चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट -12
सब कुछ शांत हो चूका था, जैसे कोई तूफान आ के गया हो.
ठाकुर साहेब कि सवारी विषरूप चल पड़ी थी, रंगा गिरफ्तार था, कामवती के गहने और इज़्ज़त दोनों लूटने से बच गई थी परन्तु इस बीच नागेंद्र ना जाने कहाँ गायब था वो ना होता तो कामवती कि कुंवारी खूबसूरत चिकनी चुत सबके सामने उघाडी हो गई होती.
कामवती ठाकुर और असलम के साथ उनकी गाड़ी मे बैठी थी.
डॉ. असलम :- अल्लाह का शुक्र है ठाकुर साहेब आज लूटने से बच गये वरना कोई अनहोनी हो जाती.
ठाकुर :- हाँ असलम देवता गण हम पे मेहरबान है, कल दरोगा वीरप्रताप को बुलावा भेजिएगा आखिर उनकी चालाकी और सजकता से ही हमारी पत्नी बच पाई है.
ऐसा कह वो कामवती कि तरफ देख मुस्कुरा देते है.
वही कामवती लालजोड़े मे आंख झुकाये,घुंघट मे सुंदरता छुपाये सोच रही थी उसे कुछ कुछ धुंधला नजर आ रहा था, लगता था जैसे ये सब पहले भी हुआ हो?
वो नाग कौन था? मुझे उस से डर क्यों नहीं लग रहा था, जबकि कितना भयानक था वो?
कई सवाल कामवती के जहन मे कोंध रहे थे.
जिसका जवाब या तो नागेंद्र जनता था या फिर वक़्त.
सब कुछ शांत चल रहा था...
शांति तो रूपवती कि हवेली मे भी थी.
गांव घुड़पुर जहाँ वीरा अभी अभी रूपवती कि चुत और गांड को अपनी खुर्दरी जीभ से सहला रहा था, रूपवती जबरदस्त स्सखलन को प्राप्त कर वीरा के नीचे लेटी सांसे भर रही थी उसकी नजरों के सामने काला भयानक वीरा का लंड झूल रहा था.
रूपवती कि नजर उसी लंड पे जमीं हुई थी, उसकी आंखे आश्चरय से फटी जा रही थी,
ये इंसान का लंड है या किसी घोड़े का?
इतना बड़ा लंड देख उसकी चुत कि खुजली बढ़ने लगी थी अभी अभी उसकी चुत ने बेतहाशा पानी बहाया था, काली चुत फिर रोने लगी.... जैसे कोई बच्चा अपनी पसंदीदा मिठाई के लिए रोता है आँखों से पानी बहाता है.
धीरे धीरे रूपवती अपने धड को ऊपर उठाती है, उसके स्तन आज़ाद थे, उसके उठने से हिल रहे थे जिनका बोझ उठाना ही मुश्किल था, रूपवती इन पहाड़ो को उठाये वीरा के लंड तक पहुंच गई थी, उसे छू के देखना था कि असली ही है या फिर कोई खिलौना, वो धीरे से अपना हाथ वीरा के बड़े लटके लंड पे रख देती है
वीरा इस मादक और कोमल छुआन से सिहर उठता है, हज़ारो साल बाढ़ उसके लंड पे किसी स्त्री का हाथ लगा था... आअह्ह्ह... उम्म्म्म...
रूपवती समझ जाती है कि वीरा भी यही चाहता है वो अपनी हथेली मे लंड को पकड़ने कि कोशिश करती है परन्तु वीरा का लोड़ा इतना मोटा था कि मुट्ठी मे बंद करना मुश्किल था,
वो अपने हाथ से जितना पकड़ सकती थी उतना पकडे ही हाथ ऊपर ले जाने लगी, जब हाथ लंड के जड़ तक पहुंच गया तो उसके हथेली से दो बड़ी बड़ी गेंद कि आकृति कि कोई चीज टकराती है,
"ये क्या है?"
रूपवती जिज्ञासावंश आंखे ऊपर कर के देखती है तो उसके तो होश ही फाकता हो जाते है, आंखे अपने कटोरे से निकलने को होती है... इतने बड़े टट्टे? हे भगवान इस शख्स के टट्टो मे कितना वीर्य होगा.
कोतुहल से भरी टट्टो पे अपने दोनों हाथ रख देती है जैसे जाँच रही हो कि कितना वीर्य है इनमे.
टट्टे सहलाये जाने से वीरा के पुरे बदन मे सनसनी मच जाती है, उसका लंड अति उत्तेजना मे सीधा खड़ा हो झटके मारने लगता है, रूपवती भी लंड को मचलता देख अपनी चुत सहला देती है
आह्हः.... कैसी तड़प है ये, प्यास बुझ क्यों नहीं रही मेरी.
जितना पानी निकलता है उतना ही सहलाने का मन करता है चुत को.
अब रूपवती एक हाथ से चुत सहला रही थी और दूसरे हाथ से वीरा के बड़े टट्टे.
चुत सहलाये जाने से उसकी मादक मोटी काली गांड हिल रही थी, वीरा मुँह नीचे झुकाये रूपवती के खेल को देख रह था उसकी उत्तेजना कि कोई सीमा नहीं थी.
रूपवती वीरा के दोनों पैरो के बीच अपनी मादक गांड को हिलाती बैठ जाती है, उसे लंड का स्वाद चाहिए था अब अपनी नाक को वीरा के लंड कि नोक पे रख देती है और जोर से सांस खिंचती है एक मादक खुशबु बदन मे भरती चली जाती है, इस मादक खुशबू का असर चुत के अंदरूनी हिस्सों पे हो रहा था.. गांड खुल के बाहर आ रही थी.
ये उत्तेजक मादक महक एक मजबूत लंड ही दे सकता था.
रूपवती जीभ से लंड के आगे के चोड़े हिस्से को छू लेती है.
