अपडेट -10
डर और परेशानी से काया का बुरा हाल था, क्या करे क्या नहीं समझ से परे था.
"कोई है, कोई बाहर है " काया लिफ्ट का दरवाजा पिटे जा रही थी.
पसीने से टीशर्ट भीग चुकी थी.
लिफ्ट के दरवाजे पर पड़ते हाथ काया के जिस्म मे एक कम्पन छोड़ दे रहे थे, काया के बड़े स्तन और बाहर निकली गांड बुरी तरह हिलते हुए पीछे खड़े काका के जिस्म मे एक हलचल सी पैदा कर दे रही थी.
"कोई नहीं सुनेगा मैडम, तीसरे फ्लोर पर कोई भी नहीं है, काम भी आगे चल रहा है, आपको चिंता ना करे लाइट आ जाएगी "
काका ने काया को थोड़ी हिम्मत दी.
काया पहली बार ऐसी परिस्थिति का सामना कर रही थी.
इसी कसमाकस मे काया के हाथ मे थमी कचरे की थैली नीचे जा गिरी, सारा कचरा फ़ैल गया.
जिसे उठाने को एक साथ दोनों ही झुके,
काया के झुकने से उसकी टीशर्ट का गला खुलता चला गया, सामने बैठे काका ने ना जाने क्या पुण्य कर्म किये थे की उसे स्वर्ग की खुली दरार दिख गई, इस दरार के दोनों तरफ सुडोल कामुक कड़क दो स्तन अपनी शोभा बिखेर रहे थे,
इसी दरार से चलती पसीने की एक लकीर काया के पेट से होती कहीं नाभि पर ख़त्म हो जा रही थी.
काया कचरे को उठाने मे लगी थी.
काका ने भी प्रयास किया लेकिन उसके हाथ थम गए थे, जिस्म मे कोई हरकत नहीं थी.
काया ने गर्दन उठाई देखा काका का मुँह खुला था, आंखे कटोरे से बाहर आने को बेताब थी.
काया की गर्दन फिर झुकी उसने भी वो दृश्य देखा जो काका के नसीब मे था "उउउउफ्फ्फ्फ़..... गॉड..." काया तुरंत ही सीधी खड़ी हो गई..
स्वर्ग के दरवाजे तुरंत ही बंद हो गए.
"ससस.... सॉरी मैडम मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था" काका ने कचरा थैली मे डाल खड़ा हो गया.
सामने काया सकपाकई सी खड़ी थी, उसके साथ क्या हो रहा है उसके समझ से परे था, पसीने से टीशर्ट भीग के जिस्म से चिपक गई थी, इतनी की स्तन की गोलाई साफ मालूम पडती थी, नीचे पेट और उसकी खूबसूरत नाभि.
लगता था जैसे काया नंगी ही खड़ी है.
काया शर्म से मेरे जा रही थी.
"ये लीजिये मैडम कचरा " काका ने थैली आगे बड़ा दी
कोई जवाब नहीं, सामने काया जोर जोर से सांस भर रही थी..
सांस भारी थी, सांस के साथ पसीने से भीगे स्तन भी ऊपर उठते फिर नीचे गिरते काका के लिए ये दृश्य ही काफ़ी था, वैसे भी काका के मुँह से लार टपक पड़ी, पैंट मे बरसो से सोया लंड अंगड़ाई लेने लगा, वो बरसो बाद किसी औरत को देख रहा था, ऊपर से किश्मत देखो पट्ठे की काया जैसी सुडोल जिस्म की शहरी मालकिन उसके सामने थी.
"नन... नं.... नीचे रख दो " काया ने जैसे तैसे खुद को संभाल कहां, और अपने दोनों हाथ अपनी छाती पर रख अपनी खूबसूरती को छिपाने की एक नाकाम कोशिश की, अब भला इतनी बड़ी खूबसूरती कभी छुप सकती है.
"रहने दीजिये मैडम, अब तो देख ही लिए है हम " काका थैली नीचे रख वापस खड़ा हो गया.
"हमें भी बहुत पसीना आता है का करे?" काका ने जैसे हमदर्दी जताई हो.
काया क्या बोलती दोनों हाथो को क्रॉस कर सीने पर बांध लिए, जिस से स्तन बाहर को और भी निकल आये, काया अपनी ही हरकतो से शरमाए जा रही थी, भरसक प्रयास करने के बावजूद वो अपने स्तन को ढकने मे नाकाम थी.
"कहां ना मैडम जाने दीजिये, आपके बहुत बड़े है नहीं छुपेगे " काका ने सीधा हमला कर दिया
"कककक.... क्या बदतमीज़ी है " काया ने गुस्सा जाहिर किया.
