गया। इसी बीच ऊपर जाकर कोठरी में एक बार झाँकने का मन हुआ। फिर ध्यान आया कि वहाँ का बल्ब तो कब का फ्यूज है; कुछ सोच कर मन ही मन मुस्कुराया और एक तेज रोशनी वाला नया एल ई डी बल्ब ले जाकर वहाँ लगा दिया।
कोठरी तेज रोशनी में नहा गई।
देखा तो चकित रह गया, कोई आकर वहाँ की साफ़ सफाई कर गया था, तीन मोटे मोटे गद्दे का बिस्तर बिछा था जिस पर धुली हुई बेडशीट बिछी थी और तीन चार मोटे मोटे तकिये और एक सफ़ेद नेपकिन भी बिस्तर पर पड़ा था।
यह सब देख मैं मन ही मन मुस्कुराया कि कितनी सुघड़ और चतुर है मेरी बहूरानी!
अँधेरा घिरते ही अभिनव एंड पार्टी ने कल वाला बियर और ड्रिंक्स का दौर शुरू कर दिया, मैंने भी कोई टोका टाकी करना मुनासिब नहीं समझा, मेरे लिए तो ये और भी अच्छी बात थी कि अब बेटे की तरफ से भी कोई चिन्ता नहीं रहेगी।
सबका खाना पीना होते होते टाइम ग्यारह से ऊपर का ही हो गया। अभिनव एंड पार्टी कल रात की ही तरह मिश्रा जी के यहाँ शिफ्ट हो गई और बाकी मेहमान भी कल ही की तरह एडजस्ट हो गये।
मेरी आँखें अदिति को खोज रहीं थीं लेकिन पट्ठी कहीं नज़र ही नहीं आई।
मैंने भी अपनी ऊपर वाली कोठरी की राह ली और जा कर लेट गया।‘अदिति आयेगी?’ यह प्रश्न मन में उठा साथ में मैंने अपनी चड्डी में हाथ घुसा के लंड को सहलाया।
टाइम ग्यारह से ज्यादा हो गया, मैं ऊपर वाली कोठरी में जाकर लेट गया।‘अदिति आएगी?’ यह प्रश्न मन में उठा, साथ में मैंने अपनी चड्डी में हाथ घुसा कर लंड को सहलाया।
‘जरूर आयेगी… जब उसे कल की चुदाई बार बार याद आयेगी और उसकी चूत में सुरसुरी उठेगी तो आना ही पड़ेगा!’ मेरे मन ने जैसे मुझे जवाब दिया।
‘वो घर की बहू है, उसे भी तो तमाम जिम्मेवारियाँ निभानी हैं, उसके मायके से भी कितनी लेडीज आई हुईं हैं, सबको एंटरटेन करना पड़ रहा होगा।’ यही सब सोचते सोचते मैं सोने की कोशिश करने लगा।
पर नींद कहाँ, आ भी कैसे सकती थी!यूं ही ऊंघते ऊँघते पता नहीं कितनी देर बीत गई, फिर किसी की धीमी पदचाप सुनाई दी, दरवाजा धीरे से खुला कोई भीतर घुसा और दरवाजा बंद कर दिया।
उस नीम अँधेरे में मैंने अदिति को उसके जिस्म से उठती परफ्यूम की सुगंध से पहचाना! हाँ वही थी!वो चुपके से आकर मेरे बगल में लेट गई।
‘पापा जी. सो गये क्या?’ वो धीमे से फुसफुसाई।‘नहीं, बेटा. तुम्हारा ही इंतज़ार था!’ मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपने से सटा लिया।‘मेरा इंतज़ार क्यूँ? मैंने यहाँ आने को थोड़े ही बोला था।’ बहू रानी मेरे बालों में उँगलियों से कंघी करती हुई बोली।‘फिर भी मुझे पता था कि तुम आओगी, आईं या नहीं?’ कहते हुए मैंने उसके दोनों गाल बारी बारी से चूम लिए।
‘पापाजी, वो तो नीचे सोने की जगह ही कहीं नहीं मिली तो आ गई!’ वो बोली और मेरी बांह में चिकोटी काटी।बदले में मैंने उसके दोनों मम्मे दबोच लिए और उसके होंठों का रस पीने लगा, वो भी मेरा साथ देने लगी और चुम्बनों का दौर चल पड़ा।
कभी मेरी जीभ उसके मुंह में कभी उसकी मेरे मुंह में… कितना सरस… कितना मीठा मुंह था बहूरानी का! बताना मुश्किल है। ‘अदिति बेटा!’‘हाँ पापा जी!’‘आज मैं तुझे जी भर के प्यार करना चाहता हूँ।’‘तो कर लीजिये न अपनी मनमानी, मैं रोकूंगी थोड़े ही!’
