अपडेट -11, Day-5,
सुबह की शुरुआत सामान्य ही थी.
रोहित बैंक के लिए निकल गया था, काया घर के कामों मे व्यस्त थी.
रोहित बिल्डिंग के बाहर मकसूद की कार मे बैठने को ही था.
"अरे बड़े बाबू, ओह बड़े बाबू " एक भारी भरकम आवाज़ ने रोहित का ध्यान भंग किया.
"अरे कय्यूम भाई आपको यहाँ " पीछे से कय्यूम चला आ रहा था अपने चिरपरिचित अंदाज़ मे, वही सफ़ेद शर्ट, सफ़ेद पैंट, सफ़ेद जूते.
"नमस्कार बड़े बाबू " कय्यूम पास आ गया, जबान पर मिठास थी.
"नमस्ते कय्यूम भाई बताइये कैसे आना हुआ "
"शहर जा रहा था, अच्छा हुआ आपको दिख गए "
"हम्म्म्म... बैंक ही जा रहा हूँ "
"पास बड़े बाजार मे एक मकान है मेरा, सोच रहा हूँ बेच दू थोड़ा कर्ज़ा कम होगा " कय्यूम ने जैसे अहसान किया हो.
"ये तो अच्छी बात है बताये क्या कर सकता हूँ मै?"
" आपको साथ चले तो, आपको को तजुर्बा है तो कीमत आंक लीजियेगा "
"लल्ल... लेकिन मै तो बैंक?"
"तो बैंक का ही तो काम है बड़े बाबू"
रोहित को कय्यूम की बात वाजिब लगी.
रोहित ने मकसूद को विदा कर खुद कय्यूम की कार मे सवार हो गया.
कार कच्चे पक्के रास्ते लार दौड़ पड़ी.
"जब तुम्हारे पास इतना सब है तो पहले क्यों नहीं भर दिया कर्जा?" रोहित का पहला सवाल ही यही था.
"बड़े बाबू आदमी कर्जा लेता है धंधे के लिए, धंधे से मुनाफा होता है, लेकिन ये करोना की वजह से सारा धंधा चौपट हो गया, अब चल पड़ा है तो चूका दूंगा " कय्यूम की बात मै दम था.
"ससस... सॉरी कय्यूम भाई मै उस दिन कुछ ज्यादा ही बोला " रोहित को भी गलती का अहसास हुआ, कय्यूम ऐसा नहीं था जैसा लोग उसके बारे मे कहते थे.
"कैसी बात करते है बड़े बाबू, आपका काम है, मै भी धंधे मे कड़क हो जाता हूँ कभी कभी " कय्यूम ने अपना भारी कड़क हाथ आगे बड़ा दिया.
दोस्ती का हाथ.
जिसे रोहित ने सहर्ष स्वीकार कर लिया.
रास्ते भर दोनों मे खूब बाते होती रही, दोनों घुल मिल गए थे लेकिन कय्यूम ने कभी काया का जिक्र नहीं किया.
कार बड़े बाजार ज़े होती एक पतले रास्ते से होती एक खण्डारनुमा हवेली के सामने जा रुकी.
"ओह... Wow.... ये... ये.... क्या है कय्यूम भाई तुमने तो कहां तो मकान है " रोहित भी हैरान था.
"कोई रहता नहीं तो मकान ही समझो आपको, बस कभी कभी आ जाता हूँ खाने पिने hehehehe..." कय्यूम ने आंख मार दी.
इस आंख मरने को मर्द लोग खूब समझते थे.
"आप लोगो के मजे है कय्यूम भाई, शहरों मे कहां इतनी शानो शौकत " रोहित ने हताशा भरी.
कय्यूम और रोहित अंदर को चल पड़े " आप भी मजे कर लिया करो कौन रोकता है "
हवेली खंडर ही थी लेकिन फिर भी आलीशान थी, अभी भी बहुत डा हिस्सा बचा हुआ था,
कय्यूम ने एक दरवाजा खोल दिया, wow.... जिसकी भव्ययता देख रोहित भी चौक गया.
इस कमरे मे आधुनिकता की सभी चीज़े मौजूद थी, टीवी फ्रिज, सोफा बड़ा सा बेड सब कुछ,.
सिदर रेंक पे विदेशी दारू का जमावड़ा.
"परदादा की हवेली थी हमारे, वही दे के चल बसें लेकिन इस ज़माने मे हवेली का क्या काम " कय्यूम हवेली की कहानी सुनाता जा रहा था,
रोहित तो बस इधर उधर देख हां... हहहम्म्म्म.... किये जा रहा था.
