अपडेट -4, मेरी बेटी निशा
फिर निशा और जगदीश राय धीरे धीरे बस से उतरने लगे।
कडक्टर: अरे क्या अंकल।। कब से चिल्ला रहा हूँ यूनिवर्सिटी यूनिवर्सिटी…
जगदीश राय और निशा बस से उतर कर एक दूसरे को 5 सेकण्ड तक घूरते रहे। उन 5 सेकड़ो में वह एक दूसरे के विचार, खुशी, निराशा, शर्म सभी जानने का प्रयास कर रहे थे।
निशा की गाल, गोरी होने के कारण, गरम होने से , लाल हो गयी थी।
निशा (सर झुका कर शरमाती हुए): मैं रेस्टरूम जाना चाहती हूँ पहले।
जगदीश राय: हाँ हाँ… हम्म…यही होगा…।।बल्की मुझे भी जाना है।
निशा अपने पापा के इस बात पर हँस दी और पापा की तरफ देखा। जगदीश राय ने भी मुस्कुरा दिया।
रेस्टरूम के अंदर जाने से पहले, जगदीश राय ने निशा से कहा।
जगदीश राय: बाहर आकर यही वेट करना, कहीं जाना मत।
निशा: जी अच्छा बाहर आकर यहि वेट करूंग़ी। आप भी यही रहिये…।मुझे थोड़ा वक़्त लग सकता है।
और निशा शरारत भरी मुस्कान के साथ अंदर चलि जाती है।
जगदीश राय बिना रुके मेंस रेस्टरूम में घूस गया। आज उसे भी वक़्त लगने वाला था…।
रेस्टरूम से निशा बाहर आ गयी। उसके चेहरे पर एक सुकून था। टॉयलेट गन्दा होने के बावजूद उसने अपना पैर उठाकर , ऊँगली करके अपना सारी गर्मी निकाल दी थी।
वह बाहर आकर अपने पापा का इंतज़ार कर रही थी।
जगदीश राय कुछ देर बाद मेंस रेस्टरूम से बाहर आ गए।
निशा (शरारती अन्दाज़ में): क्यों पापा इतनी देर लगा दी?
जगदीश राय शर्माके मुस्कुरा दिया। निशा भी मुस्कुरायी।
तभी निशा की एक सहेली केतकी का आवाज़ सुनाई दिया।
केतकी: निशा तू यहाँ। फीस भरने आयी है?
निशा: हा।
केतकी: तो चल, हम सब साथ है। यहाँ से बाद में कॉलेज चलेंगे।
निशा: ओके ठीक है। पापा , मैं अपनी सहेली के साथ जा रही हूँ। आप यहाँ से ऑफिस जा सकेंगे ?
जगदीश राय: हाँ बेटी कोई बात नही। तुम लोग चलो। मैं यहाँ से घर जाऊंगा और फिर ऑफ्फिस।
निशा अपने सहेलीयों के साथ बातें कर चल दी।
जगदीश राय घर की बस की राह देखने लगा।
निशा,ने अपनी एग्जाम की फीस भरके, घर जाने का फैसला किया। अब इतनी देर लगने के बाद उसे कॉलेज जाने का मन नहीं था।
उसे अपने पापा को बीच रास्ते दग़ा देना अच्छा नहीं लग रहा था, पर वह करती भी क्या, सहेलीयों से क्या कहती?
निशा , जब घर पहुंची तो चौक गयी।पापा, सोफे पर पड़े थे। उन्होंने एक लुंगी पहनी थी, जो घुटनो तक चढा हुआ था। पापा ने शर्ट नहीं पहना था।
निशा: अरे पापा, आप यहा, ऑफिस नहीं गये।
जगदीश राय: अरे बेटी, तुम? अरे हाँ… वह एक एक्सीडेंट हो गया…। मैं बस से गिर पड़ा…।
निशा: क्या…ओ गॉड…। यह आपके घुटने पर चोट लगी है…।मुझे फ़ोन क्यों नहीं किया…?
