चैप्टर -1, ठाकुर कि शादी, अपडेट -5
गांव कामगंज
ठाकुर ज़ालिम सिंह रामनिवास के घर पहुंच चुके थे, रामनिवास और गांव वालो ने बड़े धूमधाम से स्वागत किया,
रामनिवास :- धन्य भाग हमारे, आईये ठाकुर साहेब आइये.
अंदर आइये
ठाकुर और डॉ. असलम को अंदर बैठक मे बैठा दिया गया, सभी का अभिवादन का दौर चला.
गाड़िवान ने सारे अनाज फल वगैरह गांव वालो कि मदद से अंदर रखवा दिए.
ठाकुर साहेब रामनिवास कि खातिरदारी से अतिप्रश्नन और प्रभावित हुए.
परन्तु इन सब मे ठाकुर साहेब कि नजरें किसी को ढूंढ रही थी, वो कामवती को देख लेना चाहते थे क्युकी जो तारीफ, जो कामवती कि सुंदरता का बखान उन्होंने सुना था उस वजह से वो अतिउत्सुक नजर आ रहे थे.
बार बार बात करते हुए पहलु बदल रहे थे.
उनकी बेचैनी को डॉ. असलम अच्छे से समझ रहे थे.
रामनिवास :- अरी भाग्यवान... अरी भाग्यवन भई जल्दी लाओ नाश्ता पानी ठाकुर साहेब दूर से आये है थके होंगे.
थोड़ी देर बाद रतिवती सजी धजी बलखाती, छनछनाती हुई हाथ मे पानी और नाश्ते कि प्लेट ले के आई.
और झुकते हुए टेबल पे रख के सभी को हाथ जोड़ के नमस्कार किया.
रामनिवास :- ठाकुर साहेब ये मेरी धर्मपत्नी है सभी तैयारी इन्होने ही कि है.
ठाकुर साहेब ने औपचारिक तौर पे अभिवादन किया,परन्तु रतिवती की सुंदरता से प्रभावित हुए बिना ना रह सके, "जब माँ इतनी सुन्दर है तो बेटी कितनी सुन्दर होंगी?"
रतीवती नमस्कार करती डॉ. असलम के सामने आई लेकिन एकदम से चौंक गई कारण था डॉ. असलम का काला भद्दा रूप, चौकने से रतिवती का पल्लू थोड़ा सरक गया,
असलम रतवती के चेहरे से उसकी मनोस्थति भाँप गए, अक्सर पहली बार उसे कोई देखता था तो यही होता था, हीन भावना से असलम की नजरें नीचे को झुकी ही थी की सामने रतिवती के ब्लाउज मे उत्पन्न कामुक घाटी पर जा टिकी.
असलम ने इतने गोरे, इतने बड़े, सुडोल स्तन आज तक नहीं देखे थे , आह्ह.... कितने कोमल दिख रहे है.
रतीवती तब तक सीधी हो चुकी थी और संभल चुकी थी.
ये दृश्य मात्र पल भर के लिए ही घटा था, परन्तु ये पल ही डॉ. असलम के मन मस्तिष्क मे घर कर गया.
ठाकुर साहेब :- रामनिवास ये मेरे अजीज दोस्त, सलाहकार सब यही है डॉ. असलम.
पेशे से डॉक्टर है.
रतीवती असलम को ही देखे जा रही थी कि कहाँ ठाकुर साहेब लम्बे चोडे रोबदार, कहाँ उनका दोस्त डॉ. असलम
नाटा, काला बेहद कुरूप.
थोड़ी देर इधर उधर कि बात करते हुए रतीवती कमरे से बाहर निकल गई.
डॉ असलम जाती हुई रतीवती कि मटकती, उछाल भरती मदमस्त गांड को घूरते रह गए.
सबसे नजर बचा के अपने बड़े लंड कों थोड़ा एडजस्ट कर लिया,
लेकिन उन्हें पता था कि उनकी किस्मत का कि किस कदर ख़राब है, उनका रूप ही ऐसा था कि लड़की औरते डर जाती थी पास आने का तो सवाल ही नहीं था.
मन मामोस के सिर्फ एक आह भर के रह गए.
उनकी किस्मत मे ऐसी मटकती गांड देख के लंड हिलाना ही था.
या शायद नहीं...? ये तो वक़्त बताएगा
"अरी नालायको कामिनीयों अभी तक मेरी बेटी को तैयार किया या नहीं? ठाकुर साहेब कब के आ गये है" रतिवती दनदनाती कामवती के कमरे मे दाखिल होती चली गई जहा, कामवती की सखिया उसे तैयार कर रही थी.
