अपडेट -30
ट्रैन पूरी रफ़्तार से धुआँ उगलती हुई विष रूप की और दौड़े जा रही थी
वही विष रूप मे दरोगा के घर पर रंगा बिल्ला हवस की ट्रैन मे सवार कालावती को रोंदने मे लगे थे.
कालावती भी अपने पुरे रंडीपना पे उतर आई थी,पसीने थूक से सनी हुई कालावती चमक रही थी.
कालावती की चुत लगातार पानी छोड़ रही थी,दरोगा और सुलेमान इस नज़ारे से भाव विभोर हुए जा रहे थे.
सुलेमान तो कालावती को भोग चूका था फिर भी वो हैरान था की कोई स्त्री इस कदर कैसे कर सकती है.
दरोगा तो पल पल मरे जा रहा था अपनी बीवी का ये रूप देख उसे मन ही मन लानत महसूस हो रही थी परन्तु उसका लंड बगावत पे उतर चूका था.वो खड़ा हो कालावती के रंडीपन को सलामी दे रहा था.
रंगा :- देख दरोगा देख अपनी रंडी बीवी को कैसे खेल रही है वो मर्दो के साथ.
काश तू भी मर्द होता.
रंगा लगातार दरोगा की मर्दानगी पे चोट कर रहा था.
बिल्ला :- दरोगा तू कसमसा क्यों रहा है?
रंगा :- लगता है अपनी रांड बीवी का खेल देख के उत्तेजित हो रहा है.
बिल्ला :- अच्छा ये बात अभी देख लेते है.
ऐसा कह रंगा बिल्ला दोनों अलग हो गए, कालावती तो दोनों के हटने से हैरान हो गई उसे कोई आवाज़ नहीं सुनाई दे रही थी वो सिर्फ लंड चूसने और चाटने मे बिजी थी.
दोनों के अलग हट जाने से उसके चेहरे पे व्याकुलता साफ देखि जा सकती थी.
उसका चेहरा ऐसा था जैसे किसी ने बच्चे के हाथ से लॉलीपॉप छीन ली हो.
लेकिन क्या बोलती कालावती?
बिल्ला :- उदास मत हो रांड अभी तो खेल शुरू हुआ है,बिल्ला ने कालावती के चेहरे का भाव पढ़ लिया था.
रंगा बिल्ला दोनों दरोगा की और बढ़ चले उसका एक हाथ खोल दिया परन्तु कमर और पैर कुर्सी से बंधे हुए ही छोड़ दिए.
रंगा :- ले भाई दरोगा तेरे पे दया करते है ताकि तू अपनी बीवी के कारनामें देख लंड हिला सके,इतने भी खूंखार,बेदर्द नहीं है हम की लंड भी ना हिलाने दे तुझे,हाहाहाहाहा..... दोनों हस पड़ते है
दरोगा तो शर्मिंदगी से मरा ही जा रहा था.
बिल्ला :- रंगा पहले देख तो ले की इसका लंड हिलाने लायक है भी की नहीं.
रंगा :- चल बे सुलेमान खोल इसकी पैंट
सुलेमान हक्का बक्का खड़ा था रंगा का आदेश हुआ नही की वो किसो मशीन के भांति दरोगा के आगे आया और उसकी पैंट की बेल्ट खोल पैंट को तुरंत कमर से नीचे सरका दिया...
कमरे मे मौजूद हर शख्श हैरान रह गया,
बिल्ला :- वाह दरोगा तेरी लुल्ली तो खड़ी है हाहाहाहा...
रंगा :- साला हिजड़ा अपनी बीवी को लंड चूसते देख लंड खड़ा कर के बैठा है
देख रांड तेरा पति तुझे देख उत्तेजित हो रहा है.
कालावती की नजर भी दरोगा के लण्ड पे पड़ती है कालावती उसे देख मुँह फैर लेती है जैसे तो दरोगा ने अपराध कर दिया हो वो कैसे अपनी पत्नी को गैर मर्द के लंड चूसते देख उत्तेजित हो सकता था.
परन्तु अब क्या कर सकते थे जो सच था वो था.
रंगा कालावती के पास जा उसे बाल से पकड़ खड़ा कर देता है,और उसके पीछे जा उसके सीने पे हाथ रख देता है.
अभी कोई कुक्सह समझ पता उस से पहले ही रंगा ने ब्लाउज के दोनों हिस्से पकड़ फड़ाक से अलग कर दिए..
सामने बैठे तीनो मर्दो के सामने दो गोरे बड़े गोरे स्तन छलक उठे...एक दम सुडोल बेदाग.
कालावती तो इस कृत्य से सिहर उठी उसका रोम रोम खड़ा हो गया ऐसा उन्माद ऐसी बेइज़्ज़ती उसे मजा दे रही थी.
