अपडेट -1, काया की माया
"क्या रोहित तुम्हे यहीं जगह मिली थी क्या?"
"अब क्या करू काया? बैंक वालो ने यहीं ट्रांसफर दिया है "
ये है रोहित और काया, एक सरकारी कार मे बैठे बाहर बीहड़, खेत, गांव को सुनी आँखों से निहार रहे थे.
रोहित एक बैंककर्मी है जो कि राजस्थान जयपुर का रहने वाला है अभी 2 साल पहले ही नौकरी लगी और उसके कुछ महीनों बाद ही काया जैसी स्त्री से शादी भी हो गई.
हालांकि रोहित का अभी शादी का कोई भी इरादा नहीं था परन्तु जब काया को देखा तो देखता ही रह गया..
जैसा नाम वैसा दर्शन क्या काया थी, एक दम भरा जवान जिस्म, सुडोल स्तन, जो ना जाने किस घमंड मे सर उठाये रहते थे, स्तन के नीचे बलखाती पतली कमर, और असली खूबसूरती यही से शुरू होती थी.
काया के जिस्म का सबसे बहुमल्य कामुक सुन्दर अंग उसकी गांड जो बिल्कुल ऊपर को उठी हुई बाहर को निकली, चलती तो गांड के दोनों हिस्से आपस ने रगड़ कर एक कामुक ध्वनि पैदा करते थे.
क्यूंकि काया को पसीना बहुत आता था, जो उसकी गांड कि दरार मे हमेशा विधमान रहता, जब भी वो चलती एक अजीब सी आवाज़ उत्तपन करती.
हालांकि वो आवाज़ माध्यम होती, कोई ध्यान से सुने तो ही समझ आये.
ऐसी काया ऐसा जिस्म ऐसी जवानी देख मै मना नहीं कर सका, कोई बेवकूफ ही होता जो मना करता.
जिस्म जीतना कामुक था उसके विपरीत चेहरा बिल्कुल सौम्य,कोई कामुकता नहीं,
सिंपल सा, बड़ी आंखे, लाल होंठ भरे हुए गाल.
कुल मिला कर एक बेहतरीन औरत थी काया उम्र मात्र 25 साल लेकीन इतनी सी उम्र मे ऐसा जिस्म नसीब वालो को ही मिलता है.
अब मै कोई इतना बेवकूफ तो हूँ नहीं कि ऐसे नसीब,ऐसी किस्मत को ठुकरा देता.
हुआ भी यहीं.
मैंने शादी के लिए हाँ कर दि, काया को भी मै पसंद आया.
मै अपने बारे मे बता दू मै भी कोई कम स्मार्ट नहीं हूँ.
लम्बा,छरहरा हसमुख मिजाज का व्यक्ति हूँ.
काया को मेरा हसमुख स्वाभाव खूब पसंद आया, पहली मुलाक़ात मे ही हम दोनों मे दोस्ती हो गई.
"देखिये मै शादी के बाद कोई साड़ी नहीं पहनुंगी,मुझे आदत नही है "
काया ने बड़े भी भोलेपन से कहाँ.
मै क्या कहता बस मुस्कुरा कर रह गया.
"वैसे मै सीख रही हूँ साड़ी पहनना,जल्दी सीख जाउंगी लेकीन मुझे लेगी,कुर्ता पहनना ही पसंद है" काया ने मुझे मुस्कुराता पा कर अपने दिल कि बात कह दि.
"अरे बाबा ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा,वैसे भी मेरे मम्मी पापा मॉर्डन ख़्यालात के है उन्हें कोई प्रॉब्लम नहीं होंगी " मैंने काया कि सभी शंका को दूर कर दिया..वैसे भी कुर्ते लेगी मे उसकी मांसल जांधे अपने पूर्ण कामुकता का प्रदर्शन करती थी,और मुझे यहीं सबसे ज्यादा पसंद था.
उफ्फ्फ....कयामत थी काया.
देखने दिखाने के बाद 2 महीने मे ही हमारी सगाई शादी हो गई,
मेरा जीवन खुसमय हो चला, अच्छी नौकरी अच्छी बीवी कहीं कोई कमी थी ही नहीं.
हालांकि सुहागरात के दिन मै थोड़ा नर्वस जरूर था, मेरी कभी कोई gf नहीं रही थी, ना ही मैंने कभी सम्भोग सुख का आनंद लिया था.
