खेर मुझे आज से कॉलेज जाना था तो जल्दी जल्दी तैयार हो गया, कॉलेज सुबह 8बजे से 2 बजे तक लगने वाला था, जो की लगभग 10 km की दुरी पर था.
शाम को लौटा तो देखा असलम की दुकान खुली हुई थी, दुकान पर बहुत भीड़ भी थी, काफ़ी ग्राहक खड़े थे.
"आये... ये क्या हुआ, अभी सुबह तो माँ का चेहरा लटका हुआ था, अभी दमक रहा है " मै सोच मे पड़ गया.
"माँ अब तबियत कैसे है?" मैंने पूछ लिया.
"ठीक है...." माँ ने जावब के साथ ही मुँह फेर लिया जैसे नयी नवेली दुल्हन शर्माई हो..
मै माँ के व्यवहार से हैरान था.
जब से यहाँ आया हूँ साला कुछ ना कुछ अजीब हो रहा है.
माँ किचन मै चली गई और मै बाथरूम मे.
आख़िरकार असलम वापस आ चुका था, उसके बाद कुछ दिन ऐसे ही बीत गए,रोज़ कॉलेज से घर, घर से कॉलेज,
उस दिन के बाद से असलम भी ज्यादा दीखता नहीं था, शाम को ही थोड़ी देर दुकान खोलता था बाकि टाइम बंद.
लगता है पुलिस वालो ने जम के कुटाई की होंगी उसकी.
हालांकि मैंने नोटिस किया इस एक सप्ताह मे माँ कुछ ज्यादा ही सजी धजी रहने लगी है, हमेशा चटक रंग की साड़ी, मेकअप, टाइट ब्लाउज, उसमे से झाकते दो खूबसूरत स्तन.
उस दिन की घटना के बाद एक सप्ताह बीत गया था, आज संडे था.
"बेटा कल मे कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा हूँ अपनी माँ का ध्यान रखना " पापा ने डाइनिंग टेबल पर खाते हुए बोला
"क्यों जी कहाँ जा रहे हो, अकेला छोड़ के देखते हो ना यहाँ का माहौल " माँ ने मुँह बिगाड़ते हुए बीच मे बोला
"अरे माँ सब ठीक है, पापा आप जाओ मै हूँ ना " मैंने माँ की बात बीच मे ही काट दि.
मै खुद को बड़ा दिखा रहा था.
"वैसे भी वो गुंडा असलम अब दीखता भी नहीं है " पापा ने मम्मी को आश्वासन दिया.
मैंने नोटिस किया माँ सिर्फ मुस्कुरा के रह गई, जबकि माँ भी चिंतित थी, माँ की मुस्कान मे एक तीखापन था.
मुझे ऐसा लगा, या फिर मेरा दिमाग़ ख़राब हो चूका था पिछली घटनाओ से इसलिए मुझे माँ की समान्य हरकत भी सादिग्ध लगती थी.
ये शक भी ना.
"कहाँ खो गए बबलू बेटा?"
"कक्क..... कुछ नहीं पापा, मै ध्यान रखूँगा वैसे भी कॉलेज मे फेस्टिवल हॉलिडे लगने वाला है.
अगले दिन पापा ड्यूटी के काम से दूसरे जिले चले गए, आज मेरा कॉलेज का लास्ट डे था फिर एक सप्ताह की छुट्टी थी.
मै तैयार हो कॉलेज के लिए निकल गया, वापस लौटेंते वक़्त दोस्तों के साथ दारू पार्टी कर ली उसी खंडर पर, तो घर आते ही मेरा सर थोड़ा भारी हो गया.
माँ को सोने का बोल के कमरे मे घुस बिस्तर पर जा गिरा, घड़ी देखी अभी शाम के 7 ही बजे थे,
बिस्तर पर गिरते ही मै नींद मे समा गया.
लेकिन जल्द ही मेरी नींद खुल गई, वैसे भी मै ज्यादा नहीं पिता था मात्र एक बियर.
घड़ी देखा तो 10बज गए थे "अरे बाप रे इतना टाइम हो गया "
मै टायोलेट के लिए उठा और मुतके चला आया, लेकिन अब आँखों से निंद गायब हो चुकी थी, कुछ देर फोन चलाया लेकिन नींद कोषों दूर थी.
क्या करता रात हो ही गई थी, सिगरेट की तलब लग आई.
