अपडेट -2, मेरी बेटी निशा
निशा ने काँपते स्वर से कहा,
निशा: पापा आप।। अपना सर थोड़ा पीछे करो, तेल लगाना चालु करती हूँ।
पापा के सर पीछे करते ही निशा ने हाथो में तेल लिया और पापा के सर पर मल दिया।
और वह धीरे धीरे पापा के सर को मलने लगी। वह अनजाने में अपना उंगलिया और हाथ बहुत धीरे और गोल गोल घुमा रही थी। कभी वह पापा के बालों को पकड़ कर मरोड़ देती।
जगदीश राय ने ऐसी तेल मालिश कभी नहीं कारवाई थी और पूरी तरह एन्जॉय कर रहा था। वह अपने आप में नहीं था और नहीं कुछ सोचना चाहता था । वह बस इस पल को पूरी तरह एन्जॉय करना चाहता था।
मालिश करते करते निशा जगदिश राय के कानो तक पहुच गयी। उसने देखा कान बहुत लाल हो चुके है। उसने कानो को अपने हाथो में पकड़ा और धीरे सहलाना शुरू किया।
दोनो बाप बेटी कुछ नहीं बोल रहे थे। पुरी रूम में बस उनकी तेज़ साँसे और तेल मलने की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
जगदीश राय का दिमाग बहुत सारे खयालो से गुज़र रहा था। उसने सोचा की मालिश अभी बंद होने वाली है क्युकी उसने कहाँ की शरीर पर तेल वह लगा लेगा। और वह धीरे धीरे अपने शॉर्ट्स को सेट कर रहा था ताकि निशा उसका खड़ा लंड न देख सके।
पर निशा उनके कान को सहलाती जा रही थी। फिर निशा ने धीरे से अपना दोनों हाथ पापा के कंधो में ले गई और वहां मसाज करना शुरू कर दिया। कंधो का मसाज करने के लिए उसे अपने पैरो को खोलना पडा, और उसने पैरो को खोला। और ऐसा करते ही वह पापा के सर के क़रीब आ गई।
निशा मन में बोल रही थी: ये मेरे प्यारे पापा है, जो अब बहुत दुखी है। इनका ख्याल मुझे रखना है। मैं अब पीछे हट नहीं सकती।
और वह अपने पापा को दिखाना चाहती थी की वह उनकी प्यारी बेटी है।
निशा पुरे ताकत से अपने आप को झुका कर , पापा के कंधो से हाथ फेरते हुआ पूरा उनकी कलाई तक ले जा रही थी। और ऐसा करते वक़्त निशा के बूब्स पापा के सर पर टकरा रहे थे।
जगदीश राय, निशा की इन हरक़तों से पागल हो चला था। 6 महीने से उसने मुठ तक नहीं मारी थी और आज उसे लग रहा था की उसका कम वही निकल जाएगा। निशा ज़ोर ज़ोर से पापा के हाथो का मालिश करते जा रही थी और फिर जल्द उसने थोड़ा और तेल लिया और पापा के पीछे से झूक कर उनके छाती पर मलना शुरू किया।
पापा की छाती उसने आज पहली बार इतनी मदहोशी में छुआ था। और उसने पाया की उनकी छाती भट्टी की तरह गरम है।
और वह उस पर तेल मलने लगी, ज़ोर ज़ोर से।
जगदीश राय से यह रहा नहीं गया, और उसने अपना सर पीछे मोड़ दिया। और तभी निशा झुकी और उसने अपना बूब्स पापा के मुह से सटा पाया। पापा के मुह की गरम साँस उसे चूचो पर लग रहा था। वह कसमसायी, पर अपने कर्त्तव्य से पीछे नहीं हटी।
जगदीश राय निशा की बूब्स अपने मुह के ऊपर पाकर ऐसा महसूस कर रहा था की मानो जन्नत प्राप्त हुआ हो। उसे पता था की निशा की बूब्स बड़ी है पर आज उसने जाना की कितनी भरी हुई है। उसके दोनों चूचो के बीच उसका पूरा मुह अंदर समां गया। और निशा अब तक 20 की भी नहीं थी।
