अपडेट -6, मेरी बेटी निशा
जगदीश राय को यह जानते देर नहीं लगी की निशा ने ब्रा नहीं पहनी है। निशा ने झाड़ू मारना शुरू कर दिया। जब भी निशा झुकति , जगदीश राय को निशा की आधि से ज़ादा गोरी मुलायम बड़े चूचे दिख जाती।
जगदीश राय निशा को पुरे रूम में झाड़ू लगाते हुए घूरे जा रहा था। वह निशा के चूचे और गाण्ड की एक भी खुला दृश्य खोना नहीं चाहता था।
निशा अब झाड़ू लगा कर कमरे के बीच में आ गयी। सारा कचरा हॉल के सेण्टर में इक्कत्रित किया था।
निशा ने अब अपने पापा के ऑंखों में आंखें डाल कर देखा। उसने देखा की उसके पापा उसे घूर रहे है।
और फिर निशा झुकी। पूरी झुकी।
थियेटर के परदे की तरह सरकती हुयी, छोटी सी शर्ट निशा की गांड को अपने पापा के सामने प्रदर्शित कर दिया।
और जगदीश राय दंग रह गया। जगदीश राय को वह दिख गया जिसे देखने के लिए उसने कल्पना भी नहीं की थी।
गाँड के सुन्हरे गालो के बीचो बीच , जाँघो से सुरक्षित , छिपी सुन्दर चूत उसके आँखों के सामने था।
निशा ने पेंटी भी नहीं पहनी थी।
जगदीश राय का लंड लोहे की तरह तनकर फड़फड़ा रहा था। साफ़ सुथरी चूत इतनी सुन्दर लग रही थी की जगदीश राय को उसे चूमने का दिल किया।
निशा उस्सी पोजीशन में कम से कम 2 मिनट तक झूकी रही। और फिर मुडी।
निशा: अब पापा, मेरी यह शर्ट कैसे लग रही है।।?
जगदीश राय निशा की चूत देखकर इतना गरम हो चूका था की उनकी कान लाल हो चुके थे।
जगदीश राय अपने होश में नहीं था।
निशा: बोलो पापा…
जगदीश राय: क्या …।बेटी… हाँ…। सब ठीक है…।
निशा: हाँ हाँ …क्या ठीक है…मैं पूछ रही हो… शर्ट कैसी लग रही है आपको अभी…
जगदीश राय , होश में आते हुये, निशा की ऑंखों में घूरते हुए, तेज़ी से सासे लेते हुए, हाथो से खड़े लंड को सहलाते हुये।।
जगदीश राय: बहूत सेक्सी है… बहूत बढ़िया… सुपर्ब…।तुम अप्सरा लग रही हो बेटी…मॉडल की तरह
निशा: हम्म्म…। यह हुई न बात…
ओर निशा किचन के तरफ चल दी।
निशा किचन में आते ही , किचन के टॉप पर हाथ रखकर झूक गयी और अपने आँखें बंद कर सर झुकाये खड़ी रही।
उसका दिल ज़ोरो से धड़क रहा था और पैर कांप रहे थे।
अपने पापा को चूत दिखाने में जो हिम्मत उसने जुटायी थी, वह सिर्फ वह ही जानती थी।
उसने कापते हाथों से गिलास लिया और खुद को सँभालने के लिए पानी पीए।
निशा के ऑंखों के सामने, चूत को घूरते हुई, पापा की दो आंखें झलक रही थी।
निशा(मन में): कहीं मैने कुछ ज्यादा तो नहीं कर दिया? नहीं तो, नहीं तो पापा तारीफ़ नहीं करते। और उन्हें तो मेरी चूत बहुत भा गायी, लगता तो ऐसे ही है। पर इस सब का अन्त कहाँ होगा? अगर पापा फ्रस्टेट हो गए तोह? शायद मैं बहुत ज्यादा सोच रही हूँ। जब पापा खुश है, मैं खुश हूं, तब तो सब ठीक है।
यह सब सोचकर निशा ड्राइंग हॉल में खाना परोसने चल दी। पर जगदीश राय वहां नहीं था।
निशा(मन में): अरे पापा कहाँ चले गए? खाना खाए बगैर… पापा।। पापा।। कहाँ हो।।?