"आज तो पापा भी घर पर नहीं हैं, माँ भी सो चुकी होंगी, क्युकी जब बाहर गया था तो घर की सभी लाइट्स बंद थी.
मै चुपचाप दबे पाँव घर के बाहर आ गया "आअह्ह्ह... हह... मस्त ठंडी ठंडी हवा का झोंका मेरे जिस्म को भीगो रहा था "
नवंबर का महीना था, राते हलकी हलकी ठंडी ही थी.
मैंने घर से थोड़ा आगे जा कर सिगरेट जला ली...
टहलते हुए थोड़ा आगे गया तो देखा, असलम कसाईं की झोपडी से लाइट की रौशनी आ रही थी.
"सोया नहीं मादरचोद अभी तक " मैंने सिगरेट का कस मारते हुए खुद से कहाँ.
उस दिन के बाद से मुझे असलम पे हसीं आती थी, कही ना कही मै खुद को किसी युद्ध मे जीता योद्धा के सामान मानता था.
"वैसे कर क्या रहा है इतनी रात को लाइट जला कर, साला लंड ही हिला रहा होगा " ना जाने क्यों किस लालसा से मेरे कदम उसकी झोपडी की ओर बढ़ गए.
सड़क सुनसान थी, मुझे नींद भी नहीं आ रही थी, शायद टाइम पास की भावना से मुझे उसकी झोपडी मे झाकने की चूल सी मची...
आसपास देखा कोई नहीं था, मै दबे पाँव झोपडी के पीछे उसी स्थान पर चला गया जहाँ से मैंने पहली बार झांका था.
मेरे मन मुताबिक वही हुआ, साला आज भी नंगा ही खड़ा था, मेरी आँखों के सामने असलम पूरा नंगा था, मुझे उसका पीछे का हिस्सा दिखाई दे रहा था,
लेकिन जैसे ही मेरी आंखे उसके कमर के नीचे केंद्रित हुई, मेरा गला सुख गया, आंखे फटी रह गई,
चौकने का कारण असलम का नंगा होना नहीं था, उसे तो मै पहले भी नंगा देख चूका था, परन्तु आज असलम अकेला नहीं था, उस कसाईखाने में कोई और भी था..
और वो एक औरत थी... जिसकी नंगी टांगे असलम की कमर मे लिपटी हुई थी और वो औरत असलम के आगे लेटी थी.
मै हैरान रह गया इस गंदे आदमी एक कसाई के पास ये औरत कहाँ से आ गई.
मैंने गौर किया उस औरत ने पैरो मे पाजेब पहनी हुए थी बिछवे पहने हुए थे.
पावो पर लाल म्हावर लगी हुई थी.. मतलब वो एक हिन्दू औरत थी.
"साला ये कहाँ से लड़की ले आया वो भी दूसरे धर्म की, जरूर कोई सस्ती रंडी लाया होगा हरामी " मै खुद से ही बात कर रहा था.
हालांकि अभी तक उस औरत की शक्ल दिखाई नहीं दी थी, बस उसकी नंगी टांगे जिसे असलम की कमर पर बांध रखी
थी, इसी से मैंने ये अंदाजा लगाया.
असलम उस औरत को तेज-तेज आगे पीछे होकर चोद रहा था, उसका 9 इंच का मोटा काला गंडा लंड उस औरात की चुत मे घुसा पड़ा था.
उस कसाईखाने में चुदाई का माहौल बना हुआ था, एक अजीब सी गंध फैली हुई थी, कभी चप चप की आवाज आती तो कभी चुड्डियो के खन खन की आवाज, तो कभी पायल की छमा छम्म चप चप चप चमा छमम.. एक सुरमई सांगित का मुक़ाबला जान पड़ता था.
उस औरत ने अपनी पूरी टांगे हवा में खोल रखी थी जिसे असलम का लौड़ा अच्छे से उसकी चूत को की गहराइयों मे जा रहा था और असलम कसाई उस चूत को तेज तेज अपने मुसल कड़क लंड से चोदे जा रहा था.
टप टप तप तप पुछह्ह्ह्ह पुच्च्ह्ह पुच्च्ह्ह आअह्ह्ह्ह पुच्छ्ह्ह पुव्ह्ह्ह पुच्च्ह्ह
असलम की कमर तेजी से आगे पीछे होकर उस अंजान औरत की चुत की चुदाई कर रही थी.