उसने दो बार निशा के बूब्स से अपना मुह सहलाना के बाद , अपना सर आगे की तरफ सीधा कर दिया।
निशा अभी भी अपने आप को झुका कर , पापा के छाती पर तेल मली जा रही थी। वह अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी। पैर खुले होने के वजह से, उसका चूत पूरा खुला हुआ था। और चूत पूरी गिली हो गई थी। उसका मन लग रहा था की उसके पेंटी को फाडकर, अपना तेल से लथपथ हाथ लेकर चूत को मसले। पर वह पापा के सामने नहीं करना चाहती थी।
मालिश करने के जोश में उसने अपने स्कर्ट पर ध्यान नहीं रखा और स्कर्ट अब तक कमर तक पहुच चुकी थी। अब उसकी चूत पर सिर्फ एक पतली सी पेंटी थी जो उसकी पूरी चूत को छुपा तो रही थी, पर वह पूरी गिली हो चुकी थी। निशा की चूत ने लगतार पानी छोडा था।
न जगदीश राय जानता था की निशा का यह हाल और न निशा जानती थी अपने पापा का हाल। निशा अब पूरी लगन से , झुक झुक कर, चूचो को अपने पापा पे मसल कर तेल लगायी जा रही थी। वह पूरी गरम और मदहोश हो चुकी थी। उसे लगा उसका पानी अब कभी भी छूट सकता है, पर अपने आप को कण्ट्रोल कर रही थी।
तब जगदीश राय ने अपनी खुद की मदहोशी में अपना गर्दन पीछ को सरकाया। निशा उसी वक़्त आगे सरकी और निशा की गोरी मुलायम पेंटी में छिपी गीली चूत अपने पापा के नंगे गरम जाँघ से जा मिली। एक ४०० वाट करंट निशा की पूरी शरीर पर एक लहर की तरह फ़ैल उठी और वह ज़ोर से चिल्लायी और चिल्लाती गयी।
निशा : अहहहहहहह…। अह्हह्ह्ह्ह…।डहह्हह्हह…अह्ह्ह्।। आह।
जगदीश राय चौक पड़ा और वह तुरन्त पीछे मुडा। और वह नज़ारा देखकर वह बौखला गया।उसने देखा निशा सोफे पर लेटी, मुह खोले हाँफ़ रही है और उसकी ऑंखें बंद है। निशा का पूरा गोरा बदन पसीने से चमक रहा है।उसकी वाइट टी शर्ट पसीने से पूरी चिपकी हुई है, जिसमें से उसकी लाल ब्रा साफ़ दिखाई दे रही है। वह हाफ़ और कांप रही है और तेज़ सासो से उसकी बड़ी मुलायम चूचे ऊपर नीचे हो रही है। उसका स्कर्ट पूरा ऊपर पेट तक चढा हुआ है। दोनों पैर पूरी खुली हुई है। और पैर के बीच में उसकी वाइट पेंटी दिख रही है। पेंटी पूरी गीली है मानो किसी ने पानी मारा हो। और गीली पेंटी में छिपा हुआ चूत के बाल साफ़ दिख रहे है। निशा की जाँघ अभी भी कांप रही थी। जगदीश राय को देर नहीं लगी समझने में की उसकी बेटी को ओर्गास्म आया है और उसकी चूत अभी भी पानी छोडे जा रही है।
करीब 2 मिनट में निशा ने आँख खोला और पाया की पापा उसके नीचे बैठे उसकी तरफ देख रहे है। उसने देखा की पापा की ऑंखों में एक अजीब सा भाव था जो वह जान न सकी। तब उसकी नज़र अपने आप पर पड़ी और वह शर्मा गयी। उसने तुरंत अपना स्कर्ट से अपने गीली चूत को छुपाया। निशा और पापा दोनों एक दूसरे को घुरे जा रहे थे और बिना कुछ बोले ही वह दोनों बहुत कुछ बोल चुके थे। निशा उठी और चुपचाप ऊपर अपने कमरे में गयी। जगदीश राय अपने बेटी की सीडी चढ़ते हुए मटकड़े गांड को एक नये नज़रिये से देखने लगा और अपना लंड तेल से मलने लगा।