पल पल होने पति के सामने नंगा होना उसे मदहोश कर रहा था
हर स्त्री की एक दबी छुपी वासना होती है जो की आज रंगा बिल्ला के दुवारा पूरी हो रही थी.
इसी वासना और उन्माद मे कालावती खोटी जा रही थी
रंगा ने पीछे से ही दोनों स्तन को भींच लिया.
ऐसा भींचा की कालावती की चीख निकल गई.
"आआहहहहहह....धीरे रंगा " ये कामुक शब्द दरोगा ने भी सुने.
ये कामुक और हवस भरी आवाज़ ऐसी थी की एक एक झटका सभी के लंड को लगा.
दरोगा ना चाहते हुए भी अपना हाथ लंड पे रख देता है.
वो इस कामुक दृश्य को सहन नहीं कर पा रहा था.
वही रंगा बिल्ला के चेहरे पे मुस्कान थी आखिर दरोगा अपनी बीवी से ही हार रहा था.
बिल्ला भी कालावती को और बढ़ चला था उसके हाथ मे कालावती साड़ी थी जो धीरे धीरव उसके बदन से अलग होती चली गई,कालावती अब सिर्फ पेटीकोट मे खड़ी थी
पीछे से रंगा लगातार उसके स्तन को भींचे जा रहा था,कालावती की कामुक सिसकारी बता रही थी की उसे किस आनंद की प्राप्ति हो रही थी.
रंगा अपने कठोर हाथो से पुरे स्तन को दबा के ऐसे भींच रहा था कि उसके निप्पल निकल निकल के बाहर आ रहे थे,दूध होता तो पूरा निचोड़ चूका होता रंगा.
ये दृश्य मर्दो के अंग निचोड़ देने के लिए कभी था,अभी ये नजारा ख़त्म हुआ ही नहीं था की बिल्ला ने नाड़ा खिंच दिया,कालावती का पेटीकोट सरसराता पैरो मे जमा हो गया.
सबके सामने एक गोरी गुलाबी रंगत ली हुई चुत हाजिर थी,हालांकि सुलेमान और दरोगा ने ये चुत खूब देखि थी परन्तु आज कुछ ज्यादा ही फूली हुई लग रही थी पानी छोड़ती गुली हुई चुत देख सबके मुँह मे पानी भर गई.
बिल्ला :- आअह्ह्ह..रांड क्या गुलाबी चुत है तेरी बालो का एक भी नामोनिशान नहीं,किसके लिए साफ किये थे झांट के बाल?
दोनों आजु बाजु खड़े थे बीच मे सम्पूर्ण नंगी कामुक बदन लिए कलावती
कालावती को कोई शर्म नहीं थी दरोगा के मुँह पे ही बोल गई "दरोगा जी के लिए ही किये थे लेकिन ये तो गैर मर्द से चुदती बीवी को देख के ही ख़ुश हो रहे है "
कालावती के शब्दों मे एक व्यंग था एक ताना था जो वो दरोगा को मार रही थी.
रंगा बिल्ला का तो ठीक था परन्तु अब अपनी बीवी के हाथो भी बेइज़्ज़ती पा के दरोगा मरने को हो रहा था फिर भी उसका लंड इस बात की गवाही नहीं दे रहा था वो तो जस का तस खड़ा था खुद दरोगा को समझ नहीं आ रहा था की आखिर ऐसा कैसे हो रहा है.
उसने आज तक अपनी बीवी को गौर से देखा ही नहीं था की कितनी सुन्दर और कामुक काया है सिर्फ लहंगा उठाया और चोद दिया.इसी अधूरी इच्छा ने कलावती की हवस को उन्माद के शिखर पे पंहुचा दिया था
इसी हवस को शांत करने के लिए उसने पहले सुलेमान का सहारा लिया परन्तु ये उन्माद कम ना हो समय के साथ बढ़ता ही चला गया
उसका ही परिणाम था की आना दो गैर मर्दो के सामने नंगी खड़ी कालावती को कोई शर्म नहीं थी जबकि सामने उसका पति और प्रेमी दोनों थे,उसका बदन गरम अंगारो मे जल रहा था,स्तन रगड़े जाने से लाल हो चुके थे,चुत पानी छोड़ छोड़ के अपनी मदकता का सबूत दे रही थी.
कालावती खुद चल के रंगा बिल्ला के पास आती है और दरोगा की और गांड किये झुक जाती है
कालावती के दोनों कामुक सुराख़ ठीक दरोगा के सामने खुल गए थे,कालावती का बदन अजीब तरह से महक रहा था.
दोनों सुराख़ खुल बंद हो रहे थे,दरोगा के होश उड़ गए थे उसे यकीन ही नहीं हो रहा था की ये उसी की बीवी है.
