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नागमणि -11

 चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी  अपडेट -11


काबूम.... धमाके के साथ नदी पे बनी कच्ची पक्की पुलिया बिल्ला ने बम से उड़ा दी थी, हड़कंप मच जाता है चारो तरफ, ठाकुर और असलम को तो कुछ समझ ही नहीं आता कि क्या हुआ एक दम

धमाके से प्रकाश होता है सबकी नजर पुलिया के पार जाती है जहाँ रंगा और उसके आदमी डोली उठाये अलग ही दिशा मे भागे जा रहे थे.

बिल्ला भी रंगा के पास पहुंच चूका था उसके बाकि आदमी हड़कंप का फायदा उठा के दो तीन घोड़ा गाड़ी को अपने साथ जंगल ओझल हो गये किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है

ठाकुर :- ये क्या हो रहा है असलम ये हमला किसने किया?

दरोगा :- ठाकुर साहेब ये रंगा बिल्ला का काम है, मुझे पहले ही खबर थी कि ये लूट मचाएंगे, इसलिए मै वेश बदल आपकी बारात मे शामिल हो क्या था.

परन्तु इन सब के बीच नागेंद्र सर सरा जाता है, पानी मे उतर के जितना तेज़ हो सकता उतना तेज़ तेरे जा रहा था, नदी का बहाव तेज़ था.... नहीं नहीं... मुझे नदी पार करनी होंगी मै कामवती को वापस हाथ से नहीं निकलने दूंगा.

दरोगा और उसके आदमियों ने  भी स्थति को काबू कर लिया था, अब उन्हें नदी पार करनी थी.


नदी तो रूपवती को भी पार करनी थी अपनी हवस कि नदी...परन्तु ये नदी गरम लावे से बह रही थी सफ़ेद लावा जो लगातार रूपवती कि चुत से रिस रहा था मोटी लकड़ी रुपी बाँध इस सैलाब को रोकने मे असमर्थ था.

रूपवती उस लावे को लकड़ी से अंदर ठेलने का प्रयास कर रही थी, किन्तु जितना वो लकड़ी अंदर डालती उतना पानी बह के बाहर आ जाता.

ये हवस ये उत्तेजना आज बेकाबू थी, इस हवस को शांत करने के लिए वो कुछ भी कर सकती थी.

घोड़ा वीरा भी कामअग्नि मे जल रहा था, उसके मुँह से बेबसी कि हुक निकले जा रही थी वो हिनहिना रहा था हवस मे हिनहिना रहा था.

रूपवती के कानो मे लगातार वीरा कि हिनहिनहत पहुंच रही थी... वो अपनी हवस को काबू कर उठ जाती है, उसे लगता है वीरा किसी तकलीफ मे है, उसका ब्लाउज खुला हुआ था पेटीकोट ढीला सा कमर पे नाभी के नीचे अटका पड़ा था.

बड़े बड़े काले स्तन अँधेरे मे हिलते चमक रहे थे, बड़ी सी गांड धल धला के हिल रही थी "वीरा कभी इस तरह तो शोर नहीं करता क्या हुआ उसे "

कोई जानवर तो नहीं आ गया?

रूपवती अर्धनग्न अवस्था मे ही अस्तबाल कि ओर चल पड़ती है, भले एक घोड़े के सामने जाने से क्या शर्माना.

वो अस्तबाल पहुंच के देखती है सब ठीक है लेकिन अंधेरा होने कि वजह से वीरा का इंसानी रूप नहीं देख पाती वहाँ एक कला बड़ा सा इंसान पूर्णरूप से नंगा खड़ा था उसका बड़ा सा लंड उसे दीखता नहीं है, रूपवती को लगता है शायद वीरा भूखा है वो उसे पास जाती है ओर घास उठा के उसके खाने कि टंकी (नांद ) मे डालने के लिए झुकती है, स्तन अपने भार कि वजह से आगे को झूल जाते है, पीछे पेटीकोट सरकार के गांड पे टिक  जाता है, रूपवती कि गांड इतनी बड़ी थी कि नीचे झुकने से पेटीकोट टाइट हो जाता है इतना टाइट कि चरररररर... कि आवाज़ के साथ फट पड़ता है.

