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नागमणि -16

 चैप्टर -3 नागमणि कि खोज अपडेट -16


शाम हो चली थी, सूरज अस्त होने को था.

थाने मे मौजूद दरोगा वीरप्रताप सिंह के सामने डाकू रंगा बैठा था,

वीरप्रताप :- बता साले अभी तक कितनी लूट कि है कहाँ छुपा रखा है अभी तक का माल?

रंगा :- हसते हुए हाहाहाहा.... दरोगा तेरे जैसे कितने आ के चले गये तू भी जायेगा

परन्तु तेरा जो हाल होगा उसका तू खुद जिम्मेदार है.

चटाक... से एक थप्पड़ पड़ता है रंगा के मुँह पे "मादरजात अकड़ नहीं गई तेरी हरामखोर " चटाक..

रंगा थप्पड़ से बिलबिला जाता है होंठ से खून कि पतली लकीर छलक जाती है.

जिंदगी मे पहली बार रंगा ने थप्पड़ खाया था उसके आँखों मे खून उतार आया था

रंगा :- साले दरोगा ये थप्पड़ तुझे बहुत भारी पड़ेगा जिस दिन मे यहाँ से बाहर निकला ये थप्पड़ तेरी बीवी कि गांड पे पड़ेगा. हाहाहाहा....

वीरप्रताप :- मदरचोद तेरी ये मजाल तेरा भाई बिल्ला मेरीगोली का शिकार हो चूका है तेरी मौत भी नजदीक है रंगा.

हाहाहाहा....रंगा कि धुनाई चालू होजाती है.

रंगा के मुँह से एक उफ़ तक नहीं निकलती उसके मन मे कुछ चल रहा था.

"रंगा जिन्दा है तो बिल्ला भी जिन्दा है "

बस बाहर निकलने कि देर है दरोगा तू खून के आँसू रोयेगा.

सूरज पूरी तरह डूब चूका था,

चोर मंगूस किसी छालावे कि तरह आगे बढ़ता चला जा रहा था. विष रूप दूर नहीं था


रुखसाना भी जल्दी जल्दी चली जा रही थी, परन्तु खुद को दिए जख्म मे रह रह के टिस उठ रही थी.

"मुझे थोड़ा आराम कर लेना चाहिए " ऐसा सोच वो एक चट्टान पे बैठ जाती है उसकी चुत और गांड के बीच जख्म से दो बून्द रक्त रिसता हुआ चट्टान पे गिर जाता है,

रक्त कि गंध एक सुनसान काली अँधेरी गुफा तक पहुँचती है,

आअह्ह्ह..... वही रक्त कि गंध इतने सालो बाद ऐसा कैसे संभव है?

वो तो मर चुकी है,मेरे लंड से ही मरी थी, फिर फिर.... ये वैसी ही गंध कहाँ से आ रही है.

रुखसाना के खून कि गंध तेज़ थी या फिर सूंघने वाले कि शक्ति तेज़ थी कह नहीं सकते.

वो भीमकाय जीव  अँधेरे मे सरसरा जाता है गंध का पीछा करने लगता है.

चाटन के करीब पहुंच के उसे चट्टान पे गिरी रक्त कि दो बून्द दिखती है... वो अपनी नाक पास ला के सूंघता है

शनिफ्फफ्फ्फ़.... आह्हः... वही खुशबू वही स्वाद

पक्का ये वही है घुड़वती तू जिन्दा है परन्तु कैसे?

तेरी चुत से निकला है ये खून आज भी इसकी खसबू और स्वाद नहीं भुला है सर्पटा....

भयानक अठाहस गूंज जाता है सुनसान जंगल मे.

तुझे ढूढ़ ही लूंगा....


रुखसाना भी विष रूप का प्रवेश द्वारा मे प्रवेश कर रही थी.


