चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -27
बचाओ....बचाओ...मदद करो हुम्म्मफ्फफ्फ्फ़....हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..
ठाकुर :- अरे ये कौन चिल्ला रहा है कोई स्त्री लगती है...
बिल्लू तांगा रोको
बचाओ बचाओ.....करती एक लड़की धड़ाम से ठाकुर के तांगे के आगे रास्ते पे बेदम सी गिर पडी.
ठाकुर जो को भूरी को खूब ढूंढने के बाद हवेली वापस लौट रहे थे.
परन्तु जैसे ही थोड़ा आगे बड़े ही थे की..."बिल्लू जा के देखो कौन है?"
बिल्लू और रामु अपना लठ संभाले नीचे उतरते है और उस स्त्री के पास पहुंचते है जो की नीचे गिरी हांफ रही थी सांसे तेज़ चल रही थी..
मालिक जवान लड़की है लगता है गिरने से बेहोश हो गई है
"अच्छा " बोल ठाकुर पानी का केन लिए नीचे उतरता है.
लड़की का मुँह पल्लू से नाक तक ढाका हुआ था सिर्फ सुर्ख लाल होंठ ही नजर आ रहे थे.होंठो के नीचे सुराहीदार पतली गर्दन.
गर्दन के नीचे बढ़ते ही उन्नत छातिया,जैसे कोई पहाड़ रख दिया हो,स्त्री के लेटे होने की वजह से उसके आधे से ज्यादा स्तन ब्लाउज से बाहर को आ रहे थे जिसे बिल्लू और रामु ललचाई नजरों से देख रहे थे.
लालच तो ठाकुर के मन मे भी उत्पन्न होने लगा ऐसा हुस्न देख के.
ब्लाउज निहायती छोटा जान पड़ता था रंग बिरंगा सा.
ब्लाउज से नीचे गोरा सपाट पेट जिसपे नाभि किसी हिरे की तरह चमक रही थी.
नाभि के नीचे जाते जाते रास्ता चौड़ा होने लगा गांड के आस पास का इलाका फैला हुआ था जान पड़ता था लड़की बड़ी गांड की मालकिन है.
जाँघ ऐसी की हाथ रखो तो हाथ फिसल जाये.
लड़की ने एक रंगबिरंगा लहंगा पहना था जो सिर्फ घुटनो तक ही था परन्तु उसे नीचे गिरे होने से लहंगा जाँघ तक चढ़ा हुआ था.
ठाकुर साहेब तो गोरी मासल जाँघे देख जडवत हो गए.
"मालिक...पानी दीजिये "
मालिक....मालिक....बिल्लू ने वापस आवाज़ लगाई.
ठाकुर :- आ....हाँ हैं...हाँ...ये लो पानी.
बिल्लू ने उसके होंठो को जैसे ही पानी से छुवाया..
मममम...आम्म.....लड़की की आंखे खुल जाती है.
उसके सामने तीन आदमी खड़े थे,लड़की डर जाती है
तुरंत उठ बैठती है खुद को समेटने लगती है.
ठाकुर :- डरिये मत आप..मै यहाँ का ठाकुर हूँ.
आप बताये इस कदर क्यों भाग रही थी कौन हो तुम?
स्त्री :- मै...मै....विष रूप के आगे वाले गांव रूप गंज जा रही थी
मेरे पति वही काम करते है.
लेकिन जंगल पार करते करते शाम हो गई और पीछे जंगली कुत्ते पड़ गए थे उनसे बचने के लिए भागी थी की यहाँ गिर पडी
आपका सुक्रिया ठाकुर साहेब आपने बचाया,उस स्त्री के होंठो पे एक प्यारी से मुस्कान तैर गई.
ये मुस्कान सीधा ठाकुर के कलेजे पे लगी.
ठाकुर :- रात होने वाली है जंगल मे खतरा है ऐसा करे आप तांगे पे आ जाये हम विष रूप ही जा रहे है आपको आगे रूपगंज छुड़वा देंगे
लड़की शर्माती लाजती तांगे की और बढ़ गई..पीछे ठाकुर बिल्लू और रामु उस मादक चाल को ही देखते रह गए.