वीरा का मुँह बिल्कुल रूपवती कि गांड के पीछे था जैसे ही पेटीकोट फटता है एक मादक खुशबू आ के वीरा के नाथूनो को हिला देती है, वीरा जो पहके से ही गरम था मदहोश हो जाता है बरसो बाद उसे स्त्री के कामुक अंग कि खुशबू मिली थी ऊपर से रूपवती कि चुत तो पानी ओर खुशबू भारी मात्र मे छोड़ रही थी.

जैसे ही रूपवती को अपने पेटीकोट फटने का अहसास होता है वो उठने को होती है    तभी अचानक एक घूरदरी,गीली सी चीज उसकी चुत के दाने से ले कर गांड के छेद तक लप लपाती चली जाती है

आह्हः..... इतना गर्म ओर गिला अहसास यही तो चाहिए था रूपवती को, खुर्दरापन ऐसा कि चुत गांड घिस गई थी.

एक बार फिर सड़प कि आवाज़ के साथ वही कामुक अहसास होता है जैसे कोई गीली चीज उसकी चुत को पिघला रही हो.

वो पीछे मुड़ के देखती है उसके पीछे एक इंसान खड़ा था उसके बदन पे बहुत बाल थे,रूपवती चीख पड़ती है डर से आअह्ह्ह..... तुम कौन हो? मेरा घोड़ा वीरा कहाँ है. वीरा अपनी जीभ उसकी गांड मे लगाए खड़ा था, रूपवती चुपचाप वैसी ही झुकी खड़ी रहती है. उसे तो मन कि मुराद पूरी हो रही थी, उसे अभी सिर्फ अपनी हवस मिटानी थी, अब ये इंसान कौन है ये बाद मे देखा जायेगा, उसे खुर्दरी जीभ का अहसास मन्त्रीमुग्ध कर रहा था. खड़े खड़े अपनी चुत और गांड को वीरा कि जीभ को धकेलने लगती है. मस्ती मे चुत चाटवा रही थी...

चुत चटाई तो रामनिवास के घर भी हो रही थी

रतीवती उस अनजान शख्स के मुँह पे बैठी पागलो कि तरह अपनी गांड उठा उठा के पटके जा रही थी, घिसे जा रही थी

नीचे लेटा शख्स रतीवती के द्वारा किये गये हमले से चौक गया था, परन्तु अब वो चुत से निकलती महक मे खोने लगा था,वो भी अपनी जीभ बाहर निकाल के लपा लप चाट रहा था,

रतीवती :- अह्ह्ह.... कामम्मो के बापू.. आअह्ह्ह आज तो बड़ा लपक केचाट रहे हो, इतना जोश कहाँ से लाये.

इतना कह के रतीवती अपना हाथ नीचे ले जाती है रामनिवास का लंड टटोलने लगती है.

ये क्या इतना बड़ा लंड, वो भी इतना कड़क मोटा, रामनिवास का खड़ा होने पे भी इतना नहीं होता....

कही कही कहीं..... ये कोई और तो नहीं

लेकिन रतीवती हवस के मार्ग पे इतना आगे बढ़ चुकी थी कि वापस लौटना मुश्किल था, उसे समझ आ चूका था कि ये रामनिवास नहीं है लेकिन अब क्या फर्क पड़ता है उसे तो लंड चाहिए था ऐसा ही लंड जो उसकी प्यास बुझा सके, उसकी गांड फाड़ सके.

उसे अपनी हवा मिटानी थी भले लंड किसी का भी हो.

नीचे लेटा शख्स अपनी जीभ को तिकोना कर चुत मे घुसा देता है  . आह्हब..... रतीवती अपनी सोच से बाहर आती है और उत्तेजना के मारे शख्स के बाल पकड़ के अपनी चुत मे घुसाने लगती है लगता था जैसे पूरा मुँह ही अपनी चुत मे डाल लेगी.

शख्स :- वाह वाह क्या गरम माल हाथ लगा है, क्या स्वाद है इसकी चुत का आज चोरी का ही मजा आ जायेगा.

ये चोर मंगूस ही था जो चोरी के इरादे से घुसा था परन्तु यहाँ तो जरुरत से ज्यादा मिल रहा था.

चोर मंगूस अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा था कभी जीभ चुत मे डालता कभी वही जीभ गांड मे डाल देता,

चुत के दाने से लेकर गांड तक लगातार चाटे जा रहा था, रतीवती इस कला से मरी जा रही थी अपने स्तन नोच रही थी परिणाम सामने आया रतीवती भरभरा के मंगूस के मुँह मे ही झड़ने लगती है, कई दिनों से रुका ज्वालामुखी फट पड़ता है आहहहह...... फच फच फच... करती रतीवती चुत से फववारा छोड़ने लगती है.

