चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी , अपडेट -10
वीरा लगातार दोड़े जा रहा था.... तूफानी रफ्तार थी उसकी
वीरा आज से 15 साल पहले रूपवती को जंगल मे घायल अवस्था मे मरने कि हालत मे मिला था, वीरा के पुरे शरीर मे जहर फैला हुआ था.
रूपवती उस वक़्त कच्ची जवानी कि दहलीज पे थी, दिल मे दयालुता थी... जंगल वो अपने पिता कसाथ शिकार पे आई हुई थी.... तभी उसकी नजर एक काले घोड़े पे पड़ती है जो दर्द से तड़प रहा था.
उस दिन वीरा मर ही जाता यदि रूपवती उसे अपने साथ हवेली ना ले अति... उसका उपचार ना कराती.
तब से आज तक वीरा हद से ज्यादा रूपवती का वफादार था... परन्तुआज उसे ऐसा क्या हुआ कि वो कामवती का नाम सुनते ही खुद को ना रोक सका दौड़ चला कामगंज कि ओर...
उसके मन मे कई सवाल उठ रहे थे जिसका जवाब वो खुद ही दे रहा था... " हे घुड़ देव ये वही कामवती निकले जिसकी मुझे 1000 सालो से तलाश है इसकी ही प्रतीक्षा किये मे ये नरक जैसा जीवन भोग रहा हूँ. कृपा करना घुड़ देव.... वीरा कामगंज कि दहलीज पे पहुंच चूका था...
ठाकुर कि बारात भी गांव कि दहलीज पे आ चुकी थी अब वीरा भी बारात मे शामिल था...
सब को एक ही जगह जाना था "कामवती के घर "
घर पे कामवती तैयार हो चुकी थी, क्या रूप निखर के आया था.. लगता था जैसे लाल जोड़े मे कोई स्वर्ग कि अप्सरा उतर आई है.
गहनो से लदी, तंग चोली मे कसे हुए मदमस्त दो गोल आकृतिया, नीचे सपाट गोरा पेट, नाभी से नीचे बंधा हुआ लहंगा. जो देखता देखता ही रह गया.
सखियाँ कामवती को देख हैरान थी कोई चुटकी ले रहा था तो कोई हिदायत दे रहा था.
"ठाकुर साहेब तो देखते ही गश खा जायेंगे "
एक सखी :- देखो कामवती सुहागरात को जैसा ठाकुर साहेब कहे वैसा ही करना.
लेकिन कामवती को जैसे इन सब बातो मे कोई दिलचस्पी ही नहीं थी, सुहागरात क्या है उसे पता था उसने पहले भी अपने शादी सुदा सहेलियों से सुना था परन्तु ये सब सुन क भी उसके दिल मे ना कोई हुक उठती थी ना ही कोई उत्तेजना आती थी.
कैसी स्त्री थी कामवती? नाम तो कामवती परन्तु काम कि लेश मात्र भी कोई इच्छा नहीं.
ऐसे कैसे हो सकता है?
खेर ठाकुर कि बारात दरवाजे आ चुकी थी.... रामनिवास के घर हड़कंप मचा हुआ था कोई स्वागत कर रहा था तो कोई खाने पीने कि तैयारी मे था.
रुखसाना जो कामगंज कि ही रहने वाली थी वो भी मौलवी साहेब म साथ रामनिवास क घर मौजूद थी..
अचानक उसकी नजर रंगा पे पड़ती है जो कि मजदूरों क साथ सामान अंदर रखवा रहा था.
दोनों कि नजर मिलती है और नजरों मे ही कुछ बाते हो जाती है.
तीन प्राणी और बेचैन थे एक ठाकुर साहेब जो अपनी होने वाली बीवी को देख लेना चाहते थे.
दूसरा वीरा जो कि देखना चाहता था कि कौन है ये कामवती.
तीसरा फलो कि टोकरी मै बैठा कामवती को देख लेने का ही इंतज़ार कर रहा था.
