अपडेट -12
काया का जिस्म उस से बगावत करने पे उतारू हो गया था, मर्दो का कामुक अंग उसकी कमजोरी बनता जा रहा था, ना जाने क्या इच्छा जगती थी चोर नजरों से मर्दो के उभार देख लेने की, अभी काका का उभार उसकी नजरों मे छाया हुआ था.
काया शून्य मे बैठी खोई हुई थी, उसे धयान नहीं आ रहा था कब उसने रोहित का ऐसा उभार देखा था.
उसने कभी रोहित के साथ ऐसा कुछ महसूस नहीं किया, सम्भोग क्या होता है सही मायनो मे उसे पता ही नहीं था.
उसने कभी रोहित के अंग को देखने की कोशिश ही नहीं की.
कितनी अज्ञानी थी काया.
"क्या रोहित का भी ऐसा ही होगा? "
"क्यों नहीं होगा आखिर वो भी मर्द है " काया ने खुद को ही जवाब दे संतुष्ट किया.
उसकर दिमाग़ मे एक विचार कोंध पड़ा, घड़ी की ओर देखा 5बज गए थे.
रोहित आते होंगे, आज अपने मन की कर के रहेगी, आखिर अपने पति से कैसी शर्म.
काया बाथरूम की ओर चाल पड़ी, काया ने आज सभी सवालों के जवाब पाने की ठान ली थी.
कुछ ही समय मे माया कांच के सामने चटक लाल कलर की साड़ी पहने, स्लीवलेस ब्लाउज, माथे पर लाल बिंदी, हाथो मे चुडिया पहने खड़ी थी.
ब्लाउज पर निप्पल के उभार साफ देखे जा सकते थे, काया ने साड़ी के नीचे ब्रा पैंटी नहीं पहनी थी.
वैसे भो रोहित जल्दी मे ही रहता था, उसकी सुविधा के लिए ही था ये इंतेज़ाम.
खास रोहित के लिए साड़ी पहनी थी काया ने, पल्लू ठीक करना चाहा जिसके पीछे से lowcut ब्लाउजर से स्तन की घटिया झाँक रही थी,.
काया ने मुस्कुरा कर पल्लू साइड मे ही रहने दिया, आखिर रोहित का हक़ है की वो इसे देखे.
शरारती हो चली थी काया. चाल मे मादकता थी पैंटी ना होने की वजह से गांड आज़ाद थी मनमानी करने के लिए, बड़ी गांड लचक के थारथरा जाती काया के चलने मात्र से.
बाहर हॉल मे आ टाइम देखा 6.30 बज गए थे, "रोहित कहां रह गए आज "
"ट्रिंग..... ट्रिंग...." काया ने मोबाइल उठा कॉल लगाया.
सामने से कोई जवाब नहीं
"ट्रिंग.... ट्रिंग.... काया ने फिर कॉल किया
"हहहह... हेलो..... हाँ...हिच...." एक लहराती सी आवाज़ आई
"रोहित.... रोहित... कहां है आप अभी तक "
"आए.... आया.... आया जान थोड़ी देर मे आया हिचहह...." रोहित की आवाज़ लड़खड़ा रही थी.
काया ने फ़ोन रख दिया,
"बड़े बाबू चलना चाहिए अब, आपने पूरी बोत्तल खाली कर दी " कय्यूम ने रोहित को सहारा दे उठाना चाहा.
"बैठो कय्यूम भाई चलते है घर, एक एक जाम और हो जाये अभी तो दोस्त बने हो तुम " रोहित पर शराब का शुरूर चढ़ा हुआ था.
कय्यूम पर जरा भी असर दिखता नहीं पड़ता था, लेकिन रोहित झूम रहा था, गिलास भी नहीं पकड़ पा रहा था, फिर भी और पिने की जिद्द.
"मैडम इंतज़ार कर रही होंगी बड़े बाबू, दोस्ती का क्या है, ये तो चलती रहेगी "
"पक्का ना कय्यूम भाई हिचहह.... हिचम..."
रोहित उठने को हुआ की फिर धममम से बैठ गया.