बड़ी मोटी गांड छोटे से लहंगे मे हिचकोले खा रही थी.
ठाकुर :- कभी लड़की नहीं देखि क्या हरामखोरो
रात होने को आई है जल्दी चलो हवेली...
सवारी निकल पड़ती है.
पीछे खड़ा शख्श धूल उड़ाते तांगे को देखता रह जाता है
"अल्लाह का शुक्र है रुखसाना की पहली योजना सफल हुई"
आगे भी अल्लाह करम करे बोलता मौलवी भी पलट के चल पड़ता है.
हर जगह बिसात बिछ चुकी है,हर खिलाडी अपना खेल खेल रहा है.
देखते है कौन हारेगा,कौन जीतेगा...
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शाम हो चुकी थी
दरोगा वीर प्रताप की खूबसूरत बीवी कलावती दो हैवानो के बीच बैठी कसमसा रही थी.
रंगा :- अरे यार बिल्ला ये दरोगा तो अभी तक आया ही नहीं? मुझसे तो रहा ही नहीं जा रहा इसकी खूबसूरती देख के
ऐसा बोल रंगा कालावती की जांघो पर साड़ी के ऊपर से ही हाथ फेर देता है.
बिल्ला :- सब्र कर ले भाई सब्र का फल मीठा होता है बिल्ला भी भरपूर निगाह से कलावती के कामुक बदन को घूरता है.
कालावती बेचारी डरी साहमी सी दोनो के बीच मुरझाई सी बैठी थी.कहाँ वो आपने पति के लिए खूब रच के तैयार हुई थी और कहाँ ये दी शैतान आ धमके थे.
कलावती :- आप लोग कौन है?कि दुश्मनी है मुझसे?
ऐसे मत करो वो रंगा का हाथ दूर छटक देती है.
रंगा :- देखो तो छिनाल को कीटंक संस्कारी बन रही है.
बिल्ला :- हम कौन है वो तो तेरा पति है बताएगा? आने दे उसे फिर तेरे संस्कार भी देखते है.
कालावती का बदन किसी अनजाने डर से कांप उठा.
की तभी......
ठक ठक ठक......."लगता है आ गया हमारा शिकार "
बिल्ला :- जा रंडी जा के दरवाजा खोल और कोई भी चालाकी दिखाई तो ये देख...
बिल्ला पीछे से उसकी पीठ पे बन्दुक सटा देता है
"तू मेरे निशाने पे ही रहेगी चुपचाप दरवाजा खोल और दरोगा को अंदर आने दे.
मरती क्या ना करती कालावती चुपचाप अपनी गांड मटकाती दरवाजे की और बढ़ चली.
चरररर...की आवाज़ के साथ दरवाज़ा खुलता चला गया
सामने दरोगा ही खड़ा था उसके सर पे मुसीबत का पहाड़ रहा फिर भी अपनी खूबसूरत बीवी का चेहरा देखते ही उसकी सारी परेशानी दूर हो जाती है "कितनी सुंदर है मेरी बीवी "
कलावती :- आइये अंदर....किसी मशीन की तरह बोल देती है.
अंदर आने ही आया हूँ मेरी जान, कमाल की सुन्दर लग रही हो क्या बात है?
दरोगा अंदर आ जाता है और पीछे कलावती दरवाजा बंद कर देती है.
दरोगा जैसे ही आगे बढ़ता है उसके होश उड़ जाते है
"तुम...तुम...तुम दोनों यहाँ? दरोगा और कुछ बोल पाने की स्थति ने नहीं था उसको पुलिस की नौकरी से निकाल दिया गया था तो ना उसके साथ हवलदार था ना कोई हथियार
वो पलट के अपनी बीवी की तरफ देखता है कलावती अपना सर झुकाये खड़ी थी.
रंगा :- तेरी छिनाल बीवी हमारे लिए इतनी सज धज के तैयार हुई है बे पॉलिसीये.
दरोगा :- जबान संभाल के बात कर हरामी तेरा गला दबा दूंगा मै.
दरोगा रंगा को मरने आगे बढ़ता है की धड़ाम....बिल्ला का प्रचण्ड घुसा दरोगा के होंठ से खून की धार निकाल देता है...
