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नागमणि -25

 चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -25


वर्तमान समय


पुलिस चौकी विष रूप


सर.सर....मुख्यालय से जवाब आ गया है.

दरोगा :- हम जानते है रामलखन क्या जवाब होगा,दरोगा पूरी तरह टूट चूका था निराश था...कल तक लम्बा चौड़ा जवान मर्द दरोगा आज एकदम बूढा लग रहा था चेहरे को रौनक ख़त्म हो गई थी,शरीर झुक गया था

दिल मे ग्लानि और पछतावा था,

हमेशा अपने फर्ज़ के साथ खड़ा रहा परन्तु आज एक गलती ने सब बर्बाद कर दिया

रामलखन :- आप को तत्कालीन सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है.

दरोगा के आँखों से आँसू बहे जा रहे थे... ईमानदार दरोगा कर्तव्यनिष्ठ दरोगा सब कुछ गवा चूका था.

कहाँ उसकी तररकी होनी थी और कहाँ नौकरी भी गई.

दरोगा पश्चाताप के आँसू लिए थाने से बाहर निकल गया उसने वर्दी पे कालिख पोत दी थी.


गांव कामगंज

रतिवती ना जाने क्यों खूब रच के तैयार हुए जा रही थी,एक पल को कामवती की खबर से घबरा गई थी लेकिन बिल्लू के आश्वासन ने उसे हिम्मत बंधाई थी उस वजह से रतिवती तनाव मुक्त सजने मे लगी थी.

लाल चटक साड़ी,माथे पे सिंदूर,हाथो मे चूड़ी

आईने मे अपने अक्स को देख खुद ही शर्मा गई,क्युकी उसकी आधे से ज्यादा स्तन बाहर को झाँक रहे थे.शर्माहत मे अपने स्तनों को हाथ से धक् लेती है जैसे तो कोई आईने के पीछे बैठा उसे देख रहा हो.

रतिवती तैयार हुई बाहर को आ जाती है...

बिल्लू उसे देखता ही रह जाता है "कौन कहेगा की ये एक जवान लड़की की माँ है "

रतिवती :- चले बिल्लू...?

बिल्लू तो खोया हुआ था,उस हसीन लाल परी को एकटक देखे जा रहा था कभी उभर देखता कभी हल्का भरा पेट कभी सुन्दर चेहरा.

क्या देखे क्या ना देखे सब कुछ ही तो सुन्दर था..

"आरी भाग्यवान कहाँ जा रही हो?" पीछे से लड़खड़ता रामनिवास आ पंहुचा था

उसे देखते है रतिवती आगबबूला हो गई बिल्लू का ध्यान भी रामनिवास पे गया.

एक मैला कुचला सा आदमी दारू के नशे मे चूर लड़खड़ता दरवाजे पे पहुंच गया था

रतिवती ने उसे खूब खरी खोटी सुनाई.

और तांगे पे चढ़ने लगी तांगा ऊँचा था रतिवती का पैर फिसल गया "हाय दइया....चोट लग गई "

तुम क्या खड़े देख रहे हो मदद नहीं कर सकते कभी तो कोई काम आ जाओ

रतिवती गुस्से मे भरी रामनिवास पे बरस पडी.

"अरी भाग्यवान संभाल के" रामनिवास लड़खड़ाता रतिवती को सहारा देने लगा अब भला रतिवती जैसा कामुक भरा बदन उस से कहाँ सम्भलाता ऊपर से शराब के नशे मे चूर.

खूब कोशिश की रतिवती को सहारा दे परन्तु सब बेकार

बिल्लू चुपचाप ये नजारा देख रहा था उसकी नजर तो सिर्फ गद्देदार भारी रतिवती पे ही टिकी हुई थी की तभी रतिवती की नजर बिल्लू से टकरा गई उस नजर मे एक विनती थी जैसे कह रही हो बिल्लू तुम ही कर दो इस नकारे से तो कुछ होने से रहा.