"आओ बड़े बाबू बैठो " कय्यूम ने शानदार सोफे पर बैठ रोहित को भी बैठने का आग्रह किया.
"अब ये बिक जाये तो सारा कर्जा उतर जायेगा " कय्यूम थोड़ा निराश होते हुए बोला.
"लल्ल... लेकिन ये तो तुम्हारे परदादा की है "
"परदादा तो चल बसें, आपकी नौकरी पे आंच नहीं आनी चाहिए " ना जाने क्यों कय्यूम रोहित पे अहसान किये जा रहा था.
"छोडो कय्यूम ऐसी कोई बात नहीं है, धंधा चल पड़ेगा, कर्जा उतर जायेगा " रोहित भी पिघल गया था वैसे भी कय्यूम एक किश्त दे ही चूका था.
"पिओगे " कय्यूम ने रोहित की नजर का पीछा करते हुए कहां.
"कक्क... कक्क... क्या?"
"शराब.... जिसे आप घूर रहे है hehehehe " कय्यूम की बात से रोहित झेप गया.
"शर्माइये मत बड़े बाबू, सब विदेशी है, मेहमान आते है विदेश से तो ले आते है "
रोहित आदतन शराबी नहीं था, ना जाने क्यों मना ना कर सका या यु कहिये महंगी शराब को मना नहीं कर सका.
"ये मेरी तरफ से आपके लिए तोहफा " कय्यूम ने एक महंगी बोत्तल निकाल टेबल पर रख दी.
"तोहफा किस बात का भाई " रोहित अभी भी हिचकिचा रहा था.
"दोस्ती का.... हमारी दोस्ती का, वैसे भी आप हमारे मेहमान है, आपके साथ रह के दो चार बाते शहर की सीख लूंगा " कय्यूम ने दाँत निपोर दिए.
अब रोहित भी कैसे मना करता, शराब है ही ऐसी चीज दोस्ती जल्दी ही करवा देती है.
दिन के 12 बज, रोहित कय्यूम की दोस्ती शराब की सीढिया चढ़ रही थी.
दूसरी ओर काया बेचैन थी, कल से एक खलबली सी मची थी.
दिमाग़ मे तूफान मचा हुआ था.
रह रह के काका और लिफ्ट के दृश्य दौड़ जा रहे थे.
कल रात की हरकत पर उसे अफ़सोस हो रहा था, कैसे उसने ऐसा कदम उठा लिया.
वो सभ्य लड़की थी.
सामने टीवी चल रहा था, लेकिन काया का ध्यान कहीं ओर था.
टिंग टोंग....
फ्लैट की घंटी बज उठी.
काया ने समय देखा 12 बजे के ऊपर हो चला था.
"अभी कौन आया होगा? "
खड़क चररर..... से दरवाजा खुल गया
"कककक... कक्क... काका आप?" काया बुरी तरह से चौंक गई, मन मे जो डर बार बसर रह रह के उछल रहा था वो सामने खड़ा था.
हाँ मैडम जी... कल रात आपकी बालकनी के नीचे आपकी चड्डी मिली थी, सोचा लौटा दे " काका देहाती था सीधे देसी शब्द बोल गया
काया का दिमाग़ साय साय कर उठा.
"कककक... क्या " जैसे काया को कुछ समझ ही नहीं आया हो.
"आपकी चड्डी मैडम जी ये सफ़ेद चड्डी" काका ने काया के सामने उसकी पैंटी लहरा दी.
काया के साथ यही घटना दूसरा मर्द कर रहा था, बाबू मासूम था बच्चा था लेकिन काका तो खेला खाया है, ऊपर से कल की घटना के बाद से काका का सामने आना काया के दिल को धड़कने के लिए काफ़ी था.
काया ने लगभग झाप्पटा मार पैंटी को कब्जे मे ले लिया.
"थ थ... थैंक यू, वो गलती से गिर गई थी "
"तो हम कब कह रहे है, आपने जानबूझ के फ़ेंकी थी " काका बिना डरे बोले जा रहा था.
जबकि काया का तो हलक ही सुख गया था.
घर तो आपकी तरह बहुत सुन्दर है मैडम जी आपका " काका ने काया को ऊपर से नीचे घूरते हुए कहां.
काया को जैसे नजरें चुभती सी महसूस हुई, चेहरे से चलती स्तन पट थोड़ी देर रुकी फिर आगे बढ़ चली.
