अपडेट -28
दिल्ली रेलवे स्टेशन
अबे जल्दी चल ना बे बहादुर....पीछे क्या मेरी गांड देख रहा है क्या साले.
ट्रैन छुटी ना तो तेरे टट्टे फोड़ दूंगी समझा..
इंस्पेक्टर काम्या ऐसी ही थी दबंग बिंदास बोल बोलने वाली स्त्री थी आम पुलिस की तरह उसकी जबान पे भी हमेशा गाली और अश्लीलता भरी रहती थी.
और वैसे भी इंस्पेक्टर काम्या थी ही हवस से भरी औरत परन्तु उसने कभी भी अपनी हवस को अपने फर्ज़ के आड़े नहीं आने दिया था उल्टा वो अपने जिस्म का फायदा केस सुलझाने मे जरूर उठाती थी.
आज दिल्ली स्टेशन से उसकी ट्रैन थी विष रूप के लिए.
काम्या ने टाइट जीन्स,शार्ट टॉप और आँखों पे काला चश्मा पहना हुआ था जो उन दिनों मे बहुत दुर्लभ दृश्य था हर कोई चाहे मर्द हो या औरत उसकी निगाहेँ उछाल भरते स्तन और बाहर निकल के मटकती गांड पे ही थी.
टॉप छोटा होने की वजह से रह रह के उसकी नाभि दिख जा रही थी जो किसी भी पुरुष का वीर्यपात करवा सकती थी.
क्या बूढ़ा क्या जवान जिसकी नजर पड़ती वो अपना लंड ही संभालता.
तेज़ चलने की वजह से उसकी गांड बुरी तरह थरक रही थी,गांड का एक हिस्सा उठता तो दूसरा गिरता इस उठाव चढ़ाव को पीछे आता हवलदार बहादुर देख रहा था उसकी हालत तो वैसे ही ख़राब थी ऊपर से काम्या की रोबदार आवाज़ से सहम गया था.
बहादुर:- मैडम...मैडम...वो.वो...मै..हाँ सामान भारी है ना इसलिए धीरे चल रहा हूँ.
इस्पेक्टर काम्या :- साले तू किस काम का बहादुर है सच भी नहीं बोल सकता,अब मेरी गांड है ही ऐसी की मर्द भी क्या करे? तू मर्द ही है ना हाहाहाहा....
बहादुर:- जी जी....मैडम हूँ
बहादुर की घिघी बंध गई थी काम्या के ऐसे दबंग और बेशर्म व्यहार से.
बहदुर जल्दी जल्दी चलने लगा, की तभी ट्रैन ने हॉर्न दे दिया और चलने लगी.कूऊऊऊऊऊ.....
काम्या :- करा दिया ना बहादुर के बच्चे लेट अब भाग जल्दी.
बहादुर के दोनों हाथ मे भारी बेग थे जिस वजह से भाग नहीं पा रहा था ट्रैन आगे निकलती जा रही थी की तभी काम्या को ट्रैन की जनरल बोगी दिखती है वो जल्दी से उसी मे चढ़ जाती है
"बहादुर बैग पकड़ा जल्दी "
बहादुर बैग पकड़ा के खुद भी चढ़ जाता है.
ह्म्म्मफ़्फ़्फ़.... साले हरामखोर बहादुर तू किसी काम का नहीं है ट्रैन छूट जाती तो.
बहदुर :- मैडम मै काम का नहीं लेकिन किस्मत का जरूर हूँ देखो ट्रैन छुटी तो नहीं.
काम्या :- साले अपने ऑफिसर से मज़ाक करता है, चल जगह ढूंढते है अभी अगले स्टेशन पे अपनी बोगी मे चलेंगे.
काम्या आगे बढ़ जाती है और बहादुर पीछे बड़बड़ता हुआ चल देता है "देखना आप एक दिन मेरी किस्मत को मान जाओगी ऐसे ही थोड़ी ना पुलिस मे आ गया मै "
ट्रैन खाली पडी थी लगभग सभी लोग बैठे हुए थे.
बहादुर :- भाईसाहब जरा खसक जाइये मै और मैडम भी बैठ जाये.
"क्यों बे साले तेरे बाप की ट्रैन है क्या जो खसक जाऊ.
बहादुर :- भैया पूरी सीट खाली है आप सिर्फ 4 आदमी है बाकि सीट पे हम दो जाने बैठ जायेंगे.
"साले पिद्दी तुझे समझ नहीं आता क्या भाग यहाँ से मजा ख़राब कर दिया,
कालिया एक पैग और बना साले ने दिमाग़ की माँ बहन कर दी.
