अपडेट -3, मेरी बेटी निशा
दूसरे दिन, निशा फिर रोज़ के काम में लग गयी। पापा को चाय दे दिया, सबका खाना बना दिया। खुद कॉलेज चली गयी और सारा दिन गुज़र गया। पापा भी थोड़े लेट आए ऑफिस से। और सीधे खाना खाके रूम में चल दिए।
निशा ने देखा की उसके पापा उसको अवॉयड कर रहे है। आँख नहीं मिला रहे है। बात भी खुलकर नहीं कर रहे है। उसे अब अपने बरताव पर थोड़ा पछ्तावा होने लगा था। उसे डर लग गया की कहीं उसका और पापा का फ़ासला बढ़ तो नहीं गया, बल्कि कम होने के बदले।
वह पापा को अपना प्यारे दोस्त के रूप में देखना चाहती थी।
आज फिर वह वही मैक्सी पहनकर पापा के रूम में चल दी। हाथ में दूध भी था।
उसने बिना नॉक किये रूम खोला। उसके पापा प्रेमचंद की एक किताब पढ़ रहे थे।
जगदीश राय अचानक से हुई एंट्री से चौक गया। और जब निशा को मैक्सी में देखा तो पिघल गया।
उसके मम्मे नाइटी में कल से भी ज्यादा प्यारे लग रहे थे।
जगदीश राय बेड के किनारे पर पिलो टीकाकार लेटा हुआ था।
निशा उसके एकदम पास आ गयी। निशा ने अपनी टाँग पापा के टाँग से लगा दी और बोली।
निशा: पापा यह लो दूध।
जगदीश राय निशा को देखते देखते गिलास हाथ में ले लिया।
निशा: थोड़ा हटिये, मुझे बैठना है।
यह कहकर निशा सीधे बेड के किनारे पर बैठ गयी। जगदीश राय को हटने या हिलने का मौका भी नहीं दिया। और इससे निशा की आधी से ज्यादा गाण्ड जगदीश राय के दाए पैर के ऊपर थी। और निशा की गाण्ड उसके मम्मो की तरह बड़ी थी।
जगदीश राय को एक बहुत मुलायम गाण्ड का स्पर्श हुआ, और उसे इस स्पर्श से एक करंट सी लग गयी।
उसका लंड तुरंत अपने ज़ोर दीखाने लगा। उसने धीरे से अपना पैर निशा की गाण्ड के निचे से हटाया।
निशा ने हँस्ते हुआ पूछा: क्यू, क्या मैं बहुत भारी हूँ।
जगदीश राय: नही तो। सब ठीक है
निशा (थोडा उदास होकर): आप दूध पीजिये।
जगदीश राय ने तिरन्त गिलास ख़तम कर दी , इस उम्मीद में की निशा यहाँ से चलि जाए।
उसके मन में अजीब कश्मकश थी।
निशा (गिलास लेते हुए): पापा, आप क्या मुझसे नाराज़ है।
जगदीश राय: नहीं तो बेटी।
निशा: फिर आप मुझसे बात भी नहीं कर रहे है, सीधे मुह। आँख भी नहीं मिला रहे है। क्या मुझसे कोई गलती हुई है क्या।
जगदीश राय: नहीं बेटी बिलकुल नही।
निशा: तो फिर क्या हुआ।
जगदीश राय (सर झुका कर): वह बेटी …। कल जो हुआ…। वह…।उसकी वजह…मेरा मतलब है…
निशा (सर झुका कर): कल जो हुआ, सो हुआ। पर उसे क्या मैं आपकी निशा नहीं रही। क्या आप मेरे पापा नहीं रहे।
जगदीश राय : नहीं बेटी। तुम तो हर वक़्त मेरी प्यारी निशा हो।
जगदीश राय को अपने बरताव पर ग़ुस्सा आने लगा था।
निशा: और आप मेंरे प्यारे पापा है।
यह कहकर निशा अपने पापा के सीने पर सर रख दिया। उसके बड़े मम्मे मैक्सी के ऊपर से जगदीश राय के पेट और जांघ से दब्ब गये।
जगदीश राय का लंड जो निशा के सवाल जवाब से सो गया था, फिर अचानक से खड़ा हो गया।
निशा सीने पर सर रख कर अपने पापा के लंड को देख रही थी। उसने देखा की पायजामा धीरे धीरे ऊपर उठ रहा है।
जगदीश राय को हाथ से अपना लंड ठीक करना था, पर निशा के सामने करना मुश्किल हो रहा था। वह जान गया था की निशा को उठता लंड साफ़ दिख रहा है।
