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नागमणि -31

 अपडेट -31


गांव घुड़पुर


सुबह की पहली किरण पड़ते है वीरा अपने घुड़ रूप मे तब्दील हो चला वो अपने हिस्से की प्रेम कहानी रूपवती को सुना चूका था.

रूपवती :- वाकई वीरा तुम सच्चे प्रेमी हो लेकिन नागेंद्र ने कामवती की हत्या कर ठीक नहीं किया.

वीरा :- उसे तो मौत मेरे हाथो ही मिलेगी बस कामवती को पा लू एक बार

वीरा की आँखों मे गुस्सा था परन्तु रूपवती के दिल मे चिंता घर कर गई थी अपने भाई विचित्र सिंह के लिए.

रूपवती :- वीरा अब तो हमें अपने भाई की और ज्यादा फ़िक्र होने लगी मैंने भी लालचवस किस खतरनाक जगह भेज दिया है कही नागमणि के चक्कर मे नागेंद्र उसके भी प्राण ना ले ले.

वीरा :- चिंता जायज है आपकी मालकिन, डर मुझे भी है छोटे ठाकुर साहेब की खेर खैरियत के लिए मुझे विष रूप जाना होगा मालकिन

रूपवती :- हाँ वीरा जाओ पता लगाओ कैसा है हमारा भाई?

वीरा तुरंत सरपट...दौड़ चलता है अर्धनग्न रूपवती बस उस तूफ़ान को उड़ता देखती रह जाती है.


यहाँ विष रूप ठाकुर की हवेली के तहखाने मे.


यहाँ नागेंद्र भी अपने हिस्से की प्रेम कहानी मंगूस को सुना चूका था.

मंगूस :- मित्र नागेंद्र तुम सच्चे प्रेमी हो तुमने दिलो जान से चाहा था कामवती को परन्तु उस वीरा ने उसकी हत्या कर तुमसे तुम्हारा प्यार छीन लिया

नागेंद्र :- मित्र मंगूस तुमने मेरी कीमती मणि खो के मुझे अपाहिज कर दिया है.

मंगूस :- माफ़ करना मित्र अब वो मणि तुम्हारी है तुम्हे ही मिलेगी मै ले के आऊंगा वापस भी.

और उस वीरा की मौत तुम्हारे हाथो ही होंगी.

उसने मेरी दीदी को बहका के मणि हासिल करना चाही.

नागेंद्र के आँखों मे भी अंगार थे "लेकिन कामरूपा मिलेगी कहाँ?"

मंगूस :- चिंता मत करो मित्र मेरा नाम भी चोर मंगूस है पाताल आसमान जहाँ होंगी उसे ढूंढ निकलूंगा मै.


रुखसाना भी जल्दी जल्दी दौड़ती चली जा रही थी अपने गांव कामगंज की और जहाँ उसके अब्बा मौलवी साहेब उसका इंतज़ार कर रहे थे.

रुखसाना घने जंगल मे झरने किनारे से निकल रही थी.

"आअह्ह्ह.....फिर वही खुसबू ,वही मादक गंध पास से ही आ रही है " एक विशालकाय आकृति अँधेरी गुफा से बाहर निकल सरसरा गई.

रुखसाना सब से बेखबर जल्दी जल्दी जंगल पार कर लेना चाहती थी.

"इतनी जल्दी भी क्या है घुड़वती?"

रुखसाना के पैर जहाँ थे वही जम गए उसके कान मे खार्खरती भारी आवाज़ पडी उस आवाज़ मे जैसे कोई हुकुम था.

रुखसाना पीछे पलटी तो उसके होश उड़ते चले गए....उसके पीछे भयानक सांप जो की कमर से ऊपर इंसान था और नीचे से सांप...

उसने ऐसा नजारा तो कभी देखा ही नहीं था.

सपने मे भी ऐसी कल्पना नहीं की थी.

रुखसाना का दिल इस भयानक मंजर को देख धाड़ धाड़ करने लगा उसके मुँह से जोरदार चीख गूंज उठी....आआहहहहहह...हहहहहह.......वववववव....

ये आखिरी चीख थी उसका दिल इस भयानक जीव को और ना झेल सका रुखसाना जहाँ थी वही गिरती चली गई.

"लो घुड़वती तो मुझे देखते ही गश खा गई " हाहाहाहाहाहा.

