अपडेट -5
Day -3
सुबह शांत थी, रोहित नाश्ता कर चूका था.
"काया मै चलता हूँ "
"रोहित ये टिफ़िन " काया ने रोहित को टिफ़िन थमा दिया.
रोहित चलने को ही था " सुनो ना रोहित आज लंच मे आ जाओगे क्या, घर के लिए जरुरी सामान लेना है "
"कैसी बात करती हो काया आज दूसरा ही दिन है मेरा बैंक मे "
काया का चेहरा उतर सा गया.
"ऐसा करता हूँ मकसूद को भेज दूंगा दिन मे, वो बाजार जनता भी यहाँ का जो इच्छा हो ले लेना"
रोहित बाहर को चल पड़ा.
"ररर.... रो... रोहित " लेकिन रोहित रुका नहीं.
काया के मन मे दुविधा थी, मकसूद उसे कुछ अजीब नजरों से देखता था.
खेर काया शहरी लड़की थी हैंडल कर सकती थी ये सब.
काया घर के कामों मे व्यस्त हो गई...
अभी मकसूद को आने मे वक़्त है" काया बाथरूम की ओर बड़ी ही थी की
"टिंग टोंग...." अभी कौन आया?
शायद रोहित ही होंगे कुछ भूल तो नहीं गए?
काया रात वाले गाउन मे ही थी, जिस्म पर टाइट गाउन कसा हुआ था, ब्रा पहनती ही नहीं थी, और पैंटी कल रात बालकनी से नीचे जा गिरी थी,
घर के काम काज मे काया को इस बात का इल्म भी ना हुआ
साद्ददाककककम.... से दरवाजा खोल दिया.
"बाबू तत त त.... तुम "
"हाँ मैडम आपका कपड़ा कल नीचे गिर गया था वही लौटने आया हूँ "
काया का तो खून सफ़ेद पड़ गया था, कल रात का दृश्य उसके सामने दौड़ पड़ा, मतलब अब.... अभी उसने गाउन के नीचे कुछ नहीं पहना है?
सामने बाबू की भी वही हालत थी, पीछे खिड़की से आती रौशनी काया के गाउन मे छुपी उसकी जवानी को बयान कर रही थी, मादक जिस्म का एक एक कटव साफ झलक रहा था.
"ममम.... मैडम.... वो.... वो आपकी ये कच्छी "
बाबू ने हाथ आगे बड़ा दिया, उसकी अवस्था भी कुछ ठीक नहीं थी.
उसके हाथ मे तुड़ी मुड़ी लाल कलर की पैंटी थी.
काया क्या बोलती? कैसे बोलती.... मममम.... मेरी..मेरी कैसे?
काया आज अपनी पैंटी को अपनाने से मना कर रही थी,
"आपकी ही तो है मैडम जी " बाबू ने हथेली खोल काया के सामने लहरा दी...
काया ने झट से हाथ आगे बढ़ा पैंटी को अपने कब्जे मे ले लिया.
उसकी इस हरकत से साबित हो गया था की ये पैंटी उसी की है.
"मैंने कहाँ था ना आपकी ही है" बाबू ने जैसे जीत प्राप्त कर ली हो.
"वो... वो.... कल गिर गई होगी शायद सूखने को डाली थी.
आओ अंदर बाबू.... काया ने खुद को संभाल लिया था,
दरवाजा बंद हो चला.
"तुम्हे कैसे पता की मेरी है? काया जानना चाहती थी बाबू इतने विश्वास के साथ कैसे बोल रहा है.
"अब ऐसी डिजाइनर कच्छी भला इस गांव मे कौन पहनेगा, महंगी लगती है, मुझे लगा आपकी ही होगी "
काया बाबू का सामना ना कर सकी.
"रुको मै पानी लाती हूँ गड़ब " काया किचन मे जा glass भर खुद पानी पी गई.
पीछे बाबू की हालत ज्यादा ख़राब थी, वो किस्मत वालो मे से था जो काया की गांड को पतले से गाउन मे हिलते, हिचकोले खाते देख रहा था.