वीरा के लिए ये अहसास अद्भुत था, बरसो से सुखी बंजर भूमि पे पानी कि पहली बून्द थी.
ऊपर से रूपवती इस कदर हवस और मदकता मे खोई थी कि उसे सिर्फ लंड दिख रहा था बड़ा लंड.
अब इस लंड का मालिक कोई भी हो फर्क नहीं पड़ता, प्यासा कुवा, नदी, झरना नहीं सिर्फ पानी देखता है.
रूपवती जितना हो सकता था उतना मुँह खोल लेती है और वीरा के लंड को एक हाथ से पकड़ मुँह पे टिका लेती है लंड धीरे धीरे मुँह मे सरकाने लगती है.
रूपवती पहली बार कोई लंड ले रही थी, अब उसमे ये सब कला तांत्रिक का वीर्य पीने के बाद खुद ही विकसित हो गई थी वैसे भी हवस मे डूबा इंसान अपने आप नये नये तरीके कि खोज कर ही लेता है.
रूपवती धीरे धीरे मुँह को आगे पीछे करने लगती है, उसका एक हाथ अभी भी वीरा के टट्टे सहला रहा था. जीभ हलक से निकाल के टट्टो को गिला कर रही थी.
ये वीरा कि उतीजना को बड़ा रहे थे,वीरा को अपना लंड किसी गरम गीले लावे मे धस्ता महसूस हो रहा था,. वो आंनद मे सिसकारिया भरे जा रहा था, नीचे रूपवती बेसुध लंड चूसने मे व्यस्त थी, कभी लंड चूसते चूसते जबान वीरा कि गांड टक भी पहुंच जाती
उसके होंठो से रह रह के थूक लार कि शक्ल मे टपक रहा था, रूपवती थोड़ी हिम्मत दिखाती अपना मुँह लंड पे मार रही थी जैसे गन्ना बरसो बाद चूसने को मिला हो, मुँह मे लंड डाले जीभ से अगले हिस्से को कुरेद भी रही थी.... वीरा तो इतने सालो मे सम्भोग का सुख ही भूल गया था, उसकी सम्भोग कला को एक मादक काली हवस मे डूबी स्त्री जगा रही थी.
चूसते चूसते एक समय आया जब वीरा के लंड बिना किसी रोक टोक के गले तक उतर जा रहा था, जब गले से बाहर निकलता तो ढेर सारा थूक साथ ले आता वो थूक होंठो से गिरता स्तन को पूरी तरह भीगा चूका था, स्तन से होता चुत तक पहुंच रहा था.
जैसे कोई झरना स्तन रूपी पहाड़ से गिर के चुत, गांड रूपी खाई मे गिर रहा हो. रूपवती लगातार थूक और कामरस से भीगी चुत मे ऊँगली मारे जा रही थी अब भला ऊँगली लावा रोक सकती है, रूपवती उत्तेजना मे पागल हो गई थी उसे लंड चाहिए था अपनी चुत मे,
वो तुरंत खड़ी होती है और वीरा के के आगे दिवार पे हाथ रखे अपनी गांड वीरा के सामने खोल के खड़ी हो जाती है.
वीरा बरसो बाद किसी कामुक स्त्री से मिल रहा है वो समझ गया था कि दोनों कि प्यास सिर्फ इस गुफा मे घुसने से ही मिटेगी.
वीरा का लंड अब गांड पे इधर उधर छटपटा रहा था, रूपवती एक हाथ पीछे ले जा के वीरा के लंड को पकड़ गांड के बीच स्थित काली गहरी खाई मे रख देती है,
वीरा के लंड का टोपा इतना बड़ा था कि उसके घेराव मे चुत और गांड का छेद एक साथ आ रहे थे.
रूपवती तो लंड को अपने दोनों छेदो पे एक साथ महसूस कर रही थी उसके आनंद कि कोई सीमा नहीं थी वो अपनी बड़ी गांड थोड़ा सा हिलाती है जैसे वीरा को बोल रही हो कि मै तैयार हूँ तुम आगे बढ़ो.
वीरा भी समझ जाता है और थोड़ा आगे बढ़ता है परन्तु छेद छोटे लंड बड़ा कैसे घुसता... वीरा का लंड फिसलता हुआ गांड के छेद को रगड़ता कमर पे जा लगता है,
अब मजा तो इस रगड़ाई मे भी था, लेकिन चुत रगड़ाई के लिए नहीं सम्भोग के लिए बनी होती है, मादक हवस से भरी स्त्री अपनी चुत मे कुछ भी समा सकती है.
वीरा वापस पीछे को आ के अपना लंड दरार मे डालता है, फिर आगे होने लगता है लंड वापस फिसलने ही वाला था कि रूपवती तुरंत हाथ पीछे ले जा के गांड के दोनों हिस्सों को को जोर लगा के खिंचती है.
आअह्ह्ह..... एक भयानक चींख गूंज जाती है वातावरण मे. आअह्ह्ह..... वीरा
वीरा के लंड का टोपा फचक से चुत फाड़ता समा गया था अंदर, चुत अत्यंत गीली थी उसके बावजूद रूपवती को लगा कि जैसे वो कुंवारी है आज उसकी चुत फटी है
देखा जाये तो बात सही भी थी, ठाकुर ज़ालिम का 3इंच का लंड क्या खाक खोल पाया होगा रूपवती कि चुत को.
दर्द बर्दाश्त के बाहर था परन्तु आज दर्द पे हवस भारी थी, मदकता सवार थी.
रूपवती दिवार का सहारा लिए सांसे दुरुस्त कर ही रही थी कि... एक जबरदस्त झटका और लगा.
आअह्ह्ह.... मेरी बच्चेदानी आह्हः....
वीरा को आज हज़ारो साल बाद चुत मिली थी वो सहन नहीं कर पाया था और बिना सोचे ही दूसरा झटका भी दे मारा... वीरा का लंड बच्चेदानी को चीर के सीधा अंदर ही प्रवेश कर गया था.