ना जाने क्यों बिल्लू भी उस नजर को समझ गया अनपढ़ जाहिल गधे बिल्लू मे ना जाने ये नजरिया कहाँ से आ गया की वो एक औरत की आँखों को समझने लगा था.

तुरंत तांगे से उतर गया और रतिवती के बिलकुल पीछे खड़ा हो गया, रतिवति के बदन से निकलती खुसबू उसे झकझोर रही थी उसका हाथ खुद बा खुद रतिवती की गांड के पीछे लग गया

हाय क्या मुलायम अहसास था...एक दम मखमली

जैसे ही बिल्लू ने जोर लगाया उसे ऐसा लगा की किसी गद्दे मे हाथ दे दिया हो बिल्लू के जोर से रतिवती की गांड और ज्यादा फ़ैल गई....रतिवती अपनी गांड पे एक कठोर मर्द के हाथ पा के सिहर उठी उम्मम्मम....उसके मुँह से सिटी सी निकली जिसे कोई ना सुन पाया उसने जानबूझ के अपना वजन बिल्लू के हाथ पे डाल दिया जैसे परखना चाह रही हो की कितनी ताकत है बिल्लू मे..

बिल्लू भी कहाँ काम था पक्का देहाती था,लथेट था...एक दम पूरी ताकत से गांड के दोनों हिस्सों को दबोच के ऊपर को धक्का दे दिया... लो मालकिन चढ़ा दिया आपको.

बिल्लू ऐसे बोला जैसे अपनी मर्दानगी झाड़ दी हो रतिवती पे...

रतिवती भी प्रभावित थी बिल्लू के बाहुबल से...."देखा जी आपने ये होती है मर्द की ताकत "

रतिवती ने लगभग रामनिवास को झाड़ते हुए बोला परन्तु उसका कथन ऐसा था जिसे सुन बिल्लू को अपनी मर्दानगी पे घमंड होने लगा.

पता नहीं यहाँ किस ताकत की बात हो रही थी?

बिल्लू :- चले मालकिन?

रतिवती :- चलो बिल्लू...वैसे भी तुमने बहुत मदद की.

बिल्लू :- खिसयानी हसीं हस देता है....मालकिन जैसा आप कहे.

तांगा धूल उडाता चल देता है पीछे बचता है उल्लू का चरखा रामनिवास....

"अब जम के शराब पिऊंगा "हाहाहाहा....मुझे मर्दानगी सिखाती है हिच...हिच....

रामनिवास वापस शराब के ठेके की  और बढ़ चला

***************



भूतकाल

वो भयानक युद्ध था मंगूस...ना मेरी तलवार रुकी ना वीरा की हम दोनों ही खून के प्यासे थे.

किसी एक वंश का नामोनिशान मिटा देना था.

क्या बच्चा,क्या बूढ़ा,क्या स्त्री जो सामने आता काट दिए जाते,चारो और सिर्फ लाश ही लाश थी..

मै खून से लथपथ वीरा की गर्दन दबोच खड़ा था,पैरो मे जान नहीं थी ना वीरा के बाजुओं मे दम था.

वीरा :- तुझे मरना ही होगा नागेंद्र तेरे खानदान की वजह से मेरी प्यारी बहन मारी गई...

नागेंद्र :- तूने मेरे बेकसूर भाई की गर्दन काटी तू नहीं बचेगा.

तभी.....ठहरो..... ठहर जाओ मूर्खो

पानी की एक बौछार दोनों पे पडी दोनों ही वही जम गए,पथरा गए सिर्फ आंखे हिल रही रही.

"ये क्या किया तुम मूर्खो ने " तांत्रिक उलजुलूल मैदान ए जंग मे आ पंहुचा था.

देखो अपने चारो और कैसा रक्तपात मचाया है तुमने इस पृथ्वी से नाग वंश और घुड़ वंश मे सिर्फ तुम दोनों ही बचे हो...देखो खुद को देखो आपने खानदान को क्या किया तुमने.