अंदर घुसते ही उसकी नजर जैसे ही अपनी बेटी पर पड़ी, दंग रह गई,क्या सुन्दर लग रही थी कामवती एक दम अप्सरा.
" हाय री मेरी बच्ची तू तो पूरी जवान हो गई है, मैंने तो कभी ध्यान दिया ही नहीं. तुझे देख के तो ठाकुर साहेब तुरंत हाँ बोल देंगे" रतिवती ने काजल का एक टिका लगा दिया
"नजर ना लगे मेरी कम्मो को किसी कि"
"अच्छा सुन ठाकुर साहेब के सामने नजर झुका के बात करना, जो बोले उसका जवाब हाँ ना मे देना" रतिवती सब समझाती जा रही थी. हर माँ ऐसा ही करती है.
अब कामवती ठहरी बिल्कुल अनाड़ी अबोध हाँ हाँ मे सर हिलाती रही.
अब वक़्त आ चूका था कि ठाकुर साहेब को बेचैनी का अंत हो.
रातीवती सब समझा के कामवती को ले के चल पड़ी.
रामनिवास :- आओ कम्मो बेटी... ठाकुर साहेब ये है मेरी एकलौती बेटी
कमरे मे सन्नाटा छा गया, एक मस्त कर देने वाली खुशबू ठाकुर साहेब के नाथूनो से आ के टकराई.
ठाकुर साहेब एकटक कामवती को देखते हि रह गए.
ऐसी काया ऐसा सुन्दरपन ऐसी अप्सरा देखि ही नहीं आज तक़.
कामवती लाल लहंगे मे बिल्कुल स्वर्ग से उरती परी लग रही थी.
सुन्दर चेहरा, बड़ी आंखे, गुलाबी होंठ, नीचे सुराहीदार गर्दन.
गर्दन से नीचे उतरते रास्ते पर दो चमकिले उभार लिए हुए पहाड़ जो कि जबरजस्ती चोली मे कैद कर रखा था.
पहाड़ो के नीचे सपाट पेट, पेट पे खुशबूदार गहरी गोल नाभि.
वाह वाह .. ठाकुर साहेब हक्के बक्के एक टक देखे जा रहे थे.
और इधर असलम रतीवती को तिरछी आँखों से देखे जा रहा था
डॉ. असलम :- माँ बेटी दोनों ही अप्सरा है, अल्लाह ने खुल्ले हाथ से यौवन का खजाना बाटा है.
ठाकुर साहेब कि तो लॉटरी लग गई.
या अल्लाह इस बहती गंगा मे मुझे भी नहला दे.
अब असलम को क्या पता था कि अल्लाह ने उसकी दुआ कबूल कर ली है.
रामनिवास :- ठाकुर साहेब ये मेरी बेटी है कामवती, ठाकुर साहेब... ठाकुर साहेब
आप कुछ पूछना चाहे तो पूछ सकते है?
ठाकुर ज़ालिम सिंह रामनिवास के झकझोड़ने से अपनी दुनिया मे लौटा.
ठाकुर :- वो वो... मै मै... बबब... बबब... कुछ नहीं रामनिवास मुझे कुछ नहीं पूछना.
ठाकुर साहेब कामवती कि सुंदरता के आगे कांप गये थे, जो बोलना था कुछ बोल ना सके.
रामनिवास :- कैसे लगी आपको हमारी बिटिया रानी?
ठाकुर :- बहुत सुन्दर सुशील है रामनिवास हमें खुशी होंगी कि कामवती हमारी हवेली कि शोभा बढाये.
हमें ये रिश्ता मंजूर है. ठाकुर साहेब इस रिश्ते को कबूल करने मे थोड़ी भी देर नहीं करना चाहते थे.
जबकि कामवती भी ठाकुर ज़ालिम सिंह के रोबदार चेहरे से प्रभावित हुई.
अब उसे तो अपनी माँ बाप कि इच्छा से ही मतलब था उन्होंने जहाँ बोला शादी करनी ही थी सब करते है वो भी कर रही थी और कोई विशेष नहीं था कामवती के दिल मे.
बहुत भोली है हमारी कामवती.
रामनिवास और रतीवती ठाकुर का कबूलनामा सुन के उछल पड़े.
रामनिवास :- धन्यवाद ठाकुर साहेब धन्यवाद आपकी बहुत कृपा हुई हम पे
ठाकुर :- कृपा कैसे रामनिवास आपकी बेटी है ही इतनी सुन्दर कि कैसे मना करते, कामवती तो हमारी हवेली कि शान बनेगी, हमारे वंश को आगे बढ़ायेगी.