काया महीन गाउन मे खुद को नंगा ही महसूस कर रही थी.
"मैडम जी आपकी ही चड्डी है ना " काया को चुप खड़ा देख काका ने बात दोहराई
"अ अ... अ... हाँ.. हाँ...न...मेरी ही है " काया शर्म से गड़े जा रही थी, जबान लड़खड़ा रही थी.
"आपकी चुत से जो पानी निकला था वो लगा हुआ था इसलिए जान गए आपकी है " काका ने सीधा हमला कर दिया.. काया चुत शब्द सुन सकते मे आ गई " कककक.... क्या बदतमीज़ी है काका? "
काया के लिए ये शुद्ध देसी शब्द किसी काटे की तरह थे जो सीधा उसकी जांघो के बीच चुभा था.
दरवाजा कबका बंद हो चूका था काया को कोई खबर नहीं थी.
"तो और का कहीं मैडम जी, कल लिफ्ट मे आपकी चुत झड़ गई थी ना "
काका ने फिर से कल का दिन याद दिला दिया.
"यययय.... ये क्या बोल रहे है आप " काया को समझ नहीं आ रहा था क्या कहे बस वो काका की बातो का जवाब दिए जा रही थी. सांसे ऊपर नीचे हो रही थी. साथ ही स्तन उसका साथ दे रहे थे.
"वैसे बहुत अच्छी खुसबू है मैडम जी आपकी चुत की " काका बेशर्म हो गया था, बेहयायी पे उतर आया था.
"शट... Up.... ये चु... चु.... त क्या होता है, तमीज़ नहीं है बात करने की " काया इस बार हिम्मत कर बरस पड़ी, ना चाहते हुए भी वो शब्द बोल गई जिसे वो आजतक गाली समझती थी.
उसे याद आया रोहित ने कहां था पसीने की बदबू आती है.
"गुस्सा काहे करती है मैडम जी, चुत को और क्या कहते है यही ना " देहाती काका क्या जाने और क्या कहते है.
"छी.... गाली है ये "
"इतनी सुन्दर खुसबूदार चीज को गाली कौन कहता है मैडम जी, गधा है जो गाली कहता है " काका बिना डरे डटा हुआ था उसे काया के गुस्से की कोई परवाह नहीं जान पडती थी..
काया का जिस्म पसीने से नहा गया था, सांसे फिर से स्तन फाड़ देने पे उतारू थी, ना जाने काका की गंदी तारीफ मे क्या जादू था.
"कककक... क्या सच "काया जानना चाहती थी काका सच कहा रहा है.
"एक दम सच मैडम, कल रात आपकी चड्डी सूंघ के दो बार मुठ मारे है हम "
"कक्क.... क्या मारे है " काया के समझ मे कुछ नहीं आया.
"अरे मैडम मुठ मारे है, आपकी चुत की खुसबू सूंघ से "
"मममम... मतलब " काया का दिल धाड धाड़ कर बज रहा था, एक शंका ने जन्म ले लिया, जांघो के बीच एक अजीब सी खुजली होने लगी, क्युकी बात उसके कामुक अंग की हो रही थी.
"क्या मैडम आप भी.... अरे लंड हिलाये है दो बार " काका ने सीधा बोल दिया
"इस्स्स..... कक्क.... क्या " काया का मुँह खुला रह गया, आंखे बाहर आ गई, उसने ये शब्द आजतक गली मोहल्ले के लड़को के मुँह से गाली के रूप मे ही सुने थे.
"काका.. अआप... आप. गाली क्यों दे रहे है " काया ने नाराजगी जताई.
"मैंने कब दी गाली?"
"अभी दी ना "
"कब?"
"अभी बोले ना लललल.... लललल... ण्ड " काया को ये एक शब्द बोलने मे पसीना आ गया गले मे लंड शब्द फस सा गया.
"लो अब बहुत भोली है मैडम, लंड को लंड ही कहेँगे ना " काका आज काया को कामुक अंगों के नाम का ज्ञान दे रहा था.
काया भी ना जाने क्यों इन सब मे फसती जा रही थी.
"You mean penis "
"ये पेन ईस क्या होता है "काका हैरान था
"वो... वो... जो कल रात हिलाया आपने " काया ने गजब की हिम्मत दिखाई.
"अब आप शहरी लोग जो बोले हम तो लंड कहते है "
जब भी ये शब्द काया के कान मे गूंजते एक झुंझुनी सी कान से होती सीधा नाभि के रास्ते जांघो के बीच कहीं गायब हो जाती.