ये जो चार शख्स बैठे थे वो दिल्ली के मशहूर जबकतरे,लुटेरे थे
कालिया,पीलिया,धनिया और हरिया
भैया प्लीज थोड़ा सरक जाइये ना लम्बा सफर है
एक मीठी सी कोमल आवाज़ चारो के कानो मे पड़ती है,चारो पलट के देखते है तो देखते ही रह जाते है.
सामने जान्नत की हूर आँखों पे चश्मा लगाए ऊँची सैंडल पहले बिलकुल टाइट जीन्स मे खड़ी थी.
जीन्स इतनी टाइट की आगे से उसकी चुत का आकर भी दिखाई दे रहा था,जीन्स और टॉप के बीच सपाट पेट और उसकी नाभि चारो पे कहर ढा रही थी.
गांड के तो क्या कहने.
"भैया प्लीज "
आवाज़ से चारो का ध्यान भंग होता है,
उन चारो ने ऐसी लड़की सपने मे भी नहीं देखि थी.
"शहरी मालूम होती हो"? धनिया बोलता है.
काम्या :- जी भैया गांव जा रहे है ये मेरे पति है वो बहादुर की और इशारा करती है.
चारो बहादुर की और देखते है फिर काम्या की और
"अबे ये क्या चक्कर है इस मरियल चूजे को ये पठाखा कहाँ मिल गया?
हरिया :- पहले क्यों नहीं बताया जी बैठिये आप की ही ट्रैन है.
पीलिया :- आज रात का सफर तो हसीन होने वाला है.
ये बात उन लोगो ने फुफुसाते हुए बोली थी परन्तु काम्या के तेज़ कानो ने ये सब सुन लोया था.
काम्या धीरे से उनके सामने से अपनी गांड को जानबूझ के मटकाती हुई गुजारती है और खिड़की के पास बैठ जाती है.
काम्या उनके इतनी पास से निकली थी की चारो के नाथूने उसकी मादक महक से भर गए थे.
काम्या :- सुक्रिया आपका, आप भी बैठिये ना जी
काम्या ने बहादुर का हाथ पकड़ के बोला
बहदुर हक्का बक्का हो गया था की मैडम को क्या हो गया है जो लड़की बात बात पे गोली चला देती है वो इतनी नरमी से कैसे पेश आ रही है.
हक्के बक्के तो रामु और कालू भी थे जो बिल्लू की बात सुन रहे थे.
कालू :- चल बे साले हम नहीं मानते
रामु :- तुझे रतिवती मालकिन अपनी गांड क्यों दिखाएगी?
बिल्लू कल रात की घटना रामु और कालू को सुना रहा था की कैसे उसने रतिवती का कामुक बदन और उसकी नंगी गांड के दर्शन किये.
तीनो जाम पे जाम छलका रहे थे.
बिल्लू :- सही बोल रहा हूँ सालो वो बिलकुल गरम और हवस से भरी औरत है.
हमें थोड़ी कोशिश करनी चाहिए हो सकता है हाथ लग ही जाये.
रामु :- साले तू मरवाएगा तूने ज्यादा पी ली है तेरी बात पे कैसे यकीन कर ले हम. वो ठाकुर साहेब की समधन है.
अंदर तीनो इसी बहस मे उलझें थे बाहर रतिवती अपनी बदन की आग मे जलती हुई इस कमरे की लाइट जलती देख इधर ही आ गई थी.
परन्तु जैसे ही वो कुछ करती उस से पहले ही उसके कान मे अपने बदन और गांड की तारीफ भरे शब्द पड़ गए.
"अच्छा तो यहाँ मेरी ही बात हो रही है कल रात जब उसने पेशाब करते वक़्त बिल्लू को अपनी बड़ी गांड के दर्शन कराये थे उसे याद करते ही रतिवती की चुत झरना बहा देती है.
उसके दिमाग़ मे कुछ विचार चल रहे थे. वो सिर्फ अपने बदन की सुन रही थी उसे कैसे भी अपनी चुत मे लंड चाहिए था,एक की तमन्ना मे उसे तीन तीन लंड लेने का मौका मिल रहा था.
वो योजना बना चुकी थी.
अंदर "कसम खिला लो किसी की भी "
तभी बाहर से रतिवती अंदर आती है.
"किसकी कसम कहाँ रहे हो बिल्लू?"
तीनो के होश उड़ जाते है
बिल्लू:- वो...वो....मै...मै...मालिकन आप?
कालू :- मरवा दिया साले ने आज
रामु दारू छुपाने की कोशिश कर रहा था
रतिवती :- बिल्लू मेरे लिए ये हवेली नयी है मुझे पेशाब लगा था बाहर आई तो कही गुसलखाना दिखा नहीं
ऐसा बोल रतिवती अंदर आ जाती है.
