अपडेट -5, मेरी बेटी निशा
निशा बाए पैर की मसाज करते करते अपने पापा के खडे लंड को देखा और मुस्कुरा दि। वह जानती थी की उसकी गांड के सामने हर मरद हथियार डाल देगा। वह खुद अपने गाण्ड को कई बार मिरर में निहार चुकी थी।
निशा अपने दोनों जाँघे सिमटकर खड़ी थी। वह जानती थी पापा कुछ देर गांड को निहारने के बाद चुत देखने का प्रयास ज़रूर करेंगे।
कुछ देर मसाज करने के बाद, निशा ने पीछे चोरी से देखा। जगदीश राय अब सर को मोड़कर निशा की चूत देखने का प्रयास कर रहा था। वह समझ रहा था की निशा उसे यह करते हुआ देख नहीं पायेगी। पर निशा समझदार थी, उसने अपने पापा की चोरी पकड़ ली थी।
वह अब जानबूजकर मसाज करते हुए अपनी गाण्ड को हिला रही थी, ताकि जगदीश राय को चूत देखने में और दिक्कत हो। वह अपने पापा को छेड रही थी।
जगदीश राय, इतना गरम हो चूका था, की बेडशीट भी गरमा गया था। उसका लंड अब लोहे की तरह खड़ा हो चूका था और उससे छूपने का कोई कोशिश नहीं कर रहा था।
जगदीश राय, निशा की चूत की एक झलक के लिए अब तरस रहा था, पर वह उसे मिल नहीं रहा था। जगदीश राय अब हार मान चूका था।
निशा अपने पापा को इस हालत में देखकर तरस आ गयी। उसने एक झटके में अपने दोनों पैर को खोला।
जगदीश राय ने वह देखा जो वह पिछले 20 मिनट से देखने को तरस रहा था। गोरी मुलायम गांड के बीच में छिपी लाल पेंटी का छोटा सा हिस्सा जगदीश राय को दिखाई दिया। निशा ने अपने पापा को चूत का नज़ारा देखते हुए देख लिया।
निशा: पापा, मसाज अच्छी लग रही है।
जगदीश राय (चूत पर से नज़र नहीं हटाते हुए): हाँ आ बेटी…।बहुत मजा आ रहा है।
अब निशा ने वह किया जिसका जगदीश राय को उम्मीद नहीं थी।
निशा जगदीश राय के जांघो पर झुक गयी। और अपने गाण्ड और पैरों को पूरी तरह खोल दिया और अपनी बड़ी गांड को पीछे ढकेल दिया। अब थोंग का चूत वाला पूरा हिस्सा जगदीश राय के नज़रों के सामने 1 फिट की दूरि पर था। और निशा उसे पूरा खोलकर दिखा रही थी। चूत का हिस्सा पूरा गिला हो चूका था और उसे देख जगदीश राय के मुह में पानी आ गया।
उसी वक़्त साथ ही निशा ने अपने बाए हाथ को सहारे के लिए मोड़ दिया और सीधे उसे पापा के खड़े लंड के ऊपर रख दिया। निशा के बाँहों(एआरएम) का हिस्सा पापा के गरम कठोर लंड की गर्मी जांच रहा था।
जगदीश राय निशा की पेंटी में-छिपी-चूत और लंड पर गरम बाहों का स्पर्श सहना असंभव था।
जगदीश राय निशा के बाँहों के स्पर्श से आँखें बंद कर लिया। निशा पहली बार एक गरम लंड को हाथ लगाये थी, उसकी चूत पूरी गिली हो गयी थी और पानी छोडने के कगार पर थी। निशा के मम्मे अब पापा की पैरो पर भी रगड रहे थे और उसके निप्पल्स अँगूर की तरह खडे हो गए थे।
निशा: अब…मसाज… कैसा लग रहा है…। पापा।। एह…