तभी पंडित ज़ी घोसणा करते है कि ठाकुर साहेब मंडप मे बठिये, और दुल्हन को लाया जाये.
रतीवती अपनी बेटी क साथ मंडप कि और चली आ रही थी... वाह कहना मुश्किल था कि माँ ज्यादा जवान है या बेटी ज्यादा खूबसूरत.
असलम तो जैसे ही रतीवती को देखता है उसकी बांन्छे खिल उठती है, जाते वक़्त भी रतीवती का साथ नहीं मिल पाया था उसे आजरात ही कोई मौका ढूंढना था..
रतीवती पे चोर मंगूस भी नजर टिकाये था.. क्या औरत है ये लगता है जैसे इसकी जवानी फटने पे आतुर है.
रतीवती अपनी बड़ी गांड हिलती कामवती को मंडप तक ले आती है और असलम के पास आ क बैठ जाती है.
वो बहुत ख़ुश थी डॉ. असलम को देखते ही उसकी चुत को चीटिया खाने लगती थी...
जैसे ही कामवती मंडप मे बैठती है एक जोर का हवा का झोंका आता है और उसका घूँघट उड़ जाता है ऐसा हसीन चेहरा देख के ठाकुर साहेब के होश उड़ जाते है..
ठाकुर :- कितना नसीब वाला हूँ मै जो कामवती जैसी सुन्दर स्त्री मिली...
वही दो और लोगो ने जैसे ही कामवती को देखा उनके तो दिलो पे बिजली गिरने लगी, उनकी बरसो कि तलाश पूरी ही चुकी थी..
वीरा :- वही है वही है.... यही है मेरी कामवती जिसकी मुझे तलाश थी धन्यवाद घुड़ देव इतने सालो बाद कामवती का पता चल ही गया.
टोकरी मे बैठा प्राणी :- हे नाग देव कही मै सपना तो नहीं देख रहा यही तो है मेरी कामवती जिसकी मुझे तलाश थी.
अब मेरा जीवन सफल होगा, मेरी शक्तियां वापस लौट आएंगी.
दोंनो कि बांन्छे खिली हुई थी.... परन्तु जैसे ही वीरा कि नजर उस प्राणी से मिलती है
उन दोनों का चेहरा घृणा और नफरत से भर जाता है.
वीरा :- ये मनहूस यहाँ कहाँ से आ गया? क्या इसने भी कामवती को देख लिया है.
परन्तु इस बात कामवती को मै हासिल कर क रहूँगा और इस सपोले नागेंद्र को मिलेगी मौत.
नागेंद्र :- ये कमीना अभी भी जिन्दा है, पर कैसे मैंने तो इसके बदन मे इतना जहर भर दिया था कि इसका मरना तय था.
खेर इस बार ये नहीं बचेगा कामवती मेरी ही रानी बनेगी. नफरत से वीरा कि तरफ फूंकार देता है.
वीरा का रुकना अब व्यर्थ था उसे जो देखना था देख चूका था वो वापस घुड़पुर कि और दौड़ चलता है रूपवती कि हवेली कि ओर...
पंडित मंत्रोउच्चारण मे लगे थे, शादी हो रही थी.. तभी रतीवती पेशाब का बहाना कर के उठ चलती है, घर के पीछे उसे चुत कि गर्मी सहन नहीं हो रही थी.... असलम पास हो ओर वो सम्भोग से अछूती रह जाये ये गवारा नहीं था
गली के मुहने पे खड़ी हो वो पीछे पलट क असलम कि ओर देखती है ओर एक हाथ अपने स्तन पे रख क हल्का सा मसल देती है.
असलम उसकी ऐसी निडरता पे हैरान था, इतने लोग होने क बावजूद भी उसे अपनी प्यास बुझानी थी...
डॉ. असलम कामुक औरत को ज्ञान ले रहे थे उन्हें समझ आ रहा था कि जब हवास हावी होती है तो जगह मौका नहीं देखा करती.