मै भी उस चुदाई का आनंद लेने लगा, आखिर क्यों ना लेता पहली बार लाइव चुदाई देख रहा था,
मैंने देखा उस औरत के दोनों हाथ जो लाल रंग की चुड़िया और सोने की अंगूठीयो से भरे पड़े थे, वो दोनो हाथ असलम की कमर पर आकर अपने नरक नरम हाथो से असलम की
कमर पर घूम रहे थे, उसे अपने और धकेल रहे थे.
वो औरत असलम को इस तरह से और ज्यादा उत्तेजित कर रही थी, जिसे असलम तेजी से जोश में आकर उस औरत की चुदाई कर रहा था...
उस औरत के हाथ देख कर तो लग रहा था वो एक संस्कारी ठीक ठाक घर की औरत है, उसकी उंगली मे गोल्ड की दो अंगूठीया भी थी.
लेकिन ये नामुमकिन था कि कोई संस्कारी, हिन्दू औरत असलम से कैसे चुद सकती है, एक वो गैर धर्म का लड़का ऊपर से कसाई, वो भी कसाई खाना मे. उस कसाई के आगे कोई अच्छे घर की औरत का टंग उठा कर चुदना तो बहुत मुश्किल लग रहा था.
वो औरत कभी उसके बालो मे हाथ फेरती तो कभी उसके गठिले मर्दाना बालो से भरे जिस्म को अपने खूबसूरत कोमल हाथों से सहला कर चुदाई का पूरा आनंद उठाती और असलम को और ज्यादा उत्तेजित करती,
तभी वो औरत उत्तेजना मे थोड़ा तिरछी हुई तो मैंने देखा, हाथो मे ऊपर की तरफ ब्लाउज लटका पड़ा था, मतलब उस औरत ने ब्लाउज पूरा नहीं उतरा था, या फिर उसे समय ही नहीं दिया कमीने असलम ने.
मैं अपनी लाइफ में पहली बार लाइव चुदाई देख रहा था सच कहु तो मुझे बहुत मजा आ रहा भी था, मेरा लंड भी खड़ा हो चुका था ऐसा नजारा पहले कभी नहीं देखा था, रात को 10 बजे इस ठण्ड भरी काली रात को अगर एक जवान लड़के को लाइव चुदाई देखने का मौका मिल जाए तो उससे बड़ी क्या बात होगी...
आअह्हह्हह्हह्हह्ह आह्हह्हह्ह ओये माआआ अह्हह्हह्हह्ह आआह्हह्हह्ह अह्हह्हह्ह ओह्हह्हह्हह्ह ओउचह्ह्ह्ह
अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्हह्ह…..अंदर वो औरत kamuk सिस्कारियां ले रही थी, बड़ी धीमी आवाज में और असलम के कानो मैं कुछ बोल रही थी जो मैं सुन नहीं पा रहा था.
अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह ओह्ह्ह ओये माआ अह्ह्ह्ह पुच्च्ह्ह्ह्ह पुच्च्ह्ह्ह्ह्ह्ह फुर्रर्रर्रर्रर्र
फुर्रर्रर्रर्रफुचघ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आउच्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह पुच्ह्ह तपा
ताप्पप्पप्प्प्प्प्प्प्प्प् तप्््प्प्प्प्प्प्प्प् टीपी टप टप टप टप...........
असलम अब तेजी से अपने कमर को अग्गे पीछे तेज तेज झटके के साथ अग्गे पीछे करने लगा उसकी स्पीड बढ़ चुकी थी, किसी पागल की तरह वो उस औरत की फुद्दी फाड़ रहा था ऐसा लग रहा था कि उसे सालो बाद ऐसी चूत मिली है उसका 9 इंच का लंड, इतनी तेज वो औरत कैसे झेल रही होंगी उउउफ्फ्फ्फ़.....
मेरे लिए हैरानी का विषय था, जरूर ये कोई बाजारू, सस्ती रंडी होंगी वरना तो कोई घरेलु महिला तो ऐसा कर ही नहीं सकती, घरेलु औरते कहाँ ऐसा लंड झेलेंगी.
ये जरूर कोई सस्ती रंडी ही है, जिनकी फुद्दी चुद चुद के भोसड़ा बन जाती है जिनके ऊपर दिन में आधा गाव चढ़ता है.
