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मेरी बेटी निशा -17

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आशा (बिना मुस्कुराये और शर्माए): पापा…पैसे? जा कर आती हूँ…

जगदीश राय: हाँ हाँ…टीवी के निचे ही 100 रूपये पड़े हैं…ले लो…

आशा उठि और मटकती गांड से चल दी और शूज पहनने लगी।

जगदीश राय , अपनी थूक निगलते हुयी, हिम्मत जुटा रहा था। उसे यह जानना ज़रुरी हो गया था।

जगदीश राय: बेटी…क्या तुम …मेरा मतलब है…तुम अभी भी अंदर घूसा…रखी हो…उसे…मेरा मतलब है…उस टेल को…खरगोश वाली…

आश , पीछे मुड़कर बड़े ही आराम से , सहज तरीके से जवाब देती है।

आशा: हा, है अंदर …क्यू।।?


जगदीश राय (शर्माते हुए): अच्छा…।नही…यही…पूछ रहा था…टाइटस से भी दिख नहीं रहा था…इसलिये…


आशा: ओह क्युकी पूँछ की पार्ट को में ने चूत की तरफ , पैरो के बीच समा रही है।।इस्लिये…टाइटस पहनो तो करना पड़ता है यह सब, पर इससे गांड थोड़ी खीच जाती है और मजा भी आता है चलती वक़्त।।इस्लिये।…चलो बाय मैं जा कर आती हूँ…


जगदीश राय , आशा का यह जवाब सुनकर दंग रह गया। उसकी बेटी पुरे मोहल्ले के सामने , अपनी गांड में पूँछ घुसाकर चल रही है और लोगो को पता भी नही, इस सोच से ही वह पागल हो रहा था।


आशा की मुह से चूत और गांड ऐसे निकल रहे थे जैसे वह कोई बाज़ारू रांड हो। 


अपनी छोटी बेटी के मुह से गंदे शब्द उसे मदहोश कर चला था। और न जाने कब उसका हाथ उसके लंड पर चला गया।


कोई दो दिनों तक , जगदीश राय और आशा के बीच , जब भी बाते होती, पूँछ का ज़िक्र छूटता नही।


अगर उसके पापा शर्मा कर नहीं पूछ्ते , तो आशा खुद अपने पापा को पूँछ के बारे में बताती, की आज उसने कैसे अपने पूँछ को सम्भाला स्कूल जाते वक़्त , सहेलियो के साथ इत्यादि।


जगदीश राय को भी बहुत मजा आ रहा था और अब उसे भी आशा की पूँछ से अजीब सा लगाव हो चूका था। हालाकी उसने उस दिन के बाद से पूँछ को देखा नहीं था , सिर्फ ज़िक्र ही सुना था।


और बातो से ही वह पागल हो चला था। और यह सब सशा से छुपके होती थी।


एक दिन, जगदीश राय के एक ऑफिस जवान कर्मचारी की शादी के रिसेप्शन का कार्ड आया। आशा और सशा दोनों पापा से ज़ोर देने लगे।


सशा: चलिये न पापा, रिसेप्शन में चलते है…बड़ा मजा आयेगा।


आशा: हाँ…वहां तो चाट वगेरा भी होंगा।


जगदीश राय: अरे।।वह बहुत दूर है यहाँ से…बस भी नही जाती।


आशा: तो यह गाडी किसलिए है…खतरा ही सही।।।कार में चलते है।


आशा की बात आज कल जगदीश राय टालने के हालत में नहीं था।


जगदीश राय: ठीक है…चलो…रेडी हो जाओ।।चलते है…।पर जल्दी ही आ जायेंगे…


सशा: हाँ हा।।खाना खाने के बाद तुरंत…


रिशेप्शन पर बहुत भीड़ थी। हर क्लास के लोग आये थे। आशा और सशा जम गए थे चाट के स्टाल पर। आशा ने टॉप और स्कर्ट पहनी थी, सशा ने जिन्स। 


जगदीश राय अपने ऑफिस के कुछ कर्मचारी के साथ ऑफिस की बाते कर रहा था।


जगदीश राय: अरे।। चलो…स्टेज पर हो आते है।।गिफ्ट पैकेट देते है।।कॉनगरेट्स भी बोल आते है।


आशा और सशा भी चल दिए पापा के साथ। स्टेज की सीडियों चढ़कर आशा जगदीश राय के पास आकर खड़ी हुई।


जगदीश राय ने, दुल्हा, दुल्हन और बाकि सब लोगों से बात की। 


दुल्हे का बाप: अरे राय साब, हमारा बेटा आपकी बहुत तारीफ़ करता है…आईये एक फोटो हो जाए।


