अपडेट -3, मेरी संस्कारी माँ
पापा ड्यूटी जाने के लिए तैयार हो गए थे, आज उनका यह पहला दिन था, मम्मी घर की साफ सफाई कर रही थी
पापा नास्ता कर कार ले ड्यूटी के लिए निकल गयी और मम्मी कपडे धोने बाथरूम चल दि.
मै भी नहा धोकर तैयार हो चूका था,
मै नाश्ता कर ही रहा था तभी मम्मी कपडे धो कर उनको सुखाने छत पे जा रही थी.
तभी मुझे रात वाली बात याद आ गई, असलम कसाई ने मां कच्छी कल रात हमारे घर की छत पर ही फ़ेंकी थी.
मम्मी ऊपर जाने के लिए पहली सीढ़ी चढ़ चुकी थी, हे भगवान अब क्या होगा मम्मी ने वो कच्छी देख ली तो.... हे भगवान उसपर तो ढेर सारा वीर्य लगा है, मेरा दिमाग़ चक्कर खाने लगा.
मै खुद को ही कोसने लगा, मुझे कल रात ही वो पैंटी छत से उठा के फेंक देनी चाहिए थी.
मैं भी उनके पीछे-पीछे छत पर आ गया, और गमले के पीछे की दीवार की साइड से मम्मी को देखने लगा, मेरी नजरें उस गुलाबी कच्छी को ही ढूंढ रही थी.
कुछ ही देर है मम्मी ने अपने सारे कपड़े और अंडर गारमेंट सुखा दिए थे, आज मम्मी ने अपने बहुत सी साड़ी, ब्रा पैंटी धोये थी शायद काफ़ी दिनों से मम्मी नहीं धो पाई होगी,
वैसे भी मेरी माँ की एक आदत थी, मुझे फ़रीदाबाद में ही पता चली थी, मम्मी के पास करीब 5-6 जोड़ी अंडरगारमेंट्स थे वो भी अच्छी कंपनी की जॉकी टाइप कम्पनीज की.
मम्मी कभी डेली डेली अपनी अंडरगारमेंट्स नहीं धोती थी क्यूकी डेली धोने से वो ढीली और उनका कलर उतर जाता था. शायद इसलिए मम्मी एक साथ 5-6दिन मे धोती थी.
उतरी हुई ब्रा पैंटी बाथरूम मे एक बकेट मे रखती थी या फिर मशीन मे डाल देती,
आज भी ऐसा ही हुआ था.... मम्मी ने अपनी साड़ी अंडरगारमेंट्स धो डाली थी।
और एक कच्छी असलम के कामरस से सनी छत पर पड़ी हुई थी, मतलब अभी साड़ी के अंदर मम्मी ने कुछ नहीं पहना था.
तभी मम्मी थोड़ा आगे बढ़ी और जिसका डर था वही हुआ... मम्मी की नजर उसी तरफ पड़ गई, जहाँ वो कच्छी पड़ी हुई थी.
पहले तो कुछ देर मम्मी ने देखा उनकी कच्छी गुड़मुड़ी करके पड़ी हुई है, मम्मी एकदम हैरान थी की उनकी ये यहाँ ऐसे कैसे पड़ी है?
कुछ देर सोचने लगी और कच्छी को निहारने लगी, उन्हें लगा शायद समान उतारते वक्त हवा के साथ यहाँ आ गई होंगी. क्युकी कल बहुत तेज हवा चल रही थी.
तभी मम्मी नीचे झुकी और कच्छी को हाथ से उठा लिया.
मेरी निगाह वही टिकी पडी थी, अब मम्मी को पता चल जाएगा उसमें वीर्य लग हुआ है...
हे भगवान अब क्या होगा....इतने मे मम्मी ने कच्छी को उठा लिया और अजीब सी नजरो से उसे देखने लगी.