जगदीश राय (तेज़ सासों से और आंखें बंद कर): बहूत…बढ़िया…बेटी…।
निशा अब दाए हाथ से दोनों पैरो में हाथ घूमाने लगी। और साथ साथ अपनी गांड हिलाने लगी और अपनी बाहों से पापा के लंड को हल्के हल्के हिलाने लगी।
निशा: अब पापा…
जगदीश राय (आंखे आधी खोले, चूत को घूरते हुए): और बढ़िया…बेटी…आह।।आह
निशा ने अब अपनी बाहों का ज़ोर बढाते हुए उसे तेज़ी से गोल-गोल घुमाने लगी। अब उसके बाहों के नीचे पापा का लंड एक खूंखार जानवर की तरह मचल रहा था।
जगदीश राय अब पागलो की तरह सर घुमा रहा था। उसका अब पानी छुटने वाला था, जो वह रोकने की कोशिश कर रहा था।
निशा: अब अछा लग रहा है पापा…
निशा की बाँहों की घुमान, चूत का नज़ारा और सवाल पुछने के अन्दाज़ से, जगदीश राय का लंड अब एप्पल की तरह फूल गया। और फिर वही हुआ जिसका उसे डर था, लंड ने पानी छोड़ दिया ।
जगदीश राय।: हाँ बेटीईई…।आहह अह्ह्ह अह्ह्ह्ह…ओह…गूड…।।आह मत रुको आआह आआआअह।
निशा जो पहली बार लंड से पानी निकला हुआ महसूस कर रही थी, लंड से निकले पानी की गर्मी को जानकर चीख पडी।
निशा: आआह पापा… ओह्ह्ह्ह।
निशा ने अपने हाथ को पापा के लंड से नहीं उठाया। वह अपने पापा के लंड के हर उड़ान को महसूस करना चाहती थी।
जगदीश राय कम-से-कम 1 मिनट तक झड़ता रहा। झडते वक़्त , सहारा देते हुये, निशा ने बाहों से लंड को दबाये रखा।
लंड से निकली वीर्य से पापा की लुंगी पूरी गिली और चीप-चिपी हो गयी थी और लूँगी निशा के हाथ से चिपकी हुई थी।
निशा अपने पापा हो न देखते हुये पैरों की तरफ मुड़कर लेटी रही और जगदीश राय के साँसों को सम्भालने का इंतज़ार करने लगी। और साथ ही खुद भी संभल रही थी।
करीब पुरे 5 मिनट के बाद जब निशा ने महसूस किया की लंड अब छोटा हो गया है।
वह धीरे से उठी। जगदीश राय निशा की तरफ देखे जा रहा था। जगदीश राय शॉक में था। निशा ने पापा की तरफ नहीं देखा। उसने धीरे से बाहों से पापा की चिपकी हुई लूँगी निकाल दी। अपने शर्ट को सीधा किया और खड़ी हो गई।
निशा: आज के लिए मेरे ख्याल से इतना मसाज ठीक है… क्यों … ठीक है पापा
जगदीश राय।: हाँ …।। बेटी।
पुरे रूम में एक अजीब सी ख़ामोशी थी। निशा तेल की डिब्बी उठाई और दरवाज़े पर मुडी ।
निशा: अब आप आराम करिये। और लूँगी जो ख़राब हो गयी है उसे वहां फेक दिजीए। धोने की ज़रुरत नही। मैं धो दूंगी, समझे पापा।
जगदीश राय ने शरमिंदा नज़रों से निशा की तरफ देखा। निशा प्यार से उसके तरफ देख रही थी।
जगदीश राय ने सर झुका कर सर हामी में हिला दिया।
निशा कमरे से बाहर आ गयी। कमरे से बाहर आकर वह खड़ी होकर मुस्कुरा दी।
निशा को अब अपने पापा अब अच्छे लग रहे थे। पापा जो थोड़े घबराये हुये, थोड़े शरमाये हुए और थोड़ा हिम्मत जुटाते हुये। निशा को अब अपने पापा से प्यार हो गया था। एक अनोखा प्यार जो सिर्फ वह ही समझ सकती थी…।