मेरा लंड कैसे झेलेगी

सर्पटा अठ्ठाहस लगा देता है उसकी पूँछ रुखसाना के बदन को लपेटने लगती है.


सर्पटा अपनी गुफा की और रुखसाना को अपने आगोश मे समेटे चल पडा.


जंगल मे कही....तिगाड़ तिगाड़ तिगाड़.....टप टप टप..वीरा लगातार दौड़े जा रहा था की तभी एक जोरदार चीख गूंज उठी

आआहहहह.....हहहह.....ववववव....

"ये....ये....कैसी आवाज़ है?"

हे भगवान ये आवाज़ पहचानी क्यों लगी मुझे?

ये तो मेरी प्यारी बहन घुड़वती की आवाज़ थी?

परन्तु ये कैसे संभव है... हे घुड़देव क्या हो रहा है ये?

तिगाड़ तिगाड़ तिगाड़ ......वीरा आवाज़ की दिशा मे दुगने वेग से दौड़ पड़ता है.



ये सब क्या चक्कर है नागेंद्र और वीरा ही कामवती के हत्यारे है?

क्या है इन दोनों की प्रेम कहानी जो दोनों ही सुना चुके.

क्या मंगूस और रूपवती भी एक दूसरे के खिलाफ हो जायेंगे?

ये रुखसाना और घुड़वती का क्या सम्बन्ध है?

बने रहिये...कथा जारी है...

और हाँ दोस्तों अब पिछले जन्म की कहानी कामवती की यादो मे ही चलेगी.

आप देखेंगे की कैसे उसे अपने वजूद और प्यार का अहसास होता है.


***************


यात्रिगण कृपया ध्यान दे दिल्ली से चल के ट्रैन संख्या **** विष रूप पहुंच चुकी है.

सुबह की किरण के साथ ही ट्रैन विष रूप शहर आ चुकी थी.

यात्री ट्रैन से उतरने लगे थे, इसी भीड़ मे बहादुर बड़े बड़े भरी बैग थामे जैसे तैसे ट्रैन से उतर गया था पीछे इंस्पेक्टर काम्या अपने चिर परिचित बेफिक्र अंदाज़ मे बहादुर के पीछे पीछे चल रही थी.

"लगता है कोई विलयती मैम है "

पीछे से आती भीड़ से किसी की कानाफुंसी सुनाई पडी.

"देखो बेशर्म को कैसे कपडे पहने है,नंगी ही आ जाती " दो महिलाये खिसयानी सी हसीं हसती हुई बोली.

कुछ मंचले लड़के "गांड देख साली की "

अंग्रेज़ लोग चले गए अपनी औलादे छोड़ गए.

दूसरा लड़का "काश इसकी नंगी गांड ही देखने को मिल जाये तो जीवन सफल हो जाये "

सबकी निगाहे बलखाती मटकती चाल मे चलती काम्या पे ही थी

तो इस कद्र स्वागत हुआ था काम्या का उस भारत मे जिस के लिए ऐसे परिधान,खुलापन अच्छी बात नहीं समझी जाती थी.

परन्तु काम्या के लिए ये शब्द आम थे उसे मजा आता था अपनी ऐसी तारीफ सुन के,

बहादुर :- मैडम आपके घर से तो कोई लेने ही नहीं आया आपको?

काम्या :- हाँ बहादुर घर पे तार तो भिजवा दी थी ना तूने?

बहादुर :- हाँ मैडम माँ कसम भिजवा दिया था उसी दिन.

बहादुर इतने मासूमपन से बोला की काम्या की हसीं निकल गई.

काम्या :- साले तुझे पुलिस मे किसने रख लिया?

बहादुर काम्या को हसता देखता ही रह गया "कितनी खूबसूरत है मैडम "

मैडम वो मेरी माँ एक साहेब के काम करती थी तो उन्होंने ही जुगाड़ कर के.....

"बस बस रहने दे अपनी माँ की कहानी तू हज़ार बार सुना चूका जा, जा के तांगा ले के आ " काम्या ने बहादुर को बीच मे ही टोकते हुए बोला.

काम्या मन ही मन सोचने लगी "पापा आये क्यों नहीं माँ भी नहीं आई?