वही निशा की हालत भी ख़राब होने लगी थी। उसके निप्पल्स मैक्सी के ऊपर से पापा के पेट और जांघ से दब्ब कर रगड खा रही थी। दोनों निप्पल्स खडे हो गए थे।
निशा: पता है पापा। जब लड़की बड़ी हो जाती है, तब उसके पापा पापा नहीं रहते। उसकी दोस्त बन जाते है। मैं भी आप में वह दोस्त देखना चाहती हूँ।
जगदीश राय चुप रहा। निशा जो कहना चाह रही थी वह वह समझ गया था।
फिर निशा उठि और कहा:
निशा: पापा कल मेरे एग्जाम की फीस भरना है, यूनिवर्सिटी जाना है। क्या आप मेरे साथ चलेंगे। बहुत दूर है।
जगदीश राय जो अभी भी निशा की फेकी हुई गूगली पर सोच रहा था, जवाब नहीं दे पाया।
निशा: पापा, बोलो न। चलेंगे।
जगदीश राय: हाँ हाँ ठीक है। चलेंगे।
निशा: मेरे प्यारे पापा।
यह कहकर निशा ने पापा के माथे पर एक चुम्मी दे दी।
माथे पर चुम्मी देते वक़्त, उसके दोनों मम्मे जगदीश राय के मुह से टकरा गए।जगदीश राय हड़बड़ा सा गया। इतने बड़े मुलायम चूचे उसने कभी नहीं छुये थे।
सब कुछ चंद सेकण्डस में हो गया।
निशा : कल ठीक सुबह 10 बजे निकलना है ठीक। चलो गुड नाईट, स्वीट ड्रीम्स। सो जाओ अब।
जगदीश राय: हाँ हाँ गुड नाईट।
जगदीश राय बावला हो गया था। वह पूरा गरम हो गया था। निशा के जाते ही उसने अपना पायजामा नीचे कर दिया और मुठ मारने लगा। लंड पर लग रहे हर ज़ोर पर निशा का नाम लिखा हुआ था।
बाजू के कमरे में निशा कमरे में घुसते ही अपनी मैक्सी उतार फेकी। ऑंखे बंद करके उसे अपने पापा के लम्बे और मोटे लंड का आकार दिखाई दिया।
निशा की उँगलियाँ उसके चूत को मसलने लगी।
और कुछ ही वक़्त में ढेर सारा पानी बेड को गिला कर दिया।
उसी वक़्त जगदीश राय को भी ओर्गास्म आ गया।
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अगले दिन जगदीश राय , नहा धोकर हॉल में आकर पेपर के साथ बैठ गया । निशा उसे चाय देने आ गई।
निशा: गुड मॉर्निंग पापा, यह लो। चलो हमें जल्दी निकलना है। मुझे यूनिवर्सिटी होकर कॉलेज भी जाना है और आपको ओफिस।
निशा नहाकर आयी थी। अपनी गीले बालों को टॉवल में बाँध रखा था। उसने एक फ्रॉक पहना हुआ था, जो घुटने तक का था।
जगदीश राय को निशा बहुत प्यारी और सुन्दर लगी। गोरा भरा हुआ बदन, बड़ी बड़ी चूचे, भरा हुआ गाँड। जब वह चलती तो उसके हिप्स फ्रॉक के अंदर मटकते हुये साफ़ दिख रहे थे। इतनी सेक्सी होने पर भी उसके चेहरे में एक मासूमियत और सुशीलता थी।
जगदीश राय: क्या मेरा जाना ज़रूरी है।
निशा (नाराज़ होते हुए): पापा, अब आप अपनी प्रॉमिस से मुकर रहे है।
जगदीश राय: ओके ओके ठीक है चलता हूँ। मैं तैयार हो जाता हूँ।
जगदीश राय चाय पीकर जब सीडी चढ़ रहा था, तब आशा और निशा स्कूल ड्रेस में निचे उतर रहे थे।
करीब 9:15 में जगदीश राय हॉल में अपना कॉटन शर्ट और कॉटन पेंट में आकर बैठ गया। वह सोफे पर बैठकर गुज़रे हुए कुछ दिन की वाक्या सोच रहा था।
जगदीश राय(मन में): पिछले कितनो दिनों से मैंने सीमा के बारे में सोचा ही नही। जो आदमी हर रात सोते वक़्त सीमा के बारे में सोचकर रोता हो, वह आज पिछली 3 रातो से खुश है। और यह सब निशा के वजह से है।
तभी निशा पीछे से आयी।
निशा: पापा, चलें?