ऊपर से रतीवती जैसे औरत ऐसा मौका नहीं छोड़ना चाहती थी क्युकी आज कि रात थी सिर्फ फिर पता नहीं असलम कब मिलेंगे.
थोड़ी देर बाद असलम भी बहाने से उठ कर गली से लग के अँधेरे मे खो जाते है.
असलम जैसे ही घर के पीछे पहुँचता है भोचक्का रह जाता है. रतीवती हमेशा ही उसके होश उड़ा दिया करती थी... आज भी वो अपना ब्लाउज खोले खड़ी थी साड़ी सिर्फ उसकी कमर मे लिपटी पड़ी थी
असलम को देखते ही उसे अपने पास आने का इशारा करती है असलम आ चूका था बिल्कुल नजदीक, असलम कि सांसे रतीवती क गोल सुडोल स्तन पे तीर कि तरह लग रही थी, असलम कि लम्बाई ही इतनी थी.
रतीवती प्यासी थी बहुत प्यासी... वो असलम का सर पकड़ धड़ाम से अपने स्तन क बीच दे मरती है
रतीवती :- असलम ज़ी सब्र नहीं होता पीजिये इसे, काटिये इसे...और अपना एक स्तन पकड़ के उसके मुँह मे दे देती है
असलम भी गरम हो चूका था, जो ऐसा दृश्य देख के भी गरम ना हो वो नामर्द ही होगा.
असलन लपा लप स्तन चाट रहा था, काट रहा था, निप्पल को तंटो तले चबा रहा था.
रतीवती का एक हाथ तुरंत असलम के पाजामे मे कुछ टटोले लगती है... जैसे ही उसे वो खजाना मिलता है उसके मुँह से सिसकारिया निकल पड़ती है
आहहहह.... असलम ज़ी चुसिये और जोर से काटिये.
आपके लिए ही तरस रही थी मै.
रतीवती असलम के पाजामे का नाड़ा खोल देती है पजामा तो जैसे मुर्दे इंसान कि तरह भर भरा के नीचे गिर जाता है और एक जिन्न प्रकट होता है काला मोटा, भयानक लंड के रूप मे.
रतीवती तुरंत इस कालजाई लंड का अहसास पा लेना चाहती थी तुरंत अपने गोरे चूड़ी पहने हाथ से सहलाने लगती है.
असलम :- आह रतीवती... क्या कर रही हो जान ही लोगी क्या समय कम है जल्दी से साड़ी ऊपर करो.
रतीवती तुरंत घूम के चौपया बन जाती है और अपनी साड़ी कमर तक ऊपर उठा लेती है.... एक दम गोरी गांड प्रकट होती है लगता था जैसे अमवास कि रात मे चाँद निकल आया हो इस चाँद के बीच एक लकीर भी थी जो चाँद को दो भागो मे बाटती थी... इसी लकीर मे दो अनमोल खजाने छुपे थे...
रतीवती के पास यही तो एक अमूल्य धरोहर थी
जिसे असलम जल्द से जल्द खोद के निकाल लेना चाहता था.
इस गोरी गांड के दर्शन पा के कोई और भी हैरान था..
चोर मंगूस तो सुबह से ही रतीवती पे नजरें टिकाये बैठा था असलम क साथ साथ उसने भी ये हरकत देख ली थी.
वो भी असलम के पूछे चल पड़ा.
चोर मंगूस ने जब ये नजारा देखा तो उसकी बांन्छे खिल गई थी... रतीवती वाकई काम कि देवी ही है.
क्या बड़ी मुलायम गांड है इसकी मजा आ गया.लेकिन अब ये मेरी है... हाहाहाहा...
