अपडेट -4
चैप्टर -1, ठाकुर कि शादी
मंगलवार का दिन भी आ चूका था,
ठाकुर ज़ालिम सिंह कि हवेली मे सुबह से ही चहल पहल हो रही थी, घोड़ा गाड़ी पे सामान बांधे जा रहे थे. खूब अन्न गेहूं चावल फल मिठाईया बांध ली गई थी.
ठाकुर :- अरे हरामियों कालू, बिल्लू, रामु कहाँ मर गये सब के सब मेरी पगड़ी कहाँ है?
सब के सब हरामखोर है सालो को मुफ्त खाने कि आदत पड़ गई है.
ठाकुर साहेब कपडे पहने जा रहे थे और भुंभूनाते जा रहे थे.
तभी कमरे मे छन छन पायल छनकाती भूरी काकी पगड़ी लिए खड़ी थी.
भूरी काकी
उम्र 50 साल लेकिन आज भी कसा हुआ बदन है.
साइज 34-26-38 है,
उम्र होने के बावजूद भी स्तन और गांड का कसाव बारकरारा है.
या यु कहिये भूरी काकी पुरानी शराब कि तरह है जो वक़्त के साथ और ज्यादा नशीली होती जा रही है.
गांव मे इनकी बहुत इज़्ज़त है, ठाकुर भी इज़्ज़त से ही पेश आते है इनके सामने.
परन्तु ये अंदर से है बिल्कुल सुलगती भट्टी, हवस हमेशा दबी रहती है बस आगे से पहल नहीं करती.
इनकी 16 साल कि उम्र मे ही शादी हो गई थी, शादी मात्र 4 साल ही चल पाई इनका पति वक़्त से पहले ही भरी जवानी मे खेत मे काम करते वक़्त सांप काटने कि वजह से मारा गया.
तब से आज तक भूरी ने सम्भोग नहीं किया, हालांकि रोज़ रात ऊँगली, बेंगन, खीरा, बेलन जरूर डालती है चुत मे जैसे तैसे अपनी हवस मिटाती है लेकिन शर्माहाट और शराफत के कारण कभी बाहर चुदवा ना पाई.
हाय री किस्मत... ऐसे मस्त बदन को भोगने वाला कोई था ही नहीं.
ठाकुर ज़ालिम कि माँ ने भूरी को हवेली के काम काज के लिए रख लिया था.
तब से आज तक भूरी हवेली कि सेवा मे ही रह गई.
"ये लीजिये ठाकुर साहेब पगड़ी पहनिये" भूरी ने खुद अपने हांथो से पगड़ी पहना दी.
"वाह ठाकुर साहेब क्या लग रहे है, जँच रहे है, कामवाती पहली ही नजर मे आपको पसंद कर लेगी " काकी ने एक काला टिका लगा दिया.
ठाकुर :- काकी आप भी ना, हालांकि ठाकुर और भूरी कि उम्र मे ज्यादा अंतर नहीं था.
लेकिन सब भूरी को काकी ही बोलते थे क्युकी भूरी ठाकुर कि माँ कि सेवादारनी थी.
तो ठाकुर भी बचपन से ही भूरी को काकी ही बोलते थे.
काकी आप ना होती तो ये हवेली कैसे चलती, बाकि सब साले हरामी हो गये है.
भूरी काकी :- छोडीये गुस्सा मै उन्हें देख लुंगी, आप अच्छे काम के लिए जा रहे है गुस्सा थूक दीजिये.
कालू, बिल्लू, रामु तीनो ही ठाकुर के आदमी थे वफादार थे
बस प्यार कि भाषा नहीं समझते थे, ठाकुर जब तक चिल्लाता नहीं, इनसे काम होता नहीं.
तीनो एक नंबर के हरामी शराबखोर और चोदने के शौक़ीन थे.
लेकिन वफादार गजब के.
तीनो एक जैसे ही दीखते थे,मुछे रोबदार, लम्बाई 5.8इंच,चौड़ी छाती.
बिल्कुल लठेट, लंड भी तीनो के एक सामान 8इंच के काले मोटे बेंगन जैसे लंड.
" ठाकुर साहेब कितना सजेंगे चलना नहीं है क्या? डॉ. असलम ने अंदर आते हुए कहां.