रतीवती ने अभी भी मंगूस के बाल पकड़े अपनी चुत पे दबाये जा रही थी अपना सारापानी मंगूस के मुँह मे उतार दिया.... धम.. से बिस्तर पे गिर पड़ती है आह्हः..... मै गई.

उधर जंगल मे रंगा बिल्ला कामवती को डोली से उतार चुके थे, कामवती ये सब देख हैरान रह जाती है उसके सामने दो हैवान जैसे दिखने वाले दो आदमी खड़े थे, लगता था जैसे कोई दो राक्षस प्रकट हो गये हो.

कामवती जोर से चिल्लाती है..... उसके मुँह पे अभी भी घूँघट था, चीख कि आवाज़ इतनी जोरदार थी कि पुरे जंगल मे गूंज उठती है.

रंगा उसका मुँह बंद करता है.... दोनों उसे कंधे पे उठाये उबड़ खबड़ रास्ते पे दौड़ पड़ते है अपने अड्डे कि ओर.

काली पहाड़ी पे स्थित अड्डे पे पहुंच चुके थे... कामवती को नीचे जमीन पे बिछी घाँस मे पटक देते है.

रंगा :- हम कामयाब हुए बिल्ला, हाहाहाहा.. उतार इसके गहाने खूब लदि पड़ी है गहनो से..

बिल्ला कामवती कि ओर बढ़ चलता है.

कामवती डर ओर घबराहट से पसीने पसीने हो गई थी, उसकी सांसे ज्वार भाटे कि तरह ऊपर नीचे हो रही थी.

बिल्ला करीब पहुंच चूका था... एक दम से घूँघट हटा देता है, चेहरे ओर स्तन से कपड़ा हट जाता है,जैसे ही कामवती का चेहरा सामने आता है दोनों के होश उड़ जाते है, ऐसा सुन्दर चेहरा इतनी सुन्दर स्त्री सोनो ने कभी नहीं देखि थी, माथे पे बिंदी मांग मे सिंदूर लाल चोली से झाँकते गोरे बड़े सुडोल स्तन...

आअह्ह्ह.... रंगा देख तो सही क्या माल हाथ लगा है, गहनो के साथ ऐसा यौवन भी हाथ लग गया.

रंगा :- वाह बिल्ला मजा आ गया खूब रागड़ेंगे इसे आज.स्तन देख कितने गोरे ओर बड़े है.

कामवती ये सब बाते सुन घबराने लगी थी.

नागेंद्र नदी पार कर चूका था... फिर भी उसे अभी लम्बा सफर तय करना था.

"मै वापस से कामवती के साथ ऐसा नहीं होने दूंगा " नागेंद्र फुसफुसाता तेज़ी से रेंगे जा रहा था.

क्या कामवती बच पायेगी?

वापस मतलब? क्या पहले भी कामवती के साथ ऐसा हुआ है?

**********


वीरा अब तक चाट चाट के रूपवती को चुत ओर गांड को बुरी तरह गिला कर चूका था, रूपवती का रोम रोम काँप रहा था इस चटाई से, काली चिकनी चुत अँधेरी रात मे भी लार से चमक रही थी, वीरा बरसो बाद ऐसी कामुक चुत पा के बेकाबू था, वो बेसुध सिर्फ जीभ चलाये जा रहा था कभी जीभ को चुत मे घुसाने कि कोशिश करता तो कभी गांड मे उसे जैसे किसी खजाने कि तलाश थी, उसे प्यास थी जिसे खोद खोद के निकाल लेना चाहता था...

अपनी लम्बी जीभ गोल कर के रूपवती कि खुली चुत मे डाल के लप लापने लगता है, अंदर से चाटने लगता है.

ऐसा मजा ऐसी मदकता ऐसी उत्तेजना का अहसास कभी रूपवती को नहीं हुआ था वो अपने मे ही खोती जा रही थी,

वीरा इस कदर चाट रहा था कि जब नीचे चुत के दाने से जीभ चलाता तो रूपवती को जीभ से ही हवा मे उठा देता, फिर गांड तक पहुँचता तब जा के रूपवती के पैर जमीन पे टिकते..