"अच्छा एक काम करते है ये एक बोत्तल कार मे रख लेते है, रास्ते मे पी लेंगे "
"You are such a good friend कय्यूम " रोहित ने बड़ी ही जल्दी दोस्ती कर ली थी.
शराब है ही ऐसी चीज
"आइये बड़े बाबू " कय्यूम ने लगभग रोहित को टांग ही लिया.
कार सडक पर दौड़ पड़ी...
"ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे... हिचहह..... हिचहह...., तोड़ेंगे दम मगर... हच... हीच...." रोहित बेसुध नशे मे मग्न गाने गए जा रहा था.
काया की कोई फ़िक्र नहीं.
मुफ्त की शराब आदमी ऐसे ही हचक के पिता है.
मर्द जात शारब पे पिघल जाती है.
लगभग 7.30 बजे
टिंग टोंग.... फ्लैट नंबर 52 की डोर बेल बज उठी.
"लो महाशय आ गए, आज खबर लेती हूँ, इतना लेट कोई आता है " काया चहकती हुई दरवाजे की ओर बढ़ चली.
सजी सवारी, मादक जिस्म की मालकिन काया का हुस्न आज दमक रहा था.
चाहारररर....... करता गेट खुलता गया.
"नमस्ते मैडम जी "
काया की आंखे फटी रह गई...
"कककक.... कय्यूम दादा..... मतलब कय्यूम जी आप?"
काया के सामने भारी भारकम सा शख्श खड़ा था, आपने कंधे पर रोहित का बोझ थामे.
"ये... ये... ये.... क्या हुआ रोहित को?" काया बुरी तरह घबरा गई थी, कय्यूम दादा था क्या कोई अनहोनी हो गई, काया का खूबसूरत चेहरा सफ़ेद पड़ गया.
"वो... वो.... मैडम जी डरिये मत.... कुछ नहीं हुआ है " कय्यूम रोहित को ऐसे ही थामे अंदर ले आया.
काया शांकित थी, तुरंत रोहित को दूसरी तरफ से संभाल लिया.
शराब का तेज़ भभका काया की नाक मे जा चुभा, काया को समझते देर ना लगी की क्या हुआ है,
लेकिन ऐसे....? ये पहली बार था जब रोहित ईस अवस्था मे घर आया था.
काया एक तरफ से रोहित को सहारा देने केिये उस से जा चिपकी दूसरी तरफ से कय्यूम.
"वो क्या है मैडम जी बड़े बाबू को आज प्रॉपर्टी दिखाने ले गया था, तो मेहमान नवाजी मे थोड़ा ज्यादा हो गई इन्हे " कय्यूम ने सफाई पेश की.
"ऐसे भी कोई पिता है " काया के चेहरे पे गुस्सा था, एक खीज थी क्या क्या सोचा था उसने और क्या हुआ.
इसी जद्दोजहद मे काया का पल्लू जा सरका.
ना चाहते बुए भी कय्यूम को वो स्वर्ग का नजारा दिख गया जिसकी उम्मीद उसे कतई नहीं थी, वो सिर्फ रोहित को छोड़ने आया था.
काया की साड़ी नीचे जमीन चाट रही थी, काया का सफ़ेद जिस्म रौशनी मे चमक उठा, स्तन लगभग बाहर को थे, ब्लाउज तो बस नाममात्र का था शरीर पर, बस स्तन के निप्पल को ढके था, नीचे सपात गोरा पेट उसमे धसी नाभि काया की जवानी मे आग लगाने के लिए काफ़ी थी.
और ये आग कय्यूम तक जा पहुंची थी, वो जानता था काया सुन्दर है, लेकिन ईस कद्र सुन्दर है ये पता नहीं था..
काया इन सब से अनजान रोहित को सहारा देने मे व्यस्त थी...
"यही बैठा दीजिये..... धमममम.... से रोहित सोफे पर जा बैठा "
कय्यूम भी साथ ही सोफे पे जा धसा, सामने काया खड़ी हांफ रही थी..... महीन lowcut ब्लाउज मे पल्लू जमीन चाट रहा था, गोरा बदन दमक रहा था.
सामने कय्यूम की नजरें ईस नज़ारे का लुत्फ़ उठाने से कैसे पीछे रह जाती.