लेकिन उसके हाथ पांव उसके ब्लाउज से तो ऐसा लग नहीं रहा था कि वो कोई गाव की रांड है जो 200-300 रुपये में अजाती है चुदवाने, उसके हाथ पांव एकदम गोरे चिट्टे थे, हाथो मे महंगी
लाल चूड़िया थी सोने की अंगूठी थी, पाँव मे चांदी की भारी भारी घूँघरू वाली पाजेब थी.
मैं बहुत असमंजस में था कि ये कोई संस्कारी औरत है या एक सस्ती रंडी?
असलम की चुदाई करने का तरीका एकदम असली मर्द की तरह था, इतना स्टैमिना, इतनी ताकत मांस मच्छी खाकर ही आई होगी. क्या पावर थी उसकी...
लेकिन मुझे तो उस औरत की भी हिम्मत की दाद देनी होगी जो ऐसे मर्द को अपने ऊपर चढ़ा कर उसके 9 इंची लंड के धक्के को आसानी से झेल जा रही थी.
ऐसी चुदाई देख कर मुझसे भी रहा ना गया और मैंने अपनी लोअर से अपना 5 इंच की लुल्ली बाहर निकाल ली और हिलाने लगा,... उउउड़फ...... आअह्ह्ह.... क्या मजा आ रहा था लाइव चुदाई देख के मुठ मारने मे एक अलग ही मजा है आज मैंने जाना.
सच कहूं तो आज मुझे बहुत ज्यादा मजा आ रहा था, अंदर वो दोनो चुदाई के आगोश मे खोये हुए थे, बाहर मैं अपना लंड हिलाये जा रहा था, तभी उस औरत ने अपनी टांग असलम की
कमर से हटा लिया और अपनी दोनो मोटी एक दम गोरी चिकनी भारी टांगो को उस औरत ने हवा मे ऊपर की
और उठा लिया, मतलब अपना पूरा भोसड़ा उस औरत ने फाड़ लिया था जिसे असलम और ज्यादा अंदर तक चोद सके,
साली बहुत पयासी और चुदेल औरत मालूम पड़ती है, ऐसा नजारा देख कर तो मैं पिघल सा गया.
उस औरत ने जब अपनी टांग हवा मे उठाई तो वो नजारा देखने लायक था, बहुत की कमाल दृश्य लग रहा था वो वाह, अब असलम साला और तेज हो गया और पूरा का पूरा उस औरत के ऊपर चढ़ गया, अब पूरी तरह से वो औरत असलम के काबू में थी उसके नीचे लेटी चुदाई मे असलम कसाई का पूरा साथ रही थी, असलम लंड को अंदर डालता तो वो औरत कमर उठा कर उसके पुरे लंड को निगल लेटी....आअह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह्ह अहाह्ह्ह्ह्ह्ह... बीच बीच मे ये हल्की हल्की सिस्कारिया और ज्यादा मनोमहक कर रही थी उस झोपडी के अंदर के माहोल को...
उस औरत के मुंह से हर धक्के पर निकल रही सिसकारी मुझे और असलम को और ज्यादा उत्तेजित कर रही थी.
ये चुदाई देखते करीब मुझे 10 मिनट हो चुके थे और वो कसाई 10 मिनट से लगातार उस औरत को ऐसे ही चोदे जा रहा था ... बिना रुके बिना थके .. वो औरात भी बड़े मजे से अपनी चुत मरवा रही थी....
उस औरत की जाँघे और टांग इतनी चिकनी थी जैसे वैक्स कारवाने के बाद होती है एक भी बाल नहीं था उन गोरी मखमली टांगो पर.
पूरी कसाई की झोपड़ी मै बस चुदाई की आवाज गूंज रही थी, बाहर मै अपना छोटा लंड पकड़ कर मुठ मार रहा था... मुझे अभी तक समझ नहीं आया था कि ये कोई अच्छे घर की महिला है या कोई सस्ती रंडी. ..
क्योंकि उस औरत के पहनावे से तो बिल्कुल नहीं लग रहा था कि वो एक रांड है लेकिन उसके चुदने के स्टाइल से ज्यादा लग रहा था कि वो बहुत ही चुदाकड़ औरत है और उसका जिस्म मे आग भरी पड़ी है जैसे बहुत समय से उसकी चुत जल रही थी और आज कोई मर्द मिला है उसे बुझाने वाला.
