अपडेट -4, काया की माया
"हाँ मै कय्यूम दादा बताइये, कैसे आना हुआ " एक भारी मर्दाना आवाज़ गूंज उठी.
रोहित के सामने एक राक्षसनुमा इंसान खड़ा था, भीमकाय, लम्बा चौड़ा, काला गच इंसान
"मै... मममम... मै.... रोहित हूँ बैंक का नया मैनेजर " रोहित ने खुद मे आत्मविश्वास पैदा करते हुए कहा.
हालांकि कय्यूम को देख लेने के बाद ये शब्द रोहित के हलक से निकल पाए बहुत बड़ी बात थी.
"आइये आइये साहब अंदर आइये, इस गरीब की कुटिया मे आइये " कय्यूम तुरंत हाथ जोड़ झुक गया
जैसा दीखता था शायद वैसा नहीं था कय्यूम
या फिर रोहित के बड़े साहब होने की इज़्ज़त बक्श रहा था.
रोहित नाक भो सुकूड़ता कमरे मे दाखिल हो गया
"साब अब धंधा ऐसा है ना क्या करे, आप शहरी बाबू है ये गांव ये बीहड़ यहाँ के धंधे आपको कहा समझ आएंगे " कय्यूम ने एक कुर्सी आगे कर दी और खुद सामने पलंग पर जा धसा.
रोहित ने देखा बाहर के मुक़ाबले अंदर का कमरा ज्यादा अच्छा था, साफ सुथरा सजाया हुआ.
एक बढ़ा सा गद्देदार पलंग था जिस पर कय्यूम फसा हुआ सा बैठा था, सामने गद्देदार सोफा जिस पर रोहित बैठा था.
"बताइये साब मया सेवा करे आपकी "
जवाब मे रोहित ने फ़ाइल आगे टेबल पर दे मारी " ये क्या है कय्यूम? "
रोहित ने बिना किसी प्रस्तावना के बुना इज़्ज़त के उसका नाम ले लिया था, कोई इज़्ज़त नहीं.
"साब... साब.... " मकसूद ने पीछे से टोकना चाहा.
" जाने दे मकसूद हम गरीब लोग कर्जदार है साब के " कय्यूम ने हाथ के इशारे से महसूद को रोक दिया.
रोहित को अफसरगिरी झाड़नी ही थी, सो झाड ही दी.
"हाँ तो कय्यूम सीधा मुद्दे पे आते है, ये इतने रुपये का क्या किया तुमने?" रोहित सीधा बात करने के मूड मे था.
पीछे मकसूद का दिल धाड धाड़ कर बज रहा था,
"रोहित साब ये क्या बोल रहे है?"
"मकसूद साब के लिए ठंडा पकड़ ला जरा " कय्यूम ने जैसे ऑर्डर मारा हो.
मकसूद बैंक का मुलाजिम था लेकिन कय्यूम के एक ऑर्डर पर "जी दादा अभी... अभी लाया"
मकसूद तुरंत एक आवाज़ मे बाहर हो लिया.
"हाँ तो साब आप क्या कह रहे थे " कय्यूम बड़ा ही सबर से भरा इंसान मालूम होता था.
शांत दिल और मुस्कुराहट के साथ उसने रोहित से पूछा.
"क्या किया इतने रुपये का?, कोई हिसाब है? " रोहित वैसे ही अकड़पन मे कय्यूम पर धौंस जमाये जा रहा था.
"साब वो धंधा करने के लिए पैसा लिया था "
"तो पैसे भी तो वापस देने होते है?"
"कहाँ से दू?"
"अरे बड़े अजीब आदमी हो, मै देख रहा हूँ इतना बड़ा घर है, जमीन है, बकरी मुर्गीया है फिर भी कहते हो कहाँ से दू पैसा?" रोहित कुर्सी पर आगे को सरक गया.
"साब मै तो दिवालिया हूँ, ये सब तो मेरी बीवी के पैसे से है, चाहे तो आप चेक कर के " कय्यूम वैसे ही प्यार और इज़्ज़त से ही बोल रहा था.
रोहित ने कभी ऐसा व्यक्ति नहीं देखा था, वो उस से इतना बेरुखी से पेश आ रहा था और कय्यूम सफाई पे सफाई दिए जा रहा था, जैसा मकसूद ने कहाँ था वैसा तो नहीं ये ये आदमी?
