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नागमणि -15

 चैप्टर -2 नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट -15


सर्पटा लगातार गांड कि जड़ मे धक्के मारे जा रहा था, फच फच फच... कि आवाज़ से जंगल हिल रहा था.

सर्पटा जानवर बन चूका था उसे घुड़वती कि चीख से कोई लेना देना नहीं था.

वापस से एक झटके मे लंड बाहर खिंचता है और इस बार पूरा का पूरा लंड चुत मे जोरदार धक्के के साथ पेल देता है.

लंड चिकना हो चूका था बेकाबू सर्पटा इतनी जोर से लंड घुसाता है कि लंड चुत चिरता हुआ बच्चेदानी को भेद देता है.

घुड़वती अपनी जिन्दगी कि आखिरी चीख निकालती है फिर वही पत्थर पे लुढ़क पड़ती है.

ये आखिरी चीख नागकुमार के कान मे पहुँचती है वो झरने के पास आ चूका था, सर्पटा कि पीठ नागकुमार कि और थी.

उसने साफ घुड़वती को चीखते सुना था.

नागकुमार वही पत्थर बन के रह गया.

सर्पटा अभी भी खून से सनी चुत मे धक्के मरे जा रहा था धच धच धच.....

सुप्तनाग :- मालिक मालिक..... वो मर गई है जाने दे अब

सर्पटा धच धच धच.... आआहहहह..... करता अपना सारा वीर्य चुत मे भर देता है.

स्सखालित होते ही उसे होश आता है वो घुड़वती कि तरफ देखता है वो निढाल हो चुकी थी सांसे थम है थी..

सर्पटा पक से अपना लंड बाहर निकलता है घुड़वती कि लकीर नुमा चुत और गांड पूरी गुफा जैसी हो चुकी थी जिसमे से खून और वीर्य निकल रहा था.

हवस का दर्दनाक अंत हो चूका था.

सर्पटा :- साली घोड़ी हो के भी लंड झेल ना पाई....

हाहाहाहा....

तभी एक तलवार का वार होता है सर्पटा का सर धड से अलग, महान सम्राट, भयानक सर्पटा नागो का राजा सिर्फ एक वार मे मरा पड़ा था.

उसके ठीक पीछे लहू से सनी तलवार लिए अपने रोन्द्र रूप मे नागकुमार खड़ा था, सुप्तनाग, गुप्तनाग उसका ऐसा रूप पहली बार देख रहे थे कोमल सा, मासूमसा दिखने वाला नागकुमार अपने रोन्द्र रूप मे था.

एक वार और सुप्तनाग गुप्तनाग भी गिर पड़ते है.

प्रेम पूरा ना जो तो विनाश कि ताकत स्वमः पनप जाती है वही नागकुमार बन चूका था

वो घुड़वती के करीब पहुँचता है घुड़वती कि हालात देख उसका दिल जार जार रो रहा था.

वो अपना रोन्द्र रूप त्याग चूका था बिल्कुल बेबस निढाल बेचारा नागकुमार घुड़वती के ऊपर झुकता चला जाता है.

तभी तिगाड़ तिगाड़... टप टप टप..... कि आवाज़ के साथ एक भयंकर गर्जना उठती है


"दूर रह नीच पापी मेरी बहन से "

वीरा घुड़वती को ढूंढता जंगल  आ  चूका था,

नागकुमार जैसे ही वीरा को देखता है चकित रह जाता है वीरा अपने अर्ध घुड़रूप मे तलवार लिए आँखों से अँगारे बरसा रहा था.

नागकुमार के हटते ही वीरा कि नजर घुड़वती पे पड़ती है वो बदहावस सा आगे बढ़ता है अनहोनी कि शंका उसके दिल मे घर करने लगी, करीब पहुंच के देखता है घुड़वती बिल्कुल नंगी, जननअंगों से खून और वीर्य निकाल रहा था, सांस नहीं चल रही थी.

वीरा गुस्से से हिनहिनाने लगता है उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था..