कब तक ऐसी घमासान चाटाई झेलती रूपवती, आह्हःम्म्म्म...... वीरा वीरा ओर अंदर चाट घुसा अंदर जीभ

आखिर वीरा कि मेहनत रंग लाइ. उसे वो खजाना मिल ही गया, रूपवती अति उत्तेजना मे कंपने लगी ओर भल भला के झड़ने लगी .. ऐसा कभी ना झड़ी जीवन मे,

उसकी गांड कि सारी हवा ओर चुत का सारा पानी फच फच कि आवाज़ के साथ निकलने लगा ..... चरररत... फुर्रररम...

वीरा के मुँह पे सफ़ेद गरम पानी के फव्वारे पड़ने लगे जिसे वो लपा लप चाटे जा रहा था.कमरस का एक कतरा भी व्यर्थ नहीं गया सब वीरा के मुँह मे समा गया जीभ के रास्ते..

जैसे ही वीरा ने मुँह हटाया रूपवती धम से पीछे कि ओर गिर पड़ी उसके पैरो मे खुद का वजन संभाल सकने लायक ताकत नहीं बच्ची थी.

निढाल बेचैन वो वीरा के दोनों पैरो के बीच गिर पड़ती  .. आंखे खुली थी ओर जोर जोर से हांफ रही थी

उसके आँखों के सामने ठीक सर के ऊपर मोटा मुसल 15इंच का लंड लहरा रहा था, रूपवती कि नजर उस लंड पे बनी हुई थी आंखे चौड़ी हो गई थी.... सांसे दुरुस्त करने मे लगी थी रूपवती... या फिर आने वाले दंगल के लिए सांसे भर रही थी

वो सोच मे पड़ गई थी कि इतना बड़ा लंड किसी इंसान का कैसे हो सकता है.

इधर रंगा बिल्ला के अड्डे पे कामवती बुरी फंसी हुई रही, दो रक्षासो के बीच एक मासूम सुन्दर चिड़िया फसी हुई थी पसीने से लथपथ ब्लाउज गिला हो चूका था इतना गिला कि निप्पल के दाग दिखने लगे थे डर के मारे निप्पल खडे को के दर्शन दे रहे थे, रंगा बिल्ला ये दृश्य देख खुद को रोक नहीं पा रहे थे उनके बड़े लंड औकात मे आ  गये थे.

रंगा कामवती कि ओर बढ़ता है ओर एक ही झटके मे ब्लाउज पकड़ के आगे से नोच देता है... दो गोरे सुडोल बड़े स्तन धमाके के साथ सामने आ जाते है.

रंगा बिल्ला ललचाई नजरों के साथ इस अनमोल खजाने को पा लेना चाहते है, इतने गोरे सुडोल स्तन कौन नहीं पाना चाहता भला..कामवती डर ओर घबराहट से हांफ रही थी.


रामनिवास के घर रतीवती भी अपने स्सखलन को प्राप्त कर मंगूस के बगल मे लेटी हांफ रही थी....

मंगूस का स्सखालन बाकि था, रतीवती जैसे ही बगल मे लेटती है मंगूस उसके स्तन पे टूट पड़ता है, इतने बढ़े स्तन थे कि एक बार मे मुँह मे समा ही नहीं रहे थे.

मंगूस पूर्णतया रतीवती के ऊपर चढ़ जाता है उसका कडक लंड चुत पे दस्तक देने लगता है, हाफ़ती हुई रतीवतीं इस छुवन से चिहूक जाती है, पानी बहाती चुत पे गर्म लंड का अहसास ठंडक पंहुचा रहा था,

चिंगारी वापस भड़क रही थी, रतीवती अपना एक स्तन पकड़ मंगूस के मुँह मे ठूस देती है. चूस इसे जोर से चूस खा जा

मंगूस इस औरत कि दिलेरी उत्तेजना पे हैरान था वो खुद अपने बड़े स्तन पकड़े उसके मुँह मे ठूस रही थी,

मंगूस लप लप कर निप्पल पे जीभ फिरा रहा था, कभी एक निप्पल को पकड़ता तो कभी दूसरे को काटने लगता, स्तन तो इतने बड़े थे कि हाथ मे ही नहीं समा रहे थे.

रतीवती कि उत्तेजना वापस से जागने लगी थी देखा जाये तो हवस सोइ ही कब थी रतीवती तो हमेशा तैयार रहती थी चुदाई के लिए बस लंड ही नहीं मिलते थे.