ठाकुर :- आओ असलम आओ... मै तुंहारी ही राह देख रहा था.
मै तो तैयार ही हूँ लेकिन वो तीनो हरामी घोड़ा गाड़ी तो तैयार करे.
डॉ. असलम :-हाहाहाहाहा क्या ठाकुर साहेब उन बेचारो पे चिल्लाते हो उन्होंने गाड़ी तैयार भी कर दि है.
"ठाकुर साहेब गाड़ी तैयार है सारा सामान लाद दिया है और गाड़िवान भी आ चूका है." बिल्लू ने अंदर पहुंच के सुचना दी
"आप प्रस्थान कर सकते है, और यादि इज़ाज़त हो तो हम तीनो भी साथ चले?"
ठाकुर :- नहीं हम अच्छे काम के लिए जा रहे है तुम तीनो मनहूसो को ले जा के काम नहीं बिगाड़ना मुझे.
तुम लोग हवेली मे ही रहो कोई चोर लुटेरा घुस गया तो फिर हो गई शादी.
ठाकुर हमेशा ही तीनो को लताड़ते रहते थे, तीनो थे भी इसी लायक कोई काम ठीक से करते ही नहीं थे.
जो करते कुछ ना कुछ बिगाड़ ही देते.
बस ठाकुर के प्रति हद से ज्यादा वफादार थे इसलिए अब तक हवेली मे टीके हुए थे.
डॉ.असलम और ठाकुर घोड़ा गाड़ी पे सवार हो के निकल चुके थे..
और पीछे रह गये थे तीनो जमुरे और भूरी काकी.
ठाकुर बहुत ख़ुश थे, उनका दिल चूहें कि तरह उछल रहा था,
ठाकुर :- असलम जैसा तुम बोलते हो क्या कामवती उतनी ही सुन्दर है?
असलम :- हाँ ठाकुर साहेब आप देखेंगे तो देखते ही रह जायेंगे.
ठाकुर का मन गुदगुदाने लगा,
सफ़र शुरू हो चूका था, ठाकुर जल्दी से जल्दी कामगंज गांव पहुंच जाना चाहते थे.
दूसरी तरफ कामगंज मे, रामनिवास का घर पे भी सुबह से गहमा गहेमी थी.
रामनिवास आज भी दारू पिने से बाज नहीं आया, कामवती कि माँ रतीवती जब से रामनिवास को ढूंढे जा रही थी.
रतिवती :- कहाँ मर गया आज भी ये शराबी,कही शराब पिने तो नहीं बैठ गया.
अकेली ही सारी तैयारी करने मे लगी थी रतीवती.
गांव कि कुछ लड़किया भी आई हुई थी जो कामवती को सजाने मे लगी थी.
घर के एक तरफ हलवाई पकवान बना रहा था
तभी दरवाजे पे लड़खड़ाता रामनिवास आता है.
जिसे देख के रतीवती बुरी तरह आगबबूला हो गई,
रतिवती :- मै यहाँ अकेले मरी जा रही हूँ और ये हरामी शराब पी के मौज मे घूम रहा है.
लेकिन रामनिवास भी चिकना घड़ा था कहाँ असर पड़ता उसकी बातो का.
रामनिवास :- अरी भाग्यवान आज तो खुशी का मौका है, क्यों जल भून रही हो थोड़ी सी पी ली तो क्या गुनाह कर दिया.
वैसे भी ठाकुर साहेब अपनी कामवती को देखेंगे तो मना नहीं कर पाएंगे.
आखिर बेटी कि सुंदरता उसकी माँ पे जो गई है" रामनिवास ने रतिवती के ल पे चीकूटी काट ली.
रतीवती घनघना गई, छोडो भी जाओ नहा धो लो हुलिया सुधारो ठाकुर साहेब कभी भी आते होंगे.
"मै भी तैयार हो लेती हूँ," रतिवती अपने कमरे मे चली गई और रामनिवास बाथरूम कि तरफ बढ़ चला.
रतिवती आज बहुत ख़ुश थी क्युकी उसकि बेटी का रिश्ता बहुत बड़े घर मे होने वाला था, उसका सपना तो कभी पूरा हुआ नहीं कम से कम उसकी बेटी तो बड़े घर कि बहु बने, उसकी खूबसूरती तो काम आये.