निशा अपने कमरे में घूस गयी। पापा के साथ हुए हर पल तेज़ी से मन में दौड रहा था।
सोचने से, वह और गरम हुए जा रही थी। निशा ने देरी नहीं दीखाते हुए , शर्ट उतार फेकी। और फिर पैंटी। और पूरी नंगी हो गयी।
चुत में आग लगी हुई थी चूत से पानी बहकर जाँघो तक पहुच गया था।
चुत पर ऊँगली लगाते ही वह अकड गयी और एक ही पल में कमर उछालकर झड़ने लगी।
झडते वक़्त एक ही सोच दिमाग में कायम था उसके पापा का झड़ता हुआ लंड़।
वह इतने जोर से झडी थी , की थकावट से कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला।
दरवाज़े पे बजे बेल के आवाज़ ने उसे जगा दिया। जल्द से उसने टीशर्ट और शॉर्ट्स पहन लिया और दरवाज़ा खोला।
आशा: कहाँ थी दीदी, कब से बेल बजा रही हूँ।
निशा: दो ही बार बजाए, सशा कहाँ है।
आशा: आ रही है, किसी दोस्त से बात कर रही है। ये देखो मैं क्या लायी हूँ। रैबिट का टेल। इसे मैं भी पहन सकती हूँ, देखो।
निशा: क्या… क्या है यह्। और तू क्यों पहनेगी। भला कोई जानवर का टेल पहनता है क्या।
आशा: अरे दीदी यह रियल रैबिट का टेल नहीं है। यह तो आर्टिफीसियल है। और इसे पहनकर मैं बनी रैबिट जैसे लगूँगी।
निशा: क्या बकवास…स्पाइडरमैन को जैसे स्पाइडर ने काटा था वैसे तुझे रैबिट ने काटा है लगता है। चल जा मुझे खाना बनाना है। तेरे बचपना के लिए टाइम नहीं है
आशा: यह बचपना नहीं है…।आप को पसंद नहीं तो आप की मर्ज़ी…
और वह चल दी। थोड़ी देर में सशा आ गयी।
बाकी का दिन ऐसे ही निकल गया। जगदीश राय खाना खाने नीचे आए। खाना खाते वक़्त जगदीश राय निशा से नज़रे चुराते रहे। उन्हे ताजुब हो रहा था की इतना सब होने के बावजूद निशा के चेहरे पर कोई शर्म या अपराध बोध (गिल्ट) नहीं था।
खाना परोसते वक़्त निशा पापा के बहूत क़रीब आकर खाना परोस रही थी, पर जगदीश राय उससे बच रहा था।
खाना खाते वक़्त आशा और सशा के बड़बड़ के बीच निशा पापा को घूरे जा रही थी।
निशा आज रात पापा को न दूध देने गयी न मसाज करने गयी।
रात को निशा दिन में हुए घटने पर विचार कर रही थी। एक बात वह जान चुकी थी की पापा को वह पसंद है पर भोले होने के कारण डर रहे है। इतना आगे बढ़ने के बाद वह अब पीछे नहीं जा सकती ।
उसके माँ के बाद इस घर की औरत वही है , और वह यह कर्त्तव्य पूरा करेगी। वह अपने पापा को माँ की याद में उदास नहीं होने देगी। चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पडे।
अगले दिन जगदीश राय की नींद प्लेट के गिरने की आवाज़ से खुल गयी। क्लॉक पर 9 बज चुके थे। वह आज बहूत लेट उठा था।
जगदीश राय(मन में): "मैं रोज़ 7 बजे से पहले उठता हूँ, और आज इतने सालो बाद लेट उठा हूँ। आजकल सब बदल रहा है। मैं बदल रहा हूँ। निशा बदल रही है। और घर का माहौल बदल रहा है। क्यों?