गुस्से से भरा वो नागकुमार कि और पलटता है.

नागकुमार :- मेरी बात सुनो घुड़ राजकुमार....

वीरा :- नहीईईईई......तलवार का एक जबरजस्त वार और गर्दन अलग हो के दूर गिर पड़ती है.

वार इतना जबरजस्त रहा कि तलवार धड मे लग के वही चट्टान मे धस जाती है,

वीरा रुनदन कर उठता है,"मेरी बहन देख आज रक्षाबंधन है और मे तेरी रक्षा नहीं कर पाया "

जार जार रोता वीरा घुड़वती को गोद मे लिए घुड़पुर कि ओर दौड़ा चला जा रहा था.

आँखों मे अँगारे थे ये अँगारे विनाश के थे.

पीछे बची थी सिर्फ लाश नागवंश कि लाश...


चैप्टर -2 नाग वंश और घुड़वंश कि दुश्मनी

समाप्त


चैप्टर -3 नागमणि कि खोज

आरम्भ


कथा वापस से वर्तमान मे जारी है....


**********


 चैप्टर -3 नागमणि कि खोज


सुबह हो चुकी थी, सुहाना मौसम हो रहा था अभी सूरज नहीं निकला था सिरद उसकी लालिमा फ़ैल गई थी चारो तरफ.

सभी जगह तूफान शांत हो चूका था, रूपवती और वीरा कि आँखों मे आँसू थे, वीरा अपनी दर्दनाक कहानी सुना चूका था उसका लंड सिकुड़ के रूपवती कि चुत से बाहर आ गया था रात भर उसका लंड रूपवतीं कि चुत मे ही पड़ा रहा था.

गांड चुत के छेद पुरे खुल चुके थे वीरा ने मार मार के गुफा बना दिया था.


चुत से लंड बाहर आते ही वीरा वापस अपने घुड़ रूप मे आ जाता है.

रूपवती आश्चर्य चकित होती है इसका मतलब वीरा सब सच बोल रहा था, वो विचार मे ही थी कि...

तभी टक टाकक की आवाज़ होती है जैसे कोई दरवाजे को टटोल rha हो..

रूपवती जल्दी से उठती है पुच कि आवाज़ के साथ ढेर सारा वीर्य उसके चुत के रास्ते बाहर निकलने लगता है जिसे देख वो वीरा कि तरफ देख शर्मा जाती है और एक कामुक मुस्कान चेहरे पे दौड़ जाती है.

जैसे कहना चाहती हो जो हो गया सौ हो गया अब मै हूँ ना वीरा.

वीरा भी हिनहिना के हामी भरता है.

रूपवती कपडे संभाल के दरवाज़े कि और बढ़ती है कोई काली परछाई दरवाजा के ऊपर चढ़ के अंदर हवेली मे कूद जाती है..

रूपवती स्तंभ रह जाती है उसे थोड़ा डर लगता है कि चोर आ गया है.

वही दूसरी तरफ बिल्ला कि रात बहुत मुश्किल कटी उसे असहनीय पीड़ा हो रही थी बार बार रास्ते मे गिर पड़ता था, बिल्ला का मददगार शख्श खुद थक चूका था.

अब संभालना मुश्किल था फिर भी जैसे तैसे वो शख्स बिल्ला को लिए गांव कामगंज पहुँचता है मौलवी के घर.

ठाक ठाक ठाक....

मौलवी :- इतनी सुबह कौन है? दरवाजा खोलता है

सामने रुखसाना किसी भीमकाय आदमी को थामे खड़ी थी.

मौलवी :- अरे बेटी जल्दी अंदर आ ये कौन है? क्या हुआ इसे? तू रात भर कहाँ थी?

रुखसाना अन्दर आती है "पिताजी ये बिल्ला है इसे गोली लगी है, रंगा गिरफ्तार है "

कल रात शादी मे मैंने दरोगा वीरप्रताप सिंह को देख लिया था तो मै भी किसी अनहोनी के अंदेशे मे बारात के पीछे चल पड़ी थी..