पापा के ट्रांसफर के बाद पहली बार विष रूप आई हूँ "

घर कैसे जायेंगे? घर कौनसा है ये तो पता ही नहीं है?

की तभी बहादुर तांगा ले आया.

तांगेवाला:- कहिये बीबी जी कहाँ जाना है?

काम्या :- शहर मे जो पुलिस कॉलोनी बनी है वही.

चलिए 2rs लूंगा पुरे मंजूर हो तो बताओ. तांगेवाला काम्या को ऊपर से लगाई नीचे तक घूरते हुए बोला.

बहादुर सामान रख खुद बैठ गया.

काम्या :- साले अपने ससुराल आया है क्या?

बहादुर को अपनी गलती का अहसास होता है.

"वो...वो....मैडम.....वो..माफ़ करना हीहीही...

तांगा चल पड़ता है..


इधर मंगूस भी हवेली के बाहर निकल चाय की दुकान पे बैठा था उसे समझ नहीं आ रहा था की कामरूपा उर्फ़ भूरी काकी को कहाँ और कैसे ढूंढे?

"यार बिल्लू कल तो मजा ही आ गया " हेहेहे....

बिल्लू,कालू,रामु भी चाय की दुकान की और ही आ रहे थे,

कालू :- 3चाय ला बे नींद आ रही है

चायवाला :- जी मालिक

"मालिक बुरा ना मैने तो बात पुछु?" मंगूस ने बीच मे ही टोकते हुए पूछा

तीनो ने नजर उठाई सामने मैला कुचला सा लड़का बैठा था.

बिल्लू :- क्यों बे लल्ले क्या तकलीफ है?

मंगूस :- मालिक भूरी काकी से काम था?

रामु :- तू कौन? और क्या काम है काकी का?

मंगूस :- मालिक ठाकुर साहेब के खेतो पे काम करता हूँ,काकी से कुछ रुपये उधार लिए थे तो वही वापस करने आया हूँ.

कुछ दिनों से काकी खेतो पे भी नहीं आई?तो सोचा हवेली ही आ जाऊ.

बिल्लू :- लल्ले तूने ठीक किया लेकिन भूरी काकी हवेली मे भी नहीं है.

कालू :- ला पैसे हमें दे दे हम दे देंगे उसे

मंगूस :- नहीं मालिक मै उन्हें ही दूंगा आप बता दे की कहाँ गई है वो?

रामु :- पता नहीं बे कहाँ मर गई?

मंगूस :- मतलब?

रामु :- बिल्लू ने उसे कल शाम जंगल मे देखा था फिर आगे पता नहीं...

"अच्छा " मंगूस सोच मे पड़ जाता है.

"अच्छा मालिक चलता हूँ " मंगूस निकल पड़ता है उसे अपना रास्ता दिख गया था.

बिल्लू :- और सुन बे मिल जाये तो हवेली भी ले आना उसे हाहाहाहाहा....

"जी...जी...मालिक "

मंगूस अपने लक्ष्य की और बढ़ चला था.


इंस्पेक्टर काम्या और बहादुर भी पुलिस कॉलोनी पहुंच गए थे.

बहादुर :- कौनसा घर है मैडम आपका?

काम्या :- पता नहीं पिताजी के ट्रांसफर के बाद मै खुद पहली बार आई हूँ.

अंदर चल के पूछ लेंगे.

बहादुर सामान लिए आगे बढ़ चला.

दोनों जैसे ही आगे बड़े तो एक मकान के बाहर खूब भीड़ जमा थी खुसफुस्स हो रही थी.

"बताओ इतने नेक और शरीफ आदमी को कितनी बेदर्दी से मारा है "

कुछ आदमी औरत आपस मे फुसफुसा रहे थे.

काम्या भी भीड़ की और बढ़ चली उसके दिल मे कुछ अजीब होने लगा की जैसे कुछ टूट गया हो.

अनजानी सी आशंका उसे घेरने लगी.

काम्या भीड़ को चिरती हुई आगे बड़ी सामने सफ़ेद कफन मे लिपटी दो लाश पडी थी.

कुछ पुलिस हवलदार आस पास खड़े थे एक लड़का उन लाशो को देख देख रोये जा रहा था...

काम्या :- हवलदार साहेब क्या हुआ है यहाँ? कौन है ये लोग

ना जाने क्यों ये सवाल पूछते हुए काम्या का दिल लराज जा रहा था हलक सूखता सा महसूस हो रहा था.