उसका असलम की कमर से लेकर बालो तक और बालो से लेकर असलम के चूतड़ो तक हाथ फेरना किसी भी इंसान को चार गुना ज्यादा उत्जित कर सकता है... ऐसा लग रहा था उस महिला को चरम सुख सुख की प्राप्ति हो रही है,
अपनी चुत को पूरी तरह से असलम के लंड के लिए खोल दिया था, ताकि असलम का 9इंच का तना, कटा हुआ, गंदा मुसल लंड उसकी बच्चेदानी तक को भेद आये.
असलम भी लगातार उस महिला की चूत में अपना गंदा कटा लंड तेजी से अंदर बाहर कर रहा था, ऐसा लग रहा था उस महिला ने अपने पुरे जिस्म की लगम असलम को दे दी है, असलम पूरा हावी था ताबड़तोड़ चुत ने धक्के मारे जा रहा था.
पच...पच...पच....पचाक.... औरत की चुत से निकलता गरम पानी नीचे गिर रहा था, लगता था जैसे चुत गर्मी से पिघल रही है.
ऊपर से वो औरत असलम कसाई की गांड पर अपना हाथ घुमा घुमा कर उसके हौसले badबढ़ा थी.
मुझे यहाँ 15 मिनट हो चुके थे ये चुदाई का खेल देखते हुए.
उधर मुझे मम्मी का भी डर लग रहा था कि वो जाग ना जाए और उन्हें पता ना चले जाए की मै घर पर नहीं हु, अगर पता चला तो खाट खड़ी हो जाएगी वैसे भी माँ उस दिन के बाद से थोड़ा गुस्से में ही लगती थी.
इधर मै अचंभित था कि असलम का वीर्य अभी तक निकला क्यों नहीं है अगर कोई सामान्य मेरे जेसा लोंडा होता तो कबका दम तोड़ चूका होता..
लेकिन असलम तो किसी और ही मिट्टी का बना हुआ था ये तो मुझे भी मानना पड़ेगा एक बार जो औरत उसके लंड के नीचे आ जाये तो बार वर खुद उसके लोडे की सवारी करने उसके पास आएगी....
मैन उस औरत की जाँघे और पाँव देख कर समझ गया था कि ये एक शादीसुदा औरत है और इसकी उम्र भी 30+ ही है,
पर अभी भी ये समझ नहीं आ रहा था कि क्या वो इस गाव की रांड है या किसी शरीफ घर की बहू बेटी आंटी है?
खैर मुझे क्या करना मुझे तो चुदाई देखने को मिल रही थी
तभी मेरी नजर जमीन पर गई, वहाँ कुछ चप्पल खुली थी,
एक गन्दी मैली से टूटी फूटी चप्पल वो जरूर कसाईं की होंगी, लेकिन मै हैरान था की उसी के पास एक ब्लैक कलर की सैंडल और पैंटी पड़ी थी
मेरे कोतुहाल का विषय वो पैंटी नहीं थी, वो काली सैंडल थी.
उस सैंडल को देख मेरी सांसे जहाँ थी वही रुक गई, धड़कन रुकने पर अमादा हो गई,
क्युकी ऐसी सैंडल मैंने देखी थी., मै उन्हें पहचानता था.
ठंडी रात को भी मेरे शरीर पर पसीना आ गया.
आप ये कहिए कुछ देर के लिए मेरे शरीर से मेरी जान निकल गई हो.
क्यूकी जो मैंने देखा वो शब्दों मे बयान नहीं किया जा सकता, क्योंकि मैं कभी ऐसा होने की कल्पना तक नहीं कर सकता था.
ज़मीन पर जो सैंडल रखी हुई थी हील्स वाली ब्लैक कलर की उन सैंडल को मै अच्छी तरह जनता पहचानता था.... क्यूकी ये सैंडल मैंने खुद अपनी मम्मी के साथ फ़रीदाबाद के एक मॉल से मम्मी ने ख़रीदी थी, 4500 रुपये की, ये सैंडल मेरे अपने घर में ही देखी थी और ये सैंडल मेरी मम्मी की थी.... हे भगवान नहीं ये नहीं हो सकता नहीं ये नहीं हो सकता.
मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था.
इस औरत के पास ये सैंडल कहाँ से आ गए, नहीं... नहीं... मै गलत सोच रहा हूं नहीं... नहीं...ये गलत है, ये नहि हो सकता.