तभी हलकी से आहट करता है... पीछे कामक्रीड़ा मे लिप्त असलम और रतीवती ये आवाज़ सुन के चौंक जाते है.पीछे देखते है तो गली के पास कोई आकृति दिखती है
असलम भाग के गली के मुहने पे जाता है... लेकिन वहाँ कोई नहीं था, होता भी कैसे चोर मंगूस था ही छालावा.. हो गया गायब
लेकिन इनका काम बिगाड़ गया.
रतीवती असलम खौफजदा थे कि कही कोई देख ले... अभी उचित टाइम नहीं है.. वो दोनों वापस आ के मंडप के पास बैठ जाते है.
रतीवती तो काम अग्नि मे बुरी तरह जल रही थी... उसकी उत्तेजना चरम पे थी लेकिन मंजिल तक ना पहुंच सकी.
इधर दरोगा वीर प्रताप जो कि बारात मे ही अपने हवलदार के साथ शामिल था वो बारीकी से सब पे नजर बनाये हुए था.... उनका ध्यान सब जगह था बस सामने नहीं था
इधर रुखसाना घर से बाहर जा रही थी और दरोगा वीरप्रताप घर के अंदर.
दोनों आपस मे टकरा जाते है,
वीरप्रताप :- माफ़ करना बहन मैंने देखा नहीं.
रुखसाना : कोई बात नहीं मेरी भी गलती है माफ़ कीजियेगा
उठते वक़्त जैसे ही उनकी नजर पड़ती, दोनों के मन मे विचार उत्पन्न होता है... इसे तो कही देखा है?कौन है कहाँ देखा है? समझ नहीं आ रहा?
रुखसाना बाहर को चल पड़ती है और दरोगा घर के अंदर..
तभी अंदर पंडित घोषणा करते है कि शादी संपन्न हुई, दूल्हा दुल्हन को मंगलसूत्र पहनाये... और विदाई आज ही होनी चाहिए ठाकुर साहेब वरना बढ़ा अपशुकुन होगा.
ठाकुर :- सब समय पे होगा पंडित ज़ी...
रुखसाना .. अपनी सोच मे आगे बढ़ती जाती है कहाँ देखा है कहाँ देखा है उस आदमी को..
अचानक उसे याद आ जाता है अरे हाँ ये तो दरोगा वीर प्रताप सिंह है मेरे पति कि मौत पे घर आये थे परन्तु ये यहाँ क्या कर रहे है....
कही कही कही.... इन्हे रंगा बिल्ला के बारे मे तो कोई खबर नहीं.
मुझे रंगा बिल्ला को बचाना होगा.. रुखसाना वापस रामनिवास के घर दौड़ पड़ती है.. रंगा को सचेत करने.
क्या रुखसाना पहुंच पायेगी?
रंगा बिल्ला कामयाब होंगे?
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रुखसाना घर के अंदर घुस जाती है उसकी नजरें सिर्फ रंगा को ही ढूंढ़ रही थी परन्तु रंगा कही दिख नहीं रहा था...
इधर गांव घुड़ पुर मे वीरा वापस अपने अस्तबल मे पहुंच चूका था, उसकी धड़कन तेज़ थी भागने कि वजह से नहीं
अपने पुराने दिन याद कर के जो उसने कामवती के साथ बिताये थे.... आह्हः.... क्या दिन थे
आज भी वही यौवन, वही खूबसूरती, वही कामुकता, सोचते सोचते वीरा उत्तेजित होने लगा, सालो बाद उसे कामक्रीड़ा कि याद आने लगी, उसका भारी भरकम लंड अपने घोसले से बाहर आ रहा था
.. परन्तु ये किस्मत अपना घोड़े का रूप नहीं त्याग सकता, क्या करे अब भला घोड़े से कौन स्त्री सम्भोग करती है.
हे घुड़ देव ये कैसी सजा दी तूने... कामवती को सामने देख के भी कुछ ना कर पाया, वीरा अपनी उत्तेजना को दबाने शांत करने कि कोशिश करता है पर सब बेकार.
रात के 11:30 बज चुके थे शादी संपन्न हो चुकी थी.
