अपडेट-3
मैं चोरों की तरह दबे पांव नीचे उतरा और गद्दों के ढेर में से गद्दा तकिया निकाल मेहमानों के बीच बिछा कर लेट गया। मन में तरह तरह की आशंकाएँ और तनाव था। बहूरानी को चोदने के बाद मुझे कोई पछतावा तो नहीं था क्योंकि मैंने वैसा कभी नहीं चाहा था जो कुछ हुआ वो परिस्थितिवश ही हुआ था, हाँ मुझे अफ़सोस जरूर हो रहा था उस बात पर!
सोने के प्रयास में उनींदा सा जाग रहा था, कभी नींद का झोंका सा आता लेकिन नींद उड़ जाती।
रात की चुदाई ने मुझे भरपूर मज़ा दिया था, बहूरानी के जवान जिस्म का वो आलिंगन, उसके भरे भरे मुलायम से मम्मे और उसकी वो कचोरी सी फूली हुई नर्म गर्म टाइट चूत और उसका वो कमर उठा उठा के मेरा लंड लीलना सब कुछ मुझमें मादक उत्तेजना फिर से भरने लगा।
लेकिन मैंने उन विचारों से जैसे तैसे ध्यान हटाया और अपने बेटे अभिनव के बारे में सोचने लगा।
मेरा पुत्र अभिनव कहाँ था? बहूरानी के साथ चूत चुदाई का प्रोग्राम फिक्स करने के बाद वो क्यों नहीं गया ऊपर कोठरी में?
इतना मुझे विश्वास था कि अभिनव ऊपर कोठरी में नहीं गया था क्योंकि अंधेरी कोठरी में मैंने बिखरे सामन को खिसका के लेटने लायक जगह बनाई थी और वहाँ कोई ऐसा चिह्न नहीं था कि कोई वहाँ गया था!
फिर कहाँ था अभिनव?
दूसरा टेंशन मेरे दिमाग में यह था कि बहूरानी को क्या सचमुच पता नहीं चल पाया था कि वो किस से चुद गई थी?
और अगर अदिति ने अभिनव से रात की चुदाई के आनन्द के बारे में बात छेड़ी तो भेद खुल ही गया होगा!
अगर अभिनव ही पहले अदिति को यह बता दे कि वो किसी कारणवश नहीं मिल पाया था तो अदिति भी कुछ नहीं बताने वाली अभिनव को!
लेकिन फिर अदिति के मन में यह चिंता सताएगी कि उसके पति ने नहीं तो फिर उसे अंधेरे में किसने चोद डाला? और उससे ज्यादा चिन्ता उसे इस बात की हो जायेगी कि चोदने वाला तो उसे पहचानता है कि वो किसे चोद रहा है लेकिन वह चोदने वाले को नहीं पहचान सकी!
अब मेहमानों से भरे घर में कई सारे आदमी हैं कौन होगा वो… और अब वो उसे दिन में देख के कैसे मन ही मन खुश हो रहा होगा… वो कैसे सबके सामने आंख उठा कर चल पाएगी??
इत्यादि इत्यादि…
इन्ही चिंताओं के कारण सो जाना संभव ही नहीं हो पाया, मैं सुबह जल्दी ही पांच बजे उठ गया और नित्य की तरह फ्रेश होकर मोर्निंग
वाक को निकल गया।
लौटकर रोज की तरह स्नान ध्यान करते करते सात बज गये, फिर मैंने अभिनव की तलाश करने का निश्चय किया कि वो कहाँ था।
तभी मुझे रानी आती दिखाई दी, उसे देखते ही मेरे मन में किसी चोर के जैसा डर लगा, आखिर मुझे ज़िन्दगी में पहली बार अपनी बीवी से बेवफाई करनी पड़ी थी।
‘अरे बेगम साहिबा, कुछ चाय वाय पिलवा दे यार, कब से इंतजार में बैठा हूँ।’ प्रत्यक्षतः मैंने मुस्कुराते हुए रानी से चाय की फरमाइश की।
‘चाय अदिति बना रही है, अभी लाती ही होगी।’ रानी बोली।
‘अच्छा, और अपने साहबजादे कहाँ हैं? सोकर उठा या नहीं वो?’ मैंने अभिनव के बारे में पूछा।
‘अभी नहीं उठा, रात को देर तक सबका पीना पिलाना होता रहा, फिर सब लोग खाना खा के मिश्रा जी के यहाँ सोने चले गये थे, वहीं सो रहा होगा अभी!’ रानी बोली।