रूपवती कि चुत से खून छलछला उठा था.
आअह्ह्ह.... नहीं रुक जाओ
उत्तेजना उतरने लगी थी रूपवती कि.
लेकिन आज वीरा नहीं मानने का था और ना ही माना.
धक्के मारने लगा एक के बाद एक... धका धक धका धक रूपवती बेहोशी कि हालत मे आंखे बंद किये दर्द से चीखे जा रही थी ...
पीछे टप टप टप... करते वीरा के टट्टे रूपवती कि गांड पे पड़ रहे थे गांड थल थला रही थी, रूपवती कि हवस का केंद्र उसकी गांड ही थी,
गांड ले पड़ते टट्टो कि मार से वो होश मे आने लगी उसने नीचे झुक के देखा तो पाया कि लंड जड़ तक उसकी चुत मे जा रहा था, जब वीरा का लंड अंदर जाता तो नाभी तक महसूस होता, और जब वीरा लंड बाहर खिंचता तो लगता जैसे बच्चेदानी भी चुत के रास्ते बाहर आ जाएगी.
ये सब एक अलग ही अहसास पैदा कर रहे थे रूपवती के बदन मे, उसका शरीर जल उठा, उत्तेजना उठने लगी
उसे इस सम्भोग मे आंनद आ रहा था सही मायनो मे आज उसका कोमर्या भंग हुआ था.
ऊपर से दो बॉल के आकर के टट्टे गांड पे किसी थप्पड़ कि तरह चटा चट पड़ रहे थे.
आह्हः.... ऐसे ही जोर से मार और जोर से.
वीरा हैरान था स्त्री कि ताकत पे कि जब चुत मे लेने पे आ जाये तो दुनिया के सम्पूर्ण लंड अपनी चुत मे डाल ले लेकिन उफ़ तक ना करे...
आअह्ह्ह...... वीरा कुछ कुछ घोड़े कि तरह आवाज़ निकाल रहा था.... वीरा और दम लगा के पेलने लगा पच पच पच कि आवाज़ से हवेली गूंज रही थी...
और जोर से.. रूपवती इस कदर हवस मे पागल थी कि 15 इंच लंड पूरा उसकी चुत मे था फिर भी उसे और चाहिए था.
वीरा भी उत्तेजना जोश से पागल हो चूका था उसे रोकना खुद कि मौत को दावत देने के बराबर था.
वीरा जोर दार तरीके से गच से पूरा लंड रूपवती कि चुत मे डाल के रुक जाता है, रूपवती बहुत ही आश्चर्य के साथ पीछे देखती है कि रुक क्यों गया वीरा, परन्तु जैसे ही वो ये जानने कि कोशिश करती है पीछे से एक जोड़ी हाथ उसके जांघो के निचली तरफ लिपट जाते है ओर एक ही झटके मे ऊपर उठा के उसकी पीठ को अपने सीने से चिपका लेता है, रूपवती दर्द से चीखती हवस मे डूबी नीचे को देखती है उसकी चुत मे 15 इंच का खुटा गड़ा हुआ था वो उसके लंड के सहारे टिकी हुई वीरा के बालदार सीने से लगी हुई थी.
अब आलम ये था कि वीरा रूपवती को अपने लंड पे बिठाये सीधा खड़ा था,
रूपवती तो इस तरह के आसन से दोहरी हो गई लंड जितना हो सकता था उतना अंदर तक चला गया, उसकी सांसे टंग गई.
सांस भरती ही कि वीरा ने एक धक्का मार दिया नीचे से.... फिर क्या एक के बाद एक धका धक धका धक... रूपवती को अपने लंड पे उछाले जा रहा था.
ऐसा आंनद ऐसी कामुकता रूपवती पे भारी पड़ रही थी.
उसकी चुत से खून और पानी का मिला जुला रस टपक टपक के जमीन पे गिर रहा था.
वीरा मोटी काली काया को अपने लंड पे उछाल रहा था ऐसा कारनामा और कोई कर ही नहीं सकता था.
रूपवती के मजे का ठिकाना नहीं था... आह्हः... आह्हः.... करती अपने मोटे बड़े स्तनो को नोच रही थी, निप्पल मरोड़ रही थी. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई इंसान उस जैसे भारी भरकम महिला को ऐसे उठा के चोद सकता है.
नीचे धचा धच लंड चोट मारे जा रहा था,1घंटे तक घिसने के बाद वीरा का धैर्य जवाब देने लगा वो बेचैन होने लगा लगातार सिसकारी मार रहा था.... रूपवती भी पसीने पसीने हो चुकी थी स्तन रगड़ रगड़ के लाल कर दिए थे.
उसे गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही थी.... वो फट पड़ी
उसकी गांड से तेज़ हवा निकली फॉररर..... और चुत ने गर्म लावा उगलना शुरू कर लिया.
आह्हः.... मै गई... सफ़ेद रंग का गाड़ा पानी लंड को भिगोने लगा.
कामरस इतना गरम था कि वीरा भी सहन नहीं कर पाया.
और जोर से गुरराते हुए..जिसमे थोड़ी हिनहिनाहत जैसी आवाज़ थी .. बरसो पुराने वीर्य को निकालने लगा..
आअह्ह्ह....... ये क्या घोड़े जैसी आवाज़ कहाँ से आई ?
मोटे चिपचिपे गाढ़े वीर्य कि बौछार रूपवती कि चुत मे होने लगी, वीरा का वीर्य सीधा रूपवती कि बच्चेदानी मे ही भरने लगा आअह्ह्ह...।.... कितना गर्म है तेरा वीर्य लग रहा है जैसे किसी ने मेरे पेट मे लावा भर दिया है.
वीर्य निकले ही जा रहा था, फच फच फच..... करता वीरा चिल्ला पड़ा आअह्ह्हह्ह्ह्ह.........कामवती
ये क्या कामवती का नाम?
