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मेरी बेटी निशा -16

 अपडेट -16, मेरी बेटी निशा

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जगदीश राय:क्या…क्या।।बोल रही है तू…किस किस किसने कहा तुझसे यह सब।


आशा: इसमें कहने की क्या ज़रुरत है…यह दिवार क्या इतनी चौड़ी है की दीदी की चीखे और आपकी सिसकियाँ रोक सके…


अब ऐसा लग रहा था जैसे चोर कोतवाल हो डाट रहा हो।


जगदीश राय: तो क्या…तुम सब जानती हो…क्या तुमने हमे देखा भी…।


आशा: देखा भी और सुना भी… हाँ सब जानती हु…


जगदीश राय: मैं…मैं…वह बेटी…बस…।


आश: शुरू में , मैं भी आपकी तरह चौक गयी थी…पर फिर मुझे लगा की इस मौज में बुरा ही क्या है…


जगदीश राय: तो क्या।।तुमने हमे देखकर यह सब करना शुरू किया?


आशा: अरे नहीं…।मै तो इन सब में 4 महीनो से उलझी हूँ।।


आशा के बिन्दास जवाबो से जगदीश राय को थोड़ी हैरानी और थोड़ी चीढ़ भी आ रही थी।


आशा: क्या ।।अब आपको सब सवालो का जवाब मिला…


जगदीश राय: हा।।क्या तुम उससे और भी मिलेगी…तुम उससे नहीं मिल सकती…यह सब रोक दो…


आशा: अच्छा।।रोक देति हूँ…पहले आप भी वादा करो की आप और निशा दीदी सब रोक दोगे।…


जगदीश राय चुप हो गया।


जगदीश राय: वो।।बेटी…वह…सोचना…।


आशा: देखा पापा…कितना आसन है बोलना…पर सच कहो तो मुझे रोकने में आपसे ज्यादा आसानी है…


जगदीश राय: क्यों…क्या तुम उस लड़के से प्यार नहीं करती…


आशा: प्यार…अरे नहीं…मैं तो सिर्फ उसे इस्तमाल ही करती हु…क्या मैं अभी अपने कपडे पहन सकती हूँ।।

आशा ने ऐसे पूछा जैसे वह नंगी खडी अपने पापा पे मेहरबानी कर रही हो।


जगदीश राय (भूखे नज़र मारते हुए): हाँ…पहन लो…


जगदीश राय को समझ नहीं आया की वह वहां से जाये या नही। 


उसने आधे मन से दरवाज़े की तरफ कदम बढाया, पर आशा ने उसकी दिल की सुन ली।


आंसा: आप इतनी जल्दी कैसे आये…आप तो 5 बजे आते है न…


आशा ने टीशर्ट पहनते हुए पूछा। 


जगदीश राय मुडा। और सामने आशा बिना कुछ शरम, अपने पापा के सामने चूचे और चूत दीखाते हुए टीशर्ट पहन रही थी।


जहां निशा की चूचे बहुत बड़े और मुलायम थे, आशा के कड़क और गोलदार। निप्पल भी भूरे थे। आशा सांवली होने के बावजुद, उसके सभी अंगो में सही पैमाने पर चर्बी थी।


जगदीश राय चूचो को देखता रहा , और जैसे ही चूचो और पेट का भ्रमण करके चूत की तरफ उसकी ऑंखें पहुंची, आशा ने तुरंत अपने हाथ से चूत को ढ़क लिया।


जगदीश राय के मुह से सिसकी निकल गयी। आशा मन ही मन अपने पापा पर हँस रही थी।


आशा: बताइये ना पापा…।जल्दी कैसे आ गए…


जगदीश राय: क्यों…अच्छा हुआ जल्द आ गया…वरना तुम्हारी यह करतूत देखने को कैसे मिलता।


