अपडेट -4, मेरी संस्कारी माँ
असलम कसाई की इतनी हिम्मत बढ़ गई थी कि वो आज मेरी संस्कारी मां के सामने अपना लंड मसल रहा था, माँ को मंदिर जाते हुए देख उनके पीछे लचकती, मटकती गांड और नंगी कमर को देख कर लंड दबा रहा था.
अभी मैंने कल रात ही निर्णय लिया था की सब कुछ भूल जाऊंगा, लेकिन ये कसाई की हरकते मुझे बार बार अपनी माँ के बारे मे सोचने पर मजबूर कर रही थी.
मैं चाटता तो भाग कर मम्मी के साथ चला जाता लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया, ना जाने क्यों मुझे मेरे जिस्म मे एक अजीब सी हलचल महसूस होती थी असलम की ये हरकत को देख कर, जब भी वो मेरी माँ के को देख ऐसा करता था, गुस्सा तो आता था लेकिन एक मन ये भी कहता था आगे देखु क्या होता है?
मेरा मन देखना चाहता था कि वो कसाई क्या करेगा? और वो क्या सच मे मम्मी के पीछे जा रहा है या अपने किसी काम से?
खैर कुछ देर बाद मम्मी खेतो के साइड पतले से रास्ते से होते हुए मंदिर के सामने पहुंच गई, सामने ही बड़ा सा मंदिर था.
मंदिर थोड़ा ऊपर की तरफ था मतलब कुछ स्टेप्स चढ़के ऊपर जाना था.
मेरी मम्मी मंदिर की सीढ़ियों को छूने के लिए झुक गई, मम्मी की मादक गांड उभार कर बाहर को आ गई, महीन साड़ी से उसका आकर प्रकार पूरा समझ आ रहा था, मैंने आज महसूस किया वाकई मेरी माँ की गांड बड़ी और बाहर को उभरी हुई है.
इस पल को कोई नामर्द भी देख लेता तो उसका लंड भी फड़फड़ा जाता.
माँ की साड़ी इस कद्र ही गई थी की गांड के दोनों पाटो के बीच लाइन का उभार भी दिख रहा था.
मेरी नजर असलम कैसाई पर पड़ी, मेरा खून खोल उठा, साला हरामी दिवार के पीछे छुपा अपना कटा लंड बाहर निकाल सहला रहा था.
लेकिन पता नहीं क्यों मेरा खून, खून नहीं पानी बन चुका था. मेरा मुझ पर नियंत्रण नहीं था ऐसा अनुभव मुझे पहली बार अपनी जिंदगी में हो रहा था.
मेरी सोचने समझने की शक्ति सब खत्म हो चुकी थी, मै बस वहा जो होरहा था वो देख रहा था.
जब मम्मी झुकी तो आगे से धूप की वजह से मम्मी की साड़ी मे जांघो और सुडोल चूतड़ का अहसास साफ दिखाई दे रहा था. माँ की गांड की दरार काफी हद तक साफ दिख रही थी....
मतलब.... मतलब्ब.... माँ ने अंदर पैंटी नहीं पहनी थी, मेरे चेहरे पे हवाइया उड़ने लगी, मम्मी जब भी बाहर जाती है तो पैंटी तो जरूर से जरूर ही पहनती है, लेकिन आज जो मैंने देखा उस दृश्य ने एक बार फिर मेरे मन मे शक का बीज बो दिया की मेरी माँ ने आज पेंटी नहीं पहनी है.
मैं थोड़ा कन्फ्यूज था लेकिन कन्फर्म नहीं था कि मां ने कच्छी पहनी है या नहीं?
खैर उधर वो कमीना माँ की गांड को तरबूज बनी हुई देख कर अपना मुसल लंड अपने हाथो से तेजी से हिला रहा था.
सार्वजनिक स्थान पर कौन ऐसे मुठ मार सकता है, उसे इस बात का जरा भी डर नहीं था, मतलब वो डरता तो बिल्कुल भी नहीं था, आखिर डरता भी क्यों ये उसी का इलाका था, ऊपर से कसाईं.