"कहाँ मै अभागी कुछ ना मिला मुझे" खुद से बड़बड़ती रतिवती शीशे के सामने खड़े हो कर वो अपनी साड़ी उतारने लगी.
साड़ी का उतरना था की स्तन के बीच की कामुक लकीर ब्लाउज मे से झाकने लगी . क्या गोरे गोरे बड़े स्तन थे रतिवती के आज भी एक दम कसे हुए.
स्तन के बीच लटकता मंगलसूत्र और भी ज्यादा कामुक लग रहा था.
ब्लाउज के नीचे बिल्कुल सपाट पेट, जिस पे कोई दाग़ नहीं नीचे चल के एक गहरी नाभि जिस से हमेशा खुशबू निकलती ही रहती थी एक मदहोश कर देने वाली खुशबू.
लेकिन किस्मत कि मार ऐसा कामुक गद्दाराये बदन कि किसी को कदर ही नहीं पती शराबी निकला.
शराब के अलवा कुछ दीखता ही नहीं.
रतिवती अपने ब्लाउज को उतार दिया, चोली मे कैद बड़े बड़े स्तन पूरी तरह छलक कर बाहर ठंडी हवा मे अंगड़ाई लेने लगे.
रतिवती खुद को ही देख के शर्मा गई, ऐसा ग़दराया बदन था रतिवती का.
ना चाहते हुए भी एक हाथअपने दाये स्तन पे ले जाती है और सेहलाने लगती है आअह्ह्हह्म..... पुरे बदन मे सरसराहत चल पड़ी,स्तन से होती नाभि के रास्ते एक करंट सीधा चुत तक झुनझुनहट पैदा करने लगा.
रतिवती बरसो से कामवासना कि आग मे जल रही थी, आज शादी के माहौल मे उसे कुछ कुछ हो रहा था लगता था जैसे उसकी बरसो से दबी इच्छा पूरी होने वाली हो.
"तभी बाहर से आवाज़ आई, बीबी ज़ी ओह्ह्ह बीबी ज़ी.... सब्जी बना दि है चख के स्वाद देख ले"
ये हलवाई कल्लू राम है, जो पास के ही गांव से आज रामनिवास के आग्रह पे खाना बनाने आया था...
रतिवती कि मदहोशी इस आवाज़ के साथ टूटी.... पलट के सीधा दरवाजे के पास पहुंच दरवाजा खोल दिया.
सामने हलवाई कल्लूराम खड़ा था... परन्तु ये क्या कल्लू राम अपना मुँह खोला एक टक रतिवती को देखे जा रहा था..
रतिवती हैरान थी कि ये कल्लूराम को क्या हुआ ये मूर्ति जैसा क्यों हो गया, अचानक उसे ध्यान आता है कि उसने तो साड़ी पहनी ही नहीं है वो तो सिर्फ पेटीकोट मे ही है, स्तन अभी भी आजाद अपने कडकपन पर इतरा रहे थे.
रतिवती पे जो मदहोशी सवार थी उस चक्कर मे वो खुद को ही भूल गई थी कि किस अवस्था मे है और तुरंत दरवाज़ा खोल दिया.
दरवाज़े के बाहर कल्लूराम ऐसा नजारा देख के आश्चर्य चकित था, ऐसा गोरा मखमली ग़दराया बदन उसने कभी देखा ही नहीं था,वो अभी भी एकटक रतिवती के स्तन पे नजरें गाड़ाये सुध बुध खोये खड़ा था.
रतिवती ने तुरंत दरवाजा बंद कर लिया और पलट के दरवाजे के सहारे टिक के लम्बी लम्बी सांसे खींचने लगी .... "हे भगवान ये क्या किया मैंने? इतनी बड़ी गलती? कल्लूराम हलवाई मेरे बारे मे क्या सोच रहा होगा?"
कल्लूराम अभी भी दरवाजे के बाहर मूर्ति बने जस का तस खड़ा था.
तभी पीछे से बाथरूम से रामनिवास नहा के निकला " ओह कल्लूराम.... कल्लूराम ओह कल्लूराम"
लेकिन कल्लूराम होश मे कहाँ था वो तो मन्त्रमुग्ध दरवाजे को घुरा जा रहा था जैसे कि वो पल थम गया हो उसके लिए.
तभी रामनिवास ने पास आ कल्लूराम के कंधे पे हाथ रख दिया "क्या हुआ कल्लूराम कुछ काम था क्या?"