जगदीश राय: अरे कुछ नहीं हुआ… थोड़ी सी चोट लगी है…पास के गुप्ता जी मुझे क्लिनिक ले गये। अब मैं ठीक हु…।
निशा: क्या पापा आप भी।
फिर निशा जगदीश राय के पास आयी और उन्हें पकड़कर सोफ़े पर ठीक से बिठाया। घुटने पर बहुत चोट लगी थी।
निशा: क्या कहाँ डॉक्टर ने।
जगदीश राय: बस यही की एक वीक तक ऑफिस नहीं जाना। और सहारे के साथ चलना। एक छड़ी भी दी है। और यह ओइंमेंट दिया है। और एन्टिबायटिक। और कहाँ की हाथ और पैर की गरम तेल से मालिश करना। ज्यादातर लेटे रहने को कहा है।
निशा: ठीक। यह अच्छा हुआ। अब आप ज्यादा काम तो नहीं करेंगे।
जगदीश राय: अरे कुछ नही, मैं 2 दिन में ठीक हो जाऊँगा। डॉक्टर सब ऐसे ही बोलते है…
निशा: चुपचाप लेटे रहिये। अब आप अगले मंडे ही ऑफिस जाएंगे।
उस दिन जगदीश राय का देखभाल निशा ने किया, शाम को आशा सशा ने भी उसका थोड़ा हेल्प किया।
कल दिन जगदीश राय के घुटनो का दर्द काफी कम हो गया था।
जगदीश राय: अरे बेटी, तू एक काम कर, खाना टेबल पर रख दे। मैं खा लूंगा। किचन तक मुझसे चला नहीं जाएगा।
निशा: खाना किचन में ही रहेगा। और मैं आपको खिलाऊँगी।
जगदीश राय: अरे तुझे तो कॉलेज जाना है न?
निशा: नही। आप जब तक ठीक नहीं हो जाते मैं कॉलेज नहीं जाने वाली। न आप मेरे साथ यूनिवर्सिटी आते न आप बस से गिरते…।
जगदीश राय: अरे…बेटी…छोड़ यह सब।। कॉलेज जा तू…।
निशा: पापा…। चुपचाप सोईये…कहाँ न मैंने…।
और निशा ने अपने पापा को जोर से पकड़ लिया और सोफे पर ढकेल दिया। निशा की बूब्स पापा के पेट से दब गयी। जगदीश राय को बेहत आनन्द मिला निशा को भी।
थोड़ी देर में आशा और सशा दोनों स्कूल चले गए…
दोपहर हो चली थी। जगदीश राय अब काफी आराम महसूस कर रहा था।
निशा: उफ़…।कितनी गर्मी हो गयी है। मार्च का महीना शुरू हुआ नहीं… की गर्मी इतनी…देखो मेरा पूरा टीशर्ट भीग गया …
जगदीश राय निशा की टी शर्ट देखता रह गया। वाइट टाइट टीशर्ट शरीर से चिपका हुआ था। निशा की ब्लैक ब्रा टीशर्ट से साफ़ दिख रही थी। और ब्लैक ब्रा में कैद निशा के बड़े बड़े चूचो का आकर निखर रहा था।
जगदीश राय: हाँ…।बेटी…। बहुत गर्मी तो है…।
निशा: मैं चेंज करके आती हूँ।
और निशा ऊपर अपने कमरे में चली। जगदीश राय अपने खडे लंड को सम्भालने लगा।
जगदीश राय, सोफे पर बैठ , पिछले दिन बस में हुई लंड-गाण्ड की रगड और निशा की ओर्गास्म वाली बात सोच रहा था।
तभी उसे निशा की सीडियों से उतरने की आवाज़ सुनाई दी। और निशा को देखकर उसका मुह खुला रह गया।
निशा ने सिर्फ एक शर्ट पहनी थी। शर्ट के निचे उसने कुछ नहीं पहनी थी। शर्ट का एक बटन खुला था जो उसके मम्मो के क्लवेज को दिखा रहा था। शर्ट सिर्फ गांड से थोड़ी निचे तक आ रही थी।
और गांड पर कोई पेंटी नहीं दिख रही थी।
निशा: पापा मैं ने आपकी शर्ट पहन ली। कैसी लग रही हु?