रामु और कालू के होश अभी भी उड़े हुए थे परन्तु बिल्लू चालक था वो कुछ कुछ समझ रहा था.
बिल्लू :- जी...जी...मालिकन मै दिखाता हूँ
परन्तु रतिवती बाहर जाने के बदले अंदर लगे बिस्तर पे बैठ जाती है "तुम लोग ये नीचे क्या छुपा रहे हो?
ऐसा बोल वो बिस्तर के नीचे हाथ डाल देती है उसकी पकड़ मे दारू की बोत्तल आ जाती है.
रतिवती :- अच्छा तो ऐसे करते ही तुम हवेली की सुरक्षा?
तीनों की सांसे फूलने लगती है उनके कुछ समझ नहीं आ रहा था तीनो बुरी तरह डर गए थे.
रतिवती :- यदि ठाकुर साहेब को ये बात मालूम पडी तो जानते हो क्या होगा?
कालू और रामु दोनों रतिवती के पैरो पे गिर पड़ते है.
मालकिन...मालकिन ठाकुर साहेब से कुछ ना कहना वो हमें जिन्दा गाड़ देंगे.आप जो बोले हम करेंगे जो सजा देनी है दे दो.
रतिवती के चेहरे पे विजयी मुस्कान तैर रही थी.
रतिवती :- अच्छा जो सजा दू मंजूर है?
तीनो एक सुर मे गर्दन हिला देते है "हाँ मालकिन "
अच्छा तो बैठो सामने पहले,पैर छोडो मेरे
तीनो डरते डरते बैठ जाते है.
रतिवती को मर्दो को अपनी ऊँगली पे नचाने मे खूब मजा आता था,और आज वो इन तीनो के डर को भली भांति भुना रही थी.
रतिवती शारब की बोत्तल से तीन ग्लास मे शराब डालती है.
तीनो आश्चर्य से उसे ही देख रहे थे की क्या करना चाहती है.
बिल्लू :- मालकिन क्या आप हमें दारू पिलायेंगी?
रतिवती :- हाँ बिल्लू लेकिन ऐसी दारू जो तुम लोगो ने आज तक ना पी हो,उसकी आवाज़ मे एक नशा था एक मदहोशी थी.
तीनो के पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था ना जाने क्या था रतिवती के दिमाग़ मे.
रतिवती तीन ग्लास आधे शराब से भर चुकी थी,तीनो अभी हक्के बक्के ही थी की
रतिवती अपनी साड़ी हलकी सी उठा के तीनो गिलास के ऊपर टांग फैला के बैठ जाती है.
तीनो ऐसे चौके जैसे भूत देख लिया हो उनकी समझ से सब कुछ परे था.
रतिवती अपनी टांगे थोड़ी फैला देती है तभी सुररर......ससससररर....करती सिटी बजने लगती है
थोड़ी देर मे सिटी की आवाज़ बंद होती है और रतिवती तीनो गिलास के ऊपर से उठ जाती है.
गिलास पूरा भरा हुआ था गिलास के ऊपर झाग तैर रहा था.
उसके चेहरे पे सुकून था.
उसने अपना पूरा पेशाब तीनो ग्लास मे भर दिया था.
रतिवती :- लो ये शराब पी के देखो सब भूल जाओगे.
अभी तक जहाँ तीनो डर रहे थे वही अब तीनो के चेहरे पे हवस और नशा साफ दिख रहा था सजा मे मजा दिखने लगा था.
तीनो ही फटाक से गिलास उठाते है और एक ही घूंट मे गट गटा जाते है गरम ताज़ा पेशाब मे मिली दारू हलक से नीचे उतरती चली जाती है.
आअह्ह्ह.....मालकिन मजा आ गया बिल्लू के मुँह से झाग अभी भी बाहर आ रहा था.
कालू :- मालकिन पूरा बदन गरम हो गया.
रामु :- मालकिन और मिलेगी ये शराब
रतिवती सिर्फ मुस्कुरा देती है!और चाहिए तो तुम्हे निकालनी पड़ेगी,अब भला बिना मेहनत के क्या मिलता है.?
तीनो जमुरे समझ चुके थे की क्या करना है.
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सुलेमान और कलावती दोनों सर झुकाये खड़े थे.
बिल्ला दरोगा को पकड़ पास लगी कुर्सी से बांध देता है.
दरोगा :- रंगा बिल्ला यदि मेरी बीवी को कुछ हुआ तो तुम्हे जिन्दा नहीं छोडूंगा.