ठाकुर ज़ालिम सिंह कि हवेली पे खाना पीना हो रहा था

कामवती कमरे मे तैयार बैठी थी उसे ठाकुर का इंतज़ार था

वही ठाकुर भी जल्द से जल्द कमरे मे पहुंच लेना चाहता था,

भूरी काकी भी इस रूहानी मौसम का आनन्द लेने लगी थी उसकी चुत भी सुबह से पनिया रही थी उसे कामवती कि सुहागरात मे अपनी चुदाई याद आ रही थी जो उसने कालू बिल्लू और रामु के साथ कि थी.

कालू बिल्लू रामु भी रह रह के भूरी को हसरत भरी निगाहो से ताड़ रहे थे, वो तीनो मौका ही ढूंढ़ रहे थे आग दोनों तरफ बराबर थी परन्तु मेहमानों से हवेली भरी पड़ी थी.

चोर मंगूस भी जश्न मे शामिल हो चूका था ठाकुर रूप मे ज़ालिम. सिंह का दूर का रिश्तेदार मासूम सुन्दर सब उसकी बातो से प्रभावित नजर आ रहे थे.

मंगूस कि खास बात ही यही थी कि वो अपने व्यक्तित्व से सभी को प्रभावित कर लेता था

उसने बातो ही बातों मे जान लिया था कि भूरी काकी सबसे पुरानी नौकर है और कालू बिल्लू रामु तीनो वफादार नौकर है परन्तु थोड़े मुर्ख है


उसकी योजना बनने लगी थी... भूरी काकी मेरा काम कर सकती है.

रात गहराने लगी थी सभी मेहमान जा चुके थे एक्का दुक्का लोग ही बचे थे

डॉ. असलम :- अच्छा ठाकुर साहेब मुझे भी इज़ाज़त दे मै चलाता हूँ अपने घर थक गया हूँ.

और एक पुड़िया ठाकुर के हाथ मे थमा देता है, "रात मे दूध के साथ ले लीजियेगा अच्छा रहेगा "

बोल के एक गहरी मुस्कान दे देते है

ठाकुर साहेब झेप जाते है.

ठाकुर साहेब कमरे कि और बढ़ चलते है.

कमरे के अंदर पहुंच के अंदर से कुण्डी लगा देते है, कामवती बिस्तर पे डरी सहमी सी बैठी थी उसके मन मे सुहागरात को ले के बेचैनी थी कि ठाकुर साहेब क्या करेंगे.

ठाकुर साहेब बिस्तर के पास आ कामवती के सामने बैठ जाते है.

ठाकुर :- अतिसुन्दर... जितना सोचा था उस से कही ज्यादा सुन्दर है आप कामवती.

आपको शादी मुबारक हो.

कामवती के चेहरे पे एक मुस्कान आ जाती है "आपको भीशादी मुबारक हो ठाकुर साहेब "

मेरी खुशकिस्मती है कि मै इस हवेली कि ठकुराइन बनी.

कामवती कर्ताग्यता प्रकट करती है.

ठाकुर साहेब हाथ आगे बढ़ाते है और धीरे धीरे घूँघटउठा देते है.

हाय क्या रूप है कितनी गोरी है, घूँघट हटते ही कमरे मे एक अलग ही जगमग हो गई, जैसे कामवती का चेहरा रौनक पैदा कर रहा हो कमरे मे.

घूंघट पीछे कि और सरकता हुआ नीचे गिर जाता है.

घूँघट गिरने से आगे से ब्लाउज पूरा दिखने लगता है लाल ब्लाउज मे कैद दो बड़े बड़े गोरे स्तन समा ही नहीं रहे थे,आधे से ज्यादा हिस्सा बाहर निकला हुआ था,

ठाकुर कि नजर जैसे ही कामवती के अर्धखुले स्तन पे पड़ी उसकी तो हवा ही टाइट हो गई, ऐसा यौवन ऐसा रूप इसी के लिए तो तरसा था ठाकुर,

चूड़ी से भरे हाँथ, माथे पे बिंदी कामवती के यौवन को और ज्यादा निखार रहे थे.