दरोगा चित जमीन पे फ़ैल जाता है "देखा दरोगा इसी हाथ पे गोली मारी थी ना तूने,देख इस हाथ की ताकत वो अपना हाथ उठता ही है की....नाहीईई....कलावती भाग के नीचे पडे दरोगा पे छा जाती है.
कालावती के नीचे झुकने से उसका पल्लू पूरा हट जाता है और दो बड़े बड़े दूध से भरे गुब्बारे बाहर को छलक पड़ते है.
कलावती के बड़े स्तन उसकी ब्लाउज मे समय ही नहीं पा रहे थे ऊपर से उसके स्तन दरोगा की छाती से लग के सम्पूर्ण रूप से रंगा बिल्ला के सामने उजागर हो रहे थे.
बिल्ला का हाथ वही रूक जाता है...वो कलावती की सुंदरता मे ही डूब जाता है.
बिल्ला :- बड़ी सुन्दर माल है रे तेरी बीवी दरोगा?
दरोगा :- ज़...ज़....जबान संभाल......के...
कलावती असहज हो जाती है उसके पति के सामने ही कोई उसकी गंदे तरीके से तारीफ कर रहा था. तुरंत आपने पल्लू को संभाल खड़ी हो जाती है किसी अनहोनी की आशंका से उसका दिल धाड़ धाड़ कर रहा था.
रंगा :- याद है दरोगा तूने इसी गाल पे थप्पड़ मारा था, और मैंने कहाँ था मेरे गाल पे पड़ा हर थप्पड़ तेरी बीवी की गांड पे पड़ेगा.
हाहाहाहाहा.....
दरोगा का बदन रंगा की धमकी से सिहर उठता है.
दरोगा :- कमीनो मुझे मारो मुझसे बदला लो मेरी बीवी को जाने दो उसकी कोई गलती नहीं है.
बिल्ला :- जाने देंगे जल्दी क्या है...
सुलेमान...ओह सुलेमान...इधर आ देख तेरे साहेब आये है.
सुलेमान बाहर आ गर्दन झुकाये खड़ा था.
बिल्ला :- क्यों बे पिल्लै आज मालकिन की सेवा नहीं करेगा?
कलावती बिल्ला के मुँह से ऐसी बात सुन चौंक के बिल्ला रंगा की ओर देखने लगती है उसकी आशंका गलत नहीं थी उसका राज उसके पति के सामने खुलने जा रहा था.
आंखे डबडबा आई थी...गर्दन हलके इशारे मे ना मे हिल गई.
रंगा :- क्यों छिनाल आज डर लग रहा है, हमें सुलेमान ने सब बता दिया है
तू बहुत गरम औरत है आज तेरी और दरोगा की गर्मी भरपूर उतरेगी.
यहाँ तो गर्मी उतरने का इंतेज़ाम हो गया था
परन्तु विष रूप हवेली मे रतिवती आपने बदन की गर्मी से परेशान हो रही थी.
असलम लंड डालता उस से पहले ही कामवती आ गई थी.
ठाकुर और बिल्लू रामु कालू हवेली आ गए थे.
कामवती सो चुकी थी, रात गहराने लगी थी.
ठाकुर :- समधन जी ये ये ये....अरे हमने तो तुम्हारा नाम ही नहीं पूछा.
ठाकुर के पीछे घूंघट मे खड़ी स्त्री की और मुख़ातिब हुए.
रुखसाना :- जी...वो मेरा नाम चमेली है पास के ही जंगल से लगे गांव मे रहते है.
ठाकुर उसकी मधुर आवाज़ से प्रभावित था.
रुखसाना की नजर रतिवती पे पड़ती है "अरे ये तो रतिवती चाची है "
मुझे सावधान रहना होगा की मेरी शक्ल कोई ना देख ले.
रतिवती :- तुमने ये पल्लू क्यों डाला हुआ है? यहाँ किस से शर्म?
रुखसाना :- वो वो...मालकिन मेरी नयी नयी शादी हुई है और हमारे यहाँ रीवाज के की शादी के एक साल तक पति के अलावा किसी को शक्ल नहीं दिखाते.