कल्लूराम :- वो वो वो वो..... बबबबबब मै क्या.... वो मै.... हाँ मै भाभीजी को बोलने आया था कि सब्जी चख लेती.
कल्लूराम हकलाता अटकता बोल ही गया.
रामनिवास :- हाँ तो खड़े क्यों हो दरवाजे पे, बोल दो अपनी भाभी को?
रतिवती ये सब बाते अंदर सुन रही थी वो अभी भी थोड़ी देर पहले हुए किस्से को अपने जेहन से निकाल नहीं पा रही थी.
" हे राम मै भी कैसी अंधी पागल हूँ जो पेटीकोट मे ही दरवाजा खोल दिया, क्या सोचा होगा मेरे बारे मे?"
तभी बाहर से रामनिवास आवाज़ देने लगा "अरी भाग्यवन दरवाजा तो खोल दो, देखो कल्लूराम आया है सब्जी चख लो, वरना बाद मे मुझे ही बोलोगी कि कैसा हलवाई ले आया. "
"हुँह.... मै चलता हूँ कपडे पहन के बैठक कि तैयारी देख लेता हूँ." रामनिवास चल पड़ा.
कल्लूराम अब भी दरवाजे के बाहर सकपाकाया रतीवती का इंतज़ार कर रहा था.
रतिवती अब तक़ थोड़ा संभल चुकी थी..
रतीवती की सांसे दुरुस्त हो चुकी थी, तुरंत भाग के अपना ब्लाउज पहन लेती है, परन्तु इस गहमा गहमी मे रतिवती पसीने से तर हो गई थी, इतना पसीना आने मे कुछ हाथ थोड़ी देर पहले हुई घटना का भी था,
रतीवती पसीने मे भीगी सकपाकाहाट मे दरवाजे कि और बढ़ गई, एक अजीब उत्तेजना पुरे बदन को हिला रही थी.
रतीवती कापते हाथो से दरवाजा खोल देती है, कल्लूराम अभी भी बाहर मुँह खोले खड़ा था.
रतीवती को समझ नहीं आ रहा था कि वो हलवाई से कैसे कुछ बोले?
कल्लूराम अभी भी मूर्ति बने ही खड़ा था.
रतीवती को उसकी ये हालत देख के खुद के जिस्म पर घमंड हो आया कि मेरे बदन मे आज भी वो बात है कि किसी मर्द को जडवत कर दू, हैरान कर दू.
"काका ओ काका.... कहाँ खो गये" रतीवती ने दरवाजे से बाहर कल्लूराम के बगल से निकलने का प्रयास किया परन्तु कल्लूराम ऐसे खड़ा था कि जगह ही नहीं थी, रतिवती का ग़दराया जिस्म कल्लूराम के बूढ़े बदन से रगड़ खाता आगे निकल गया.
इस रगड़ाहट से एक उत्तेजक चिंगारी निकली जो दोनों के ही शरीर को हिला गई.
उत्तेजना का करंट लगने से हलवाई जैसे होश मे आया हो, कल्लूराम का हाथ अपनी धोती के अगले हिस्से पर खुद ही पहुंच गया, जहा पहले से ही उसका लंड सालामी दे रहा था जिसे दबाने के प्रयास मे कल्लूराम अपनी धोती को सभालने लगा.
रतीवती की निगाहेँ हलवाई की हरकत हो भाँप गई फिर भी बिना कुछ बोले पलट के आगे चलने पड़ी, जहाँ खाना बन रहा था, रतीवती चलते हुए मुस्कुरा रही थी, मुस्कान के साथ मन मे सवाल था "कैसे काका अपना लंड दबा रहे थे, क्या मै अभी भी सुन्दर हूँ?"
इतना सोचना था कि रतीवती कि चाल मे अचानक परिवर्तन आ गया अब वो और ज्यादा अपनी बड़ी गांड मटकाये जा रही थी.
जिसे पीछे पीछे आता कल्लूराम एक टक देख रहा था,
जब गांड दाये जाती तो कल्लूराम का सर भी दाये जाता, और जब गांड बाएं जाती तो सर भी बाएं को झुकता.
ऐसा लगता था जैसे रातीवती कि गांड मे कोई रिमोट फिट है जो कल्लूराम कि गर्दन को हिला रहा है.