इतने भर से ठाकुर कि 3इंच कि लुल्ली पाजामे मे फनफनाने लगी.

वो थोड़ा आगे बढ़ कामवती कि ठोड़ी को ऊपर उठा के उसकी आँखों मे देखता है.

मदहोश कर देने वाली सुन्दर आंखे थी कामवती कि.

ठाकुर तो बस देखे ही जा रहा था, कही इस सुंदरता को देख के ही उसका लंड पानी ना फेंक दे.

नीचे तहखाने मे मौजूद नागेंद्र बेचैनी से इधर उधर पलट रहा था,

उसके दिमाग़ मे बार बार एक ही आवाज़ गूंज रही थी

तांत्रिक उलजुलूल कि आवाज़

"हे साँपो के राजा नागेंद्र मै तुझे श्राप देता हूँ तू अपनी सभी शक्ति खो देगा तेरी प्रेमिका कामवती सारा काम ज्ञान भूल जाएगी"

नाहीई...... ईईईई.... करता नागेंद्र उठ खड़ा होता है उसका दिलधाड़ धाड़ कर बज रहा था.

"नहीं नहीं ऐसा नहीं होने दूंगा उस श्राप को काटने का वक़्त आ गया है, अपनी शक्ति वापस पाने का वक़्त आ गया है "

ऐसा बोल वो ठाकुर के कमरे कि और बढ़ चलता है


क्या करेगा नागेंद्र?

ठाकुर सुहाग रात मना पायेगा?

ये सर्पटा कहाँ से आ धमका? रुखसाना से घुड़वती कि गंध क्यों आ रही है?

सवाल कई है जवाब मिलेगा.

*************


ठाकुर ज़ालिम सिंह कि हवेली मे एक और जिस्म हवस कि आग मे जल रहा था, भूरी काकी का आज कामवती कि सुहागरात सोच सोच के उसके कलेजे पे भी छुरिया चल रही थी,

वो अपने बिस्तर पे सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट मे लेटी चुत को रगड़ रही थी उसे कालू बिल्लू रामु के साथ हुई चुदाई याद आ रही थी कैसे तीनो ने रगड  के रख दिया था

बाहर चौकीदार कक्ष मे

बिल्लू :- यारो ठाकुर कि तो आज चांदी है मजा कर रहा होगा कुंवारी स्त्री मिल गई बुड्ढे को.

रामु :- हाँ यार ऐसा सोच सोच के तो मेरा लंड कब से खड़ा है बैठने का नाम ही नाहि ले रहा.

कालू :- भूरी काकी भी डर गई लगता है उस दिन से वरना उसे ही चोद लेते वो भी क्या नई ठकुराइन से कम है पुरानी शराब है, जितना चोदो कम है, उस दिन भरपूर मजा दिया था.

आज ही मौका है वरना कल से तो ठाकुर काम पे लगा देगा

बिल्लू :- अरे उदास क्यों होता है भगवान ने चाहा तो चुत मिल ही जाएगी, ले दारू पी

ऐसा बोल के तीनो भूरी का नशीला बदन याद करते हुए लंड पकड़े एक घूंट मे शराब पी जाते है

रामु :- चलो एक चक्कर मार लिया जाये हवेली का कही कोई चोर तो नहीं घुस आया होगा?

चोर तो घुस ही आया था कबका.... वो भी चोर मंगूस

तीनो पे बराबर नजर बनाये हुए था, काम करने का मया तरीका है? सोते कब है? करते क्या है?

मंगूस को कमजोरिया ही नजर आ रही थी.

"हवेली मे आना जाना बड़ी बात नहीं है बस मुझे नागमणि का पता लगाना होगा "


भूरी काकी भी अपने कमरे मे वासना मे तड़प रही थी "ऐसे कैसे चलेगा भूरी, ठाकुर के रहते चुदाई संभव भी नहीं है हवेली पे,कब तक चुत रगड़ेगी  पीछे मूत के आती हूँ थोड़ी वासना कम हो तो सुकून कि नींद आये "

भूरी ब्लाउज पेटीकोट मे अपने कमरे के पिछवाड़े चल देती है, चारो तरफ अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था.