वीरा और नागेंद्र जड़ अवस्था से बाहर आने लगे...चारो तरफ का मंजर देख उनके हाथ से तलवार छूट पडी.

ये क्या किया हमने.....दोनों की आँखों मे आँसू थे.


तांत्रिक :- सारा किया धरा उस नीच सर्पटा का है जो ना जाने कहाँ चला गया नागेंद्र तुमने आपने बाप को जाने बिना वीरा पे हमला बोल दिया और वीरा तुमने भी सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की, नाग कुमार घुड़वती से प्यार करता था.

धिक्कार है तुम दोनों पे....तुम दोनों ही मूर्खता का खामियाजा भुगत चुके हो.

इस संसार मे दोनों वंश बने रहे इसलिए मै इस जगह पे एक रेखा खींचता हूँ.

ना कभी नागेंद्र घुड़पुर जा पाएगा,ना वीरा विष रूप आ पायेगा...

नागेंद्र और वीरा आँखों मे आँसू लिए उलजुलूल को देखते रह गए.

अब पछतावे के अलवा कुछ नहीं बचा था,

अकेला नीरस लम्बा जीवन था सिर्फ...


वर्तमान मे

बाबा मुझे जाने दो सर्पटा को मै जिन्दा नहीं छोड़ सकती

मौलवी :- बात समझो रुखसाना अभी तुम्हे वो ताकत प्राप्त नहीं हुई है, तुम अभी किसी अमानवीय ताकत का मुकाबला नहीं कर सकती

रुखसाना :- तो क्या करू बाबा मेरे पति के हत्यारे का नाम जान के भी चुप रहु?

मौलवी :- नहीं बेटा... अभी तुम्हे किसी ठाकुर का वीर्य प्राप्त करना होगा तब जा के वो अलौकिक शक्ति तुम्हे मिलेगी.

और आस पास ठाकुर ज़ालिम सिंह से बड़ा कोई ठाकुर नहीं है.

रुखसाना :- मै आज ही विष रूप जाउंगी बाबा....


कामगंज गांव के बाहर

बिल्लू :- मालिकन आप बुरा ना मैने तो एक बात कहु?

जो बाहर के नज़ारे देख रही थी "हाँ बोलो क्या बात है बिल्लू "

रतिवती बिल्लू से प्रभावित थी.

बिल्लू :- आपको देख के लगता नहीं की आप ठकुराइन कामवती की माँ है, लगता है जैसे बड़ी बहन है उनकी.

रतिवती अपनी तारीफ सुन शर्मा जाती है.

"जाट झूठ बोलते हो तुम "

बिल्लू :- सच मालकिन मैंने तो खुद आपकी खूबसूरती देखि है कमल का बदन है आपका

रतिवती वो वही दृश्य याद आ जाता है जब वो अर्धनग्न अवस्था मे ही बिल्लू के सामने आ गई थी,उसका रोम रोम फड़फड़ाने लगता है.

बिल्लू रतिवती को खामोश देख "माफ़ करना मालकिन आपको बुरा लगा हो तो "

रतिवती :- नहीं बिल्लू बुरा किस बात का, उसके चेहरे पे एक कामुक मुस्कान आ जाती है

रतिवती वैसे भी गरम औरत थी उसपर सुहाना शाम का मौसम,जंगल की ठंडी हवा रतिवती के बदन मे मदकता घोल रही थी.

उसका बदन कसमसा रहा था.

तांगा कच्चे रास्ते पे चला जा रहा था की तभी सामने से एक औरत का साया लगभग भागता हुआ कच्चे रास्ते को काटता झाड़ियों मे निकल जाता है...

"काकी.....भूरी काकी यहाँ " बिल्लू के मुँह से निकल पड़ता है उसने उस साये को भलीभांति पहचाना था.