की तभी एक हवा का झोंका आता है और दोनों लाशो से लगभग कफन हट जाता है.

वातावरण मे एक जोरदार चीख गूंज उठती है.माँ....माँ......मममम्मा.....पापा....पापाआआआआ.....

काम्या चीखती हुई दोनों लाशो मे धाराशाई हो गई उसके आँसू फुट पड़े चीख चीख के रोने लगी.

सभी लोग हैरान थे,उस रुन्दन को सुन,नजारा देख वहा खड़े सभी लोगो की आँखों मे आँसू आ गए.

बहादुर :- मैडम सम्भालिये खुद को सम्भालिये....

पास खड़ा हवलदार रामलखन "आप ही है दरोगा वीरप्रताप की बेटी?"

काम्या आँखों मे आँसू लिए मुँह ऊपर करती है खूबसूरत काम्या का चेहरा विक्रत हो गया था.

"हाँ मै ही हूँ काम्या आज सालो बाद लौटी तो अपने माँ बाप को देख भी ना सकी?"

किसने किया? कैसे हुआ ये सब?

पास बैठा सुलेमान काम्या के पास आया और सारी कहानी कहता चला गया.

कैसे दरोगा ने रंगा बिल्ला को पकड़ा था और कैसे रंगा बिल्ला ने बदला लिया..

"हे भगवान....हे भगवान.....ये कैसी लीला है तेरी इसका मतलब मुझे मेरे ही बाप की नाकामी को पूरा करने भेजा था.

मेरे पिता ही विष रूप के थानेदार थे "

बस और दुख बर्दास्त ना कर सकी काम्या अपने माँ बाप की लाश के ऊपर ही बेहोश हो गई.

बहादुर और सुलेमान काम्या घर के अंदर ले चले बाहर राम लखन और बाकि हवलदार दरोगा और कालावती के अंतिम संस्कार की तैयारी करने लगे.


अपडेट -73


दरोगा वीर प्रताप की हत्या की खबर चारो तरफ फ़ैल गई थी और साथ मे फ़ैल गई थी रंगा बिल्ला की दहाशत भी.

दोपहर का समय हो चला था,काम्या भी होश मे आ गई थी लेकिन उसकी आँखों मे सुना पन था.

नदी किनारे अंतिम संस्कार की तैयारी हो चुकी थी

आस पास के गांव के ठाकुर जमींदार और नागरिक भी आये हुए थे इसी भीड़ मे रंगा बिल्ला भी शामिल थे.

तभी काले लिबास मे लिपटी काम्या अग्नि देने आई.

लोगो मे खुसर फुसर शुरू हो गई.

"बताओ बेचारी अनाथ हो गई " क्या करेगी अब ये

रंगा जो कम्बल ओढे खड़ा था "कौन है ये लड़की "?

भीड़ मे खड़े ग्रामीण से पूछा

ग्रामीण :- दरोगा साहेब की अभागी बच्ची है आज ही शहर से पढ़ाई कर लौटी है..

बिल्ला :- देखो भगवान भी कैसे कैसे दुख दिखता है.

दूसरा ग्रामीण :- रंगा बिल्ला से कौन बच पाया है आखिर.

आस पास के गांव वालो ने तो सारा धन अनाज ठिकाने लगाना शुरू कर दिया है.

अन्य ग्रामीण :- भगवान बचाये रंगा बिल्ला से.

अजी मै तो कहता हूँ कभी सामना हो जाये तो जो हो चुप चाप उनके हवाले कर दो, जान है तो जहान है.

रंगा बिल्ला वापस से अपनी दहशत देख के ख़ुश थे, उनकी राह अब आसान थी उनका दबदबा वापस से कायम हो चूका था.

दोनों पलट के भीड़ से बाहर निकलने लगते है की तभी उनके कान मे चित्कार सुनाई देती है.

"तुम जहाँ भी होंगे तुम्हे कुत्ते की मौत दूंगी मै " काम्या अपने माँ पिता की चिता की कसम खाती है और फफ़क़ फफ़क़ के रो पड़ती है..

इस चित्कार मे एक सिहारन थी जो की रंगा बिल्ला को अपने बदन मे महसूस होती है, खुद को संभाल के वो पलट के देखते है परन्तु उन्हें काम्या पीछे से दिखाई देती है उसका चेहरा दुखी नहीं देता.