कालावती गांड बाहर निकाले झुक है दोनों के लंड पकड़ लेती है और मुठियाने लगती है जैसे उसे किसी रस की तलाश हो
दोनों हाथो मे काले भयानक लंड अठखेलिया कर रहे थे लाल.लाल चूड़ी से भरे हाथ एक मधुर संगीत पैदा कर रहे थे.
आज तक चूडियो की खनखानाहट मधुर संगीत ही देती आई थी परन्तु आज इस खन खानाहट मे कामुकता थी,तड़प थी...
इस दृश्य को कोई आम आदमी देख भर लेता तो प्राण त्याग देता,दरोगा अपने बदन की गर्मी को और नहीं दबा सका अपने आज़ाद हाथ से अपने लंड को रागड़ने लगा....."आअह्ह्ह...कालावती"
दरोगा के मुख से कामुक सिसकारी निकल ही पडी लंड को आराम मिला,सामने ऐसी कामुक गांड हिल रही ही तो किसे सब्र होता भला.
दरोगा के पीछे सुलेमान भी कबका अपना पजामा खोल चूका था वो भी इस दृश्य को देख लंड को घिसे जा रहा था.
रंगा बिल्ला को भी सब्र करना अब मुश्किल लग रहा था.
चटक....चटाक....चटाक...रंगा का जोरदार थप्पड़ कालावती की गांड पे पड़ता है.
आअह्ह्ह......कालावती की गांड पूरी थल थला जाती है.
दरोगा को अहसास हो रहा था की जो थप्पड़ उसने रंगा को मारे थे वो वाकई उसकी बीवी की गांड पे पड़ रहे थे.
फिर से....चटाक....चटाक....चटाक.....क्या गांड है रे तेरी रांड क्या हिल रही है.
कालावती के मुँह से उफ़ भी ना निकली वो सुनी आँखों से पीछे मूड अपने पति को देख रही थी.
दरोगा की नजरें भी कालावती से मिल गई...दरोगा की नजरों मे माफ़ी थी वही कालावती की नजरों मे गुस्सा था जैसा कहना चाह रही हो "आपकी वजह से ही मुझे ये थप्पड़ पड़ रहे है"
चटाक...चटाक...इस बार बिल्ला ने भी दो चपत जमा दी.
दरोगा का हाथ लगातार अपने लंड पे चल रहा था उसे अपनी बीवी किसी रांड की तरह दिख रही थी.
हवस का उन्माद जब चढ़ता है तो आदमी क्या से क्या हो जाता है इसका उदाहरण दरोगा खुद था, कहाँ तो उसे अपनी बीवी की लाज बचानी चाहिए थी कहाँ वो खुद उत्तेजित हो लंड मसल रहा था.
अब ये उन्माद सब्र के बाहर था....बिल्ला अपने खड़े लंड को लिए कालावती के पीछे चला जाता है और खड़े खड़े ही एक ही झटके मे अपना लंड सीधा कालावती की पानी छोड़ती चुत मे डाल देता है.
आआआहहहहह.......मर गई आअह्ह्हहह...ummmm.....
बिल्ला का लंड कालावती की भीगी चुत को चिरता हुआ सीधा बच्चेदानी से जा टकराया था एक कामुक और दर्द भरी लहर उसके चेहरे पे दौड़ गई.
पीछे दरोगा के ठीक आँखों के सामने ये नजारा प्रस्तुत था,उसने साफ देखा था बिल्ला के लंड को कालावती की चुत मे घुसते.
अब देर किस बात की थी बिल्ला ने कमर पीछे खींची और एक धक्का और...
फिर पीछे फिर धक्का....धप धप धप....बिना देरी के बेरहम बिल्ला अपने लंड को दे दनादन पेलने लगा.
कालावती मुँह खोले चिल्ला रही थी....उतने मे ही रंगा ने वापस से अपना लंड कालावती के मुँह मे ठूस दिया "
!साली चिल्लाती है हमें बेवजह का शोर पसंद नहीं मुझे"
कालावती बीच मे घोड़ी बने चुद रही थी पीछे से बेरहम की तरह बिल्ला खूंटा ठोके जा रहा था आगे से रंगा मुँह चोदे जा रहा था.
फच फच फच....धप.. धप धप....कामुक आवाज़ कमरे मे गूंज रही थी सभी अपने अपने लंड को सुकून दे रहे थे.
कालावती की दर्द भरी सिसकरी अब कामुकता से भरी सिसकारी मे तब्दील हो गई थी,गजब का युद्ध चल पडा था जिसमे कोई भी महारथी हारने को तैयार नहीं था.
अब कालावती दरोगा के सामने नीचे रंगा के ऊपर बैठी चुद रही थी रंगा धचा धच उसकी चुत के परखचे उडाने मे लगा था, ऊपर से हर धक्के के साथ गांड पे एक जोरदार थप्पड़ पड़ता
कलावती की गांड पे उंगलियों के निशान छप गए थे इस मार से उसका बदन उत्तेजना मे कांप रहा था रह रह के अपनी गांड को रंगा के लंड पे पटक देती.