"ये लो बाबू " काया कब पानी ले आई पता नहीं चला. पैंटी वही किचन मे रख आई थी
गटक गटक... गटक.... बाबू का भी गला सुख आया था.
दोनों की एक जैसी हालत थी,
काया शर्म से और बाबू उत्तेजना मे.
"वैसे.... मैडम.... छोटी... छोटी...." बाबू कुछ बोलना चाहता था लेकिन अटक रहा था.
"क्या बोलो "
"इतनी छोटी कच्छी मे कैसे ढकता होगा सब "
ससससननननन.... बाबू के सवाल से काया सकते मे आ गई.
काया को गुस्सा होना चाहिए था, लेकिन बाबू ने सवाल ही इतनी मासूमियत से पूछा था की काया को हसीं आ गई.
हाहाहाहा.... बाबू तुम भी ना, सब आ जाता है.
"भगवान जाने मैंने तो जिंदगी मे पहली बार ऐसी कच्छी देखी है "
"अच्छा इतनी कितनी जिंदगी जी ली तुमने " काया को मजा आ रहा था बाबू की मासूमियत पर.
"यहाँ गांव मे बाजार मे भी नहीं दिखती कभी ऐसी " बाबू हैरान था सर खुजा रहा था.
" अच्छा अब ज्यादा दिमाग़ मत लगाओ, सब आ जाती है इतने मे ही "
"लल्ल... लेकिन आपकी कैसे आ जाती है?"
"क्या मतलब "
"वो... वो.... जाने दीजिये, मै चलता हूँ " बाबू को शायद गलती का अहसास हो गया था.
"बोलो भी मेरी से क्या मतलब " काया को कुछ कुछ अंदाजा तो हो गया था बाबू क्या कहना चाहता है लेकिन उसके मुँह से सुनना चाहती थी.
"वो... वो... वो.... आपकी गांड बड़ी है ना "
ससससस.... सससन्नन्न.... काया का दिमाग़ सन्न पड़ गया उसे इन शब्दों की उम्मीद नहीं थी.
"छी.... बत्तमीज़ कैसी भाषा बोलते हो " काया ने बाबू को झड़क दिया.
हालांकि उसे भाषा से दिक्कत मालूम पड़ती थी, बाकि बात से नहीं.
"अब हमारे यहाँ तो यही कहते है" बाबू ने वापस मासूमियत से जवाब दिया.
"अच्छा बाबा.... जो तुम कहो, सबकी ऐसी ही होती है ना "
"ना मैडम जी... मैंने तो आपसे बड़ी किसी की नहीं देखी "
"सच... कितनो की देख चुके...?"
बारी अब बाबू की थी, काया के सवाल का कोई जवाब नहीं था.
"बच्चू अभी ठीक से जवान भी नहीं हुए और बाते देखो"
बाबू झेम्प के रह गया.
हालांकि बाबू के मुँह से बचकानी तारीफ काया को गदगद कर रही थी.
"मुझे ऐसी ही पसंद है, छोटी.." काया छोटी शब्द पर जोर दे कर मुस्कुरा दी.
काया के मुस्कुराने से बाबू शर्माहत से बाहर आया.
काया को अच्छा टाइम पास मिल गया था.
अच्छा बाबू चाय पिओगे?
"ममम.... मै..... अभी लाता हूँ " बाबू उठने लगा
"बुद्धू मै बना देती हूँ ना साथ मे पीते है " काया उठ के किचन मे जा खड़ी हुई.
बाबू फिर से जन्नत के दरवाजे को देख रहा था, काया के सोफे पे बैठ के उठने से गाउन का कपड़ा गांड की दरार मे जा धसा था.
बाबू नया ताज़ा जवान हुआ लड़का था, ये दृश्य भी खूब था उसके लिए.
पाजामे मे तम्बू बनने लगा था.
"अच्छा बाबू तुम्हारी फैमली मे कौन कौन है?"
काया ने वैसे ही खड़े रह के सवाल पूछा.
"जज्ज..... जी मैडम 5 बहने पापा मम्मी और मै "
"ककककयययय.... क्या? 5 बहने?" काया पलट गई,
"हाँ मैडम क्या करे.... इसलिए ही गांव से यहाँ चले आये कुछ पैसा कमाने ताकि पापा की हेल्प हो सके " बाबू ने मज़बूरी कह सुनाई.