निशा के पैर सीढी चढने के क़ाबिल नहीं थे, कांप रहे थे। थोडा तो ओर्गास्म का असर था और थोड़ा गुज़रे हुये पल का।
फिर भी वह अपने कमरे तक तेज़ी से चली गयी और अंदर जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया।
दरवज़ा बंद करते ही वह अपने बेड पर लेट गयी। ऑंखे मूंदकर अपने सासों को काबू में लाने का प्रयत्न करने लगी।
पर उसके ऑंखों के सामने अपना पापा का तेल से लथपथ शरीर और उनकी काम वासना की नज़र लगतार झलक रहा था। वह चाहते हुए भी उसे दूर नहीं कर पा रही थी।वह बेड से उठी और अपनी चिपचिपी पेंटी में हाथ डालकर उसे खीच कर बाहर निकाल फेका।पेंटी की हालत देखकर वह हैरान रह गयी।
निशा (मन ही मन में): क्या इतना सारा पानी निकला मेरा। ओह गॉड़। पेंटी पूरी गिली हो गयी।
वह अपना हाथ चूत में ले गयी और अपने दाए हाथ की बड़ी ऊँगली चूत में घुसा दी।
निशा: आहहः।।।
मुह से एक ख़ुशी की आह निकली। फिर उसने धीरे से ऊँगली बहार खीच लिया। ऊँगली पूरी गिली थी और उसपर लगा हुआ पानी बल्ब की रौशनी में चमक रहा था।
निशा बहुत बार मुठ मार चुकी थी, पर इतना पानी और मज़ा उसे कभी नहीं मिला था।
वह उठी और बाथरूम जाकर पिशाब करने के बाद, वह थोड़ा बेहतर महसूस कर पायी। और झूक कर वॉशबेसिन में अपने चेहरे पर बहुत सारा पानी मारा।
अपना पानी लगा चेहरा , मिरर में देखने लगी। और सोचने लगी।।।।
निशा: यह क्या हो गया था मुझे। अपने पापा को कैसे मैं ऐसा देखने लगी। और पापा मुझे ऐसा क्यों घूर रहे थे। क्या उनका भी हाल मेरे जैसा हुआ होगा? नहीं , बिलकुल नही। पर उनका चेहरे का भाव में तो वासना भरी हुई थी। और वह मेरी चूत को क्यों घूर रहे थे?
यह सवाल वह अपने आप से कर रही थी। वह अपना मुह पोंछ कर एक दूसरी टीशर्ट पहन ली और शॉर्ट्स पहन ली। इस बार उसने एक मोटी पेंटी पहन लिया जो वह अपने पीरियड्स के वक़्त पहनती है।
उसे अब अपने चूत पर भरोसा नहीं रहा या यु कहिये अपने आप पर भरोसा नहीं था।
अब उसे बाहर जाकर खाना बनाना था। रात होने वाली थी, आशा सशा आती ही होंगी। पर वह पापा को फेस नहीं करना चाहती थी। दरवाज़ा के पास आकर वह सोचने लगी की क्या करे।
निशा मन में: शायद मैं पापा के नहाने जाने तक वेट करती हूँ, फिर चली जाऊंगी।
उसने धीरे से अपने कमरे का दरवाज़ा खोला और बाथरूम के तरफ देखा। घर पर 2 बाथरूम था। एक उसके रूम में और एक कॉमन। कॉमन बाथरूम तो खुला था, उसने जाना की पापा अभी तक नहाने नहीं गए है।
उसने दाबे पाँव हॉल में झाँका। और जो उसने देखा उसकी आँखें खुली रह गयी।
पापा सोफे पर बैठे हुए थे। उनका शॉर्ट्स पैरों के बीच पड़ा हुआ था। वह पुरे नंगे थे , और उनका पूरा शरीर लाइट के नीचे तेल के कारण चमक रहा था।