वो इधर उधर देख के अपना पेटीकोट ऊपर उठा देती है, अँधेरी रात मे गोरी बड़ी गद्दाराई गांड चमक उठती है, मंगूस पास ही झाड़ी मे छुपा हुआ था उसकी नजर जैसे ही साये पे पड़ती है वो दुबक जाता है.

फिर अचानक उसकी आंखे चोघीया जाती है... भूरी काकी कि गांड ठीक उसके सामने थी दो हिस्सों मे बटी बड़ी गोरी दूध से उजली गांड... तभी पिस्स्स.... कि तेज़ मधुर आवाज़ के साथ चुत एक धार छोड़ देती है, पीछे से मंगूस को यव नजारा ऐसा दीखता है जैसे दो बड़ी गोल चट्टान के बीच से पानी का झरना छूट पड़ा हो,मंगूस इस मनमोहक नज़ारे को देख घन घना जाता है.

जैसे ही चुत से मूत कि धार निकलती है भूरी को थोड़ी राहत मिलती है

उसके मुँह से आनंदमय सिसकरी फुट पड़ती है.

जैसे ही वो खड़ी होती है पीछे से एक जोड़ी हाथ ब्लाउज पे कसते चले जाते है और पीछे से कोई सख्त लोहे कि रोड नुमा चीज भूरी कि गांड कि दरार मे सामाति चली जाती है

पेटीकोट पूरी तरह नीचे भी नहीं हुआ था कि ये हमला हो गया... स्तन बुरी तरह दो हाथो मे दब गये थे,

ना चाहते हुए भी भूरी सिसकारी छोड़ देती है वो पहले से ही गरम थी इस गर्मी को उन दो हाथो ने बड़ा दियाथा.

अंधेरा पसरा हुआ था... तभी एक जोड़ी हाथ भूरी कि जाँघ सहलाने लगता है.

"क्यों काकी मूतने आई थी?"

भूरी आवाज़ पहचान गई "बिल्लू तुम? ये क्या तरीका है "

बिल्लू :- काकी हम तीनो कब से तड़प रहे है और आप तरीका पूछ रही हो?

पीछे से स्तन मर्दन करता रामु भूरी कि गर्दन पे जीभ रख देता है और एक लम्बा चटकारा भर लेता है "आह काकी क्या स्वाद है आपका मजा आ गया "

भूरी सिर्फ सिसक के रह जाती है

अचानक उसकी दोनों जांघो के बीच कुछ गिला गिला सा महसूस होता है वो नीचे देखती है तो पाती है कि कालू अपनी जबान निकाले चुत से निकलती मूत कि गरम बूंदो को चाट रहा था

भूरी तो इस अहसास से मरी ही जा रही थी कहाँ वो अपनी वासना कम करने आई थी कहाँ ये तीनो पील पडे उस पे.

भूरी वासना मे इतना जल रही थी कि वो किसी प्रकार का विरोध  ना कर सकी करती भी क्यों उसे भी तो प्यास लगी थी हवस कि प्यास.


अंदर हवेली मे नागेंद्र भी कामवती के कमरे मे पहुंच चूका था और चुपचाप एक कोने मे सिमट के बैठ गया था उसकी नजर कामवती के कामुक बदन पे टिकी हुई थी.

आह्हः.... अभी भी वैसे ही है बिल्कुल मादक कामवासना से भरी, लेकिन जैसे भी हो मुझे श्राप तोड़ने कि क्रिया करनी ही होंगी.


कामवती के सामने बैठा ठाकुर का लिंग अपने चरम पे था उसने ऐसा रूप सौंदर्य कभी देखा ही नहीं था

उसकी लुल्ली खड़ी हो के सलामी दे रही थी.अब सहननहीं कर सकता था वो

ठाकुर :- कामवती आप लेट जाइये सुहागरात मे देर नहीं करनी चाहिए.