"काहे गुस्सा करती है मैडम आप, हम दोनों ही इस लिफ्ट मे फस गए है, आपकी जो हालत है वो मेरी भी है "
"लेकिन तुम मर्द हो, तुम्हे क्या पता " काया ने भी तकरार की ठान ली थी.
"इतना बड़ा है आपका तो हम का करे"
"कककक..... क्या बड़ा है?" काया ने सकपाकहट मे बोल दिया.
"आपके दूध मैडम बहुत बड़े और कड़क है "
काया के स्तन अब लगभग नंगे ही थे, टीशर्ट का गला भीग के लटक गया था, स्तन बाहरा आने को मरे जा रहे थे.
"शट up...." काया ने काका को झिड़क दिया
"हमने तो आजतक नहीं देखे ऐसे " काका को काया के गुस्से से कोई मतलब नहीं था.
"क्यों आपकी बीवी नहीं है?"
काया ना जाने क्यों उसकी बातो का जवाब दिए जा रही थी
"गांव मे देहाती औरतों को कहां खाने पिने को मिलता है जो इतने बड़े हो जाये, वैसे भी हमारी पत्नी को मरे 20 साल हो गए " काका ने बड़े ही दुख से कहां.
"ससस.... सॉरी " काया ने भी दुख जताया, काया नरम दिल थी उसका दिल जल्दी ही काका की तरफ से पिघल गया.
लेकिन काका के शब्दों मे तारीफ भी थी जो कहीं ना कहीं उसे पसंद आई थी.
"वैसे भी अब कितना समय लगेगा कहा नहीं सकते, तो शर्माने का क्या फायदा?" काका ने अपनी मज़बूरी जता दी.
बात काया को भी जल्द ही समझ आई उसे हाथ सीने से हट कर स्तन के नीचे जा बंधे,
जानबूझ के या कैसे कहा नहीं सकते ऐसा करने से काया के दोनों सुडोल स्तन साफ बाहर को उजागर हो गए.
सामने काका का हलक सूखता जा रहा था.
काका की नजरें काया के सीने मे धसी जा रही थी, जिसे काया साफ महसूस कर रही सकती थी, लेकिन इस नजर मे एक मजा था, एक ठंडक सी थी, एक लहर थी जो स्तन से सरसराती पेट की तरफ ना जाने कहां गायब हो जा रही थी.
हर लड़की जानती है मर्दो की नजरें उसके जिस्म पर कहां कहां रेंगति है, काया को भी इस बात का अहसास बखूबी थी.
"आप उधर खड़े हो जाइये ना " काया ने खुद को असहज महसूस करते हुए कहां.
"यहाँ का समस्या है मैडम जी "
"समस्या..... वो... वो.... तो.. कोई नहीं "
"तो फिर... वहा कोने मे का करेंगे हम, आप कहे तो जर्दा बना ले?"
"न न... बाबा ..... न्नन्न... नहीं.... अब नहीं काका " काया के चेहरे पे एक मुस्कान आ गई.
काका ने पूछा ही इस मासूमियत से था.
"वैसे भी आपको इज़ाजत की जरुरत कब से पड़ने लगी?"
"अभी आपने ही तो बताया की, ऐसा नहीं करते है "
"बड़ी जल्दी बात मान गए मेरी "
"आपको बड़ी मालकिन है, माननी पड़ेगी ना शिकायत कर दी तो हमरा नौकरी तो गया ना "
"हाहाहाहा.... क्या काका आपको भी अच्छा चलिए, लिफ्ट की बात आपने बीच रहेगी "
काया ने अनजाने मे ही वादा कर दिया था.
"पक्का ना लिफ्ट मे मै जो भी करू वो बात आपके और मेरे बीच रहेगी "
"हाँ बाबा पक्का " काया ने वैसे ही मुस्कुरा के जवाब दिया.
काया का जवाब देना ही था की काका के हाथ अपनी वर्दी के बटन को खोलने लगे.
"यययय.... ये... ये.... क्या कर रहे है काका आप" काका एकदम से डर गई. उसे लगा कमा जर्दा बनाएगा
"मैडम जी गर्मी और पसीने से हाल बुरा है, वर्दी मोटी है उतार देते है, आपकी तरह पतली शर्ट थोड़ी ना पहने है "
काका की बातो से काया का ध्यान अपनी टीशर्ट पर गया जो बुरी तरह भीगी हुई थी.
"आपकी तरह हमें भी बहुत पसीना आता है मैडम जी " काका ने पुरे बटन खोल दिए थे.