"कक्क.... क्यों किया ऐसा "काया जानना चाहती थी
"क्या किया?"
"मतलब.... हहहई.. ही... ही... हिलाया क्यों?" काया काका आमने सामने खड़े थे सवाल जवाब का दौर चल रहा था, काया ज्ञान लेना चाहती थी.
"हम मूतने निकले थे कल रात, तो ये चड्डी जमीन पर पड़ी थी, उठा के सुंघा तो तुरंत समझ गए आपकी है "
"कैसे जाना?" काया के मन मे जिज्ञासा और होंठो पे मुस्कान आ गई थी.
"आपकी चड्डी मे चुत का पसीना था, वैसा ही महक रहा था जैसे लिफ्ट मे आपकी कांख महक रही थू, एक दम रसीली " काका जैसे उस याद मे डूब गया हो.
काया को भी काल का दृश्य याद आ गया " उउउफ्फ्फ.... इस्स्स. स... " काका के सूंघने से उसे वो सुख मिला था जिसके बारे मे वो आजतक जानती भी नहीं थी.
"फिर हमसे रहा नहीं गया कमरे मे जा के सूंघने लगे, फिर मुठ मार लिए " काका ने कहानी बयां कर दी..
"कककक..... क्या होता है वो मारने से "
"अच्छा लगता है "
"कैसा अच्छा?"
"वैसा जैसा कल आपको लगा था लिफ्ट मे " काका ने सीधा तीर दे मारा.
काया के रोंगटे खड़े हो गए, कल का वो सुकून वो सुख अहसास करा गया जब काया जोरदार झड़ी थी.
"क्या हुआ मैडम जी मजा नहीं आया था " काया चुप थी.
कभी गर्दन हाँ मे करती तो कभी ना मे.
"बस यही मजा हमको आया "
"देखिये अभी भी क्या हाल बना हुआ है " काका ने आपने हाथ को नीचे ले जाते हुए अपनी जांघो के बीच रख दिया.
अनायास ही काया की नजरें भी उस हाथ का पीछा करती हुई वहा जा पहुंची, काका हाथ अपनी जांघो के बीच एक लम्बे से मोटे उभार को सहला रहा था.
काया की तो सांस ही अटक गई, आंखे फटी रह गई,
"यययय.... ये.... ये क्या है?" काया फुसफुसा उठी.
"यही तो लंड है, देखिये ना आपकी चड्डी ने क्या हाल बना रखा है "
काका का बोलना था की काया के हाथ से अपनी पैंटी वही छूट कर जमीन चाटने लगी.
काका ने तुरंत पैंटी उठा नाक से लगा ली "ससससन्नणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़...... आआहहहह..... मैडम जी क्या खुसबू है "
काका बिलकुल बेहयायी पे उतर आया था, काया की खामोशी उसको बढ़ावा दे रही थी.
इधर काया का खून सफ़ेद होने लगा था, जांघो के बीच तूफान उठने लगा.
जिंदगी मे पहली बार कोई मर्द उसके सामने उसकी ही पैंटी से खेल रहा था, ये दृश्य किसी भी औरत को बोखला के रख देता.
काया भी बोखला गई थी, लेकिन गुस्से से नहीं काम वासना से..
"छी.... छोडो इसे " काया ने अपनी पैंटी का बलात्कार होने से रोक लिया..
काका का हाल ऐसा था जैसे किसी ने बहुमूल्य चीज छीन ली हो.
"बहुत हुआ काका आप जाइये अब " काया ने खुद को संभाला क्युकी वो अब संभल नहीं पा रही थी, बहक रही थी.
कल जो हुआ वो वापस नहीं चाहती थी.
लेकिन मन की जिज्ञासा उसे ऐसा करने से रोक रही थी, दिमाग़ चाहता था काका चला जाये, दिल और जिस्म चाहते थे काका बदतमीज़ी करे.
उफ्फ्फ्फ़.... हर लड़की की लाइफ मे यही दुविधा होती है,
पहल कर नहीं सकती, लेकिन चाहती है मर्द पहल करे, ना जाने ईस मझदार मे कितनी औरते अधूरी ही रह जाती है.
"अच्छा मैडम जाते है, गुस्सा ना करे आप" काका पलट कर जाने लगा.
काया का दिल कहा रहा था रुक जा, अच्छा लग रहा है, दिमाग़ राहत की सांस ले रहा था.