ये नजारा अभी कम ही था की बिल्ला अचानक पीछे आ कालावती की बड़ी गांड को अपने मजबूत हाथो से पकड़ अलग अलग दिशा मे फैला देता है,गांड का सुर्ख लाल छेद चमक उठा.
दरोगा और सुलेमान समझ गए थे की क्या होने वाला है,परन्तु कालावती को कोई भनक नहीं थी वो तो मदहोशी मे अपनी गांड पटक रही थी.
अअअअअअअह्ह्ह्हब्ब......
कालावती को कुछ समझ नहीं आया उसके मुँह से भयानक चीख निकल पडी,उसे अपनी गांड मे कुछ गरमा गर्म मोटा सा सरिया घुसता महसूस हुआ.
अभी वो पीछे मुड़ती की एक धक्का और....आआहहहहह.....माँ.मर गई
रंगा बिल्ला के अंदर का जानवर जग चूका था कोई रहम नहीं आ रहा था उन्हें कालावती पे.
दो जानवरो के बीच पीस रही थी सांसे उखड रही थी,
सुलेमान और दरोगा का भी खून सुख गया था ये नजारा देख के आम औरत होती तो दम तोड़ देती परन्तु कलावती वासना और उत्तेजना से भरपूर स्त्री थी.
धचा धच धचा धच.....रंगा बिल्ला अपने लंड आगे पीछे करने लगे.
कलावती की दर्द भारी सिसकी गूंज उठी दोनों छेद पुरे फट गए थे बिलकुल कस गए थे लंड के ऊपर.
आआहहहह......छोड़ दो छोड़ दो....
लेकिन उसकी सुनता कौन.
रंगा:- साली तेरे पति ने मुझे थप्पड़ मारा था ये ले....और तेज़ धक्के के साथ जड़ तक लंड घुसेड़ देता है.
बिल्ला :- तेरे पति ने मुझे गोली मारी थी ना ये ले...अपना लंड जड़ तक गांड मे ठेल देता है.
अब आलम ये था की दोनों के लंड एक साथ बाहर निकलते और एक साथ जड़ तक समा जाते.
फच फच फच....कालावती की चुत इस तपन इस घिसाई से वापस चीख उठी पानी फेंकने लगी उसे इस प्रकार का मजा आजतक नहीं आया था,अब वो खुद अपनी गांड को दोनों के लंड पे मार रही थी.
सुलेमान और दरोगा इस कामुक उत्तेजना से भरे दृश्य को ओर ना संभाल सके और झड़ने लगे.
आअह्ह्ह....कालावती दोनो के मुँह से एक साथ निकल गया और भलभला के झड़ने लगे.
लेकिन जैसे ही झडे उनकी चेतना लौटने लगी दरोगा की खुमारी जैसे ही उतरी दरोगा का दिल पछत्याप से भर उठा,उसे यकीन नहीं हो रहा था उत्तेजना वंश वो खुद की बीवी को देख अपना लंड हिला रहा था.
इंसान ऐसा ही होता है जब हवस और वासना सर चढ़ती है तो कुछ सूझता ही नहीं है लेकिन एक बार वीर्य निकला नहीं की सारी मर्यादा वापस आ जाती है.
दरोगा के साथ भी वही हुआ उसकी वासना ख़त्म हुई की उसके फर्ज़ ने उसे आवाज़ लगा दी उसने पीछे मूड के देखा सुलेमान भी सर झुकाये खड़ा था.
रंगा बिल्ला अपनी ही दुनिया मे थे उन्हें कालावती के कामुक बदन को भोगने से ही फुर्सत नहीं थी.
पीछे दरोगा के बंधन खुलते चले गए,सुलेमान ने अपने नमक का फर्ज़ अदा किया था आज.
इधर रंगा बिल्ला लगातार चोदे जा रहे थे तेज़ तेज़ और तेज़...फच फच फचम..कालावती की गांड और चुत सुर्ख लाल हो चुके थे इस घिसावट से अब उनके हवस का भी बांध टूट गया....आआहहहह..कालावती...बोल के दोनों भलभला के झड़ने लगे कलावती के दोनों छेद पूरी तरह सफ़ेद गाढ़े वीर्य से भर गए थे.
वीर्य का गिरना ही था की कालावती की चीख भी निकल गई...आअह्ह्ह.....उम्मम्मम...
बुरी तरह झड़ रही थी कालावती उसकी चुत और गांड मे अभी भी दोनों के लंड फसे पड़े थे,कालावती इस कद्र झड़ी की दोनों के लंड को बाहर फेंक दिया.और खुद नीचे जमीन पे लुढ़क गई उसकी सांसे उखड़ी हुई थी.वो अपने सखलन को संभाल रही थी पूरी नंगी कामुक पसीने मे भीगी काया कमाल लग रही थी जैसे कोई जवान घोड़ी लम्बी दौड़ के बाद सुस्ता रही हो..