हे भगवान जिस कच्छी पर उस कसाई ने अपना गंदा लंड रगड़ा था मुठ मारी थी, वीर्य से सनी कच्छी मेरी संस्कारी मां के साफ शुद्ध हाथो मे थी,
मम्मी अपनी कच्छी देख एकदम चोंक गई.... क्यूकी कच्छी एक दम कड़क हो चुकी थी, मम्मी ने अगल बगल देखा कि उनको कोई देख तो नहीं रहा, फिर कच्छी को पूरी तरह खोला और देखने लगी, मम्मी को समझ नहीं आया कि ये उनकी पैंटी इतनी सॉफ्ट पैंटी इतनी कड़क कैसे हो गई है.
मुझे लगा अब मम्मी इस पैंटी को फेंक देंगी, क्योंकि मम्मी के पास पैंटी की कोई कमी नहीं थी,
लेकिन कुछ देर पैंटी को निहारने के बाद मम्मी ने उस पैंटी की तह मारी, और अपने ब्लाउज के अंदर रख लिया, जैसे आम तौर पर हर महिला किसी भी चीज को अपनी ब्लाउज मे ही छुपाती है.
"ओह नहीं, ऐसा मत करो मम्मी, उस पैंटी को देखो, उसमे उस असलम का गन्दा वीर्य लगा हुआ है " मेरा मन चित्कार उठा.
परन्तु अब देर हो चुकी थी मम्मी पैंटी को अपने ब्लाउज मे धसा चुकी थी, असलम का गन्दा वीर्य माँ के कोमल नाजुक शुद्ध स्तन को छू रहा था.
वही चूचियाँ जिनसे मैंने बचपन मे दूध पिया था, आज उन्ही चुचियो पर एक मूस....असलम कसाई का सूखा वीर्य लग चूका था.
माँ नीचे जाने के लिए सीढिया उतरने लगी, मै भी थोड़ी देर मे नीचे आ नाश्ता करने लगा.
मैंने देखा माँ नीचे उतर कर सीधा बाथरूम मे घुस गई थी.
नीचे आ के देखा तो बाथरूम का दरवाजा बंद था, मुझे लगा शायद मम्मी उस पैंटी को धो देगी, लेकिन बाथरूम का दरवाजा बंद था, मम्मी कपडे धोते वक़्त दरवाजा नहीं बंद करती थी.
मेरा पूरा ध्यान बाथरूम के दरवाजे पर ही था.
कुछ देर बाद दरवाजा खुला और मम्मी बाहर आ गई,लेकिन मैंने गौर किया तो पाया कज उनकी गुलाबी पैंटी उनके ब्लाउज में नहीं थी, क्योंकि ब्लाउज फूला हुआ नहीं लग रहा था..
और ना हाथ मे थी, मतलब मम्मी ने पैंटी धोई नहीं थी, अगर धोती तो उनके हाथ में होतीऔर वो उसको सुखाने के लिए जाती.
शायद मम्मी ने वो पैंटी बाथरूम मे रख दी हो, मेरे दिमाग़ के घोड़े लगातार दौड़ रहे थे.
उसके बाद मम्मी किचन मे काम करने चली गई, मम्मी के किचन मे जाते ही मे बाथरूम मे घुस गया, लेकिन ये क्या बाथरूम खाली था, ना कोई कपड़ा ना वो कच्छी, पूरा बाथरूम खाली था आख़िर मम्मी की कच्छी गई तो गई कहाँ?
फिर एक दम से मेरे दिमाग मे विचार आया, कही... कही... हे भगवान......ये मै क्या सोच रहा हूं?
कही.. कही... मम्मी ने उस गन्दी वीर्य से सनी कच्छी को पहन तो नहीं लिया?
हे भगवान ये क्या हो गया छी मम्मी ने इतनी गंदी कच्छी कैसे पहन ली uffff... नहीं.
असलम के मोटे लंड से बालात्कार का शिकार हुई कच्छी माँ की पवित्र चुत से चिपकी हुई थी इस वक़्त, मतलब माँ की चुत का पानी अभी असलम के वीर्य को भीगो रहा होगा... Uffff.... मेरे दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया था, लगता था अभी बेहोश जाऊंगा.
वैसे भी वो कच्छी आगे से इतनी पतली थी की अब तक तो पूरी तरह से माँ की चूत में घुस गई होगी.
हे भगवान मेरी मम्मी ने ये क्या किया.... छी छी मेरे लिए तो ये शर्म की बात थी.