खैर कुछ सेकंड बाद मम्मी उठ कर वहा की सीढ़ियों पर चढ़ने लगी, वहां पर कुछ फूल वाले भी थे जो मेरी मां को ही घूर रहे थे, शायद उन्होंने मेरी मां जैसी गद्दाराई, कामुक, शहरी औरत कभी देखी नहीं होगी?
स्लीवलेस, बैकलेस ब्लाउजसे झाँकती नंगी गोरी पीठ उनके लिए अजूबा थी,
उस दिन मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मेरी मां मेरे लिए केवल मां है, लेकिन बहुतों के लिए मेरी माँ एक औरत है, एक माल है, एक चोदने का माल है, लोग माँ को चोदना चाहते हैं, उसकी गांड चाटना चाहते है.
माँ जल्द ही मदिर के अंदर चली गई और पूजा पाठ शुरू कर दिया.
करीब 15 मिनट बाद मां वापस आई और सबको प्रसाद भी दिया जितने लोग थे वहा सभी को, कुछ भिखारी भी माँ को देख रहे थे, उनके लिए तो कुछ और ही प्रसाद था.
वहा मौजूद सभी लोग माँ को ही घूर रहे थे शायद उनके कपड़ो और उनके गद्दाराये गोरे जिस्म की वजह से.
माँ लंबी कद काठी की हट्टी कट्टी महिला थी और सुंदरता मे तो किसी जवान लड़की को भी पानी भरवा दे.
उधर उस कसाई ने अपना लंड अन्दर कर लिया था और माँ के आने का इंतजार करने लगा.
जेसे ही माँ वापस घर के लिए आने लगी वो भी खुश हो गया.
माँ वापस से उसी रोड पर चल पड़ी, सड़क पर ना के बराबर लोग थे, लगभग सुनसान ही थी.
असलम वापस से माँ के पीछे लग गया और मैं उसके पीछे,
सबसे शर्मनाक बात ये की असलम भी ये खूबसूरती देख चूका था, एक पराये मर्द ने मेरी माँ को नंगी देख लिया था.
असलम घूर घूर कर माँ की गांड देख रहा था,और मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी.
मै चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था, मेरे सामने मेरी मां को एक जवान कसाईं नंगी देख रहा था और मैं एक मुर्ख नामर्द की तरह खड़ा होकर उसको सब कुछ देखने दे रहा था.
अभी कुछ देर पहले जिस औरत को साड़ी मे देख अपना लोडा हिलाया था, अब वो संस्कारी औरत उसके सामने साड़ी कमर तक उठाए उसे 10 मीटर आगे खड़ी थी.
आज एक बार फिर मेरा सोचना सही साबित हुआ, ना ने साड़ी के नीचे कच्छी नहीं पहनी थी,
मुझे बड़ा अजीब लगा क्योंकि ज्यादातार मां हमेशा कच्छी पहनती ही है और कल ही मेरी मां ने अपनी सभी पैंटी धोई थी, और कल तो माँ पूरा दिन घर मे ही थी, लेकिन आज माँ ने कच्छी क्यू नहीं पहनी? ये बात मुझे कुछ समझ नहीं आ रही थी.
इन सब के अलावा आज मेरे घर की इज्जत हमारा स्वाभिमान, हमारा अभिमान, पापा की इज्जत, उनकी धर्म पत्नी, एक इज्जतदार घरेलु महिला, मेरी मां एक पराए मर्द, एक घिनोने कसाई मूस... म लोंडे के सामने पीठ पीछे नंगी खड़ी थी.
असलम अब तक अपना लोडा पूरा बाहर को निकाल जोर जोर से हिलाने लगा.
माँ केवल उससे कुछ मीटर की दूरी पर नंगी खड़ी थी...