परन्तु आज लंड भी था और बराबर खड़ा भी था.

मंगूस का लंड रतीवती कि चुत पे दस्तक दे रहा था, रतीवती एक झटके के साथ अपनी गद्दाराई जाँघे खोल देती है जाँघे खुलते है लंड चुत के दाने को रगड़ता हुआ लकीर को घिसता सीधा गांड के छेद को खटखटाने लगता है.

आह्हःम.... इस छुअन, इस रगड़न से रतीवती सिहर जाती है अपनी टांगे और ज्यादा खोल लेटी है, मंगूस अब बार बार ऐसा ही कर रहा था रतीवती हवस उत्तेजना मे सर पटक रही थी उसके सहन के बाहर था... लेकिन मजेदार बात यही थी कि रतीवती बोलती नहीं थी बस कर देती थी..

रतीवती धीरे से अपना हाथ नीचे ले जा के मंगूस का लंड पकड़ लेती है और सीधा गांड के मुहाने पे टिका देती है.

लंड चुत के पानी से भीग चूका था... पच कर के एक ही बार मे सरसराता अंदर खुद जाता है, मंगूस के टट्टे रतीवती कि गांड पे तपाक से पड़ते है, गांड थलथला के हिलती है. स्तन तो अपनी आजादी का मौज ले रहे थे,

चूसे काटे जाने से और भी खिल चुके थे.

मंगूस के मजे कि कोई सीमा नहीं थी.. आज किसी गरम भट्टी मे उसने लंड दे मारा था,

अंदर लंड बार बार मांस के लोथड़ो से टकराता, रतीवती काम उत्तेजना मे गांडभींच लेती थी जब मंगूस लंड बाहर खींचता तो लगता जैसे गांड अंदर से बाहर ही आ जाएगी.

रतीवती:- आअह्ह्ह... और अंदर और तेज़

सिसकारिया गूंजने लगी थी कमरे मे फचा फच करती गांड पेली जा रही थी .

रतीवती को इतने से भी सब्र नहीं था पता नहीं किस आग मे जल रही थी उसकी चुत

वो अपना एक हाथ चुत तक ले जाती है और फछाक से कलाई तक पूरा हाथ चुत मे डाल देती है

आअह्ह्हम्म...... मेरी चुत

मारो मेरी गांड और जोर से

मंगूस तो ऐसी हवस ऐसा रंडिपान देख हैरान ही रह गया उसका जोश दुगना हो गया था पूरी ताकत से गांड मे लंड पेल रहा था, दृश्य ऐसा था कि कोई देख लेता तो उसकी जिंदगी फना हो जाती, चूड़ी से भरे हाथ कलाई तक चुत मे धसे हुए थे, मजबूत बड़ा लंड गांड के उबड़ खबड़ रास्ते पर धक्के लगा रहा था.

रतीवती लगातार सिसकरती अपना सर इधर उधर पटक रही थी.

रंगा बिल्ला के अड्डे पर कामवती का हाल भी कुछ ऐसा ही था,ब्लाउज के बटन खुल. चुके थे, वो अपने एक हाथ से अपने दोनों स्तनों को ढकने कि नाकाम कोशिश कर रही थी. रंगा उसकेपास आ के जोर से सांस लेता है.


रंगा :- आअह्ह्ह.... बिल्ला क्या क्या खुशबू है, कच्ची कली कि खुशबू.

आअह्ह्ह..... बिल्ला भी रतीवती के एक हाँथ को पकड़ ऊँचा कर देता हैऔर उसकी बगल कि खुशबू लेता है

आह्हः.. हाहाहा.... क्या खुशबू है यार रंगा तू सही कहता था अब सहन नहीं होता चल पहले तो इसकी सुहागरात आज ही मना देते है.

कामवती ये सुन के बिल्कुल घबरा जाती है उसकी धड़कन ट्रैन बन चुकीथी, तेज़ धड़कने से स्तन काँप रहे थे, पसीने से भीगे हुए थे..

रंगा कामवती को पलट देता है, कामवती पेट के बल लेट जाती है, वो बेबस थी मजबूर थी.

बिल्ला उसके हाथ आगे से पकड़ लेता है, " यार रंगा इसकी बगल कि खुशबू इतनी मादक है तो गांड और चुत से कैसी खुशबू अति होंगी ".

