चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी, अपडेट -14
सुप्तनाग का हाँथ घुड़वती के मखमली बड़े स्तन पे था वो उस से खेल रहा था, ऐसा शानदार अहसास पा के सुप्तनाग के होश उड़े हुए थे, स्तन साहलाने मे वो मग्न था..
स्तन सहलाये जाने से घुड़वती भी पिघल रही थी परन्तु मन मजबूत किये सहमी हुई पड़ी थी वो भी गरम हो रही है दिखाना नहीं चाहती थी. परन्तु सर्पटा हज़ारो स्त्रियों को चोद चूका था वो औरत के रग रग से वाकिफ था.
घुड़वती को गरम होता देख उसकी बांन्छे खिल रही थी.
घुड़वती अभी भी विरोध कर रही थी हालांकि बदन पिघल रहा था, गुप्तनाग भी अब तक दूसरे स्तन को पकड़ चूका था घुड़वती का एक हाथ गुप्तनाग के पैर के नीचे दबा हुआ था, और एक बात बची खुची इज़्ज़त बचा रहा था जो गोरी चुत पे टिका हुआ था.
घुड़वती :- देखो तुम लोग जो भी हो छोड़ दो मुझे, नागकुमार को मालूम पड़ा तो वो तुम्हे छोड़ेगा नहीं. आवाज़ मे एक कम्पन था अब ye कम्पन हवस का था या घबराहट का कह नहीं सकते.
सर्पटा :- फूंकारता है... मै हूँ नाग वंश विष रूप का राजा सर्पटा, नागकुमार मेरा ही बड़ा बेटा है
विष रूप का होने वाला राजा उसने ही मुझे तेरे पास भेजा है,
अपने पिता को तोहफा दिया है उसने "तेरा शिकार "
हाहाहाहाहा...
भयानक हसीं से वातावरण गूंज उठता है, सर्पटा बड़ी सफाई से अपनी चाल खेल गया था.
घुड़वती ये सुनते ही ढीली पड़ गई, उसकी रही सही हिम्मत भी जवाब दे गई.
वो जिस से मिलने आई थी उसी ने उसका सौदा कर दिया "मै तो मन ही मन नागकुमार को चाहने लगी थी "
नहीं नहीं... ये झूठ है ऐसा नहीं हो सकता कहाँ नागकुमार सुन्दर कोमल गोरा और ये सर्पटा काला भयानक राक्षस जैसा.
फिर फिर ... नागकुमार क्यों नहीं आया? और इस जगह का सर्पटा को कैसे मालूम?
सर्पटा को कैसे मालूम कि मै मिलने आउंगी.
मतलब सर्पटा सही बोल रहा है.
अब घुड़वती फस चुकी थी उसे सर्पटा कि बात पे यकीन हो चला था
उसके आँखों से अंशु धारा फुट पड़ी थी.. अब ना हवस थी ना कोई उमग ना ही प्यास
सिर्फ पछतावा, दुख और आँसू रह गये थे.
सर्पटा घुड़वती कि हालात देख के ख़ुश था उसने घुड़वती कि हिम्मत तोड़ दि थी
अब मंजिल दूर नहीं थी उसके मन से नागकुमार हट चूका था अब जगानी थी सिर्फ हवस... शुद्ध हवस.
गुप्तनाग बहते हुए आँसू को अपनी जीभ से चाट लेता है, बेचारी भोली घुड़वती को बहुत अच्छा लगता है उसके दिल को जैसे मरहम लगा हो ये कुछ नया था
गुप्तनाग कि जीभ लगातार आँसू चाट रही थी कभी गाल पे कभी नाक पे तो कभी हलके से गुलाबी सुर्ख होंठ को छू जाती, इस छुवन से घुड़वती मचल जाती है,
उसके होंठ पे गीली जीभ और खुद के आँसू का नमकीन स्वाद मजा दे रहा था.
लेकिन वो ये दिखाना नहीं चाहती थी उसके आँसू बंद हो चुके थे ऊपर से लगातर होते स्तन मर्दन से उसके बदन मे झुरझुरी दौड़ने लगी थी उसके स्तन से निकलता करंट सीधा नाभी पे जा रहा था उसकी नाभी फूल रही थी
सांसे जोर जोर से चलने लगी थी वो अपना मुँह भींचे लेती हुई थी.
गुप्तनाग लगातार उसके होंठो को छेड रहा था घुड़वती हलके से अपनी जीभ बाहर निकलती है उतने मे ही गुप्तनाग अपने होंठ पीछे खींच लेता है.
नीचे सुप्तनाग अपनी जीभ घुड़वती के स्तन पे नीचे कि तरफ ले जा के चाटता हुआ ऊपर के और ले जाता है,
आआआह्हः.... गीली चिपचिपी जीभ के स्पर्श से ही घुड़वती सिहर उठती है, नया कामुक बदन को और क्या चाहिए था उसकी उमंग इस एक छुवन से ही वापस लौटने लगी..