मेरी माँ ने अपनी साड़ी कमर तक उठा ली और थोड़ा घुटने मोड़ झुकने लगी, गोरी मोटी गांड के दोनों पाट खुलने लगे, उनके बीच की कामुक दरार खुलने लगी,
दरार के बीच दो अनमोल खजाने हम दोनों के सामने उजागर होने लगे, माँ धीरे से अपने घुटनो के बाल वही उकडू बैठ गई.
उस 2 सेकंड के समय मे ही हम दोनों को स्वर्ग की दरार दिख गई, दो सुनहरे छेद, पसीने से गीले चमकते छेद पल भर को दिखे फिर छुप गयी.
माँ एकदम नंगी पेशाब करने के लिए उस जंगल मे बेथ चुकी थी.
इस बात से बेखबर की इस जंगल मे मूतते हुए उसे एक गैर मर्द और एक उसका सागा बेटा दोनों देख रहे है,
माँ की गोलाकार खूबसूरत गांड देख एक लड़का अपना घोड़े जैसा गंदा कटा लंड हिला रहा है तो दूसरा अपनी माँ को गैरमर्द के सामने गांड फैलाये मूतते हुए देख कर अफ़सोस कर रहा है.
माँ ने पेशाब करते वक़्त अपनी साड़ी अपने हाथो से आगे को समेट ली थी, जिससे माँ की गांड और उनके बीच की लकीर साफ साफ दिख रही थी, मां अगर चाहती तो पीछे साड़ी से अपनी गांड ढक भी सकती थी, जैसा आम तौर पे ज्यादातर स्त्रियां करती है.
तभी मैंने देखा असलम ने अपनी जेब से कुछ निकाला, उसके हाथ मे एक छोटा सा नोकिया फ़ोन था, तभी असलम ने एकदम से मेरी माँ की पीछे से 3-4फोटो खींच ली.
हे भगवान ये क्या है इस कुत्ते ने? हे भगवान अब क्या होगा मै बहुत डर गया था और बहुत ज्यादा गुस्से में था.
माँ की मूतते हुए की उसने वीडियो और तस्वीर निकल ली थी, असलम एक नंबर का कमीना इंसान था.
फोटो खिंच कर असलम ने फ़ोन वापस रख लिया और मां को देख कर लंड हिलाने लगा, इस बार ज्यादा तेज तेज, असलम
अब अपने चरम पर था शायद.
ये सब अभी हुआ ही था की हमारे कानों में एक सुरीली सिटी आवाज सुनाई देने लगी.
कारण था मेरी माँ की चूत से अमृत का फ़ुवारा फुट पड़ा था, माँ की चूत से नमकीन खरा खरा
सससससससस.... ररररररर..... सससऊऊऊऊ...... करता सफ़ेद फववारा माँ की चुत से निकल जमीन को सिंचने लगा.
सुनसान जगह पर, पेशाब निकलने की आवाज़ किसी सोनिक जेट की आवाज़ जैसे हम दोनों के कान मे पड़ रही थी.
तभी मैंने देखा असलम झाड़ी की ओट से निकल दबे पाँव माँ के पीछे जा पंहुचा, और तेज़ी से लंड हिलाने लगा,
शायद असलम के लिए ये कामुक दृश्य आपे का बाहर था, माँ की चुत से होती पेशाब की कुछ बुँदे गांड की दरार मे रेंगति, नीचे जमीन पर गिर रही थी.
मै खुद अपनी माँ का बेटा होते हुए ये दृश्य देख बेकाबू था, असलम तो ना जाने किस दुनिया मे था, उसके अंदर डर बिल्कुल भी नहीं था.
वो लगातार लंड हिलाये जा रहा था माँ की नंगी गांड को देख कर.... की तभी.... पच.... पच.... पचाजकककक..... से वीर्य की तेज़ धार निकल माँ की गांड से जा टकराई....
पर... परम.... परन्तु ये क्या माँ को तो जैसे कुछ मालूम ही नहीं पड़ा माँ जस की तस मूतती रही, कुछ गरम गगरम सा माँ की गांड पर आ चिपका और उन्हें मालूम ही नहीं पड़ा ऐसे कैसे हो सकता है?