रतीवती समझ चुकी थी कि बुड्ढा हलवाई उसका दीवाना हो गया है.
तभी रतीवती एक दम से पीछे गर्दन घुमा के बड़ी अदा से बुड्ढे हलवाई को देखती है, समझ जाती है कि वो उसकी लचकती गांड को ही घूर रहा है
उसे भी मजा आ रहा था उसे अपना बदन दिखाने मे,
"अब जिसे मेरी बदन कि कद्र है उसे तो सुख दे ही सकती हूँ थोड़ा" वो ऐसा सिर्फ खुद को दिलासा देने के लिए सोच रही थी जबकि असल मे कल्लूराम के दीवानेपन और उसकी हरकतों कि वजह से रतिवती का शरीर गर्म हो रहा था, गर्म हो भी क्यों ना उसका शराबी पती तो उसकी तरफ देखता तक़ नहीं था तारीफ और प्यार क्या खाक करता और स्वभाव तो था ही चंचल
खाने का पंडाल आ चूका था,
रतिवती :-चखाइये ना काका, क्या चखा रहे थे? बड़ी अदा के साथ वापस पीछे हलवाई कि तरफ घूम के बोली.
कल्लूराम :- वो मै मै..... वो मै.. बबबब.... क्या था मै.
रातीवती हॅस पड़ी "काका क्या बात है ऐसे हकला क्यों रहे है?"
हलवाई हसती हुई रतीवती को देखता ही रह गया, क्या खूबसूरत है बीबी ज़ी ऐसी खूबरत औरत तो दूर दूर के गांव मे भी नहीं होंगी.
तभी कही से एक हवा का झोंका आया और रतीवती का पल्लू सरक गया.
रतीवती ने जल्दबाज़ी मे साड़ी अच्छे से नहीं पहनी थी और ना ही ब्लाउज के पुरे बटन लगाए थे.
हलवाई के सामने फिर से वही कामुक खूबसूरत नजारा घूम गया, उतने मे ही रतीवती ने साड़ी को संभाल लिया, यदि आज साड़ी सँभालने मे थोड़ी से भी देर हुई होती तो पक्का बुड्ढे हलवाई को दिल का दौरा पड़ जाता.
कल्लूराम :- कितनी.... कितनी.. बबबब... मै... क्या... कितनी सुन्दर हो बीबी ज़ी आप, पता नहीं किस आवेश या उत्तेजना मे वह ये बात कह गया.
रतीवती अपनी तारीफ सुन के शर्म के मारे अपना सर नीचे झुका लेती है, तभी उसकी नजरें अपने ब्लाउज पर पड़ी ऊपर के दो बटन खुले हुए थे तो क्या काका ने मेरे स्तन फिर से देख लिए.
"क्या हो रहा है मेरे साथ ये सुबह से उफ्फ्फ्फ़....."
रतिवती ने जल्दी से अपनी साड़ी से स्तन के ऊपरी हिस्से को ढक लिया और सामन्य होने कि कोशिश करने लगी.
रतीवती :- क्या कह रहे थे काका आप? उसकी आवाज़ ने एक कंपकपी थी मदहोशी से आवाज़ थोड़ी अटक रही थी.
रतीवती को नाराज ना होता देख कल्लूराम मे थोड़ी हिम्मत का संचार हो गया.
कल्लूराम:- वो बीबी ज़ी आप कितनी सुन्दर है.इस बार हलवाई ने बिना अटके ही बोल दिया था रतीवती कि मुस्कुराहट से उसमे आत्मविश्वास आ गया था.
रतीवती :- क्या काका आप भी अब तो मै बूढ़ी हो चली हूँ, देखो अब तो मेरी बेटी कि भी शादी होने वाली है.
कल्लूराम :- अजी छोड़िये क्यों मुँह खुलवाती है मेरा? कौन कहता है आप बूढ़ी हो गई है.
भगवान कसम आप तो आज भी जवान लड़कियों को फ़ैल कर दे, क्या जवानी है आपकी. साक्षात् रती देवी का अवतार है आप" हलवाई का हाथ अपने खड़े लंड को मसल रहा था.
रतीवती का जिस्म अपनी तारीफ सुन सुलगने लगा था, ऊपर से हलवाई के लंड का उभार उसे मदहोश कर रहा था.