जगदीश राय पीछे मुडा और निशा को देखते रह गया। निशा ने अपनी बाल पोनीटेल में बांध रखा था।
गोरा चेहरा बहुत सुन्दर लग रहा था। उसने ऊपर एक ग्रीन कलर की शार्ट कुर्ती पहनी थी और नीचे रेड कलर की टाइट लेगीन्स। कुर्ती का कट पुरे उसके साइड हिप्स तक आ रहा था, जिसे उसकी बड़ी जांघे लेग्गिंग्स में साफ़ दिख रहे थे। निशा ने आज थोंग्स पहन रखी थी , इसलिए गाण्ड टाइटस में पूरा खुला दिख रही थी।
उसके मम्मे भी कुर्ती में उभरकर आ रहे थे।
निशा ने अपने पापा को उसे घूरते देखा और वह खुश हो गयी। उसने बिना कुछ कहें मुस्कुराते हुए , अपनी अन्दाज़ में मुडी और मटकती हुआ चल दी।
जगदीश राय उसके पीछे अपने खडे लंड को सम्भालते हुआ चल रहा था।
जगदीश राय बाहर आकर अपनी मारुती ८०० के तरफ चलने लगा।
निशा: पापा हम बस में जाएंगे।
जगदीश राय: क्यों बेटी, कार हैं न। इसमे चलते है।
निशा: नहीं पापा, मैं इस खटारे में नहीं आउंगी। आप तो नयी कार लेते नही। मेरे सब फ्रेंड्स के पापा के पास कम से कम नई गाड़ी तो है ही। और वैसे भी बस स्टोप तो यही है।
जगदीश राय, हर वक़्त की तरह , हार मान गया।
जगदीश राय: ठीक है चलो बस में।
निशा को सभी लोग रोड पर देख रहे थे, जगदीश राय ने देखा। जब बस आ गयी, तो बस में बेठने की कोई जगह नहीं थी।
निशा: शायद आगे के स्टॉप्स में खाली जो जाए। चलें?
जगदीश राय और निशा दोनों चढ़ गये। बस में खडे होने के लिये, बीच में, थोड़ी सी जगह बनायीं थी। जगदीश राय ने देखा की बस में ज्यादातर स्टूडेंट्स थे।
निशा (उदास चेहरे से): शायद सब युनिवरसिटी जा रहे है। तो सीट्स मिलना मुश्किल होगा।
जगदीश राय: कोई बात नही, आधे घन्टे में आ ही जाएगा।
निशा और जगदीश राय एक दूसरे को फेस करके खडे थे। निशा के पीछे एक कॉलेज का जवान लड़का खड़ा था।
बस में अगले स्टोप पर और स्टूडेंट्स चढ़ गये। अब बस पूरा पैक हो चूका था।
निशा के पीछे खड़ा जवान लड़का निशा के पीछे पूरा चिपका हुआ था। और निशा आगे से अपने पापा से चिपकी हुई थी, एक सैंडविच की तरह। जगदीश राय ने देखा की लड़का अपना पेंट के आगे का हिस्सा निशा की गाण्ड पर चिपका रखा है। निशा के चूचे पूरी तरह से जगदीश राय के शरीर पर दबी हुई है। जगदीश राय का लंड पुरे आकार में था।
निशा: ओह न, हमें कार में ही आना चाहिए था…।शीट…। बहुत उनकंफर्टबल है यहाँ…।।
जगदीश राय:क्या मैं… थोड़ा पीछे हो जाऊँ।
निशा: नहीं पापा, आप ठीक है। पर यह पीछे वाला…।उफ्फ्।
जगदीश राय समझ गया की निशा को उस जवान लड़के का लंड महसूस हो रहा है। और यह उसे पसंद नहीं आ रहा। जगदीश राय, ने जाना की निशा ,भले ही सेक्सी है और सेक्सी कपडे पहनती है, पर है सुशिल और समझदार।
निशा: मैं एक काम करती हूँ, घूम जाती हूँ।
निशा (पीछे वाले लड़के से): भैया एक मिनट, थोड़ा जगह देना।
जवान लड़का चुपचाप थोड़ा पीछे सरक गया।और निशा टर्न हो गायी। निशा ने टर्न होते ही, अपना हैंडबैग अपने छाती पर लगा दिया। उसी समय जगदीश राय ने भी नीचे हाथ डाल कर अपने लंड को पेंट के ऊपर से सेट कर दिया।
निशा की गाण्ड अब अपने पापा पर टीका हुआ था और सामने से उसने बैग से अपने मम्मो को मसलने से बचा रखा था।
अब बस , पूरी भरी हुई, बहुत धीरे धीरे चल रही थी। उसमे हर स्टॉप पर लोग चढ़ते जा रहे थे।
जगदीश राय का लंड निशा की गाण्ड के दरार के बिलकुल ऊपर था। निशा ने अपने गाण्ड पर अपने पापा का गरम लंड महसूस किया। वह मन ही मन मुस्करायी। उसे अपने पापा के लंड से चिपके रहने में कोई दिक्कत नहीं थी।
