अपडेट -15, मेरी बेटी निशा
थोड़ी देर ऐसे ही लेटने के बाद निशा बोली।
निशा: पापा, मुझे आप से एक बात पुछनी है।
जगदीश राय: हाँ हाँ पुछो बेटी।
निशा: पापा…मेरे कॉलेज से 15 दिन के लिए साउथ इंडिया के कुछ जगहो पर एक स्टडी टूर जा रही है।टूर काफी हद तक स्पॉन्सर्ड है। सो…पैसा ज्यादा नहीं लगेगा…क्या मैं जाऊ…।
जगदीश राय, निशा को चिंतित नज़रो से देखने लगा।
निशा: हाँ मैं जानती हु…की यहाँ कोई नहीं है…घर का काम।।।इस्लिये मैं अभी तक हाँ नहीं कह पाई हूँ।। पर कल लास्ट डे है…।मैं ना कह देती हूँ…।
जगदीश राय: नहीं नहीं बेटी…मैं घर के बारे में नहीं तुम्हारे बारे में सोच रहा हूँ। तुम अकेले …।१५ दिन…जाना कैसे है।।प्लेन से…ट्रैन से…
निशा: ओफ़्कोर्से ट्रैन से…और मैं अकेली कहाँ हुँ…वह केतकी है न…वह है…और भी बहुत सारी लड़किया है…
जगदीश राय कुछ देर तक सोचता रहा।
जगदीश राय: जाओ बेटी…घूम आओ।।।कब जाना है…
निशा (चौकते हुए)पर पापा…यहाँ कौन सम्भालेगा…घर का काम।। खाना…
जगदीश राय: उसकी तुम चिंता मत करो…।में तो कैंटीन से खा सकता हु…और इन् बन्दरो के लिए तो पिज़्जा, बरगऱ, पास्ता तो है ही। कभी कभार मैं बना लूँगा
निशा: पर…।
जगदीश राय: बेटी।।यह उम्र तुम्हारे घूमने के… मजा करने के है…खाना तो ज़िन्दगी भर बनाना है…इसलिए जाओ…और कल हाँ कर दो…मुझसे पैसे ले लेना।
निशा खुश होकर, वीर्य लगे गालो से, पापा को चूम ली।
जगदीश राय: पर।।बेटी…एक समस्या है…मेरे इसके क्या होगा…
जगदीश राय ने मुस्कुराते हुए अपने लंड की तरफ इशारा किया।
निशा: इसका …आप…।१५ दिन तक…आराम दीजिये…हाथ से भी नहीं करना ठीक है…।मैं जब आऊँगी तब आपको एक स्पेशल गिफ्ट दुँगी। तब तक यह मुझे तडपता हुआ खड़ा मिलना चाहिये।।।
जगदीश राय: अरे तुम तो यह ही कहोगी।।तुम्हारे टूर पर तो लड़के भी होंगे…क्यूँउउ…
निशा: धत। पापा…मैं तो आपके सिवा किसी को हाथ भी नहीं लगाने दूँगी…
निशा के इस जबाब से जगदीश राय कुछ सोचने लगा।
निशा उठकर बाथरूम चली गयी। और थोड़े देर बाद फ्रेश होकर , साफ़ होकर आयी।
वह नंगी खड़े होकर अपना बाल बनाने लगी।
जगदीश राय: बेटी…एक बात पूछ्ना चाहता हु…।
निशा: हाँ पापा पुछो।
जगदीश राय: बेटी।।तुम अपने पापा के साथ।।मेरा मतलब है…यह सब…यह संबंध।
निशा (सर झुकाते हुए): मैं समझ गयी पापा…
जगदीश राय: बेटी …मैं यह नहीं चाहता की ।।इसकी वजह से ।।तुम और लड़को को पसंद न करो।।मेरा क्या।।आज है कल नहीं…पर तुम्हे शादी करके एक विवाहित जीवन बीतानी है…मैं यह चाहता हु…
निशा: ओह ओह पापा…आप कहाँ चले गए…पापा , आपके साथ रास लीला रचाने के बाद ।।मुझे तो बल्कि फ़ायदा हुआ है…अब मैं अन्य लड़कियों की तरह लड़को को ताकती नहीं रहती…मैं अब लड़को से शरमाती भी नहीं… अब मैं लड़को को उनके क्वालिटीज़ के अनुसार परखती हूँ।…।
जगदीश राय: अच्छा…
निशा: तो अब बेफिक्र रहिये…मैं कोई घर बैठने वाली नहीं हूँ।।
निशा: और अब मेरे पढाई मैं भी मार्क्स अच्छे आने लगे है…क्युकी मैं लड़को और एडल्ट मूवीज से डिस्ट्रक्ट नहीं होती…
जगदीश राय यह सुनकर खुश भी हुआ और आश्चर्य चकित भी।
जगदीश राय: फिर तो…यह…अच्छी बात है… है न…
निशा (हँसते हुए): और नहीं तो क्या…।हे हे…मैं तो कहती हु…हर लड़की का पहला बॉय फ्रेंड उनके पापा होने चाहिये…हे हे