या फिर मम्मी को बिल्कुल पता ही नहीं चला कि कच्छी मे गंदा वीर्य लगा है, हलाकी वीर्य गिला नहीं था लेकिन फिर भी... पता नहीं चला ऐसे कैसे हो सकता है? मम्मी शादीसुदा है.
मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मम्मी ने वो गंदी कच्छी क्यों पहनी है?
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे वो कसाई मेरे घर में घुसा हुआ है मेरी ही मम्मी के पास है, क्यूकी उसके गंदे वीर्य से सनी हुई कच्छी मेरी मम्मी की चुत मे घुसी पड़ी थी.
मेरा मन बहुत दुखी था लेकिन बदन मे एक अजीब सी हलचल भी मची हुई थी, मेरे लंड मे रह रह के एक झुंझुनी सी हो रही थी.
खैर मम्मी इस बात से बिल्कुल अंजान अपने घर के कामों मे लगी हुई थी, अपना डेली का काम निपटा रही थी, इस बात से अनजान कि उसकी चूत मे अंजाने मे ही सही एक कसाई असलम का सूखा वीर्य लग चूका है,
अभी हमें यहाँ एक ही दिन हुआ था और इतनी ही जल्दी असलम ने मेरी संस्कारी पवित्र माँ की चुत मे अपने वीर्य की गंध छोड़ दि थी.
खैर मे ये सब सोच भी नहीं रहा था ये सब मेरे लिए पाप था, कभी माँ को मैंने गंदी नजर से नहीं देखा था, हमारा एक अच्छा माँ बेटा जैसा रिश्ता होता था वैसे ही मेरा भी था, और मैं अपनी मां से बहुत डरता भी था क्योंकि हमें पढ़ाई लिखाई को लेकर बहुत डांटती थी, लेकिन अपने परिवार से बहुत ज्यादा प्यार भी करती थी, उनकी दुनिया, उनका सारा संसार हम दोनों ही थे. और मैं भी अपनी मां बाप से बहुत ज्यादा प्यार करता था.
उस दिन जब भी मम्मी घर का काम करने के लिए मेरे पास आती तो मेरी नजर उनकी टगांड पे ही होती,
मै अभी भी कन्फर्म होना चाहता था जो मै सोच रहा हूँ सही है या सिर्फ मेरा वहम. मम्मी जब भी मटक मटक कर काम कर रही थी तो ना चाहते हुए भी मुझे उनकी गांड और चुत की तरफ देखना ही पड़ रहा था.
हालांकि ऐसा गंदा ख्याल कभी मेरे मन मे नहीं था फिर भी उस गुलाबी कच्छी की वजह से बार बार मेरी नजर माँ के कामुक गोल मटकते अंगों पर पहुंच जा रही थी.
मम्मी ने आज पुरे दिन उसी कच्छी को पहने रही, पूरा दिन काम किया आराम किया. देखते ही देखते रात हो चुकी थी पिता जी भी घर आ चुके थे, सब लोगो ने खाना साथ ही खाया.
मैं भी अब खाना खा कर बाहर टहल रहा था, मेरी नजर बार बार उसी कसाई की दुकान पर जा रही थी,
जब भी उसकी झोपड़ी को देखता तो उसका 9इंच 4इंच का मोटा लंड मेरी आँखों के सामने आ जाता. क्योंकि उसके लंड पर मेरी मां की गुलाबी कच्छी लटकी हुई थी. मेरा दिमाग़ मे अभी भी भूचाल मचा हुआ था.
खैर उसके बाद मै घूम फिर कर घर चला आया, मम्मी पापा अपने कमरे मे सो चुके थे,
कुछ देर बाद मुझे पेशाब लगी तो मैं बाथरूम में चला गया,
जब मैं मुत रहा था तब मेरी नज़र बाथरूम के पीछे लगे हैंगर पर पड़ी, वहां पर वही गुलाबी पैंटी टंगी हुई थी.
हे भगवान... मतलब मम्मी ने सच मे वो पैंटी आज पूरा दिन काम करते हुए अपनी चूतपर पहनी हुई थी. मेरा दिमाग़ शून्य हो चला, साय साय करती हवा गुजरने लगी.