"लेकिन पैसा लिया है तो चुकाना तो होगा ना " रोहित ने फ़ाइल खोल उसका नाम और उसके नाम पर दिए गए लोन का पन्ना आगे कर दिया.
"साब कागज़ का क्या है, अब पैसा नहीं है तो क्या करू? "
"बेच के चूका दो "
"क्या बेच दू अपनी औरत को बेच दू, तौबा तौबा साब कैसी बात करते हो " कय्यूम पलंग से उठ खड़ा हुआ
"ममम.. मममम.... मेरा वो मतलब नहीं था "
"तो क्या मतलब था साब?" कय्यूम बात का पतंगड़ बना रहा था.
"देखो कय्यूम, तुमने बैंक का पैसा लिया है वापस तो करना पड़ेगा, 5 साल होने को आये एक नया पैसा ब्याज भी नहीं दिया, मजबूरन बैंक को तुम्हारी सम्पत्ति नीलम करनी पड़ेगी " रोहित ने आधिकारिक बात कह सुनाई.
"लेकिन ये सब मेरा नहीं है, मै तो दिवालिया हूँ ये सब मेरे बाप और बीवी के नाम पर है मेरा कुछ नहीं साब "
रोहित का दिमाग़ अब गरम हो चला था.
"कय्यूम तुम जैसो को मै अच्छे से जनता हुआ, बैंक का पैसा खा कर बहाने करते हो, पाई पाई निकलवा लूंगा तुमसे "
"आप कही धमकी तो नहीं दे रहे मुझे " कय्यूम का चेहरा अब बिगड़ने लगा था.
मकसूद ठंडा नहीं लाया अभी तक, जा जल्दी ला शहरी बाबू गर्म हो रहे है.
मकसूद अभी भी वही खड़ा था,
"साब.... साब..... आज के लिए बहुत है चलते है " मकसूद ने गजब की हिम्मत दिखाते हुए रोहित का हाथ पकड़ उसे कुर्सी से उठा दिया.
"मकसूद क्या कर रहे हो...."
"साब.... आप नये है, मै समझा दूंगा, माफ़ी कय्यूम दादा साब नये आये है " मकसूद लगभग रोहित को घसीटाता बाहर ले गया.
आनन फानन मे मकसूद बे कार गॉव के बाहर दौड़ा दी.
"मकसूद गाड़ी रोको.... रोको.. गाड़ी.... रोहित चिल्लाया "
चररररररर..... करती गांव के कच्चे रास्ते पर जा रुकी.
"ये क्या हरकत थी मकसूद मै बात कर रहा था ना?"
"साब आप समझ नहीं रहे है, वो कय्यूम दादा है यहाँ का, मै उसी मोहल्ले मे रहता हूँ मै खूब जनता हूँ उसे, मुझे ताज्जुम है की आपकी बदतमीज़ी के बाद भी हम सही सलामत बाहर आ गए "
"क्या बकते हो, तुम मुझे डरा रहे हो "
"डरा नहीं रहा साब जानकारी दे रहा हूँ, आज तक कय्यूम ने इतनी तमीज़ से किसी से बात नहीं की, उसके सामने ऊँची आवाज़ मे कोई बोल भी नहीं सकता "
"तुम मुझे डरपोक समझते हो?"
"कौन कहता है आप डरपोक है, ये आपका काम है साब लेकिन समझदारी भी कोई चीज होती है ना "
मकसूद की बाते कुछ कुछ समझ आ रही थी रोहित को.
"आपको आये अभी 2 दिन भी नहीं हुआ और आप सीधा शेर की मांद मे घुस गए थे, कय्यूम की बहुत इज़्ज़त है यहाँ, बहुत रसूख वाला इंसान है"
मकसूद श्री कृष्ण की तरह सारथी बना रोहित रुपी अर्जुन को ज्ञान दे रहा था.
"पुलिस वगैरह सब उसी के पैसो पे पलते है, आपको लगता है वो बैंक के पैसे लोटायेगा?"
रोहित मूड कर खेल की तरफ चल पड़ा, दिमाग़ सांय सांय कर रहा था, अब उसके दिल मे हल्का हल्का खौफ जगने लगा था, उसके सामने कय्यूम का भयानक चेहरा मोहरा छाने लगा था.
"तालाब मे रह के मगरमछ से बैर नहीं लेती साब, और तरीका सोचिये "
मकसूद की बाते रोहित के दिल दिमाग़ मे अच्छे से बैठ गई थू, ये जयपुर नहीं था की 5,10 लाख का लोन रिकवर कर लिया बन गए शेर. पुलिस और नीलामी की धमकी दी और काम बन गया.