काला लेकिन बलिष्ट, हट्टा कट्टा जिस्म काया के सामने चमकने लगा.
एक पल को काया भी इस उम्र मे काका के जिस्म की बनावट देख चौंक उठी. जिस्म मे झुर झूराहट सी दौड़ गई.
अगले ही पल काका के जिस्म से वर्दी अलग हो चली, काका का जिस्म 60 साल की उम्र मे भी किसी नौजवन को फ़ैल कर रहा था, चर्बी का एक जर्रा भी नहीं था.
पसीने से पूरा काला बदन भीगा हुआ चमक रहा था.
वर्दी निकलते ही एक भीनी भीनी लेकिन अजीब से मर्दानगी लिए हुए महक उस छोटी सी जगह मे फ़ैल गई.
"उउउउह्म्मम्म्म्मह्ह्ह्ह..... ससससन्नणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... काया ने ना जाने क्यों एक जोरदार सांस खिंच ली, वमिस महक को महसूस करना चाहती थी.
जैसे ही काका सके पसीने की गंध मे काया के जिस्म को छुवा उसके रोंगटे खड़े हो गए.
काया इस अहसास को समझ नहीं पा रही थी, लेकिन जो आग काया के जिस्म मे थोड़ी देर पहले लगी थी उस आग को फिर से काका के जिस्म और पसीने ने माचिस दिखा दी थी.
"आअह्ह्ह.... अब आराम मिला थोड़ा " काका की आवाज़ से काया वापस धरातल मे आई.
सामने काका के जिस्म पर माध्यम रौशनी मे पसीने की बुँदे किसी मोती जैसे चमक रही थी.
काया की नाभि मे फिर से गुदगुदी होने लगी थी.
"आपकी उम्र कितनी है काका " काया को रहा नहीं गया
"60 के पड़ाव मे होगा मैडम जी " काका ने वर्दी से अपने बदन को पोछते हुए कहां.
"ओह... गॉड....60 इम्पोसीबल "
"कक्क... क्या मैडम जी?" काका भी सकपका गया काया क्या बोली.
"मतलब आपको लगते नहीं "
" ये तो गांव के शुद्ध देसी घी का कमाल है मैडम जी दबा के खाते है, दबा के मेहनत करते है " काका ने बड़े गर्व से अपने गांव को याद करते हुए कहां.
"एक बात कहे मैडम? बुरा ना मानियेगा तो?"
"हाँ बोलो ना अभी तो एक ही जहाज के पंछी है हम "
"आपका पसीना बहुत अच्छा महकता है "
कककक..... क्या... क्या... काया की आंखे चौड़ी हो गई.
"वो जब से महक आ रही है तो बोले बिन रह नहीं सके " काका बोले जा रहा था
काया ना जाने किस दुनिया मे ची गई थी, पहले बाबू अब काका दोनों को उसके पसीने से खुसबू आती है, लल्ल.... लेकिन रोहित ने कभी ऐसा नहीं कहां, उसे तो स्मेल अच्छी नहीं लगती "
"मैडम.... मैडम. जी क्या हुआ? सॉरी बुरा लगा तो "काका ने काया की आँखों के सामने हाथ हिलाया.
"ननन.... नई.... ऐसी बात नहीं है " काया ने सँभालते हुए कहां.
"पसीना भी कभी अच्छा होता है " काया बोल तो रही थी लेकिन वो खुद अभी काका के पसीने की गंध ज़े उत्तेजित हो गई थी.
"क्यों नहीं मैडम... औरतों का पसीना अलग अलग होता है, आपके पासीने मे तो जादू है ससससन्ननीफ्फफ्फ्फ़..... कितना अच्छा महक रहा है " काका की बातो मे जादू था, काया सुन रही थी समझ क्या आ रहा था लता नहीं..
काका ने पास आ एक लम्बी सांस खिंच ली.....सससससन्ननीफ्फफ्फ्फ़...... आअभ.... ऊफ्फफ्फ्फ़.. मैडम जी.
"हटो काका क्या कर रहे है " काया ने पीछे हटना चाहा,यकीन लिफ्ट की दिवार से जा चिपकी, काका के पास आने से एक मर्दानी गंध भी काया के जिस्म मे जा घुली.
वो मर्दो के पसीने से वाकिफ हो रही थी.
जब जब काका के पसीने की गंध को महसूस करती वैसे ही रोंगटे खड़े हो जाते.
"काका....."
" सच कहा रहे है मैडम जी "
"चलिए ऐसा भी कहीं होता है " काया खुद महसूस कर रही थी लेकिन शायद वो और भी जानना चाहती थी.