भीड़ काम्या को धंधास बंधती है.इन सब मे ठाकुर ज़ालिम सिंह भी थे.

"धैर्य रखो बेटी काम्या, और जो मदद चाहिए हो मुझसे मांग लेना, तुम्हारे पिता ने मेरी बीवी की रक्षा की थी.

बहुत बहादुर थे तुम्हारे पिता"

भीड़ धीरे धीरे जाने लगी बवहए थे सिर्फ सुलेमान,रामलखन,बहादुर और आँखों मे अँगारे लिए काम्या....इंस्पेक्टर काम्या.


इन सब से दूर जंगल मे किसी सुनसान कोने मे उत्सव का माहौल था


नरभक्षी काबिला मुर्दाबाड़ा जहाँ भूरी एक पतले से कपडे मे लिपटी किसी देवता की मूर्ति के सामने बंद गुफा मे सर झुकाये बैठी थी उसे अपना अंत नजर आ रहा था उसके लालच,हमेशा जवान बने रहने की चाह ने उसे इस मुकाम पे पंहुचा दिया था.

सेनापति मरखप :- सरदार सारी तैयारी हो गई है हमें देवता का अहान करना चाहिए.

सरदार भुजंग :- हाँ भाई इंतज़ार तो हमें भी है इस गद्दाराये बदन की मालकिन को भोगने का.

हाहाहाहहह....सारे काबिले के मर्द हस पड़े.

आज भूरी की शामत भरे काबिले के सामने उसका बदन नोचा जायेगा.

भुजंग :- हे देवता हमें काम शक्ति प्रदान कर ताकि इस स्त्री का कामरस का भोग तुझे जल्द से जल्द लगा सके.

ऐसा बोलते ही वहा खड़े सभी मर्दो ने अपना अपना लंगोट उतार फेंका.

कामरूपा ने नजर उठा के देखा तो उसके तोते उड़ गए,काटो तो कहीं नहीं आंखे पथरा गई

उसे अपनी मौत निश्चित दिखाई दी.

7 काले भयानक मर्द उसे घेरे खड़े थे, बिलकुल नंगे सभी के जांघो के बीच लम्बे मोटे काले भयानक गंध छोड़ते लंड लटक रहे थे, उस लंड के पीछे भारी भारी टट्टे लटके थे.

लगता था की किसी स्त्री पे गिर भर जाये तो प्राण निकाल ले.

सातों लोग नीचे बैठी कामरूपा के चारो और चक्कर काटने लगे उस अपने हाथ से चुटकी मे कोई पीला लाल ग़ुलाल जैसा पदार्थ कामरूपा पे छिड़कने लगे.

और कोई मंगल गीत भी गाते जा रहे थे... देवता प्रसन्न हो...देवता प्रसन्न हो.

नीचे बैठी कामरूपा को वैसे ही कुछ समझ नहीं आ रहा था ऊपर से सभी के लंड से निकलती तेज़ गंध उसके बदन को झकझोड़ रही थी, कामरूपा कामवासना से भरी कामुक स्त्री थी खुद को कैसे संभालती.

ऊपर से ग़ुलाल जैसी धूल उस के बदन को लगातार मदहोशी की गहराई मे धकेल रही थी.

सातों नरभक्षी नीचे बैठी कामरूपा के चारो और चक्कर लगाए जा रहे थे कामरूपा के कामुक बदन को देख देख लार टपका रहे थे.

तभी सरदार भुजंग ने अपने लंड का तेज़ प्रहार कामरूपा के गाल पे किया,कामरूपा सिहर उठी उसके हलक से हलकी सी काम भरी सिसकारी निकाल पडी.

"आअह्ह्ह.....ये क्या हो रहा है मुझे मेरा बदन जैसे जल रहा है "

भुजंग :- हाहाहाहा....हे सुन्दर स्त्री आजतक कोई महिला हमारे लिंग से बच नहीं पाई है.

तू तो वैसे भी काम से भरी स्त्री मालूम होती है.

सच ही तो कह रहा था सरदार भुजंग आखिर कामरूपा अपने जवानी अपने यौवन को हमेशा बरकरार रखना चाहती थी ताकि काम सुख का आनंद ले सके.