और सभी लाइन में खड़े होने लगे।आशा तुरंत अपने पापा के पास आकर खड़ी हुई।


आंसा(धीमी आवज़ में): पप।।पापा।।सुनो…


जगदीश राय(धीमी आवज़ में): हाँ हाँ बोलो


आशा(धीमी आवाज़ मैं): मेरी पूँछ ।।निकल रही है गांड से…स्टेज पर चढ़ते वक़्त।।लूज हो गयी…मैं अंदर धक्का नहीं घूसा पाऊँगी…क्या आप प्लीज स्कर्ट के ऊपर से घूसा देंगे…प्लीज जल्दी।


जगदीश राय(धीमी आवज़ में): क्या।।यहाँ…स्टेज पर…।


आशा(धीमी आवाज़ में): हाँ अभी…आपका हाथ मेरे पीछे ले जाईये…कोई नहीं देखेंगा।।अगर मैं ले गयी तो अजीब लगेगा …प्लीज जल्दी कीजिये…कहीं यही न गिर जाये…मैंने पेंटी भी नहीं पहनी…


फोटोग्राफर: चलिए…आंटी जी।।थोड़ा आगे…हाँ थोड़ा पीछे…बस सही।।हाँ स्माईल।


जगदीश राय(धीमी आवज़ में): क्या तुम पागल हो…ओह गॉड।।मरवाओगी…ठीक है…आ जाओ।


और जगदीश राय, फोटो के लिए स्माइल देते हुये, माथे से पसीना छुटते हुए अपना कांपता हाथ आशा की गांड पर ले गया।


हाथ गांड पर लगते ही , उसे आशा की बात पर यकीन हो गया की उसने पेंटी नहीं पहनी थी।

लोगो के पीछे से, स्टेज पर खडे, जगदीश राय ने पूँछ को हाथो से पकड़ लिया।


फोटोग्राफर फोटो ले चूका था। अब वीडियो वाला वीडियो कैमरा घूमा रहा था।


जगदीश राय पूँछ के पिछले हिस्से को पकड़ कर, गांड में घुसाने का प्रयत्न करने लगा। पर घुस नहीं पा रहा था।


जगदीश राय (धीमे आवाज़ में): घूस नहीं रहा है…क्या करुं…


आशा ने तुरंत अपन गांड पीछे कर दिया। वीडियो कैमरा तभी आशा के सामने से गुज़र रहा था। आशा की गांड पीछे ठुकाई पोज़ में देखकर वीडियो वाला हैरान हो गया, और उसने जान बुझ कर वीडियो आशा पर टीकाये रखा।


आशा((धीमी आवज़ में): हा।।अभी ट्राई करो…उफ़ यह विडियो।।इसी वक़्त…


जगदीश राय ने अपना पूरा ज़ोर देते हुए, एक ज़ोरदार धक्का लगाया। आशा की गांड से 'पलोप' सा एक आवाज़ सुनाई दिया और पूरा का पूरा पूँछ अंदर घूस गया।


आशा (धीमे आवज़ में): आह…इस्सश


आशा के मुह से सिसकी निकली और दर्द और कामभाव चेहरे पर से छुपा नहीं पायी।


पुरी समय वीडियो आशा पर टीका रहा।


स्टेज से आशा और जगदीश राय धीरे से उतरे। आशा बिना कुछ कहे टॉयलेट की ओर चल दी।


थोड़ी देर बाद, आशा पापा के पास आयी।


जगदीश राय: यह सब क्या था बेटी…मैं तो डर गया…


आशा (मुस्कुराते हुए): सॉरी पापा।।वह आज मैं ने नयी क्रीम यूज किया था, जो ज़रा चिकनाई देने लगी…मैं नहीं जानती थी…और स्टेज की स्टेप्स चढ़ते वक़्त…पूँछ निकल गयी…पर थैंक यू आपने संभाल लिया।


जगदीश राय:शुक्र करो।।स्टेज पर नहीं गिर पड़ा…और तुमने पेंटी क्यों नहीं पहनी।


आशा: वह तो मैं अक्सर पेंटी नहीं पहनती…पूँछ पेंटी के बिना ज्यादा मजा देता है…


जगदीश राय:तुम और तुम्हारा मजा मुझे ले डूबेगा एक दिन।


आशा (हस्ती हुए): क्यों…आपको मजा नहीं आया।।मेरे गांड में पूँछ पेलते वक़्त।


जगदीश राय (थोडा मुस्कुराते हुये, शरमाते हुए): वह…हा।।मज़ा तो आया…


आशा : तो बस…और क्या चाहीये…मज़ा ही ना।।


और आशा सशा के पास चल दी। तभी एक लडका, आशा के पास आया।


लडका (मुस्कुराते हुए): मिस, अगर आपको वीडियो की कॉपी चाहीये तो हमे बोल देना…हमने आपकी अच्छी वीडियो ली है…