मै सोच मै पड़ गया, या फिर शायद धुप इतनी तेज़ थी की वीर्य की गरमहत माँ को महसूस ही नहीं हुई.
वीर्य इतना गाढ़ा था कि आधे से ज्यादा गांड पर और कमर से होता हुआ नीचे को बह रहा था.
मैंने देखा था कि कुछ बुंदे माँ की गांड की दरार मे भी जा लगी है, हे भगवान...एक बेटे के लिए ये देखना किसी पाप से कम नहीं था की उसकी मां के ऊपर पीछे से किसी ने अपने लंड से वीर्य की बौछार कर दि हो.
माँ की गांड असलम के गंदे वीर्य से सनी पड़ी थी और माँ बेखबर अपनी चूत से पानी बहा रही थी.
माँ उठने को ही हुई की असलम दबे पाँव वापस झाड़ियों मे जा घुसा. माँ मुत कर उठी.... और फिर उन्हें अपनी साड़ी नीचे करली, लेकिन उन्हें क्या पता था कि आज उनके साथ यहां क्या हुआ है?
मुझे तो ये भी डर था कि कुछ बुंदे माँ की चूत मे ना चली गई हो? माँ को अभी घर भी जाना था, अगर किसी ने देख लिया तो क्या होगा कोई क्या सोचेगा?
मम्मी ने मुत्त कर अपनी चुत को झटका दे बची खुची पेशाब की बून्द भी जमीन पर झाड़ दि. और उठ कर अपनी साड़ी नीचे करली.
मम्मी के बालो मे, कमर पर, ब्लाउज पर, गांड पर सब जगा वीर्य की बुंदे लग चुकी थी.
घर अभी 500 मीटर की दुरी पर था, अगर ऐसी हालत में किसी और ने देख लिया तो क्या होगा?
माँ हर बात से बेखबर चुपचाप झाड़ियों से निकल सड़क पर आ आगे बढ़ गई.
परन्तु इस बार असलम माँ के पीछे नहीं गया, वो उस स्थान की तरफ बढ़ गया जहाँ माँ ने थोड़ी देर पहले मुता था.
असलम वहा खड़ा बड़ी गौर से माँ के पेशाब को देखने लगा, वहा अभी भी सफ़ेद सफ़ेद झाग सा बना गए था.
फीर जो मैंने देखा वो मेरे परखच्चे उड़ा देने वाला दृश्य था, ऐसा घिनोना ऐसा गन्दा दृश्य की मैंने कल्पना भी नहीं की थी,
सामने असलम किसी कुत्ते की तरह उस पेशाब पर झुक कर उसे सूंघने लगा,
साला गन्दा हरामी कसाईं मेरी संस्कारी माँ की चुत की खुसबू को किसी कुत्ते की तरह सूंघ रहा था,
छी.... छिम.. कोई ऐसा कैसे कर सकता है, मेरा मन जलालत से भर उठा लेकिन जिस्म उस अनोखे पागलपन से झंझना गया, मेरी लुल्ली पैंट फाड़ने पर अमादा हो गई.
पता नहीं असलम को क्या मजा आ रहा था, वो बार बार अपनी नाक से लंबी सांस लेता और मां के पेशाब की महक को सूंघता जा रहा था.
हे भगवान कितना गंदा था ये मादरचोद कसाईं.
मै ये घिनोना खेल और ज्यादा नहीं देख सका और चुपचाप खेतो के रास्ते घर आ गया, माँ भी घर पहुंच चुकी थी.