उसे और चाहिए था यही अहसास... उसके ना चाहते हुए भी साँसो के साथ उसके स्तन ऊपर को हो जाते है और सर पीछे को झुक जाता है जैसे स्तन खुद कि मन मर्जी चला रहे हो
सुप्तनाग स्थति को भापता हुआ एक बार फिर अपनी चिपचिपी जबान से ऊपर से नीचेचाट लेता है.
3-4 बार ऐसा करने से घुड़वती के निप्पल बाहर को निकाल जाते है जो किजीभ चलाने से टकरा रहे थे, निप्पल पे गिला खुर्दरा अहसास अलग ही कहर ढा रहा था, उसका मन करता है कि निप्पल को पकड़ के नोच ले परन्तु एक हाथ चुत ढके हुए था तो दूसरा हाथ गुप्तेनाग के पैर के नीचे दबा था घुड़वटी बेबस थी.
सुप्तनाग धीरे से अपना मुँह खोल उसके बड़े से तीखे निप्पल को मुँह मे भर चुभलाने लगता है.
आअह्ह्ह.... कामुक सिसकारी निकाल जाती है घुड़वती के मुँह से अब वो भूल चुकी थी नागकुमार को उसपे हवस सवार होने लगी थी,
उसे यही तो चाहिए रहा यही तो करने आई थी.
फिर नाग कुमार के धोखे ने उसे आज़ाद कर दिया था, आजादी थी अपने बदन को जानने कि, आजादी थी काम क्रीड़ा का नया पाठ पड़ने कि.
अब गुप्तनाग भी नीचे उतार आया था उसने घुड़वती का हाथ आज़ाद कर दिया था परन्तु अब घुड़वती अपने हाथ से स्तन नहीं ढक रही थी वो ऐसे ही पड़ा था.
गुप्तनाग भी स्तन पे टूट पड़ता है, एक स्तन सुप्तनाग नोच रहा था तो दूसरा स्तन गुप्तनाग
दोनों ने स्तन चाट चाट के लाल कर दिए थे
दोनों ही प्यार से पेश आ रहे थे, लेकिन ये तो सिर्फ छलावा था प्यार से सम्भोग मे क्या मजा?
घुड़बती के स्तन चमक रहे थे, फुल के पहले से ज्यादा बड़े हो गये थे, उसकी चुत लगातार पानी छोड़ रही थी चुत का पानी हाथ को पूरी तरह भिगो चूका था,
घुड़वती इस कदरगरम हो चुकी थी कि वो अपना एक हाथ उठा के सुपटनाग के सर पे रख देती है और जोर से स्तन पे दबा देती है जैसे बोलना चाहती हो चुसो इसे खाओ.... नोच लो
स्तन ले दबाव बनाये घुड़वती लगातार सिसक रही थी, वो ऐसा नहीं करना चाहती थी परन्तु ये निगड़ा नया जवान जिस्म कहाँ साथ दे रहा था मुँह से निकलती हुंकार इसका सबूत थी, उसका सर पीछे को झुका हुआ था, स्तन हवा मे उठे हुए थे चुत अभी भी हाथ से ढकी हुई थी वो अभी भी अपनी चुत को बचा लेना चाहती थी, परन्तु कब तक?
दोनों सेवक स्तन को चाट चाट के गिला और चिपचपा कर चुके थे उनकी लार स्तन से टपकती हुई नीचे चट्टान पे गिर रही थी,
घुड़वती कमर उठाये मरे जा रही थी उसकी हालात ख़राब होने लगी थी लग रहा था जैसेझड़ जाएगी, उसकी चुत फव्वारा छोड़ देगी...
तभी अचानक दोनों हट जाते है.. सुनसान
घुड़वती झड़ने के बिल्कुल करीब थी लेकिन ये क्या हुआ ये हट क्यों गये..
वो अपनी आंखे खोलती है तो पाती है कि दोनों उसे देख मुस्कुरा रहे थे वो तीनो के सामने सिर्फ चुत पे हाथ रखे पूरी नंगीब्लेती हुई थी उसे स्सखालित होना था उसे ये उत्तेजना सहन नहीं हो रही थी
वो कैसे बोलती कि चुसो और चुसो बंद किया.. वो सवालिया नजरों से दोनों को देखती है.
सर्पटा :- क्या हुआ सुंदरी क्या चाहिए? ये चाहिए क्या?
वो इशारे से अपना लंड दिखता है जो कि घुड़वती के कामुक चूसे हुए स्तन को देख खड़ा हो चूका था एक दम काला मोटा ताकतवर लंड.
गुस्से से उबालती घुड़वती उस लंड को देखती ही रह जाती है, असर सीधा चुत पे हो रहा था, जाने क्या प्रभाव था सर्पटा के लंड का कि एक कुंवारी लड़की के चुत से पानी आने लगा था मात्र लंड देखने से.