कल निशा की गांड के सामने मैंने अपने हथ्यार कैसे डाल दिए। क्या हुआ मेरे कण्ट्रोल को।
मुझे निशा से बात करनी पडेगी। जो हो रहा है उसे रोकना होगा।
पर क्यों रोकू मैं? क्या मैं खुश नहीं हूँ। निशा की मुलायम गांड से सुन्दर गांड देखी है किसी की। सीमा शादी के वक़्त भी इतनी सुन्दर और सेक्सी नहीं थी।
निशा का क्या क़सूर है। वह सिर्फ मुझे खुश देखना चाहती है। और सारे घर का सारा काम करती है। और उसकी उम्र ही क्या है। और बदले में वह मुझसे शायद थोड़ा दोस्ती मांगती है तो यह क्या गुनाह है।
फिर भी मैं उससे बात करूंगा। पर कैसे? मुझे उससे डरकर या शर्मा कर रहना नहीं चाहिये। मैं उसका बाप हूँ कोई बॉयफ्रेंड नही। मैं ज़रूर उससे बात करुँगा।"
जगदीश राय यह सब सोचकर उठा, फ्रेश होकर, निचे ड्राइंग रूम में आकर बैठ गया।
निशा मैक्सी पहने, हाथ में चाय लेके आई।
निशा: उठ गए पापा। क्या बात है। बड़ी गहरी नींद थी। लगता है कल आप बहुत थक गए थे।।
यह कहकर निशा हंस दी।
जगदीश राय न चाहते हुआ भी शर्मा गये।
जगदीश राय: नहीं…।। बस…। युही…। लेटा रहा…।
तभी आशा और सशा दौड़ते हुए आयी, और टेबल पर पड़ी टोस्ट लेकर भाग गयी।
सशा: पापा , स्कूल बस आने ही वाली है…। लेट हो गये हम लोग…। शाम को मिलते है।
जगदीश राय: हाँ हाँ…। ठीक से पढ़ाई करना…।
निशा सशा के पीछे दरवाज़ा बंद करने ही वाली थी, तभी गुप्ताजी दिख गये। वह निशा की सेक्सी बॉडी को घूरे जा रहा था। निशा ने अपने मैक्सी को ठीक किया।
निशा: अरे अंकल आप यहा।
गुप्ताजी: निशा बेटी… कैसी हो… कॉलेज वैगरा ठीक है न…
निशा: हाँ अंकल सब ठीक है।
गुप्ताजी: कहाँ है अपने स्टंट मैन…। बस में स्टंट करते हुए गिर पड़े…।राय साहब, कहाँ हो?
जगदीश राय: अरे गुप्ता जी आप। आईये आइए, बेठिये।।।
गुप्ताजी: अब आपकी हालत कैसी है…। दर्द कम है या नहीं…।
जगदीश राय: अरे अब तो मैं एक दम ठीक हु…। ज़ख्म से भी दर्द नहीं है… और बॉडी पेन भी ग़ायब है।। बस पूरा नौजवान बन गया हु… ह। ह
गुप्ताजी: अरे वह…। मैंने तो सोचा था राय साहब तो गए एक महीने के लिये। यहाँ तो आप दो ही दिनों में ठीक हो गये।
निशा: वह तो होगा ही…। उनकी नर्स भी तो मैं ही हु…हे हे।
गुप्ताजी: हाँ… बेटी के प्यार ने ही जादू दिखाया होगा…।क्यों राय साहब…।बहुत सेवा करवा रहे हो क्या बेटी से…
जगदीश राय के मन में पिछले दिनों की सीन्स फ़्लैश बैक की तरह दौड गयी।
जगदीश राय (शर्माते हुए): अरे नहीं नहीं…कुछ भी बोलती रहती है… निशा, गुप्ताजी के लिए चाय तो बनाओ…
गुप्ताजी: अरे नहीं नहीं… मैं तो मॉर्निंग वाक के लिए निकला था…चाय पीकर निकला हूँ… फिर आऊंगा कभी …बिटिया के हाथ से खाना भी खाके जाऊंगा है है हा…।
और जाते जाते भी मैक्सी के ऊपर से निशा की फुटबॉल जैसे बड़े मम्मो को घूरते हुए चला गया।