कामवती को काम कला को कोई ज्ञान नहीं था

"ज़ी ठाकुर साहेब "बोल के सिरहाने पे टिक के लेट जाती है.

ठाकुर उसके पैरो के पास बैठ उसके लहंगे को ऊपर उठाना शुरू कर देता है ज़ालिम सिंह जैसे जैसे लहंगा उठा रहा था वैसे वैसे कामवति कि गोरी काया निकलती जा रही थी

ठाकुर ये सब देख मदहोश हुए जा रहा था.

ये नजारा नागेंद्र के सामने भी प्रस्तुत था परन्तु "हाय री मेरी किस्मत मेरी प्रेमिका मेरे सामने ही किसी और से सम्भोग करने जा रही है और उसे कोई ज्ञान ही नहीं है "

हे नागदेव काश मेरी शक्तियांमेरे पास होती तो मै ये नहीं होने देता, मुझे मौके का इंतज़ार करना होगा. "

ठाकुर अब तक कामवती का लहंगा पूरा कमर तक उठा चूका था जो नजारा उसके सामने था वो किसीभी मर्द कि दिल कि धड़कन जाम कर सकता था दोनों जांघो के बीच छुपी पतली सी लकीर हलके हलके सुनहरे बाल, एक दम गोरी चुत कोई दाग़ नहीं सुंदरता मे

ये दृश्य देख ठाकुर का कलेजा मुँह को आ गया, वो तुरंत अपना पजामा खोल के कामवती के ऊपर लेट गया उस से अब रहा नहीं जा रहा था

कामवती के ऊपर लेट के अपनी छोटी सी लुल्ली कोचुत कि लकीर पे रगड़ने लगा,कामवती को अपने निचले भाग मे कुछ कड़क सा महसूस हुआ उसे थोड़ा अजीब लगा कुछ अलग था जो जीवन मे पहली बार महुसूस कर रही थी वो..

उसने सर ऊपर उठा के देखना चाहा परन्तु ठाकुर का भाटी शरीर उसके ऊपर था कामवती ऐसा ना कर सकी

ठाकुर इस कदर मदहोश था ऐसा पागल हुआ किउसे कुछ ध्यान ही नहीं रहा ना कोई प्यार ना कोई मोहब्बत सिर्फ चुत मारनी थी अपना वंश आगे बढ़ाना था.

उसकी लुल्ली कड़क हो के कामवती कि चुत रुपी लकीर पे घिस रही थी आगे पीछे मात्र 4-5 धक्को मे ही ठाकुर जोरदात हंफने लगा जैसे उसके प्राण निकल गये हो, उसकी लुल्ली से 2-3 पानी कि बून्द निकल के चुत  कि लकीर से होती गांड तक बह गई ठाकुर सख्तलित हो गया था ठाकुर कामवती के उभार और चुत देख के इतना गरम हो चूका था कि डॉ. असलम दवारा दी गई पुड़िया ही लेना भूल गया नतीजा मात्र 1मिनट मे सामने आ गया.

यही औकात थी ठाकुर ज़ालिम सिंह कि

वो कामवती के ऊपर से बगल मे लुढ़क गया और जी भर के हंफने लगा जैसे तो कोई पहाड़ तोड़ के आया हो, कामवती ने एक बार उसकी तरफ़ आश्चर्य से देखा कि ये अभी क्या हुआ?

मुझे अर्ध नंगा कर के ठाकुर साहेब लुढ़क क्यों गयेऔर ये मेरी जांघो के बीच गिला सा क्या है,

शायद यही होती होंगी सुहागरात ऐसा सोच कामवती ने लहंगा नीचे कर लिया और करवट ले के सोने लगी.