आशा (ग़ुस्से से): नो थैंक यु…

अगले 2 दिन जगदीश राय का बुरा हाल था। आशा की गांड और पुंछ उसके दिमाग से निकल ही नहीं रहा था। 


जब भी आशा सामने से गुज़रती, जगदीश राय उसके गांड को ताकता रहता। इस उम्मीद में की पुंछ दिख जाये।


आशा भी यह सब समझती थी और अपने आदत से मजबूर, अपने गांड को और मटका कर चल देती।


आज का दिन भी कुछ ऐसा ही था। आशा, एक छोटी स्कर्ट पहनी, किचन में खड़ी , सब्जी काट रही थी। 


सशा अपने कमरे में गाना सुन रही थी।


और जगदीश राय हॉल मैं बैठे , पेपर पढ़ रहा था, या यु कहे, पढने की कोशिश कर रहा था।


वह हॉल में बैठे , अपने बेटी की गांड को निहार रहा था। सामने उसकी बेटी, एक टाइट टॉप और छोटी स्कर्ट पहनी हुई थी। 


टाइट टॉप में से निप्पल साफ़ दिख रही थी। और स्कर्ट उसके गांड को और भी मादक बना रहा था। 


और अपने पापा के सामने , गांड में २ इंच का पुंछ घुसाए उसकी बेटी खड़ी सब्जियां काट रही थी।


जगदीश राय (मन में): क्या उसने पुंछ घुसायी होगी आज भी…।खडे रहने से लगता तो नहीं…।उसने कहा तो था की कभी कभार वह पुंछ को नहाती वक़्त धोती और सुखती है। और तब नही पहनती…।और अभी वह नहाकर खड़ी है…


जगदीश राय , को यह जानने की उत्सुक्ता , पागल कर रही थी। 


और वह अपने सोफे पर करवटें बदल रहा था। वह उठकर, डाइनिंग टेबल पर बैठ गया।


थोड़ी देर बाद आशा , थोड़ी मूली लेकर आई


आशा: पापा…।आप इन्हे काट देंगे प्लीज…


और डाइनिंग टेबल पर टेकते हुयी, मूली की प्लेट रख दी। 


उसने अपने गांड को इस तरह पीछे धकेला , मानो अपने पापा को दावत दे रही हो।


जगदीश राय से रहा नहीं गया , और उसने तुरंत गांड पर हाथ रख दिया। और पुंछ टटोलने लगा। आशा हँस पडी।


आशा : हे हे 


जगदीश राय पूँछ को अपने हाथो में पाते ही , चौक भी गया और ख़ुशी भी हुई। उसने ज़ोर से पूँछ को पकड़ कर, बाहर की तरफ खींच दिया।



आशा: अअअअअ…पापा…क्या…


और अगले ही मिनट में ज़ोर से उसे अंदर ढकेल दिया।


आशा: ओहः।।।।मम…आज कल आप बहोत नॉटी हो रहे हो… चलिये मूली पे ध्यान दीजिये…


जगदीश राय पूरा गरम होकर लाल हो गया था। और आशा को अपने पापा का यह उतावला पन बहोत भा गया।

उसी वक़्त सशा , सीडिया उतर कमरे में चली आयी। 


जगदीश राय , उसे मन ही मन कोसते , मूलियों पे अपना टूटा हुआ ध्यान देने लगा।


सशा: आशा , देख तो बाहर , यह लोग दही कला (दही हंडी) लगा रहे है। बहुत मजा आयेगा शाम को। 


आशा: हाँ।पापा…हम सब देखेगे। और पानी फेकेंगे उन पर…


जगदीश राय: हाँ…ठीक है।।।


शाम हो गयी थी। पूरा दोपहर , जगदीश राय का हाल बुरा था। निशा की याद और आशा की पूँछ ने उसके लंड पूरा टाइम खड़ा रखा था।


जगदीश राय , अपने कमरे मैं , लंड हाथ में लिए , हिलाना शुरू किया। पर मुठ निकल नहीं रही थी। जो लंड चूत की आदि हो जाये उससे हाथ से मजा आना मुमकिन नहीं था, यह बात जगदीश राय भी जानता था।


अचानक से दरवाज़ा खुल गया। जगदीश राय , हाथ में 9 इंच लंड पकडे, चौंक कर देखता रहा।


आशा: पापा…चलिए…।दहीकला स्टार्ट हुआ…चलिये


आशा की नज़र, तभी पापा के खड़े 9 इंच लंड पर पडी जो शाम के उजाले पर चमक रहा था।


इसके पहले जगदीश राय कुछ बोले, आशा बोल दी।


आशा: उफ़ पापा…अच्छा…आप जल्दी से यह निपटाकर…।आईए…ज्यादा देर मत लगाना…मैं और सशा निचे है…।ठीक है…