परन्तु दोस्तों कि सलाह ले मै युद्ध भूमि मे कूद पड़ा था, अब एक नोसीखिया योद्धा क्या करता वही हुआ 2मिनट मे ही मै शहीद हो गया.
काया कि काया देख मेरे सिपाही वैसे ही घायल था.
रही सही कसर युद्ध भूमि रुपी चुत मे उतरते ही खत्म हो गई.
दिल दिमाग़ निराशा से भर उठा, हालांकि काया ने कोई शिकायत नहीं कि, शायद उसे भी sex का कोई अनुभव नहीं रहा होगा.
वैसे भी मैंने अच्छे पति होने के नाते कभी कुछ पूछा भी नहीं.
ऐसे ही समय गुजरा, काया मुझसे ख़ुश थी मै उस से,नौकरी तो बैंक मैनेजर कि थी ही.
भगवान को धन्यवाद कहते थकता नहीं था मै.
लेकीन 2 साल बाद एक फरमान सा जारी हुआ.
"Mr.रोहित up मुरादाबाद मे एक नयी ब्रांच खुली है, तुम सबसे काबिल और एक्सपीरियंस कर्मचारी हो तुम्हे वहाँ भेजा जा रहा है, सैलरी 30% बढ़ के मिलेगी और सब बैंक ही प्रोवाइड करवाएगा जैसे रहना, यात्रा, हेल्थ इत्यादि."
मीटिंग मे बैठे सभी लोग ताली पीटने लगे.
मेरा सीना भी गर्व से चौड़ा हो चला, मै ख़ुश था आखिर मै जीवन मे तरक्की कर रहा था.
घर पहचान काया को मैंने खुसखबरी दि,माँ पापा का आशीर्वाद लिया.
लेकीन एक उदासी भी थी कि परिवार से दूर जाना होगा.
"अरे बेटा उदास क्यों होते हो ये तो जीवन का हिस्सा है,बेटे को अलग होना ही होता है कभू ना कभी, और कौनसा दूर है आते रहना.क्यों बहु?"
पिता जी के आशीर्वाद और बातों से मेरा दिल हल्का हुआ, काया भी ख़ुश थी मेरी तरक्की से.
"Wow रोहित....तुम तो कमाल निकले "
"तुम.ख़ुश हो ना "
"अरे बहुत ख़ुश....लेकीन वो जगह कैसी होंगी?" काया के जहन मे थोड़ी चिंता थी.
"हमें क्या करना है जगह से, नौकरी करेंगे घूमेंगे, फिर कुछ साल बाद वापस जयपुर "
मैंने काया कि चिंता दूर कर दि.
अगले सप्ताह हम लोग मुरादाबाद पहुंच गये.
यानि आज का दिन...
ट्रैन से उतर टैक्सी ले कर तय जगह पर पहुंच गये,जहाँ बैंक ने हमारे लिए घर का प्रबंध किया था.
"क्या रोहित ये कैसी जगह है,यहीं जगह मिली थी क्या तुम्हे?" टैक्सी मे सवार काया बाहर देख रही थी
दूर दूर तक खेत, बिहाड़, झोपडीया,
कोई शहरी नामोनिशान नहीं.
"अरे ये तो रास्ता है क़स्बा आगे है, अब क्या करे बैंक कि नौकरी जो है"
करीबन स्टेशन से 1.30 घंटे चलने के बाद टैक्स एक कस्बे मे प्रवेश कर गई, आस पास गॉव ही थे.
काया सिर्फ बाहर देखे जा रही थी ना जाने क्या था उन रास्तो मे,या फिर शहर कि चकाचोघ को मिस कर रही थी.
टैक्सी चली जा रही थी, क़स्बा भी निकल गया, मै और काया दोनों के चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे.
"हम कहाँ जा रहे है?" मैंने ड्राइवर से पूछा
"साब अभी जो हमने क़स्बा पार किया आपका बैंक वही है, और अब हम जहाँ जा रहे है वहा बैंक के कर्मचारियों के रहने का इंतेज़ाम है " ड्राइवर मकसूद ने शंका दूर करते हुए कहा.
थोड़ी ही देर बाद टैक्सी एक निर्माणाधीन बिल्डिंग के बाहर जा रुकी.
"आइये सर ....आइये स्वागत है आपका " एक नाटे काला सा आदमी भागता हुआ सामने बिल्डिंग के दरवाजे से निकल के आया और दरवाजा खोलते हुए बोला..