वही नागेंद्र जो ये सब कुछ देख रहा था वो मन ही मन जसने लगा "साला हिजड़ा निकला ये भी अपने परदादा जलन सिंह कि तरह"

कामवती लुल्ली से संतुष्ट होने वाली स्त्री है ही कहाँ हाहाहाहाहा..... नागेंद्र तहखाने कि और चल देता है उसे ठाकुर से कोई खतरा नहीं था.

हिजड़ा साला... आक थू.

ठाकुर कि सुहागरात तो शुरू होते ही ख़त्म हो गई थी,

लेकिन भूरी कि रात अभी बाकि है

**************


विष रूप मे ही कही

ठाक ठाक ठाक..... धम...

अरे इतनी रात कौन आ टपका अच्छा खासा चुदाई के सपने देख रहा था,

डॉ. असलम बड़बड़ाते हुए अपने बिस्तर से उठा,

उसे उठने कि इच्छा नहीं थी वो सपने मे रतिवती को पेल रहा था उसकीचुदाई कि सुनहरी याद सपने मे चल रही थी, उसका लोड़ा पूरी तरह तना हुआ लुंगी मे तनाव पैदा कर रहा था.

तभी फिर से... ठाक ठाक ठाक.... "कौन बेशर्म इंसान है ये "

डॉ. असलम धाड़ से दरवाज़ा खोल देता है

सामने बुरखे मे एक औरत खड़ी थी

डॉ. असलम :- मोहतरमा आप कौन है? इतनी रात गए मेरा दरवाज़ा क्यों पिट रही है?

महिला  :- क्या ये डॉ. असलम का घर है?

असलम :- हाँ मै ही हूँ डॉ. असलम बोलो क्या बात है? वो बेरुखी से खीझता हुआ बात कर रहा था उसे लगा गांव कि ही कोई बुड्ढी महिला होंगी, जवान लड़किया तो उसके रंग रूप से ही डरती थी तो कोई आता नहीं था.

रुखसाना :- डॉ. साहेब मुझे बचा लीजिये मै मर ना जाऊ कही?

डॉ. असलम :- अरी हुआ क्या है, क्यों मरे जा रही है ये तो बता,गुस्सा बरकरारा था उसकी आवाज़ मे वो इतना हसीन सपना देख रहा था रतिवती के कि उसे ये सब बकवास मे कोई दिलचस्पी नहीं थी.

महिला :- यही बता दू क्या?

असलम ना चाहते हुए भी महिला को अंदर आने को कहता है "लगता है ये बुढ़िया मेरी रात बर्बाद करेगी इसे जल्दी से भगाना पड़ेगा "

महिला और असलम अंदर आ जाते है, बुरखा पहनी महिला कुर्सी पर बैठती है परन्तु दर्द से तुरंत खड़ी हो जाती है.

आअह्ह्ह..... मर गई

असलम :- क्या हुआ मोहतरमा?

महिला :- दर्द है डॉ. साहेब

असलम :- अच्छा मै दवाई लिख़ देता हूँ ले लेना ठीक हो जायेगा.

असलम अपनी टेबल कि तरफ मुड़ जाता है और किसी कागज़ पे दवाई लिख़ के जैसे ही वापस मुड़ता है तो उसके होश फाकता हो जाते है

कमरा एक रूहानी रौशनी से भर गया था.

सामने वो महिला अपना बुरखा उतार रही थी उसका गोरा चेहरा दमक रहा था, गोरे बड़े स्तन ब्लाउज मे कैद ऊपर को झाँक रहे थे, कमर से बुरखे का कपड़ा बिल्कुल चिपका  हुआ  था  जो गोल नाभी का अहसास करा रहा था.

नीचे सलवार कूल्हे पे चोडी हो  रही थी जिस से  साफ मालूम पड़ता था कि महिला बड़ी गांड कि मालकिन है.

असलम तो मुँह बाएं उसे देखता ही रह गया उसके हाथ से पर्ची छूट के ना जाने कहाँ चली गई थी.

तभी महिला के होंठ हिलते है...