मेरा जाना व्यर्थ नहीं गया.

मौलवी :- बेटी ये क्या किया इसे यहाँ क्यों लाइ हम लोग भी बेमौत मारे जायेंगे.

रुखसाना :- पिताजी मैंने इनकी सेवा कि है आज भी कर रही हूँ, ऐसा बोल बिल्ला को बिस्तर पे लेटा देती है उसकी सलवार कमीज़ पूरी खून से लाल हो चुकी थी.

कातिलाना बदन हलके उजाले मे चमक रहा था.

मौलवी :- बेटा गोली निकालनी होंगी वरना जहर फ़ैल जायेगा.

जा जा के इंतज़ाम कर पानी गरम कर.

रुखसाना थोड़ी देर मे सभी औजार  ले आती है.

कुछ वक़्त बाद

मौलवी :- गोली तो निकाल दि है बेटी लेकिन अभी भी कमजोरी है खून बहुत ज्यादा बह गया है, जख्म भी बहुत गहरा है तुझे किसी डॉक्टर के पास जा के कुछ दवाइया लानी होंगी.

रुखसाना :- पिताजी लेकिन यहाँ दूर दूर तक तो कोई डॉक्टर है ही नहीं?

मौलवी :- बेटी विष रूप गांव मे एक डॉ है डॉ. असलम मै कल सुबह उनसे मिला था तुझे बताया तो था.

तुझे विष रूप ही जाना होगा यदि बिल्ला को बचाना है तो.

रुखसाना :- इसे तो बचाना ही होगा पिताजी तभी तो ये मुझे अपने मतलब के आदमी से मिला पाएंगे.

मै दवाई ले आउंगी पिताजी

ऐसा बोल रुखसाना नहाने निकाल पड़ती है उसे आज ही विष रूप के लिए निकलना था..

गांव घुड़पुर मे

रूपवती स्थिर चुपचाप खड़ी उस परछाई को हवेली मे अंदर आती देख रही थी.

"ये क्या ये परछाई भाई विचित्र सिंह के कमरे मे क्यों जा रहा है, जबकि उसके आगे मेरा भी कमरा है"

पीछे जाना होगा

रूपवतीं उस परछाई के पीछे चल देती है...

वो शख्स बड़े आराम से विचित्र सिंह के कमरे का दरवाजा खोल देता है और अंदर चला जाता है उसने पीछे वापस दरवाजा बंद करने कि जहमत भी नहीं उठाई थी.

वो सीधा विचित्र सिंह के बिस्तर पे गिरता है और जेब से एक हार निकाल के निहारने लगता है.

वाह क्या औरत थी चुत के साथ साथ गहने भी दे दिए...

वाह चोर मंगूस वाह... मंगूस खुद को शाबाशी दे रहा था.

तभी अचानक कमरे मे चिमनी जल उठती है, खिड़की से पर्दा हट जाता है

चिमनी रूपवती के हाथ मे थी...

मंगूस चौक जाता है "दीदी आप.... इतनी सुबह "

ऐसा बोल हाड़बड़ाहट मे हार और सभी गहने तकिये के नीचे छुपा देता है.

रूपवती :- तू रात भर कहाँ था? और चोरो कि तरह क्यों आया? वो तेरे हाथ मे क्या है? और ये मजदूरों कि तरह कपडे क्यों पहने है?

ममंगूस को काटो तो खून नहीं उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया था इतने सालो बाद उसका राज खुल गया था.

विचित्र सिंह :- दीदी वो मै... वो मै... हाँ शादी मे गया था.

रूपवती :- ऐसे कपड़ो मे? ठाकुर हो के मजदूर के कपड़ो मे. और कल तक तो तेरी मूँछ नहीं थी एक रात मे कैसे उग गई?

रूपवती तुरंत उसके सिरहाने के पास जा के उसका तकिया खींच लेती है, गहने हार जमीन पे गिर पड़ते है. रूपवती का दूसरा हाथ विचित्र सिंह कि मूछों पे जाता है एक झटके मे निकल जाती है नकली मुछ.