रंगा :- हा हाहाहाहा.... तू नामर्द है दरोगा अपनी भूखी बीवी की नजरें भी नहीं पहचानता, हम कुछ क्यों करेंगे तेरी बीवी के साथ वो तो खुद करेगी. क्यों भाई सुलेमान?
सुलेमान चुपचाप मुँह गिराए खड़ा था.
बिल्ला कालावती की और बढ़ता है, उसे दरोगा को तड़पाना था जलील करना था.
कालावती पीछे हट जाती है.
रंगा :- अरे छिनाल पीछे क्यों हट रही है कल रात तो सुलेमान के लंड पे कूद रही थी.
दरोगा :- रंगा जबान खिंच लूंगा तेरी.
रंगा :- हाहाहा..नामर्द तू है और चिल्ला मुझ पे रहा है तेरे लंड मे जान होती तो तेरी बीवी सुलेमान का लंड से ना चुदाती.
दरोगा का मन कह रहा था की ये सब झूठ है उसे जलील करने के लिए बोला जा रहा है,वो प्रश्न भरी निगाह से कलावती की तरफ देखता है तो कालावती नजरें नहीं मिला पाती अपना मुँह फेर लेती है.
दरोगा :- कालावती कह दो की झूठ है ये...
कलावती बिलकुल चुप..मुँह झुकाये.
बिल्ला :- अरे ये क्या बोलेगी इसकी चुत बोलेगी अब तो क्यों कालावती भाभी?
कालावती लाज शर्म से दोहरी होती जा रही थी उअके जीवन मे ऐसा पल भी आएगा उसने सोचा ही नहीं था.
वो बेहद ही उत्सुक,कामुक और हमेशा हवस से भरी रहने वाली औरत थी परन्तु अपने पति के सामने कैसे कबूल कर ले?
जैसे ही बिल्ला नजदीक आता है कलावती उसके पैरो मे गिर जाती है, कृपया ऐसा ना बोले मुझे जलील ना करे मै पतीव्रता नारी हूँ.
रंगा :- हाहाहाबाबा......तू और पतीव्रता नारी? अभी देख लेंगे
बिल्ला कालावती के बाल पकड़ के उठा देता है और घसीटता हुआ दरोगा के सामने रखे सोफे पे बैठा देता है.
रंगा बिल्ला कालावती के अजु बाजु बैठ जाते है.
उनके सामने असहाय सा दरोगा बंधा हुआ था उसके पीछे सुलेमान खड़ा था,सुलेमान इतना डरा हुआ था की वो दरोगा को खोलने तक का नहीं सोच रहा था.
बिल्ला :- दरोगा तेरी बीवी तो वाकई खूबसूरत गद्दाराई औरत है और एक तू है जो इसे छोड़ के अपना फर्ज़ संभाल रहा था.
दरोगा बेचारा कर क्या सकता था उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी वो सिर्फ सुन और देख ही सकता था.
परन्तु कालावती पूरा विरोध कर रही थी "छोड़ दो मुझे मै ऐसी औरत नहीं हूँ"
रंगा उसकी साड़ी के पल्लू को गिरा देता है,कालावती की सफ़ेद चमकते हुए स्तन सबके सामने उजागर हो जाते है,
आज वैसे भी कालावती खूब सजी थी अपने पति के लिए ब्लाउज भी ऐसा था की आधी से ज्यादा चूची बाहर ही आ रही थी.
पीछे खड़ा सुलेमान भी आँखों मे चमक लिए उस नज़ारे को देखने लगा.
दरोगा भी अपनी बीवी को बहुत साल बाद देख रहा था एक दम से उसके आँखों के सामने ये नजारा आ जाने से हक्का बक्का रह गया "वाकई मेरी बीवी खूबसूरत है "
दरोगा खुद के मन से लड़ने लगा था
दरोगा :- छोड़ दो कमीनो उसे भले मुझे मार लो, बिल्ला तू मुझे गोली मार दे मैंने भी तुझे गोली मारी थी ना? रंगा तू मुझे थप्पड़ मार ले मैंने भी तुझे मारा था ना?
मेरे किये का बदला मेरी बीवी से मत लो
रंगा :- दरोगा मैंने तो तुझे बोला ही था की मेरे गाल पे पड़ा एक एक चाटा तेरी बीवी की गांड पे पड़ेगा.
ऐसा बोल रंगा कालावती के मुलायम स्तन पे हाथ रख देता है और हल्का सा सहला देता है.
कालावती थोड़ा कसमसा जाती है,रंगा का कठोर हाथ उसके बदन को हिला देता है.उम्म्म्म....करती हलकी सी हिल जाती है.
बिल्ला :- देख दरोगा तेरी रंडी बीवी कैसे इठला रही है.