‘हम्म्म्म…’ तो ये बात थी। शादी में अभिनव की उमर के कई रिश्तेदार भी आये थे और ये सब ड्रिंक बियर वगैरह का शौक तो शादी ब्याह में चलता ही रहता है और जिन मिश्रा जी का जिक्र यहाँ हुआ वो मेरे पड़ोसी हैं, उनके यहाँ के दो कमरे हमने खाली करवा लिए थे मेहमानो के लिऐ
तो अब तस्वीर कुछ साफ़ हो गई थी कि अभिनव ने बहू अदिति से चुदाई का प्रोग्राम तो बनाया लेकिन वो रिश्तेदारों के साथ ड्रिंक पार्टी करने लगा और फिर बगल के मकान में जाकर सो गया।
अब ऐसे में उसका अदिति से मिलने जाने का सवाल ही नहीं उठता।
तो क्या अदिति को भी पता चल चुका होगा अब तक कि उसका पति अभी तक मिश्रा जी के यहाँ सो रहा है? यह स्वाभाविक सा प्रश्न मेरे भीतर से उठा।
लेकिन मैं निश्चिन्त नहीं हो पाया… पर मन कुछ हल्का हो गया था और स्वस्थ तरीके से सोचने लगा था।
तभी मन में विचार कौंधा कि अगर अदिति को यह बात पता लग चुकी है कि अभिनव रात में कहीं और सोया था तो उसके चेहरे पर भय और घबराहट झलकनी चाहिए क्योंकि वो अभी अपने चोदने वाले से अनजान है।
यह गुणा भाग दिमाग में आते ही मेरा मन हल्का हो गया; तभी अदिति चाय लाती हुई दिखी।
नहाई धोई बहूरानी बहुत उजली उजली सी, खिली खिली सी लग रही थी, ज़िन्दगी में पहली बार मैंने उसकी रूपराशि को, उसके मदमस्त यौवन को, उसके उत्तेजक कामुक सौन्दर्य को नज़र भर कर निहारा।
साढ़े पांच फुट की ऊँचाई लिए तना हुआ गोरा गुलाबी जिस्म, गोल मासूम सा मनमोहक चेहरा, भरा भरा निचला होंठ जिससे शहद जैसा रस टपकने को ही था; यही होंठ तो कल मेरे लंड को प्यार से चूम रहे थे, चूस रहे थे।
चटख हरे रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में उसका गोरा गुलाबी तन अलग ही छटा बिखेर रहा था, तिस पर उसके हाथों में रची सुर्ख लाल मेहंदी, कलाई गले कानों में झिलमिलाते सोने के गहनें; उसके ब्लाउज पर उभरे हुए उसके स्तनों के मदमस्त उभार, गले में पड़ा मंगलसूत्र गले के नीचे बनी स्तनों की घाटी में जा छुपा था।
हाथों में चाय की ट्रे थामे वो गजगामिनी अपने कजरारे नयन झुकाये धीरे धीरे मेरी ओर चली आ रही थी, मेरी नज़र रह रह कर उसके वक्ष के उभार निहारती और फिर उसकी जांघों के मध्य जा कर ठहर जाती; वहीं तो उसकी वो टाइट कसी हुई चूत छिपी थी जहाँ अब से कोई पांच छः घंटे पहले मेरा लंड अन्दर बाहर हो रहा था और वो उछल उछल कर उसे फाड़ डालने की जिद कर रही थी।
वो चुदाई याद आते ही मेरे लंड ने कड़क होकर ठुमका सा लगाया उम्म्ह… अहह… हय… याह… जैसे फिर से वही चूत दिलवाने की जिद कर रहा हो।
क्या वो ही आनन्द फिर से मिल सकता है मुझे? औरत जब एक बार किसी परपुरुष से चुद जाए और चरमसुख भोग ले तो दुबारा उसी पुरुष से चुदवाने की चाह उसके मन में हमेशा बनी रहती है, इशारा करने भर की देर है और वो तुरन्त राजी हो जायेगी ऐसा मेरा विश्वास था।
और लंड के मुंह से जब एक बार पराई चूत का रस लग जाए तो वो उसी चूत में बार बार डुबकी लगाना चाहता है।
जीवन भर की तपस्या जब एक बार भंग हो ही गई तो अब क्या आदर्शवादी बने रहना? क्यों न नई चूत का मज़ा बार बार लिया जाए! आखिर घर में ही तो है!