पंडित :- विदाई का मुहर्त निकला जा रहा है ठाकुर साहेब.
डॉ. असलम ये बात सुन के चिंतित होने लगे थे, परन्तु ठाकुर साहेब तो अपनी ही खुमारी मे थे, उन्हें तो ऐसी सुन्दर बीवी पा के खुशी से फुले नहीं समा रहे थे.
डॉ. असलम :- ठाकुर साहेब जल्दी कीजिये अब विदाई करवाइये, कही पंडित ज़ी कि कही बात सत्य ना हो जाये कोई अपशकुन ना हो जाये....
रतीवती भी अब जल्द बाजी मे थी.... जल्दी जल्दी डोली सजाई गई....
सारे सामान लादे जाने लगे, कालू बिल्लू रामु जल्दी जल्दी हाथ चला रहे थे.
ठाकुर साहेब कि घोड़ा गाड़ी भी तैयार थी.... लेकिन ये क्या इस तैयारी मे रात के 11:55 हो चुके थे इसपे किसी का ध्यान नहीं था.
कामवती डोली मे बैठ चुकी थी.... चार लोगो ने डोली उठाई हुई थी..
रुखसाना कि नजर जैसे ही डोली कि तरफ पड़ती है हैरान रह जाती है.. डोली रंगा और उसके आदमियों ने ही उठा रखी थी.
जल्दबाजी और अफरा तफरी मे किसी ने ध्यान ही नहीं दिया कि डोली किसने उठाई वो कौन है?
कामगंज वालो को लगा कि ठाकुर के आदमी है और ठाकुर को लगा कि रामनिवास के आदमी है.
दरोगा वीरप्रताप सिंह सबसे आगे ठाकुर के आदमियों के साथ सबसे आगे घोड़ा गाड़ी मे बाकि मजदूरों के साथ बैठे थे. ताकि कोई अपिर्य घटना होने से रोक सके, उसके पीछे ठाकुर साहेब और असलम एक घोड़ा गाड़ी मे बैठे थे.
और सबसे पीछे चल रही थी कामवती कि डोली, गहनो से लदी कामवती को कोई अंदाजा नहीं था कि उसकी डोली किन राक्षसों के हाथ मे है.
रुखसाना भी सबकी नजर बचाती हुई पीछे हो ली थी.
उसे रंगा बिल्ला को बचाना था हर हालात मे.
पूछे छूट गया था रामनिवास का घर बिल्कुल सुनसान, वीरान अकेला घर... गांव वाले रतीवती और रामनिवास को द्धांढास बंधा के अपने अपने घर चले गये थे.
और बाकि जो कुछ मेहमान थे वो अपने अपने सोने कि व्यवस्था देख रहे थे, अब मैदान खाली था मैदान ऐसा जहाँ खेलना पसंद था चोर मंगूस को.
शादी के बाद का वीरान घर जहाँ सब थक हार के नींद के आगोश मे समा चुके थे.
रतीवती अपने कमरे कि और बढ़ चलती है, वो दुखी तो थी लेकिन उस से ज्यादा कही ज्यादा ख़ुश थी कि उसकी बेटी इतनी बड़ी हवेली कि अकेली मालकिन है.
आह्हः.... वाह भगवान क्या किस्मत लिखी है तूने मेरी बेटी मालकिन मतलब मै मालकिन वाह वाह....
ऐसा सोचती कमरे मे आ के अपने बिस्तर पे गिर पड़ती है.
ऐसे ही किसी बिस्तर पे गिरा कोई और भी तड़प रहा था.