रंगा :- हाँ बिल्ला अभी देख लेते है, रंगा कामवती का लेहंगा पकड़ लेता है परन्तु जैसे ही वो लहंगा ऊपर उठाने लगता है कही से एक भयानक काला भुजंग सांप आ के कामवती कि जांघो पे लहंगे के ऊपर से लिपट जाता है और लगातार कसता चला जाता है.

नागेंद्र :- कामवती मुझे माफ़ करना मेरे पास सिर्फ यही तरीका है तुम्हे बचाने का, काश श्राप के कारण मेरी शक्तियां विलुप्त ना हुई होती तो इन राक्षसों को जीवित ना छोड़ता.

रंगा बिल्ला एक पल को डर गये,कामवती भी घबरा के सीधी हो बैठी और अपने ब्लाउज को पकड़ जैसे तैसे अपने बड़े स्तनों को काबू मे कर चोली मे फसा लिया.

तभी गोली चलने कि आवाज़ आती है...

धाययय....

किसको लगी गोली?

**********



नागेंद्र कामवती कि जांघो पे लिपटा फूंकार रहा था भयानक रूप धारण किये हुआ था, इस से ज़्यदा वो कर भी क्या सकता था जहर तो बचा नहीं थी...

रंगा बिल्ला अचानक हमले से चौक जाते है और छीटक के कामवती को छोड़ देते है.

तभी एज़ आवाज़ गूंजती है घायययय...

एक गोली कही से चलती हुई बिल्ला कि बाहाँ को चीर देती है, सभी लोग अचानक होती घटना से अचंभित थे,

रंगा कुछ समझने लायक नहीं था, बिल्ला गोली के झटके से संतुलन खो कमरे कि खिड़की के पास जा गिरता है,

गोली दरोगा वीरप्रताप कि राइफल से निकली थी जो कि अपनी प्रतिज्ञा के चलते समय पे पहुंच चुके थे,

पीछे से दरोगा के आदमी भी भागते हुए वहाँ पहुंचते है.

हवलदार :- साहब रंगा बिल्ला के सभी आदमी मारे गये है.

दरोगा :- शाबास लखन शबास वो देखो इनके सरदार एक भीगी बिल्ली बना पड़ा है दूसरा गोली खा के मरने के कगार पे है.

हाहाहाहाहा... हाहाहाहा..

जोरदार ठहका लगा देता है उसे अपने सफलता पे अतिआत्मविश्वास हो चला था अपितु उसे यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी आसानी से रंगा बिल्ला हाथ आ जायेंगे.

दरोगा :- देख लखन देख... जिन डाकुओ से सारा इलाका काँपता है, जिनका खौफ फैला हुआ है उन्हें हमने पकड़ लिया.

कब्जे मे लो सालो को....

लखन और उसके आदमी जैसे ही आगे बढ़ने को होते है

तभी अचानक खिड़की के पास एक साया प्रकट होता  है निपट अँधेरी रात मे सिर्फ एक परछाई दिखती है.

परछाई बिल्ला को पकड़ती है और रस्सी के सहारे खिड़की से नीचे कुदा देता है साथ ही खुद भी गायब.

दरोगा के आदमी जब तक पहुंचते बिल्ला और परछाई गायब... बचता है सिर्फ रंगा.

लखन :- साहेब यहाँ तो कोई नहीं है लगता है बिल्ला भाग गया.

दरोगा :- कोई बात नहीं रंगा तो हाथ आया बिल्ला को तो वैसे ही गोली लगी है ज्यादा दिन नहीं जी पायेगा. हाहाहाहाा.....

दरोगा वीरप्रताप बहुत ख़ुश था उसनेअपने जीवन का मुकाम हाशिल कर लिया था बिल्ला घायल मारने को था रंगा उसकी गिरफ्त मे था.

वीर प्रताप कामयाब हो चूका था....


यहाँ रामनिवास के घर पे मंगूस को भी कामयाब होना था लेकिन कैसे हो रतीवती तो काम कि देवी थी हार कहाँ मानती थी, जितना चोदो सब कम है....

मंगूस :- मुझे कामयाब होना है तो इस स्त्री को काबू करना ही होगा, ये सोच के मंगूस रतीवती को उल्टा पटक देता है और उसके ऊपर सवार हो जाता है.