इतना सुनना था की कामवती शर्मा के कमरे से बाहर दौड़ पड़ी.
रतीवती मन मे :- वाह री किस्मत मेरी बेटी बहुत किस्मत वाली है अब हमारे पास भी पैसा होगा, मेरी बेटी इतनी बड़ी हवेली जमीन जायदाद कि मालकिन बनेगी वाह."
"मै खाने पिने कि तैयारी करवाती हूँ"
रतीवती भी कामवती के पीछे कमरे से बाहर चल दी.
रतीवती के जाने से असलम का ध्यान टूट गया, जैसे कोई सपना देख रहा हो होश मे आया तब जाके मालूम पड़ा कि यहाँ क्या हो गया है, ठाकुर साहेब ने तुरंत रिश्ता कबूल कर लिया है, कामवती को पसंद कर लिया है.
रामनिवास असलम और ठाकुर साहेब का मुँह मीठा कराने मे व्यस्त हो चला की तभी गांव का पंडित भी वहा पहुंच चूका था
शादी कि तारीख तय होने लगी.
पंडित :- देखिये ठाकुर साहेब आज से 6दिन बाद मतलब कि अगले मंगलवार को बहुत शुभ मुहर्त है शादी का.
उसके बाद सब अशुभ है, उसी दिन लड़की इस घर से विदा हो जानी चाहिए एक पल के भी देर हुई तो संकट आ सकता है.
रामनिवस :- पंडित ज़ी ये क्या कह रहे है आप इतनी जल्दी कैसे होगा सब?
ठाकुर :- रामनिवास आप चिंता ना करे सब मै संभाल लूंगा.पंडित ज़ी शादी और विदाई मे बिल्कुल विलम्ब नहीं होगा.
सब समय पे ही होगा.
तो तय हुआ कि शादी अगले मंगलवार को ही होंगी.
अब खाने पिने का दौर शुरू हो चूका था,
खाना पीना कर के थोड़ा आराम कर के ठाकुर साहेब " अच्छा रामनिवास हमें चलना चाहिए शादी कि तैयारी भी करनी है "
इतना कहना था कि आसमान मे एका एक बादल गरजने लगे, बिजली रह रह के चमक पड़ती.
रामनिवास :- अरे ये क्या मौसम कैसे बदल गया यकायक, ठाकुर साहेब आप से विनती है कि आज रात यही रूक जाइये.
लगता है जोरदार तूफान आने को है.
ठाकुर साहेब रुकना तो नहीं चाहते थे परन्तु ख़राब मौसम और कामवती को फिर से देख लेने की चाहत ने उन्हें रुकने पर मजबूर कर दिया.
इधर असलम भी ख़ुश था कि रतीवती को थोड़ा और ताड़ लेगा.
उधर गांव विषरूप मे भी मौसम ने करवट बदल ली थी
भूरी काकी बड़ी से हवेली मे अकेली थी, सभी नौकर चाकर जा चुके थे
शाम हो चुकी थीं, रात के वक़्त हवेली मे भूरी काकी और तीनो जमुरे ही होते थे.
बारिश होने लगी थी, तूफान जोरदार चल रहा था.
भूरी काकी भी इस मौसम से अछूती नहीं थी, ये भीगा भीगा मौसम उनकी कच्छी रह रह के भिगो रहा था.
भूरी अपने कमरे मे बिस्तर पे लेटी बेचैनी के साथ करवट बदल रही थी. अकेलापन और मौसम कि मार से उनका बदन जल रहा था, सुलग रहा था..
गांव कामगंज मे रामनिवास ठाकुर और डॉ. असलम के सोने कि तैयारी कर चूका था. दोनों को बाहर वाले कमरे मे सोने को बोल दिया गया था.
बाहर तूफान जोरो पे था मौसम बिल्कुल ठंडा हो चूका था, मौसम ऐसा रुमानी था कि बुड्ढ़ो के लंड भी खड़ा कर दे.
ठाकुर साहेब तो अपने आने वाले हसीन दिनों के बारे मे सोच सोच के सो गये थे.
उनके सपने मे भी कामवती ही थी जो उनका वंश बढ़ा रही थी पुरे चार लड़के पैदा किये थे कामवती ने.
लेकिन हक़ीक़त तो ये है कि चार क्या एक मच्छर भी पैदा नहीं कर सकते ठाकुर साहेब अपने 3 इंच कि लुल्ली से.
डॉ. असलम भी सोने कि कोशिश कर रहे थे लेकिन बार बार उनके जहन मे रतीवती का झुक के नमस्कार करने वालादृश्य चल रहा था,
क्या गोरे गोरे बड़े स्तन थे, कितना रस भरा था उनमे.