पहचानता भी क्यों ना उस जिस्म को खूब भोगा था बिल्लू ने आपने दोस्तों के साथ.

"मालिकन आप तांगे मे बैठी रहे मै अभी आया " बिल्लू तांगे से उतर भूरी के पीछे लपक लिया.

बिल्लू रुको.....रुको...रतिवती बोलती रह गई परन्तु बिल्लू भी आँखों से ओझल हो गया.

हे भगवान...ये बिल्लू को कौन सी काकी दिख गई? इस सुनसान जंगल मे अकेला छोड़ गया.


बिल्लू भूरी काकी को ढूंढता उसके पीछे भागा जा रहा था "वो भूरी काकी ही थी परन्तु इस वक़्त इस जंगल मे क्या कर रही है "

कहाँ गई?


भूरी काकी लगातार तेज़ कदमो से चली जा रही थी उसे जल्द से जल्द सर्पटा तक पहुंचना था,नागमणि पाने की खुशी उस से बर्दाश्त नहीं हो रही थी,बड़ी आसानी से उसने नागमणि हथिया ली थी..

"भूरी काको रुक जाइये" भूरी के कानो मे ये आवाज़ पड़ती है.

"हे भगवान ये तो बिल्लू की आवाज़ है ये कहाँ से आ गया? इसने मुझे यहाँ देख लिया साथ मे बेशकीमती मणि पे नजर पडी तो हज़ारो सवाल हो जायेंगे"

भूरी अब भागने लगी उसे बिल्लू के हाथ नहीं आना था, पीछे देखे भागती जा रही थी...की तभी किसी पत्थर से उसका पैर टकरा गया...आआहहब्ब.....भूरी गिरती चली गई उसके हाथ से नागमणि छूट गई.

धड़ाम्म्म्म.... भूरी का सर किसी सख्त चीज से टकराया उसके होश खोते चले गए.



क्या होगा जंगल मे?

बिल्लू वापस लोटेगा?

नागमणि एक बार फिर निकल गई.


***********


भूतकाल


समय बीतता गया मनुष्यों का प्रभाव बढ़ने लगा,आस पास हर जगह मानव बस्ती बसने लगी.

विष रूप मे ठाकुर जलन सिंह का दब दबा बढ़ने लगा,मै संसार से विरक्त जीवन जी रहा था,कुछ नहीं बचा था इस नीरस जीवन मे.मेरा राजमहल किसी खंडर मे तब्दील हो गया था.

मैंने सभी खजाना हिरे जवाहरत सब गुप्त तहखाने मे रख दिए थे,हवेली मे अब ठाकुर जलन सिंह रहने लगा था.

हवेली मे रौनक आ गई थी लेकिन मेरी जिंदगी मे कोई रौनक नहीं थी मै मणिधारी सांप हूँ मर भी नहीं सकता था.

उस भयानक युद्ध के 100 साल बीत गए थे.

एक दिन अपनी जिंदगी से लाचार निराश मै जंगल की खांक छानते छानते कामगंज पहुंच गया,

पास के ही तालाब मे कुछ स्त्रिया अठखेलिया कर रही थी

मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी.....

कामवती....कामवती अंदर मत जाओ.रुक जाओ

मैंने पलट के देखा तो देखता ही रह गया. एक कन्या पानी मे अंदर उतरती जा रही थी हसती हुई खिलखिलाती पानी से बदन भीगा हुआ.

मैंने ऐसा सौंदर्य पहले कभी नहीं देखा था. जैसे कोई स्वर्ग की अप्सरा नदी मे नहा रही हो.


की तभी....बचाओ.....बचाओ... स्त्रिओ का शोर सुनाई देने लगा.

कामवती डूब रही है बचाओ कोई...

नागेंद्र ना जाने किस आवेश मे खुद पानी मे छलांग लगा बैठा...

पानी मे गोते लगाती कामवती के करीब पहुंचने ही वाला था की....छापककककक....