अब खेल ख़त्म हो गया था मंगूस का उसका पर्दाफाश हो गया था.

विचित्र सिंह :- दीदी वो मै....दीदी मै...

रूपवती :-चुप कर... आज तक तेरी चोरी कि आदत नहीं गई, अपनी माँ तेरी इसी आदत कि वजह से चल बसी, पिताजी जीवन से विरक्त हो गये.

कही कही.... तू ही तो वो बहरूपिया कुख्यात चोर मंगूस तो नहीं? ऐसा बोलते हुए रूपवती का कलेजा काँप रहा था,

उसे पता लग गया था कि यही है चोर मंगूस फिर भी एक कसक थी कि विचित्र मना कर दे कि मै चोर नहीं हूँ.

लेकिन ऐसा हुआ नहीं...

विचित्र :- अपना सर झुकाये... मै ही हूँ चोर मंगूस

रूपवती वही धम से बैठ जाती है अपना माथा पिट लेती है

हे भगवान... ये क्या हो रहा है

विचित्र सिंह अपनी बहन से बहुत प्यार करता था उसका दुख नहीं देख सकता था

उठ के उसके पास बैठता है उसके सर को पकड़ के उठाता है

विचित्र :- दीदी मुझे माफ़ कर दो.... लेकिन मै क्या करू मेरी आदत अब लत बन चुकी है जब तक मै चोरी नहीं कर लेता मुझे नींद नहीं आती मै बेचैन हो जाता हूँ.

कही भी हीरे मोती सोना चांदी देखता हूँ तो खुद को रोक नहीं पाता.

बिना चोरी के मै मर जाऊंगा दीदी.मैंने कभी किसी का अहित नहीं किया, कभी किसी गरीब के घर चोरी नहीं कि.

विचित्र सिंह कि आँखों मे आँसू थे होंठो पे सचाई थी.

रूपवती :- क्या तू मेरे कहने पे भी चोरी नहीं रोक सकता

विचित्र :- जिस दिन कोई बड़ा खजाना हाथ लग जाये मेरा मन भर जाये तो हो सकता है मेरी चोरी कि तम्मना खत्म हो जाये.

दोनों भाई बहन के आँखों मे आँसू थे,

मंगूस मजबूर था बाहर से विचित्र सिंह था लेकिन वो असल मे था ही चोर मंगूस.

"दीदी मै आपको दुख नहीं दे सकता आप वैसे ही बहुत दुखी है " भले मै मार जाऊ लेकिन अब चोरी नहीं करूंगा.

रूपवती अपना हाथ उसके मुँह पे रख देती है "मरे हमारे दुश्मन "

उसके दिमाग़ मे एक विचार चल रहा था.

रूपवती :- अच्छा तुझे कोई अनमोल खजाना मिल जाये तो तू चोरी छोड़ देगा?

विचित्र सिंह :- बिल्कुल दीदी

रूपवती :- अच्छा सुन एक चीज चोरी करनी है तुझे तेरी जीवन कि आखरी चोरी

जिसमे तेरी दीदी का भी भला है.बोल करेगा?

विचित्र :- आपके लिए जान हाजिर है दीदी, वैसे भी चोरी जितनी मुश्किल हो मुझे उतना ही मजा आता है.

वैसे मुझे चुराना क्या है?

रूपवती :- नागमणि कि चोरी

विचित्र :- नागमणि कि चोरी? ये कहाँ है?

रूपवती अपनी आपबीती सुना देती है, तांत्रिक उलजुलूल से मिली जानकारी दे देती है,

सिर्फ वीरा से हुए सम्भोग को छोड़ नागवंश और घुड़वंश कि सबकुछ बता देती है.

विचित्र सिंह कि तो बांन्छे खिल जाती है सुनते सुनते.

"वाह दीदी उस ज़ालिम सिंह को सबक सिखाने और आपकी सुंदरता के लिए आपका ये छोटा भाई जरूर चुराएगा नागमणि.