और फिर निशा ने अपने पापा के हाथों में पापा का लंड देखा लंड देखते ही वह उसे घूरते रह गयी। इतना मोटा लंड उसने कभी नहीं देखा था। और पुरे लंड पर तेल लगा हुआ था। तेल से वह लंड और भी मुश्टण्डा लग रहा था, किसी गरम लोहे की तरह।
लंड का उपरी भाग पूरा लाल हो गया था और एप्पल की तरह फुला हुआ था। लंड की चमड़ी पूरी नीचे सरक गयी थी। लंड पर बहुत सारा तेल लगा हुआ था। और पापा लंड को धीरे धीरे मल रहे थे।
निशा ने बहुत बार ब्लू फिल्म देखी थी लेकिन उसके मुह में पापा के लंड को देखकर एक अजीब सा नशा चढ गया।
तेल लंड से निकलकर उनके टट्टो (बॉल्स) को भी नहला रही थी। निशा ने देखा की पापा के बॉल्स भी बहुत बड़े है। वह लटके हुये थे।
पापा कुछ बड़बड़ा रहे थे पर वह सुन नहीं पायी।
अचानक पापा का हाथ तेज़ चलना शुरू हुआ। हॉल से "पच पच फच" की आवाज़ आ रही थी। निशा समझी की लंड और तेल की रगड का नतीजा है।
और तभी पापा जोर जोर से लंड हिलाने लगे और कुछ गुर्राती रहे। और फिर उसके पापा जोर से चिल्लाये।
पापा: निशा आआआआआआ आएह… आह…
उसने पापा के लंड से सफ़ेद मलाई की छिंटें उडती देखि और फिर ढेर सारा सफ़ेद पानी, पापा के हाथों से लगकर सीधें फर्श पर गिर रहा था।
निशा दंग रह गयी। वह तुरंत भागकर अपने रूम में घुस गयी और रूम का दरवाज़ा ज़ोर से बंद कर दिया। दरवाज़े ने ज़ोर का आवाज़ बनाया।
निशा को अपनी गलती का अंदर आते ही एहसास हुआ।
वहाँ जगदीश राय अपने हाथों में लंड लेके वीर्य की आखरी बूंद निकालने का प्रयत्न कर रहा था।
अचानक हुई दरवाज़े की आवाज़ से वह चौक पडा। उसे लगा शायद आशा और सशा आ गई। वह झटके से उठ कर अपना पायजामा और शॉर्ट्स चढा लिया।
फिर उसने जाना की वह निशा का दरवाज़ा था।
जगदीश राय (मन ही मन): क्या निशा ने देख लिया मुझे। ओह गोड़, यह क्या हो गया। मुझे लगा की वह नहाने गयी होगी। वह क्या सोचेगी अब मेरे बारे में।
जगदीश राय वहां से जल्दी से सीडी चढ़कर कॉमन बाथरूम में घूस गया, शायद यह सोचकर कर की पानी से अपना सोच को साफ़ करे।
अपने कमरे में निशा , हॉल में देखे हुए सीन से बहुत गरम हो चुकी थी। उसने खुद को सम्भाला और बेड पर बेठकर ठन्डे दिमाग से सोचना शुरू किया।
निशा (मन में): "यह बात तो पक्का हुआ की पापा मुझे सोचकर मुठ मार रहे थे, नाम तो मेरा ही लिया था। पर क्यु। क्या मैं इतनी खूबसूरत हूँ।
या फिर पापा माँ को मिस कर रहे है। हा, शायद यही बात है। पापा माँ को मिस कर रहे है। एक आदमी कब तक औरत के बिना रह सकता है। और पापा ने हमारे लिए दूसरी शादी भी नहीं कि, हम तीन लड़कियों के लिये।
मेरी पेंटी और गिली चूत देखकर शायद वह आज अपने आप को कण्ट्रोल नहीं कर पाये होंगे। बेचारे।
पापा है तो बड़े भोले। कभी दूसरी औरत के ऊपर मुह उठाकर भी नहीं देखते। और अगर वह किसी दूसरी औरत के पास गए तो कितनी बदनामी होगी हमारी।
मुझे आज के वाक्यात का बुरा नहीं मानना चहिये। एक तरह से जो हुआ ठीक हुआ, खास कर बेचारे पापा के लिये। वह कहते है न आल फॉर द बेस। "