ऐसे न जाने कितने कुत्सित कामुक विचार बहूरानी का रूप देखते ही मेरे मन में घिर आये।
छीः… कैसे गन्दे ख्याल मेरे मन में आने लगे थे, मैंने उन्हें तुरन्त झटक दिया।
बहूरानी के माथे पर पड़ीं चिन्ता की लकीरें भी मैंने देखीं तो मुझे लगा कि वो किसी न किसी टेंशन में जरूर है, हो सकता है उसे रात की चुदाई की बातें याद आते आते कुछ शक हुआ हो, वैसे भी मेरे लंड का आकार प्रकार उसे चकित तो कर ही रहा था। शायद उत्तेजना वश वो मुझे अपना पति ही समझती रही होगी और बाद में स्वस्थ चिन्तन करने पर उसका शक मजबूत हुआ हो?
जो भी कारण रहा हो, पर मुझे वो थोड़ी सी एब्नार्मल / असामान्य लग रही थी।
‘नमस्ते पापा जी, लीजिये आपकी चाय!’ बहू रानी हमेशा की तरह आत्मीयता से मेरे चरण स्पर्श कर बोली।
‘सदा खुश रहो अदिति बेटा!’ मैंने भी सदा की तरह उसके सर को छू कर उसे आशीर्वाद दिया और चाय सिप करने लगा।
जल्दी ही मुझे यह ख्याल आया कि अभी कुछ देर बाद ही अदिति को यह बात पता चलनी ही है कि अभिनव रात भर कहाँ था, फिर उसके मन मस्तिष्क पर क्या क्या गुजरेगी… उसे तो सारे के सारे पुरुष रिश्तेदार अपने चोदू ही नज़र आयेंगे कि ना जाने पिछली रात को किसका लंड उसकी चूत में आ जा रहा था।
कितना तनाव होगा बेचारी को! वो तो किसी से भी नज़र नहीं मिला पाएगी।
ऐसे विचार आते आते मैं खुद टेंशन में आ गया क्योंकि उस बदहवास हालत में अपनी बहूरानी को देखना मुझे कतई गंवारा नहीं था; ऐसे तो बेचारी का न जाने क्या हाल हो जाएगा।
अब जल्द से जल्द मुझे ही कोई निर्णय लेना था तो चाय पीकर मैंने अदिति को आवाज लगाई।
आई पापा!’ वो बोली और मेरे सामने आ खड़ी हुई।‘देखो बेटा, जरा अभिनव को फोन तो लगा और बुला उसे, कुछ काम है उससे; वो कल रातभर से बगल वाले मिश्रा जी के यहाँ और रिश्तेदारों के साथ सो रहा है।’
मैंने ‘रात भर’ शब्द थोड़ा जोर देकर बोला।
मेरी बात सुनते ही अदिति बहू रानी के चेहरे का रंग उड़ गया और अब वो चिंतित और घबराई सी लगने लगी।‘अभी बुलाती हूँ।’ वो बोली और तेज तेज क़दमों से चलती हुई दूसरे कमरे में चली गई।
मेरा उद्देश्य पूरा हो गया था। देर सवेर तो उसे यह बात पता चलना ही थी कि उसका पति रात को कहीं और सो रहा था। फिर यह समझने में उसे क्या देर लगती कि वो कल रात किसी और से ही चुद गई है।
मैं दोपहर लंच तक उस पर निगाह रखता रहा, बहूरानी के चेहरे पर भय, चिन्ता और घबराहट स्पष्ट झलक रही थी, उसकी मनःस्थिति को मैं अच्छे से समझ रहा था, उसे सिर्फ यही चिन्ता सताये जा रही होगी कि इतने सारे रिश्तेदारों में वो कौन था जिससे वो कल रात चुदी थी।अब उसे यही डर हमेशा सताता रहेगा कि ज़िन्दगी के किस मोड़ पर कोई उसे उस रात की चुदाई याद दिला देगा और कहेगा कि उस रात तेरे साथ वो सब करने वाला मैं ही था।वो तो यह सुन कर जीते जी मर जायेगी।
बहूरानी की ऐसी दशा देखना मेरे लिए भी असह्य हो चला था, अगर उसके यह चिन्ता दूर न हुई तो यह तनाव उसका सुख चैन छीन के उसके जीवन में जहर सा भर देगा।
ये सब बातें विचार करके मैंने अदिति को सब कुछ बताने का निश्चय कर लिया।गलती न मेरी थी न उसकी… जो हुआ वो परिस्थितिवश ही हुआ!यही सब बातें मैंने उसे बताने समझाने का सोच लिया।