"सर मै पांडे बैंक मे चपरासी कम अलराउंडर आपको बताया होगा मेरे बारे मे मल्होत्रा सर ने " पांडे ने डिक्की खोल सूटकेस संभाल लिए.
"ओह..अच्छा...अच्छा....तुम ही हो पांडे, हाँ बताया था कि तुम मिलोगे यहाँ "
रोहित और काया पांडे के पीछे पीछे घर मे दाखिल हो गये.
"ये कैसी जगह है पांडे?" रोहित ने पीछे चलते हुए सवाल किया
"सर बैंक तो गांव मे है, उन देहातियों के बीच रहेंगे क्या आप साब लोग, इसलिए बैंक ने इस बिल्डिंग मे सभी कर्मचारियों को फ्लैट दिए है, यहाँ से दूसरी तरफ हाइवे निकलने वाला है, किसी शहर से काम नहीं होंगी ये जगह देखना आप "
पांडे बोलता चला जा रहा था.
इसके पीछे रोहित काया सर घुमाये जगह का मुआयना कर रहे थे.
"ये कहा आ गए हम " काया खुद से ही बोल रही थी
"अच्छी जगह है मैडम, नई जगह पर थोड़ा टाइम लगता है" पीछे से आई आवाज़ ने काया को चौंक दिया
उसने पीछे मूड देखा, पीछे मकसूद सामान उठाये चला आ रहा था,
"अब आप जैसी शहरी लड़की वहा गांव मे कहा रहती " मकसूद की नजर एक खास जगह ही टिकी हुई थी.
काया पीछे देख वापस आगे को हो गई, उसके पास कोई जवाब नहीं था वैसे भी उसे अजीब लग रहा था ऊपर से मकसूद जो घूर रहा था उसे चाह कर भी काया छुपा नहीं सकती थी,
नतीजा जोर जोर से कदम चलाने लगी...
"मस्सल्लाह...." एक हलकी सी आवाज़ काया के कानो मे पड़ी.
काया समझदार थी वो जानती थी मकसूद की नजर कहा है, उसे ऐसी नजरों का सामना हमेशा ही करना पड़ता था.
उसकी गांड थी ही ऐसी, ऊपर ज़े ये गर्मी पूरा जिस्म पसीने से नाहा रहा था.
पूछे मकसूद शायद पहली बार ऐसा नजारा, ऐसी खूबसुरति देख रहा था.
"आओ साब ये सामान मुझे दो, आप लिफ्ट मे आइये"
बिल्डिंग निर्माणधीन थी निचे पार्किंग बन चुकी थी, बाकि सभी मालो पर काम चल रहा था,
"साब अभी 4th और 5th फ्लोर पर ही दो चार फ्लैट तैयार किये गए है रहने लायक, आपको 5th फ्लोर पर फ्लैट दिया गया है" पांडे समझाता हुआ आगे चला जा रहा था.
बिल्डिंग के साइड मे ही एक लिफ्ट थी, नयी बानी हुई....
सससससस... ररररर...... आइये साब
लिफ्ट का दरवाजा खुलता चला गया.
"काका 5वे फ्लोर पे चलो " पांडे ने लिफ्ट मे बैठे शख्स को कहा.
काका कोई 50,55 के आस पास का आदमी जान पड़ता था, वर्दी पहने जर्दा मसलाता हुआ लिफ्ट मे प्रकट हुआ था "जज्ज....जज.... जी साब चलते है"
थाड... थाड.. थाड.... काका ने तीन ताली मार जर्दा मसल मुँह मे घुसेड़ लिया.
सामने काया ये सब देख निराशा मे डूबती जा रही थी.
"आउच...."तभी काया को छूता हुआ मामसूद सामान लिए लिफ्ट मे दाखिल हो गया.
"आइये साब आइये मैडम " मकसूद ऐसे घुसा जैसे कोई बच्चा हो लिफ्ट छूट जाएगी.
ना जाने क्यों उसकी इस हरकत पे काया के चेहरे पे मुस्कान सी आ गई.
ये पहला मौका था जब उसका ध्यान इन सब से हटा था, उसने कुछ फनी देखा था.
सभी लोग लिफ्ट मे सवार हो गए...
"और ये मया बदतमीज़ी है दिख नहीं रहा सर मैडम आये है बड़े बाबू है यहाँ के और तुम जर्दा मसल रहे हो" लिफ्ट बंद होते ही पांडे ने तुरंत काका को हड़का दिया.