की तभी धाय.....एक गोली की आवाज़ गूंज उठी.
रंगा बिल्ला के तोते ही उड़ गए इस आवाज़ से दोनों ने सर उठा के देखा सामने दरोगा गुस्से मे काँपते हाथो से बन्दुक पकड़े खड़ा था.
बिल्ला ने अपना हाथ बगल मे बढ़ाया तो पाया की उसकी बन्दुक नहीं थी.
बिल्ला :- द...द....दरोगा ऐसा मत कर बन्दुक फेंक दे.
"ऐ कालावती देख अपने पति को समझा "
रंगा बिल्ला दोनों कालावती की और पालटते है, लेकिन ये क्या कालावती के ठीक माथे के बीच एक लाल सुराख़ हो गया था दरोगा की चलाई गोली ने सीधा कालावती का माथा चिर दिया था.
दोनों के होश फाकता थे, अभी वो कुछ समझ पाते की दरोगा की आवाज़ गूंज उठी.
दरोगा :- सालो हरामियों तुमने मेरा सब कुछ उजाड़ दिया, सब कुछ बर्बाद कर दिया मेरी ही बीवी को किसी रंडी की तरह रोंदा तुम लोगो ने.
बोलते बोलते दरोगा के आँसू छलक उठे गला भर्रा गया,
मै अपनी पत्नी को गैरमर्द से चुदता देख उत्तेजित हो गया था सबसे बड़ा पापी मे ही हूँ.
और ये मेरी रांड बीवी क्या क्या गुल खिलाती रही मेरे पीछे....धाय....धाय...धाय....तीन गोली फिर चली और इस बार भी तीनो गोली कालावती की नंगी लाश को भेदती चली गई
"आक थू साली छिनाल तू पत्नी बनने के लायक नहीं "
रंगा बिल्ला को कुछ समझ नहीं आ रहा था.
आज दरोगा का सब कुछ लूट गया था उसका मन आत्मग्लानि से भरा हुआ था. उसको जीने की कोई इच्छा नहीं थी, क्या समय आया था की एक फर्ज़ से भरे,ईमानदार इंसान को अपनी बीवी को अपने हाथ से गोली मारनी पडी.
धाय....एक गोली और चली,और दरोगा का बदन किसी कटे पेड़ की तरह कालावती के बगल मे औंधे मुँह गिर पडा.
दरोगा ने खुद के कनपटी पे बन्दुक रख घोड़ा दबा दिया था.
पीछे सुलेमान किसी मूर्ति की तरह खड़ा था उसकी तो सब कुछ समझ से ही परे था.
रंगा बिल्ला के सामने से खतरा टल चूका था, उनका डर ख़त्म हो चूका था.
डर है ही ऐसी चीज मौत सामने हो तो इंसान बिल्ली बन जाता है और जैसे खतरा टला वापस शेर
रंगा :- भाई ये दरोगा तो जिल्लत सहन ही ना कर सका.
बिल्ला :- अंत तो यही करना था साला हमें हाथ लगाएगा.
रंगा :- अब इसका क्या करे सुलेमान को तरफ इशारा कर पूछा,मार दे?
बिल्ला :- नहीं रे ये तो चूहा है जाने दे,कोई तो चाहिए ना जो हमारी कहानी सुना सके
हाहाहाःहाहा.....
हमारी दहाशत की कहानी.
आखिर कार कलावती की अतिहवस,गैर मर्द का सुख उसे ले ही डूबा,फर्ज़ से चूका इंसान दरोगा वीरप्रताप सिंह खुद मौत को गले लगा चूका था.
जरुरत से ज्यादा हवस कामवासना दरोगा और उसकी बीवी को जान ले चुकी थी.
परन्तु ये हवस ठाकुर की हवेली मे चारो तरफ फैली थी.
बिल्लू कालू और रामु को तो आज खजाना मिल गया था वो रतिवती पे पिले पड़े थे कभी कोई मुँह मे लंड डाल देता तो कभी गांड मे तो कभी कोई चुत मे.
आज रतिवती पूरी तरह से तृप्त थी उसके सभी छेद भरे पड़े थे.
कई बार दो लंड एक साथ चुत मे भी चले जाते और एक गांड मे मजाल की रतिवती उफ़ भी कर दे वो तो इस उन्माद का पूरी तरह मजा उठा रही थी ना जाने कितनी बार उसकी चुत से पानी छलका होगा.
यहाँ हवस चरम पे थी वही हवेली के अंदर डॉ.असलम भी रुखसाना के कामुक बदन को देख आपा खो चूका था उसका लंड उसके सुन्दर गोल स्तन को देख के ही थिरकने लगा था.