"हाँ.... हम्म्म्म.... मकसूद तुम ठीक कहते हो मुझे ठन्डे दिमाग़ से काम लेना होगा,.
रोहित कार मे जा बैठा, पीछे पीछे मकसूद भी,
"बैंक चले साब?"
रोहित ने घड़ी देखी, 5 बज गए थे " घर हूँ ले लो बैंक मे क्या काम अब "
कार कच्चे रास्ते पर दौड़ चली.
5मिनट बाद ही " मकसूद.... रोको... रोको.... जरा "
"क्या हुआ साब?"
"वो सामने से एक बोत्तल ले आओ " रोहित ने एक दुकान की तरफ इशारा कर दिया
सामने रोड के किनारे दुकान थी " देसी वो अंग्रेजी शराब की दुकान "
"ये लो पैसे, और ballantune ले आना " रोहित ने पैसे मकसूद को थमा दिया
"सा....साब ये कौनसी चीज है "
"दारू है yaar उसका नाम है "
"ये तो कोई विलयती जान पड़ती है, यबा नहीं मिलेगी " मामसूद ने 3000rs देख अंदाजा लगा लिया था रोहित कोई महंगी दारू मंगा रहा है.
"तो क्या मिलेगा?"
"700 रूपए तक मे मिल जाएगी कोई अंग्रेजी"
"ठीक है वही ले आ " रोहित आमतौर पे नहीं पिता था बस कभी कभी ज्यादा वर्क लोड होने पर पी लेता था, आज वैसे ही उसके दिमाग़ का दही हो ही चूका था पहले दिन ही नाकामी हाथ लगी थी.
मकसूद जाने लगा.
"अच्छा सुनो अपने लिए भी कुछ ले लेना "
"जनन.... जी... जी... साब " मकसूद का चेहरा खील उठा पहली बार किसी साब मे उसे दारू को पूछा था.
थोड़ी ही देर मे, मकसूद एक विदेशी और एक देसी दारू के साथ कार मे मौजूद था.
रोहित ने बोत्तल को देखा, एक ठंडी सांस भारी " चलो मकसूद घर छोड़ दो आज सर भारी है थोड़ा "
चररररर...... सससससरर..... कार धूल उड़ाती दौड़ पड़ी.
शाम 6. 00pm
टिंग टोंग
फ्लैट नंबर 51 की डोर बेल बज उठी.
काया दौड़ती हुई सामने प्रकट थी.
"कैसा रहा रोहित आपका पहला दिन?" काया ने रोहित का बेग और हाथ मे थमी थैली सँभालते हुए कहाँ.
"क्या खाक दिन काया, बहुत चैलेंज है मेरे लिए यहाँ, पूरा बैंक डूबा हुआ है " रोहित धम्म से वही सोफे पर बैठ गया.
"क्या हुआ रोहित बहुत परेशान लग रहे हो " काया पानी का glass ले आई थी,
रोहित एक सांस मे गटागट पानी पी गया "हम्म्म्म काया नौकरी ऐसे ही होती है तरक्की के साथ जिम्मेदारी भी आ जाती है "
काया कुछ नहीं बोली, सीधा किचन मे चली गई.
बाहर रोहित फ्रेश हो सोफे लार धसा पेग बना चूका था,
काया साइड किचन मे खाना बना रही थी,
रोहित एक के बाद एक पेग पिए जा रहा था, सामने टीवी चल रही थी लेकिन उसका ध्यान उधर कतई नहीं था.
"क्या हुआ रोहित इतना क्यों पी रहे हो " याकायाक सामने काया खड़ी थी खूबसूरत white गाउन पहने, पीछे से आती रौशनी मे काया का जिस्म साफ नुमाया हो रहा था.
ना जाने रोहित को क्या हुआ, सीधा उठ खड़ा हुआ काया को अपने आगोश मे भर लिया.
"क्या कर रहे हो रोहित, छोडो, बहुत काम है अभी " काया ने खुद को छुड़ाना चाहा.
तब तक देर हो चुकी थी, रोहित के होंठ काया के होंठ से जा मिले थे,
शायद दारू का शुरूर था, ऊपर से काया का मादक मदमस्त जिस्म.
रोहित लगातार काया के होंठो को चूसे जा रहा था.
