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काया की माया -2

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शाम हो चली थी

काया और रोहित खुश थे, अपनी जिंदगी का नया सफर शुरू करने जा रहे थे.

नया घर काया को खूब पसंद आया था, उसकी उम्मीद से कही ज्यादा खूबसूरत था.

मैन गेट खोलते ही एक बड़ा हॉल था जहाँ सोफा और उसके सामने टीवी दिवार पे टंगा हुआ था, मैन सोफे के पीछे दो बड़े बेडरूम थे, साइड वाले सोफे के पीछे किचन था जो की खुला पोर्सन था, सिर्फ एक पर्दा था जिसे सहूलियत के हिसाब से खिंच के किचन को ढका जा सकता था.

बेडरूम मे ही एक अटैक बाथरूम था जो दोनों कमरे के लिए कॉमन था, और एक अलग रसोई के साइड से निकले गालियरे मे अंदर था.

बैडरूम और किचन से बाहर की तरफ बालकनी भी थी.

कुल मिला का 2bhk आलीशान फ्लैट मिला था रोहित को.

काया और रोहित ने दिन भर मेहनत कर कपडे और जरुरी सामान निकाल जमा लिए थे.

"उफ्फ्फ.... कितनी थकान हो गई है " काया ने खाना परोसते हुए कहा, डाइनिंग टेबल किचन से ही अटैच था,

"हम्म्म्म..... रोहित कुछ बोला नहीं

"क्या सोच रहे हो रोहित "

"कक्क... कक्क... कुछ नहीं काया कल से बैंक ज्वाइन करना है वही सोच रहा हूँ "

"उसमे इतना क्या सोचना कोई पहली बार थोड़ी ना जाओगे " काया ने खाना परोस दिया

"जगह नहीं है, स्टेट अलग है, गांव है "

"अरे छोडो भी कल का कल देखना, खाना खाते है बहुत थक गए है " काया ने मुस्करा के कहा

काया की मुस्कान देखते है रोहित पल भर मे सारी चिंता भूल गया.

रात हो चली, सन्नाटा फेल गया था, दूर दूर तक कोई रौशनी का नामोनिशान नहीं था,

बैडरूम की खिड़की से झाकती काया को बस निचे एक कमरे से रौशनी आती दिख रही थी, कच्चा सा कमरा

शायद यहाँ के चौकीदार मजदूरों के लिए होगा.

"कितनी शांति है ना रोहित यहाँ "

"हहहम्म्म्म...." रोहित उनिंदा सा बिस्तर पे पड़ा ऊंघ रहा था

"So जाओ काया थकी नहीं क्या "

"थक तो गई हूँ लेकिन ये शांति कितनी अच्छी है ना, ना भीड़, ना कोई शोर, ना कोई गाड़ी की पो पो... मन शांत सा हो गया "

काया का जिस्म एक महीन गाउन से ढका हुआ था,

उसके मन मे इस माहौल को और भी करीब से महसूस करने की ललक जाग उठी, बैडरूम का दसरवाजा खोल बालकनी मे आ गई.... अंदर डीम लाइट से कमरा उजला सा था, रोहित शायद सो चूका था, काया ने जानने की कोशिश भी नहीं की.

बालकनी ने पहुंचते है काया का रोम रोम खील उठा, बाहर से आती गांव की ठंडी शुद्ध हवा काया कर गाउन को उडाने लगी, गाउन वैसे ही हल्का सा था,

"उउउफ्फ्फ..... ऐसी हवा शहर मे कहा नसीब होती है " काया खुद से ही कह रही थी

काया निचे झाकने लगी, वही जहाँ से निचे कमरे से रौशनी आ रही थी.

होता है वो अंधरे मे एक हलकी सी रौशनी भी आपका ध्यान अपनी तरफ खिंच लेती है.

काया ने भी वही किया उसकी आंखे वही देखने लगी की तभी उस टिनशेड के बने कमरे का दरवाजा खुला, बाहर रौशनी सी फ़ैल गई.

अभी काया कुछ समझती की एक लड़का जैसा बनियान पहना शख्स बाहर निकल आया.

रौशनी मे काला सा शरीर चमक रहा था, काया कोतुहाल से देखने लगी चलो यहाँ हमारे अलावा भी कोई रहता है....

निचे लड़का कुछ कर रहा था, इधर उधर गर्दन घुमा कमरे से आगे चल पजामा खोलने लगा.

साययय..... से काया का जिस्म हिल गया, काया समझ गई की वो क्या करने आया है, काया के कदम पीछे को हो गए उसे नहीं देखना था ये सब " कितना बेशर्म लड़का है "

काया आपने बैडरूम मे जाने को मुड़ी ही थी की दिल मे ना जाने क्या हुक सी जगी, उसका मन किया वापस जा के निचे देखे.

एक नजर उसने अंदर बैडरूम मे देखा रोहित घोड़ा बेच सो रहा था, चोर को हिम्मत आ गई थी.

इसमें बुरा ही क्या है, हर इंसान अकेले मे कुछ ना कुछ खुवाहिस रखता ही है,

काया का दिल एक बार तो धड़का ही था परन्तु उसके कदम फिर बालकनी से जा चिपके, गर्दन नीचे झुक गई.72e99e2079dbcd84b0b1e7fb9c455f16

नीचे लड़का पजामा नीचे किये सससससररर..... पेशाब की तेज़ धार बहा रहा था, काया की नजर उस तेज़ धार पर ही थी, जो काफ़ी दूर तक जा रही थी.

"आदमी लोगो का अच्छा है कही भी खड़े हो जाओ, कोई लफड़ा नहीं " काया के मन मे कोई और भाव नहीं था, वैसे भी इतनी ऊपर से क्या ही दीखता

धार धीरे धीरे सिमटती चली गई, साथ ही काया की नजर भी सिमटती गई और रुकी वहा जहाँ उस धार का स्त्रोत था.

टप टप... टप.... करती दो बून्द और टपकी..

काया की आंखे वही जमीं थी, दिल एक बार को धाड़ धाड़ कर उठा, वो लड़का नीचे पेशाब कर आपने लंड को झटके मार रहा था.

बाहर से आती ठंडी हवा मे भी काया को पसीना सा आ गया था, इतनी ऊपर से भी रौशनी मे चमकता लंड का कुछ हिस्सा जगमगा रहा था,

काम को अंजाम दे वो लड़का वापस कमरे मे समा गया, धाड़.... से दरवाजा बंद होते ही चंद सेकंड मे लाइट भी बंद हो गई, चारो तरफ सन्नाटा अंधेरा छा गया था.

बस काया के चेहरे पे पसीना, दिल मे अजीब सा कुछ चल पड़ा था.

वो वापस क्यों नहीं गई, जबकि उसे पता था उसे यही देखने को मिलेगा.

काया ने कभी दूसरे लंड को देखा भी नहीं था, हाँ कॉलेज मे कभी कभी ऐसी बाते हो जाया करती थी दोस्तों से, लेकिन ये असल मामला था हालांकि इतनी दूर से दिखा या ना दिखा कोई मतलब नहीं था.

लेकिन चोरी तो चोरी ही होती है, काया वापस नहीं गई थी ना जाने क्यों?

जवाब उसके पास भी नहीं था.

उसके कदम बैडरूम की तरफ बढ़ गए, जिस्म बिस्तर मे समा गया.

काया नींद के आगोश मे समा चुकी थी.





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