गांव घुड़पुर मे रूपवती अपने कमरे मे उलट पलट रही थी, अपनी साड़ी वो कबकी खोल के फेंक चुकी थी उसका बदन जल रहा था, मन मे गुस्सा भी था और हवस भी, और कोई ऐसी वैसी हवस नहीं प्रचंड हवस जिसमे रूपवती जल रही थी... लगता था जैसे उसके कमर के नीचे कोई ज्वालामुखी है वो फटना चाहता है लेकिन फट नहीं पा रहा है... वो अपने जलते ज्वालामुखी के मुहने को ऊँगली से छुती है... एक बार तो ऊँगली गर्मी से जल ही उठती है उसकी सिसकारी निकल जाती है.
आअह्ह्ह.... तांत्रिक ये क्या किया तूने? ये कैसी आग लगा छोडी है मेरे बदन मे. वो अपने स्तन जोर जोर से रगड़ रही थी मसल रही थी.
स्तन रगड़े जाने से चिंगारी निकल निकल के चुत गांड पे हमला कर रही थी, हवस उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी.
अपनी काली चिकनी चुत मे ऊँगली कर कर के बेतहाशा रुला रही थी रूपवती अपनी मासूम चुत को काली चुत से निकलता सफ़ेद पानी बिस्तर को भिगोये जा रहा था.
कुछ करना होगा रूपवती कुछ करना होगा... ये उत्तेजना जान ना ले ले.
रूपवती अपनी भारी भरकम काली गांड उठा उठा के अपनी ऊँगली पे मार रही थी अब भला इतने बड़े लावे के कुंड को एक ऊँगली क्या संभाल पाती.
उसे तांत्रिक कि गुफा मे किया गया कृत्य याद आता है जब उसने एक लकड़ी अपनी गांड मे घुसा ली थी....
जिसे बाद मे घर आ के उसने अपनी गांड से बाहर निकाल लिया था उस लकड़ी का ध्यान आते ही वो उसे ढूढ़ने के लिए उठती है.. ब्लाउज खुले होने कि वजह से धम से बड़े बड़े काले स्तन उछल पड़ते है.
पास के ही अलमारी मे लकड़ी मिल जाती है, लकड़ी लिए वो वापस बिस्तर कि और चल पड़ती है इस उम्मीद मे कि शायद ये हवस ये प्यास मिट सके..
दूसरी और ठाकुर कि बारात विदा हो के जंगल के इलाके से गुजर रही थी, चारो तरफ सन्नाटा था, ठाकुर असलम और कुछ गांव के मेहमान घोड़ा गाड़ी मे बैठे ऊंघ रहे थे, दरोगा वीरप्रताप सिंह चोक्कन्ने थे,
अमावस कि काली अँधेरी रात थी बस जलती हुई मसालो का ही सहारा तो जो कि पर्याप्त नहीं था फिर भी धीरे धीरे... बारात विदा हो रही थी.
पीछे रंगा और उसके आदमियों ने अपना खेल शुरू कर दिया था वो लोग लगातार ठाकुर कि बगघी से दुरी बनाते जा रहे थे, अंदर बैठी कामवती को इस बात का कोई अहसास नहीं था वो तो गमगीन माहौल मे ऊंघ रही थी कभी आंखे लगती तो कभी खोलती.
इच्छाधारी सांप नागेंद्र भी फलो कि टोकरी मे शांति से पड़ा हुआ था उसकी तो मन कि मुराद ही पूरी हो चली थी आखिर आना कामवती को उसके घर ही था वो उसके पास रहने का सौभग्य प्राप्त कर सकता था.
तभी सुनसान जंगल के बीचो बीच एक नदी पड़ती है जिसे घोड़ा गाड़ी और बाकि पैदल मजदूर सामान उठाये पार कर लेते है, दरोगा, ठाकुर, नागेंद्र सब पुल पार कर नदी के पार पहुंच जाते है.
परन्तु डोली अभी पुल के मुहने पे भी नहीं पहुंची थी..
दरोगा वीरप्रताप सचेत था उसे कुछगड़बड़ी कि आशंका सताने लगती है.
वो घोड़ा गाड़ी रुकवा देता है...
ठाकुर :- गाड़िवान ये बाघी क्यों रोकी?क्या हुआ?