"तो... तो.... तो क्या ये मेरी संस्कारी मम्मी है, ये तू क्या सोच रहा है एसा सपने में भी नहीं हो सकता नहीं.... कभी नहीं
हो सकता" मै खुद को दिलासा दे रहा था.
लेकिन ऐसे सैंडल, उसी ब्रांड के, इतनी महंगी इस गांव मे कौन पहनता है? ये सैंडल मेरी माँ की ही है " मेरे मन ने मेरी ही बात को काट दिया.
"लेकिन.. लेकिन...उस दिन जरा से बत्तमीजी पर मम्मी ने
असलम को चांटा मारा था वो यहाँ कैसे हो सकती है? मेरी मम्मी तो अंदर सो रही है." छी छी तू ये क्या सोच रहा है...मम्मी तो घर म सो रही है आराम से....ये तो कोई बजारू औरत है" मेरा दिमाग़ अंधरे मे डूब रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था.
अंदर और भी तेज तेज चुदाई चल रही थी पट पट की आवाज आ रही थी...असलम रुकने का नाम नहीं ले रहा था.
लेकिन अब मेरा ध्यान उस चुदाई में नहीं लग रहा था, मै बार बार उन्ही सैंडल को देखे जरा था, बड़बड़ये जा रहा था "मम्मी तो अंदर ही सो रही है, सो रही है "
तभी पता नहीं मुझे क्या हुआ मै वहां से तेजी से घर की तरफ भागा, मेरे मन मे यही था कि मम्मी तो अंदर सोरही है....
मै घर मे अपना डाउट क्लियर करने घुस गया, अब बस मुझे मम्मी के कमरे का दरवाजा खोल कर देखना था कि मम्मी सो रही है.
मुझे विश्वास था कि मम्मी सो ही रही होंगी, मै सीधा मम्मी के रूम के बाहर पंहुचा, मैंने देखा मम्मी की दैनिक उपयोग वाली चप्पल बाहर दरवाजे पर ही उतरी हुई है.... मन मे थोड़ी शांति हुई.
मै अपने आप से बड़बड़ाने लगा "देखा मैंने सही कहाँ था ना कि मम्मी सो रही होंगी, कैसे कैसे ख्याल आ गए थे मुझे.... उफ्फ्फ्फ़ड..... मेरे मुँह से एक ठंडी हवा निकल गई.
बस आ माँ को अंदर सोते हुए देखना था, मै 100% क्लियर होना चाहता था.
क्या करूँ दरवाज़ा खोलू या नहीं? मम्मी ने अंदर से कुण्डी लगा रखी होंगी तो?देखता हूँ...
मेने दरवाजे को खोलने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, टच ही किया था की दरवाजा पूरा खुलता चला गया मेरा दिल बैठा जा रहा था. शायद मां लगना भूल गई होंगी.
मेरे दिल की धड़कन तेज होने लगी, गला सुखने लगा, अंदर देखा रूम में अंधेरा था मम्मी लाइट बंद करके सोई थी.
मेरे कमरे की लाइट जलाने का सोचा, लेकिन मुझमे हिम्मत नहीं थी हाथ कांप रहे थे, घर मम्मी जग गई और पूछा की क्या हुआ है? क्यों आया है? तो क्या कहूंगा?
मेने धीरे से फ़ोन की टॉर्च ऑन करने की सोची... और फिर मोबाइल निकाल कर रूम की टॉर्च ऑन करने की सोची, और हिम्मत कर फोन की टॉर्च जलाई, जैसे ही हलकी रौशनी हुई, मेरा हार्ट फ़ैल होने पर आ गया, मै बद हवास सा सामने पड़े खाली बिस्तर को निहारे जा रहा था, मेरा खून जम सा गया, गला मानो सुख सा गया हो.
मेरी प्यारी संस्कारी माँ बिस्तर पर नहीं थी, मै पागलो की तरह चद्दर तकिया हटा हटा कर देख रहा था, कहाँ गई मेरी माँ?
हे भगवान, मेरी मां इस समय कहाँ गई होगी?
हजारो सवाल साय साय कर दिमाग मे घूम रहे थे .मुझे बहुत डर लग रहा था, अजीब सा डर...
नहीं यह सच नहीं होसकता नहीं यह सपना है,ऐसा कैसे होसकता है वो मैरी मम्मी नहीं हो सकती .. नहीं नहीं.... नहीं मै गलत सोच रहा हूँ.
Contd.....
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