कालावती ये सुनते ही सकते मे आ जाती है "नहीं मुझे खुद पे नियंत्रण रखना होगा "
वो सोच तो रही थी परन्तु उसे इस बेज़्ज़ती मे अलग ही अहसास मिल रहा था इस तरह से फसना कही ना कही उसे अच्छा भी लग रहा था किन्तु घबराहट मे वो इसे स्वीकारना नहीं चाह रही थी.
वो रंगा का हाथ पकड़ के दूर झटक देती है.
रंगा बिल्ला समझ रहे थे की ये रांड अपने पति के सामने संस्कारी बन रही है इसके विरोध को हटाना पड़ेगा.
बिल्ला :- साले तुम दोनों पति पत्नी एक दूसरे के सामने संस्कारी बन रहे हो.
रंगा :- क्यों बे दरोगा जो लड़की तेरे थाने मे आई थी उसे चोद के कैसा लगा था तुझे?
दरोगा की तो हवा ही निकाल जाती है ये सुन के.
दरोगा :- कौन...कौन...लड़की.
रंगा :- साले डरता क्यों है तेरी बीवी भी कोई कम नहीं है इसे भी लंड का शौक है.
बिल्ला :- रंडी तेरा दरोगा पति अब दरोगा नहीं रहा इसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया है उस रात एक लड़की इसके पास छेड छाड़ की रिपोर्ट लिखने आई थी आपके ईमानदार कर्तव्य निष्ट पति ने उसकी मज़बूरी का फायदा उठाया और उसका बलात्कार किया.
कालावती ये सुन गुस्से मे आगबबूला हो चली,गुस्से मे जलती आंखे दरोगा को देख रही थी, दरोगा कालावती से आंखे नहीं मिला पा रहा था.
रंगा बिल्ला का प्लान कामयाब हो चला था. उन्होंने कालावती के मन मे नफरत बो दी थी.
स्त्री खुद कितनी बड़ी छिनाल हो लेकिन अपने पति के सामने हमेशा शरीफ ही बनती है.
कालावती भी यही दिखा रही थी भले हवस मे डूब के हज़ारो बार उसने सुलेमान से सम्भोग किया था परन्तु आज दरोगा की एक गलती पे उसे कहाँ जाने वाली नजर से देख रही थी.
रंगा :- देखा रांड तेरा पति तुझे जैसे कामदेवी को चोद नहीं पता और बाहर मुँह मारता फिरता है.
दरोगा बुरी तरह जलालत महसूस कर रहा था उसके आँखों से आँसू बह रहे थे.
"मुझे माफ़ कर दो कालावती मै बहक गया था "
कालावती :- छी कितने घटिया इंसान ही तुम मै तुम्हारे बिना तड़पती रही और तुम वहा गुलछर्रे उड़ा रहे थे.
कालावती खुद हवस के हाथो मजबूर हो के लंड पे उछली थी परन्तु खुद को सही साबित करने का मौका कैसे गवा देती.
दूसरे को गलत साबित कर दो तो आप अपने आप सही साबित हो जाते है इसका ताज़ा उदाहरण रंगा बिल्ला के सामने था.
दोनों ही स्त्री के चरित्र से हैरान थे की कब कौनसा रंग देखने को मिल जाये पता ही नहीं था खेर अब रंगा बिल्ला का रास्ता साफ था.
रंगा वापस से कालावती के स्तन पे हाथ रख देता है,और धीरे से दबा देता है इस बार कालावती का कोई विरोध नहीं था,वो सिर्फ एक कसमसाती सी नजर रंगा पे डाल देरी है और उसके होंठ हलकी सी मुस्कान मे खुल जाते है. कालावती के मन मे हवस जन्म ले रही थी.
और ना ही दरोगा कुछ बोलने लायक था वो सिर्फ पश्चाताप के आँसू बहा रहा था.
एक गलती की सजा इतनी बड़ी होंगी उसे अंदाजा भी नहीं था.
इधर विष रूप मे रुखसाना को अंदाजा हो चला था की वो अपनी योजना मे कामयाब हो जाएगी.
रुखसाना :- ठाकुर साहेब वो खिड़की भी बंद कर दीजिये ना ठंडी हवा आ रही है देखिये मेरे रोये खड़े हो गए है ऐसा बोल वो अपने गोरे पैर आगे को कर देती है.
ठाकुर के सामने रुखसाना के गोरे पैर थे जहाँ पे छोटा सा लहंगा घुटने के ऊपर था जांघो के रोये खड़े थे.