रुखसाना असलम के सामने अर्धनग्न लेटी थी.
असलम :- बता साली क्या करने आई है यहाँ? और उस दिन मेरे दावखाने मे आने का क्या मकसद था तेरा?
रुखसाना खामोश थी उसे कुछ सूझ नहीं रहा था की क्या बोले
की तभी असलम अपनी लुंगी उतार फेंकता है उसका काला मुसल लंड रुखसाना के सामने नाचने लगता है.
रुखसाना अभी गरम ही थी ठाकुर का वीर्य निकालने के चक्कर मे वो खुद हवस की भट्टी मे अपनी चुत दे बैठी थी.
रुखसाना को अब एक ही उपाय सूझ रहा था की कैसे वो अपने बदन का इस्तेमाल कर सकती है.
रुखसाना तुरंत पलट के अपनी गांड ऊँची कर देती है,उसका छोटा सा लहनेगा ऊपर हो चूका था गांड की दरार साफ दिखने लगी थी और यही निमंत्रण था असलम को.
पल भर के लिए असलम अपने सवाल भूल गया,वो आगे बड़ा और सूखे लंड को एक ही झटके मे गांड मे उतरता चला गया.
"आआहहहहह.....डॉ.असलम मार दिया"
असलम :- बता साली क्या करने आई थी क्या मकसद है तेरा?
बोल के एक के बाद एक झटके सुखी गांड मे मरने लगता है,रुखसाना खूब चुदी थी परन्तु ऐसे नहीं उसकी तो जान पे बन आई गांड की चमड़ी सिकुड़ के अंदर जाती कभी बाहर आती.
आअह्ह्हह्ह्ह्हम.....बताती हूँ...बताती हूँ..थोड़ा आराम से.
वो मुझे सर्पटा से बदला लेने के लिए शक्तियां चाहिए
और ठाकुर का वीर्य मुझे वो शक्ति देगा.
असलम तो हैरान था की ये क्या चक्कर है कौन सर्पटा कौन सा बदला?
एक जोरदार चोट और मारता है टट्टे चुत से जा टकराते है लंड पूरा गांड मे धस चूका था.
असलम :- अब जब तक तू पूरी बात नहीं बताती वो भी सच तब तक ये खूंटा बाहर नहीं निकलेगा,असलम लंड अंदर गाड़े रुखसाना के बाल पीछे से पकड़ के उसकी गर्दन पीछे खिंच लेता है
रुखसाना के पास अब कोई चारा नहीं था उसे सुबह से पहले यहाँ से निकलना था असलम को सच बताना ही पड़ेगा.
सर्पटा एक इच्छाधारी सांप है उसने मेरे पति परवेज खान को मारा था,
रंगा बिल्ला,कामगंज,मौलवी सब बताती चली जाती है रुखसाना.
बाते सुनते सुनते असलम का दिल ख़ुश होता चला जाता है उसके मन मे तो पहले ही पाप घर चूका था ऊपर से इच्छाधारी सांप होते है ये बात सुन के उसे भी असीम ताकत प्राप्त करने के खुवाब दिखने लगे.
उसे कामवती अपनी बीवी दिखने लगी ये गांव ये हवेली का मालिक वो होगा.
अब उसका लंड और दिमाग़ एक साथ चलने लगे लंड गांड मार रहा था और दिमाग़ अपने दोस्त को मार रहा रहा
घोर पाप,मित्रघात का बीज पूरी तरह रोपित हो गया था उसके सपनो मे.
सब कुछ शांत हो चूका था,किसी की हवस उसे मौत दे गई,किसी का लालच बरकरारा था,तो किसी के मन मे पाप जग गया था.
भूतकाल
इन सब के बीच कामवती अपने कमरे मे सोते हुए भी बेचैन लग रही थी उसका स्मृति पटल उसे बार बार कुछ दिखा रहा था,
कामवती बेचैन सी नदी किनारे बैठी थी,
लगता था जैसे उसे किसी का इंतज़ार है उसकी आँखों मे दो जवान मर्दो की तस्वीर छपी थी,इस तस्वीर ने उसे आंख बंद करने ही नहीं दिया
रात भर करवट बदलते ही निकल गई. आज सुबह सुबह ही वो उसी नदी किनारे पहुंच गई थी जहाँ उसे डूबने से बचाया गया था.
की तभी पीछे से किसी के सरसराहट की आवाज़ आति है
"सुंदरी कामवती तुम सुबह सुबह यहाँ?!
कामवती चौंक के पीछे पलटती है तो उसके दिल को करार आता है, पीछे सुंदर सा नौजवान गोरा सुडोल कद काठी लिए कोमल नागेंद्र खड़ा था.
हालांकि वो भी इसी आस मे आया था की कामवती को देख सके मिल सके आखिर उसे अपने अंतहीन जीवन का उजाला जो दिखा था कामवती मे.