रूपवती कि बच्चेदानी पूरी तरह से वीर्य से भर चुकी थी... अपने उन्माद मे डूबी रूपवती ने उस शख्स के गले से निकली कामवती शब्द को सुन लिया था..
वीरा अभी भी इन सब से अनजान अपने स्सखालन को महसूस कर रहा था, एक आखरी बार वीर्य कि धार वो रूपवती कि चुत मे छोड़ता है..
आअह्ह्ह.... मेरी कामवती आह्हः...
और रूपवती को साथ लिए जमीन पे धाराशयी हो जाता है उसका लंड अभी भी रूपवती कि बच्चेदानी मे ही फसा हुआ था.
आह्हः..... करता सांसे भर रहा था रूपवती का भी यही हाल था परन्तु वो उस शख्स
के मुँह से कामवती का नाम सुन के हैरान भी थी.
उसका पेट फूल के बाहर निकल आया उसमे वीरा का वीर्य भरा पड़ा था बाहर आने कि कोई जगह नहीं थी चुत ने लंड को बुरी तरह जकड़ा हुआ था..
वीरा धीरे से आंखे खोलता है तो सामने रूपवती को देख उसकी चुत मे समाया लंड देख उसके होश उड़ जाते है
उन्माद ओर कामवासना मे आज वो अपने इंसानी रूप. मे आ गया था ओर रूपवती के साथ सहवास कर बैठा, इतने सालो से जो राज छुपा के रखा था वो खुल गया था.
रूपवती :- तुम कौन हो? और ये कामवती कौन है? तुम्हारे मुँह से सम्भोग करते वक़्त घोड़े जैसे आवाज़ क्यों आ रही थी?
मेरा घोड़ा वीरा कहाँ गया?
वीरा :- चुप चाप पड़ा रहता है.
रूपवती :- बोलो मेरी बात का जवाब दो, तुम मुझसे झूठ नहीं बोल सकते अभी भी तुम्हारा लंड मेरी चुत मे फसा हुआ है,कौन हो तुम?
वीरा :-मालकिन...... आखिर वीरा बोल ही देता है.
मालिकिन मै वीरा ही हूँ, मै इच्छाधारी घोड़ा हूँ ओर ये मेरा इंसानी रूप है.
मै कभी कभी रात को अपने इंसानी रूप मे ही विचरता हूँ.आपने मेरा जीवन बचाया उसके लिये मे जिंदगी भर आपका कर्ज़ादार, वफादार रहूंगा.मुझे माफ़ कर दीजिये मैंने आपके साथ सम्भोग किया.
रूपवती :- वीरा इसमें कर्जदार जैसी कोई बात नहीं है, और तुमने सम्भोग नहीं किया मैंने किया मै हवस मे पागल हो गई थी कई सालो से तड़प रही थी इस आग मे.
तुमने तो मेरी सेवा कि. तुम मुझे मालकिन बोलते हो तो मेरी सेवा करना तो तुम्हारा फर्ज़ है. ऐसा कह रूपवती मुस्कुरा देती है.
अभी तक वीरा का लंड, चुत मे ही फसा पड़ा था.
वीरा लंड को निकालने के लिए बाहर खिंचता है रूपवती को लगता है जैसे बच्चेदानी भी बाहर ही चली आएगी.
रूपवती :- कोई बात नहीं वीरा इसे अंदर ही रहने दो हमें अच्छा लग रहा है तुम्हारा लंड.
लेकिन जल्द ही मेरी जिज्ञासा शांत करो वीरा, तुम इंसानी रूप मै कैसे हो?और ये कामवती कौन है? क्या रिश्ता है तुम्हारा उस से?
अब वीरा सुनाने जा रहा है कहानी नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी कि..
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घमासान चुदाई के बाद रूपवती और वीरा सुस्ता रहे थे, दोनों को सांसे दुरुस्त हो चुकी थी, परन्तु रूपवती कि चुत छोटी होने के कारण उसने अभी तक वीरा के लम्बे मोटे भयानक लंड को कस रखा था.
रूपवती :- इसे अंदर ही रहने दो, तुम अपने बारे मे बताओ?
वीरा :- ज़ी मालकिल बोल के आराम से करवट लिए लेटे रहता है रूपवती उसकी लंड पे फसी उसके आगे गांड पीछे किये लेट जाती है.
लंड बाहर निकालने का मन ही नहीं कर रहा था.
रूपवती :- और ये मुझे बार बार मालकिन मत बोलो, मुझे अच्छा नहीं लगता वीरा.
नाम से ही बोलो तुमने तो मेरी बरसो कि प्यास बुझाई है मुझपे तो तुम्हारा अधिकार है.
वीरा :- ज़ी मालकिन.... ना ना... मेरा मतलब रूपवती
आपका अहसान तो जिंदगी भर रहेगा मुझ पे, मै मर जाता तो कामवती को कैसे पाता ये जीवन आपका ही दिया हुआ है.
रूपवती :- अच्छा ठीक है आगे बोलो ये सब शुरू कहाँ से हुआ?
वीरा :- तो सुनिए रूपवती...
चरित्र परिचय
1. ठाकुर जलन सिंह
ठाकुर ज़ालिम सिंह का लकड़दादा
रोबदार मुछे, hight 6फ़ीट, चौड़ी छाती
सारे इलाके मे गजब कि दहशत लेकिन बिस्तर पे मच्छर कि तरह लंड वही खानदानी 3इंच का
2. सर्पटा
नागो का राजा, बहुत ज़ालिम क्रूर भयानक बेहद जहरीला फूँक भी दे तो इंसान फना हो जाये.
लंड 10 इंच काला मोटा जिसको चोदने पे आता उसे मौत देके ही मानता था..