ठाकुर :- हाँ चमेली तुम्हे तो ठण्ड लग रही है. जी भर के गोरी मोटी जाँघ देखता ठाकुर खिड़की का दरवाजा लगा देता है अब अंदर सिर्फ चिमनी की हलकी रौशनी थी.
रुखसाना :- आप सो जाइये ठाकुर साहेब मज़ाक यहाँ नीचे जमीन पे सो जाती हूँ.
ठाकुर :- अरे चमेली कैसी बात करती हो तुम हमारी मेहमान हो ऊपर सो जाओ पलंग बड़ा है.
रुखसाना :- शरमाती हुई लेकिन....लेकिन...मै कैसे...
तभी भड़ाक से खिड़की खुल जाती है और हवा का तेज़ झोंका अंदर आता है और रुखसाना के चुनरी को नीचे गिरा देता है.
उसका सुन्दर मुखड़ा हलकी रौशनी मे चमक उठता है, रुखसाना सिर्फ छोटी सी चोली और छोटे से लहंगे मे ठाकुर के सामने खड़ी थी..
ठाकुर तो इस अद्भुत खूबसूरती को देखता ही रह गया उसके होश उड़ गए थे गोरा चेहरा माथे पे हिंदी,चोली से बाहर निकले हुए मोटे मोटे स्तन,नीचे बिलकुल सपाट पेट.
चमेली शरमाती हुई भागती हुई खिड़की बंद कर देती है और अपना दुपट्टा उठाने को झुकती है, जैसे ही झुकती है उसका लहंगा पीछे से ऊँचा हो जाता है जो की सिर्फ गांड के उभार को ही ढक पा रहा था.
ठाकुर की आत्मा ही निकलने को थी...फिर भी हिम्मत कर के बोल ही गया.
"रहने दो चमेली अब तो हमने तुम्हारा चेहरा देख ही लिया "
ठाकुर की आवाज़ मे नशा था,हवस थी आंखे काम उत्तेजना मे लाल हो चुकी थी
पाजामे मे छोटा सा लंड फटने को आतुर था.
हालांकि उसकी बीवी कही ज्यादा सुन्दर थी परन्तु उसने कभी ऐसा नजारा ऐसी उत्तेजना का अहसास नहीं हुआ था जो आज हो रहा था.
रुखसाना तब तक खड़ी हो चुकी थी,"आप दूसरे व्यक्ति है जिसने मुझे बिना घूँघट के देखा है ठाकुर साहेब " ऐसा बोल मुस्कुरा देती है
ठाकुर रुखसाना को हर एक अदा के साथ पिघलता जा रहा था.
ठाकुर :- तुम तो बहुत सुन्दर हो चमेली
रुखसाना :- आप भी ना ठाकुर साहेब,हस देती है
"आप बदमाश है बहुत "
ठाकुर :- ऐसा हुस्न हो तो कौन बदमाश नहीं होगा चमेली.ऐसा बोल शराब और शबाब के नशे मे चूर ठाकुर चमेली के पास आ जाता है.
चमेली :- इससससस...आप भी ना मेरा पति तो नहीं बोलता ऐसा?
ठाकुर :- चमेली का हाथ पकड़ लेता है "गधा ही होगा जो इस हुस्न की कद्र ना करे "
विडंबना देखो प्रकृति की कौन आदमी बोल रहा है जिसके पास खुद कामवती जैसे अप्सरा है.
यही तो होता है नशा और लालच.
जिसका फायदा रुखसाना उठा रही थी.
"आओ यहाँ बैठो " ठाकुर चमेली का हाथ पकड़ उसे अपने साथ बिस्तर पे बैठा देता है.
अब ठाकुर को कोई होश नहीं था वो सिर्फ हवस मे डूबा था.
रुखसाना भी खूब शर्माने का नाटक कर रही थी "छोड़िये ना ठाकुर साहेब कोई देखेगा तो क्या सोचेगा?"
ठाकुर मन ही मन ख़ुश हो रहा था की चमेली विरोध नहीं कर रही है सिर्फ थोड़ा डर रही है.
जबकि रुखसाना अपनी अदाओ से पल पल ठाकुर का शिकार कर रही थी.
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ट्रैन दिल्ली स्टेशन छोड़ चली थी
चारो जेबकतरो की नजर काम्या पे ही थी,वो उसके हुस्न का लुत्फ़ उठा रहे थे टॉप और जीन्स के बीच से झाँकती नाभि पे बराबर नजर थी.
बहादुर सामान को इधर उधर ज़माने मे लगा था.
धनिया :- मैडम कहाँ जाएगी आप? धनिया ने अपने पिले दाँत दिखाते हुए पूछा.
उसका मुँह खुलना था की तम्बाकू और दारू की मिली जुली गंध ने भभका मार दिया.