गूगगग.... गु.... गु.... रोहित रुको.. "
लेकिन रोहित कहाँ सुनने वाला था.
रोहित हमेशा जल्दी मे होता रहा लेकिन जैसे आज उसके जल्दीपाने मे गुस्सा भी घुला हुआ था.
काया साफ महसूस कर सकती थी,
रोहित किसी जानवर की तरह काया के होंठ चबा रहा था, काया दर्द से परेशान थी, इस चुम्बन मे प्यार तो कतई नहीं था बिलकुल भी नहीं.
"रोहित..... रोहित.... क्या हो गया है तुम्हे " काया ने खुद को छुड़ाते हुए कहाँ
"तुम बहुत सुन्दर ही मेरी जान " रोहित ने काया को धकेलते हुए वही सोफे पर लेता दिया,
काया को कुछ समझ पाती की रोहित का पजामा नीचे धरती चाट रहा था, तुरंत ही काया की टंग फैला रोहित जंग-ऐ -मैदान मे कूद पड़ा.
काया ने लाल कलर की पैंटी पहनी थी, एक पतली सी पट्टी काया की खूबसूरत फूली हुई चुत को धके हुए थी जिसे रोहित ने उऊँगली से साइड कर अपना औसत लम्बाई काअलं डdnu दसर ठेल दिया.
"आआहहहह.... रोहित.... उउउफ्फ्फ...." काया बिलकुल भी उत्तेजित नहीं थी, बस समझ नहीं पर रही थी रोहित कर क्या रहा है.
रोहित को कहाँ परवाह थी, वो कभी सम्भोग मे कोई भूमिका नहीं निभाता था, बस सीधा लंड को चुत मे डाल दें हूँ sex समझता था.
आज भी यही किया.. धच धच.... फच.... करता लंड ठेलने लगा, दारू के नशे से लंड मे वो कठोरता भी नहीं जान पडती थी.
पहले सम्भोग मे प्यार था, उतावलापन हुआ करता था, हालांकि आज भी जल्दी मे था रोहित लेकिन प्यार कही नहीं था, रोहित का चेहरा ऐसा था जैसे गुस्से मे हो.
"काया आ छोडूंगा नहीं तुन्हे, ले और ले..... फच... फच.....
रोहित पूरी ताकत से धक्के मार रहा था, जो की काया की चुत से रगड़ खाता सा लग रहा था.
उउउफ्फ्फ..... रोहित.... काया भी हथियार डाल चुकी थी, रोहित की मर्ज़ी ही उसकी मर्ज़ी हुआ करती थी, उसने भी अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया.
काया का जिस्म रिस्पांस करने लगा था.
परन्तु रोहित पहले से बहुत तेज़ हो चूका था.
"आअह्ह्ह..... रोहित आराम से धीरे.... आअह्ह्ह...."
काया के मुँह से ये शब्द निकले ही थे की फच... फच... फचक.... करता रोहित झड़ गया, रोहित sex के वक़्त थोड़ी समझदारी ये दिखता था की वीर्य निकलने से पहले लंड बाहर निकाल लेता था, आज भी वही किया, रोहित के लंड ने 2बून्द वीर्य काया के गाउन पर टपका दिया.
जयपुर मे रोहित कंडोम का इस्तेमाल करता था, लेकिन अभी तक उसे यबा ऐसा मौका नहीं मिला था वो अभी बच्चा नहीं चाहते थे.
" हम्म्म्मफ़्फ़्फ़.... Hummffff.... काया " रोहित पूरी तरह निढाल साइड मे बैठ गया, उसके चेहरे पे अब शांति थी, गुस्से का नामोनिशान नहीं था.
काया भी एक अच्छी बीवी की तरह उठ बैठी, "क्या हुआ है रोहित आज "
काया ने प्यार से रोहित के सर पर हाथ फेर पूछा.
रोहित कितना लकी था जो उसे ऐसी बीवी मिली थी, ना कोई शिकायत, ना कोई गुस्सा बस प्यार, पति की मर्ज़ी ही खुद की मर्ज़ी माम लेती थी.
"कुछ नहीं काया वो... वो... बैंक मे आज...." रोहित ने कय्यूम के साथ का किस्सा कह सुनाया.
"लो इतनी सी बात पर ऐसे गुस्से मे बैठे थे, हो जायेगा रोहित " काया की आवाज़ मे जादू सा था बोलती ही इतना मीठा थी.