डॉ. साहेब चोट तो देख लेते?

डॉ. असलम तो सोच रहा था कि कोई बुढ़िया होंगी परन्तु उसके सामने तो साक्षात् कामदेवी खड़ी थी ऐसा कातिलाना बदन कि क्या कहने "हान ... हान ..... बताओ क्या हुआ था.

असलम अपनी लुंगी मे उठते तूफान को छुपाने के लिए तुरंत पास मे पड़ी कुर्सी पे बैठ जाता है और एक टांग के ऊपर दूसरी टांग रखे लंड को जांघो के बीच दबा लेता है.

महिला :- ज़ी मेरा नाम रुखसाना है पास के गांव से ही आई हूँ विष रूप आते वक़्त जंगल मे मुझे जोर से पेशाब आया तो मै झाड़ी मे बैठ गई लेकिन बैठते ही लगा जैसे कुछ कांटा लग गया हो वहाँ.

कही कोई कीड़े ने तो नहीं काट लिया? डॉ. साहेब मै मरना नहीं चाहती मुझे बचा लीजिये.

असलम तो वही कुर्सी पे बैठा बैठा पथरा गया था रुखसाना जैसी कामुक बदन वाली महिला के मुँह से पेशाब शब्द सुन के उसके रोंगटे खड़े हो गये थे, आखिर उसके जीवन मे सम्भोग कि शुरुआत भी रतिवती के पेशाब करने से ही हुई थी.

असलम कि बांन्छे खिल उठी, वो हकलाता हुआ... वहा.... वहा..लेट जाओ आप  मै देखता हूँ कि क्या हुआ है? उसका गुस्सा खीझ गायब हो गई थी,

असलम भले रतिवती को चोद चूका था फिर भी उसमे आत्मविश्वास कि बहुत कमी थी क्युकी उसे यकीन ही नहीं होता था कि कोई लड़की उसके पास आ भी सकती है.

रुखसाना :- लेकिन डॉ. साहेब मै आपके सामने कैसे?.. मेरा मतलब आप मेरी चोट कैसे देखेंगे?

रुखसाना जानबूझ के शर्माने और डरने का नाटक कर रही थी वो मजबूर औरत दिखना चाहती थी.

असलम :- देखो यहाँ कोई महिला डॉक्टर तो है नहीं मुझे ही देखना होगा, कही किसी जहरीले कीड़े ने ना काटा हो.

रुखसाना असलम कि बात सुन के डर जाती है.

रुखसाना :- नहीं नही डॉ.साहेब मुझे मरना नहीं है मुझे बचा लो अल्लाह के लिए मुझे बचा लो.

असलम को लगता है कि ये महिला बहुत डर गई है कुछ काम बन सकता है.

बेचारा भोला असलम अब उसे कौन बताये कि असलम जैसे को तो रुखसाना भोसड़े मे ले के घूमती है.

खेर रुखसाना डरी सहमी पास पड़ी पलंग पे लेट जाती है.... उसकी कमीज़ पसीने से तर हो गई थी लेटने से स्तन गले कि तरफ से बाहर निकलने को आतुर थे.

रुखसाना खींच खींच के सांस ले रही थी जिस वजह से उसके स्तन धाड़ धाड़ करते हुए कभी उठ रहे थे कभी हीर रहे थे....


उधर हवेली मे भूरी कि सांसे भी चढ़ी हुई थी उसे आज चुदाई कि ही जरुरत थी और आज तीन मजबत हाथ उसे रगड़ रहे थे

भूरी कि चुत से निकली पेशाब कि एक एक बून्द को कालू चाट चूका था.