उसका लंड अभी भी रतीवती कि गांड मे घुसा हुआ था पूरा जड़ तक टपा टप मारे जा था, रतीवती कामुक आहे भर रही थी वो तो कब से इसी अग्नि मे जल रही थी, वो भी अपनी गांड मंगूस के लंड पे पटक रही थी.

रतीवती :- जो भी है ये शख्स कमाल का है गांड कि खुजली मिट रही है.

मंगूस :- हे भगवान क्या स्त्री है स्सखालित होने का नाम ही नहीं लेती.... फच फच पच कि आवाज़ करता चुत से पानी का सागर छलके जा रहा था जिसे रतीवती अपना हाथ डाले रोकने कि नाकाम कोशिश कर रही थी.चुत के दाने को घिसी जा रही थी, इसे अपनी चुत रुपी नदी पे बाँध बनाना था, परन्तु भला कभी कोई हवस को रोक पाया है जो आज रतीवती रोकती


मंगूस अब देर नहीं कर सकता था,

वो कामअग्नि मे जलती रतीवती को बिस्तर से नीचे पलट देता है उसका सर नीचे और गांड बिस्तर के सहारे ऊपर को थी.

इस कला ऐसे आसन से रतीवती घन घना गई और उत्तेजना मे एक पानी का फव्वारा मार दिया जो ऊपर उछल वापस नीचे आ के सीधा रतीवती के मुँह मे गिरा, खुद कि चुत का पानी पी के रतीवती तृप्त होने लगी आंखे बंद किये स्वाद ही ले रही थी कि गरम पानी छोड़ती चुत मे मोटा सा कुछ सरकने लगा, और धीरे धीरे जा बच्चेदानी से जा लगा ये वही खूबसूरत बच्चेदानी है जहाँ से कामवती जैसी अप्सरा निकली है..

रतीवती सिसकारी मारती आंखे खोलती है मनहूस पूरी तरह उसकी चुत ने लंड फ़साये खड़ा रहा

रतीवती नीचे से मंगूस का गोरा लंड अपनी चुत मे धसा देख पा रही थी...

आअह्ह्ह..... चोदो मुझे रहा नहीं जा रहा कस के चोदो फाड़ दो चुत

मंगूस गचा गच चुत मे लंड पिरोये जा रहा था, ऐसी उत्तेजक और गरम चिकनी पानी से भरी चुत रोज़ नहीं मिला करती.

नीचे रतीवती सर पटक रही थी, अपने स्तन नोच रही थी मांग मे सिदुर लगाए माथे पे बिंदी सजाये एक कामुक औरत को और क्या चाहिए.

मंगूस अब तेज़ हो चूका था पूरी रफ़्तार से चुत मारे जा रहा था टप थप थप.... कि आवाज़ गूंज रही थी.

गांड का छेद खुल बंद हो रहा था,मंगूस गांड पे ढेर सारा थूक देता है और उस थूक को ऊँगली से गांड के छेद के चारो तरफ फैलाने लगता है..

आअह्ह्ह...... इस अहसास ने तो जान ही ले ली रतीवतीं कि. भयंकर सिसकारी कि गरजना उठीं थी रतीवती के मुँह से.

मंगूस :- लगता है यही है इसका कमजोर बिंदु.

ऐसा सोच वो पक से एक ऊँगली गांड मे डाल देता है और गांड को अंदर से कुरेदने लगता है. चुत मे पड़ते लंड और गांड मे घुसी ऊँगली एक अलग ही गुदगुदी मचा रही थी,चुत से निकलता करंट नाभी को भेद रहा था.

रतीवती उत्तेजना के उन्माद मे गांड ऊपर कि और धकेल रही थी चाहती थी कि गांड कि जड़ तक कुछ पहुंच जाये.

तड़प रही थी, बेचैन थी उसे वो चरम सुख चाहिए था जिसका परिचय डॉ. असलम से मिला था लेकिन ये कुछ अलग था कुछ नया था.

जहाँ डॉ. असलम पे रतीवती हावी रहती थी वही आज मंगूस भारी था काम कला का अलग सबक सिख़ रही थी रतीवती.

चुत से निकलते पानी को मंगूस अच्छे से हाथ मे लपेट लेता है और एक तीखी आवाज़ धक फच केसाथ गांड का छेद बड़ा होता चला जाता है मंगूस कलाई तक हाथ पूरा गांड मे उतार चूका था.