शायद पांडे ऐसा ही था या फिर रोहित जो की उसका नया बॉस था उसे इम्प्रेस कर रहा था, जैसे बताना चाहता हो की कितनी चलती है मेरी यहाँ.
"उउउफ्फ्फ्फ़.... कितनी गर्मी है " काया दुपट्टे से हवा करते हुए फुसफुसाई
"अभी बन रहा है ना मैडम जी " काका मुँह फट था बोल पड़ा.
वैसे भी काया को पसीना खूब आता था गर्मी सही नहीं जाती थी उससे, काका ने लिफ्ट मे 5नंबर का बटन दबा दिया, लिफ्ट चल पड़ी इधर काया का पसीना चल पड़ा.
सामने चमकती सतह पर आपने पीछे खड़े मकसूद को देख रही थी, उसकी नजरें अभी भी झुकी हुई थी.
शर्म से नहीं.... काया की गांड पर, जो बाहर निकली अपनी शोभा बिखेर रही थी.
ना जाने क्यों काया कुछ नहीं बोली, वो वैसे ही परेशान थी या फिर उसके लिए ये बात आम थी लोग उसकी गांड को ऐसे ही घूरते थे.
थोड़ी ही देर मे लिफ्ट रुकी, सामने गालियारा था,
"आइये सर " पांडे आगे चल पड़ा पीछे रोहित काया और मकसूद
"खुद को बड़ा साब समझता है साला थू...." काका ने जर्दा थूकते हुए पांडे पे गुस्सा निकला लिफ्ट बंद होती चली गई.
गालियारे के लास्ट मे दो फ्लैट थे जो की रहने लायक बने हुए थे बाकि मे कुछ ना कुछ काम चल थी रहा था.
"साब ये 51 नंबर फ्लैट आपका है, और ये सामने वाला 52 दोनों ही तैयार है " पांडे ने चाबी लगा दरवाजा खोल दिया.
"Wow रोहित...." काया के मुँह से खुशी की आवाज़ निकली जब से यहाँ आई है पहली बार.
फ्लैट वाकई बहुत शानदार था, फुल फर्नीश्ड
रोहित काया को ऐसी कोई उम्मीद नहीं थी इस बीहड़ मे.
"Wow पांडे ये तो वाकई बहुत सुन्दर है " रोहित ने भी प्रशंसा की.
"मैंने पहले ही कहा था साब फ्यूचर मे ये शहर से भी बड़ी जगह होने वाली है"
पांडे काया और रोहित को घर दिखाने लगा.
मक़सूद सामान रख रहा था.
"अच्छा साब चलता हूँ मै अब बैंक, कल मक़सूद आपको लेने आ जायेगा "
पांडे ने इजाजत मांगी
"बहुत बहुत धन्यवाद पांडे तुम्हारा "
"अरे सर ये तो ड्यूटी है मेरी " पांडे और मकसूद बाहर को चल दिए
देखा सामने लिफ्ट बंद थी.
"ये हरामी कहा गया, साला कामचोर है बूढा "
पांडे काका को गाली देता सीढ़ियों से उतरने लगा पीछे पीछे मकसूद.
"Wow रोहित.... Love you " अंदर फ्लैट मे काया रोहित से जा लिपटी.
"अच्छा love you अभी तो मुँह बना रही थी " रोहित ने काया को आपने आगोश मे भर लिया
"वो तो गांव वगैरह देख के मन उदास हो गया था "
"तो अब...?"
"अब ख़ुश हो गया कौनसा मुझे बैंक जाना है, आप जाओ गांव देहात " काया ने चुटकी ली
"अच्छा बताता हूँ अभी...." रोहित ने काया के होंठो को छूना चाहा
"अभी नहीं पूरा पसीना पसीना हो गया है " काया खुद को छुड़ाती बाथरूम की तरफ भाग खड़ी हुई.
बाहर रोहित मुस्कुराता आपने सामान की ओर बढ़ चला.
काया बहुत ख़ुश थी उसे वैसे भी कुछ समय चाहिए था अकेला सिर्फ आपने पति के साथ और उसे ये मौका मिल गया था.
शादी के तुरंत बाद ही रोहित ने बैंक ज्वाइन कर लिया था तो हनीमून पर भी नहीं जा सके थे.
लेकिन ये मौका किस्मत से काया को मिल ही गया था.