काया ने रोहित को देखा, फिर कय्यूम को कय्यूम की नजरे उसको चुभती सी महसूस हुई, झट से पल्लू उठा कंधे पर जड़ लिया.
लेकिन ऐसा गद्दाराया कामुक जिस्म भी कभी कोई छुपा पाया है, काया भी ना छुपा सकी बस स्तन ढक गए थे इतनी राहत थी.
"ममम... मै.. मै पानी लाती हूँ " काया सकपका गई थी.
उसके अरमानो पर पानी फिर गया था.
काया जल्दी ही दो पानी के गिलास के साथ उपस्थित हुई,
"रोहित.... रोहित.... पानी पीजिये "
घर मे नीबू होगा मैडम जी " जवाब कय्यूम. ने दिया.
"हनन... हाँ... है लाती हूँ "
कय्यूम ने पूरा नीबू रोहित के गिलास मे निचोड़ दिया,
"बड़े बाबू.... बाबू.... ये पी लीजिये सही हो जायेगा "
कय्यूम ने पानी का गिलास रोहित के मुँह पर लगा दिया.
सामने खड़ी काया को कुछ समझ नहीं आ रहा था
"चिंता ना करे मैडम अभी होश आ जायेगा "
कय्यूम ने रोहित की नाक दबा गिलास रोहित के हलक मे खाली कर दिया.
गट... गट.... गट.... गटक... करता निम्बू पानी रोहित के हलक सर नीचे उतर गया.
"अक्सर ऐसा हो जाता है मैडम जी तो हम लोग ऐसा कर लेते है" कय्यूम किसी एक्सपर्ट की तरह एक्सप्लेयन कर रहा था.
काया सिर्फ हाँ मे सर हिला रही थी, जैसे किसी सदमे मे हो क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है, ये कय्यूम कहां से आया कुछ आता नहीं? "
टिक.... टिक.... टिकककक.... घर मे बिलकुल शांति छा गई थी इतनी की घड़ी की टिक टिक साफ सुनाई पड़ रही थी.
1मिनट बीते ही थे की रोहित सीधा हुआ...
आंखे खुली.... और वेककककककम..... ओक्क्मीम्म्म...... ओककककक..... वववकककक..... साथ बैठे कय्यूम के कपड़ो पर रोहित ने उलटी कर दी...
"रोहित..... रोहित..... क्या हुआ" काया डर के मारे थारथरा उठी.
ऐसी हालत आजसे पहले कभी नहीं देखी थी काया ने.
कय्यूम के पुरे कपडे ख़राब हो गए थे, गुस्से से चेहरा विक्रत हो गया था.
लेकिन सामने काया का चेहरा देख गुस्से का घुट पी गया, आज कोई और होता तो ये हरकत उसकी जिंदगी की लास्ट हरकत होती.
"आप चिता ना करे मैडम जी, नीबू से दारू निकल जाती है," रोहित वापस सोफे के सिरहाने से जा लगा"
"मममम.... मै.... ठीक हूँ... ससससस.... सससॉरी.... कय्यूम भाई मेरे दोस्त " रोहित को थोड़ा होश आया उसके बोलने से काया को राहत मिली.
"अब क्या करे? " काया का सवाल कय्यूम से था आँखों मे पछतावा था
"कोई बात नहीं मैडम जी, हो जाता है ऐसा, आप इन्हे सुला दीजिये, मै नहा लेता हूँ " कय्यूम के कपडे गंदे हो गए थे सोफा ख़राब हो गया था.
गंदी दारू की बदबू से घर महक रहा था.
"वो... वो... वहाँ है बाथरूम" काया ने बाथरूम की ओर इशारा कर दिया.
कय्यूम उठ के बाथरूम की ओर चाल दिया इधर रोहित काया का सहारा लिए लड़खड़ता अपने बैडरूम मे ढेर हो गया.
8.30 बज गए थे.
सामने रोहित पड़ा खर्राटे भर रहा था, कपडे गंदे हो गए थे.
एक संस्कारी पत्नी की तरह काया ने रोहित के जिस्म से उसकी शर्ट और पैंट खोल साइड कर दिया.