3. नागकुमार
सर्पटा का बड़ा बेटा, गोरा चिट्टा कोमल नाजुक किस्म का नाग.. लंड 7इंच
4. घुड़वती
घुड़पुर कि राजकुमारी, वीरा कि बहन
खूबसूरत जवान घोड़ी, मानवरूप मे
34 के गोरे स्तन, पतली कमरऊपर से नई नई जवानी
गांड बिल्कुल मजबूत बाहर को निकली.
जो देखे देखता रह जाये
5. नागेंद्र और वीरा के बारे मे तो जानते ही है आप लोग
बाकि कहानी मे पता चलेगा.
आज से हज़ार साल पहले इस गांव घुड़ पुर मे हम घुड़- मानवो कि बस्ती हुआ करती थी, मै वीरा यहाँ के घुड़नरेश का एकलौता पुत्र हूँ, बड़े प्यार से माता ने मेरा नाम वीरा रखा था. मेरी एक बहन भी थी घुड़वती पुरे घुड़पुर ने सबसे सुंदर मनमोहनी. कोई देखता तो सिर्फ देखता ही रह जाता.
हम लोग समय के साथ जवान हो रहे रहे.. घुड़वती पे जवानी जरा जल्दी आई मुझे युद्ध कला और विद्या लेने के लिए आश्रम भेज दिया गया.
हमारा साम्राज्य बड़ा ही भव्य था,,दूर दूर तक फ़ैला, कही किसी मानव का हस्तक्षेप नहीं था.
हम घुड़ मानव कभी भी मानव रूप, घोड़ा रूप ले सकते थे या फिर सम्मलित रूप मे भी रहते थे.
आधे इंसान आधे घोड़े.
हमारे साम्राज्य से दूर एक और साम्राज्य था "इच्छाधारी नागो" का विष रूप, जहाँ आज के वक़्त आपका ससुराल है.
वो हमारे कट्टर शत्रु है, जहाँ मिल जाये उन्हें मौत के घाट उतार दे हम लोग.
गुस्से मे वीरा गुर्राता है...
गुर्राने से उसका लंड रूपवती कि चुत मे धक्का मार देता है.
रूपवती :- आह्हः.... वीरा
आराम से, दुश्मनी क्यों थी तुम्हारी उन नाग मानवो से?
वीरा :- वहाँ का राजा था सर्पटा ज़ालिम और कुर्र उसके दो बेटे थे बड़ा बेटा नाग कुमार और छोटा बेटा नागेंद्र.
एक बार घुड़वती महल से निकल मौज मस्ती के लिए बिना किसी को बताये जंगल कि और चली गई, नई नई जवान थी दिल सेर सपाटे के लिए मचलता ही था,
अपने घुड़रूप मे सरपट दौड़े चली जा रही थी हवा का झोंका बदन मे रोमांच पैदा कर रहा था.
घुड़वती बिल्कुल सफ़ेद, चमकती चमड़ी कि मालकिन थी.
दौड़ते दौड़ते वो विष रूप के जंगलो मे पहुंच गई.
आहहहह.... क्या सुन्दर नजारा है हमने घुड़पुर मे ऐसी प्रकृति तो नहीं देखि यहाँ एक अजीब मादक गंध है जो सर चढ़ रही है.
तभी घुड़वती को एक झरना दीखता है,
वाह... क्या मनमोहक दृश्य है, कौनसी जगह है यह
जिज्ञासा वंश घुड़वती अपना घुड़रूप त्याग कर मानव रूप मे आ जाती है, कमाल कि खूबसूरत थी घुड़वती
अभी अभी जवानी फूटी थी परन्तु स्तन बड़े भारी और सुडोल थे लेश मात्र भी लचक नहीं थी.. सुन्दरचेहरा, बड़ी आंखे, सुराहीदार गर्दन.
सपाट चिकना गोरा पेट,पेट के बीच स्थित सुन्दर काली नाभी.
घुड़वाती झरने को देख खुद को रोक नहीं पाती
और धीरे धीरे पानी मे उतरने लगती है....
घुड़वतीं सुन्दर मनमोहक झरने को देख खुद को रोक नहीं पाती और धीरे धीरे कर के पानी मे उतरने लगती है
आहहहह.... कितना शीतल जल है, तन को ठंडक पंहुचा रहा है.
घुड़वती का नया नया जवान हुआ जिस्म ठन्डे पानी का लुत्फ़ उठाने लगा, उसके रोंगटे खड़े होने लगे.
हवा मे एक तरह का नशा था मादक नशा
जो घुड़वती के बदन को भिगो रहा था.
घुड़वती सम्मोहित सी झरने के पास चली जाती है, और झरने के नीचे अपने जवान सुडोल बदन को नहलाने लगती है.
लेकिन यहाँ झरने मे सिर्फ वो ही अकेली नहीं थी कोई और भी था जो इस प्रकृति इस सौंदर्य का दीवाना था.
विषरूप का बड़ा राजकुमार "नागकुमार" उसे कोई खबर नहीं थी कि कोई जवान घोड़ी उसकी और बड़ी चली आ रही है.
घुड़वती झरने के नीचे पहुंच चुकी थी, ठन्डे पानी कि बुँदे उसके बदन पे अंगारो कि तरह गिर रही थी.
मदमस्त घोड़ी झरने के नीचे अंगड़ाई लेने लगी, उसके शरीर मे उठती मदकता जंगल मे फैलने लगी,
मदकता से भारी खुशबू जो एक जवान खूबसूरत घोड़ी कि थी वो खुशबू नागकुमार कि नाक से भी टकरा गई.
आहहहह... ये कैसी गंध है? ऐसी खुशबू तो आजतक जीवन मे कभी महसूस ही नहीं कि.
ये मुझे क्या हो रहा है? मेरे लिंग का आकर क्यों बढ़ रहा है.
आअह्ह्ह.... इस खुशबू मे नशा है.
नागकुमारगंध से आकर्षित हो घुड़वती कि दिशा कि तरफ चल पड़ता है.