जगदीश राय: बेटी।।शर्ट तो ठीक है… पर नीचे…
निशा: पापा इतनी गर्मी है… क्या करू… शॉर्ट्स/पेंट पहनूँगी तो पिघलकर मर जाउंगी…।वैसे मैंने थोंग पहन रखी है…
जगदीश राय की हालत ख़राब हो चलो थी।
जगदीश राय: ठीक है…तो फिर…
निशा: आप तो ऐसे बोल रहे हो जैसे आप को पसंद नहीं आई।
जगदीश राय: अरे नहीं… बेटी…। अच्छी लग रही हो…।।बल्की…किसी मॉडल या हीरोइन जैसे लग रही हो…
निशा (खुश होते हुए) : सच…आप तो युही कह रहे हो…
जगदीश राय: नहीं बेटी… तुम बहूत सुन्दर हो… और इस ड्रेस में तो तुम रीना रॉय एक्ट्रेस जैसी लग रही हो…
निशा: पर आप तो कहते है की रीना रॉय जो आप की फेवरेट एक्ट्रेस है वह बहुत सेक्सी है…तो क्या मैं सेक्सी लग रही हु…।
जगदीश राय: अब बेटी… मैं कैसे…मेरा मतलब है…। मुझे कैसे…पता होगा।।
निशा: क्या पापा , क्या मैं मैं कर रहे है। सीधे बताइये न क्या मैं सेक्सी लग रही हु या नहीं…यह मत भूलना की आप मेरे पापा ही नहीं दोस्त भी है…
जगदीश राय (नज़रे चुराते हुए): हाँ सेक्सीईईई लग रही हो।
निशा: रीना रॉय की तरह।।?
जगदीश राय: रीना रॉय से भी ज्यादा…
निशा: सच…। मेरे प्यारे पापा।
यह कहकर निशा हीलते हुये आयी और अपने पापा के गालों में किस दे दी।
फिर निशा दौड कर चलि गयी। दौडते वक़्त उसके शर्ट गाण्ड से ऊपर उछल रहे थे और जगदीश राय को निशा की नंगी गाण्ड साफ़ दिखाई दे रही थी।
करीब 1 बजे को निशा खाना लगाकर , जगदीश राय को खाना सोफे पर दे दिया। और खुद सामने आकर बैठ गयी।
सामने निशा की नंगे पैर और जांघो को देख कर जगदीश राय की हलक से थूक निकल नहीं रही थी।
निशा की मुलायम जांघ मानो जगदीश राय को दावत दे रही थी की "आओ मुझे चाटो"।
निशा अपने पापा की हालत को समझ रही थी। उसे अपने पापा के सामने अंग प्रदर्शन करना बहुत अच्छा लग रहा था।
खाना खकर जगदीश राय मुश्किल से अपने रूम में जाके लेट गया। करीब 2 बजे निशा आई।
हाथ में एक कटोरी थी। वह अभी भी सिर्फ शर्ट में थी।
निशा: चलिये पापा , आपकी मसाज वाली आ गयी है…।
जगदीश राय: अरे इसकी कोई ज़रूरत नही।। मैं ठीक हु…
निशा: फिर से आप शुरू हो गए…
निशा को सिर्फ शर्ट में देखकर और वह भी बंद कमरे में , जगदीश राय के मन में एक अजीब सी घबड़ाहट फ़ैल गयी। वह दरअसल अपने आप से घबरा रहा था। वह दिन ब दिन निशा के सामने कमज़ोर हो चला था।
निशा: अगर आप को सब काम करना है तो फिर मैं किस दिन काम आऊँगी। और आपने खुद ही कहा कि, बस से गिरने के बाद आप की कमर और जोड़ों पर भी दर्द हो रहा है। तो फिर? नही। कोई बहाना नहीं चलेगा…।