निशा के चेहरे पर मुसकान थी। वह ऐसा समझ रही थी की उसने अपने पापा की हेल्प की है।
वह अपने कमरे से, सर उठा कर, मुसकान लेकर बाहर आ गयी। वह अपने पापा को फेस करने के लिए तैयार थी।
पर जगदीश राय तो बाथरूम में था। बाथरूम में आकर वह गहरी सोच में पड़ गया। शावर चालु था और पानी सर और शरीर पर पडते ही सुकून आ रहा था।
वह समझ नहीं पा रहा था की कैसे निशा से आँख मिलाये। और निशा को कैसे ओर्गास्म आया उसे छुकर, एक 50 साल उम्र के इंसान को।
और तब उसे अपने दूसरी गलती का एहसास हुआ। उसका वीर्य(कम) वही फर्श पर पड़ा हुआ है।
जगदीश राय (मन में): अगर निशा ने फर्श पर पड़ी वीर्य को देख लिया तो बवाल खड़ा कर देगी। शायद मुझसे बात ही न करे।
उसने जल्द अपना तौलिया(टॉवल) लिया और अपने आप को पोछ लिया और अपने कमरे में घूस गया।
कमरे में घूस कर उसने एक लूँगी उठाई और पहन लिया। अपने तौलिए को उसने कंधे पर डाल दिया। उसने प्लान बनाया था की हॉल में जाकर, टॉवल फर्श पर गिराकर सारा वीर्य साफ़ कर दूंगा।
अपने रूम से बाहर आकर देखा तो निशा का रूम खुला है और किचन से आवाज़े आ रही है।
जगदीश राय: शायद निशा किचन में है, ओह गॉड़। जल्दी कर जगदीश।।
वह हॉल में आ गया और सीधे सोफे की तरफ गया।
और टॉवल नीचे फर्श पर फेकने ही वाला था, की देख कर चौक गया। फ़र्श एक दम साफ़ था। सोफा भी ठीक से रखा हुआ था।
जगदीश राय: यह कैसे हो गया। मैंने तो साफ़ नहीं किया। तो क्या निशा!!। ओह नो…क्या उसने अपने हाथो से…मेरा वीर्य।
उसमे शर्म के साथ साथ एक अजीब सा कामुक उत्साह भी आ गया।
वहाँ निशा अपने आँख के कोने से अपने पापा को देख रही थी। उसे हँसी आ रही थी, अपने पापा पर। उसने कचरे के डब्बे पर पड़ा हुआ पेपर का टुकड़ा देखा, जिस पर सफ़ेद पानी लगा हुआ था और पेपर के अंदर से धीरे धीरे बह रहा था।
निशा (मन में): कितना सारा वीर्य था। उफ्फ्फ्, साफ़ करते हाथ दर्द हो रहे थे। इतना मोटा और लम्बा लंड से तो इतना वीर्य तो निकलता होगा शायद। ब्लू फिल्म्स में भी लोगों का इतना निकलता न हो। पापा को कोई ब्लू फ़िल्म में एक्टिंग करना चाहिये।
यह सोच कर वह हँस पडी। जगदीश राय अपनी बेटी की हंसी सुना, और शर्मा कर चुप चाप टीवी के सामने बैठ गया।उसे लगा निशा उस पर हँस रही है।
दोनो बाप बेटी एक दूसरे के बारे में सोच रहे थे।
जगदीश राय टीवी पर दौड रहे अनगिनत न्यूज़ चैनल से रिमोट दौड़ा रहा था।
पर उनका ध्यान वहां नहीं था, वह निशा के बारे में सोच रहा था। की कैसे उसकी लड़की ने बिना कुछ कहे उसका सारा वीर्य साफ़ कर दिया।और अब हँस भी रही है। क्या उसने इसके पहले किसी और के वीर्य को छुआ होगा? हो तो नहीं सकता, वह जानता था की निशा कितनी सुशील है। पर सुशील होती तो फर्श पर पड़े वीर्य देखकर साफ़ नहीं करती, पिता को मसाज देते उसे ओर्गास्म नहीं आती।
क्या यह सिर्फ , उसके चरित्र पर , उम्र का एक धब्बा तो नहीं?