वही घुड़वाती मदहोशी मे डूबती जा रही थी, उसके हाथ खुद ही अपने स्तन पे चल पड़ते है वो उन्हें दबाने लगती है,
आअह्ह्ह.... कितना आनंद है इस वातावरण मे, मेरे बदन मे आग क्यों लग रही है.
अच्छा लग रहा है... घुड़वती कामक्रीड़ा से पहली बार परिचित हो रही थी.
वो अपने ऊपरी वस्त्र त्याग देती है, खुले वातावरण मे झरने के नीचे दो सुन्दर गुलाबी स्तन आज़ाद हो चुके थे,
बड़े और मादक स्तन जिस पर छोटे से बिंदु सामान निप्पल अंकित था.
स्तन आज़ाद होने से एक मादक और पहले से कही ज्यादा गंध निकलती है नाग कुमार को अपनी और खींचने लगती है...
गंध कि दिशा मे खींचा चला जाता है झरने से कुछ दूर पहुँचता है तो उसे झरने के नीचे जो दीखता है वो प्राण खींचने के लिए काफ़ी था, ऐसा अद्भुत सौंदर्य ऐसी काया ऐसे स्तन... उसके पैर वही झड़ी के पास ही जाम जाते है,
लगता था जैसे खून जम गया है बस आंखे जिन्दा है वो भी इसलिए जिन्दा है कि ये नजारा निहार सके.
धम्म से वही झड़ी के बीच गिर पड़ता है.
दृश्य ही ऐसा था झरने के नीचे बला कि खूबसूरत स्त्री अर्ध नग्न अवस्था मे अठखेलिया कर रही थी.
घुड़वती कभी अपने स्तन को निहारती कभी अपने सपाट खूबसूरय पेट को,
एक हाथ स्तन पे रख मसल देती तो दूसरा हाथ पेट सहलाता, उसके मुँह से हलकी हलकी सिसकारिया निकल रही थी जो कि झरने के साथ मधुर संगीत उत्पन्न कर रही थी,
घुड़वती से रहा नहीं जा रहा था उसकी टांगो के बीच कुछ हो रहा था, जैसे कोई उन्माद निकलना चाहता हो.
घुड़वतीं के लिए कामुकता का अहसास पहली बार था नया था.
जिज्ञासावंश वो अपना एक हाथ कपड़ो के ऊपर से ही चुत पे रख देती है.
आअह्ह्ह.... सुन्दर अहसास क्या हो रहा है मुझे कुछ नशा हो रहा है.
नशा तो नागकुमार को भी हो रहा था जो ये दृश्य देख जडवत था, उसका लिंग पूरा तना हुआ था
इतना तन गया था कि मारे उत्तेजना के लाल पड़ गया था.
नागकुमार भी अपना एक हाथ अपने लिंग के ऊपर रख चमड़ी को पीछे सरका देता है
नागकुमार भी ऐसा सौंदर्य ऐसा कामुक नजारा पहली बार ही देख रहा था उसके लंड से निकली मादक गंध घुड़वती के नाथूनो तक पहुंचती है.
घुड़वती :- आह्हः... ये अचानक से कैसी गंध है, कितनी मादक गंध है ये
लंड कि गंध सूंघते हीघुड़वती के बदन मे सिरहान कोंध जाती है उसकी उत्तेजना बढ़ने लगती है
उसके हाथ स्वतः ही चुत पे चलने लगते है, दाने को घिस देते है...
उत्तेजना और रगड़ से चुत का पानी छल छला जाता है.
वातावरण मे मदकता लहरा जाती है.
घुड़वती मदहोशी मे स्तन और चुत रगड़ रही थी.. नई नई जवान घोड़ी को ये अहसास अपने कब्जे मे लेता जा रहा था,
नागकुमार से अब रहा नहीं जाता वो उस मादक खुशबू मे बंधा चल पड़ता है घुड़वाती क ओर.. उसे कोई होश नहीं था उसका लंड वस्त्र से बाहर निकला पड़ा था
वो एकटक घुड़वती को देखे जा रहा था, चले जा रहा था
अचानक छप छप.. गुलुप.. कि आवाज़ से घुड़वती होश मे अति है तो सामने नागकुमार को खड़ा देख घबरा जाती है,, उसके मुँह से चीख निकल जाती है.आआआईई.....
कौन हो तुम ऐसा बोल वो खड़ी हो जाती है ओर एक हाथ से अपने बड़े सुडोल स्तन ढकने का नाकामयाब प्रयास करती है.
घुड़वती कि चीख से नागकुमार भी होश मे आता है तो पाता है कि वो बिल्कुल सामने खड़ा है अद्भुत सौंदर्य उसके ठीक सामने खड़ा था.
घुड़वती :- कौन हो तुम? यहाँ क्या कर रहे हो?
नागकुमार :- हे सुंदरी मै कौन हूँ मुझे नहीं पता, आपका सौंदर्य मुझे यहाँ खींच लाया.
नागकुमार अभी भी मदहोशी मे था.
घुड़वती :- तुम्हे शर्म नहीं अति किसी स्त्री को नहाते देखते? जानते भी हो इस दुस्साहस का अंजाम क्या होगा?
नागकुमार :- अंजाम जों हो सुंदरी सब मंजूर है बस आप युही खड़ी रहिये, इतनी सुन्दर स्त्री मैंने कभी नहीं देखि.
अब घुड़वती भी थोड़ी नरम पड़ने लगी थी अपनी तारीफ सुन के.
घुड़वती :- अच्छा मै इतनी सुन्दर हूँ?
नागकुमार :- अप्सरा है आप, आपको कौन नहीं पाना चाहेगा.
घुड़वती को वही मादक गंध महसूस होती है जो नागकुमार के लंड से निकली थी.
आह्हः... वही मदहोश करने वाली गंध.