उस पैंटी को देख मेरा पेसाब भी रुक गया, फिर मेरे दिमाग में कुछ आया और मैंने सोचा पैंटी को देखा जाये लेकिन फिर मुझे ये पाप लगा, नहीं.. नहीं मै ये नहीं कर सकता ये मेरी माँ की पैंटी है नहीं ये पाप है.
और मैं ये सोच कर बाहर जाने लगा. लेकिन एकदम से मेरे कदम रुक गए और मेने अब कुछ नहीं सोचा और बाथरूम का दरवाजा बंद अंदर से लॉक किया और फ़िर हैंगर पर टंगी पैंटी की तरफ हाथ बढ़ा दिया हालांकि ऐसा करते हुए मेरे हाथ काप रहे थे.
मैंने कभी भी लाइफ मे मम्मी के अंडरगारमेंट्स को नहीं छुआ था, लेकिन आज हिम्मत कर मैंने हाथ आगे बढ़ा ही दिए, माँ की पैंटी को मैंने हैंगर से उतार ही लिया, uffff.... कितने मुलायम कपडे की पैंटी थी वो, पैंटी को छूते ही मेरे तन बदन मे आग सी लग गई, मैंने देखा पैंटी के कुछ कुछ हिसो पर कड़कपन था.
मै समझ गया ये उसी कसाईं का वीर्य है जो सुख कर कड़क हो चूका है, फिर मेने पैंटी की चूत वाली जगह को देखा जहाँ पर चूत होती है, मैंने महसूस किया पैंटी गीली है उस हिस्से पर, फिर ऊँगली से छुआ तो सिद्ध हो गया की वाकई वो पैंटी अभी भी गीली थी बहुत गिली मतलब मम्मी ने सच मे ये पैंटी आज पुरे दिन पहनी हुई थी.
वो गिलापन और कुछ नहीं मेरी माँ की चूत का ताज़ा पानी था,
मेरा तो दिमाग खराब होगया ये सोच कर, चूत वाली जगह पर ढेर सारा पानी लगा हुआ था चिपचिपा सा, हे भगवान,
मैं अब पागल होने की कगार पर पहुंच चूका था, परन्तु जसम मे एक गर्मी सी दौड़ रही थी, कान लाल हो चूजे थे, मेरा लंड भी खड़ा हो चुका था.
मेरे मन मे एक विचार कोंध गयाब, मै पाप करने जा रहा था,
जेसे कल वो कसाई मेरी माँ की कच्छी को सूंघ रहा था, मेरे हाथ भी उस कच्छी को मेरे नाक के नजदीक लाने लगे, मै महसूस करना चाहता था किबस कसाईं असलम को क्या मजा मिल रहा था ऐसा करने मे.
तभी मुझे बहुत गिलानी का भाव हुआ, मैंने जोर से खुद को झंझोरा " तू ये कर क्या रहा है.?, ये मेरी माँ की पैंटी है "
मैंने एक सेकंड ना लगाया उस कच्छी को दोबारा हैंगर मे टांगने पर, मै चाहता तो था कि अपनी माँ की कच्छी को एक बार सूंघ लू,चाट लू, कच्छी नाक तक आ ही गई थी, लेकिन एक दम से मेरे अंदर का पुत्र जाग गया " नहीं... नहीं.... ये मेरी माँ है जिसने ममुझे दूध पिलाया है, मुझे पाला पोशा है मै ऐसा कैसे कर सकता हूँ.. छि.... मै पाप करने जा रहा था. "
मैंने देर ना करते हुए फ़ौरन ही बाथरूम बाहर निकल गया, और रूम मे आ आत्मगीलानी का भाव लिए सो गया.
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अगले दिन उठा तो मैंने निर्णय ले लिया था पिछले 2दिनों में जो भी घटना घटी थी उसके बारे मे सोचूंगा भी नहीं, जो हो गया सो हो गया.
आज फिर मैं 9बजे उठा और फिर टीवी देखने लगा नास्ता कीया. पापा ड्यूटी जा चुके थे और मम्मी शायद बाथरूम मे नहा रही थी.