तभी उसकी सोच को चीरते हुआ बेल बजी। निशा ने जाके दरवाज़ा खोला। सशा और आशा घर में घूसे।
निशा: आ गई राजकुमारीया। क्या लिया वैलेंटाइन के लिये।
सशा: जो लिया आशा ने लिये। मेरे स्कूल में क्या वलेन्टाइन।
आशा (दीदी से): तुम से मतलब। यह मेरे और मेरे फ्रेंड्स के बीच की बात है।
निशा(आशा के कान में): ज्यादा बकवास मत कर। मैं अच्छी तरह जानती हु तेरे कैसे फ्रेंड्स है। तू पापा को बेवकूफ बना सकती है। मुझे नही, समझी क्या।
आशा (थोड़ी डरी हुई): वह दीदी …। मैं तो ऐसे ही…ऐसा कुछ भी नहीं है।
निशा: चुप चाप पढाई में ध्यान दे, यह साल बारहवी का मेजर साल है। चल जा अब।
फिर सशा और आशा दोनों अपने कमरे में चलि गयी। जगदीश राय ने कुछ बेटियों के बीच ख़ुसर-पुसार सूनी पर कुछ समझ नहीं पाया।
करीब 8:30 बजे निशा ने आवाज़ लगाई" चलो सब आ जाओ, खाना लग गया है"
निशा (मुस्कुराते): पापा , आप भी आइए।
जगदीश राय बिना कुछ कहे डाइनिंग टेबल पर बैठ गया, सशा सामने थी, आशा और निशा दाए बाए। वह निशा के आँखों में देख नहीं पा रहा था। पर निशा को अपने पापा से कोई शर्म नहीं आ रही थी, बल्कि उसको पापा की शर्मन्दिगी पर प्यार और हँसी आ रही थी।
आशा : निशा दीदी, क्या हम एक रैबिट (खरगोश) ले सकती है।
निशा : क्यु।
आशा: मुझे रैब्बिटस बहुत पसंद है। लवीना के पास एक ख़रगोश है, उसकी टेल बहुत प्यारी है।
सशा: अगर तुझे उसकी टेल इतनी पसंद है, तो सिर्फ टेल काटकर ले आ। पुरी रैबिट की क्या ज़रुरत है।
आशा: तू चुप कर। दीदी, बोलो न।
निशा: शार्ट एंड स्ट्रैट आंसर देती हु , नही।
आशा: लेकिन, मुझे उसकी टेल बहुत प्यारी लगती है।
तभी जगदीश राय के हाथ से दाल की कटोरी फिसल गयी और थोड़ी सी दाल फर्श पर गिरी।
जगदीश राय: ओह न, सोर्री। मैं साफ कर दूंगा। तुम लोग खाओ।
निशा: पापा आप रुकिये। मैं साफ़ कर देती हूँ।
फिर निशा किचन से एक पोछा ले आई।
निशा: पापा, आज कल आप फर्श बहुत गन्दा कर रहे है। क्या बात है?