घर आ सीधा मै अपने कमरे मे घुस गया, मेरे चेहरे पे हवाइया उड़ रही थी, अभी अभी क्या हुआ कुछ समझ नहीं आ रहा था,
आँखों के सामने माँ का गांड फैला के मूतना ही दिख रहा था
मेरी और उस कसाईं असलम की आंखे माँ की गांड पे ही टिकी हुई थी, माँ के झुकने से गांड का सुनहरा छेद उजागर हो गया था, मेरी माँ की गांड का छेद बहुत सकरा, बिल्कुल सीकूड़ा हुआ था, उसमें तो एक उंगली भी बड़ी मुश्किल से जा सकती थी,
मुझे अब अहसास की माँ ने कभी गांड मे लंड नहु लिया है, शायद उन्हे पसंद भी ना हो.
वैसे भी मेरी पूजा पाठ वाली संस्कारी महिला था अप्रकृतिक सम्भोग उनके लिए पाप था.
मेरा दिमाग़ उसी दृश्य को बार बार दोहरा रहा था, मुझे याद आया की जब वो कसाई असलम माँ की गांड को घूर रहा था तो कुछ बड़बड़ा रहा था, "आआहहहह.... क्या गाड़ है रांड की, कीतना टाइट छेद है इस आंटी का लगता है किसी ने इसकी गांड नहीं मारी, एक बार मिल जाए आअहह...इस गांड पर अपने लंड से असलम नहीं लिखा तो मैं भी कसाई की औलाद नहीं.
मेरी संस्कारी मां बहुत देर तक सोच मे पड़ी रही, साड़ी को पीछे से अलट पलट के देखा तो वहा भी एक गिला सा दाग़ बना हुआ था, चिपचिपा सा.
माँ ने सर ठंका और हाथ को वापस साड़ी मे पीछे की तरफ पोंछ लिया, जैसा आम तौर पे कोई भी घरेलु महिला करती है.
मै माँ की हरकत देख हैरान रह गया, क्या माँ को समझ नहीं आया की वो क्या है?
या फिर माँ ने सोचा होगा की मंदिर मे कुछ लग गया होगा?
मै खुद को ही दिलासे दिया जा रहा था.
उस दिन माँ ने सारा काम वैसे ही उसी साड़ी को पहने हुए किया. अब तक उनकी कमर, गांड, साड़ी हर जगह वीर्य सुख चूका था,
खैर ये दिन भी ऐसे ही बीत गया, ना जाने मै कब नींद के आगोश मे समा गया.
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अगली सुबह मै देर से उठा करीब 10बजे और आज मुझे अलीगढ़ जाना था कॉलेज मे एड्मिशन के लिए.
मै तैयार हो सगका था, माँ अपना घर का काम निपटा रही थी.
"सब्जी लेलो... सब्जी.... ताजी हरी सब्जी " तभी घर के बाहर सब्जी वाला आ गया.
"सब्जी वाले भैया रुको जरा " माँ अपनी गांड मटकाती बाहर को भागी
माँ ठेले वाले के पास पहुंच गई,
"रुकिए बहन जी धुप बहुत है साइड लगा देता हूँ" सब्जिवाले ने ठेला थोड़ा आगे ले जा कर पेड़ के नीचे लगा दिया.
मै घर से कॉलेज जाने के लिए तैयार ही था की " लल्लन ओह ललन अरे भाई ललन कैसा है? बहुत दिन बाद आया साले "
सामने से असलम कसाईं ठेले की तरफ बढ़ा चला आ रहा था.
"कैसी दी बे सब्जी तूने? कही बसी तो नहीं उठा लाया ना " असलम माँ और सब्जिवाले लल्लन के ठेले पर आ चूका था.
एक बार फिर से असलम को देख मेरा दिमाग़ भन्ना गया.
"का भैया असलम एकदम ताजी सब्जी है लेकर देखो?"
इसी बीच माँ की नजर असलम पर पड़ी, माँ ने सरसार उसे नजरअंदाज़ करते हुए सब्जी लेने लगी.
"साले हर बार तू ऐसे ही बोल कर बासी माल बेच जाता है"
"का भाई खुद ही चख के ले लो ना?"