काम्या :- जी...जी...मै विष रूप जा रही हूँ.
ना जाने काम्या घबरा रही थी या उसे धनिया के पास से आती अजीब गंध परेशान कर रही थी.
कालिया :- लो भाई लोगो एक पैग और लो सफर मे ऐसा हुस्न हो तो मजा आ जाता है.
बहादुर :- सालो तमीज़ से बात करो,तुम्हे पता नहीं है ये कौन है?
कालिया बहादुर की गिरेबान पकड़ लेता है "साले चूहें तेरी ये औकात हमें टोकता है,जानते है ये तेरे जैसे नामर्द की हसीन बीवी है " ज्यादा बोला तो ट्रैन से बाहर फेंक दूंगा.
नहीं....नहीं....भाईसाहब मेरे पति को छोड़ दीजिये उन्हें पता नहीं है की आप से कैसे बात करनी है. काम्या घबराती हुई बीच मे बोल पडी
"साली....समझा अपने पति को और हाँ मै तेरा भाईसाहब नहीं हूँ कालिया नाम है मेरा और ये धनिया,हरिया और पीलिया है"
कालिया ने उन तीनो की तरफ ऊँगली दिखा के वाहियात परिचय दिया.
"और सुन पे चूहें हम दिल्ली के पहुचे हुए गुंडे है समझा ना"
काम्या :- जी...जी....भाई...मतलब कालिया जी मै समझ गई मै समझा दूंगी
ऐसा बोल कालिया के काले गंदे हाथ पे हाथ रख देती है.
कालिया उस गोरे हाथ का स्पर्श पा के आंनदित हो जाता है उसका गुस्सा कुछ कम होता है.
पीलिया :- साले चूहें देख तेरी बीवी कितनी समझदार है और माल भी.
चारो एक बार फिर एक भरपूर नजर काम्या को ऊपर से नीचे तक घूर लेते है.
काम्या बहादुर का हाथ पकड़े बाहर ले जाती है "क्या कर रहे हो बेवकूफ तुम?"
बहादुर :- मैडम आप... ऐसी बात कर रही है आप? अब तक तो इनकी लाश गिरा देती आप!
काम्या के चेहरे पे मुस्कान फ़ैल जाती है...उस मुस्कान मे हैवानियत भी थी और एक कामुक अदा भी थी,बहादुर पहली बार काम्या जैसी पुलिसवाली के साथ काम कर रहा था उसे कोई अंदाजा नहीं था काम्या के तौर तरीके का.
बहादुर क्या जाने एक हसीन लड़की क्या कर सकती है ऊपर से काम्या जैसी कटीली गद्दराई हवस से भरी औरत.
बहादुर सिर्फ बेबकुफ़ सा मुँह बनाये काम्या के पीछे चल देता है.
काम्या :- जी आप लोग हमें माफ़ कर दे ये अब कुछ नहीं कहेँगे. "ऐ जी आप ऊपर जा के सो जाइये ना जगह कम है तो मै यही बैठ जाती हूँ.
चारो की बांन्छे खिल जाती है उन्हें लगता है लड़की डर गई है हमारी धमकी से
काम्या और बहादुर उन खूंखार अपराधियों के बीच फस गए थे.
क्या वाकई...?
इधर फसा तो दरोगा वीरप्रताप भी था.
बेचारा अपनी ही पत्नी के सामने शर्मिंदा रस्सी से बंधा हुआ पड़ा था.
सामने उसकी बीवी का पल्लू गिराए रंगा गोरे स्तन का आनंद ले रहा था,कालावती कसमसा जरूर रही थी परन्तु विरोध ना के बराबर था बस अभी भी थोड़ी शर्म बच्ची थी अपने पति के सामने वरना तो उसे ये बेज़्ज़ती,दुत्कार कही ना कही अच्छी लग रही थी
सुलेमान से चुदते वक़्त भी कालावती उसके जानवर को जगाने के लिए अपशब्द बोलती थी ताकि सुलेमान उसे गालिया दे,जिल्लाते दे के चोदे,कुतिया बना दे.
और आज सच मे ऐसी परिस्थिति आई तो डर के साथ एक उमंग भी उसके बदन को गुदगुदा रही थी ऊपर से दरोगा के धोखे ने उसके संस्कार के बंधन को खोल दिया था.
"मम्ममममम....मुझे प्यास लगी है " कालावती का गला सुख रहा था इतने सारे उठती भावनाओं से उन्माद मे उसका बदन पसीने पसीने हो गया था.
मुझे पानी दो.
सुलेमान रसोई की और जाने लगता है.
रंगा:- साले..हरामी तुझे किसने कहा जाने को?