निशा(मन में): ठरकी बुड्ढा… तू आ तुझे खाना नहीं…ज़हर देती हूँ…
फिर निशा रोज़ के काम काज पर लग गयी। उसने 11।30 बजे तक जगदीश राय से कुछ भी नहीं बोली…
पर जगदीश राय पेपर की आड़ लिए निशा को देखे जा रहा था। मैक्सी के ऊपर से निशा का हर अंग उभर कर आ रहा था।
और पेपर के अंदर से अपने लंड को सहला भी रहा था।
थोड़ी देर बाद निशा अपने पापा के सामने आकर खड़ी हो गयी और फैन से हवा खाने लगी।
निशा: ओह पापा… कितनी गर्मी है…हमे ए सी लगा देनी चाहिये…
जगदीश राय (ड्रामा स्टाइल में, पेपर हटाते हुए): हाँ… लग सकती है…
निशा पसीने में लथपथ खड़ी थी… मैक्सी पूरी तरह उसके मम्मो , पेट और जांघ से चिपक गई थी।
जगदीश राय निशा को घूरे जा रहा था। निशा इस बात से अन्जान नहीं थी। उसने पुरी कॉन्फिडेंस से अपने बदन के अंगो को पापा को दिखा रही थी।
कुछ देर बाद वह अपने कमरे में चली गयी। जगदीश राय ने राहत की सास ली। उसका लंड खड़ा हुआ था।
जगदीश राय फिर अपने आप को पेपर के पीछे छुपा दिया।
तभी निशा नीचे आ गयी।
निशा: उफ़… अब कुछ राहत है…गर्मी ने तो मार दिया…
जगदीश राय ने जब देखा तो उसके सोने-जा रहा लंड फिर फड़फड़ना शुरू कर दिया।
निशा ने पापा की एक दूसरी शर्ट पहनी थी। जो कल वाली शर्ट से छोटी थी। शर्ट सिर्फ उसके गाण्ड तक पहुच रही थी। निशा की बड़ी गांड शर्ट के अंदर मुश्किल से समां रही थी।
निशा: क्यों… कैसी लग रही हु…।
जगदीश राय: क्या कैसी लग रही हो?
निशा: कमाल है।।आप मुझे घूर रहे है।। और मुझसे पूछ रहे है।।क्या?
जगदीश राय: वह तो…मैं कुछ और सोच रहा था…
निशा: अच्छा जी…।ठीक है।। पर बताईये तो सही… कैसी लग रही हु…
जगदीश राय: बताया तो था कल…
निशा: वह कल वाली शर्ट के लिए…आज यह दूसरी शर्ट है…यह हाफ शर्ट है…। कल वाली फुल शर्ट थी।
जगदीश राय: मुझे तो कोई फर्क नहीं नज़र आ रहा … वैसी ही लग रही हो…
जगदीश राय परिस्थिती से बचना चाहता था।
निशा: मैं आपसे बात नहीं करूंगी…जाइए…
और निशा मटकते चल दी। चलते वक़्त शर्ट निशा की गांड से उछलकर गांड के निचले हिस्से को दिखा रहा था।
फिर निशा झाड़ू ले आयी। और कहा।
निशा: पापा फैन बंद कर रही हूँ। डाइनिंग टेबल के निचे बहुत खाना गिरा पड़ा है। सशा अभी भी खाना गिरा देती है खाते वक़्त।
जगदीश राय ने जब निशा को देखा तो उसे पसीना आने लगा
अब तक जगदीश राय निशा की जाँघो पर घूर रहा था। पर अब उसने जाना की निशा शर्ट का पहला २ बटन खोल रखी है। जिसमें उसकी चूचो की गल्ला (क्लीवेज) साफ़ दिख रही थी। निशा के चुचे शर्ट के अंदर तने हुए थे। और पतली कॉटन शर्ट में से निशा की निप्पल्स का आकार साफ़ दिख रहा था।
निशा कोई अप्सरा की तरह लग रही थी।
Contd......
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