"साले मुझे सीखा रहा है, इस बार अच्छी नहीं निकली ना तो तेरी माँ चोद दूंगा समझा "
असलम ने मां के सामने इतनी गंदी गली दि ना चाहते हुए भी मां की नजर असलम पर चली गई और इस बार दोनों की नजरें आपस में मिल गई, कमीने असलम ने अपने गंदे दाँत माँ की तरफ निपोर दिए और अपना लंड माँ के सामने ही लुंगी मे एडजस्ट करने लगा.
माँ ने इस बार थोड़ा गुस्से वाला मुँह बना, सब्जी लेने में लगी.
सब्जिवाला झेम्प सा गया क्युकी उसके सामने माँ जैसे सुन्दर सुशील शहरी औरत खड़ी थी ऊपर से धंधे का सवाल था.
उसने असलम को चुप रहने का इशारा किया, लेकिन हरामी असलम मे तो शर्म नाम की चीज ही नहीं थी
"इशारे क्या कर रहा है सब्जी दिखा मादरचोद" असलम अपनी गुंडई दिखाते हुए माँ की तरफ देखते हुए बोला.
असलम ने ठेले पे रखा बैगन उठा लिया " साले ये छोटे छोटे बैगन क्यों लाता है, असली मजा तो बड़े बैगन मे है " असलम ने अपनी लुंगी के ऊपर से ही माँ के सामने अपने लंड को मरोड़ दिया, लुंगी मे अब तक बहुत बड़ा उभार बन चूका था.
मै अपने घर की खिड़की से किसी नपुंसक की तरह सब देख रहा था.
"किसी दिन मेरे साथ चल मेरे गाव तुझे बड़े बड़े लम्बे लम्बे बैगन दिलवाता हूँ रंडी के" असलम मम्मी के सामने इतनी फैन्दी गंदी बातें कर रहा था और मैं अंदर चुप चाप देख रहा था
"अरे असलम भैया कैसे बात करते हो अब जैसी सब्जी खेत मे उगेगी वैसी ही लाऊंगा ना "
" भैया ये टमाटर कैसे दिए " माँ ने टमाटर का भाव पूछा जैसे उसे इन दोनों की बात से कोई फर्क ही ना पड़ा हो.
असलम मम्मी के एकदम सामने था और मेरी संस्कारी मां के बदन को ऊपर से नीचे तक घूर रहा था और उनकी तरफ देख गंदी सी मुस्कुराहट दे रहा था.
मम्मी सभी बातो को नजरअंदाज़ करते हुए "भैया ये एक किलो टमाटर कर दो और एक किलो आलू और ये भिंडी क्या भाव दी?"
" अरे मैडम जी आप लेलो जो आपको लेना है ये भोसड़ीका सही रेट लगा ही देगा आपके लिए वर्ना मैं इसकी मां नहीं चोद दूंगा" जवाब असलम ने दिया वो भी बेहद गंदे तरीके से.
असलम माँ को देखते हुए छाती फुला रहा था, जैसे उसकी इस इलाके मे दादागिरी चलती है.
परन्तु माँ ने एक नजर देख वापस से गर्दन सब्जियों मे झुका भिंडी छाटने लगी.
ना जाने क्यों माँ को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था? या फिर मम्मी ऐसे लोगो को इग्नोर करने मे ही भलाई समझती थी.
असलम लगातार माँ से बात करने उन्हें इम्प्रेस करने के बाहने ढूंढ़ रहा था,
"सुन बे भोसड़ीवाले रंडी के ये मेरी दुकान के सामने रहती है, इस नाते मेरी पड़ोसन हुई और तू जानता है ना मैं कौन हूं? अगर तूने कभी भी बेकार, सड़ी, गली सब्जी दी और पेसा ज्यादा लिया तो इस गाँव मे तेरा हुक्का पानी बंद करवा दूंगा " असलम साफ साफ गुंडई पर आ गया था, सब्जी वाले को धमकी दे वो माँ के नजदीक आ गया,
जैसे बताना चाहता हो की मेरी यहाँ कितनी चलती है
"ठीक है आंटी जी कभी भी ये आपको सड़ी गली छोटी छोटी सब्जी दे तो मुझे बता देना मै इसकी गांड मे ये
लोकी दल दूंगा hehehehe..."