दरोगा पीछे मुड़ के ठाकुर कि गाड़ी के पास आता है बोलता है ठाकुर साहेब कुछ गड़बड़ है....
वही बिल्ला और उसके आदमी ये दृश्य देख रहे थे पास ही पेड़ो कि ओट मे छुपे हुए.
ठाकुर :- सामने एक मजदूर को खड़ा देख, साले तेरी हिम्मत कैसे हुई बारात रुकवाने कि? ऐसा कह के ठाकुर और साथ मे असलम भी गाड़ी से नीचे उतर जाते है.
तभी..... बाअअअअअअअड़ड़ड़ड़ड़आआमममम.....
जोर दार धमाका होता है... काबउउउउउउउम्म्म्म.
धमाका तो रामनिवास के घर भी हो रहा था.
लेकिन ये धमाका रतीवती कि चुत से निकलती आवाज़ का था.... फच फच फछाक...
रतीवती आज बहुत ज्यादा गरम थी, बहुत उत्तेजित थी उसकी चुत लगातार पानी के फव्वारे छोड़ रही थी.
असलम से मिलन अधूरा रह गया था, उसकी प्यास अधूरी थी... उसे लंड चाहिए था शुद्ध खालिश लंड, असलम के मिलन आधा अधूरा रहने से उसके बदन मे जो तड़प मची थी जो उत्तेजना उठी थी उसका ही परिणाम था ये दृश्य.
परन्तु अब रामनिवास का ही सहारा था अब किस्मत कि मार रामनिवास जाने कहाँ पड़ा था शारब के नशे मे.
रतीवती लगातार अपनी चुत मे ऊँगली मारे जा रही थी... वो इतनी कामुकता से भरी थी कि ऊँगली धचा धच मारते मारते कलाई तक पूरी हथेली ही चुत मे घुसा ली थी उसे उस से भी सब्र नहीं था वो तो आज खुद का पूरा हाथ डाल देने पे उतारू थी.. चुत कि धज्जिया उड़ा देना चाहती थी.
हे भगवान क्या करू मै.. असलम भी कुछ कर नहीं पाए ना जाने कब मिलेंगे वापस से. आज रामनिवास को छोडूंगी नहीं भले ही चुत चाटे गांड चाटे उसे मेरी प्यास बुझानी ही होंगी.. हाँ वो मेरा मर्द है उसका फर्ज़ है उसे मेरी प्यास बुझानी ही होंगी.
रतीवती कामवासना मे पागल हो चुकी थी, उत्तेजना से गरमाई औरत क्या नहीं कर सकती उसका ताज़ा उदाहरण रतीवती ही थी.
हाथ कलाई तक चुत मे था और स्तन रगड़ रगड़ के लाल हो चुके थे इतने गरम कि कोई हाथ लगा दे बस जल ना उठे तो कहना.
चुडिया छन छनाती जा रही थी... और इस मधुर संगीत को सुन के चुत पानी छोड़े जा रही थी. गांड का छेद कुलबुला रहा था जैसे उसे कोई नज़रअंदाज़ कर दिया हो.
रतीवती पागलो कि तरह सर पटक रही थी.. तभी कमरे का दरवाजा खुला है वहाँ एक काली परछाई दिखती है...
रतीवती आव देखती है ना ताव, सीधा पलग से उठ के उस आकृति को पकड़ के बिस्तर पे गिरा देती है और धम से अपनी बड़ी सी मतवाली गांड और चुत उस परछाई के मुँह पे रख घिसने लगती है....
आअह्ह्ह... कम्मो के बापू आअह्ह्ह.... चाटिए इसे खाइये मेरी चुत बहुत परेशान कर रही है.
परन्तु ये क्या रामनिवास तो शराब पी के छत पे मेहमानों के साथ सोया पड़ा है...
फिर ये कौन है?
कामवती का क्या हुआ?
कथा जारी है....
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