"नहीं सच मे मैडम जी ऐसा ही होता है, औरतों के पसीने से बहुत कुछ मालूम पड़ता है "
"अच्छा तो मेरे पसीने से क्या मालूम पड़ा?" काया काका की बातो मे आ गई थी.
"अभी सुंघा कहां अच्छे से "
"अभी सुंधा तो सही "
"पास से सूंघ के मालूम पड़ता है "
काया सोच मे पड़ गई थी, हालांकि उसका जिस्म भी काका के पसीने को पास से सूंघणा चाहता था, लेकिन उसके संस्कार उसका बड़े बाबू की पत्नी होने का तमगा उसे ऐसा करने से रोक रहा था.
"रहने दीजिये "
"क्यों आपने कभी सुंघा नहीं क्या कभी किसी मर्द का पसीना "
काका ने जैसे काया को उठा कर पटक दिया हो,
काया को याद आया ऐसा तो कभी हुआ ही नहीं, रोहित तो दिन मे दो, तीन बार नहा लेता था. उसने तो कभी ऐसा महसूस किया ही नहीं.
"सुंघा मैडम जी?"
"हैन्नन.... हाँ.... नहीं... नहीं...., गन्दा होता है "
"तो फिर आपका पसीना भी गन्दा होगा " काका काया के बिलकुल पास आ चूका था, माया का जिस्म बिलकुल लिफ्ट की दिवार ने धस गया था.
काका के पास आने से भीनी भीनी महक ने काया के दिमाग़ को कब्जे मे ले लिया था. कोई खुद के पसीने को कैसे गन्दा कहां सकता है, काया भी ना कहा सकी.
उसके सोचने समझने की क्षमता धारासाई होती जा रही थी.
वो कामरूपी युद्ध मे हार रही थी.
"आपको पता है सबसे ज्यादा पसीना कहां आता है " काका बिलकुल सामने खड़ा था ऊपर से नंगा
"कककक.... कहां "
"औरतों की बगल मे "
"कककक.... क्या, कहां "
"औरतों की कांख मे "
काका लगभग काया से जा चिपका था, काया तो जैसे बहक गई थी, आंखे काका को देख रही थी, कान उसकी बात सुन रहे थे, होंठ जवाब दे दे रहे थे.
"आपकी बगल मे आता है "
"क्या?"
"पसीना मैडम जी पसीना " काया वाकई मन्त्रमुग्ध थी.
उसके चेहरे से पसीने की बुँदे होती हुई नाभि तक चली जा रही थी, उसके नीचे कहां गिर रही थी अभी कुछ नहीं पता.
"अ आ.... आता है " काया के हलक से आवाज़ ना निकली बस एक फुसफुसाहत सी थी.
काका खेला खाया इंसान मालूम होता था, काया के पेट पर बंधे हाथो को अपनी हाथो मे थाम ऊँचा करता चला गया तब तक जब तक काया के हाथ पीछे लिफ्ट की दिवार से ना जा चिपके.
"आआहहहह...... मैडम जी " काका के होश उड़ गए थे सामने के नज़ारे को देख.
काया की तो आंखे बोझिल हो चली थी, लगता था ना जाने कितनी शराब पी ली हो.
काका के सीने से निकलते पसीने की गंध सीधा काया की नाक मे जा रही थी, अजीब कैसेली गंध थी, शुद्ध मर्दाना गंध.
सामने काया हाथ ऊपर किये खड़ी थी, पसीने से भीगी कांख, एक बाल का तिनका तक नहीं, साफ सुथरी पसीने से महकती कांख.
"मैडम आपको वाकई बहुत खूबसूरत है, ऐसी बगल मैंने सपने मे भी नहीं देखी " काका अपने जज़्बात को काबू ना कर सका.
काया तो ना जाने किस दुनिया मे थी, बस सुन रही थी काका को देख रही थी लेकिन एक शब्द मुँह से नहीं फुट रहा था, हलक जैसे सुख गया था..
"ऐसी खूबसूरत कांख चाटने को मिल जाये तो जीवन धन्य हो जाये मैडम जी " काका की बातो से काया का दिल धाड़ धाड़ कर बज उठा.
आज तक उसके लिए ये सब घिनोना था, लेकिन आज नहीं कामअग्नि मे जलती औरत गन्दा, बुरा कुछ नहीं देखती.
तारीफ थोड़ी अजीब थी, वाहियात थी लेकिन थी तो तारीफ ही ना.
अब भला तस्करीफ किस औरत को पसंद नहीं होती.
काया बस मुस्कुरा दी, और काया की मुस्कुराहट ही उसकी स्वीकृति थी.