एक शख्स और कूद पडा पानी मे अब कामवती दो जोड़ी मजबूत बाहों मे थी,

नागेंद्र और वो शख्स कामवती को बाहर खिंच लाये....

नागेंद्र जैसे ही नजर उठता है घृणा से दाँत पीस लेता है..वीरा तुम?

यहाँ क्या कर रहे हो?

वीरा :- क्यों तेरे बाप का इलाका है क्या.?

नागेंद्र कुछ जवाब देता की....उम्म्म्म...कामवती होश मे आने लगी.

मै...मै...

वीरा :- हे कन्या तुम सलामत हो

कामवती उठ बैठी उसके सामने गोरा सुडोल सा नागेंद्र और हट्टा कट्टा लम्बा,चौड़ी छाती का मालिक वीरा था.

कामवती दोनों को देखती ही रह गई...और दोनों कामवती को एकटक देखते रह गए.

क्या कमल का यौवन था गीले कपड़ो से साफ छलक रहा था,बड़े स्तन सपाट पेट,गोरी रंगत.

कामवती...कामवती...तीनो एक दूसरे मे खोये थे की...दूर से ही कामवती की सहेलिया अति नजर आई,

दोनों ही किसी की नजर मे नहीं आना चाहते थे.

हम चलते है सुंदरी...नाम क्या है तुम्हारा?

कामवती:- कामवती...वो अभी भी खोई हुई थी ना जाने उन दोनों के स्पर्श मे क्या जादू था.

कामवती कामवती....तुम ठीक तो हो ना? सखी ने पूछा.

दूसरी सखी :- वो दो लड़के कौन थे? कहाँ गए?

कामवती :- होश मे अति हुई...प..प...पता नहीं कहाँ से आये कहाँ चले गए


कामवती अपनी सखियों के साथ गांव की और चलती चली गई पीछे वीरा और नागेंद्र उस मस्तानी गदराई चाल को देखते ही रह गए.

शायद दोनों को जीने का उद्देश्य मिल गया था!


वर्तमान मे

रतिवती जंगल मे अकेली रह गई थी.

"ये बिल्लू कहाँ भाग गया वापस अभी तक नहीं आया?कही कोई गड़बड़ तो नहीं"

हज़ारो ख्याल आ रहे थे उसके दिमाग़ मे

धीरे धीरे अंधेरा छाने लगा था, डर से रतिवती को पेशाब का तनाव भी होने लगा था,

"मुझे बिल्लू के पीछे जाना चाहिए कोई अनहोनी ना हुई हो?

गहनो से लदी रतिवती को चोर डाकू का डर भी सताने लगा था.

रतिवती तांगे से उतर जाती है और जिस रास्ते बिल्लू गया था उसी रास्ते पे अपनी साड़ी संभालती चल पड़ती है.

बिल्लू...बिल्लू   कहाँ हो तुम?

रतिवती काफ़ी आगे चली आई थी...उसे अब जोर से पेशाब लगा था.

चलना भी मुश्किल हो रहा था

रतिवती अपनी साड़ी उठा के बैठने ही वाली होती है की..उसकी नजर सामने झड़ी मे पड़ती है उस मे से रौशनी फुट रही थी.

"ये क्या है इसमें? रतिवती डरती हुई हाथ आगे बढ़ा उसे उठा लेती है...

हे भगवान....ये...ये...इतना बड़ा हिरा? कही ये सपना तो नहीं?

भूरी को हाथो से छुटी नागमणि रतिवती के हाथ आ गई थी.

रतिवती खूब लालची औरत थी लालचवस ही उसने अपनी जवान बेटी की शादी बूढ़े ठाकुर से कर दी थी.

लालच और हवस रतिवती मे कूट कूट के भरी थी.

इसी लालच मे बिना सोचे समझें ही रतिवती ने नागमणि को हिरा समझ उठा लिया था...

उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.दिल धाड़ धाड़ कर के बज रहा था.

रतिवती तुरंत साड़ी के पल्लू मे मणि को बाँध लेती है.

"मालिकन आप यहाँ क्या कर रही है"

ब...बबब...बिल्लू वो वो...मै तुम्हे ही ढूंढने आई थी रतिवती एकदम चौक जाती है परन्तु संभाल लेती है.

नागमणि की चमक साड़ी के पल्लू से ढक गई थी.

बिल्लू :- आपको यूँ अकेला नहीं आना चाहिए था जंगल मे.

रतिवती :- मुझे अकेले डर लग रहा था बिल्लू...अब रतिवती के शब्दों मे डर नहीं था ना कोई चिंता था बल्कि खुशी का पुट था

उसे खजाना जो मिल गया था.अनजाने मे बिल्लू के वजह से ही हुआ था.

रतिवती आगे आगे अपनी बड़ी सी गांड मटकाती चल रही थी उसकी गांड खुशी के मारे ज्यादा ही मटक रही थी.

बिल्लू सिर्फ रतिवती की बड़ी सी गांड ही देखे जा रहा था

"बिल्लू तुम किसके पीछे भागे थे?"

Billu:- मालिकन वो मेरा भ्रम था, मुझे लगा हवेली मे काम करने वाली भूरी काकी है?

बिल्लू को अब वो भ्रम ही लग रहा था क्युकी उसके सामने तो एक गद्दाराई कामुक गांड जो थी.

दोनों ही तांगे के पास पहुंच जाते है.

बिल्लू :- आइये मालकिन आपको तांगे पे चढ़ा दू,बिल्लू उसकी कमर और गांड को महसूस करने का मौका नहीं गवाना चाहता था

बिल्लू के ऐसा बोलते ही रतिवती को बिल्लू का सख्त हाथ याद आ जाता है जो तांगे पे चढ़ाते वक़्त महसूस हुआ था.

रतिवती:- बिल्लू....वो...वो मुझे पेशाब लगी है जोर से.

नागमणि मिलने की खुशी मे रतिवती पेशाब करना ही भूल गई थी परन्तु अब सामान्य होने पे उसे पेशाब करने की सूझी.

बिल्लू :- तो कर लीजिये ना मालकिन?

रतिवती :- लेकिन अंधेरा हो चूका है कोई जीव जंतु ना काट ले.

बिल्लू लालटेन जाला चूका था "तो यही कर लीजिये ना "

रतिवती :- हट बेशर्म तुम्हारे सामने कैसे कर लू? रतिवती के चेहरे पे शरारत भरी मुस्कान थी.

या यूँ कहिये रतिवती का स्वभाव ही ऐसा था की मर्दो को लालचती ही रहती थी,उसके बदन मे छोटी सी बात पे ही हवस जोर मार दिया करती थी.

बिल्लू जो उसकी मुस्कान को भाँप चूका था "तो क्या हुआ मालकिन यहाँ देखने वाला है ही कौन? और मुझसे क्या शर्माना मै तो पहले ही देख चूका हूँ "

रतिवती ये सुन झेम्प जाती है लेकिन कुछ बोलती नहीं है.सिर्फ मुस्कुरा देती है.

ये बिल्लू के लिए अमौखिक स्वीकृति थी.

रतिवती :- तुम बहुत शैतान हो बिल्लू, मै यही करती हूँ लेकिन तुम देखना मत.

बिल्लू :- तो फिर लालटेन कैसे दिखाऊंगा?

रतिवती :- हाथ इधर करना और मुँह पीछे

ऐसा बोल रतिवती अपनी साड़ी ऊपर उठाने लगती है जो की जाँघ तक खिंच गई थी.

बिल्लू का लालटेन पकड़ा हाथ कंपने लगा...लालटेन की पिली रौशनी मे चमकती तो मोटी सुडोल गोरी जाँघे उसके सामने थी.