नागेंद्र :- हाँ सुंदरी मै!
कामवती :- ये क्या सुंदरी सुंदरी बोल रहे हो मै कोई सुंदरी नहीं कामवती नाम है मेरा.
नागेंद्र :- नाम से भी ज्यादा सुन्दर हो तुम.ऐसा बोल नागेंद्र कामवती के पास बैठ जाता है
कामवती का दिल जोर जोर से धड़क रहा था जिस पुरुष के ख्याल ने उसे रात भर सोने ना दिया वो उसके करीब बैठा था.
कामवती थोड़ा कसमसाने लगी उसे समझ ही नहीं आ रहा था की क्या बोले क्या करे.
"नाम क्या है तुम्हारा?" जो निकला यही निकला कामवती के मुख से.
नागेंद्र जो की इतने पास से पहली बार दीदार कर रहा था कामवती के हालांकि उसे बचाते वक़्त कामवती के अंगों को छूने का मौका जरूर मिला था परन्तु ये अहसास अलग था आज इस अहसास मे प्यार था चाहत थी.
"नागेंद्र नाम है मेरा पास के गांव विष रूप मे ही रहता हूँ "
नागेंद्र से बड़ी सफाई से खुद को आम आदमी की तरह ही पेश किया,परन्तु था तो जहरीला ही ना, उसके शरीर से आति गंध लहर कामवती के दिमाग़ को झकझोर रही थी.
उसे लग रहा था जैसे आंखे भारी हो रही है, परन्तु उसे मन का अहसास समझें कामवती नजरअंदाज़ करती रही.
"तुम्हारे घर मै कौन कौन है?"
कामवती जैसे होश मे आई "वो...वो...मम्मी पापा और मै " बोलती हुई कामवती ने अपना चेहरा नागेंद्र की और घुमा दिया
दोनी की नजरें मिल गई,कामवती ने जैसे ही नागेंद्र की आँखों मे देखा उसे अजीब सा सम्मोहन हुआ वो नागेंद्र से पहले ही आकर्षित थी परन्तु अब तो जैसे मौसम ही रूहाना लगने लगा दिल की धड़कन थमने लगी.
इस वक़्त नागेंद्र दुनिया का सबसे कामुक पुरुष मालूम होता था.
कामवती ने इतना सुन्दर पुरुष कभी नहीं देखा था वो उन आँखों मे खोने ही लगी की
"कम्मो...ओह..कम्मो...कामवती कहाँ है तू?"
नागेंद्र ने पलट के देखा तो गांव से कुछ लड़किया नदी की ओर ही चली आ रही थी.
"अच्छा कामवती मे चलता हूँ कल फिर यही मिलूंगा "
कामवती को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था वो सिर्फ हूउउ...ही बोल पाई वो एक टक जाते नागेंद्र को देखती ही रह गई.
"कामवती....ऐ कामवती..इतनी सुबह नदी क्यों आ गई?"
विमला ने कामवती को लगभग झंझोड़ते हुए पूछा.
विमला कामवती की खास सहेली है
कामवती जैसे नींद से जागी हो.."वो...वो....कुछ नहीं आज आंख जल्दी खुल गई तो नित्य कर्म के चली आई "
तुम लोग निपटो मै चलती हूँ.
बोल कामवती तुरंत उठ के चल पडी अपने घर की ओर
आज उसका मन दिमाग़ कुछ भी उसके हाथ मे नहीं था उसकी आंखे जैसे पथरा गई थी उसके सामने सिर्फ नागेंद्र की खूबसूरत गहरी आंखे थी.
"कौन है ये नागेंद्र कैसा जादू कर दिया है इसने मुझे पे? कैसे हलचल मची है मुझमे "
कामवती इसी सोच मे डूबी चलती जा रही थी
कामगंज जाने के लिए बीच रास्ते मे छोटा सा जंगल सा पड़ता था कामवती चली जा रही थी धीरे धीरे कुछ सोचती हुई...
की तभी उसका हाथ किसी मजबूत चीज ने पकड़ लिया.
"कामवती यहाँ क्या कर रही हो?"
कामवती एक झटके मे ही अपने ख्यालो से बाहर आई ओर पीछे को पलटी तो पाया की एक मजबूत कद काठी चौड़ी छाती के मर्द ने उसका हाथ पकड़ा हुआ है.
बालो से भरी हुई छाती
एक सच्चा मर्द खड़ा था कामवती के आँखों के सामने
"तत...त...तुम?" कामवती ऐसे कामुक बलशाली मर्द को अपने इतना नजदीक पा के कांप उठी उसकी आवाज़ हलक से कांपती हुई निकली
"हां मै वीरा....तुम्हे अकेले जाता देखा तो सोचा कुछ बात चीत कर लू."