निशा अपनी छोटी शर्ट उछालते हुयी, गांड दीखाते हुए , सीडियों से पापा के कमरे में जाने लगी।
पर जगदीश राय वहां नहीं था। और फिर निशा ने कॉमन बाथरूम बंद पाया।
निशा जैसे ही बाथरूम के दरवाज़े के पास आयी , उससे अंदर से गुर्राने की आवाज़ सुनाई देने लगी।
निशा समझ गयी, की अंदर क्या हो रहा है। उसके चेहरे पर गर्व और मुस्कान दोनों छा गयी।
जगदीश राय बाथरूम में पूरा नंगा खड़ा तेज़ी से मुठ मार रहा था। उसका लोहे जैसे लंड को ठण्डा किये बिना उससे ड्राइंग रूम में बेठना असम्भव था।
उसके आँखों के सामने से निशा की बिना बालों वाली, साफ़ गुलाबी कलर की चूत, हट नहीं रही थी।
और वह चूत के नशे में , निशा का नाम लिए जा रहा था।
जगदीश राय (हाथ चलाते हुए):आह…आह…आह।। निशा ओह निशा…।आह…
निशा, अपना नाम अपने मूठ-मारते पापा के मुह से सुनकर गरम हो चली थी। निशा देर नहीं लगाती हुई अपनी दो ऊँगली अपने चूत के पास ले गयी।
उसकी छोटी चूत इतनी गीली थी की क्लाइटोरिस रबर के बटन की तरह फुलकर बाहर निकला हुआ था।
और बाथरूम से निकलते हुये "आह निशा" के शब्दो के ताल में वह अपने चूत को कभी सहलाती तो कभी चूत के अंदर ऊँगली डालती।
थोड़ी ही देर में जगदीश राय की आवाज़े और तेज़ हुई और जोरदार होने लगी। जगदीश राय झड़ने ही वाला था।
निशा के हाथ भी बाथरूम के बाहर तेज़ी से चल रहे थे। चूत से बहता पानी जांघो से लगकर एक लकीर बना रहा था और बाथरूम के बाहर फर्श पर गिर रहा था।
निशा खड़ा नहीं हो पा रही थी और उसने दिवार से खुदो को सम्भाला। दो उँगलियाँ चूत में घूसाते वक़्त आवाज़ बना रही थी।
ओर तभी निशा का सारा बदन अकड गया और वह तेज़ी से झडने लगी। निशा इतनी ज़ोर से झडी की मुह से चीख़ निकली और वह वही फर्श पर गिर पडी।
निशा फर्श पर टाँगे मोड़ कर, सर झुकाये बाथरूम के बाहर बैठी थी। फ़र्श पर उसकी चूत का पानी गिरा पड़ा था।
शायद उसने ओर्गास्म के वक़्त थोड़ा मूत भी दिया था। वह कांप रही थी। ओर्गास्म की लहर अभी पूरी तरह ठण्डा नहीं हुआ था।
और तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुला। जगदीश राय निशा को बाथरूम के बाहर फर्श पर बैठे देख चौक गया।
निशा ने आँख खोले जब अपने पापा के पैरो को देखा तो वह पूर तरह शर्मा गयी। उसने सर नहीं उठाया।
वह इतनी बेबस थी की मन ही मन वह अपने पापा के बाहों में खो जाना चाहती थी।
जगदीश राय फर्श पर पड़े पानी को देख कर समझ गया। उसे निशा की मासूम शर्माए चेहरे पर बहुत प्यार आया।
निशा ने धीरे से अपने सर को उठाया। जगदीश राय और निशा बिना कुछ कहे , एक दूसरे को देखते रहे।
ओर फिर जगदीश राय निशा के पास आए और अपना हाथ बढाया।