ठाकुर :- बड़ा ही अजीब रिवाज़ है. खेर कोई बात नहीं तुम खाना खो लो फिर आराम कर लो मेरे आदमी कल तुम्हे रूप गंज छोड़ देंगे.
रतिवती :- ठाकुर साहेब आप भी थक गए होंगे खाना कहाँ ले,कामवती मेरे कमरे मे ही सो गई है.
ठाकुर :- ठीक है आज आप माँ बेटी बात करे हम अकेले ही सो लेंगे.
रुखसाना को भूरी काकी का कमरा दे दिया गया.
रतिवती कमरे मे तो आ गई परन्तु दिन से ही उसके बदन की आग चैन लेने नहीं दे रही थी.
"असलम ये क्या किया तुमने अधूरा ही छोड़ दिया,अब क्या करू मै कामवती भी यही सो रही है वरना चुत रगड़ ही लेती थोड़ा.
जैसे जैसे रात बढ़ रही थी रतिवती की चुत उतना ही कुलबुला रही थी,एक अजीब सी खुजली उसकी चुत मे चल रही थी रह रह के वो अपनी जांघो को भींच ले रही थी.
"क्या करू मै अब बर्दास्त नहीं हो रहा "
रतिवती बाहर को चल देती है की कम से कम सुनसान जगह देख ऊँगली से ही गर्मी शांत कर लेगी.
जब बदन मे हवस की गर्माहट हो तो इंसान वक़्त जगह नहीं देखता.
दिखती है तो सिर्फ हवस.
यही हाल आज ठाकुर ज़ालिम सिंह का भी था उसकी आँखों मे नींद नहीं थी बार बार उसके सामने चमेली का कसा हुआ गोरा कामुक बदन आ जा रहा था.
आज दिनभर की थकान से चूर ठाकुर शराब की बोत्तल गटक रहा था.
परन्तु शराब का नशा उसकी हवास को नयी ऊर्जा दे रहा था,चमेली का कामुक बदन उसके नशे को दुगना कर दे रहा था.
आज कामवती भी नहीं दी उनका छोटा सा लंड उछल कूद कर रहा था.
पाजामे के ऊपर से ही वो आपने लंड को मसले का रहे थे
की तभी.. ठाक ठक ठक....ठाकुर साहेब
ठाकुर चौंक जाता है की कौन आया इतनी रात?
ठाकुर अपना कुर्ता नीचे किये दरवाजा खोल देते है सामने ही चमेली थी.
आज ठाकुर की किस्मत जोरदार थी जिसको सोच रहे थे वही कामुक बदन सामने था.
चमेली :- ठाकुर साहेब....वो..वो..हमें डर लग रहा है बार बार जंगली कुत्ते सामने आ जा रहे है.
रुखसाना बोलते वक़्त हांफ रही थी उसकी छाती फूल पिचक रही थी पेट और सीने पे पसीने की बुँदे थी.जैसे वाकई डर गई हो.
ठाकुर तो उसके कामुक पसीने से चमकते बदन को घूरता ही रहा जाता है
उसके मन मे चोर पनपने लगता है.
कामवती जैसी सुन्दर बीवी के होते हुए भी उसके मन मे लालच घर करने लगा.
चाहता तो चमेली को रतिवती के कमरे मे भी भेज देता,परन्तु हाय रे हवस
"अंदर आ जाओ चमेली हम है तो कैसा डरना "
रुखसाना अंदर आ जाती है घूँघट के अंदर उसके चेहरे पे कातिल मुस्कान थी.
"योजना का दूसरा पड़ाव भी पार "
धड़ाम...ठाकुर दरवाजा बंद कर देता है उसकी आँखों मे लाल डोरे साफ दिख रहे थे.
रात जवान हो रही थी. हवा मे हवस घुल रही थी.
देखना है की कालावती का क्या होगा?
शायद ही दरोगा जिन्दा बचे?
रतिवती अपनी हवास मिटाने के लिए क्या कदम उठाती है.
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कामरूपा की हवस
काबिला मुर्दाबाड़ा
भूरी काकी को होश आ रहा था...उसका सर अभी भी चकरा रहा था,सर पे हाथ रखे वो धीरे धीरे आंखे खोलती है.