आअह्ह्हम...... ये क्या किया आहहहह मरी मै रतीवती सिहर उठी उन्माद मे जोर से चीख पड़ी परन्तु ये चीख किसी के कान तक ना पहुंच सकी सब थके हारे गहरी नींद मे थे ....

गहरी तो रतीवती कि गांड भी थी, मंगूस लंड का धक्का रोक चूका था लंड सिर्फ अंदर बच्चेदानी के साथ चुम्बन कि अवस्था मे था परन्तु मंगूस का हाथ कहर ढा रहा था आज इस मादक स्त्री पे.

मंगूस अपना हाथ गांड ने घुसाए अंदर मुठी ने गांड के मांस को टटोल रहा था, भींच रहा रहा नोच रहा था.

पांचो उंगलियां गांड से खेल रही थी वो भी अंदर... लगता था जैसे मंगूस किसी संकरे खड्डे मे हाथ डाले मछली पकड़ रहा हो, कभी पकड़ाई अति तो कभी हाथ से छूटजाती..

रतीवती बेसुध हो गई थी, पसीने से लाल सिदूर चेहरे पे फ़ैल गया था, स्तन तेज़ी से ऊपर नीचे हो रहे थे. ऐसा सुख वो भी गांड के रास्ते ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं.

रतीवती मंगूस का हाथ पकड़ लेती है, उसपे दबाव बनाने लगती है जैसे कह रही हो और अंदर डालों भींच लो पकड़ के.... आअह्ह्ह.... सिसकारी बंद होने का  नाम नहीं ले रही थी.

मंगूस गांड के मांस को अंदर से पकड़ के थोड़ा बाहर खिंचता फिर छोड़ देता... रतीवती तो दोहरी ही होती जा रही थी, अब लंड भी चल पड़ा था इसी रास्ते पे...

चुत और गांड के बीच सिर्फ एक पतली से चमड़ी ही थी... चुत मे जाते लंड को मंगूस का हाथ गांड से ही महसूस कर रहा था. वो गांड मे हाथ डाले ही खुद के लंड को पकडडने कि कोशिश करने लगता है.... ऐसा मजा ऐसा सुख रतीवती सहन ही ना कर सकी.... भरभरा के फछाक से सफ़ेद पानी के फव्वारा चुत से निकल पड़ता है, फव्वारा इतना प्रेशर से निकलता है कि अंदर घुसे लंड को बाहर फेंक देता है.... रतीवती कि चुत काँपे जा रही थी... गांड को इतनी जोर से भींच लिया था कि मंगूस का हाथ अंदर ही फस गया थ.... गांड मे हाथ फ़साये मंगूस रतीवती के बदन मे होते झटको को महसूस कर रहा था.

चुत से पानी निकल निकल के सीधा रतीवती के मुँह मे गिर रहा था क्युकी उसका मुँह नीचे और गांड ऊपर थी..

बेसुध अपनी चरम अवस्था को महसूस करती रतीवती मुँह खोले पड़ी थी उसकी आंखे बंद हो चुकी थी लगता था अब नहीं उठेगी.

मंगूस धीरे से पुक कि आवाज़ के साथ गांड से अपना हाथ बाहर निकलता है अब वहाँ बड़ा से द्वार खुल चूका था.

बेहोशी कि हालत मे पड़ी रतीवती को कोई सुध नहीं थी कि उसके जिस्म से सोने के गहने खुलते चले जा रहे है....

सोने के कंगन, मंगलसूत्र, कान कि बलिया... सब उतरने लगे.

मंगूस को अपना खजाना मिल चूका था और रतीवती भी चरमसुःख का खजाना प्राप्त कर चुकी थी...

धीरे से दरवाज़ा खुलता है और जैसे अँधेरे से पैदा हुआ था वैसे ही अँधेरे मे गायब....

मंगूस अपने घर जा रहा था!

कही और भी घोर अँधेरे मे एक साया बिल्ला को थामे लड़खड़ाते लिए चले जा रहा था. बाह मे गोली धसी हुई थी, लगातार खून बहे जा रहा था, लगता था बिल्ला अब मरा कि तब मरा.

मालिक कुछ नहीं होगा आपको? मै हूँ ना?

आप मर नहीं सकते.

तो क्या बिल्ला मर जायेगा?

और मंगूस कहाँ चल दिया? कहाँ रहता है मंगूस?

कथा जारी है... बने रहिये




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