हवस के चरम पे पहुंचा के घुड़वती को वापस खींच लिया गया था, उसकी चुत फूल के सिकुड़ने लगी थी.
वो बस झड़ना चाहती थी लेकिन सर्पटा इतनी आसानी से ये खेल ख़त्म करने वाला नहीं था, उसे दौड़ा दौड़ा के शिकार करने मे ही मजा आता था
आज शिकार थी एक नयी जवान मासूम घोड़ी जिसके दिल मे नागकुमार के लिए नफरत और बदन मे हवस थी.
अँगारे भरी आँखों से वो सर्पटा कि तरफ देखती है सर्पटा बिना कुछ बोले लंड हिला रहा था,धीरे से ऍबे लंड कि चमड़ी को ऊपर खिंचता है, सीधी मादक गंध घुड़वती कि नाक से टकरा जाती है
पहले से ही काम अग्नि मे जल्दी घुड़वती महक पा के चित्कार उठी... आअह्ह्ह.... उसकी आँखों मे याचना थी.
सुप्तनाग और गुप्तनाग पीछे हट चुके थे, सर्पटा अपनी जगह सेउठ खड़ा होता है और कामुक स्तन जो कि चुसाई से लाल हो गये थे उन्हें देखता आगे बढ़ता है,
विशालकाय लंड जांघो के बीच झूल रहा था, सर्पटा कि मर्दाना चाल से लंड हिलोरे खा रहा था.
घुड़वती आंखे फाडे चुत पे हाथ रखे सर्पटा को नजदीक आते देख रही थी.
सर्पटा बिल्कुल पास पहुंच चूका था, वो अपने एक हाथ से लंड पकड़ता है ऊपर कि और कर के एक दम छोड़ देता है,
लंड सीधा घुड़वती कि चुत ढके हाथ पे प्रहार करता है.
धममम.... लंड कि गर्माहट और वजन से ही घुड़वती सिहर जाती है उसके बदन मे एक अनोखी गुदगुदी होती है जो उसने कभी महसूस नहीं कि थी ऊपर से लंड से निकली गंध...
आअह्ह्ह... कुछ हो रहा है मुझे "मन कर रहा है इस चुत को रागड़ू "
उसका बदन अब बिल्कुल साथ छोड़ देने पे उतारू था.
सर्पटा ऐसा ही कई बार करता है अपने भारी लंड को उठता और धम से वापस पटक देता, जैसे कोई लोहार हथोड़ा पिट रहा हो वैसा ही आभास हो रहा था घुड़वती को अपनी चुत पे, हाथ पे पड़ते प्रहार सीधा उसकी चुत पे असर डाल रहे थे,
उसकी चुत और ज्यादा पानी छोड़ने लगी थी, इतना पानी कि उंगलियों के बीच से पानी बाहर आने कि कोशिश कर रहा था,
कामुक मादक चुत का कुछ रस सर्पटा के लंड पे भी लग गया था.
सर्पटा :- क्यों सुंदरी अच्छा लग रहा है ना?
घुड़वती कुछ नहीं कहती वो अपना सर दूसरी तरफ घुमा लेती है "कैसे कहती कि मजा आ रहा है"
सर्पटा :- तेरी चुत तो चीख चीख के बोल रही है कि मारो मुझे
हाहाहाहाहा....
घुड़वती शर्म और लज्जत से गड़े जा रही थी, "नहीं नहीं मै ऐसा नहीं कर सकती मै तो नागकुमार से मिलने आई थी "
लेकिन कौन नागकुमार जिसने मुझे धोका दिया "
सर्पटा :- हाथ हटा भी दे देखने तो दे क्या अनमोल खजाना छुपा रखा है जांघो के बीच?
घुड़वती ना मे सर हिलती है हालांकि वो गरम थी हवस भरी पड़ी थी लेकिन थी तो स्त्री ही ना वो भी पहली बार ऐसा कुछ कर रही थी.
फलस्वरूप नहीं बोल पाई.
सर्पटा :- कोई बात नहीं घुड़कन्या हम भी तेरे बिना बोले कुछ नहीं करेंगे.
इसी के साथ एक तेज़ प्रहार चुत ढके हाथ पे पड़ता है.
आअह्ह्ह..... घुड़वती कि सिसकारी निकाल पड़ती है.
तीनो हस पड़ते है.
बुरी फसी थी घुड़वती हवस के चक्कर मे.
इस तेज़ प्रहार से घुड़वती एक बार फिर झड़ने को थी लेकिन सर्पटा पीछे हट जाता है,
एक दो प्रहार और पड़ते तो काम बन जाता, लेकिन घुड़वती तड़प के रह जाती है उसकी सांसे तेज़ चल रही थी वो मछली कि तरह चट्टान पे लेटी तड़प रही थी.