काया के लिए बहुत ताज्जुब की बात थी " आज जे ज़माने मे इतने बच्चे कौन करता है "
"वो.. पापा मम्मी से बहुत प्यार करते है ना "
"हाहाहाबा.... बुद्धू " काया बाबू का जवान सुन जोरदार हस पड़ी.
बाबू को समझ नहीं आया काया क्यों हसीं " हमारे गांव के काका है,उन्ही के साथ यहाँ चला आया, वो जो लिफ्ट चलाते है ना वो "
बाबू ने पूरी रामायण कह सुनाई थी.
"अच्छा ये लो चाय पीओ " काया ने चाय की ट्रे आगे बढ़ा दी
"थैंक you मैडम आप बहुत अच्छी है, मै ही सबको चाय पिलाता हूँ, आज आपने पिलाई "
"ओह... बाबू... थैंक यू की क्या बात है तुमने मेरी वो भी तो ला कर दी ना " काया ने चुस्की लेते हुए कहाँ.
"क्या वो.... कच्छी?"
"हाँ वही कच्छी " काया ने आज पहली बार पैंटी को कच्छी कहाँ था, एक अलग सा फील था इसमें काया ने साफ महसूस किया.
"महंगी है ना मैडम जी देने तो आना हूँ था वैसे उसमे से खुसबू भी आती है पता नहीं था की महंगी कच्छी मे खुसबू भी होती है " बाबू चाय पिता पानी मस्ती मे बोले जा रहा था.
"कककक.... क्या खुसबू " काया को कल रात का दृश्य याद आ गया जब बाबू ने उसे उठा कर सुंघा था.
"छी.... मतलब तुमने उसे सुंघा था?" काया ने आंखे निकाल बाबू को घुरा.
"वो तो सामने पड़ी दिखी तो मन मे आ गया, उस समय पता नहीं था ना आपकी है, गांव मे बड़े लड़के लड़कियों की कच्छी को ऐसे ही सूंघते थे "
काया सन सनाये जा रही थी बाबू की बातो से.
उसे बाबू जैसा कच्चा जवान लड़का अभूतपूर्व बाते बता रहा था.
"तो मैंने भी सूंघ के देखा, बहुत अच्छी और तेज़ खुसबू थी "
काया हैरान थी, आज तक रोहित जिसे पसीने की बदबू कहता था, उसी को ये लड़का खुसबू कह रहा है.
"सच मे खुसबू थी?" काया बाबू की बातो से उत्तेजना महसूस कर रही थी, उसे कुछ नया सा अहसास हो रहा था.
"सच्ची मैडम जी...., मन किया सूंघते रहु "
"हट बदमाश ऐसा कही होता है क्या " काया ने खुद को सँभालते हुए कहाँ.
"पैंटी गंदी होती है, ऐसा नहीं करते " काया ने समझाया.
"ठीक है मैडम जी...." चाय खत्म हो गई थी, बाबू खड़ा हुआ तो पाजामे के आगे का हिस्सा तना हुआ था, हिल रहा था.
काया उसके आकर प्रकार को देख हैरान थी.
"चलता हूँ मैडम जी " काया कुछ नहीं बोली बस एकटक उसी उभार को देखे जा रही थी.
बाबू पलट के चलते को हुआ, तब काया का ध्यान भंग हुआ.
"बबब.... बाबू... वो... कचरा कहाँ फेंकते है?"
"लाइए मै फेंक देता हूँ ना"
"नहीं मै फेंक आउंगी तुम क्यों तकलीफ करते हो " काया अपने सरल स्वाभाव मे बोली.
"मै नीचे ही जा रहा हूँ, बाहर गेट के पास ही कचरा पेटी है वही फेंकते है "
काया ने कुछ ना बोलते हुए, कचरे की थैली बाबू को पकड़ा दी.
बाबू चला गया लेकिन काया के जिस्म मे एक बेचैनी सी छोड़ गया,
वो कभी बंद दरवाजे को देखती तो कभी किचन के मार्बल पे रखी अपनी लाल कलर की पैंटी को, जो गुड़ी मुड़ी खिड़की से आती रौशनी मे चमक रही थी.