भूरी के स्तन आज़ाद हो चुके थे, उसका ब्लाउज ना जाने कब बड़े स्तनो का साथ छोड़ के नीचे धूल चाट रहा था.पीछे से बिल्लू के मजबूत हाथ भूरी के स्तन को पकड़ पकड़ के रगड़ रहे थे, उसके होंठ लगातार भूरी कि गर्दन को चाट रहे रहे


आह्हः.... बिल्लू आह्हः... नोचो इसे कल से मौका नहीं मिलेगा

भूरी खुल चुकी थी पिछली चुदाई के बाद अब उसे कोई शर्म नहीं थी,


रामु भूरी के सपाट पेट पे टूट पड़ता है उसकी नाभी मे अपनी जीभ चला रहा था.

वही पीछे झाड़ी मे "ओह्म.. मदरचोद.. ये क्या देख रहा हूँ मै, यहाँ तो नंगा नाच हो रहा है भूरी काकी को तो मै कोई बूढ़ी औरत समझ रहा था साली ने तो किसी जवान को भी फ़ैल कर दिया क्या बदन है इसका और ये तीनो जमुरे इसके यार लगते है, अबतो मेरा काम आसन है "

मंगूस इस चुदाई का सीधा  प्रसारण देख रहा था भूरी के कामुक बदन से उसका लंड भी कड़क हो चला था लेकिन ये वक़्त चुदाई का नहीं था उसे तो भूरी को पटाने का मस्त विचार मिल गया था.


बिल्लू ने निप्पल पकड़ के खींच दिया...

सिसकारी पूरी हवेली मे गूंज उठी.. आअह्ह्हह्ह्ह्ह.... लेकिन किसी के कान मे ना पड़ी

अंदर ठाकुर तो घोड़े बेच के सोया था कामवती अपनी नाकामयाब सुहागरात मना के सौ चुकी थी.

मैदान खाली था जहाँ तीन घोड़े एक पुरानी नशीली घोड़ी पे चढाई कर रहे थे.

नीचे कालू चुत मे जीभ से धक्के मारे जा रहा था भूरी कि चुत भर भर के रस छोड़ रही थी जो कि अमृत सामान था कालू के लिए जितना पिता उतनी ही हवा बढ़ती जाती उसकी.

उस से रहा नहीं गया पक्क से दो ऊँगली भूरी कि गीली चुत मे डाल आगे पीछे करने लगा, और चुत के दाने को जीभ से चुबलाने लगा.


निप्पल लाल हो चुके थे, उनका तनाव बारकरारा था, नाभी लगातार चाटे जाने से गीली हो गई थी, नीचे चुत मे दो उंगलियां खेल खेल रही थी

तभी ऊपर बिल्लू दोनों निप्पल को अपनी ऊँगली मे पकड़ के मरोड़ देता है, नीचे कालू चुत के दाने को दाँत मे पकड़ के दबा देता है

आअह्ह्ह..... मै मरी... भूरी ये हमाला ना झेल सकी वो भरभरा के झड़ने लगी उसकी चुत से तेज़ फव्वारा निकल के कालू के मुँह को भिगोने लगा...

भूरी धड़ाम से पीठ के बल वही बिल्लू के ऊपर ढह गई बिल्लू उसका वजन ना संभाल सका वो उसी के साथ नीचे घाँस ोे गिरता चला गया

गिरने से भूरी कि दोनों टांगे फ़ैल गई उसकी चुत से निकले पानी ने गांड को पूरी तरह भीगा दिया था, भूरी अपना पूरा वजन लिए बिल्लू पे गिरी... बिल्लू का लंड पहले से ही भूरी कि गांड कि खाई मे था जैसे ही वो गिरी उसका लंड सरसराता भूरी कि गांड मे समता चला गया एक मादक चीख उसके मुँह से निकली भूरी दूसरी बार अपना कामरस फेंकने लगी...

इस तरह तो कभी नहीं झाड़ी थी भूरी मात्र 5सेकंड मे दूसरी बार उसकी चुत छल छला गई थी..

भूरी कि सांसे उखाड़ गई थी.


परन्तु असलम के घर रुखसाना सांसे सँभालने मे लगी थी

क्या रुखसाना कामयाब होंगी?

मंगूस का क्या प्लान है?

बने रहिये

कथा जारी है...


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