अंदर बाथरूम मे काया पूर्ण नग्न शावर के निचे खड़ी आपने जिस्म को सहलाती, सपने संजो रही थी.
सपने मे सिर्फ वो थी उसका पति दुनिया से दूर उनका ये नया आशियाना.
सामने कांच इस खूबसूरत लम्हे का गवाह था, एक मदमस्त भरे जिस्म की औरत की परछाई उसमे दिख रही थी.
सुडोल बड़े आकर के स्तन से होता पानी, पतली कमर से होता चुत रुपी पतली दरार मे समा के निचे फर्श को भिगोता गुजर जा रहा था.
अचानक ना जाने काया को क्या सूझी वो पीछे को पलटी, सामने गजब की मदमस्त तरबूजबके आकर की गांड उजागर हो गई, एक पल को वो खुद शर्मा गई आपने अंगों की खूबसूरती से.
उसके जगह ने मक़सूद की हरकत दौड़ गई, कैसे देख रहा था जैसे खा जायेगा...
हेहेहे.... काया मुस्कुरा उठी.
आखिर थी तो वो खूबसूरत ही.
पानी बंद हो गया, काया नाहा चुकी थी.
तौलिये मे लिपटी काया बाथरूल से बाहर आ गई, सामने ही रोहित सामान सेट कर रहा था.
"मेरे कपडे वाला बेग देना " रोहित काया की आवाज़ सुन पलट गया.
"उउउउफ्फ्फ्फ़..... काया " काया की माया चमक रही थी दिन के उजाले मे पानी की बून्द किसी मोती की तरगम्ह जिस्म से फिसल रहे थे.
अब भला कौन मर्द ऐसा होगा जो ये देख के भी पीछे हट जाये.
रोहित भी मर्द ही था, तुरंत छलांग मार काया कर जिस्म का जा दबोचा,
"आउच... क्या कर रहे हो, लम्बे सफर से थके नहीं?" काया ने चुटकी ली.
"थकान उतरने ही तो आया हूँ "
"छोड़िये ना कितना काम है अभी... गुगुगु.... उउउउम्म्म....
बस इसके आगे काया नहीं बिल सकी रोहित की होंठ काया के होंठ से जा लगे.
काया भी इस काला मे निपुण थी, रोहित के साथ वो भी इस सुखमय सफर मे निकल चली.
अभी कही गड्डे बिस्तर की व्यवस्था तो थी नहीं, रोहित इतना बेकाबू था की काया वो वही फर्श पर लिटा उसके ऊपर चढ़ बैठा...
फच फच.... फच.... उउउम्म्म्म... आअह्ह्ह... रोहित.... आराम से...
आअह्ह्ह.... पच... पच.... काया की चुत तो जैसे पहले से ही गिली थी तुरंत रोहित के लंड को लील लिया.
रोहित किसी बेकाबू सांड की तरह धका धक चालू हो गया..
आअह्ह्ह... रोहित रुको... आराम से भागे नहीं जा रही हूँ... आअह्ह्ह... रोहित.
लेकिन रोहित सुने तब ना, 5मिनट बाद ही.
"आअह्ह्ह... काया.... फच... अफच... आह्हः... मे गया...
रोहित के लंड ने वीर्य की उल्टिया कर दी.
आअह्ह्ह... रोहित कहा था ना आराम से, हटो अब
काया ने शिकायत तो नहीं की लेकिन उसके बोलने से लगा जैसे कुछ कमी रह गई हो.
"वो... वो.... तुम्हे ऐसे देख खुद को रोक नहीं पाया "
रोहित खड़ा होते हुए बोला.
काया ने भी टॉवल वापस लपेट लिया "तुम्हारा ऐसा ही है ना जाने क्या जल्दी रहती है तुम्हे हुँह..." काया बिना रोहित की तरफ देखे आपने बेग की तरफ चल दी और रोहित बाथरूम.
असल मे काया के साथ ये पहली बार नहीं हो रहा था, रोहित हमेशा ही जल्दबाज़ी करता और काया को बीच मझदार मे छोड़ खुद किनारे हो जाता.. हालांकि काया कोई सम्भोग की भूखी नहीं थी परन्तु कही ना कही मन मे मलाल रह ही जाता.
"रोहित थोड़ी देर और रुक जाते " बस सम्भोग के बाद अंतिम शब्द यही होते.
फिर भी उसने कभी कोई शिकायत नहीं की थी ना आज की.
Contd...
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