सर्पटा अब आगे बढ़ता है वो अपनी एक ऊँगली धीरे से चुत ढके हाथ पे रखता है और धीरे धीरे सहलाता हुआ ऊपर कि ओर चल पड़ता है.
सर्पटा कि ऊँगली घुड़वती कि नाभी पे आ के रूकती है, वो अपनी ऊँगली को नाभी के आस पास फेरता है,घुड़वती सिहारन से पेट अंदर खींच लेटी है, नाभी कणास पास पसीने कि बुँदे जमा हो जाती है,
सर्पटा लगातार नाभी और पेट को सहला रहा था, कामुकता के मरे घुड़वती सिसकारी भर रही थी, पेट कभी फूलता तो कभी पिचकता, उसनेसर्पटा का हाथ हटाने कि कोई चेष्टा नहीं कि.
करती भी क्यों वो तो मदहोश थी आनंद मे आंखे बंद किये खुर्दरे हाथ का मजा ले रही थी.
सर्पटा का हाथ अब ऊपर को बढ़ जाता है दोनों लाल हुए स्तन के बीच.
सर्पटा :- अरे दुष्टो इतनी बुरी तरह कौन चूसता है देखो कैसे लाल कर दिए.
ये शब्द सुन के घुड़वती को कुछ होता है उसे दोनों का छुवन और चुसाई याद अति है, उसके निप्पल कड़क हो के बाहर आ जाते है.
सर पीछे किये स्तन उठाये घुड़वती पड़ी हुई थी उसे वापस से उसी छुवन और चुसाई का इंतज़ार था
वो चाहती थी कि सर्पटा भींचे उसके स्तन को.
परन्तुसर्पटा दोनों स्तन कि गोलाइयो पे ऊँगली से सहलाये जा रहा था, हलकी चुवन एक अलग ही कामुकता पैदा कर रही थी.
तभी सर्पटा स्तन के निप्पल को पकड़ के बेरहमी से ऊपर को खींच लेता है, घुड़वती चीख पडती है.
आअह्ह्ह..... उम्म्म्म..... जैसे ही सर्पटा निप्पल छोड़ता है घुड़वती को हल्का दर्द और मजे का मिलाजुला मजा आता है.
दर्द मे मजे का पाठ पढ़ रही थी घुड़वती.
दूसरे स्तन के निप्पल को भी सर्पटा पकड़ के बेदर्दी से मरोड़ देता है. दर्द का मजा हि अलग है.
घुड़वती कि सांसे भरने लगी थी, स्तन उठ गिर रहे थे, उसे बस स्सखालित होना था कैसे भी.
सर्पटा अब घुड़वती के सर के पीछे कि तरफ आ चूका था, उसकी जांघो के ठीक आगे घडवती का सर था लंड सर पे छू रहा था.
घुड़वती जैसे ही कुछ समझती सर्पटा ने अपना लंड उठाया और धम से घुड़वती के चेहरे पे दे मारा.
आअह्ह्ह.... मा... लंड सीधा घुड़वती के होंठ पे जा के लगा, प्रहार इतना तेज़ था कि किनारे से होंठ थोड़ा फट गया एक हलकी महीन सी खून कि धारा निकाल पड़ी जो सीधा लंड पे लगी.
एक प्रहार और धमममम.... लंड नाक के करीब लगा, लंड से निकली गंध सीधा नाक मे घुस गई
आअह्ह्ह.... यही कमजोरी थी घुड़वती कि लंड कि मादक गंध
इस गंध ने घुड़वती के रोम रोम मे हवस का संचार कर दिया अब वो सब कुछ भूल चुकी थी अब जो होना है हो जाने दो.
जैसे ही वो अपने होंठ से निकलते खून को चाटने के लिए जीभ बाहर निकलती है वैसे ही लंड वापस से उसके होंठ पे पड़ता है
इस बार उसकी गीली जीभ लंड पे पड़ती है, लंड से निकला स्वाद उसकी जीभ पे रेंगने लगता है,
अंदर ही अंदर उसकी हवस भी जवाब दे रही थी, नागकुमार कि गंध मे एक प्यार था परन्तु सर्पटा कि गंध मे सिर्फ हवस थी,, ये स्वाद सीधा चुत तक गया, उसकी चुत बेतहासा पानी छोड़ने लगी, ना जाने कब उसकी एक ऊँगली चुत कि लकीर मे चलने लगी, चुत ढके ढके ही उसकी ऊँगली चुत सहला रही थी, ये कुछ अलग थाकमसिन घुड़वती को तो पता ही नहीं था कि सम्भोग होता क्या है, परन्तु हवस अपने आप सब सीखा देती है.. घुड़वती का भी यही हाल था वो सब से छुपा के अपनी एक ऊँगली धीरे धीरे चुत कि लकीर मे अंदर घुसाने कि कोशिश कर रही थी उसे ऐसा करने से थोड़ी राहत का अनुभव हो रहा था.