जगदीश राय: निशा को गोद में बिठा लिया। और हँसते हुए चूमने लगा।
ऑफिस के सभी लोग गपशप लड़ा रहे थे। पर जगदीश राय को सीट पर बैठना मुश्किल हो रहा था।
आज निशा को घर से गए हुए सिर्फ 2 दिन हुए थे। और जगदीश राय का जीना मुश्किल हो गया था।
ऑफिस में बैठा नहीं जा रहा था और घर में मन नहीं लगता था।
और जगदीश राय से बुरा हाल जगदीश राय के लंड का था। पिचले 2 महीनो से निशा लगातार लंड की सेवा करती थी।
जब निशा के महीने चल रहे होते, उस वक़्त भी निशा लंड को चूस चूस कर उसका रस निकालती।
और 2 दिन से लंड को निशा की प्यारी चूत और मुह की कमी महसूस हो रहा था। वह अब निशा को कॉलेज ट्रिप पर भेजने के फैसले से पछता रहा था।
जगदीश राय से मुठ भी नहीं मारा जाता। ऑफिस के औरतो को भी घूरता। उसे डर लगने लगा की ऐसा ही चलता रहा तो जल्द ही वह अपने नौकरी से हाथ धो बेठेंगा।
और आज तो उसकी हालत ज्यादा बुरा था। लंड पिछले 2 घण्टो से खड़ा था। और पूरी शरीर में गर्मी फ़ैली हुई थी।
जगदीश राय ने तुरंत एक सिक लेटर लिख दिया और पिओन के द्वारा अपने बॉस को भेज दिया। और बिना कुछ बोले और कहे, देरी हो जाने से पहले , वहां से निकल गया।
रास्तो की लड़कियो और औरतो को ताकते हुए वह घर पहुंचा। दोपहर के 2:30 बजे थे। आशा और सशा शाम के 4-5 बजे तक आयेंगे। तो उसके पास 2-3 घंटे है। उसने सोचा की किसी तरह मुठ मारकर खुद को थोड़ा आराम दे दे।
दरवज़ा खोलते ही , उसे ऊपर के कमरे से कुछ हँसने की आवाज़ सुनाई दी।
जगदीश राय(मन में): अरे…यह क्या…आशा घर पर…इस वक़्त…
तभी जगदीश राय को आशा की मदहोश भरी सिसकियाँ और कुछ शब्द सुनाई दिए
आशा: ओह…।इट्स फीलस सो गुड…आहाहहह…।धीरे करो न…।हाँ वही…।आह…और…अंदर…
जगदीश राय आशा की यह आवाज़ सुनकर बुरी तरह चौक गया। वह भागा भागा ऊपर के कमरे की तरफ गया और तेज़ी से दरवाज़ा खोल दिया।
और अंदर का नज़ारा देखकर सुन्न हो गया।
अंदर आशा पूरी नंगी खड़ी थी। वह बेड के किनारे खड़ी थी।
उसके बदन पे एक भी कपडा नहीं था पर उसने अपने वाइट शूज नहीं उतारे थे।
और आशा के बेड पर एक सांवला सा लड़का बैठा हुआ था। जो आशा की दाए चूचो को मुरा मुह में घूसा कर बेदरदी से चूस रहा था।
आशा तेज़ी से सिसकी ले रही थी। और लग नहीं रहा था की उसके साथ कोई जबरदस्ती की जा रही हो।
लडीके ने सिर्फ अपना शर्ट उतारा था।
और जगदीश राय ने देखा की वह पीछे आशा की गांड पर अपना बायाँ हाथ फेरकर अंदर बाहर कर रहा है। जिसकी वजह से आशा भी अपनी गांड और कमर खड़े खड़े आगे पीछे हिला रही है।
दोनो इतने मदहोश थे की दोनों की ऑंखें बंद थी। और उन्हें पता भी नहीं चला की जगदीश राय वहां खड़ा है।
जगदीश राय ने यह सब नज़ारा कुछ चंद सेकड़ो में देख लिया था।
और वह गुस्से से आग बबुला हो गया।
जगदीश राय (गुस्से में): आशा…।।यह क्या हो रहा है…मेरे घर में…यु बास्टर्ड …।कौन है तू…।।साला।
अचानक से हुए शोर से दोनों आशा और वह लड़का चौक गये। और अपने पापा को देखकर आशा चिल्लायी
आशा: पापा…ओह गॉड…।सॉरी पापा…।सॉरी…।हम यही…।।या गॉड
और आशा ने अपने हाथो से पास पड़े उसकी छोटी सी टीशर्ट से अपने चूचो और चूत को छिपाने का असफ़ल प्रयास किया।
जगदीश राय बहुत गुस्से में था। वह तेज़ी से उस लड़के के तरफ बढा। लड़का घबरा गया।
लडका: अंकल…सॉरी…मैं निकल रहा हु…अंकल…सॉरी सॉरी…।