दिन कि सभी बाते सोच सोच के असलम अपना लंड मसले जा रहे थे ऊपर से रूहानी मौसम कि मार... लंड पूरा खड़ा हो चूका था इतना कड़क कि दर्द देने लगा था.
ठाकुर साहेब बाजु मे लेटे थे तो हिला भी नहीं सकता था. अजीब दुविधा और कामोंउत्तेजना से घिरे थे डॉ असलम.
डॉ. असलम :- ऐसे तो मेरा लंड फट ही जायेगा, थोड़ा बाहर टहल लेता हूँ ध्यान हटे मेरा इन सब से, वैसे भी मेरी किस्मत कहाँ कि औरत का सुख मिले.
असलम निराश मन से बाहर को निकल पड़े.
दूसरे कमरे मे रतीवतीं रामनिवास के साथ लेटी थी,वो आज सुबह से ही गरम थी, ये आग बुड्ढे हलवाई ने लगाई थी लेकिन वो ये आज बुझाता उस से पहले ही खुद बुझ गया.
आज इस खुशी के मौके पे रामनिवास ज्यादा शराब पी आया था और रतीवती के बगल मे ओंधा पड़ा खर्राटे मार रहा था.
रतीवती :- इस हरामी को शराब पिने से ही फुर्सत नहीं है मै यहाँ मरे जा रही हूँ.
काम अग्नि मे जलती रतीवती अपना ब्लाउज खोल चुकी थी, उसके हाथ आपने सुडोल कड़क स्तन पर रेंग रहे थे,, उसकी आग उसे जला रही थी... अपने दोनों हाथो से अपने दोनों स्तनों को पकड़ के दबा रही थी, मसल रही थी, नोच रही थी... जैसे आज नोच के शरीर से अलग ही कर देगी.
आअह्ह्ह..... आह्हः.... निप्पल को अपनी ऊँगली से पकड़ पकड़ के खींच रही थी आज दिन मे हुए हलवाई के किस्से और बाहर होती बारिश मे गजब कि हवस पैदा कर दिया थी रतीवती के कामुक जिस्म मे.
इसी मदहोशी मे रतिवती ने एक बार मे ही अपनी साड़ी, पेटीकोट निकाल फेंके, ये गर्मी बर्दाश्त के बाहर हो चुकी थी.
एक हाथ अपनी मखमली चुत पे रख और जोर जोर से मसलने लगी, जैसे नोच ही लेगी आअह्ह्हम.. आह्हः...
परन्तु आज मसलने रगड़ने मे वो मजा नहीं आ रहा था....उसे लंड चाहिए था जो उसकी चुत और गांड फाड़ दे.
जिस्म कि आग है ही ऐसी चीज.... ये जिस्म कि आग तो कही और भी लगी हुई थी.
गांव विषरूप, ठाकुर कि हवेली
भूरी काकी अकेली तन्हा हवस कि आग मे तड़पे जा रही थी, बैचैनी से करवट बदल रही थी.
भले भूरी काकी कि उम्र 50 साल थी लेकिन उसे पिछले 30 सालो से किसी मर्द का अहसाह नहीं हुआ था.
वो तड़पती थी तरसती थी लेकिन शर्माहत और इज़्ज़त के कारण कुछ कर नहीं पाती थी बस कभी जब उत्तेजना ज्यादा बढ़ जाती तो बेंगन, लोकि बेलन चुत मे डाल के काम चला लेती थी.
इसी उत्तेजना मे वो आज अपना ब्लाउज खोल फेंकती है, दोनों बड़े और टाइट स्तन उछल बाहर को आ धमके.
जैसे ही स्तनों पे थोड़ी हवा पड़ती है, निप्पल खड़े हो के तन जाते है और सलामी देने लगते है. भूरी अपने निप्पल को पकड़ के जोर से मरोड़ देती है.
आह्हः.... आआआआहहहहह..
आज तो उतत्तेजना अपने चरम पे थी, ऐसी उत्तेजना उसने आज तक़ कभी महसूस नहीं कि.
लगता था आज मर ही जाएगी उत्तेजना से.
ऐसे रूहानी मौसम मे भी भूरी पसीने से भीगी हुई थी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी.
अब बर्दाश्त के बाहर था भूरी तुरंत उठी और रसोई कि तरफ निकल ली, जहाँ कुछ लोकि बैंगन मिल जाये.
परन्तु हाये री फूटी किस्मत आज रसोई मे ऐसा कुछ नहीं था जिसे चुत मे डाल के प्यास बुझाई जा सके.