डिनर खत्म कर दोनों बिस्तर के हवाले हो गए.
रात के 11 बज गए थे.
रोहित खर्राटे भर रहा था तो वही काया की आँखों से नींद ओझल थी.
शाम को हुए वाक्य से उसका ध्यान ही नहीं हट रहा था, प्यार की एक कमी सी खल रही थी जैसे.
रोहित का ये रूप आज से पहले उसने कभी नहीं देखा था, गुस्से मे उसका लंड अंदर बाहर करना बर्दाश्त के बाहर था.
काया के जिस्म मे झुरझुरी सी चल रही थी, आधे अधूरे सम्भोग से उसका जिस्म जल रहा था, करवाते बदलती काया को अपनी जांघो के बीच कुछ चुभता सा महसूस हो रहा था.
काया ने जाँचना चाहा तो पाया की पैंटी का बीच का हिस्सा कड़क, और आस पास गिलापन है. काया की ऊँगली पैंटी के बीच उभरी गीली लकीर पे जा लगी, जैसे कुछ टटोल रही हो, आअह्ह्ह.... ऊँगली उस नाजुक अंग पे छूते ही कायबके मुँह से kamuk आह फुट पड़ी, काया को कुछ सुकून सा अहसास हुआ, आज से पहले उसने कभी ऐसा नहीं किया था, गिलापन काया को परेशान कर रहा था उसने पैंटी को साइड किया तो पाया चुत से एक पतली तार नुमा लकीर पैंटी के साथ खींचती चली गई,
उउउफ्फ्फ..... ये क्या? काया खुद हैरान रही उसकी उंगलियां जैसे उसके काबू मे नहीं थी, नंगी फूली हुई चिकनी चुत लार उसकी ऊँगली कुरेदने लगी, आआहहहह..... कमाल का अहसास था, जो बर्दाश्त भी नहीं हो रहा था काया की जाँघे आपस मे चिपक गई, या फिर काया खुद से शर्मा गई थी.
काया को अच्छा तो लगा था, लेकिन शायद मन गवाह नहीं देरहा था, नींद आँखों से पूरी तरह ओझल थी
कैसे नींद आती भला, काया उठ के बालकनी मे चली आई, ठंडी हवा के थपेड़े सुकून दे रहे थे फिर भी चुभन और गिलापन बारकरारा था, काया ने गाउन हल्का सा ऊपर कर हाथ अंदर डाल पैंटी को नीचे सरकाते हुए खोल दिया.
लाल रंग की पैंटी पसीने और चुत रस से सरोबर थी.
"उउउफ्फ्फ..... ये पसीना " काया कभी कभी अपने इस पसीने से परेशान सी हो जाया करती थी.
हालांकि अब ठंडी हवा जांघो के बीच सुकून दे रही थी, लेकिन जिस्म मे सुकून नहीं था.
काया खुद मे खोई हुई थी की अचानक उसके हाथ से पैंटी छूट कर बालकनी से नीचे जा गिरी...
"ओह... गॉड... ये... ये क्या हुआ " काया हक्की बक्की खड़ी नीचे देख ही रही थी की नीचे कमरे का गेट खुल गया, लाइट की रौशनी से कमरे के आगे का हिस्सा जगमगा गया.
कल रात भी इसी टाइम पर बाबू बाहर आया था, तो क्या.. आज... आज... भी काया का दिल धाड धाड़ कर बज रहा था, अब तक उसकी लाल पैंटी जमीन चाट चुकी थी.
नीचे बाबू कमरे के बाहर तक आ चूका था, काया के जहन मे कल रात की घटना दौड़ गई, कल अनजाने मे हुआ था आज काया को वापस चले जाना चाहिए था,
लेकिन ऐसा नहीं हुआ, काया का जिस्म पहले से गर्म था अब उस पल के इंतज़ार मे सुलगने सा लगा था.
जिस बात का इंतज़ार था हुआ भी वही, बाबू कुछ दुरी पर जा कर पजामा नीचे कर खड़ा हो गया,
आज ऐसे खड़ा था की रौशनी मे लंड जगमगा रहा था, आज उसका आकर प्रकार साफ नजर आ रहा था. काया उस अंग को देख हैरान थी, बाबू मासूम सा नजर आता था, छोटा बच्चा दीखता था लेकिन, उसका ये.... ये.... तो कुछ बड़ा सा लग रहा है.