हिलती रौशनी देख रतिवती को  बिल्लू की हालत ले तरस आ रहा था,उसे एक अलग ही आनंद की अनुभूति हो रही थी बिल्लू को परेशान कर के.

रतिवती :- गर्दन घुमा लो बिल्लू.... रतिवती के बोलने से ऐसा लगा जैसे बताना चाहा रही हो की अब वो क्या करने जा रही है.

इधर बिल्लू ने तो जैसे सुना ही नहीं.

उसकी नजर बस किसी खजाने को तलाश रही थी की कब निकल के बाहर आये.

 तभी एक लाल चड्डी रतिवती की जांघो पे प्रकट होती है..

कब रतिवती ने चड्डी नीचे की पता ही ना चला...अब साड़ी उठती चली गई ऐसे उठी जैसे किसी नाटक से पर्दा उठा हो धीरे से..बिलकुल कमर तक.

दो बड़े बड़े गांड रुपी चट्टान बिल्लू के सामने थी जिसके बीच एक लकीर जो दोनों के अलग होने का सबूत थी.

बिल्लू का हलक ही सुख गया....रतिवती गांड पूरी तरह पीछे किये धड़ाम से बैठ जाती है..

बिल्लू को जिस खजाने का इंतज़ार था वो खुल के बाहर आ चूका था.

आअह्ह्ह....बिल्लू के हलक से सिसकारी फुट पड़ती है जो की रतिवती ने इस सुनसान जंगल मे भली भांति सुनी थी.

रतिवती के चेहरे पे आनद की लकीर दौड़ जाती है,ना जाने उसे क्या आनंद मिल रहा था.

पिस्स्स्स......फुर्ररर.....करती एक मधुर संगीत की लहर गूंज उठती है.

ये मधुर संगीत बिल्लू के रोम रोम को खड़ा कर देता है,लंड तो कबका अपनी औकात मे आ गया था. ऐसा कामुक दृश्य देख लंड फटने पे आमदा था.

रतिवती लगातार तेज़ वेग से अपनी चुत से पानी की बौछार छोड़े जा रही थी...

तभी वो अपनी गर्दन पीछे घुमा देती है...एक अदा और मुस्कुराहट से बिल्लू की और देखती है.

बिल्लू ने तो ऐसा अदाकारी ऐसा सौंदर्य ऐसी गांड कभी देखि ही नहीं थी...उसके हाथ पैर कापने लगे. उसके लंड ने वीर्य की बौछार छोड़ दी. रतिवती के मादक बदन की गर्मी बिल्लू सहन ना कर पाया.

आआहहहह..... बिल्लू ऐसा चरम पे पंहुचा की उसके हाथ से धड़ाम से लालटेन छूट जाती है,

घुप अंधेरा छा जाता है... थोड़ी देर मे मधुर संगीत बंद हो गया था,

आंखे अँधेरे मे देखने की अभ्यस्त हो गई थी.

बिल्लू :- मालकिन मालकिन...माफ़ कीजियेगा वो लालटेन नहीं संभाल पाया.

रतिवती बिल्लू के नजदीक आ चुकी थी "क्या बिल्लू मै तो तुम्हे मजबूत मर्द समझी थी लेकिन तुम तो..."

बिल्लू:- वो....मालकिन..वो....आप हे ही इतनी सुन्दर की क्या करता.

बिल्लू शर्मिंदा हो गया.

चलिए मालकिन रात होने को आई हमें निकलना चाहिए.

रतिवती का बदन रोमांच और जीत से मचल रहा था.

बिल्लू भी उसके हुस्न का दीवाना हो चूका था,असलम तो था ही विष रूप मे.

ऊपर से नागमणि मिलने की खुशी.

इस वक़्त सबसे खुसनसीब रतिवती ही थी.

लेकिन हवस और लालच अच्छो अच्छो को ले डूबता है.

बने रहिये....कथा जारी है....



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