थोड़ा सा ही सही लेकिन उसे सर्पटा के लंड का स्वाद मिल गया था, शसर्पटा वापस जैसे ही लंड पटकता है घुड़वती इस बार जानबूझ के जीभ बाहर निकाल देती है और लंड जीभ पे घिसता हुआ निकाल जाता है.
श्सर्पटा अपने लंड पे गिला अहसास पा है ख़ुश होता है
सर्पटा :- देखो तो ये जवान काली हमारा लंड चाटने कि कैशिश कर रही है. अरे मेरी रानी शर्माती क्यों है बोल दे ना कि तुझे मेरा लंड पसंद है चूसना है.
हाहाहाहा..... घुड़वती वापस से शर्मिंदा हो चली थी, वो चाहती तो यही थी लेकिन स्त्री सुलभ व्यवहार उसे रोक रहा था.
घुड़वती को इस शर्म और लज्जत मे अलग ही मजा आ रहा था हवस क साथ साथ उसके बदन मे बेइज़्ज़त होने कि उमंग उठ रही थी, बेइज़्ज़त हो के सम्भोग कला मे जो मजा है आज घुड़वती को यही सीखना था.
घुड़वती सर्पटा को गर्दन हिलाके ना कह देती है, हालांकि उसे लंड कि गंध आकर्षित कर रही थी.
सर्पटा अनुभवी था उसे कोई जल्दी नहीं थी,उसे कोई जबरजस्ती नहीं करनी थी.
वो अपने शिकार से खेल रहा था और दोनों सेवक इस खेल का आनद उठा रहे थे वो दोनों दूर खड़े मालिक के अगले आदेश का इंतज़ार कर रहे थे.
सर्पटा का भी सब्र अब जवाब देने लगा था उसे घुड़वती का कामुक खजाना देखने कि तालाब मच रही थी जिसे घुड़वती ने अपनी हथेली से ढका हुआ था.
सर्पटा वापस से घुड़वती के पैरो कि तरफ बढ़ चलता है उसकी ऊँगली ऊपर होंठ से छुती नाभी तक आ चुकी थी.
सर्पटा घुड़वती के पैरो के पास बैठ जाता है और धीरे से उसके पैर के अंगूठे को मुँह मे ले के चुभला देता है.
आअह्ह्ह.... घुड़वती सिहर उठती है उसे मदकता कि असहनीय आनंद होता है रोम रोम कामुकता मे डूबने लगता है.
सर्पटा अपनी लम्बी जबान को चलाता हुआ जाँघ तक पहुंच जाता है, पूरा पैर अंगूठे से ले के जाँघ तक गिला और चिपचिपा हो गया था सर्पटा के मुँह से लगातार लार निकली जा रही थी ऐसा गरम और चिकना बदन जो चाट रहा था.
घुड़वती तो मरे सिरहन के अपना सर इधर उधर पटक रही थी उसने अपनी चुत को जोर से भींच लिया था जैसे उसमे से कुछ निकलना चाह रहा हो और वो उसे दबाने कि कोशिश कर रही है, पूरी हथेली चिपचिपे पानी से सन गई थी, चुत मादक गंध छोड़ रही थी ऐसी मादक गंध जो सर्पटा को बेचैन कर रही थी.
सर्पटा जाँघ पे अपनी लम्बी जबान को चुत कि तरफ घुमा रहा था चुत गांड से निकलती गर्मी साफ सर्पटा के चेहरे मे महसूस हो रही थी,
गर्मी और कामुक गंध से सर्पटा का हाल बुरा था नीचे उसका लंड पूरा खड़ा हो के भयानक चूका था उसके अंदर का वहसी जानवर बाहर आना चाहता था.
इसी उपक्रम मे सर्पटा घुड़वती के जाँघ पे काट लेता है दर्द सीधा चुत से टकराता है.
घुड़वती के लिए अब असहनीय होता जा रहा था ये खेल वो अपना मुँह खोले जबान बाहर निकाले अपनी जबान चाट रही थी.
बस बोल नहीं पा रही थी कि चोदो मुझे.
सर्पटा :- अरे सुप्तनाग गुप्तनाग खड़े क्यों हो देखो बेचारी कैसे तड़प रही है अपनी जबान चला रही है.
दोनों ये आदेश सुन के ख़ुश हो जाते है तुरंत घुड़वती के सिरहाने पहुंच जाते है अपने नंगे खड़े लंड लिए हुए.
दोनों के लंड घुड़वती के मुँह और नाक के करीब लहरा रहे थे लंड से निकलती गांड उसे मदहोश कर रही थी बेचैनी पैदा कर रही थी,
वो लंड मुँह मे भर लेना चाहती थी लेकिन अभी भी थोड़ा विरोध बाकि था उसमे, वो मुँह बंद कर लेती है परन्तु दो दो मोटे काले लंड उसके मुँह के करीब थे. अपनी आँखों के इतना करीब वो पहली बार देख रही थी.