परन्तु आज यही कामवासना उसे मौत के कगार पे ले आई थी.

यहाँ कामवती अपना वीर्य बहती की उसकी आत्मा भी उसका साथ छोड़ देती.

अजीब रीती रीवाज था मुर्दाबाड़ा काबिले का.

सेनापति मरखप और बाकि के 5 काबिले वाले वाले भी अपने अपने लंड का प्रहार कामरूपा के बदन पे करने लगे.

कामरूपा के बदन की गर्मी बढ़ती ही जा रही थी,वो लाख कोशिश कर रही थी खुद को रोकने की परन्तु माहौल ऐसा कामपूर्ण हो चूका था की बर्दाश्त करना मुश्किल था.

कामरूपा का हाथ ना चाहते हुए भी अपनी जांघो के बीच जा कुछ टटोलने लगता है,जिस बात का डर था हुआ भी वही.

कामरूपा की उंगलियां गीली हो गई उसकी चुत से पानी रिस रहा था,ये सबूत था की उसका बदन सम्भोग के लिए तैयारी कर रहा है उसका जलता बदन इस बात का गांवह था कि उसका स्सखलन नजदीक है.

"नहीं...नहीं....ऐसा नहीं हो सकता " कामरूपा वासना मयी आवाज़ मे चीख पडी.


वही जंगल मे चीख की आवाज़ का पीछा करता वीरा झरने के पास पहुंच चूका था.

"ये तो वही झरना है जहाँ मेरी प्यारी बहन घुड़वती की हत्या की गई थी?" वीरा के सामने उसकी बहन की नंगी खून से लथपथ लाश पडी थी.

वो दृश्य याद कर उसकी आँखों मे आँसू आ गए.

"तो क्या वो चीख मेरा भ्रम थी?"

"नहीं नहीं...मैंने चीखने की साफ आवाज़ सुनी थी.

मुझे आस पास तलाश करना होगा आवाज़ घुड़वती जैसी क्यों थी?

काली गुफा के अंदर सर्पटा रुखसाना के बदन को अपनी कुंडली मे दबाये बैठा था.

रुखसाना को होश आ रहा घर धीरे धीरे....उसकी नाक मे एक अजीब सी गंध आ रही थी ये गंध उसे जानी पहचानी सी लग रही थी.

सर्पटा :- हाहाहाहाहा.....कुदरत का खेल देखो इतने बरसो बाद तुम फिर से वही रंग रूप वही यौवन लिए पैदा हुई हो घुड़वती.

रुखसाना लगभग होश मे आ चुकी थी.

रुखसाना :- कौन...कौन....ही तुम उसके लफ्ज़ो मे साफ खौफ दिखाई पड़ता था.

ऐसा डरावना नजारा उसके दिल की धड़कन रोक रहा था.

सर्पटा :- मुझे नहीं पहचाना घुड़वती?

रुखसाना :- कौन...कौन...घुड़वती मेरा नाम रुखसाना है.

सर्पटा :- अरी मुर्ख..आज टी रुखसाना है कभी घुड़वती थी जवान कच्ची उम्र की घोड़ी.

रुखसाना :- क्या बकते हो? रुखसाना को कुछ समझ नहीं आ रहा था की हो क्या रहा है.

सर्पटा अपना अर्ध सर्प रूप त्याग पूर्ण मानव रूप मे आ जाता है.

रुखसाना का तो आश्चर्य के मारे बुरा हाल था उसने आज तक जो किस्से कहानी मे सुना था वो आज अपनी आँखों के सामने देख रही थी..

सर्पटा :- तू तो ऐसे चौक रही है जैसे इच्छाधारी प्रजाति पहली बार देखि हो

तू खुद भी तो इच्छाधारी ही है.

रुखसाना:- मै...मैम....इच्छाधारी रुखसाना को सब कुछ सपना सा लग रहा था.

सर्पटा :- पिछली बार तू मेरा लंड झेल नहीं पाई थी आज देखते है झेल पाती है या नहीं झेल गई तो मेरी रखैल बनेगी तू

हाहाहाहाहा......भयानक हसीं माँ मंजर गूंज उठा

हसीं इतनी भयानक थी की रुखसाना सर से लेकर पाऊं तक पसीने से नहा गई,उसका कलेजा मुँह को आ गया था.