जगदीश राय , झूठ का ग़ुस्सा दिखाने का असफल अखरी कोशिश करते हुये।


आशा: सो तो है…पर मेरा प्रोग्राम तो चौपट कर दिया न आपने 


जगदीश राय, को आशा की बेशरमी और बदतमीज़ी पर चीढ आने लगा।


आशा (मुडते हुए): मेरा।।शरट्स…हम्म्म…हाँ यहाँ है…।


आशा के गोलदार, उभरी हुई गांड जगदीश राय के सामने थी।


और गांड के बीच में कुछ था जो जगदीश राय देखकर समझ नहीं पा रहा था।


आशा , शॉर्ट्स पहनने के लिए थोड़ा झुकी पर वह सफ़ेद चीज वहां से हिल नहीं रहा था। गौर से देखने पर , उस पर ख़रगोश का मखमल का बाल लगा हुआ था।


जगदीश राय: अरे…यह क्या है।।तुम्हारे पीछे…


आशा, ने तुरंत अपना शॉर्ट्स चढा लिया। अब वह टी शर्ट और एक बहुत छोटी शॉर्ट्स पहने खड़ी थी, और शॉर्ट्स के बटन डाल रही थी।


आशा: क्या पिताजी…


जगदीश राय: यह तुम्हारे पिछवाड़े पर…सफ़ेद सा…फर का…


आशा: अच्छा वह…वह मेरी …पूँछ है…

जगदीश राय (चौकते हुए): क्या…क्या है वह…पूछ? क्या पुंछ।


आशा,अपने बुक्स उठाते हुए…


आशा: पूँछ मतलब…पूँछ…टेल है मेरी…


जगदीश राय: टेल…टेल तो जानवारो का होता है…इंसानो को कहाँ…।


आशा: मैं भी तो जानवर हु…रैबिट हु मैं…खरगोश ।


जगदीश राय: क्या…क्या पागलपन है यह…


आशा: पापा…आप समझेंगे नहीं…इसलिए आप रहने दीजिये…मुझे अब पढाई करनी है।।


जगदीश राय: अरे…क्या समझना है…तुम कुछ चिपका रखी हो…अपने गाँड में।।मेरा मतलब…पिछवाड़े पर…और कहती हो की तुम रैबिट हो…


आशा: हाँ बिलकुल…मैं ख़ुद को रैबिट की तरह महसूस करती हु…उछलती कूदती खरगोश…हे हे।।


जगदीश राय: अच्छा…


आशा: और मैंने उसे चिपका नहीं रखी है…घुसा रखी है अपने अंदर…


जगदीश राय (चौकते हुए): क्या…।तुमने कहाँ घूसा रखी है…?


आशा: अपनी गांड में…और कहाँ…


जगदीश राय , आशा की मुह से गांड शब्द सुनकर भी अनसुन्हा कर दिया, क्युकी वह जो यह सुन रहा था वह यकींन नहीं कर पा रहा था।


जगदीश राय, चौक कर, वही चेयर पर बैठ गया।


जगदीश राय: तो…।क्या…तुम…उसे बाहर निकालो…क्या उस लड़के ने तुम्हारे अंदर घुसाया…


आशा: अरे नहि।।यह बाहर नहीं आता…पुरे दिन मेरे अंदर ही रहता है।।यह मेरे शरीर का एक भाग है…जैसे मेरी हाथ पैर वैसे ही…


जगदीश राय: पुरे दिन।।तुम।।इसे अपने अंदर रखती हो…कभी बाहर नहीं निकालति।।???


आशा: बस सिर्फ नहाते वक़्त और ओफ़्कोर्स लैट्रिन जाते वक़्त।


जगदीश राय: मतलब स्कूल…टयुशन…सोते समय…हर वक़्त अंदर रहता है…


आशा (मुस्कुराते हुए): हाँ…हर वक़्त…मेरी गांड को सहलाते रहता है…


जगदीश राय , कुछ वक़्त के लिए चूप हो जाता है। 


सभी जानते थे की आशा थोड़ी विचित्र है, पर इतनी सनकी हुई है आज जगदीश राय को मालुम हुआ।