"अब चोर मंगूस जायेगा विष रूप "

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गांव विष रूप

ठाकुर ज़ालिम सिंह अपनी हवेली पहुंच चुके थे, जहाँ सब लोग काम मे व्यस्त थे.

रामु, बिल्लू कालू घोड़ा गाड़ी से सामान उतार रहे थे, वही नागेंद्र चुपचाप रेंगता अपने तहखाने मे पहुंच चूका था.

कामवती का बढ़े धूमधाम से स्वागत हुआ,

भूरी काकी स्वमः आरती कि थाली लिए खड़ी थी,

कामवती घोड़ा गाड़ी से उतरती है भूरी काकी उसकी सुंदरता देख चौक जाती है,

गांव वाले और ठाकुर के अन्य रिश्तेदार ठाकुर कि किस्मत से ईर्ष्या कर रहे थे, " कहाँ बुढ़ापे मे इतनी सुन्दर जवान लड़की मिली है ठाकुर को "

ठाकुर ज़ालिम सिंहभी मन ही मन ख़ुश दे आखिर वो दिन आज आ ही गया था जब ठाकुर को रूपवती जैसी काली कलूटी बेडोल स्त्री से निजात मिल गई थी इसे सुन्दर जवान स्त्री मिल गई थी

आज ठाकुर कि सुहागरात थी काफ़ी बरसो बाद ठाकुर किसी स्त्री को भोगने वाला था.

खेर विषरूप मे नाच गाना शोर शराबा शुरू हो गया था, शाम को होने वाले स्वागत भोज कि तैयारिया चल रही थी

वही भूरी काकी कामवती के साथ ठाकुर के कमरे मे बैठी थी.

भूरी :- कितनी सुन्दरहो बेटी तुम बिल्कुल स्वर्ग कि अप्सरा.

कामवती को देख उसे अपनी जवानी के दिन याद गये थे वो भी जवानी मे गजब ढाती थी,

कामवती घूंघट मे सर झुकाये बैठी थी, उसे कुछ पता नहीं था जैसे किसी ने उसका शादी से संबधित ज्ञान ही छीन लिया हो.

भूरी :- बेटी आज तेरी सुहागरात है, शाम को नहा धो के तैयार हो जाना, जैसा ठाकुर साहेब कहे वैसा ही करना.

कामवती सिर्फ सुने जा रही थी, हाँ मे सर हिला रही थी.

परन्तु उसका दिमाग़ कही और व्यस्त था जब से हवेली मे प्रवेश किया था कुछ अजीब लग रहा था उसे, जैसे ये हवेली मे पहले भी आई हो, कुछ कुछ धुंधला सा दिख रहा था परन्तु क्या ये स्पष्ट नहीं था.

वो कुछ कुछ बेचैन थी....


गांव कामगंज मे भी रतिवती बहुत बेचैन थी

उसने कल रात हवस मे डूब के खूब गुलछर्रे उड़ाए, ऐसी गांड और चुत मरवाई कि होश ही नहीं रहा ये भी ना समझ सकी कि सामने वाला कोई चोर डाकू लुटेरा भी हो सकता है,

फॉस्वरूप अपने सारे गहने जेवरात लूटा बैठी.

रतिवती सुबह से ही अपने कमरे मे उदास बैठी थी वो रूआसी थी उसे अपनी हवस पे गुस्सा आ रहा था.काश उसका पति नामर्द नहीं होता तो ये सब नहीं होता, खुद कि हवस का जिम्मेदार वो रामनिवास को ठहरा रही थी इस चक्कर मे वो सुबह सुबह ही रामनिवास पे बरस पड़ी थी.रामनिवास सुबह से ही बेवड़े के अड्डे पे बैठा दारू खींच रहा था.

गांड मे उसके अभी भी दर्द था कल रात जोश जोश मे गांड मे हाथ घुसवा बैठी थी. दिल से ले के गांड टक दर्द ही दर्द रहा रतिवती के

तभी.... चाटक... छन्न.... कि आवाज़ के साथ खिड़की से कुछ टकराता है.