सुप्तनाग अपना लंड उसके होंठो से छुवा देता है, घुड़वती अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लेती है,
दूसरी तरफ गुप्तनाग अपना लंड लिए खड़ा है, घुड़वती के होंठ गुप्तनाग के लंड से छुवा जाते है.
ऐसे ही दोनों अपने लंड घुड़वती के होंठो पे मारने लगते है कभी रागढ़ते है.
नीचे सर्पटा लगातार जाँघ को चुत तक चाट रहा था, कभी चुत ढकी हथेली पे लगे चुतरस को चाट लेता.
नीचे ऊपर होते हमलोग से घुड़वती कि हालात ख़राब हो चली थी वो अपना मुँह खोल देती है आखिर कब तक सह पाती उअके जवान बदन को यही पसंद आ रहा था.
मुँह खुलते ही सुप्तनाग का मोटा टोपा घुड़वती के गिके गरम मुँह मे समा जाता है,
घुटी हुई सी सिसक निकाल जाती है.
मुँह मे लंड लिए घुड़वती अंदर ही अंदर सुपडे पे अपनी जीभ चलाने लगती है.
सुप्तनाग आनंद से अपनी आंखे बंद कर लेती है ना जाने कहाँ से घुड़वती मे ये कला आ गई थी.
सर्पटा :- सुंदरी हमें भी तो अपनी प्यारी चुत के दर्शन कराओ ऐसा बोल के वो अपना हाथ चुत ढकी हथेली पे रख देता है.
घुड़वती कि तो जान ही निकाल जाती है वही तो उसका आखिरी खजाना था जिसे वो अब तक छुपाये रखी थी.
परन्तु मुँह मे घुसा लंड कुछ अलग ही जादू चला रहा था धीरे धीरे सुप्तनाग अपने लंड को आगे पीछे करने लगा था.
सर्पटा हल्का सा जोर लगा के हथेली हटाता है इस बार कोई विरोध नहीं था घुड़वती का चिपचिपा हाथ हटता चला जाता है.
और जो नजारा सामने आता है उसे देख तीनो चकित रह जाते है एक बार तो भूल ही जाते है कि वो क्या करने आये है यहाँ.
एकटक तीनो घुड़वती कि चुत को घूरते रह जाते है.
एक दम गोरी चिकनी चुत बाल का एक कतरा भी नहीं कामरस से पूरी भीगी हुई.
चुत के नाम पे सिर्फ एक लकीर थी उसके नीचे बारीक़ सा गांड का छेद.
आअह्ह्हह्ह्ह्ह.... हे नागदेव
सर्पटा कि आह निकाल गई थी उसे अपने देवता याद आ गये थे ये नजारा देख के.
ऐसी चुत तो उसने कभी पुरे जीवनकल मे ही नहीं देखि थी.
यही हाल सुप्तनाग और गुप्तनाग का भी था.
इनसब से अनजान घुड़वती आंख बंद किये सुप्तनाग के लंड पे मुँह चला रही थी.
उसे पता ही नहीं पड़ा कि कब सुप्तनाग ने धक्के लगाना बंद किया और वो खुद अपने होंठो मे लंड दबाये आगे पीछे कर रही थी.
हवस सर पे चढ़ चुकी थी उसको कोई होश नहीं था उसे मजा आ रहा था सिर्फ मादक मजा
उसका बदन भट्टी कि तरह जल रहा था
सर्पटा कि लापलापति लम्बी जीभ चुत कि लकीर को छू जाती है.
आअह्ह्ह.... कि चीख सुप्तनाग के मुँह से निकलती है, घुड़वती ने मारे लज्जत और हवस से सुप्तनाग का लंड अपने दांतो तले भींच लिया था, जैसे किसी ने उसकी आत्मा पे जलती सालाख रख दि हो ऐसा अहसास हुआ था घुड़वती को अपनी चुत पे.
सर्पटा लप लप करता चुत से निकलते झरने को अपने मुँह ने समेटता जा रहा था,लेकिन घुड़वती कि लकीर नुमा चुत से कामरस का समुन्द्र निकाल रहा था जिसको मुँह मे भर पाना किसी के बसमे नहीं था सर्पटा के मुँह से थूक और कामरस निकल निकल के गांड के छेद को भिगो रहा था.
अब घुड़वती किसी भी वक़्त अपने चरम पे पहुंच सकती थी.
अचानक तीनो अपनी जगह से उठ खड़े होते है...
ये क्या फिर क्या हुआ अब नहीं इस बार नहीं....
घुड़वती आंखे खोल देती है उसकी आंख मे सिर्फ हवस थी सच्ची हवस
बस उसे कोई स्सखालित कर दे कोई अच्छा बुरा नहीं था बस लंड दिख रहा था उसे.