हालांकि इतनी ऊपर से साइज का अंदाजा लगा पाना मुश्किल ही था, पर क्या करे काम की इच्छा पाले इंसान को कामुक अंग साफ नजर आते है, काया की नजर बरबस बाबू के लंड पर थिठक गई की तभी.....
ससससससरररर....... पप्पापिस्स्स...... तेज़ धार फुट पड़ी दूर तक, काया धार का पीछा करती गई तो पाया की जिस जगह बाबू का पेशाब गिर रहा है उससे कुछ दुरी पर ही उसकी लाल पसीने से भीगी पैंटी पेशाब के छिंटो का आनन्द उठा रही है.
बाबू मस्ती मे मस्त खुली हवा मे लंड निकाले मूत रहा था,
ऊपर काया जैसे बूत बनी हुई थी कभी अपनी पैंटी को देखती तो कभी बाबू के लंड को.
सुंदर चिकना, लम्बा सा बड़ा ही मनमोहक प्रतीत होता था.
काया अभी अभी नाकाम सम्भोग से गुजरी थी, ये पल किसी भी काम पिपशु स्त्री के लिए सुख देने वाला ही था.
काया भी उस दृश्य को देखती रही ना जाने क्या उत्तेजना थी इसमें.
कुछ ही पलो मे बाबू ने काम खत्म कर पजामा उठाना चाहा की, उसकी नजर सामने पड़ी, सामने कुछ तो था नीचे जमीन पे पड़ा हुआ.
बाबू पजामा कस नजदीक जाने लगा.
"ओह... गॉड.... उफ्फ्फ.... नहीं... बाबू plz नहीं " काया मन ही मन भगवान से खेर मना रही थी.
लेकिन भगवान तो खुद मजे लेने के मूड मे बैठा था, बाबू दो कदम चल उस कपडे को उठा लिया.
काया ये सब होते देख रही थी, एक बाबू ही तो था जिस से वो घुली मिली थी, क्या सोचेगा मेरे बारे मे उफ्फ्फ्फ़....
बाबू ने पैंटी उठा ली, आस पास देखा, कोई नहीं था अलट पलट देखा, ना जाने क्या देख रहा था.
ना जनरल बाबू को क्या सूझी पैंटी को अपनी नाक के नजदीक ले गया सससन्नन्नफ्फफ्फ्फ़..... एक लम्बी सांस खिंच फिर इधर उधर देखा.
"छी... ईई..... ये बाबू क्या कर रहा है " काया के लिए ये घृणा से भरा था, उसके पति ने भी आजतक ऐसा नहीं किया था,
काया को याद आया शादी के बाद रोहित ने एक दो बार उसकी चुत चाटने की कोशिश जरूर की थी, लेकिन कभी कर ना सका, उसका कहना था काया तुम्हे पसीना बहुत आता है, स्मेल आती है तुम्हारी उस से.
उसके बाद काया ने भी कभी इच्छा नहीं की वो जानती भी नहीं थी की सम्भोग मे ऐसा भी होता है.
खेर बाबू की हरकत से काया का मन घिन्न तो हुआ लेकिन एक अजीब से लहर भी नाभि से जांघो के बीच दौड़ पड़ी, जैसे किसी ने नंगा तार छुवा दिया हो.
नीचे बाबू झट से पैंटी को जेब मे रख उल्टे पैर भाग खड़ा हुआ "bhaddakkkk" से कमरे का दरवाजा बंद हो गया.
सांय... साय..... सी हवा काया के जिस्म को पार कर जा रही थी, माथे पर पसीना था.
"हे भगवान अब क्या होगा, बाबू से कभी मिलना हुआ तो कैसे आंख मिलाएगी "
काया बैडरूम की ओर बढ़ चली, पैर और जांघो का ऊपरी हिस्सा भारी था.
"बाबू को कैसे मालूम पड़ेगा की किसकी है? बहुत लोग काम करते है, नीचे के फ्लोर पर भी कोई रहता ही होगा,. मै बेवजह ही चिंता कर रही हूँ " काया ने खुद की चिंता को अपने तर्क से समाप्त मर लिया था.
बेचैन दिल और जलता जिस्म लिए काया बिस्तर मे समा गई.
हर भारतीय नारी की यही कहानी है, सम्भोग मे संतुष्टि किस्मतसे ही मिलती है,
नाकाम सम्भोग ही हर नारी के जीवन का हिस्सा है, तो शिकायत कैसे?
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