कामवती की तो बंन्छे ही खिल गई आज उसका हसीन दिन था पहले नागेंद्र जैसा कोमल प्यार के अहसास से भरे मर्द से मिली फिर ये वीरा से जो सम्पूर्ण कठोर मर्दानगी से भरपूर था.
दोनों ही उसके नींद के चोर थे.
कामवती :- अच्छा जी तो मेरा पीछा कर रहे हो तुम?
वीरा :- नहीं कामवती मै तो जंगल घूमने आया था तुम जाती दिखी मैंने आवाज़ भी दी लेकिन पता नहीं कहाँ खोई थी तुम?
सुना ही नहीं मज़बूरी मे तुम्हारा हाथ पकड़ना पडा.
कामवती का ध्यान वीरा के हाथ पे जाता है कितना मजबूत और बड़ा हाथ था कितनी मजबूती से पकड़ा हुआ था.
"हाथ तो छोडो तोड़ोगे क्या?"
वीरा :- ओह माफ़ करना आओ तुम्हे जंगल के बाहर तक छोड़ दू.
कामवती का हाथ तो छूट गया, पर गर्माहट का अहसास नहीं गया " कितने गरम हाथ है इस वीरा के "
कामवती :- अच्छा वीरा तुम कहाँ रहते हो?
वीरा :- यही पास मे घुड़ मे
"अच्छा....की तभी कामवती आगे रखे पत्थर से टकरा गई ओर गिरने ही लगी थी की फिर दो जोड़ी मजबूत कठोर हाथो ने उसे थाम लिया.
वीरा के हाथ पीछे से कामवती को थामे हुए थे "कहाँ ध्यान है तुम्हारा "
वीरा थोड़ा सम्भलता है तो पाता है की उसके हाथ पीछे से कामवती के बड़े बड़े स्तन को भींचे हुए थे उसके कठोर हाथो मे मुलायम अहसास हो रहा था.
और कामवती जो पूरी तरह से आगे को लटक गई थी अपनी छाती इस कदर दबने से सिसक उठी...आअह्ह्ह....वीरा.
वीरा ने स्तन पकडे ही वापस कामवती को पीछे खिंच लिया.
छाती पे पड़ता लगातार दबाव कामवती के बदन मे सिहरन पैदा कर रहा था ना चाहते हुए भी उसके स्तन से निकलता विधुत का झटका सीधा चुत तक गया.
कामवासना के लिए ललायित रहने वाली कामवती को आज पहली बार किसी मर्द के कठोर हाथ से चुत से पानी बहने का अहसास हुआ.
"वो....वो...माफ़..माफ करना गलती से पकड़ लिया "
कामवती तो ये सुन शर्मा गई उसके पास कोई जवाब नहीं था..वो बिना कुछ बोले दौड़ चली...
पीछे वीरा उसकी लहराती बड़ी गांड को देख ही रहा था की कामवती पीछे पलट के एक पल के लिए वीरा को देख मुस्कुरा दी...कामवती बालो से भरी चौड़ी छाती को नजर भर देख लेने के बाद पलट के भाग चली अपने गांव की ओर.
उसके दिल मे प्यार और चुत मे पानी था जिंदगी मे ये अहसास पहली बार था.
प्यार और कामवासना का संचार एक साथ जन्म ले रहा था.
"कामवती....ओह कम्मो...कब तक सोयेगी चल उठ जा"
कामवती कसमसा के आंखे खोल देती है सामने उसकी माँ रतिवती उसे उठा रही थी.
"देख सुबह हो गई है,ठाकुर साहेब भी आ गए है " रतिवती बोल के कमरे से बाहर निकल जाती है.
कामवती अभी भी खोई हुई थी
"ये कैसा सपना था,ये कैसा अहसास था? बिलकुल सच लग रहा था.
तभी उसका ध्यान अपनी जांघो के बीच होती खुजली पे जाता है उसे कुछ अजीब सा गिलापन लगता है वहा.
"ये मेरी योनि गीली कैसे हो गई?"
वो सुन्दर युवक कौन था जिसके आँखों मे देखते ही मुझे ये दुनिया खूबसूरत लगने लगी थी और जंगल मे मिला वो लम्बा चौड़ा आदमी जिसकी एक स्पर्श से ही मेरी योनि गीली हो गई थी?
सुबह हो चुकी थी सब तरफ सब सामन्य था.
रतिवती रात भर चुदी थी तो जल्दी ही नहाने चली गई.
रुखसाना हवेली से जा चुकी थी.
असलम अपनी योजना के साथ सो चूका था रात भर उसने मेहनत की थी.
ठाकुर साहेब अभी भी नंगे ही अपने कमरे मे सोये पड़े थे.
कामवती के मन मे हज़ारो सवाल और कामवासना उठ रही थी जिसका जवाब उसे ढूंढना था.
बने रहिये....कथा जारी है..
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