वो बाहर सफाई करने जाने ही वाली थी की ना जाने क्यों उसके जहन मे एक जिज्ञासा सी मचल उठी.
उसने रोहित की जांघो के बीच देखा, बिलकुल सपात माहौल था, पैंटी मे कोई उभार नहीं.
काया वापस बेड के पास आ बैठ गई, एक नजर बाहर हॉल मे देखा कोई नहीं था, काया के हाथ आगे को बड़े, उसके हाथ कांप रहे थे जैसे चोरी करने जा रही हो.
काया के हाथो ने रोहिती की पैंटी की इलास्टिक को थाम लिया, दिल धाड धाड कर बज उठा,
"ये कोई समय है इन सब का " दिमाग़ ने उसे धक्का दिया.
"तो क्या हुआ मेरा ही पति है, और कब देखेगी " दिल की चाहत ने उसे बढ़ावा दिया.
उसे जानना था काका की जांघो के बीच उभार था, रोहित के क्यों नहीं है.
उसने दिल की सुनी, अपने जिस्म की सुनी.
उसके हाथ पैंटी के इलास्टिक को नीचे की ओर खींचने लगे, बालो का एक झुरमुट सा उजागर हो गया, काया का दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था जैसे कोई पराया मर्द हो.
हर भारतीय नारी की यही कहानी है अपनी हक़ की चीज के लिए भी उसे सोचना लड़ता है.
खेर काया ने झट से एक बार मे रोहित की पैंटी को नीचे जाँघ तक सरकार दिया.
अब तक माथे पर पसीना आ चूका था.
सामने जो था उसे देख काया का दिल पसिज गया, दिल डूबने लगा, सुबह से लगी जिस्म की आग एकदम ठंडी पड़ गई.
सामने रोहित की जांघो के बीच बालो के झुरमुत मे एक छोटा सा मुरझाया अंग निढाल पड़ा हुआ था.
काया के सामने बाबू का लंड उभर आया, जिसे उसने बाथरूम मे देख था उस बच्चे का लंड भी रोहित से कहीं ज्यादा बड़ा और मोटा था, काका का आकर तो ओर भी भयानक था.
उसे याद आया वो कंडोम काका की एक ऊँगली के बराबर था.
ना जाने क्यों काया की ऊँगली किसी पैमाने की तरह आगे बड़ी, एक आंख बंद कर काया ने रोहित के लिंग को अपनी ऊँगली से नाप लिया...
"हहह....... हुम्म्मफ़्फ़्फ़.... एक ठंडी सांस काया के मुँह से निकल पड़ी, काया की ऊँगली से भी छोटा था वो.
काया हताशा से भर उठी. उसे आज ज्ञान हुआ हर मर्द अलग होता है, हर मर्द का कामुक अंग अलग होता है.
काया कभी अपनी ऊँगली को देखती तो कभी बाबू के लंड को याद करती कहीं कोई तुलना ही नहीं थी.
एक घरेलु संस्कारी लड़की अपने पति के लंड की तुलना गैर मर्दो से कर रही थी.
और यही होती है पहली निशानी एक औरत के बहकने की.
और यही सबूत है की काया बहक गई थी, उसके जिस्म की आग रोहित के बस की नहीं थी.
"मैडम.... मैडम.... जी.... ओह... मैडम जी..." एक भरी आवाज़ गूंज उठी.
कय्यूम की भरी आवाज़ से काया हक़ीक़त मे आई, झट से रोहित की पैंटी ऊपर कर बाहर हॉल मे आ गई.
हॉल खाली था.
"मैडम... जी... मैडम..." आवाज़ बाथरूम से आ रही थी.
काया वहाँ पहुंची दरवाजा थोड़ा था खुला था जिसमे से कय्यूम झाँक रहा था.
"कककक... कम्म..... क्या हुआ कय्यूम जी."
"मैडम... वो... मेरे कपडे भी ख़राब हो गए थे, कुछ पहनने को नहीं है, बड़े बाबू की कोई लुंगी हो तो ले आइये
कय्यूम का काला भयानक जिस्म उस दरार से अपनी एक पतली सी आकृति दिखा रहा था, जिसे काया देख तो रही थी लेकिन दृश्य वही चाल रहा था जब इसी बाथरूम की महीन दरार से उसने बाबू के लंड को देखा था.