निशा अपने कापते हाथ जगदीश राय के हाथेली में रख दिया । और अपने कापते पैरो को सम्भाले उठ गयी।
फर्श पर पड़े चूत के पानी से उसका पूरा गांड और शर्ट का निचला हिस्सा भीग गया था।
जगदीश राय निशा के हुस्न को निहारता गया। और अपने पापा के चीरते नज़रो के सामने निशा पिघलती गयी।
निशा शर्मायी, बिना कुछ कहे, मुड कर अपने रूम की तरफ चल दी।
शर्ट का दायाँ(राइट) भाग गाण्ड से ऊपर सरका हुआ था।
जगदीश राय , निशा की चूत की पानी से भीगी हुई , मटकती नंगी गाण्ड को निहारता रहा।
लंड फिर से खड़ा होने लगा था।
जगदीश राय हॉल में जाकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया। उसे निशा के बाथरूम से पानी की आवाज़ साफ़ सुनाइ दे रही थी।
वह बीते हुए कुछ पलो को मन ही मन निहार रहा था। कैसे निशा ने उसे अपनी चूत दिखाई थी और कैसे निशा उसी के साथ बाथरूम के बाहर मुठ मार रही थी।
निशा की पानी से चमकती हुई उभरी हुई गांड को सोचकर वह फिर से पागल हो चला था।
वह निशा का दिवाना हो चला था यह उसे पता चल गया था।
तभी निशा के पैरो की आहट सुनाई दी।
निशा: चलो पापा खाना खा लेते है।
जगदीश राय ने निशा के चेहरे की तरफ देखा। निशा के चेहरे पर कोई शर्म या हिचकिचाहट नहीं था।
निशा के टाइट टॉप और एक बहुत ही टाइट शॉर्ट्स पहनी थी। शायद वह शॉर्ट्स सशा की थी।
शॉर्टस उसके गांड को और गोलदार बना रही थी। और शॉर्ट्स से बाहर निकलती हुई उसकी गोरी जांघे जगदीश राय को पुकार रहे थे।
जगदीश राय (लंड को हाथ से छुपाते हुए): हाँ… खा लेते है…
खाने के बीच निशा का फ़ोन बजा।
निशा: हेलो…। अरे केतकी…।क्या हाल है…अरे नहीं…। मैं ठीक हु…।ह्म्म्म… अरे वह पापा
बस से गिर पड़े…।। हैं…तो उन्हें काफी चोट आयी थी……
निशा: हाँ… तो बस उन्ही के देख भाल कर रही हु…।
और निशा अपने पिता के तरफ देखा और मुस्करायी। जगदीश राय भी थोड़ा मुस्कुराया…
निशा:… ओह अच्छा… उसने बर्थडे पार्टी देना है…।कितने बजे… ४ बजे… ठीक है मैं आउंगी…
और कुछ देर कॉलेज के यहाँ वहां के बात करने के बाद निशा ने फ़ोन काट दिया।
निशा: पापा, वह मेरी फ्रेंड बर्थडे पार्टी दे रही है…तो क्या मैं जाऊं…।।6 बजे तक आ जाऊँगी।
जगदीश राय: हाँ हाँ जाओ बेटी।
निशा: पर आप ठीक है…
जगदीश राइ: हाँ हाँ मैं तो एकदम ठीक हु… और वैसे भी अब खाने के बाद मैं तो लेट जाउँगा।
निशा: फिर ठीक है…
थोडे देर बाद जगदीश राय अपने रूम में जाके लेट गया। लेटे हुए निशा के साथ बीते पलो के खलायों में सैर कर रहा था।
करीब 3:30 बजे निशा ने सलवार और जीन्स पहने , अपने पापा के रूम का दरवाज़ा खोल दिया।
उसके हाथो में एक कटोरी थी।
निशा: पापा…तेल लायी हु…
जगदीश राय: ओह… तो मसाज करोगी…?