वो भाग के खिड़की के पास आती है तो देखती है उसके गहाने जमीन पे बिखरे पडे थे, उसकी बांन्छे खिलजाती है वो किसी वहशी पागलो कि तरह अपने गहने समेटने लगती है.

हाय रे मेरे गहने.. हाय मेरा हार जैसे उसे नया जीवन मिल गया हो

तभी उसके हॉट्ज कागज़ का टुकड़ा लगता है... उसे खोल के ददेखती है


"नमस्कार वासना से भरी स्त्री रतिवती

कल रात ओके साथ सम्भोग का बहुत आनन्द उठाया, आपके जैसी कामुक  गद्दाराई स्त्री मैंने कभी जीवन मे नहीं देखि.

आपकी गांड के कहने ही क्या, आपकी चुत का पानी किसी अमृत सामान हैआपके पास स्तन के रूप मे दो अनमोल खजाने है, उस खजाने के सामने आपके ये गहाने कि कोई औकात नहीं, इसलिए मै इन्हे वापस कर रहा हूँ.

, ये सब पढ़ के कल रात का दृश्य उसके सामने घूमने लगता है.

लेकिन गहने के बदले मै जब चाहु आपके इस कामुक बदन का रस चखना चाहता हूँ.

आपका चोर मंगूस "


रतीवतीं ये सब पढ़ के घन घना जाती है, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने कुख्यात चोर मंगूस के साथ सम्भोग किया.

ये जानने के बाद उसके बदन मे एक उमंग जागने लगी, तरग हिलोरे लेने लगी, चुत से रस टपकने लगा.

फिर क्या था.... रतिवती कि दो ऊँगली रस छोड़ती गुफा मे घुस चुकी थी घपा घप.... धपा धाप...

पानी पानी चुत फच फचाने लगी उसके आँखों के सामने कल रात का दृश्य दौड़ रहा था,

चोर मंगूस ये नजारा देख रहा था.....

साली ऐसी स्त्री तो कभी देखि ही नहीं, हमेशा तैयार रहती है, खेर इसे तो बाद मे भी देख लूंगा.

अभी विष रूप जाना होगा.

चोर मंगूस रतिवती कि चुत को याद करता मुस्कुराता चल पड़ता है अपने जीवन कि सबसे बड़ी चोरी करने.


इसी गांव मे रुखसाना भी विष रूप जाने कि तैयारी मे थी.इसे डॉ. असलम को दवाई देने के लिए मजबूर करना था परन्तु कैसे?

"मुझे भी घाव चाहिए होगा?"

रुखसानाअपनी सलवार उतार फेंकती है, उसकी सुनहरी बिना बालो कि चुत चमक उठती है.

कितना चुदवाती थी फिर भी चुत गांड वैसी ही कसी हुई थी.

वो पास पड़ा चाकू उठा लेती है और शीशे के सामने अपनी दोनों टांग फैला के बैठ जाती है.

ना जाने उसके मन मे क्या चल रहा था, तभी फचक से चाकू चल जाता है उसकी नौक चुत और गांड के बीच कि जगह पे दंस गया था एक दर्द के साथ रुखसाना सिहर उठती है.

अजीब स्त्री थी रुखसाना सिर्फ रंगा बिल्ला के लिए इतना दर्द क्यों सहन कर रही थी?

"या अल्लाह मुझे अपने मकसद मे कामयाब करना "

चाकू बाहर निकल गया था चुत और गांड के बीच का हिस्सा लहूलुहान हो गया था, फिर भी वो हिम्मत कर खड़ी हो जाती है अपनी जांघो के बीच वो एक कपड़ा फसा लेती है.

सलवार वापस बाँध कुछ जरुरी सामान ले के विष रूप कि तरफ कूच कर जाती है


रुखसाना का क्या मकसद है?

कथा जारी है......



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