"इसे लड़के सूंघते क्यों है? क्या मजा आता होगा " काया के जहाँ मे सवाल कोंध रहा था जिसका जवाब उसे ही हासिल करना था.
काया ने पल भर की देरी भी ना करते हुए, पैंटी उठाई और बाथरूम का रुख अपना लिया.
बाथरूम की तेज़ रौशनी मे काया का जिस्म चमक रहा था.
"आपकी बड़ी गांड कैसे इस छोटी सी कच्छी मे आ जाती है?" बाबू का मासूम सवाल अकेले मे उसके जिस्म को कुरेद रहा था.
"क्या वाकई मेरी वो इतनी बड़ी है "
प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवशयकता, काया के जिस्म से गाउन एक पल मे अलग हो गया.
असल मायनो मे आज इस बाथरूम की शोभा बड़ी थी, काया का मादक गद्दाराया जिस्म सामने कांच मे दमक रहा था, काया के हाथ मे पैंटी थमी हुई थी,
आज तक उसने इस तरीके से सोचा ही नहीं था, ना जाने क्यों काया का जिस्म थोड़ा सा घूम गया, सामने कांच मे काया की मदमस्त बड़ी बाहर को निकलती गांड का एक हिस्सा चमक उठा.
"बाबू सही तो कहता है " काया मुस्कुरा दी....
बेचारी पैंटी पे बड़ा जुल्म हुआ, काया ने कभी अपनी पैंटी को इतना कामुक नहीं पाया था, आजतक वो सिर्फ एक वस्त्र थी जिसे वो बाकि कपड़ो के अंदर पहनती थी.
परन्तु आज ये एक सादहरण सी पैंटी उसके जिस्म मे मस्ती घोल रही थी.
काया ने एक बार फिर से घूम के अपने जिस्म को आईने मे अच्छे से देखा, कही बाबू की बात झूठ तो नहीं थी?
आज काया पहली बार खुद के जिस्म को देख, उत्तेजित हो रही थी.
"हमारे गांव के बड़े लड़के इसे सूंघते है " बाबू की कही बात उस बाथरूम मे गूंज रही थी.
"नहीं... छी... ऐसा कौन करता है, रोहित तो नहीं बोले कभी ऐसा " काया अब बाबू की बात को नकार रही थी.
ना जाने किस आवेश मे काया के पैंटी थामे हाथ, उसकी नाक तक चले गए शनिफ्फफ्फ्फ़...... हहहहममममम... A. आआहहहह.... काया ने जी भर के एक लम्बी सांस खिंच ली.
एक मादक कैसेली सी गंध से उसका जिस्म नहा गया, काया अपनी स्मेल पहचानती थी लेकिन इस स्मेल मे कुछ घुला सा था, एक अजीब सी गंध जो सीधा काया की नाक से होती उसकी चुत तक जा पहुंची.
काया कामवासना के पहले पन्ने को पलट चुकी थी, उसने जाना इसमें कुछ खास है.
एक लम्बी सांस और खिंच ली.... ऊफ्फफ्फ्फ़..... काया के रोगटे खड़े हो गए, झुरझुरी सी चल पड़ी पुरे जिस्म मे.
आंख खोल सामने देखा, काया पूर्णतया नंगी खुद की पैंटी को सूंघ रही थी.
सामने का दृश्य देखना था की वो तुरंत हकीकत मे आ गई " छी... ये क्या कर रही हूँ मै "
लेकिन उसका जिस्म बार बार वो गंध महसूस करना चाहता था,
अक्सर मर्द और औरत कामुक अंगों की स्मेल को पसंद करते है, काया के लिए ये नया अनुभव था, उसे देख के लगता था ज़ये शानदार अनुभव है.
काया को अपनी जांघो के बीच कुछ रिसता सा महसूस हुआ, काया हैरान थी, उसके नाभि के नीचे खलबली सी मची हुई थी,
काया की एक उंगकी उस खाई मे जा लगी, हाथ दूर किया तो एक पतली सी लकीर साथ चल पड़ी.