नागकुमार कि ओर देखती है जैसे ही उसकी नजर नीचे को जाती है उसको एक सम्पूर्ण गोरा खड़ा लंड दीखता है जो लगातार एक मादक नशीली खुशबू छोड़ रहा था.
घुड़वती :- अच्छा तो ये खुशबू तुम्हारे पास से आ रही है? आप है कौन? ओर इसे क्यों बाहर निकाल रखा है?
ये सुन के नागकुमार खुद को देखता है उसका लंड बाहर को निकला हुआ था,
वो हड़बड़ा के उसे अंदर करता है ओर पीछे घूम जाता है.
नागकुमार :- माफ़ कीजिएगा सुंदरी आपके सौंदर्य कामुक बदन को देख बेकाबू हो गया था.
घुड़वती ठहरी नई जवान घोड़ी ऐसी कामुक बाते ओर मादक गंध वापस से उसके बदन को जलाने लगी.
घुड़वती :- नागकुमार के ऐसे घूमने से वो हस देती है.
अच्छा ऐसा क्या देखा?
नागकुमार :- आपकी बड़ी आंखे, सुराहीदार गर्दन, सुनहरे बाल, गोल स्तन जिन्हे आप मसल रही थी.
घुड़वती ये सुन के शर्मा जाती है.
घुड़वती :- कितने गंदे है आप ऐसी बाते भी कोई करता है.
नागकुमार :- आप जैसे अप्सरा हो तो क्यों नहीं करता
ऐसी ही नोक झोंक मे घुड़वती भी नागकुमार कि तरफ आकर्षित होने लगती है उसे जरा भी ख्याल नहीं था कि वो अर्ध नग्न अवस्था मै एक अनजान पुरुष के सामने खड़ी है.
घुड़वती और नागकुमार एक दूसरे मे खोये थे, वातावरण ही मदहोश कर देने वाली गंध से भरा पड़ा था ऊपर से दोनों ही नौ नये जवान जिस्म... दोनों ही एक दूसरे के कामुक अंगों को देख उत्तेजना महसूस कर रहे थे.
नागकुमार :- हे सुंदरी नाम क्या है तुम्हारा? कहाँ से आई हो?
घुड़वती :- हम घुड़पुर कि राजकुमारी घुड़वती है. ऐसा कह शरारत और मदहोशी मे वो अपने स्तन ढके हाँथ हटा देती है.
धम्म... से दो मदमस्त गोरे बड़े स्तन छलक जाते है.
और आप महाशय कौन है?
थोड़ा मुस्कुरा देती है
नाग कुमार को काटो तो खून नहीं. इतनी पास से ऐसी हसीन स्त्री पहली बार देख रहा था.
नागकुमार :- मै मै मममम..... मै कौन हूँ?
घुड़वती हस पड़ती है, उसे नागकुमार कि ऐसी हालत अच्छी लग रही थी.
"बोलिये बोलिये शर्माइये मत " अपने स्तन थोड़े हिला देती है.
ये नजारा देख के तो नागकुमार पानी मे ही गिर पड़ता है
आह्हः.... घुड़वती.
पानी मे गिरने से नागकुमार का निचला वस्त्र हट जाता है.
अभी चोकने की बारी घुड़वती की थी.
घुड़वती स्तंभ खड़ी रह जाती है उसने जीवन में पहली बार लंड देखा था, लंड के बाहर आ जाने से वही मादक खुशबू चारों दिशा में फैल जाती है घुड़वती जैसे ही खुशबू सूंघती है बहुत बेचैन होने लगती है क्या खुशबू है
घुड़वती :- अच्छा तो यह खुशबू तुम्हारे पास से आ रही है, ऐसा बोल घुड़वती भी पानी में उतर जाती है नाग कुमार घुड़वती को अपने पास देख कर चौक जाता है उसके लिए सब सपने जैसा था गोरे बड़े उछलते स्तन सपाट पेट गहरी नाभि नाग कुमार का लंड झटके मारने लगा झटकता लंड देखकर कर घुड़वती भी उत्तेजना महसूस करने लगी
दोनों ही जवान जिस्म एक ही आग में सुलग रहे थे
चढ़ती जवानी क्या ना करा दे दोनों के साथ वही हो रहा था
घुड़वती :- बताइए ना आप कौन हैं? उसकी आवाज़ मे अब कामुकता थी मदकता से भरे शब्द थे.
नाग कुमार. मैं मैं मैं मैं विषरूप का राजकुमार नागकुमार हूँ, एक ही झटके में सारी बात कह जाता है
घुड़वती :- अच्छा तो आप का शौक है छुप के नहाती स्त्री को देखना
वैसे यह नीचे क्या छुपा रखा है?
नाग कुमार:- कुछ भी तो नहीं, वो वो वो..तो बस ऐसे ही आपको देख के.
घुड़वती अब मदहोश हो रही थी लंड कि गंध पा कर, उसे पकड़ के देखना था महसूस करना था इस अनोखी चीज को जो उसके जवान जिस्म को बहका रही थी.
पानी मे नीचे गिरे नागकुमार के बिल्कुल पास आ के बैठ जाती है.
बताइये ना ये क्या है? लंड कि तरफ इशारा कर के पूछती है.
नागकुमार भी घुड़वती कि बात सुन सहज़ महसूस करता है लेकिन पहली बार स्त्री को इतनी पास पाकर थोड़ा घबरा रहा था थोड़ी उत्तेजना महसूस कर रहा था.
नागकुमार :- आप पकड़ के ही देख लीजिये ना घुड़वती, हिम्मत कर के बोल ही जाता है नागकुमार
घुड़वती भी समझ जाती है कि नागकुमार से कोई खतरा नहीं है, वो उसकी तरफ आकर्षित हो रही थी सुन्दर चेहरा गोरा बदन ऊपर से सुन्दर लिंग जो कि उसे मदहोश कर रहा था.