बाहर बगीची मे लोकि, तरोई, बैगन उगे हुए थे, लेकिन जोरदार बारिश हो रही थी कैसे जाये बाहर... क्या करे ये चुत जीने नहीं देगी.
खूब पानी छोड़े जा रही थी... भूरी पागल हुए जा रही थी.
भूरी निर्णय ले चुकी थी, चुत की गर्मी ने उसके कदम हवेली के बाहर की ओर बढ़ा दिए, भूरी काकी हवेली का दरवाजा खोल अर्द्धनंग अवस्था मे ही बाहर लोकि तोड़ने निकल पड़ी, उसे कोई सुध बुध नहीं थी, थी तो सिर्फ हवस जो कि उस कि जान लेने पे उतारू थी.
हवेली के दरवाजे के बाहर बगीची थी, बगीची के आगे बरामदा था उसके आगे मुख्य दरवाजे से लग के एक झोपडी नुमा कमरा था जो कि कालू, बिल्लू और रामु का था वही रह के तीनो हवेली कि सुरक्षा करते थे.
परन्तु आज ठाकुर साहेब हवेली मे नहीं थे तो तीनो मौज मे थे कोई डांटने वाला नहीं कोई रोक टॉक नहीं.
बिल्लू :- यार एक एक बॉटल दारू और हो जाये तो ऐसे मौसम मे मजा आ जाये, साला क्या मौसम बना है आज ऊपर से ठाकुर साहेब भी नहीं है जम के पीते है, क्यों भाई लोग?
कालू, रामु भी बिल्लू कि बात से सहमत थे,
"ठीक है बिल्लू हम लोग दारू और साथ मे कुछ खाने को लाते है तू तब तक़ नजर रख हवेली पे"
कालू रामु निकल गए दारू लेने.
इधर भूरी काकी हवस के उन्माद मे भागी भागी लोकि तोड़ने जा रही थी, अपने स्तन को उछालती हुई, सिर्फ पेटीकोट मे ऊपर से बिल्कुल नंगी, मस्त सुडोल बड़े स्तन उछल रहे थे ऊपर नीचे
तभी अचानक उसका पैर फिसला और धड़ाम से पीठ के बल जमीन पे जोरदार टकरा गई.
आअह्ह्ह आआहहहह.....हवेली मे चीख गूंज उठी, साथ ही भूरी के होश फकता होते चले गये.
गांव कामगंज मे रामनिवास के घर पे भी हवस छाई हुई थी
रतीवती पूर्ण रूप से नंगी हो चुकी थी, बस मंगल सूत्र, माथे पे बिंदी, हाथों मे मेहंदी और मांग मे सिंदूर ही बचा था.
वो अपनी चुत रगड़े जा रही थी, पूरी चुत पानी से पच पच कर रही थी चुत से पानी निकल निकल के नीचे गांड के रास्ते होता हुआ बिस्तर को भिगो रहा था. चुत मे ऊँगली करते हुए चूडियो कि छन छानहत गूंज रही थी, ये छन छानहत माहौल मे मादकता घोल रही थी, खुद कि चूडियो का मधुर संगीत सुन के रतीवती हवस के सातवे आसमान पे पहुंच चुकी थी,उसे लंड चाहिए था किसी भी कीमत पे..
वो अपना एक हाथ रामनिवास कि धोती पे रख उसका लंड टटोलने लगती है परन्तु लंड का कोई नामोनिशान नहीं
रतीवती ने धोती खोल दी शायद कोई उम्मीद हो शायद लंड खड़ा हो जाये.
धोती हटा के देखती है तो मरा हुआ चूहा दीखता है जो अब कभी जिन्दा नहीं होगा.
रतीवती बहुत ज्यादा निराश हो चली, उसकी किस्मत मे ही यही था... शायद भगवान ने उसकी जिंदगी मे सम्भोग लिखा ही नहीं था.
रतिवती की उत्तेजना का उन्माद ठंडा पड़ने लगा या यु कहिये वो अपनी इच्छा अपनी हवस को किस्मत का लेखा समझ के दबा रही थी .अपनी उत्तेजना को कम करने के लिए वो मूतना चाहती थी परन्तु बाहर बारिश हो रही थी.
रतीवती : बाहर बारिश हो रही है, घर के पीछे ही चली जाती हूँ वैसे भी इस तूफानी बरसाती रात मे कौन जग रहा होगा,
उसके कमरे से ही पीछे का रास्ता था जिसे खोल के वो नंगी ही मूतने निकल पड़ी.
क्युकी बाहर तो कौन होगा.
क्या कोई होगा?
Contd....
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