दबी हुई वासना हिलोरे मारने लगी थी, सांसे थोड़ी तेज़ हो चली थी इसका सबूत रतीवती के ऊपर नीचे होते गोरे बड़े स्तन दे रहे थे.
आअह्ह्ह l...हलवाई के मुँह से ऊपर नीचे होते स्तन देख के आह्हःम... निकल गई,
रतीवती :- चलिए छोड़िये ये सब बाते, अब इस सुंदरता कि कोई कदर नहीं, आप तो चखाइये क्या चखा रहे थे?क्या किस्मत है रतीवती कि पति ध्यान देता नहीं और यहाँ बुढ़ा मरा जा रहा है उसके लिए.
वाह री किस्मत....
"हाँ आइये बीवी ज़ी", कल्लूराम पंडाल के पीछे जाने लगा,
जहाँ एक बड़ा सा भगोना रखा था जिसमे सब्जी बनी हुई थी, हलवाई उसका ढक्कन खोल पीछे हट गया,
कल्लूराम :- लो बीवी ज़ी देख लीजिये.
रतीवती आगे बढ़ सब्जी के भागोने पर झुक गई,
ऐसा करने से रतिवती की कामुक कड़क गांड बाहर को निकल आई, और किसी कड़क चीज से जा टकराई.
अब ऐसा रतीवती ने जान बुझ के किया था या खुद से हो गया कह नहीं सकते.
वो सख्त चीज हलवाई का लंड था जो कि ऐसी हाहाकारी मदमस्त गांड देख के तनतना गया था.
उसका बूढ़ा लंड कभी भी वीर्य कि बौछार कर सकता था, बूढ़े के लंड ने आज कितने सालो बाद अंगड़ाई ली थी.
रतीवती सब्जी कि खुशबू लेने लगी और जानबूझ के अपनी गांड को पीछे धकेल देती है इतना की उसकी गांड पीछे खड़े हलवाई की धोती से जा चिपकी.
कल्लूराम का लंड तनतनाया रतीवती कि गांड कि दरार मे साड़ी के ऊपर से ही दब गया.
आआआहहहहह......कल्लूराम के हलक से एक सिसकारी फुट पड़ी.
रतीवती खुशबू लेने के बाहने खड़ी हो वापस झुक गई इस उपक्रम मे रतिवती की बड़ी मादक गांड दो बार हलवाई के लंड पे ऊपर नीचे घिस गई.....
हलवाई चीख पड़ा . आआआहहहहह..... आअह्ह्ह....
पीच पीच पीछाक...कल्लूराम के लंड ने जवाब दे दिया था, हलवाई धोती मे ही स्सखलित ही चूका था और पीछे पड़ी कुर्सी पे ढेर हो गया, लगता था जैसे किसी ने प्राण ही खींच लिए हो कल्लूराम के.
" सब्जी कि खुशबू तो अच्छी है" रतिवती पीछे को पलटी ही की हलवाई पीछे कुर्सी पे ढेर पड़ा था.
बुड्ढा कहाँ रतीवती जैसी गरम कामुक औरत को संभाल पाता, साड़ी के ऊपर से ही गांड कि गर्मी ना झेल सका.
उतने मे ही "अरी भगवान सब्जी चखी नहीं क्या अभी तक़? जल्दी करो ठाकुर साहेब का आने का टाइम हो ही गया है "
रतीवती आई कम्मो के बापू, रतीवती हलवाई को वैसे ही मुर्दा अवस्था मे छोड़ के निकल पड़ती है. रामनिवास की आवाज़ नजदीक आ रही थी.
रामनिवास :- कैसी बनी सब्जी?
रतीवती :- सब्जी चखती उस से पहले ही चखाने वाला ढह गया.
और मंद मंद मुस्कुरा दी.
रामनिवास बैल बुद्धि को कुछ समझ पाया.
रामनिवास :- अच्छा चलो तैयार हो लो तुम भी जल्दी से और देखो कि कामवती तैयार हुई या नहीं?
रतीवती अपने कमरे की ओर बढ़ चली
अब उसकी चाल से मादकता झलक रही थी बुड्ढा खुद तो ढेर हो गया था परन्तु रतीवती कि जिस्म मे आग लगा गया था काम कि आग.....
कहानी जारी है
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