सर्पटा ने अपनी कमर पे लिपटा कपड़ा एक दम से हटा दिया.

ईई.ईई......आआहहहह.....एक जबरजस्त चीख उसके हलक से निकल गई.

सर्पटा की जांघो के बीच एक काला मोटा भयानक लंड झूल रहा था, लिंग जांघो की जड़ से निकल घुटने तक लटका हुआ था.

सर्पटा :- अभी से चीख पडी घुड़वती? अभी तो यही लंड तेरी चुत और गांड मे जायेगा तब क्या करेगी.

रुखसाना खूब खेली थी खूब चुदी थी परन्तु ऐसे लंड और ऐसे खूंखार इरादा लिए आदमी से कभी नहीं.

वो भागने को हुई परन्तु उसे ऐसा लगा जैसे उसके पैरो मे जान ही नहीं है जैसे ही उठी तुरंत धाराशाई ही गई.

डर है ही ऐसी चीज... पैर को कपकम्पा देता है.

सर्पटा अपने लंड को झूलाता हुआ रुखसाना की और बढ़ चलता है...

की तभी....धाड़.....

दूर हट हरामी मेरी बहन से.

सर्पटा के सीने पे एक जोड़ी मजबूत लात का प्रहार होता है.

वीरा :- तू आज तक जिन्दा कैसे है तुझे तो मैंने अपने हाथो से मारा था? वीरा की आवाज़ मे भरपूर आश्चर्य था.

रुखसाना नीचे जमीन पे पडी हुई आश्चर्य के मारे मरी जा रही थी

"ये क्या ही रहा है आज....पहले ये सांप और अब ये बोलने वाला घोड़ा?

और ये मुझे अपनी बहन क्यों बोल रहा है?"

सर्पटा दूर जा गिरा था पहले से कमजोर सर्पटा वीरा का प्रहार ना झेल सका खुद को सँभालते हुए.

"तुझे मौत देने के लिए ही जिन्दा है ये नागसम्राट सर्पटा "

वीरा जो की शक्तिहिन था अपने घुड़रूप मे था.

"घुड़वती जल्दी बैठो हमें जाना होगा "

रुखसाना :- मै...मै....रुखसाना तो जैसे विक्षिप्त हो गई थी वो जी देख रही थी वो संभव नहीं था.

"उठो घुड़वती,सर्पटा के उठने से पहले उठो मुझमे अभी वो ताकत नहीं है की सर्पटा का मुकाबला कर सकूँ "

रुखसाना को कुछ कुछ बात समझ आने लगी...उधर सर्पटा भी संभल रहा था.

"वक़्त नहीं है घुड़वती जल्दी "

रुखसाना जैसे तैसे वीरा पे सवार हो गई....सऊऊऊऊ....साइईई.....वीरा किसी हवा की तरह वहा से निकाल गया.

पीछे रह गया सर्पटा " आखिर कब तक बचोगे तुम दोनों?"

तगड़ तगड़....टप टप..टप....वीरा भागे जा रहा था उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.

"मेरी प्यारी बहन "

वही रुखसाना डरी सहमी वीरा को कस के पकडे बैठी थी,. उसके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी.


तिगाड़ तिगाड़.....ये तो किसी घोड़े की आवाज़ है लगता है कोई इधर ही आ रहा है.

चोर मंगूस जो की कामरूपा की खोज मे जंगल की खाक छान रहा था उसके कानो मे पड़ती घोड़े किआवाज़ से सतर्क हो गया था.

तभी उसके सामने से एक काला लम्बा चौड़ा घोड़ा किसी स्त्री को बैठाये तूफ़ान की तरह दौड़ता निकाल गया


"ये ये....तो वीरा है दीदी रूपवती का वफादार घोड़ा जो की नागेंद्र का दुश्मन है,लेकिन ये जंगल मे क्या कर रहा है और उसकी पीठ पे कौन स्त्री बैठी थी?"

हे भगवान कही मेरी दीदी कुछ हो तो नहीं गया.

मुझे अपने घर जाना होगा,नागमणि जल्दी से जल्दी ढूंढ़नी होंगी सब इसी का चक्कर है.

क्या मंगूस नागमणि ढूंढ़ पायेगा?

कामरूपा की हवस ही उसकी मौत का कारण बनेगी?

बने रहिये कथा जारी है....


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