करीब 5 मिनट इस पोजीशन में रहने के बाद, जगदीश राय का पूरा शरीर गरम हो चूका था। उसे लग रहा था की उसका लंड मानो फट जाएगा।
निशा की हालत भी कुछ सामान ही थी। उसकी चूत पूरी गिली हो चुकी थी। निशा अपने पापा के गरम लौड़े को अपन गाण्ड के दरार पर चिपका रखा था। पर लंड अभी तक दरार के अंदर घूस नहीं पाई थी। निशा की टाईट लेग्गि, पापा के लंड की ज़ोर की वजह से , गाण्ड की दरार में घूस चूका था।
निशा ने अपने गाण्ड को थोड़ा दायी तरफ मुडा दिया और फिर तुरंत उसने गाण्ड को बायीं तरफ मोड़ दिया। वह अपने पापा के लंड को अपनी गांड से सहला रही थी।
जगदीश राय अपनी बेटी के इस हरकत से पागल सा हो गया। उसकी सासे तेज़ हो रही थी।
निशा बार बार ऐसे करती गयी। थोड़ी मदद उसकी बस भी कर रहा था, जो ख़राब रास्तो की वजह से डोल रहा था।
तभी अचानक से, पापा का लंड , निशा की गांड की दरार के अन्दर घूस गया, निशा वही रुक गयी। अब उसने अपने पापा का मोटा लंड अपनी बडी, गरम और मुलायम गाण्ड की दरार में कपडे के उपर से फसा रखा था।
निशा: आह…
निशा के मुह से आह निकली।
निशा तेज़ी से सास लेने लगी। पापा के गरम लंड की गरमी, गाण्ड से लगकर सीधे चूत पर बिजली की तरह गिर रही थी। चूत पूरी तरह गीली हो चुकी थी।
जगदीश राय बस अपने आंखें बंद कर , अपनी सासों को सम्भालते हुये खड़ा था। बस में किसी को भी ज़रा सा भी भनक नहीं हुआ की यह बाप-बेटी क्या कर रहे है।
जगदीश राय को लगा की ऐसे ही चलते गये तो वह पानी छोड देगा। वह इस परिस्थिती से बचना चाहता था।
बस थोड़ा और हिलना-डुलना शुरू हुआ। जगदीश राय मौके का फायदा उठाकर लंड निशा की गांड की दरार से बाहर निकलना ठीक समझा।
निशा को लगा की पापा का लंड दरार से फिसल रहा है, वह तुरंत अपने मन से जागी और अपनी बड़ी गांड को पीछे की तरफ सरका दिया। वह किसी भी हालत में अपने पापा के लंड को खोना नहीं चाहती थी। उसने ठान जो लिया था की वह अपने पापा को कभी उदास नहीं होने देगी।
जगदीश राय यह देख कर चौक गया। वह समझ गया जो भी हो रहा है निशा के सहमती से हो रहा है।
निशा की गाण्ड पीछे करने से अब जगदीश राय का बचना असम्भव हो गया था।
अब बस , रास्तो के खड्डो के कारण, बुरी तरह ऊपर नीचे हिल रही थी । और उसके साथ ही, पापा का लंड निशा की गाण्ड की दारार को रगड रहा था।
निशा पागल हुई जा रही थी। उसकी पैर का थर्र थर्र कापना शुरू हुआ। उसे खड़ा होना मुश्किल हो चला था। पर वह डटी रही। निशा की तेज़ सासे जगदीश राय को सुनाई दे रही थी।
निशा(मन में): चाहे कुछ भी हो, मैं अपने प्यारे पापा को ख़ुशी देकर ही रहूँगी।
और उसने अपनी गाण्ड और पीछे धकलते हुयी, पापा के लंड से दबा दिया।
वही जगदीश राय को लगा की उसका लंड अभी पानी छोड देगा। उसे पसीना छुटने लगा।
वह निशा से सीधे मुह बोलना नहीं चाहता था की उसका पानी छुटने वाला है।
तभी कंडक्टर ने आवाज़ दिया।
कंडक्टर: युनिवर्सिटि।। यूनिवर्सिटी… यूनिवर्सिटी… निकलो सब लोग। है और कोई यूनिवर्सिटी…।
निशा और जगदीश राय अपने चिंतन से जाग गये। निशा फिर भी हिल नहीं रही थी।
पर जगदीश राइ निशा को थोड़ा धक्का दिया और कहा।
जगदीश राय: चलो बेटी…स्टॉप आ गया।
Contd....
अगला भाग मेरी बेटी निशा -4
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