आज सोमवार का दिन था, थोड़ी ही देर बाद मम्मी नहा कर निकली और रूम मे चली गई, माँ ने आज एक पीले रंग की साड़ी और स्लीवलेस लाल ब्लाउज पहना हुआ था और सज धज कर आज रेडी होगे थी, आज मम्मी कुछ ज्यादा ही सजी थी, ऐसा मम्मी तब ही करती थी जब उनको मंदिर जाना होता था.
सोमवार को मम्मी कुछ भी हो जाये मंदिर जाती ही थी.
आज सोमवार ही था, एक हाथ में लोटा और फिर थाली लेकर मां ने मुझे आवाज़ दि "बेटा चल जरा मेरे साथ मंदिर.."
मै उस टाइम नींद मै था और सुबह सुबह उठ कर मुझे कुछ काम वाम करना पसन्द नहीं था.
"तुम खुद चल जाओ मैं अभी तैयार नहीं हूं"
मम्मी ने डांट कर बोला "जल्दी नहीं उठ सकता तू इतनी देर से उठता है और ना ही कोई काम करता है, पता नहीं क्या करता रहता है रातभर "
" कल से कम ही करूंगा मुमनी, कल यहां पर कोलाज मे एडमिशन लेने जाऊंगा आज आराम करने दो मुझे"
"वैसे भी मम्मी तुम मंदिर जा रही हो तुम्हें पता भी है यहां पर मंदिर कहा है?" मैंने प्रश्न किया
" हां पता है ज्यादा दूर नहीं है, बाजु वाली भाभी ने मुझे सुबह बता दिया था कि सामने वाली गली से आगे जाकर, खेतो से लगे रास्ते से होते हुए करीब 500 मीटर दूर है" माँ बोली
ये वही रास्ता था जहां पर कसाई वाले की दुकान थी उसी रास्ते से होते हुए कुछ मीटर पर ही गाव का मंदिर था.
"ठीक है मम्मी आप चाकी जाओ मै तो टीवी देखूंगा आराम से "
"ठीक है मैं खुद ही जाती हूं तू तो बस टीवी देख"
और फिर मम्मी घर से सज धज कर पीली सेक्सी साड़ी पहन कर मंदिर के लिए निकल गई.
तभी एकदम से मेरे ध्यान मे कुछ आया और मै तुरंत अपनी जगह से उठ कर घर के बाहर गया और जिसका मुझे डर था वो ही हुआ.
मम्मी वही सामने वाले रास्ते पर से ही जा रही थी, जहाँ असलम कसाई का कसाईखाना था.
मैंने देखा मम्मी मटक मटक कर चल रही थी और वो कमिना उनकी गांड कमर को निहार रहा था.
मम्मी इस बात से बेखबर थी कि उनको पीछे से देख वो असलम कमीना अपने लंड को मसल रहा है.
तभी मैंने देखा माँ जैसे ही उस असलम की झोपडी को पार कर आगे बढ़ी तो असलम भी अपने पाजामे को सहलाता मम्मी के पीछे चल दिया.
जब मैंने उसे मम्मी के पीछे जाते हुए देखा तो मुझसे रहा ना गया और मै तुरंत भाग कर अंदर से चप्पल पहन दोनों के पीछे जा लपका, मै खुद को कोष रहा था काश मै मम्मी के साथ मदिर चल जाता तो ही ठीक था.
अब मै असलम के पीछे पीछे और वो मेरी माँ के पीछे पीछे और माँ आगे आगे.
मेरी माँ मटक मटक कर अपनी तरबूज़ जैसी गांड को हिला हिला कर चल रही थी, माँ की कमर मे कुछ ज्यादा ही लचक थी, या फिर आज ही कुछ ज्यादा मटक रही थी.
वो कसाई मेरी मां की गांड को और नंगी गोरी कमर को कुत्तो की खा जाने वाली नजरों से निहार रहा था.
शायद वो मेरी संस्कारी मां को अपनी गंदी नजर मे साड़ी के ऊपर से ही नंगी कर रहा था, उस कुत्ते ने मेरी माँ की चूत का पानी तो चख ही लिया था और सुंघा भी था.
Contd...
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