जगदीश राय यह सुनकर दंग रह गया। उसने निशा की तरफ देखा, उसके चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कान थी।
जगदीश राय: मैं…।नही तो…क्यूं
निशा: कोई बात नही। मैं तो साफ़ कर ही लूंग़ी। अआप बस गिराते रहिये।
जगदीश राय कुछ नहीं बोला। वह चुप चाप प्लेट की तरफ देखकर खाने लगा। सशा और आशा कुछ समझ नहीं पा रही थी।
जगदीश राय जल्द से खाना ख़तम करके वहां से चला गया। और सीधे रूम पर जाके लेट गया।
वह पुरे दिन की घटनाओ को सोच रहा था और अपने सब सवालो पर सवाल कर रहा था। जवाबो की उससे कोई उम्मीद नहीं थी, बल्कि जवाबो से उसे थोड़ा डर लग रहा था।
निशा की चूत और आशा की गाण्ड उसके ऑंखों के सामने बार बार आ रहे थे। उसका लंड अब लोहे ही तरह तना हुआ था।
तभी, डोर पर एक नॉक सुनाई दी। इसके पहले वह कुछ बोले, दरवाज़ा खुल गया और निशा खड़ी थी। वह एक मैक्सी पहनी हुई थी और जगदीश राय ने जाना की वह उसकी स्वर्गवासी पत्नी की मैक्सी थी।
जगदीश राय : निशा बेटी तुम।
निशा: हाँ , मैं हु आपके लिए दूध लेके आयी हूँ।
जगदीश राय : लेकिन मैं तो दूध नहीं पिता रात को
निशा: लेकिन आज से आप पिएँगे, सोने से पहले। 10।30 हो गयी है, लो पी लो। इसमें काजू और पिस्ता भी डाला हुआ है, आपके सेहत के लिये।
जगदीश राय : पर यह सब मेरे लिए…क्यों…
निशा: क्यों की आज से आपका ख्याल मैं रखूँगी। अब ज्यादा सवाल मत कीजिये।
जगदीश राय कापते हाथो से गिलास लेकर होटों पर लगा दिया। निशा की नज़र अपने पापा के शरीर पर गुज़र रही थी। और जाकर रुकि उनकी पायजामें पर। उसे अपने पापा का मोटा और खड़ा लंड साफ़ दिखाई दे रहा था। और बिना किसी शर्म के उसे घूरे जा रही थी।
जगदीश राय दूध पीकर गिलास निशा को दे दिया, जो उसके तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी।
निशा मुडी और दरवाज़ा के तरफ बढी। जगदीश राय पीछे से निशा की मटकती बड़ी गांड को देख रहा था। वह अब मैक्सी में और भी सेक्सी लग रही थी।
जगदीश राय: बेटी , यह मैक्सी तो माँ की है न।
निशा: हाँ पापा, मुझे आज मैक्सी पहनने का मन किया। क्यों कैसी लग रही हूँ।
जगदीश राय: अच्छी लग रही हो।
निशा: हाँ थोड़ी टाइट है मेरे लिये, यहाँ चेस्ट और हिप्स पर। बाकि सब ठीक है।
जगदीश राय निशा की चूचियों को देखा जो मैक्सी में समां नहीं रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे दो फुटबॉल घुसा दिया हो। जगदीश राय के मुह में पानी आ गया।
निशा अपने पापा की यह हालत समझ गयी। और मुसकुराकर बोली।
निशा: अब सो जाइए। फ़िज़ूल की बातें सोचकर जागकर रात मत काटिये।, हा हा।
और अपने गाण्ड को मटकाकर चल दी।
जगदीश राय के लंड को उनके हाथ का स्पर्श जानते हुआ देर नहीं लगी।
कमरे से निकलकर निशा अपने रूम में चलि गयी। जाते जाते आशा और सशा को आवाज़ दी।
निशा: तुम दोनों सो जाओ अब। मोबाइल पर खेलना बंद करो।
रूम में से: ठीक है मैडम हिटलर।
निशा समझ गयी की यह तो आशा ही है जो इतनी बदतमीज़ी कर सकती है।
अपने रूम में जाकर लेट गयी। उसके माँ को गुज़री 6 महीने हो चुके थे। आज पहली बार उसे एक अजीब सी ख़ुशी और आश्वासन मिला था। वह समझ गयी की आज तक वह अपने पिता के लिए चिन्तित थि, आज उसे जवाब मिल गया था। वह मुस्कराय ी।
अपने पापा के लम्बे लंड के बारे में सोचते सोचते कब आँख लग गयी पता नहीं चला।
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Contd.....
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