और आशा से दरवाज़ा बंद कर चल दिया।


जगदीश राय हक्का बक्का रह गया।


जगदीश राय (मन में): यह क्या हो गया अभी।।कही मेरा सपना तो नहीं था…आशा आयी…और मेरे लंड… को मुझे मुठ मारते देख…बोलकर चल दी…मानो यह उसके लिए नई बात न हो…।


जगदीश राय यह सोचकर और गरम हो गया। और ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगा। पर मुठ कगार पर आकर मुठ रुक जाता। १५ मिनट तक जगदीश राय हिलाता रहा पर स्खलित न हो पाया।


अचानक फिर से दरवाज़ा खुल गया। इस बार जगदीश राय चौंका नाहि, क्यूंकि वह आँखें बंद, गहरी सोच के साथ्, मुठ मार रहा था।


पर आशा के आवाज़ ने उसकी आँखें खोल दी।


आशा:यह लो…आप अभी भी…इसी पर है…और मैं समझी थी…आप तैयार हो चुके होंगे…।


जगदीश राय : ओह बेटी…

आशा (और पास आकर): क्या बात है…मूठ नहीं निकल रहा पापा…।


आशा के ऐसे सीधे सवाल की, जगदीश राय को उम्मीद नहीं थी


जगदीश राय: नहीं बेटी…निकल नहीं रहा।


आशा: लाओ…मैं कोशिश करती हूँ।


और आशा ने तुरंत जगदीश राय के हाथ पर मार दिया और लंड को थाम लिया। आशा के हाथ इतने छोटे थे की लंड पूरी तरह समां नहीं पा रही थी।


जगदीश राय : बेटी तुम ।तुमसे नही…ओह्ह…।आहः


आशा: दही कला ख़तम होने से पहले आपको झाड दूँगी…वादा…


और आशा तेज़ी से पापा के विशाल लंड को हिलने लगी।

जगदीश राय : ओह्ह…।बहूत अच्छा…।आहः


और आशा दोनों हाथो से लंड को थामकर हिलाने लगी। 


जगदीश राय , अपना हाथ आशा के स्कर्ट के अंदर से गांड पर रख दिया, और पूँछ के मुलायम बालो को पकड़कर , पूँछ को अंदर बाहर हिलाने लगा। 


आशा:।।हम ।अहहह…।।कितना बड़ा है…पापा आ....आप्का…।।


जगदीश राय : तुमने तो…।।पहले भी देखा… है न इसे…।


आशा: हाँ…। पर की होल से साइज का अंदाज़ा नहीं था…हाथ पर आते ही…पता चला…


१० मिनट तक आशा लंड को बिना रुके हिलाने लगी। और बहार से दही कला के लोगों का शोर सुनाई दे रहा था । शोर से पता चल रहा था की लोग गिर पड़े थे।


आशा: पापा…आप का तो निकल ही नहीं रहा…।मेरा तो हाथ दर्द कर रहा है…


जगदीश राय : कोई बात नहीं बेटी…।एक काम करो।।तुम चली जाओ…दही कला देख आओ…।


आशा: नहीं…मैंने वादा जो किया…।एक काम कीजिये…क्या आप मेंरे गांड में डालना पसंद करेंगे…


जगदीश राय , इस सवाल से चौंक गया। और आशा की तरफ देखने लगा।


आशा: नहीं…अगर आपको पसंद नहीं हो तो कोई बात नहीं…।मैं…।ऐसे हिला…


जगदीश राय तुरंत आशा की बात काटते हुए बोल पड़ा।


जगदीश राय : पसंद।। बेटी यह किस बुढ़ऊ को पसंद नहीं होगा…तुम्हारी गांड तो जन्नत से कम नहीं है बेटी


आशा: अच्छा…।तोः फिर यह ही करते है…ठीक


जगदीश राय : पर …वो।।तुम्हरी पुंछ…


आशा ने अपना हाथ पीछे से स्कर्ट में ले गई और बोलते हुए पूँछ को बाहर खीच ने लगी।


आशा: उसे मैं …अभी…आअह्ह्ह…।खीच…देत्ती हूँ।


ओर फिर गांड में से 'पलोप' से आवाज़ सुनाई दिया।


जगदीश राय : बेटी मैं सोच रहा था की तुम मुझे तुम्हारी चूत मारने दो और गांड में पूँछ रहने दो…


आशा: नहीं पापा…मैं अपनी चूत सिर्फ अपने पति को दूँगी…जो मुझसे शादी करेगा…हाँ गांड मरवा सकती हु…


Contd....

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