ना जाने क्यों वैसी ही उत्सुकता काया के जहन मे दौड़ गई, लेजिन कय्यूम दरवाजे के पीछे खड़ा था, सिर्फ उसका चेहरे का हिस्सा ही दरार से बात कर रहा था.
"मैडम.... जी.... लुंगी है " काया को जवाब ना देता देख कय्यूम ने फिर पूछा.
काया होश मे आई " न्नन्न.... नन नन नहीं रोहित तो लुंगी पहनते ही नहीं है "
"तो फिर...ऐसे तो बाहर नहीं आ सकता ना आप डर जाएगी " कय्यूम ने जानबूझ के ये शब्द कहे
काया साड़ी मे लिपटी अपने जिस्म के जलवे बिखेर रही थी. स्तन की घटिया साफ नजर आ रही थी, साड़ी एक तरफ सिमट कर नाभि के दर्शन करा रही थी.
जिसे कय्यूम जैसा औरतचोद आदमी देख रहा था, अपने नसीब की तरीफ कर रहा था, रोहित से दोस्ती का ये सिला इतनी जल्दी मिलेगा ये तो उम्मीद ही नहीं की थी उसने.
"कककक.... क्यों डरूंगी आपसे " काया ने भी तड़ाक से जवाब दिया.
"भालू जैसा शरीर दिया है ऊपर वाले ने,आप शहरी मैडम है डर ही जाएगी ना " कय्यूम अच्छे से जानता था औरत से कैसे बात करते है.
काया ना जाने क्यों हस पड़ी " बहुत भालू देखे है मैंने चिड़ियाघर मे मै नहीं डरती किसी से " काया कहां हार मानने वाली थी.
"ये भालू थोड़ा अलग है, भालू का कालू आपने कभी देखा नहीं होगा " कय्यूम ने दिल की बात कहा सुनाई
एक शहरी कामुक औरत बाथरूम के बाहर खड़ी एक अनजान शख्श से बात कर रही थी, जबकि उसका पति शराब के नशे मे अंदर बेसुध सो रहा था.
यही बात कहीं ना कहीं काया के जिस्म मे एक तरग सी उठा रही थी.
"सोच लीजियेगा मैडम, मै नंगा हूँ, बाहर आ जाऊंगा " कय्यूम ने दरवाजे को हल्का सा हिलाया.
काया के जहन मे नंगा शब्द किसी कर्रेंट की तरह लगा, बाबू भी नंगा था,
"कय्यूम का मैसेज होगा " काया बहक रही थी उसकी काम इच्छा जाग्रत हो रही थी, मर्दो के अंग देखने की एक दबी इच्छा फिर हिलोरे मारने लगी
काया का जिस्म घनघना सा गया, कय्यूम के छाती के काले बाल झाकने लगे थे.
काया वैसे ही सोच मे डूबी थी
"आ जाऊ ऐसे ही बाहर " कय्यूम ने दाँत निपोर दिए
काया को हार माननी ही थी " अभी लाइ कुछ, बाहर ना आना ".
काया दौड़ पड़ी उसके चेहरे पे मुस्कान थी, काया के संस्कारो ने उसे वहाँ से भागने पर मजबूर कर दिया.
अंदर कय्यूम हस पड़ा.
"स्त्री भी गजब होती है, वो सुंदरता पे नहीं मरती, उसे सुन्दर पुरुष की चाह नहीं होती.
सुन्दर पुरुष तो बेसुध पड़ा था.
काम मे डूबी स्त्री सिर्फ कामुक अंग देखती है, उसकी चाहत देखती है, मर्दाना खूबसूरती यही तो है उसका मर्दाना अंग,
मर्द की काया क्या है? कैसी है? स्त्री को उस से फर्क नहीं पड़ता.
काया को भी नहीं पड़ता, उसके अंदर एक चाहत ने जन्म ले लिया है, मर्द की असली खूबसूरती देख लेने की चाहत ने."
अभी तो रात बाकि है?
क्या कय्यूम फायदा उठा लेगा?
काया का बहकता जिस्म उस से कुछ गलत ना करवा दे.
बने रहिये.....
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