असलम ने ठेले से एक लोकी उठा मां को दिखाते हुए कहाँ.
माँ की तो जैसे घिघी ही बंध गई थी, मेरी संस्कारी मां चेहरा एकदम लाल हो गया, शर्म और लज्जा से माँ ने नजरें नीचे झुका ली, शायद माँ वहा से भाग जाना चाहती थी, लेकिन ना जाने क्यों वही डटी रही.
माँ जल्दी जल्दी भिंडी छाटने लगी, ऐसा करते हुए उसके हाथ कांप रहे थे, शायद माँ जल्दी से जल्दी वहा से निकल जाना चाहती थी.
"अरे आंटी ऊपर से नहीं नीचे से लो ना ताज़ा भिड़ी है " बोलते हुए असलम ठीक माँ के पीछे आ खड़ा हुआ
उसका हाथ माँ के गोरे खूबसूरत हाथो से जा लगा, असलम माँ को भिंडी पकड़ने लगा.
माँ की हालत बदतर होती जा रही थी, माथे पर पसीने की बुँदे चमकने लगी थी, ऊपर से असलम के जिस्म से आती गन्दी स्मेल माँ के दिमाग़ को हिला रही थी.
मम्मी के लिए वहा खड़ा होना मुश्किल हो रहा था लेकिन मजबूरी मे मम्मी वहा से सब्जी ले रही थी, असलम कसाई माँ से जबरजस्ती बोलने की कोशिश कर रहा था लेकिन माँ उसे इग्नोर कर रही थी.
लेकिन वो कमीना बड़ा ही बेबाक़ और निडर था, शायद उसका आत्मविश्वास इसलिए बड़ा हुआ था क्योंकि उसने मेरी माँ की नंगी गांड देख ली थी, उसने माँ की बड़ी गांड तरबूज़ जैसी गांड पर अपना वीर्य फेंका था.
"अरे आंटी ये लो ये बढ़िया भिंडी है, चल बे भोसडिके सब्जी तोल जल्दी मादरचोद और सही से तोलना वरना अपने लोडे से मारूंगा तुझे" ये बात असलम ने माँ के हाथ की उंगलियों को पकड़ते हुए बिल्कुल उनके कान के पास से कही.
असलम ने साफ साफ लोड़ा शब्द बोल दिया था, लोडा शब्द सुनते ही मां एकदम पसीना पसीना हो गई और सकपका सी गई.
असलम की हिम्मत बढ़ती जा रही थी, वो खुले आम मां के पीछे जा चिपका था, अपने मुसल लंड को माँ की कामुक गद्दाराई कड़क गांड पर चुभा रहा था.
पता नहीं मेरी संस्कारी माँ कैसे और क्यों ये सब होने दे रही थी, ये मेरे समझ के बाहर था.
इसी बीच असलम ने दोबारा अपना हाथ माँ के हाथ से रगड़ दिया, इस बार कुछ सेकंड तक रगड़ा,
इस बार माँ ने अपनी गर्दन घुमा उसे देखा और दोनों की नजरें फिर से मिल गई, मां का गला सुख रहा था, माथे से होता पसीना गले से होता ब्लाउज मे समा रहा था, इधर मेरी भी हालत खराब थी मै किसी नामर्द की तरह अपनी माँ को किसी मछली की तरह तड़पते देख रहा था.
माँ ने इस बार भी उसके टच को इग्नोर किया और जल्दी जल्दी सब्जी तुलेवाले लगी, लेकिन उसे पीछे हटने को नहीं बोला था या फिर उनमे हिम्मत ही नहीं बची थी.