घुड़वती धीरे से अपना हाथ नागकुमार के लिंग पे रख देती है,
नागकुमार :- आअह्ह्ह.... घुड़वती ये क्या कर रही है आप? मुझे कुछ हो रहा है.
अर्ध नग्न घुड़वती कुछ सुनने सुनाने कि फिराक मे नहीं थी अपितु उसे सुनाई ही नहीं दे रहा था बस दिख रहा था ये खूबसूरत लंड.
बिना कुछ बोले वो अपनी नाक लिंग के पास ले जाती है और जोर कि सांस लेटी है.
शनिफ़्फ़्फ़.... आअह्ह्ह..... उसके मुँह से सिसकारी निकाल पड़ती है और नीचे चुत से पानी कि धार.
लंड कि गंध सीधा दिमाग मे चढ़ जाती है घुड़वती के.
नागकुमार को तो अभी भी ये समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है.
घुड़वती :- आपके इस से कोई गंध आ रही है हे नागकुमार.
नागकुमार :- मुझे तो नहीं आ रही कोई गंध, मुझे तो आपके पास से गंध आ रही है जिस वजह से मेरा लिंग खड़ा हुआ है.
आह्हः.... आपके हाथ रखने से मुझे कुछ हो रहा है राजकुमारी
दोनों जवान जिस्म आज जिंदगी का नया पाठ पड़ रहे थे, दोनों मिल के जिस्म का खजाना खोज रहे थे.
वो खजाना जो हर किसी के भाग्य मे नहीं होता.
तभी अचानक नागकुमार अपना एक हाथ बड़ा के घुड़वती के स्तन पे रख देता है..
घुड़वती चौक जाती है... आअह्ह्ह.... नागकुमार अच्छा लग रहा है.
सिर्फ मर्दाना छुवन भर से घुड़वती सिसक उठती है.
ऐसी उत्तेजना ऐसा आंनद तो कभी नहीं आया... दो कच्चे खिलाडी खेल के मैदान मे पक्के हो रहे थे.
खेल का आनंद उठा रहे थे.
घुड़वती मजे और उत्तेजना मे अपना स्तन और आगे को कर देती है ताकि नागकुमार के हाथ पुरे महसूस कर सके.
वो अभी भी एक हाथ से नागकुमार का लंड पकडे हुए थी.
नागकुमार अपने पुरे हाथ से घुड़वती के स्तन पकड़ने कि नाकामयाब कोशिश करता है स्तन इतने बड़े थे कि पुरे हाथ मे आ ही नहीं पा रहे थे.
नागकुमार स्तन मसलने लगता है,
स्तन रगड़ाई से चिंगारी छूट छूट के सीधा घुड़वती कि चुत तक पहुंच रही थी,
छोटी सी चुत लगातार पानी छोड़ रही थी.
दोनों जिस्मो मे समझौता हो चूका था आनन्द का समझौता, मादक सुख का समझौता.
अब घुड़वती के हाथ भी नागकुमार के लंड पे चलने लगे थे, उसे लंड को सहलाना अच्छा लग रहा था जैसे जीवन का अनमोल खजाना मिला हो.
नागकुमार उठ के बैठ जाता है उस से रहा नहीं जा रहा था वो स्तन रुपी फल को चख लेना चाहता था.
घुड़वती आप अतुल्य है बहुत सुन्दर है, ऐसा बोल दूसरा हाथ भी स्तन पे रख देता है.
घुड़वती के लिए ये दोहरी मार थी उसका हाथ नागकुमार के लंड पे कस जाता है.
आअह्ह्ह... नागकुमार के लंड मे ऐसा दर्द ऐसी उत्तेजना उठी कि वो झटके मार रहा था जैसे घुड़वती ने कोई मछली पकड़ी हो.
अच्छा लग रहा है घुड़वती... ये अहसास नया है..
ऐसा कह वो अपना मुँह स्तन के बिल्कुल नजदीक ले आता है, और अपनी लम्बी जबान से स्तन पे छोटे से बिंदु रुपी निप्पल को चाट लेता है.
आअह्ह्ह.... के चित्कार उठती है घुड़वतीगरम गीली जीभ, ऊपर से झरने का गिरता ठंडा पानी उसकी जान लेने पे उतारू था,जवानी का फूल खिल रहा था उसकी चुत लगातार पानी छोड़ रही थी.
नागकुमार बारी बारी स्तन चाटे जा रहा था वो पागल हो चूका था ऐसा अनमोल तोहफा पा के.
चुत से निकलती कुंवारी गंध जंगल मे दूर दूर तक फ़ैल रही थी.
ये गंध कही दूर किसी और के नाक तक भी पहुंच रही थी..
उस शख्श के भी होश उड़ जाते है वो गंध कि दिशा मे सरसरा जाता है...
इधर नागकुमार एक हाथ से स्तन मसल रहा था दूसरा स्तन उसके मुँह और जीभ के हवाले था जिसे चाट चाट के चूस चूस के निप्पल बाहर निकाल चूका था.
घुड़वती लगातार हंफे जा रही थी सिसकारी रुक ही नहीं रही थी, सुनसान वातावरण उसकी कामुक सिसकारी से गूंज रहा था.
आआआहहहह.... आआआहहहह.... नागकुमार उसके हाथ नागकुमार के लंड पे जोर जोर से चल रहे थे.
तभी नागकुमार उसकी निप्पल को दाँत मे रख के दबा देता है. घुड़वती इतनी उत्तेजित थी कि उसकी चुत भल भला के झड़ने लगती है
आअह्ह्ह..... नागकुमार मैम.. मै ममममम... गई.
मात्र स्तन चुसाई सेघुड़वती कि जवानी जवाब दे जाती है उसका यौवन चुत के रास्ते छलक उठता है. वो पीछे कि तरफ चट्टान पे लुढ़क जाती है उसके शरीर मे जान नहीं बची थी
आखिरकार उसके जीवन का पहला स्सखलन था ये.
कथा जारी है.....
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