इस बार चिल्ला उठती है
घुड़वती :- ऐसा मत करो मै मर जाउंगी
सर्पटा :- तो बोल ना क्या चाहिए?
घुड़वती :- वो... उसके लंड कि तरफ इशारा कर देती है.
सर्पटा :- मुँह से बोल छिनाल क्या चाहिए?
घुड़वती चीखती हुई लंड चाहिए मुझे लंड दो....
मै मार जाउंगी.
पागलो कितरह अपने बाल खींचने लगती है.
सर्पटा उसकी हरकत देख के ठहका लगा देता है, हाहाहाहाहा.... " सोच ले फिर एक बार मै शुरू हुआ तो रुकूंगा नहीं "
बेचारी घुड़वती सम्भोग से अनजान रही उसे क्या पता कि इतना बड़ा लंड लेने से क्या हो सकता है.
वो फिर चिल्ला देती है.
घुड़वती :- मुझे कुछ नहींपता, कुछ करो मेरे साथ मेरा बदन जल रहा है,
स्तन दर्द कर रहे है मै सहन नहीं कर सकती
मै हाथ जोड़ती हूँ तुम लोगो के आगे कुछ करो.
घडवती कि आवाज़ मे हवस थी लाचारी थी वो चुदने कि भीख मांग रही थी.
इसी मे तो सर्पटा को मजा आता था.
सर्पटा अपना लंड ले के चल पड़ता है घुड़वती कि और एक ही बार मे टांग पकड़ के दोनों दिशाओ मे फैला देता है अब सर्पटा नामक जानवर कि बारी थी बेवकूफ घुड़वती उसने राक्षस कोआमंत्रित कर दिया था.
सर्पटा अपना भरी भरकम लंड घुड़वती कि कैसी हुई बंद चुत पे रख देता है. और धक्का लगाता है लंड फिसलता हुआ ऊपर को नाभी पे जा लगता है.
आअह्ह्ह.... सिसकारी मार के रह जाती है घुड़वती
सर्पटा फिर कोशिश करता है अंजाम वही.
घुड़वती लंड कि छुवन पा के भीफर उठी थी उसने होना धड ऊपर उठा लिया था तनिक भी नहीं सोचा कि इतना बड़ा मोटा लंड छोटी सी चुत मे जायेगा कैसे.
सर्पटा घुड़वती कि चुत ोे अपने लंड को अच्छे से रगड़ के गिला करता है ढेर सारा थूक गिरा देता है...
इस बार धक्का मरता है,
एक ही बार मे जोरदार.... धाकककककक..... से
पच करता लंड का टोपा अंदर समा जाता है, चुत के किनारे एक दूसरे का साथ छोड़ने लगते है, उनके बीच से खून कि एक पतली धार पाचक से निकल सर्पटा के टट्टो पे पड़ती है.
घडवती का सीना ऊपर आसमान को तन जाता है उसकी सांस अटक जाती है आंख पथरा जाती है.
उसके मुँह से आवाज़ ही नहीं निकल रही थी...
एक धक्का और आधा लंड अंदर कोई रहम नहीं कोई दया नहीं.
लेकिन इस बार आअह्ह्हह्म......उह्म्म्मम्म ..... बाहर निकालो
चीख से जंगल गरज उठा था.
घुड़वती ने अंजाम सोचा ही नहीं था सारी हवस सारी उत्तेजन चुत मे ही दफ़न हो गई थी.
सर्पटा हस रहा था. हाहाहाहा..... सुंदरी ये तो शुरुआत है मैंने पहले ही आगाह किया था
घुड़वती चीख रही थी उसकी आँखों मे आँसू थे.
सर्पटा इशारा करता है...
गुप्तनाग तुरंत घुड़वती का मुँह पकड़ लंड ठूस देता है उसकी चीख हलक मे दब जाती है.
हलक और चुत दोनों सुख चुके थे घुड़वती के.
सर्पटा लंड बाहर को खिंचता है.
घुड़वती को लगता है जैसे चुत बाहर को आ के पलट जाएगी, चुत के बाहरी मुख ने लंड पे कब्ज़ा कर लिया था जैसे अपने प्रेमी से मिली प्रेमिका हो जो बरसो बाद मिली है छोड़ना ही नहीं चाहती.
सर्पटा थोड़ा सा लंड बाहर खींच वापस ठेल देता है....
घुटी से चीख घुड़वती के गले मे दबी रह गई, उसकी बेबसी, लाचारी, दर्द सिर्फ उसके आँसू ही बता रहे थे, उसमे तो इतनी भी जान नहीं थी कि वो अपने हाथ पैर हिला पाती.