तभी असलम के हाथ से कुछ टमाटर ठेले से नीचे की और गिर गयी. "अरे भोसड़ीके इन्हें भी अभी गिराना था" असलम फुसफुसाया
जेसे ही असलम टमाटर उठा के वापस सिधा खड़ा हुआ, तो उसका लंड माँ की जाँघ से रगड़ खाता सीधा माँ की गांड के निचले हिस्से मे जा धसा.
मेरी माँ बुरी तरह से चिहुक गई, पूरा जिस्म उस भयानक गर्मी मे ठंडा पड़ गया लगता था. माँ जरा भी नहीं हिली, जहाँ थी वही की वही जाम गई, मुँह खुला रह गया.
माँ के मुँह से हल्के से आह निकल गई, असलम लंड चिपकाये माँ की गांड से एकदम चिपका हुआ था.
दोनों सब्जिवाले के सामने ही खड़े थे, एक संस्कारी घरेलु औरत एक कसाईं के लंड पर चढ़ी पड़ी थी.
असलम का लंड पूरी तरह से खड़ा गांड के दरवाजे को खटखटा रहा था.
ये नजारा मेरे लिए आत्महत्या कर लेने जैसा था, मेरे जिस्म का खून उबाल मारने लगा, "आज इस कसाईं को काट ही डालूंगा " मेरे कदम घर के बाहर जाने को बढ़े ही थे की
चाटतटआककककक....... चट.... चाटक..... की जोरदार आवाज़ से मेरे कदम वही थाम गये,
मैंने वापस खिड़की पर आ कर देखा
मां एकदम से जोर से चिल्लाई और असलम को पीछे की ओर धकेल दिया और देखते ही देखते उस कसाई के मुंह पर एक के बाद एक तमाचे जड़ दिए.
"हरामजादे तेरे घर मे माँ बहन नहीं है क्या? कभी कोई औरत नहीं देखी क्या?, कुत्ते कबसे देख रही हूं बत्तमीजी कर रहा है मुझसे, गन्दी गन्दी गलिया दे रहा है"
ना जाने कैसे माँ एकदम आगबबूला हो गई, कसाईं भी माँ का ये रोन्द्र रूप देख दहल उठा,
मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि ये सब होगा और माँ का गुस्सा फूट पड़ा था असलम पर आख़िर कबतक माँ चुप रहती.
देखते ही देखते आस पास के लोग वहा इकठ्ठा हो गए,
मेरी संस्कारी माँ बहुत ज्यादा गुस्से मे थी.
मुझे समझ नहीं आया कि अभी तक कुछ मिनट तक माँ असलम के जाल मे फांसी आहे भर रही थी, एक शब्द भी नहीं बोल रही थी, अचानक ऐसा क्या हुआ, जो मां ने उसे लताड़ के रख दिया.
मैंने कभी सोचा नहीं था कि बात इतनी बढ़ जाएगी, तभी पुलिस की जीप भी आ गई, साथ ही पापा भी वहा मौजूद थे, मै भी घर के बाहर मम्मी के साथ खड़ा था.
पुलिस ने आते ही असलम को दो थप्पड़ जड़ जीप मे बैठा दिया...
"साला गुंडा बनेगा, हरामखोर... चल सारी गुंडई निकालते है तेरी"
पुलिस असलम को जीप मे बैठा चुकी थी, जाते जाते असलम मुझे और मेरी माँ को खा जाने वाली नजरों से देखे जा रहा था.
"अच्छा हुआ ऐसे गुंडों के साथ ऐसा ही होना चाहिए, हमारी औरतों का बाहर निकलना मुहाल किया हुआ था हरामी ने " भीड़ मे कोई अंकल बोले
समर्थन मे और भी लोग हाँ हूँ.... कर रहे थे.
खेर धीरे धीरे भीड़ छटने लगी, सभी अपने अपने घर को चल दिए.
हम भी घर आ गए.... खेर मै भी ख़ुश था ये किस्सा यही समाप्त हुआ, मै बेवज ही डर रहा था उस असलम से.
अब कभी वो कसाईं मेरे संस्कारी माँ की तरफ देखेगा भी नहीं.
Contd...
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