लंच के बाद सभी लोग आराम के मूड में आ गये और यहाँ वहाँ लुढ़क गये। फिर मैं भी अपने कमरे में चला गया, वहाँ और कोई भी नहीं था, मैंने मौका ठीक समझ अदिति को अपने पास बुलाया।
वो डरी हुई सी मुद्रा में मेरे सामने आ खड़ी हुई।
‘क्या बात है बेटा, तुम सुबह से ही परेशान और किसी गहरी चिन्ता में दिख रही हो. तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’ मैंने बड़े प्यार से उससे पूछा।‘जी, पापा जी, ऐसी कोई बात नहीं, मैं ठीक हूँ, बस थोड़ी थकावट सी है और कोई बात नहीं!’ उसने बात को टालने की तरह जवाब दिया।
‘देखो बेटा, घबराओ मत, तुम्हारी चिन्ता का कारण मुझे पता है, तुम किसी भी बात की चिन्ता फिकर मत करो।’‘कौन सी चिन्ता पापा? मुझे कोई टेंशन नहीं है!’देखो, घबराओ मत, तुम्हारी चिन्ता का कारण मुझे पता है, तुम किसी भी बात की चिन्ता फिकर मत करो।’‘कौन सी चिन्ता पापा? मुझे कोई टेंशन नहीं है!’
‘देखो अदिति बेटा, मुझे सब पता है कि तुझे किस बात का टेंशन है, अब मैं इस बात को कैसे कहूँ… देखो, ध्यान से सुनना बेटा! गलती न तुम्हारी थी न मेरी… वो सब आकस्मिक ही हुआ, कल रात मैंने अपना बिस्तर ऊपर सामान वाली कोठरी में लगा लिया था और मैंजैसे रोज सोता हूँ वैसे ही निर्वस्त्र सो रहा था। अब मुझे क्या पता था कि कोई आधी रात के बाद वहाँ आ जाएगा।’
मेरी बात सुनते ही अदिति ने सर झुका लिया।
‘और फिर मैंने कितना प्रयास किया था उन सब बातों से बचने का… लेकिन तू तो पूरी निर्वस्त्र होकर मुझसे लिपटी जा रही थी और तो और मेरा लिंग भी तूने अपने मुंह में भर के चूसा और न जाने क्या क्या…’ मैंने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
‘पापा जी, सारी की सारी गलती मेरी ही थी, मेरा ही दिमाग ख़राब हो गया था, अभिनव ने ही मुझे वहाँ ऊपर वाले कमरे में बुलाया था लेकिन वो खुद यहाँ सबके साथ पार्टी करता रहा ऊपर गया ही नहीं! मैं उससे मिलने को बहुत उतावली और बेचैन थी इसलिए अभिनव के धोखे में आपसे लिपट गई और तरह तरह से रिझाने मनाने लगी, मैं समझी थी कि मेरे इंतज़ार में अभिनव लेटा है, मुझे माफ़ कर दीजिये!’
‘लेकिन अदिति बेटा, कम से कम तुम्हें अपने पति और दूसरे आदमी में फर्क तो पहचानना चाहिए था?’
‘पापाजी, शुरू शुरू में तो मुझे आपमें और अभिनव में मुझे कोई फर्क नहीं लगा, पर जब मैंने आपका वो अंग पकड़ा तो मुझे लगा कि यह तो अभिनव के अंग से बहुत मोटा और लम्बा है लेकिन मैंने अपनी उत्तेजना में इसे भी अपना वहम समझा और फिर जब आप मुझमें समा गये थे तब भी मुझे लगा कि यह कोई और आदमी है। फिर उस स्टेज पर मैं क्या कर सकती थी तो जो हो रहा था वो होने दिया।’‘फिर जब सुबह मैं सोकर उठी तो अकेली थी, अगर रात अभिनव मेरे साथ होता तो वो तब तक सो रहा होता क्योंकि वो काफी देर तक सोता है। मैं समझ गई थी कि मैं छली जा चुकी हूँ और तभी से चिन्ता में थी पता नहीं वो कौन था जिसे अनजाने में ही मैंने अपना तन सौंप दिया था। आपने अच्छा किया जो मुझे हकीकत बता दी, नहीं तो मैं पता नहीं क्या करती!’