और वह जानता था की अब मामला हाथ से निकल चूका है।


आशा, अपने पापा की यह हालत, बड़ी ही शीतल स्वाभाव से देखते रहती है।


जगदीश राय: यह…कब से…


आशा: यहि कोई 4 महीने से…पहले थोड़े समय के लिए रखती थी…पर अब तो हर वक़्त मेरे शरीर का हिस्सा बन चूका है।।


जगदीश राय के मन में हज़ार सवाल आ रहे थे, पर उसे पता नहीं चल रहा था की कहाँ से शुरू करे।


जगदीश राय: तुम स्कूल मैं बैठती कैसे हो…


आशा: आराम से…टेल का बाहर का हिस्सा मुलायम रैबिट के खाल से बना हुआ है। तो स्कर्ट से बाहर भी नहीं आती और आराम से बैठ पाती हूँ। शुरू शुरू में तो तक्लीक होती थी। हर घन्टे में टॉइलेट जाकर ठीक करना पड़ता था।।हे हे।।पर अब कोई प्रॉब्लम नहीं होती।।


जगदीश राय: पर…पर…तुम्हे यह मिला कहाँ से…किसने बताया…और क्यों…


आशा: मेरी एक फ्रेंड है लवीना, वह अपने दीदी को मिलने अमेरिका गयी थी। वहां से ले आयी। हम दोनों रैब्बिटस है।

जगदीश राय: तुम्हारी उस ब्यॉफ्रेंड लड़के को भी पता है…उससे कोई प्रॉब्लम नहीं है इसमें…


आशा (हँस्ती हुए): प्रॉब्लम…हा ह।।वह तो मरा पडा रहता है।।टेल को देखने के लिए…एक बार अपनी गांड दिखा दूँ तो पागल हो जाता है। कभी कभी उससे खेलने देति हूँ उसे।


आशा की यह बेशरमी बात सुनकर अब जगदीश राय कुछ गरम होने लगा था और लंड पर प्रभाव पड रहा था।


आशा , अपने पापा को बोतल में उतार चुकी थी।


जगदीश राय (गरम होकर): ठीक है…वैसे मुझे यह सब पसंद नही।।बंद कर दो यह सब…अच्छा नहीं है यह…


आशा: क्या अच्छा नहीं है…आपने कहाँ देखा मेरे टेल को…देखेंगे?


जगदीश राय: अब…।नही…।हा…ठीक है…।दिखाओ…अगर।।तुम…


इसके पहले जगदीश राय अपनी बात ख़तम करता आशा पापा के सामने खड़ी हो गयी। और पीछे मुडी


और अपने गाण्ड पर से शॉर्ट्स निचे सरका दिया।


ईद के चाँद की तरह, अपने पापा के सामने आशा की गोलदार गांड खिलकर आ गई।


आशा: यह देखिये…


गांड के बिचो बीच, गालो को चिरते हुई, ख़रगोश के पूँछ के जैसे एक पूँछ , निकल कर बाहर आ रहा था।


इतनी चिपककर घूसा हुआ था की गांड का छेद दिखाई नहीं दे रहा था।


जगदीश राय का लंड पुरे कगार में खड़ा हुआ था। 


आशा , बड़ी ही नज़ाकत से चेहरा घूमाकर, अपने पापा के ऑंखों में देखी। उसे पापा के पेंट में से खड़ा लंड साफ़ दिखाई दे रहा था।


निशा को चोदते हुए पापा का लंड वो कई बार देख चुकी थी। और वह उसका आकर जानती थी। 


आशा: कैसी है …पापा…कुछ बोलो तो…बस यूही ताक़ते रहोगे।।?