इसके पहले की जगदीश राय कुछ करता लड़का बड़े ही फुर्ति से अपने शर्ट उठा कर वहां से दौड पडा।
जगदीश राय उसके पीछे भागा पर जब तक वह सीडियों से लड़खड़ाते निचे पंहुचा लड़का दरवाज़े से फ़रार हो चूका था।
आशा डरकर की उसके पापा कुछ कर न बैठे, नंगी पीछे भागी आयी, अपने टी शर्ट छाती में पकडे।
जगदीश राय ने उसे देखा और जा के दरवाज़ा बंद कर दिया, ताकि बाहर के लोग उसे नंगी न देखे।
आशा तुरंत अपने रूम की तरफ चल दी।
पुरी घर में सन्नाटा छाया हुआ था। जगदीश राय तेज़ी से सास ले रहा था। वह किचन में घूसकर एक गिलास पानी पी लिया और खुद को शांत करने की कोशिश की।
जगदीश राय (मन में): यह सब क्या हो रहा है…आशा की यह मज़ाल …।वह भी इतनी छोटी उम्र में पर मैं करू भी तो क्या…।
तभी जगदीश राय को निशा की बात याद आयी। जवान होने पर, बाप को बेटी का दोस्त बनना पड़ता है।
कोई 5 मिनट वही डाइनिंग टेबल के चेयर पर बैठने के बाद, वह फिर आशा की रूम की तरफ चला।
रूम का दरवाज़ा अभी भी खुला था। आशा अभी भी नंगी खड़ी थी। वह एक छोटी सी टीशर्ट अपने छाती से लिपटाये।
टी शर्ट इतनी छोटी थी की सिर्फ उसकी निप्पल और चूत के बीच का हिस्सा छुप रहा था और वो भी मुश्किल से।
जागदीश राय का ग़ुस्सा आशा को ऐसे देखकर थोड़ा सा ग़ायब हो गया।
जगदीश राय: यह सब …।कब से।।चल रहा है…ह्म्म्मम्म।
आशा चुप बैठी। सर झुकाये खडी थी।
जगदीश राय: बोलो…अब छुपाने की…जरूररत नहीं…कौन था वह हरामी…।बोलो…जल्दी।।
आशा: आप ग़ुस्सा मत होईये…मैं सब बताती हु…
जगदीश राय: अच्छा…।तो बोलो…
आशा: वह मेरा बॉयफ्रेंड है…हम ५ महीने से जानते है…एक दूसरे को…।
जगदीश राय: क्या…5 महीनो से चल रहा है यह सब…वह तुम्हारे स्कुल में पढता है? अभी जाता हु उसके बाप के पास…
आशा (थोडा मुस्कुराते): नहीं…वह तो काम कर रहा है…इंजीनियर है…उसकी पढाई सब हो गयी।।
जगदीश राय: मतलब।।वह स्टूडेंट नहीं है…और तुम उसके साथ…कहाँ मिला तुम्हे…बताओ…
सवाल पूछते हुए जगदीश राय आशा की नंगे शरीर को निहार भी रहा था। और धीरे धीरे उसके लंड पर प्रभाव पडने लगा।
आशा भी खूब जानती थी। इसलिए उसने भी जान बुझकर कपडे नहीं पहने।
और वैसे ही नंगी रहकर जावब दे रही थी। वह जान चुकी थी की पापा की नज़रे कहाँ कहाँ घूम रही है।
आशा: एक कॉमन फ्रेंड की ओर से…मेरी एक सहेली है…उसका कजिन भाई है वह…
जगदीश राय: पर तुझे शर्म नहीं आयी…यह सब करते हुए तेरी।।उमर ही क्या है…अगर इस उम्र में कुछ उच-नीच हो गया तो क्या होगा इस घर की इज़्ज़त का…सोचा कभी तूने…
आशा: पापा…मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे घर की इज़्ज़त को धक्का लग सके…बस थोड़ा सा मजा कर रही थी।
आशा ने यह कहते अपने हाथो से टीशर्ट ठीक किया और इसी बहाने अपने हाथो से अपने चूचे मसल दिए।
जगदीश राय यह देखकर हिल गया।
चूचे इतने मस्त आकार के थे की उसके मुह में पानी आ गया और लंड खड़ा होने लगा।
जगदीश राय (संभालते हुए):मम्म।।मज़ा…क्या यह मजा है…इसे मजा कहते है…
आशा (थोडा मुस्कुराते): और फिर क्या कहते है…जो आप और निशा दीदी करते है वह मजा नहीं तो और क्या है…
जगदीश राय , एक मिनट समझा नहीं की जो उसने सुना वह ठीक सुना या नही। वह दंग रह गया।
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