‘मैं लाइट जलाता हूँ, पहले तो तेरा हुस्न जी भर के देखूंगा!’‘नहीं पापा जी, लाइट नहीं. कल की तरह अँधेरे में ही करो।’
‘मान जा न… मैं तुझे जी भर के देखना चाहता हूँ आज!’‘नहीं, पापा जी, मैं अपना बदन कैसे दिखाऊं आपको? बहुत शर्म आ रही है।’
वो मना करती रही लेकिन मैं नहीं माना और उठ कर बत्ती जला दी, तेज रोशनी कोठरी में फैल गई और बहूरानी अपने घुटने मोड़ के सर झुका के लाज की गठरी बन गई।मैं उसके बगल में लेट गया और उसे अपनी ओर खींच लिया वो लुढ़क कर मेरे सीने से आ लगी।
बहूरानी ने कपड़े बदल लिए थे और अब वो सलवार कुर्ता पहने हुए थी और मम्मों पर दुपट्टा पड़ा हुआ था।
सबसे पहले मैंने उसका दुपट्टा उससे अलग किया, उसकी गहरी क्लीवेज यानि वक्ष रेखा नुमायां हो गई। गोरे गोरे गदराये उरोजों का मिलन स्थल कैसी रमणीक घाटी के जैसा नजारा पेश करता है।मैंने बरबस ही अपना मुंह वहाँ छिपा लिया और दोनों कपोतों को चूमने लगा, उन्हें धीरे धीरे दबाने मसलने लगा, भीतर हाथ घुसा कर स्तनों की घुण्डी चुटकी में मसलने लगा।
ऐसे करते ही बहूरानी की साँसें भारी हो गईं।
फिर उसके बदन को बाहों में भर कर मैं उस पर चढ़ गया उसके चेहरे पर चुम्बनों की बरसात कर दी। उसने आंखें खोल कर एक बार मेरी तरफ देखा फिर लाज से उसका मुख लाल पड़ गया। गले को चूमते ही उसने अपनी बाहें मेरे गले में पिरो दीं और होंठ से होंठ मिला दिए।
बहूरानी का नंगा जिस्म
फिर मैं बहूरानी को कुर्ता उतारने को मनाने लगा, बड़ी मुश्किल से उसने मुझे कुर्ता उतारने दिया।कुर्ता के उतरते ही मैंने उसकी सलवार का नाड़ा एक झटके में खोल दिया और उसे भी खींच के एक तरफ फेंक दिया। ऐसा करते ही बहू रानी ने अपना मुंह हथेलियों से छिपा लिया लेकिन मैंने दोनों कलाइयाँ पकड़ कर अलग कर दीं और उसका जिस्म निहारने लगा.
बहूरानी अब सिर्फ ब्रेजरी और पैंटी में मेरे सामने लेटी थी। ऐसा क़यामत ढाने वाला हुस्न तो मैंने सिर्फ फिल्मों में ही देखा था, साक्षात रति देवी की प्रतिमूर्ति थी वो तो!
मेरे यूँ देखने से अदिति ने अपनी आँखें मूंद लीं और उसका चेहरा आरक्त हो गया।उसके काले काले घने बालों के चोटी भी मैंने खोल दी और उसके बालों को यूं ही छितरा दिया, घने बादलों के बीच गुलाबी चाँद सा खिल उठा उसका चेहरा!
हल्के गुलाबी रंग की डिजाइनर ब्रा पैंटी में बहूरानी का हुस्न बेमिसाल लग रहा था। ब्रा में छिपे बड़े बड़े बूब्स उसकी साँसों के उतार चढ़ाव के साथ उठ बैठ रहे थे और पैंटी के ऊपर से दिख रहा उसकी चूत का उभरा हुआ त्रिभुज जिसके मध्य में त्रिभुज को विभाजित करती उसकी चूत की दरार की लाइन का मामूली सा अहसास हो रहा था।
साढ़े पांच फुट का कद, सुतवां बदन, न पतला न मोटा, जहाँ जितनी मोटाई गहराई अपेक्षित होती है बिल्कुल वैसा ही सांचे में ढला बदन, चिकनी मांसल जांघें और उनके बीच बसी वो सुख की खान!
जैसे कई दिनों का भूखा खाने पर टूट पड़ता है, वैसे ही मेरी हालत हो रही थी कि जल्दी से बहूरानी की चड्डी भी उतार फेंकू और उसकी टाँगें अपने कंधों पे रख के अपने मूसल जैसे लंड को एक ही झटके में उसकी चूत में पेल दूं!
लेकिन नहीं, अगर कोई पैसे से खरीदी गई रंडी वेश्या रही होती तो जरूर मैं उसे वैसी ही बेदर्दी से चोदता लेकिन अपनी बहूरानी की तो बड़े प्यार और एहतियात से लेने का मन था मेरा!