जगदीश राय , अपने गले से थूक निगलती हुयी।

जगदीश राय: अच्छी है…।ठीक है…


आशा: आप चाहे हो पूँछ को छु सकते हो।


काँपते हाथो से जगदीश राय, आशा के गांड के तरफ ले गया।


जगदीश राय (मन में): नहीं जगदीश…क्या।।कर रहा है तू…नहीं…रुक ज।।आशा नासमझ है…


पर लंड के सामने न दिल न दिमाग की बात न सुनी। 


आशा को तुरंत अपने गाण्ड पर प्रभाव महसूस हुआ। और वह समझ गई की पापा अपने हाथो से उसके पूँछ को सहला रहे है।


जगदीश राय , को आश्चर्य हुआ की , पूँछ कितनी टाइट गांड में फँसी है। क्युकी बिच में, उसने पूँछ को धीरे से खीचा पर , पूँछ अपनी जगह से हिली भी नही।


आशा: बाहर नहीं निकलेगी।।ऐसे…अंदर 2 इंच का मोटा गोलदार भाग उसे अंदर ही रखता है।


आशा की गांड इतनी मादक और कोमल लग रही थी, की जगदीश राय से रहा नहीं जा रहा था। और उस मादक गांड से निकलती हुई पूँछ , उसे और मादक बना रही थी।


जगदीश राय ने तुरंत अपना हाथ पूँछ से निकालकर गांड पर रख दिया , और गाण्ड को दबा दिया।


आशा ने तुरंत , अपनी शॉर्ट्स ऊपर कर ली।


आशा (लंड की तरफ इशारा करते हुए): पापा…अब आप नॉटी बॉय बन रहे है…निशा दीदी की बहुत याद आ रही है क्या…हे हे।


जगदीश राय अपने इस करतूत से थोड़ा शर्माया ।


जगदीश राय: सोर्री।।।वह बस…नहीं…ठीक है तूम पढाई करो…मैं…


आशा: अरे सॉरी क्यों…मैं जानती हूँ।।ऐसे टेल से सजा हुआ गांड तो किसी को भी पागल कर सकता है।


जगदीश राय, अपने लंड को हाथो से सम्भालते हुये, मुस्कुराते हुये, रूम से निकल जाता है।


कमरे से निकल कर , अपने रूम में घूसने से पहले ही जगदीश राय अपना लंड हाथ में लिए हिलाना शुरू कर दिया।


दिमाग पर आशा की गांड और उसमे घूसि हुई पूँछ

और निशा की यादें, लंड को झडने से रोकने वाले नहीं थे।


निशा की चूत और आशा की गांड दोनों सोच सोचकर, जगदीश राय ने ऐसा जोरदार मुठ निकाला की झरते वक़्त वह चीख़ पडा।


कुछ 2 घन्टे बाद जब जगदीश राय निचे हॉल में आया, आशा वही किचन में चाय बना रही थी। 


उसने अपने कपडे चेंज कर लिए थे। एक टाइटस और सलवार पहनी थी।


जगदीश राय की नज़र उसकी गांड पर गयी, और आंखें ख़रगोश वाली पूँछ को ढून्ढने लगी।


आशा: क्या देख रहो हो पापा।।


जगदीश राय: नही।।कही।।बाहर जा रही हो।।


आशा: हाँ यही बुकशॉप तक…कुछ बुक्स लेने हैं…पैसे चाहिये होंगे…यह लिजीये चाय…


जगदीश राय और आशा दोनों एक दूसरे के सामने बैठकर चाय पीने लगे। 


कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया था। 


जगदीश राय , दोपहर की घटनाओ के बारे में सोच रहा था। और खास कर आशा की पूँछ और गांड के बारे में।


आशा के चेहरे पर कोई भाव नज़र नहीं आ रहा था। वह बस एक ही भाव से अपने पापा को देखे जा रही थी।


आशा की यह दिल चीरने वाली नज़र से जगदीश राय सोफे में करवटें लेने लगा।


जगदीश राय( मन में): क्या वह अभी भी गांड में घुसायी रखी होगी…नही।।देखो कितनी आराम से बैठी है…आराम से कोई ऐसे बैठ सकता है…गांड में लिये।


पर वह आशा से पुछने की हिम्मत नहीं जूटा पा रहा था।

Contd....

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