काका का सर आगे को बढ़ गया.... काया जानती थी क्या होने वाला है, अतिउत्तेजना मे उसकी आंखे बंद होती चली गई.
ससससन्ननणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....... सससन्नन्ननीफ्फफ्फ्फ़..... काका ने काया की कांख मे मुँह डाल एक जोरदार सांस खिंच ली.
आआआहहहह...... उउउड़.....
काया और काका दोनों एक साथ हुंकार उठे, जैसे कोई नर और मादा भेड़िया का मिलन हुआ हो.
"उउउउउफ्फ्फ्फ़..... काका " काया को अपनी जांघो के बिच एक तूफान सा महसूस हुआ, जैसे कुछ फटने वाला है, एक दबाव बनने लगा.
इस दबाव मे माया की गांड पीछे को और बुरी तरह से जा सटी, जाँघे आपस मे भींच ली.
"मैडम जी.... वाह.... मैडम जी धन्य कर दिया आपने, ऐसी खुसबू मैंने कभी नहीं ली, ऐसी खूबसूरती कभी नहीं देखी ". काका बड़बड़ाए जा रहा था.
कभी पहली कांख सूंघता तो कभी दूसरी, काया आंख बंद किये सर पटक रही थी.
तभी वो हुआ जिसने काया के वजूद को हिला के रख दिया, काका की जबान काया की कांख मे रेंग गई.
"आआआहहहहह...... काका " एक ठंडक ने काया के जिस्म को भिगो दिया.
ये ठंडक सर से होती हुई नाभि तक पहुंच गई.
लप.... लपाट... कर काका ने एक बार फिर जबान चला दी.
"न्नन्नहिई..... काका... आअह्ह्ह...... काया लगभग चिल्ला उठी, उसका मुँह काका के कंधे पर धसता चला गया, काया के दांतो ने काका के कंधे को दबोच लिया.
"आअह्ह्हह्ह्ह्ह.... काका..... उउउफ्फ्फ्फ़..फच पच... फाचक .." काया के जांघो के बीच अटकी गर्मी उसके पाजामे मे निकलने लगी.
सससऊऊऊरररर..... झट.... झटक से लिफ्ट को एक झटका लगा, मैन लाइट जल गई, लिफ्ट चलने लगी, नीचे जाने लगी.
"आअह्ह्ह..... काका.... साथ ही काया के घुटने झुकते लगे, शरीर मे जैसे कोई जान ना बची हो, आँखों के आगे अंधेरा छा गया.
काया आज पहली बार इस तरह से झड़ी थी, इस तरह क्या कैसे भी आज पहली ही बार उसकी चुत से गर्मी निकली थी. काया घुटनो के बल बिलकुल बेदम, लिफ्ट की दिवार पर सर लगाए जोर जोर से हांफ रही थी, बदन पूरा भीग चूका था.
जांघो से रिसता पानी लिफ्ट के फर्श को भीगो रहा था.
3,2,1...... ग्राउंड फ्लोर आ गया था.
"मैडम.... मैडम जी.... उठिये..." काका ने काया को पकड़ उठाना चाहा लेकिन हंफ.... हुम्म्मफ़्फ़्फ़.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... काया का जिस्म झटके खा रहा था.
काका ने झट से वर्दी पहन, क्लोज का बटन और 5 नंबर वापस दबा दिया.
लिफ्ट ससससररर..... से वापस ऊपर चल पड़ी, काका के चेहरे पर हवाइया उड़ आई थी.
"मैडम... मैडम.... जी... क्या हुआ? आपको ठीक है ना "
हहह... हाँ... हाँ.... " काया के हलक से बस यही निकल सका.
5th फ्लोर आ गया था, लिफ्ट खुली....
काया को सहारा दिए काका चला आ रहा था,
काया के पैर लड़खड़ा रहे थे, जिस्म मे हलके भूकंप जैसे झटके महसूस किये जा सकते थे.
51 फ्लैट का दरवाजा खुला, काया सहारा लेती सोफे तक पहुंच ढेर हो गई.
आंखे बंद, बस जोर जोर से सांसे चल रही थी, हर सांस के साथ काया के सुडोल स्तन उठ उठ के गिर जा रहे थे.
काका उस हसीन नज़ारे मा साक्षी बना वही खड़ा था.
काया के जिंदगी का पहला इसखलन था ये और ऐसा की लगता था उसकी चुत के रास्ते उसकी आत्मा ही निकल गई हो.
तो काया क्या उबार पायेगी इन सब से?
जब होश मे आएगी तब क्या होगा?
बने रहिये कथा जारी है...
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