‘पापा जी, भगवान् जी गवाह हैं कि इसके पहले अभिनव के सिवा किसी और ने मुझे गलत नीयत से छुआ भी नहीं था। मैंने अपना कौमार्य भी सुहागरात को अभिनव को ही समर्पित किया था। पापा जी, मैं यकीन करो, मैं ऐसी वैसी बिल्कुल नहीं हूँ, आपने तो बहुत कोशिश की थी कि गलत काम न करो मेरे साथ लेकिन मेरी ही मति मारी गई थी; मैं आपको तरह तरह से उत्तेजित कर रही थी फिर आप भी कहाँ तक खुद पर काबू रख सकते थे।’
अदिति रुआंसी होकर बोली और मेरे कदमों में सर झुका कर रोने लगी। और जल्दी ही उसका रोना थोड़ा तेज हो गया।
रोने की आवाज सुन के कोई भी आ सकता था, ‘अदिति बेटा, कोई बात नहीं, चल भूल जा उस बात को!’ मैंने उसे सांत्वना दी लेकिन उसकी रुलाई रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।फिर मैंने अदिति को पकड़ के उठाया और अपने से लगा कर उसकी पीठ सहलाते हुए उसे सांत्वना देने लगा। मेरे आत्मीय आलिंगन की अनुभूति कर अदिति का रोना और तेज हो गया जैसे कि बच्चों में होता ही है।
‘अब जल्दी से चुप हो जा, देख मेहमानों से भरा घर है, कोई भी तेरे रोने की आवाज सुन के कभी भी यहाँ आ सकता है।’ मैंने उसके बालों में हाथ फेरते हुए उसे सांत्वना दी।
मेरी बात सुन के अदिति ने खुद पर कंट्रोल किया और उसका सुबकना कम हो गया लेकिन वो मेरे आलिंगन में बंधी रही।मैंने प्यार से उसके आंसू अपने रुमाल से पौंछ दिए और उसे फिर से कलेजे से लगा लिया और उसकी पीठ और सर पर आहिस्ता आहिस्ता दुलारते हुए उसे शान्त करने लगा, वो भी मेरी छाती में सिर छुपाये चुप बंधी रही मुझसे!समय जैसे थम सा गया और दो जिस्म जैसे आपस में बातें करने लगे।
सांसारिक रिश्तों के बंधनों से अलग स्त्री-पुरुष, नर-मादा जिस्मों का मिलन अपनी ही रागिनी छेड़ देता है, प्रकृति के अपने स्वतंत्र नियम हैं, युवा भाई बहन, पिता पुत्री इत्यादि को इसीलिए एकान्त में एक साथ रहने, सोने को मना किया गया है। उत्तरी दक्षिणी ध्रुवों में परस्पर खिंचाव होता ही एक दूजे में समा जाने के लिए…
हमारे बीच भी वही हुआ, मेरे स्नेह प्यार का बंधन, आलिंगन बहुत जल्दी काम-पाश में बदलने लगा और अब मेरे बाहुपाश में जकड़ी हुई एक भरपूर जवान नारी देह थी जिसे मैंने कल रात पूर्ण नग्न रूप में भोगा था।
बहूरानी अदिति के जिस्म की उष्णता, उसके गुदाज भरे भरे स्तनों का वो मादक स्पर्श मुझमें वासना की आग भरने लगा जिसके प्रत्युत्तर में मेरे लंड ने फुंफकार कर बहूरानी के जिस्म में टोहका लगा कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी।जिसके जवाब में मुझे लगा कि जैसे अदिति ने अपना बदन मेरे और नजदीक ला दिया हो!आखिर अब तो वो जान ही गई थी पिछली रात वो मुझसे ही चुदी थी और उसका तन मन भी जरूर उसी सुख की लालसा फिर से करने लगा होगा।
हालांकि मेरे भीतर से आत्मा का एक क्षीण सा प्रतिवाद उठा, मेरे संस्कारों ने मुझे झिंझोड़ा, चेताया कि यह पाप मार्ग है, अब भी संभल जा लेकिन मन ने अपना ही तर्क दिया कि जब एक बार चोद लिया या चोदना पड़ा तो अब क्या आदर्शवादी बने रहना?
और मैं चाह कर भी अदिति को अपने बाहुपाश से मुक्त न कर सका और न अदिति ही मुझसे छूटने का कोई प्रयास कर रही थी जबकि मेरा खड़ा लंड उसके पेट पर दस्तक दे ही रहा था और यह भी संभव नहीं था कि वो लंड के स्पर्श से अनजान रही हो!
‘अदिति बेटा तू बहुत अच्छी है!’ मैंने कहा और उसका गाल चूम लिया।
Contd...
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