की तभी...
काका वॉयस पलट गया " वो एक चूज़ी और छूट गई थी मैडम जी कल आपकी "
"कककक... कम्म.. क्या?" काया बुरी तरह चोंकि अब क्या छूट गया.
काया कुछ कहती की.
काका ने जेब को टटोलते हुए, एक लाल गुब्बारे सी चीज काया की नजरों के सामने लहरा दी.
"ये छूट गया था मैडम कल लिफ्ट मे, गलती से शायद आपके कचरे की थी मे आ गया था" काका बड़े ही भोलेपन से बोला.
"कक्कक्क्स..... कक.. कॉन.... कंडोम " काया का हलक ईस बार पूरा सुख गया था, पैर जवाब दे रहे थे..
हाथ आगे नहीं बढ़ पा रहे थे.
"ई... का है मैडम कोई गुब्बारा है का?" काका वाकई देहाती था.
"ई... ई... इसे फेंकना ही था " काया ने खुद को सँभालते हुए कहां.
"काम का नहीं है का?"
"नहीं इसका काम हो गया " काया हैरान थी की कोई मर्द कैसे कंडोम के बारे मे नहीं जानता.
"का काम आता है ई गुब्बारा?"
"कक्क... कुछ नहीं " क्या कहती काया
"बताइये ना मैडम जी," काका को ना जाने क्यों कुछ अजीब सा लगा की ये जो भी है कुछ अलग है.
"इ ई.... इसे पहनते है " काया ने खुद की हसीं को दबा के बोला.
"इसे पहनते है... "काका ने एक ऊँगली कंडोम मे डाल दी
"अच्छा समझ गए इ दस्ताना है, लेकिन ये तो सिर्फ एक ऊँगली ही आई "
काया सामने डदृश्य को देख मरे जा रही थी, काका अनजाने मे ही कंडोम से खेल रहा था, कंडोम इतना पतला और छोटा फुला था की काका की ऊँगली उसमे फस सी गई.
"व. वव... वहाँ नहीं.... पहनते"
"मतलब ये दस्ताना नहीं है "
"है लेकिन ऊँगली का नहीं है " काया हसीं नहीं रोक पा रही थी काका की बेवकूफी पर.
"तो कहां पहनते है?"
"वहाँ.... लल्ल..... Penis पे " काया ना जाने क्यों लंड बोलना चाहती थी लेकिन उसकी अंतरात्मा ने उसे ऐसा करने से रोक लिया.
"ककककक.... क्या.... वहाँ मतलब लंड पे पहनते है " काका बुरी तरह से चौंक गया.
"इतना छोटा.... वहाँ कैसे पहन सकते है, ये तो ऊँगली पे फस गया " काका ने झट से कंडोम ऊँगली से निकाल, अपनी जा जांघो के बीच बने उभार पर रख नापना चाहा.
काया तो काका की हरकतो से ही मरी जा रही थी, लेकिन जो दृश्य सामने था उसने काया को हकीकत से परिचय करवा दिया..
कंडोम काका के उभार का आधा भी नहीं था,
काया का दिल बैठा जा रहा था, दिमाग़ साय साय कर रहा था.
हज़ारो सवालों ने उसे घेर लिया था.
यही हालत काका की थी, उसे समझ नहीं आ रहा था ये इतनी छोटी चीज लंड ओर पहनते कैसे है.
रोहित का इस्तेमाल किया कंडोम काका के लंड के उभार के सामने लगभग शून्य था, काया के कदम पीछे को हटने लगे, कल उसने बाबू का लंड देखा था, लेकिन काका का उभार उसके सामने रोहित का used कंडोम.
ना जाने क्यों काया की चुत मे हज़ारो चीटिया सी रेंगने लगी, कुछ फटने को था.
की तभी धड़द्दाक्क्क..... भाक्क्क.... से दरवाजा बंद हो गया.
सामने काका नहीं था, शायद वो दरवाजा बंद कर चला गया था, आखिर उसने भी जिंदगी के 60 बरस ऐसे ही बिता दिए, उसे पता ही नहीं कंडोम लंड पर पहनने की चूज़ी है.
लाल कंडोम वही जमीन चाट रहा था, काया की नजरें उसी पर टिकी थी और दिमाग़ शून्य मे चला गया था.
तो काया की जिज्ञासा... उसके जिस्म की बढ़ती गर्मी कहां के जाएगी?
रोहित कय्यूम की दोस्ती क्या गुल खिलाती है?
बने रहिये....
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