आज सिर्फ हम मालिक है.
इस रांड को पानी हम पिलायेंगे क्यों बिल्ला....
बिल्ला तुरंत रंगा का इशारा समझ जाता है.
रंगा बिल्ला तुरंत खड़े हो गए और एक झटके मे अपनी मैली धोती निकाल फ़ेंकी.
कालावती के सामने दो मस्त लम्बे काले मोटे लंड झूल रहे थे,कालावती का मुँह आश्चर्य से खुल गया "हे भगवान ये क्या है?
उसने आज तक सिर्फ अपने पति का मरियल लुल्ली ही देखि थी उसके बाद सुलेमान के लंड को ही वो दुनिया का आखिरी अजूबा मानती थी परन्तु ये क्या ये तो भयानक था.
मर्द के पास ऐसा लंड भी हो सकता है ये तो कालावती के कल्पना मे ही नहीं था ऊपर से रंगा बिल्ला के द्वारा एक दम से की गई हरकत से कालावती सकपका गई थी उसकी आंखे और मुँह फटा का फटा ही रह गया था.
अभी वो कुछ समझ पाती की उसके खुले मुँह मे नमकीन पानी की तेज़ धार पड़ने लगी.
इस से अच्छा मौका क्या मिलता रंगा बिल्ला को ठाकुर को जलील करने का.
कामवती अभी सदमे से बाहर निकली ही थी की उसके खुले मुँह मे रंगा बिल्ला ने एक साथ पेशाब की धार मार दी.
कालावती मारे लज्जात और बेज़्ज़ती से सरोबर हो गई.
बिल्ला :- पी रांड हमारा गर्म पानी
कालावती के मुँह पे पड़ती तेज़ पेशाब के गरम धार से वो एक दम होश गवा बैठी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था,अचानक हुए हमले से वो सहम गई थी,जब तक मुँह बंद करती तब तक काफ़ी मात्र मे उसके हलक ने नमकीन गरम पेशाब उतर चूका था.
रंगा :- देख दरोगा तेरी रांड बीवी कैसे अपनी प्यास बुझा रही है..
कालावती मुँह बंद कर चुकी थी,दोनों का पेशाब उसके मुँह से लगता हुआ नीचे बहता जा रहा था गले से होता हुआ सीधा ब्लाउज मे दोनों स्तनों की घाटी मे समाता जा रहा था,उसके बाद सीधा नाभि को भीगाते हुए ना जाने कहाँ गायब हो जा रहा था.
कालावती मारे शर्म और बेइज़्ज़ती के अपना मुँह इधर उधर मार रही थी, हालांकि उसके लिए ये सब कुछ नया था आज तक इतनी घिनौनी हरकत सुलेमान ने भी उसके साथ नहीं की थी.
परन्तु कालावती को घिनोने पन मे ही मजा आता था उसे बदन उसका साथ छोड़ रहा था,दोनों के पेशाब का गर्मपन उसे उकसा रहा था,
नाभि से होता गर्म पेशाब सीधा चुत के दाने को छूता हुआ पैरो मे जा रहा था,इस गरम छुवन से उसकी चुत बगावत पे उतार आई थी,बगावत का नतीजा उसका मुँह खुद ही खुलता चला गया..
अब वो खुद पेशाब की दिशा मे मुँह खोले गटा गट दोनों के पेशाब को पिए जा रही थी उसके दिल और गले को अभूतपूर्व संतुष्टि मिल रही थी,प्यासी कालावती अपना गला तर कर रही थी.
उसे अब फर्क नहीं पड़ रहा था की सामने उसका पति और प्रेमी बैठा है.उसे ये बेइज़्ज़ती लज्जात लताड़ अच्छी लग रही थी.
उसका ब्लाउज भूरी तरह गिला हो चूका था स्तन किसी हिरे की तरह चमक बिखेर रहे थे..
रंगा :- देख दरोगा तेरी गरम बीवी कैसे अपनी प्यास बुझा रही है.
बेबस दरोगा और सुलेमान अपनी बीवी और प्रेमिका का रंडीपना देख रहे थे..
ऐसा नजारा उन दोनों के लिए भी अनोखा था,ना चाहते हुए भी उनके बदन मे हलचल होने लगी थी,उनका लंड ऐसा कामुक नज़ारे को देख अंगड़ाई लेने लगा था.
दिमाग़ शर्मिंदा था परन्तु लंड बेकाबू था,चारो और हवस फैलने लगी थी.
इस हवस का अंजाम क्या होगा...
ये हवस किसकी मौत लाएगी? कालावती,दरोगा,काम्या, या फिर वो चार लफंगे?
बने रहिये...कथा जारी है....
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