जगदीश राय निशा को सलवार/जीन्स में देखकर उदास हो गया। पिछले दिनों से निशा सिर्फ कम कपडो में ही अच्छी लग रही थी।
निशा: जी नही… मैं तो चली…। आज आपको मेरे बिना ही काम चलाना पड़ेगा…हे हे ।।। जहाँ चाहे मसाज कर सकते है…।समझे पापा…हे हे।
और निशा की कातील हसी से रूम गूंज उठा।
जगदीश राय, थोड़ा मुस्कुराया थोड़ा शर्माया…
निशा: मैं कल आपको मसाज कर दूँगी… ठीक है… चलो बॉय। लेट हो रही हु…
जगदीश राय निशा की बातो से बहूत गरम हो गया और सीधे अपने काम पर लग गया।
शाम को 5 बजे आशा और सशा आयी।
जगदीश राय: तुमलोग आज लेट कैसे।
आशा, आप को याद नहीं… आज थर्स डे है… मेरा बॉलीवुड डांस क्लास होता है और सशा
का जिमनास्टिक्स क्लास।
जगदीश राय: ओह अच्छा।
निशा कुछ देर बाद आयी।
निशा: सशा और आशा आए?
जगदीश राय: हाँ… ऊपर है…
जगदीश राय मुड़कर सोफे पर जा रहा था तभी।।
निशा:पापा, क्या आपने मसज किया…
जगदीश राय: वह…।।हाँ…किया…
निशा: तेल लगाकर?
जगदीश राय (नज़रे झुकाए): हाँ… तेल लगाकर।।थोडा।।
निशा: बस थोड़ा ही… …उस दिन की तरह लुंगी तो ख़राब नहीं हुई न…क्या मैं धो दू…?
जगदीश राय (झेंपते हुए): क्या…।
निशा: लुंगी और क्या।।हेहे
जगदीश राय: नहीं …सब ठीक है …।लून्गी सब ठीक है…।।
निशा (मुस्कुराते हुए): ओके ओके…
कुछ 1 घंटे बाद निशा खाना परोसकर सब लोग खाने लगे।
आशा: दीदी… आप पिछले 3 दिनों से कॉलेज नही गयी ना…कल का क्या प्लान है।।
निशा: हाँ… कलललल…।।नही जाऊँगी…। कल तो फ्राइडे है… वैसे भी लेक्चर्स कम है…
निशा खाते खाते सोच रही थी।
निशा(मन में): कल तोह फ्राइडे है…कल के बाद मंडे से मेरी कालेज, पापा का ओफ्फिस। और यह ४ दिन की लहर थी यही ख़तम हो जाएगी…यह उमंग जो मैंने जगाया है इसे कायम रखना बहूत ज़रूरी है… पापा के लिए… और शायद अब मेरे लिए भी…
फ्राइडे सुबह निशा जल्दी उठ गयी थी। उसने फ़टाफ़ट नाश्ता वग़ैरा बनाना शुरू कर दिया।
रात को वह ठीक से सो नहीं पाई थी। अपने पापा का प्यारा चेहरा , उनका बदन और उनका कठोर मोटा लंड उसे सोने नहीं दे रही थी। पिछले ४ दिन से जो उसे आज़ादी मिली थी , आज के बाद मिलना मुश्किल होने वाला था।
निशा (मन में):मुझे तो अपने डबल-मीनिंग वाले टेढ़े बातों को भी कण्ट्रोल करना पडेगा। ओवरस्मार्ट आशा का दिमाग तेज़ी से चलता है।
करीब 9 बजे जगदीश राय उठे। आज कल जगदीश राय सुबह बेहद खुश रहते थे। सब कुछ मानो ठीक चल रहा हो।
निशा: पापा… चाय।
जगदीश राय , निशा का सुन्दर चेहरा देखकर और भी खुश हो गया। वह अपनी मम्मी की नाइटी पहनी थी।
निशा चाय देकर, किचन के तरफ चल दी। नाइटी से साफ़ पता चल रहा था की निशा ने अंदर पेटिकोट नहीं पहना था। जगदीश राय, रोज़ की तरह निशा की गांड पर अपनी आँखे सेंकता रहा।
Contd....
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