फिर मैंने अपने कपड़े भी उतार फेंके और पूरा नंगा हो गया, मेरा लंड तो पहले ही बहूरानी की छिपी चूत देखकर फनफना उठा था। मैं नंगा ही बहूरानी के ऊपर चढ़ गया और उसे चूमने काटने लगा।बहूरानी का बदन भी अब गवाही दे रहा था कि वो मस्ता गई है लेकिन लाज की मारी अभी भी आँखें मूंदें पड़ी थी। मैंने उसकी पीठ के नीचे हाथ ले जा कर ब्रेजरी का हुक खोल दिया और उसके कन्धों के ऊपर से स्ट्रेप्स पकड़ कर ब्रा का खींच लिए!
वाऊ… 34 इंची ब्रा मेरे हाथ में थी अदिति के नग्न स्तन का जोड़ा मुझे एक क्षण को दिखा पर उसने तुरन्त अपनी बाहें अपने मम्मों पर कस दीं।
‘अदिति बेटा, देखने दे ना!’ मैंने कहा।‘ऊं हूं…’ उसके मुंह से निकला और वो पलट के लेट गई। मैं भी उसकी नंगी पीठ पर लेट गया और उसकी गर्दन चूमने लगा, नीचे हाथ डाल कर उसके नंगे बूब्स अपनी मुट्ठियों में भर लिए और उन्हें मसलने लगा।
उधर मेरा लंड उसकी उसकी जाँघों के बीच रगड़ रहा था और उसके मांसल कोमल नितम्बों का स्पर्श मुझे बड़ा ही प्यारा लग रहा था, तभी सोच लिया था कि बहू की गांड भी एक बार जरूर मारूंगा आज!
उसकी गुदाज सपाट पीठ को चूमते चूमते मैं नीचे की तरफ उतरने लगा. उसके जिस्म से उठती वो मादक भीनी भीनी सी महक एक अजीब सा नशा दे रही थी।
उसकी कमर को चाटते चूमते मैंने उसकी पैंटी में अपनी उँगलियाँ फंसा दीं और उसे नीचे खिसकाना चाहा, लेकिन तभी बहूरानी पलट कर चित हो गई।
‘पापाजी, मुझे तो अब नींद आ रही है आप तो बत्ती बुझा दो अब और मुझे सोने दो!’ बहूरानी बड़े ही बेचैन स्वर में बोली।‘अभी से कहाँ सोओगी बेटा जी. इन पलों का मज़ा लो, ये क्षण जीवन में फिर कभी नहीं आयेंगे।’ मैंने कहा और उसका एक मम्मा मुंह में लेकर चूसने लगा।
बहू रानी का शरीर शिथिल पड़ने लगा था और वो गहरी गहरी साँसें भरने लगी थी। मतलब साफ़ था कि अब वो चुदास के मारे बेचैन होने लगी थी उसकी पैंटी के ऊपर की नमी गवाही दे रही थी कि उसकी चूत अब पनिया गई है।
फिर मैं उठ कर बैठ गया और उसके पैर की अंगुलियाँ और तलवे जीभ से चाटने लगा। मेरा ऐसे करते ही बहूरानी अपना सर दायें बाएं झटकने लगी और अपने बूब्स खुद अपने ही हाथों में भर के दबाने लगी।
जैसे ही मैंने उसकी पिंडलियों को चाटते चाटते चूम चूम के जाँघों को चाटना शुरू किया, वो आपे से बाहर हो गई और अपनी कमर उछालने लगी।
बहूरानी की नंगी चूत
अब बहूरानी की पैंटी उतारने का सही समय आ गया था, मैंने उसकी पैंटी को उतारना शुरू किया।बहूरानी ने झट से अपनी कमर ऊपर उठा दी जैसे वो खुद भी यही चाह रही थी।
बहूरानी की गीली पैंटी उसकी चूत से चिपटी हुई सी थी उसके उतरते ही उसकी नंगी चूत मेरे सामने थी।कल जब मैंने उसे चोदा था तो उस पर झांटें उगी थी पर आज वो एकदम चिकनी थी।
‘वाओ! क्या बात है!’ अचानक मेरे मुंह से निकला।‘क्या हुआ पापा जी, चौंक क्यों गये?’ अदिति मुस्कुरा कर बोली।
‘अदिति बेटा कल तो यहाँ घना जंगल था? और आज मैदान सफाचट कैसे हो गया?’ मैंने उसकी चूत को सहलाते हुए पूछा।‘मुझे क्या पता कौन चर गया पूरी घास? मैं तो अपने काम में बिजी थी सारा दिन!’ वो हंस कर बोली।
‘अभी देखना मैं इसमें अपना हल चला के इसे जोत देता हूं और बीज भी बो देता हूं फिर देखना कितनी मस्त फसल उगती है।’ मैंने कहा।और उसकी चूत में उंगली घुसा दी।
‘उई माँ…उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ वो बोली और अपनी टाँगें ऊपर उठा के मोड़ लीं।
बहूरानी के बदन की गोरी गुलाबी जाँघों के बीच वो सांवली सी गद्देदार फूली हुई चूत कितनी मनोहर लग रही थी, चूत के ऊपर बाएं होंठ पर गहरा काला तिल था जो उसे और भी सेक्सी बना रहा था।
Contd....
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