उम्मम्मम.....उसकी आंखे चारो और जलती मसाल से चकमका रही थी वो किसी ऊँचे आसान पे बैठी थी.
20-25 काले लम्बे चौड़े राक्षस जैसे दिखने वाले आदमी अर्धनग्न अवस्था मे उसके सामने बैठे हो..
भुजंगा....भुजंगा...सब एक साथ चिल्लाने लगते है जैसे की इसी के उठने का इंतज़ार हो रहा था.भूरी सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट मे बैठी थी उसे अपने कंधे पे कुछ भारी भारी सा अहसास होता है जैसे किसो ने कोई भारी सामान रख दिया हो.
भूरी हिम्मत कर अपने कंधे पे रखी वस्तु को महसूस करने की कोशिश करती है.
उसके हाथ मे कुछ लम्बा सा था,पीलपीला सा,भूरी हाथ और आगे बढ़ाती है तो वो चीज उसे कुछ लम्बी होती महसूस होती है जो की उसके हाथ मे नहीं समा रहा था.
जिज्ञासावस भूरी अपनी गर्दन घुमाती है और देखते ही चीख पड़ती है..
आआआहहहहह..........हे माआआआआआ....
पूरा काबिला ठहकों से गूंज उठता है, भूरी जोर से आंखे भींच लेती है.
सरदार भुजंग :- आंखे खोलो स्त्री ये डरने की चीज नहीं है.
भूरी डरती हुई आंखे खोलती है वो सरदार भुजंग के पैरो के बीच बैठी थी और भुजंग का महाकाय काला लम्बा मोटा लंड भूरी के कंधे पे झूल रहा था.
भूरी ने अपने 1000 वर्ष के जीवनकाल मे ऐसा भयानक लंड नहीं देखा था.उसकी आँखों मे डर साफ देखा जा सकता था.
भूरी मे उठने की हिम्मत नहीं थी उसे डर भी लग रहा था परन्तु भुजंग का लिंग उसे संसार की सबसे खूबसूरत चीज मालूम पड़ रहा था,उसके लंड से एक अजीब भीनी भीनी गंध आ रही थी,
इस गंध मे कुछ खास था,ये गंध उसे संमोहीत कर रही थी.
"नहीं नहीं....ये मुझे क्या हो रहा है मैंने सुना है इस काबिले के बारे मे ये लोग बिना मुझे सख्तलित किये मेरा भोजन नहीं कर सकते,परन्तु इनके लिंग से निकलती महक कुछ अलग अहसास करा रही है"
भूरी गहरी सोच मे थी की एक भारी आवाज़ से उसका ध्यान भंग होता है
भुजंग :- क्या नाम है रे तेरा?
भूरी:-भ....भ....भू....कामरूपा
भुजंग :- नाम भी तेरे बदन जैसा ही कामुक है तुझे चोद के खाने का मजा ही आ जायेगा
तेरे गद्दाराये बदन से पूरा काबिला मौज करेगा.
सेनापति मरखप
मरखप :- जी सरदार
भुजंग :- ले जा इसे डाल कैद खाने मे,कल पुरे विधि विधान से इसकी बोटी बोटी नोची जाएगी.
भूरी बुरी तरह बोखला गई थी उसे बचने की कोई सूरत नहीं दिख रही थी, जवान होने के लालच ने उसे आज मौत के कगार पे खड़ा कर दिया था.
आज पहले जितनी शक्तिशाली होती तो ऐसी नौबत नहीं आती.
आअह्ह्हम....भूरी के मुँह से चीख निकाल गई मरखप ने उसके बाल पकड़ उठा लिया था और लगभग घसीटता हुआ ले चला.
कल का दिन भूरी काकी उर्फ़ कामरूपा का आखिरी दिन साबित होने वाला था,उसके जैसी कामुक हवस से भरी औरत आखिर कब तक खुद को झड़ने से रोक सकती थी.
एक बार चुत ने पानी छोड़ा नहीं की इधर बोटी बोटी कटी समझो...
भूरी की आँखों मे आँसू थे,मौत साफ दिख रही थी..
भूरी खुद को कैसे बचा पायेगी?
वक़्त ही बताएगा
बने रहिये...कथा जारी है..
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