काया की चुत रिस रही थी.
"ये... ये.... क्या हो रहा है, मेरी पैंटी मे ये अजीब सी गंध कैसी है, काया हैरान थी उसने पास पड़े अपने गाउन को तुरंत उठा के सुंघा उसने सिर्फ माया के जिस्म की महक थी, फिर पैंटी को सुंघा इसमें कुछ अलग सा था क्या था पता नहीं बस उसका जिस्म उस गंध को बार बार महसूस करना चाहता था.
"उउउफ्फ्फ...... ये क्या हो रहा है " काया ने खुद को सँभालते हुए पैंटी और गाउन वही जमीन पर पटक दिया, और शावर चालू कर दिया.. ठन्डे पानी के साथ माया के जिस्म की गर्मी भी घुलने लगी.
काया का दिमाग़ शांत ही चला.
1 बजने को थे, मकसूद के आने का वक़्त था.
काया लिस्ट बना चुकी थी.
टिंग टोंग.....
तभी बेल बज उठी.
"जरूर मकसूद ही होगा, काया ड्रेसिंग टेबल के समनी लिपस्टिक लगा रही थी, सुर्ख लाल.
काया ने लाल रंग की चमकदार सारी पहनी थी, गांव के लिए साड़ी ही उसे उचित परिधान लगा.
साड़ी काया के जिस्म को और मादक बना रही थी, जिस्म से चिपकी एक एक कटव को दिखा रही थी, गले मे मंगल सूत्र, माथे पर लाल बिंदी, सिंदूर और हाथो मे चूड़ी से सजी काया वाकई अपनी माया मे थी.
"आती हूँ....." काया ने दरवाजा खोल दिया
सामने मकसूद ही था,
" अभी आई रुको " काया ने मकसूद को बिना भाव दिए पलट अंदर को चल दी
उसने देखा ही नहीं मकसूद मुँह बाये खड़ा है, वो जब भी यहाँ आता था लगता था जैसे जन्नत का दरवाजा खुद अप्सरा उसके लिए खोलती है..
आज भी काया दरवाजा खोल अंदर चल दी, मकसूद तो उस हुस्नपरी की मटकती गांड को ही देखता रह गया.
पल भर मै ही काया वापस मौजूद थी " चले मकसूद मियां "
काया ने मुस्कुरा के कहा, आज काया का दिल दिमाग़ मस्ती से भरा हुआ था, वो जानती थी मकसूद की हालत को.
"च च... चले मैडम जी " मकसूद झेम्प सा गया, तुरंत थैला काया के हाथ सेऐ आगे चल पड़ा.
गनीमत थी आज लिफ्ट चालू थी.
पल भर मे ही कार सडक पे दौड़े जा रही थी, "मैडम कौनसे बाजार चलाना है " मकसूद सामने के शीशे पर देख माया को पूछ रहा था, काया का दमकता चेहरा शीशे मे उजागर था.
" रोहित ने तो कहाँ था तुम बाजार जानते हो " काया और मकसूद की आंखे उस शीशे पे जा मिली.
मकसूद अक्सर आँखों मे सुरमा लगता था.
काया और मकसूद की कजरारी आंखे एक दूसरे को देख रही थी.
"मतलब लेना क्या है मैडम, उस हिसाब से पूछ रहा हूँ?"
"बर्तन और कुछ किचन का सामान, बेडशीट वगैरह "
"फिर ती बड़े बाजार जाना होगा मैडम जी"
"तो चलो फिर " काया मुस्कुरा दी
काया की मुस्कुराहट से उसके सफ़ेद दाँत झलक पड़ते थे, लाल होंठो की मुस्कान मकसूद का ध्यान सामने जाने ही नहीं दे रहु थी.
"30 km दूर है मैडम बड़ा मार्किट "
काया ने घड़ी देखी 1.30 ही बजे थे " कोई बात नहीं बहुत टाइम है, चलते है "
काया की हामी थी की मकसूद ने एक कच्चे रास्ते पर कार को घुमा दिया "
"ये रास्ता तो कच्चा है?" काया ने बाहर देखते हुए कहा
"शॉर्टकट है मैडम, समय बचेगा 6बजे से पहले बैंक भी तो जाना है " मकसूद ने सफाई दी.