निशा समझ गयी थी उसके पापा क्यों बहाना बना रहे है। उसे अब अपने पापा की कमज़ोरी पर हसी आ रही थी।
निशा (मन में) : सच कहते है लोग , मरद कमज़ोर होते है…
निशा: चलिये, अपना बुक साइड में रखिये। और सीधे लेट जाईये…हा, ऐसे… पैर सीधे…मैं पहले पैर से शुरू करती हूँ। और फिर कमर और फिर कंधा… ठीक है…
जगदीश राय: अरे बेटी… इसमें बहुत टाइम लग जायेगा…तुम जाके सो जाओ… यह सब मैं कर दूंगा…
निशा: पापा… अगर आप ऐसे जिद करते रहे तो मैं सारी दोपहर और रात यहीं गुज़ार दूँगी… इस कमरे में… इस बेड पर… आपके साथ…क्या आपको यह मंज़ूर होगा…
जगदीश राय (हड़बड़ाकर)…नही…।तुम शुरू कर दो…
निशा: यह हुई न बात…
निशा ने पापा की लूँगी को ऊपर की तरफ फेक दिया जिससे जगदीश राय की लूँगी शॉर्ट्स की तरह जांघो तक चढ़ गयी थी।
फिर निशा , बेड के साइड पर बैठ गयी। निशा की बायीं निर्वस्त्र जांघ जगदीश राय की जाँघ से चिपक गयी थी। दोनों जाँघे बहुत गरम थी।
निशा अपने पापा के स्किन के स्पर्श से कामुक तो हुई। उसने ख़ुद को को संभाल कर पैरो का मसाज शुरू किया।
करीब १० मिनट दायी पैर का मसाज करती रही। जगदीश राय को बहुत मजा आ रहा था। निशा के कोमल हाथ, उसकी गरम गोरी जाँघ का स्पर्श, उसके चूचो का मसाज के वक़्त पैरों पर लगना और पुरे कमरे में निशा और उसकी तेज़ सास। निशा की चूत भी गिली हो चलि थी।
अब निशा जगदीश राय के जांघो पर झूककर बायीं पैर का मसाज करने लगी। निशा को जगदीश राय की बाये पैर की उँगलियाँ मिल नहीं रही थी। जगदीश राय को डर लग रहा था की निशा अगर और झुकि तो उसके दोनों बड़े बूब्स उसके पैरों में मसल जाएंगे।
जगदीश राय: बेटी मैं यह पैर उठाकर यहाँ रख देता हूँ। तुम्हे आसानी होगी।
निशा: आप लेटे रहिये। मुझे कोई तकलीफ नही। मैं घुटने पर होकर मसाज कर लूंगी…
और फिर निशा उठी और अपने दाए पैर पर खडे होकर, बायीं घुटने(कनी) को बेड पर रखकर , अपने पापा के बाए पैर पर झुकी।
और ऐसा करते हुआ निशा ने जगदीश राय को वो नज़ारा दिखा दिया जिससे जगदीश राय के मुह में पानी आ गया और लंड ने लुंगी के भीतर से ज़ोर का झटका मारा।
छोटी शर्ट जो बड़े मुश्किल से गांड को छुपा रही थी, अब हार मानते हुआ निशा की पूरी गांड को खोलकर पापा के सामने पेश किया था। निशा की गांड का उपरी हिस्सा गाण्ड की दरार को चीरते हुआ ऊपर से निकल रहा था।
जगदीश राय निशा की गांड को बेशरमी से घूरे जा रहा था। जो गांड जीन्स और स्कर्ट में बड़ी लगती थी आज नंगी होने पर और भी बड़ी और सुन्दर लग रही थी।
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