सुप्तनाग भी घुड़वती के सिरहाने पहुंच अपना लंड उसके मुँह पे मारने लगता है इरादा मुँह मे घुसा देने का था परन्तु जगह नहीं थी गुप्तनाग का लंड पहले ही गले तक घुसा हुआ था,
तो क्या हुआ जगह तो बनाने से बनती है यहाँ भी बनेगी.
घुड़वती अपने एक हाथ से लंड पकड़े हुई थी
नीचे सर्पटा एक के बाद एक भयंकर बेरहमी के साथ लंड ठेले जा रहा था, खून से गोरी चुत लाल हो चुकी थी अभी तो आधा लंड ही घुसा था.
आधे लंड को ही आगे पीछे कर रहा था या यु कहो कि घुड़वती कि चुत मे जगह ही नहीं थी लंड जाने कि, सर्पटा सब्र से काम ले रहा था.
परन्तु ऊपर सुप्तनाग का सब्र जवाब दे गया था,गुप्तनाग के लंड निकलते ही जैसे ही घुड़वती चिल्लाने को हुई सुप्तनाग ने अपना लंड एक ही बार मे गले तक ठूस दिया,
चीख सिर्फ घुटन बन के रह गई, घुड़वती का गला और मुँह दर्द करने लगा था परन्तु चिंता किसे थे यहाँ तो तीनो जानवर थे.
एक लंड निकलता दो दूसरा लंड ठेल देता, दूसरा निकालता तो पहका गले तक उतार देता.
नीचे लगातार धक्के पड़ रहे थे धच धच धच.....
अब घुड़वती को भी दर्द के साथ थोड़ा मजा आने लगा था उसकी उमंग लौट आई थी.
लगातर होते घरषण से चुत पानी छोड़ने लगी थी, खून बंद हो गया था
, मुँह मे पड़ते लंड आनद दे रहे थे.
परन्तु सर्पटा को घुड़वती का यु आनंद लेना पसंद नहीं आया, वो अपना पूरा लंड बाहर को निकाल लेता है और दोनों टांगो को पकड़ के स्तन से घुटने लगा देता है.
घुड़वती कुछ समझ पाती उस से पहले ही गांड के छोटे से छेद को भेदता हुआ लंड अंदर समा जाता है पूरा का पूरा
उसके टट्टे गांड मे धच से धंस जाते है.
घुड़वती कि आंखे उलट जाती है, उसकी जान जैसे निकल गई हो ना कोई चीख ना कोई हरकत लंड मुँह से निकल चुके थे सर पीछे को झुक गया था.
गुप्तनाग :- मालिक लगता है झेल नहीं पाई बड़ी जल्दी ही मर गई.
सर्पटा :- अभी कहाँ मरी, घोड़ी है जवान घोड़ी इतनी जल्दी ना मरने कि.
बोल के सर्पटा पूरा लंड बाहर निकाल देता है उसका लंड खून से सना हुआ लाल चत बाहर आया, गांड बाहर को खींची चली आई थी घुड़वती कि.... धापपाक एक बेतहाशा बेदर्द धक्का और पूरा लंड वापस गांड के जड़तक.
आआहहहह..... आहहहह...... घुड़वती होश मे आ जाती है इस हमले से जैसे बेजान शरीर मे प्राण लौट आये हो.
उसे समझ आ गया था कि उसने हाँ कह के बहुत बड़ी गलती कर दि, उसकी हवस आज उसकी जान लेने पे आमदा थी.
जोरदार चीख पुरे जंगल मे गूंज उठी थी..... चीख इतनी दूर गई कि जंगल मे प्रवेश करते एक शख्स के कानो मे भी पहुंची...
नाग कुमार जल्दी काम ख़त्म कर के जंगल के मुहने आ चूका था, उसे अपनी प्रेमिका, होने वाली राजकुमारी से मिलना था...
उसके कान मे एक तीखी चीख सुनाई पड़ती है....
नागकुमार :- ये कैसी चीख है जंगल के अंदर से ही आ रही है.
नागकुमार चीख कि दिशा मे बढ़ जाता है.
दूसरी तरफ घुड़पुर मे आज सुबह ही घुड़पुर का राजकुमार वीरा वापस महल आया हुआ है,
आज रक्षाबंधन जो था परन्तु सुबह से ही घुड़वती को महल मे ना पा के वो बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रहा है.
घुड़वती हवस मे ऐसी डूबी थी कि उसे ये भी ध्यान नहीं रहा कि आज उसका भाई वीरा आएगा रखी बंधवाने.
वो मदमस्त घोड़ी तो नाहकुमार से मिलने चल पड़ी थी.
परन्तु शाम होने को आई घुड़वती वापस नहीं आई, उसकी किसी सखी सहेली को भी नहीं बता के गई.
बेचैनी और चिंतावश वीरा घुड़वती को ढूढ़ने महल से बाहर निकल पड़ता है.
क्या घुड़वती जिन्दा बचेगी?
या उसकी हवस उसके प्राण हर लेगी?
कथा जारी है...
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