काया बाहर के नज़ारे को देखे जा रही थी, दूर दूर तक खेत खलियान, साफ आसमान, कोई शोर शराबा नहीं, साफ शुद्ध प्राकृतिक नजारा.
काया इस माहौल मे खो सी गई थी.
"आपको हमारा इलाका कैसा लगा मैडम जी "
"कककक.... क्या?" काया जैसे नींद से जागी हो.
"आपको यहाँ आ कर कैसा लगा मैडम जी?" मकसूद ने सवाल दोहरा दिया
"अच्छा.... बहुत अच्छा है मकसूद मियां, शहर मे ये सब महा देखने को मिलता है"
काया के मुँह से मियां सुन कर मकसूद के जिस्म मे हज़ारो चीटिया रेंग जाती, काया मुस्कुरा के उसे मकसूद मियां कहती.
"आप मुझे मियां क्यों कह रही है?" मकसूद ने जिज्ञासावंश पूछ ही लिया
काया ने सुना देखा था अक्सर लोग मुस्लिम को मियां ही कहते थे, " बस वहा शहर मे लोग कहते है तो मैंने भी कह दिया, भाई ही होता है ना मियां का मतलब? "
काया हैरानी के साथ बोली, कही कोई भेद तो नहीं?
"Hehehehe.... मकसूद हस पड़ा, आप शहरी मैडम है लगता है आपको सही मतलब नहीं पता "
"क्या मतलब होता है?"
" मियां औरते अपने पति को कहती है " मकसूद हस्ते हुए बोल पड़ा.
"ककम्म..... क्या.... ओह्ह्ह....... सॉरी "
काया झेम्प गई, उसने अनजाने मे ही गलती कर दी थी.
"सॉरी... मकसूद मि... मतलब मकसूद जी मुझे पता नहीं था " काया बगले झाकने लगी.
सामने कांच ने मकसूद काया का शर्माता देख रहा था, काया के लाल होंठ उसके दांतो तले दब गए थे.
"परेशान ना हो मैडम जी, ये तो पुरानी बात है दोस्त को या प्यार से जिसकी आप इज़्ज़त करते है उसे भी मियां कह सकते है "
मकसूद ने चुटकी ली.
"सच?"
"सच्ची मैडम, आपके मुँह से अच्छा लगता है "
मकसूद जल्दी घुल मिल जाता था किसी से भी, और काया भी जल्दी किसी बात का बुरा नहीं मानती थी, हलकी हसीं मज़ाक चलता जा रहा था....
की तभी..... चरररररर...... जोरदार ब्रेक के साथ मकसूद ने गाड़ी रोक दी, मकसूद का सारा ध्यान माया को ताड़ने मे ही था सामने एक कार कब आ खड़ी हुई उसे पता ही नहीं चला..
मकसूद की कार सामने की कार से ठुकते हुए बची.. "आउच..... क्या हुआ... मकसूद " काया सामने की सीट पर जा चिपकी.
"कौन है बे दीखता नहीं क्या तुझे " एक आदमी दौड़ता हुआ पास आ गया.
"अबे फारुख तू.... इधर " बाहर का आदमी शायद मकसूद को पहचानता था.
" हाँ बे दादा की कार ख़राब हो गई थी, बड़े मार्किट जाते वक़्त "
"मममम... मममम..... मतलब कय्यूम दादा कार मे बैठे है " मकसूद के चेहरे पे हवाइया उड़ आई.
काया की आंखे चौड़ी हो चली, कल ही उसने रोहित के मुँह से कय्यूम का नाम सुना था.
आखिर अनजाने ही कय्यूम दादा और काया का आमना सामना होने जा रहा था.
कय्यूम की गाड़ी ख़राब है, उसे भी बड़ा बाजार जाना है और काया को भी?
तो क्या ये ही है उनकी पहली मुलाक़ात? ये मुलाक़ात क्या रंग दिखाएगी?
देखते है, बने रहिये... बड़ा बाजार आने वाला है.
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